वनमाली एक वैद्य था। प्रताप नामक एक युवक उसके यहॉं काम करता था। दवाओं को पीसना, जड़ी-बूटियों से कषाय निकालना आदि कामों में वह दिन भर व्यस्त रहता था।
उसी गॉंव में मांत्रिक नामक एक वृद्ध था। उसने ग्रम देवी की उपासना करके चंद अद्भुत शक्तियॉं पायीं। वनमाली की पहुँच के बाहर की बीमारियों का इलाज करने में वह सिद्धहस्त था। इसका यह मतलब नहीं कि दोनों में प्रतिस्पर्धा थी। दोनों गॉंव के लोगों की सेवा करते थे।
मांत्रिक के यहॉं काम करने की प्रताप की तीव्र इच्छा थी। मंत्र-तंत्रों को सीखने की उसकी अदम्य इच्छा थी। जब इस इच्छा को लेकर वह मांत्रिक के पास गया तब उसने प्रताप से कहा ‘‘मेरे सीखे मंत्र-तंत्र वैद्य शास्त्र को लेकर हैं। इसलिए वैद्य विद्या सीखने के बाद ही तुम्हें ये मंत्र-तंत्र सिखाऊँगा।’’
जब एक बार मांत्रिक बीमार पड़ गया, तब वह वनमाली से मिलने आया। उसकी बीमारी की जांच करने के बाद वनमाली ने उससे कहा, ‘‘बहुत बूढ़े हो गये हो। अब तुम्हें अधिकाधिक विश्राम चाहिये। आज के लिए तुम्हें दवा दे रहा हूँ। कल फिर से जांच के बाद दवा दूँगा।’’
‘‘घर से निकलने में भी मुझे तक़लीफ़ होती है। कल की दवा किसी के ज़रिये घर भेज सकोगे?’’ मांत्रिक ने कहा। वनमाली ने दूसरे दिन प्रताप के द्वारा दवा भेजी। मांत्रिक ने उसे देखते ही कहा, ‘‘कल रात को ग्रम देवी सपने में प्रत्यक्ष हुईं। उसने साफ़-साफ़ बता दिया कि मेरी मौत का समय निकट आ गया है और कोई भी दवा काम नहीं करेगी। मेरी मंत्र विद्याएँ मेरे ही साथ ख़त्म हो जायेंगी तो मुझे आत्म शांति नहीं मिलेगी।’’
प्रताप ने फ़ौरन कहा, ‘‘अब तक थोड़ी-बहुत वैद्य विद्या सीख चुका हूँ। मुझे मंत्र सिखाओगे तो तुम्हारी आत्मा को शांति मिलेगी।’’ उसके स्वर में आशा भरी हुई थी।
मांत्रिक ने उसे एक बार ग़ौर से देखा और बग़ल की मेज़ पर ही रखी हुई एक सुंदर झब्बेवाली टोपी उसे देते हुए कहा, ‘‘इसे अपने सिर पर रख लो। मर जाने के बाद कुछ समय तक मैं इसपर हावी रहूँगा। इसे तुम जिसके लिए सिर रखोगे, उसे उस दिन क्या और कैसा लाभ होगा, वह तुम्हें तुम्हारे कान में बताऊँगा। दिन में एक ही बार तुम इसे उपयोग में ला सकोगे।’’
प्रताप खुशी से फूल उठा। उसने सिर पर टोपी रख ली और वनमाली से मिलकर कहा कि मांत्रिक की मौत का समय निकट आ गया। टोपी का राज़ उसने छिपा रखा।
उसी रात को मांत्रिक मर गया। गॉंव भर के लोगों ने मिलकर उसका दहन-संस्कार किया। इसके बाद प्रताप के सिर पर की टोपी में कोई संचलन हुआ। उसके कान में सुनायी पड़ा, ‘‘मैं तुम्हारी टोपी पर हावी हूँ। अब तुम इसका उपयोग कर सकते हो।’’
प्रताप ने वनमाली के पास काम करना छोड़ दिया और किसी दूसरे गॉंव में चला गया। वहॉं एक गली से गुज़रते व़क्त उसे कान में सुनायी पड़ा। ‘‘सामने से नीले रंग का कुरता पहने हुए जो आदमी आ रहा है, उसका नाम नक्षत्र है। उसे उसकी भविष्यवाणी सुनाना।’’
इतने में नीले रंग का कुरता पहना हुआ वह आदमी पास आया। प्रताप ने उससे कहा, ‘‘मेरी टोपी बताती है कि तुम्हारा नाम नक्षत्र है। एक अप्रत्याशित लाभ तुम्हें होनेवाला है। मेरी टोपी पहने लोगों से वह बतायेगी कि वह लाभ क्या है। इसके प्रतिफल के रूप में तुम्हें मुझे दो सौ अशर्फ़ियॉं देनी होंगी।’’
प्रताप ने उसका सही नाम बताया, इसलिए नक्षत्र ने उसकी बातों का विश्वास किया और उसने उसकी शर्त मान ली। प्रताप ने जैसे ही उसके सिर पर टोपी रखी, प्रताप के कान में आवाज़ आयी, ‘‘भूषण नामक एक व्यक्ति ने इससे दो हज़ार अशर्फ़ियॉं कर्ज़ में लीं। आज वह कर्ज वसूल होनेवाला है, जिसकी वसूली की कोई उम्मीद ही नहीं थी।’’
प्रताप ने, नक्षत्र से यह बात बतायी और अपनी टोपी ले ली। दोनों भूषण के घर गये। दरवाज़े पर ही भूषण ने नक्षत्र का स्वागत किया और प्यार-भरे स्वर में कहा, ‘‘आइये, आइये, मैं आप ही के घर आने निकल रहा था। लीजिये अपनी रक़म और अतिरिक्त दो सौ अशर्फ़ियॉं।’’ यों कहते हुए उसने रक़म नक्षत्र के सुपुर्द कर दी।
नक्षत्र ने प्रताप की शर्त के अनुसार रक़म दे दी और एक बड़ा भोज भी दिया। यह ख़बर गॉंव में आग की तरह फैल गयी और बड़ी संख्या में लोग उसके पास आने लगे। प्रताप दिन में एक ही बार झब्बे की टोपी पहनाता था। उसकी भविष्यवाणी के कारण ही कुछ लोगों को संपत्ति मिली तो कुछ लोगों को निधियॉं। बहुत-से लोगों को उनके व्यापारों में इज़ाफ़ा हुआ।
थोड़े ही समय में प्रताप धनवान हो गया। यों एक साल गुज़र गया। एक दिन उसे कान में सुनायी पड़ा, ‘‘मेरी वजह से कितने ही लोगों की भलाई हुई। अब मेरी आत्मा को शांति मिली। अब मैं इस झब्बे की टोपी छोड़कर जा रहा हूँ।’’
दूसरे दिन झब्बे की टोपी से आवाज़ का निकलना बंद हो गया। लोगों से साफ़-साफ़ यह बताकर उन्हें वह वापस भेजने लगा कि अब उसका ज्योतिष फलीभूत होनेवाला नहीं है।
परंतु उसके ज्योतिष से लाभ उठाने की इच्छा रखनेवाले कुछ स्वार्थियों ने, उसके बारे में दुष्प्रचार शुरू कर दिया। वे कहने लगे कि प्रताप में अब भी मंत्र शक्ति मौजूद है, पर ईर्ष्या के मारे वह यह काम नहीं कर रहा है।
यह अफवाह राजा तक पहुँची। उन्होंने प्रताप को बुलवाया और वास्तविकता बताने पर ज़ोर दिया। प्रताप ने मांत्रिक का विषय छिपाते हुए कहा, ‘‘प्रभू, मुझे झब्बे की एक टोपी मिली थी। उसकी महिमा के बल पर ही मैं बहुत समय तक ज्योतिष बताता रहा। अब उसकी महिमा ग़ायब हो गयी है।’’
राजा को उसकी बातों पर विश्वास नहीं हुआ। उन्होंने क्रोध-भरे स्वर में कहा, ‘‘तुम यह नहीं बता रहे हो कि तुम्हारी टोपी को यह महिमा कैसे प्राप्त हुई और अचानक कैसे गायब हो गयी। तुम यह राज़ जान-बूझकर छिपा रहे हो।’’ फिर राजा ने मंत्रियों आदि को सभा-स्थल से भेज दिया और प्रताप के कान में धीमे स्वर में कहा, ‘‘मैंने सम्राट की इकलौती पुत्री विद्युतलता से विवाह रचाने का निश्र्चय कर लिया है। परंतु मंत्रियों का कहना है कि दूतों के द्वारा सम्राट को यह समाचार भिजवाने से बात बिगड़ जायेगी। हो सकता है, खतरा भी मोल लेना पड़े । क्योंकि वे बड़े सम्राट हैं न। मैंने अभी एक नवीनतम निर्णय लिया है कि सम्राट पर आक्रमण करूँ और विजयी होकर विद्युतलता का हाथ अपने हाथ में लूँ। इसके लिए क्या यह खड्ग इतना शक्तिशाली है?’’
राजा की बातों ने प्रताप के शरीर में कंपन पैदा कर दिया। उसने कांपते हुए हाथों से राजा के सिर पर टोपी रखी। दूसरे ही क्षण राजा का हाथ कांप उठा और खड्ग नीचे गिर गया। राजा सिंहासन से गिरते हुए गरज उठे, ‘‘अरे ओ मांत्रिक, तुमने क्या कर दिया?’’
प्रताप भय के मारे थरथर कांप ही रहा था कि इतने में उसके कान में आवाज़ हुई, ‘‘ड़रो मत। मुझे मालूम है कि असमर्थ को शक्तियॉं देने पर ऐसे ही अनर्थ होते हैं, इसीलिए मैं अब भी तुम्हारी टोपी पर हावी हूँ। घमंड में चूर राजा ने टोपी को हुक्म देना चाहा, पर उसे ज्ञात नहीं कि टोपी वही बताती है, जो बीतने वाला है। अपनी इस हरक़त से वह शापग्रस्त हो गया। उससे पूछो कि अब भी वह सम्राट की बेटी से विवाह रचाने का हवाई किला बना रहा है या उस हाथ को शक्ति दिलाना चाहता है, जो बेकार हो गया। वह चाहे तो टोपी की महिमा से उसका हाथ यथावत् हो जायेगा।’’ मांत्रिक ने कहा।
प्रताप ने, राजा को मांत्रिक की बतायी बातें कहीं। तब राजा ने कहा, ‘‘मुझे न ही विद्युतलता चाहिये, न ही चंपकलता। मुझे खड्ग पकड सकनेवाला यह हाथ ही चाहिये।’’
देखते-देखते राजा के हाथ में शक्ति आ गयी। नीचे गिरे खड्ग को अपने हाथ में लेते हुए उन्होंने प्रताप से कहा, ‘‘झब्बे की टोपी के ऐ मांत्रिक, तुम्हारे कारण मैंने एक अच्छा सबक सीखा। और उचित-अनुचित का विचार नहीं करता। मैं शक्ति-सामर्थ्य रखनेवाला लोभी नहीं होता। इन गुणों से हीन व्यक्ति ही दिवा-स्वप्न देखने का दुस्साहस करता है।’’ फिर उसने प्रताप को भेंट देकर उसका उचित सम्मान किया।
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