03 नवंबर 2011

जानिए शरीर में छिपे सप्त चक्रों को


मनुष्य शरीर स्थित कुंडलिनी शक्ति में जो चक्र स्थित होते हैं उनकी संख्या कहीं छ: तो कहीं सात बताई गई है।  इन चक्रों  के विषय में अत्यंत महत्वपूर्ण एवं गोपनीय जानकारी यहां दी गई है। यह जानकारी  शास्त्रीय, प्रामाणिक एवं तथ्यात्मक  है-

(1)  मूलाधार चक्र -  गुदा और लिंग के बीच चार पंखुरियों वाला 'आधार चक्र' है । आधार चक्र का ही एक दूसरा नाम मूलाधार चक्र भी है। वहाँ वीरता और आनन्द भाव का निवास है ।

(2)  स्वाधिष्ठान चक्र -  इसके बाद स्वाधिष्ठान चक्र लिंग मूल में है । उसकी छ: पंखुरियाँ हैं । इसके जाग्रत होने पर क्रूरता,गर्व, आलस्य, प्रमाद, अवज्ञा, अविश्वास आदि दुर्गणों का नाश होता है ।

(3)  मणिपूर चक्र -  नाभि में दस दल वाला मणिचूर चक्र है । यह प्रसुप्त पड़ा रहे तो तृष्णा, ईष्र्या, चुगली, लज्जा, भय, घृणा, मोह, आदि कषाय-कल्मष मन में लड़ जमाये पड़े रहते हैं ।

(4)  अनाहत चक्र -  हृदय स्थान में अनाहत चक्र है । यह बारह पंखरियों वाला है । यह सोता रहे तो लिप्सा, कपट, तोड़ -फोड़, कुतर्क, चिन्ता, मोह, दम्भ, अविवेक अहंकार से भरा रहेगा । जागरण होने पर यह सब दुर्गुण हट जायेंगे ।

(5)  विशुद्धख्य चक्र -  कण्ठ में विशुद्धख्य चक्र यह सरस्वती का स्थान है । यह सोलह पंखुरियों वाला है। यहाँ सोलह कलाएँ सोलह विभूतियाँ विद्यमान है

(6)  आज्ञाचक्र -  भू्रमध्य में आज्ञा चक्र है, यहाँ '?' उद्गीय, हूँ, फट, विषद, स्वधा स्वहा, सप्त स्वर आदि का निवास है  । इस आज्ञा चक्र का जागरण होने से यह सभी शक्तियाँ जाग पड़ती हैं ।

(7)  सहस्रार चक्र -  सहस्रार की स्थिति मस्तिष्क के मध्य भाग में है । शरीर संरचना में इस स्थान पर अनेक महत्वपूर्ण ग्रंथियों से सम्बन्ध रैटिकुलर एक्टिवेटिंग सिस्टम का अस्तित्व है । वहाँ से जैवीय विद्युत का स्वयंभू प्रवाह उभरता है ।


कुण्डलिनी जागरण: विधि और विज्ञान

कुंडलिनी जागरण का अर्थ है मनुष्य को प्राप्त महानशक्ति को जाग्रत करना। यह शक्ति सभी मनुष्यों में सुप्त पड़ी रहती है। कुण्डली शक्ति उस ऊर्जा का नाम है जो हर मनुष्य में जन्मजात पायी जाती है। यह शक्ति बिना किसी भेदभाव के हर मनुष्य को प्राप्त है। इसे जगाने के लिए प्रयास या साधना करनी पड़ती है। जिस प्रकार एक नन्हें से बीज में वृक्ष बनने की शक्ति या क्षमता होती है। ठीक इसी प्रकार मनुष्य में महान बनने की, सर्वसमर्थ बनने की एवं शक्तिशाली बनने की क्षमता होती है। कुंडली जागरण के लिए साधक को शारीरिक, मानसिक एवं आत्मिक स्तर पर साधना या प्रयास पुरुषार्थ करना पड़ता है। जप, तप, व्रत-उपवास, पूजा-पाठ, योग आदि के माध्यम से साधक अपनी शारीरिक एवं मानसिक, अशुद्धियों, कमियों और बुराइयों को दूर कर सोई पड़ी शक्तियों को जगाता है। अत: हम कह सकते हैं कि विभिन्न उपायों से अपनी अज्ञात, गुप्त एवं सोई पड़ी शक्तियों का जागरण ही कुंडली जागरण है। योग और अध्यात्म की भाषा में इस कुंडलीनी शक्ति का निवास रीढ़ की हड्डी के समानांतर स्थित छ: चक्रों में माना गया है। कुण्डलिनी की शक्ति के मूल तक पहुंचने के मार्ग में छ: फाटक है अथवा कह सकते हैं कि छ: ताले लगे हुए है। यह फाटक या ताले खोलकर ही कोई जीव उन शक्ति केंद्रों तक पहुंच सकता है। इन छ: अवरोधों को आध्यात्मिक भाषा में षट्-चक्र कहते हैं। ये चक्र क्रमश: इस प्रकार है: मूलधार चक्र, स्वाधिष्ठान चक्र, मणिपुर चक्र, अनाहत चक्र, विशुद्धाख्य चक्र, आज्ञाचक्र। साधक क्रमश: एक-एक चक्र को जाग्रत करते हुए। अंतिम आज्ञाचक्र तक पहुंचता है। मूलाधार चक्र से प्रारंभ होकर आज्ञाचक्र तक की सफलतम यात्रा ही कुण्डलिनी जागरण कहलाता है।

कमाल करते हैं चीनी भी..

 एक समय था कि चीन को केवल बहुसंख्य देश माना जाता था। आज उसने अपना सिक्का आर्थिक ही नहीं, सामाजिक क्षेत्रों में भी जमाया है। चुप रहकर काम करते रहने वाले चीनियों की जीवनशैली और सोच बहुत कुछ कहती है।

सचमुच हद की बात है। दुनिया के सबसे ज्यादा आबादी वाला देश है चीन। वह कमियों और अभावों से जूझता होता तो हैरानी नहीं होती लेकिन वह अर्थव्यवस्था में दुनिया में दूसरे नम्बर पर है, यह देखकर कहना ही होगा कि कमाल करते हैं चीनी भी। चीन से हम भी बहुत कुछ सीख सकते हैं।

सीखें कि हर व्यक्ति की क्षमता उपयोगी है।
चीन में हर परिवार में एक ही बच्चे के जन्म का नियम है। उस बच्चे पर भरपूर ध्यान दिया जाता है। उसकी क्षमताओं और गुणों को निखारने में उनके परिवार और शिक्षा व्यवस्था पूरा ध्यान देती है। उनके स्कूल-कॉलेजों में प्रतिस्पर्धा अपने चरम पर रहती है। ऐसे माहौल से निकले बच्चे दूसरे देशों के बच्चों को आसानी से पीछे छोड़ ही जाएंगे।

अपेक्षाओं को विस्तार देखकर देखें।
चीनियों का मानना है कि पश्चिमी देशों में बच्चों को काफी नरमी से पाला जाता है। इस हद तक कि वे नाज़ुक बन जाते हैं और जब ज़िंदगी की कसौटी इम्तेहान लेती है, तो वे टूटे-टूटे से लगते हैं। यही हाल वहां के कामकाजियों का है। चीनियों का मानना है कि अपनी अपेक्षाओं को निरंतर विस्तार देते रहना चाहिए। इतना भी खुद का ख्याल न रखें कि काम की गुणवत्ता पर असर पड़ने लगे। कामयाबी और विकास को एक निगाह से देखते हैं चीनी।

साथ चलेंगे, तो मंज़िल पाएंगे।

चीनी समाज में आपको व्यक्ति के रूप में उभरे हीरो कम मिलेंगे क्योंकि ये पश्चिमी देशों की तरह एक लीडर के सिद्धांत पर विश्वास नहीं करता। एक के आगे और बाकी के पीछे चलने के सिद्धांत पर विश्वास करने से प्रतियोगिता और महत्वाकांक्षा तो बढ़ती है, लेकिन इससे प्रयोगधर्मिता में कमी आती है तथा लीडर व अन्य में अंतर बहुत बढ़ जाता है, ऐसा चीनी मानते हैं।


कामयाबी सतत काम से मिलती है।
चीनी हार मानने वाले लोग नहीं होते। उनका मानना है कि लगातार किसी न किसी काम को करते रहने से मंज़िल ज़रूर हासिल होती है। खुशी भी इसी का नाम है। उनके एक दार्शनिक चुआंग ज़ू का कहना है, ‘अगर आप खुश हैं, तो मान लीजिए कि खुशी की तलाश का आनंद आप खो चुके हैं।’ कहने का मतलब है कि कामयाबी का प्रयास और खुशी की तलाश इनके लिए एक ही सिक्के के दो पहलू हैं।

31 अक्तूबर 2011

शमशान से आकर नहाना आवश्यक क्यों ?

शवयात्रा में जाना और मृत शरीर को कंधा देना लगभग सभी धर्मों में बड़े ही पुण्य का कार्य माना गया है। धर्म शास्त्रों का कहना है कि शवयात्रा में शामिल होने और अंतिम संस्कार के मौके पर उपस्थित रहने से, इंसान को वैराग्य रूपी सर्वश्रेष्ठ ज्ञान और परम फल की प्राप्ति होती है। इस मौके पर उपस्थित रहना यानि काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद और अंहकार जैसे मनोविकारों से कुछ समय के लिये छुटकारा पा लेना है।

पर जब शमशान जाने के इतने सारे सांसारिक और आध्यात्कि लाभ हैं, तो वहां से आकर तुरंत नहाने की जरूरत क्या है? नहाया तो जब जाता है जब हम अशुद्ध हो जाते हैं। फिर पुण्य का कार्य करके तुरंत नहाने की क्या आवश्यकता है? सतही दृष्टि से सोचने पर यहां विरोधाभास नजर आता है, किन्तु समाधान पाने के लिये गहराई में उतरने की आवश्यकता है। शव का अंतिम संस्कार होने से पूर्व ही वह वातावरण में उपस्थित सूक्ष्म एवं संक्रामक कीटाणुओं से ग्रसित हो जाता है। इसके अतिरिक्त स्वयं मृत व्यक्ति भी किसी संक्रामक रोग से ग्रसित हो सकता है। अत: वहां पर उपस्थित इंसानों पर किसी संक्रामक रोग का असर होने की संभावना रहती है। जबकि पानी से नहा लेने से संक्रामक कीटाणु आदि पानी के साथ ही बह जाते हैं।

इसके साथ ही एक अन्य कारण भी तंत्र-शास्त्रों में बताया जाता है। शमशान भूमि पर लगातार ऐसा ही कार्य होते रहने से एक प्रकार की नकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह बन जाता है जो कमजोर मनोबल के इंसान को हानि पहुंचा सकता है। क्योंकि स्त्रियां अपेक्षाकृत पुरुषों के, कमजोर ह्रदय की होती हैं, इसलिये उन्हैं शमशान भूमि जाने से रोका जाता है। दाह संस्कार के पश्चात भी मृतआत्मा का सूक्ष्म शरीर कुछ समय तक वहां उपस्थित होता है, जो अपनी प्रकृति के अनुसार कोई हानिकारक प्रभाव भी डाल सकता है।

रात में क्यों नहीं जाते हैं श्मशान?
श्मशान का नाम सुनते ही हर इंसान के मन में एक अजीब सा डर पैदा हो जाता है। आपने जब भी कभी रात के समय श्मशान में जाने की नहीं सिर्फ पास से गुजरने की बात भी यदि अपने घर के किसी बुजुर्ग के सामने कही होगी, तो उन्हें यही कहते सुना होगा कि रात के समय श्मशान नहीं जाते हैं।

ऐसी बात सुनकर सामान्यत: सभी के दिमाग में यही सवाल उठता है कि रात के समय
शमशान क्यों नहीं जाए? आखिर इसके पीछे क्या कारण है? कुछ लोग इसे सिर्फ अंधविश्वास मानते हैं लेकिन ये अंधविश्वास नहीं है। दरअसल रात के समय निशाचरी या नकारात्मक शक्तियां का अधिक प्रभाव रहता है। रात के समय नकारात्मक शक्तियां किसी भी कमजोर व्यक्ति को तुरंत अपने प्रभाव में ले लेती है।

यदि कोई व्यक्ति भावनात्मक रूप से कमजोर है, नेगेटीव थिंकिंग से घिरा हुआ है तो ये संभावना बढ़ जाती है कि उस व्यक्ति को नकारात्मक शक्तियां घेर ले। जब व्यक्ति इन नकारात्मक शक्तियों के प्रभाव में आ जाता है तो उसे कई तरह की परेशानियों घेर लेती हैं। इसीलिए रात के समय शमशान में जाना हमारे लिए वर्जित किया गया है। विज्ञान भी मानता है कि सकारात्मक और नकारात्मक शक्तियों का प्रभाव हम पर होता है। कमजोर सोच के व्यक्तियों को नकारात्मक शक्ति तुरंत प्रभावित कर लेती है।

सिर पर चोटी यानि कमाल का एंटिना

क सुप्रीप साइंस जो इंसान के लिये सुविधाएं जुटाने का ही नहीं, बल्कि उसे शक्तिमान बनाने का कार्य करता है। ऐसा परम विज्ञान जो व्यक्ति को प्रकृति के ऊपर नियंत्रण करना सिखाता है। ऐसा विज्ञान जो प्रकृति को अपने अधीन बनाकर मनचाहा प्रयोग ले सकता है। इस अद्भुत विज्ञान की प्रयोगशाला भी बड़ी विलक्षण होती है। एक से बढ़कर एक आधुनिकतम मशीनों से सम्पंन प्रयोगशालाएं दुनिया में बहुतेरी हैं, किन्तु ऐसी सायद ही कोई हो जिसमें कोई यंत्र ही नहीं यहां तक कि खुद प्रयोगशाला भी आंखों से नजर नहीं आती। इसके अदृश्य होने का कारण है- इसका निराकार स्वरूप। असल में यह प्रयोगशाला इंसान के मन-मस्तिष्क में अंदर होती है।

सुप्रीम सांइस- विश्व की प्राचीनतम संस्कृति जो कि वैदिक संस्कृति के नाम से विश्य विख्यात है। अध्यात्म के परम विज्ञान पर टिकी यह विश्व की दुर्लभ संस्कृति है। इसी की एक महत्वपूर्ण मान्यता के तहत परम्परा है कि प्रत्येक स्त्री तथा पुरुष को अपने सिर पर चोंटी यानि कि बालों का समूह अनिवार्य रूप से रखना चाहिये।

सिर पर चोंटी रखने की परंपरा को इतना अधिक महत्वपूर्ण माना गया है कि , इस कार्य को हिन्दुत्व की पहचान तक माना लिया गया। योग और अध्यात्म को सुप्रीम सांइस मानकर जब आधुनिक प्रयोगशालाओं में रिसर्च किया गया तो, चोंटी के विषय में बड़े ही महत्वपूर्ण ओर रौचक वैज्ञानिक तथ्य सामने आए।

चमत्कारी रिसीवर- असल में जिस स्थान पर शिखा यानि कि चोंटी रखने की परंपरा है, वहा पर सिर के बीचों-बीच सुषुम्ना नाड़ी का स्थान होता है। तथा शरीर विज्ञान यह सिद्ध कर चुका है कि सुषुम्रा नाड़ी इंसान के हर तरह के विकास में बड़ी ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। चोटी सुषुम्रा नाड़ी को हानिकारक प्रभावों से तो बचाती ही है, साथ में ब्रह्माण्ड से आने वाले सकारात्मक तथा आध्यात्मिक विचारों को केच यानि कि ग्रहण भी करती है

क्यों रखी जाती है सिर पर शिखा?
सिर पर शिखा ब्राह्मणों की पहचान मानी जाती है। लेकिन यह केवल कोई पहचान मात्र नहीं है। जिस जगह शिखा (चोटी) रखी जाती है, यह शरीर के अंगों, बुद्धि और मन को नियंत्रित करने का स्थान भी है। शिखा एक धार्मिक प्रतीक तो है ही साथ ही मस्तिष्क के संतुलन का भी बहुत बड़ा कारक है। आधुनिक युवा इसे रुढ़ीवाद मानते हैं लेकिन असल में यह पूर्णत: वैज्ञानिक है। दरअसल, शिखा के कई रूप हैं।

आधुनकि दौर में अब लोग सिर पर प्रतीकात्मक रूप से छोटी सी चोटी रख लेते हैं लेकिन इसका वास्तविक रूप यह नहीं है। वास्तव में शिखा का आकार गाय के पैर के खुर के बराबर होना चाहिए। इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि हमारे सिर में बीचोंबीच सहस्राह चक्र होता है। शरीर में पांच चक्र होते हैं, मूलाधार चक्र जो रीढ़ के नीचले हिस्से में होता है और आखिरी है सहस्राह चक्र जो सिर पर होता है। इसका आकार गाय के खुर के बराबर ही माना गया है। शिखा रखने से इस सहस्राह चक्र का जागृत करने और शरीर, बुद्धि व मन पर नियंत्रण करने में सहायता मिलती है।

शिखा का हल्का दबाव होने से रक्त प्रवाह भी तेज रहता है और मस्तिष्क को इसका लाभ मिलता है।

व्रत उपवास क्यों करें?


व्रत का अर्थ है संकल्प या दृढ़ निश्चय तथा उपवास का अर्थ ईश्वर या इष्टदेव के समीप बैठना भारतीय संस्कृति में व्रत तथा उपवास का इतना अधिक महत्व है कि हर दिन कोई न कोई उपवास या व्रत होता ही है। सभी धर्मों में व्रत उपवास की आवश्यकता बताई गई है। इसलिए हर व्यक्ति अपने धर्म परंपरा के अनुसार उपवास या व्रत करता ही है। वास्तव में व्रत उपवास का संबंध हमारे शारीरिक एवं मानसिक शुद्धिकरण से है। इससे हमारा शरीर स्वस्थ रहता है। 1. नित्य 2. नैमित्तिक 3. काम्य व्रत
1. नित्य: जो व्रत भगवन को प्रसन्न करने के लिए निरंतर किया जाता है।
2. नैमित्तिक: यह व्रत किसी निमित्त से किया जाता है।
3. काम्य: किसी कामना से किया व्रत काम्य व्रत है।

स्वास्थ्य: व्रत उपवास से शरीर स्वस्थ रहता है। निराहार रहने, एक समय भोजन लेने अथवा केवल फलाहार से वाचनतंत्र को आराम मिलता है। इससे कब्ज, गैस, एसिडीटी अजीर्ण, अरूचि, सिरदर्द, बुखार, आदि रोगों का नाश होता है। आध्यत्मिक शक्ति बढ़ती है। ज्ञान, विचार, पवित्रता बुद्धि का विकास होता है। इसी कारण उपवास व्रत को पूजा पद्धति को शामिल किया गया है।
कौन न करें: सन्यासी, बालक, रोगी, गर्भवती स्त्री, वृद्धों को उपवास करने पर छूट प्राप्त है।
क्या नियम है व्रत का: जिस दिन उपवास या व्रत हो उस दिन इन नियमों का पालन करना चाहिए: किसी प्रकार की हिंसा न करें। दिन में न सोएं। बार-बार पानी न पिएं। झूठ न बोलें। किसी की बुराई न करें। व्यसन न करें। भ्रष्टाचार न करने का संकल्प लें। व्यभिचार न करें।सिनेमा, जुआं, टीवी आदि न देखें।

उपवास करने से पूर्व यह भ्रम मन से निकाल दें कि इससे आप कमजोरी महसूस करेंगे। उपवास के दौरान मन प्रसंचित तथा शरीर में स्फूर्ति आती है
उपवास के समय मुंह से दुर्गन्ध सी आती महसूस होती है और जीभ का रंग सफ़ेद पड़ जाता है।यह इस बात का लक्ष्ण है कि शरीर में सफाई काम शुरू हो गया है।
शारीरिक स्वस्थ्य व मानसिक स्वस्थ्य के लिए यह अत्यंत आवश्यक है। शरीर के अन्दुरुनी भाग के सफाई के लिए उपवास एक सरल प्राकृतिक क्रिया है। इससे शरीर को आराम भी मिलता है। कुछ ऐसे भी रोग है जिनमे उपवास नहीं करनी चाहिए, जैसे- क्षय रोग, ह्रदय रोग आदि, इसी प्रकार स्त्रियों को भी गर्भावस्था में उपवास नहीं करना चाहिए। इसके अतिरिक्त कुछ रोगों में सिर्फ उपवास करना ही पर्याप्त नहीं होता , बल्कि अन्य उपायों कि भी जरुरत है, जैसे औषधि आदि इसलिए चिकिस्क कि सलाह ले लेनी चाहिए।
वैसे भी समय-समय पर एक-दो दिन का उपवास से साधारण रोगों के साथ-साथ अनेक असाध्य रोगों , जैसे मधुमेह, बबासीर आदि में अधिक लाभ मिलता है , इसके अतिरिक्त पाचन तंत्र के रोग, जैसे कब्ज़, अपच आदि में तो उपवास एक तरह से चमत्कारी प्रभाव दिखता है।
उपवास आरम्भ करने के चौबीस घंटे पहले गरिष्ठ खाद्य पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए। फलाहार करना ही उचित है। उपवास करते समय बहुत साबधानी बरतनी चाहिए। पेट के विभिन्न अंग उपवास कल में क्रियाशील नहीं रहते, इसलिए उपवास समाप्त करने के तुरंत बाद ही ठोस खाद्य पदार्थों का सेवन न करें। फलों का रस लेना ही ठीक रहता है
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व्रत में ऐसा हो आहार 
व्रत शरीर और मन की शुद्धि का अशक्त माध्यम है। यही नहीं, व्रत शरीर की शुद्धी के साथ-साथ रोगों के निवारण में भी सहायक है। आहार विशेषज्ञों के अनुसार सप्ताह में एक बार व्रत रखने के अनेक लाभ हैं, परन्तु व्रत के दौरान खाघ पदार्थों का उचित चयन व उपयोग नहीं हो पाता। इस सन्दर्भ में कुछ जानकारियाँ इस प्रकार हैं-
1. व्रत के दिन पानी अधिक मात्रा में लें।
2. इस दौरान अधिक परिक्श्रम का कार्य नहीं करना चाहिए।
3. व्रत के दिन दोपहरपर्याप्त मात्रा में खाघ पदार्थ लें और रात में कम खाएं।
4. पर्याप्त मात्रा में विश्राम करे और पानी में थोड़ी-थोड़ी मात्रा में शहद व नीबूं मिलाकर पीते रहें।
5. उपवास के दौरान सभी गैरजरूरी पदार्थ कोलेस्ट्रांल के रूप में शरीर से बाहर निकलते हैं। वहीं कोलेस्ट्रांल को नियंत्रित करने के लिए अतिरिक्त पानी की आवश्यकता होती है।
6. व्रत के दौरान तले हुए खाघ पदार्थ कम लेने चाहिए।
7. इस मौसम में ऐसे फल लें, जिनमें पानी की पर्याप्त मात्रा उपस्थित हो।
8. फलों का ज्यूस शरीर को पर्याप्त ऊर्जा देता है। फलों के जूस में चुकंदर गाजर, सेब, अनार, संतरा आदि को शुमार कर सकते हैं।
स्वस्थ लोगों के अलावा डायबिटीज व हाइपरटेंशन के मरीज भी निम्न आहार तालिका पर अमल कर सकतें हैं।
आहार तालिका
समय                             भोज्य पदार्थ
सुबह           7-8              1 गिलास पानी-शहद 1 चम्मच-नीबूं (1/2 ) रस 
                 9-10            1 कप चाय/दूध+मखाने (50 ग्रा.) भुने हुए (बिना तेल के)
मध्याह्न       12-1             फलों की चाट/सलाद+दही 1 कटोरी(150 ग्रा.), (1 सेब, 1/2 चुकंदर, 1 गाजर, 1/2 अनार, 1 खीरा, 1 ककडी, 1 संतरा)
                 4.00             चाय या दूध एक कप +मखाने भुने हुए. 
शाम           7-8              1 गिलास फलों का रस 
                 9.00            200 ग्रा. पपीता/ 1 आलू/ 1 कटोरी लौकी
                 9.30            1/2 गिलास दूध/ सिंघाड़े के आटे का पराठा+दही