07 अगस्त 2010

टोने-टोटके - कुछ उपाय - 5 ( Tonae - Totke - Some Tips - 5 )

छोटे-छोटे उपाय हर घर में लोग जानते हैं, पर उनकी विधिवत् जानकारी के अभाव में वे उनके लाभ से वंचित रह जाते हैं। इस लोकप्रिय स्तंभ में उपयोगी टोटकों की विधिवत् जानकारी दी जा रही है।

कुछ उपयोगी टोटके

स्वस्थ शरीर के लिए :
  • एक रुपये का सिक्का लें। रात को उसे सिरहाने रख कर सो जाएं। प्रातः इसे ष्मशान की सीमा में फेंक आएं। शरीर स्वस्थ रहेगा।
ससुराल में सुखी रहने के लिए :
  • साबुत हल्दी की गांठें, पीतल का एक टुकड़ा, थोड़ा सा गुड़ अगर कन्या अपने हाथ से ससुराल की तरफ फेंक दे, तो वह ससुराल में सुरक्षापूर्वक और सुखी रहती है।

सुखी वैवाहिक जीवन के लिए :
  • कन्या का जब विवाह हो चुका हो और वह विदा हो रही हो, तो एक लोटे (गड़वी) में गंगा जल, थोड़ी सी हल्दी, एक पीला सिक्का डाल कर, लड़की के सिर के उपर से ७ बार वार कर उसके आगे फेंक दें। वैवाहिक जीवन सुखी रहेगा।

परेषानियां दूर करने व कार्य सिद्धि हेतु :
  • शनिवार को प्रातः, अपने काम पर जाने से पहले, एक नींबू लें। उसके दो टुकड़े करें। एक टुकड़े को आगे की तरफ फेंके, दूसरे को पीछे की तरफ। इन्हें चौराहे पर फेंकना है। मुख भी दक्षिण की ओर हो। नींबू को फेंक कर घर वापिस आ जाएं, या काम पर चले जाएं। दिन भर काम बनते रहेंगे तथा परेषानियां भी दूर होंगी।

काम या यात्रा पर जाते हुए :
  • कभी भी किसी काम के लिए, या यात्रा पर जाते समय, एक नारियल लें। उसको हाथ में ले कर, ११ बार श्री हनुमते नमः कह कर, धरती पर मार कर तोड़ दें। उसके जल को अपने ऊपर छिड़क लें और गरी को निकाल कर बांट दें तथा खुद भी खाएं, तो यात्रा सफल रहेगी तथा काम भी बन जाएगा।
  • काम के लिए : अगर आपको किसी विशेष काम से जाना है, तो नीले रंग का धागा ले कर घर से निकलें। घर से जो तीसरा खंभा पड़े, उस पर, अपना काम कह कर, नीले रंग का धागा बांध दें। काम होने की संभावनाएं बढ़ जाएंगी।

काम के लिए
  • हल्दी की ७ साबुत गांठें, ७ गुड़ की डलियां, एक रुपये का सिक्का किसी पीले कपड़े में बांध कर, रेलवे लाइन के पार फेंक दें। फेंकते समय कहें काम दे, तो काम होने की संभावनाएं बढ़ जाएंगी।

धन के लिए :
  • एक हंडियां में सवा किलो हरी साबुत मूंग दाल या मूंगी, दूसरी में सवा किलो डलिया वाला नमक भर दें। यह दो हंडियां घर में कहीं रख दें। यह क्रिया बुधवार को करें। घर में धन आना शुरू हो जाएगा।

मिर्गी के रोग को दूर करने के लिए :
  • अगर गधे के दाहिने पैर का नाखून अंगूठी में धारण करें, तो मिर्गी की बीमारी दूर हो जाती है।

भूत-प्रेत और जादू-टोना से बचने के लिए :
  • मोर पंख को अगर ताबीज में भर के बच्चे के गले में डाल दें, तो उसे भूत-प्रेत और जादू-टोने की पीड़ा नहीं रहती।

06 अगस्त 2010

मादक खुशबू बिखेरता कदंब ( Kadamb spreads Intoxicating fragrance )

दंब का वृक्ष अपने अनुपम नैर्सर्गिक सौंदर्य से सब को लुभाता है। यह बरसात के मौसम की सौन्दर्य का पताका है। इस का वानस्पतिक नाम 'नियोल्मार्किया कदंब' है। इसे संस्कृत में कादम्बः और कुत्सिताडगः कहते हैं। यह वृक्ष भारत के उष्ण इलाकों में पाया जाता है। वृन्दावन व गोकुल में कदंब बहुतायत में पाया जाता है। यह नेपाल, मयंमार व श्रीलंका में भी पाया जाता है।

व्रजभूमि में बहुधा पाए जाने वाले कदंब को 'मित्रागायना पार्वीफोलिया' कहते हैं, जो आज लुप्त होने की कगार पर है। इस का संरक्षण जरूरी है।

कदंब की ऊंचाई 20 से 25 फुट तक होती है। इस के पत्ते महुए की तरह गहरे हरे रंग के चमकदार होते हैं। शाखाएं लंबीलंबी होती हैं।

कदंब के बीजों को पीस कर तेल निकला जाता है। पीले कदंब की लकड़ी के खिलौने भी बनाए जाते हैं। कदंब की लकड़ी पानी में जल्दी नहीं गलती है।

सुगन्धित फूलों से फूलतेझूलते कदंब के वृक्ष अति लुभावने दिखाईए देते हैं। इस के फूलों की भीनीभीनी महक से आसपास का वातावरण सराबोर हो उठता है। बरसात में कदंब पर केसरिया रंग के गेंद के आकार के गोलगोल फूल आते हैं। कदंब के फूल शाखाओं पर बड़ी संख्या में लदे होते हैं।

पत्तियाँ शाख पर जहाँ जुडी होती हैं वहीं से एक शाखा निकलती है, उसी पर फूल निकलता है। कदंब का फूल कलियों का एक समूह गोल आकृति लिये हुए होता है, जो शुरू में हरे रंग का, बाद में सफ़ेद और पीला हो जाता है। तभी इस में से मादक खुशबू निकलती है।

इस का संवर्धन बीजों और कलम लगा कर होता है। बागबगीचों तथा घर के लॉन में लगाने के लिये यह उपयुक्त वृक्ष है।

05 अगस्त 2010

नैना लाल किदवई ( Naina Lal Kidvai )


में ट्रेड और बिजनेस में पदमश्री अवार्ड से नवाजी जाने वाली नैना लाल किदवई की शख्शियत अनूठी है। वे स्वभाव से नम्र और धीरज की प्रतिमूर्ति हैं। वे एचएसवीसी इंडिया की चेअरपर्सन हैं। स्कूल की शिक्षा उन्होंने शिमला से पूरी की। दिल्ली यूनिवर्सिटी से अर्थशास्त्र में स्नातक की उपाधि प्राप्त कर एम.बी.ए. करने लन्दन के हार्वर्ड बिजनेस स्कूल गईं। इस क्षेत्र में वे भारत की पहली महिला थीं।

1982 में उन्होंने स्टैण्डर्ड चार्टर्ड बैंक में काम शुरू किया। इस के बाद उन्होंने 'मोर्गन स्टेनले' में काम किया। फिर एचएसबीसी से जुडीं। इनवैस्टमेंट बैंक को उन्होंने ऊपर उठाया, इस की वजह से भारत की अर्थव्यवस्था में काफी सुधार आया।

कामयाबी का फंडा
2006 में वाल स्ट्रीट जर्नल में उन का नाम छपा। 50 बिजनेस विमन में वे विश्व में 34वें  नंबर पर हैं। 'फोर्च्यून' पत्रिका ने उन्हें एशिया की तीसरी बिजनेस विमन का खिताब दिया। विदेशी बैंकों के द्वारा भारत में निवेश कराने वाली वे पहली महिला हैं। उन्होंने ओवरसीज के 22 शहरों में एचएसबीसी की 43 शाखाएं खोली हैं।

नैना लाल का कहना है, "मुझे अपनेआप पर हमेशा विश्वास रहा है। फलस्वरूप मैं अपने उद्देश्य में हमेशा कामयाब रही हूँ। आप को अपने सपने के साथ उद्देश्य को जोड़ देना चाहिए। परिणाम के बारे में घबराना नहीं चाहिए। यही वजह है की मैं अपने क्षेत्र में कामयाब रही।"

संगीत से लगाव
वे 2 बच्चों की माँ हैं और संयुक्त परिवार में रहती हैं। उन्हें वेस्टर्न और भारतीय शास्त्रीय संगीत अच्छे लगते हैं। हिमालय की ट्रेकिंग उन्हें पसंद है और उन्हें जगली जीवों से बेहद प्यार है।
खुश रहने के लिये नैना किदवई अपने अंदर की शक्ति को समझती हैं, जो उन्हें हमेशा तरोताजा रखती है।

अपने एक अनुभव के बारे में वे कहती हैं की पहले बैंकों में महिलाएं कम थीं, अब उन की संख्या काफी बढी है, जिस से काम भी बेहतर होने लगे हैं।

मुंबई ब्लास्ट का जिक्र करते हुए वे कहती हैं, "मेरी महिलाकर्मी बम ब्लास्ट के दूसरे दिन भी काम पर आई। काम हमेशा वफादारी से होना चाहिए। मुझे अच्छा लगता है जब व्यक्ति को अपने काम की जिम्मेदारी समझ में आती हो।"

04 अगस्त 2010

चित्रा मुदगल ( Chitra mudgal )


दिसंबर, 1994 को चेन्नई स्थित 'एनामोर' में जन्मीं चित्रा मुदगल का बचपन उन के पैतृक गाँव निहाली खेडा में बीता, जो उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले में पड़ता है। प्रारंभिक शिक्षा निहाली खेडा के निकट भरतीपुर की 'कन्या पाठशाला' से हुई। कालेज की पढाई मुंबई विश्वविध्यालय से की तो चित्रकला में रुचि होने के कारण जे.जे. स्कूल ऑफ आर्ट्स से फाइन आर्ट में डिप्लोमा करने का प्रयास किया, लेकिन इस को पूरा नहीं कर पाएं। सुधा डोरा स्वामी से भरतनाट्यम का प्रशिक्षण भी उन्होंने लिया।

महज 20 साल की उम्र में चित्रा ने अवध नारायण मुदगल से अंतरजातीय प्रेमविवाह किया। उस समय वे एक तरफ लेखिका बनने के लिये कलम चला रही थीं तो दूसरी तरफ समाजसुधार के लिये कुदाल। पानी वाली बाई के नाम से मशहूर समाजसेविका मृणाल  गोरे के साथ भी चित्रा मुदगल ने काम किया है।

मानद
एन. सी. ई. आर. टी. की विमन स्टडीज यूनिट की कुछ महत्वपूर्ण पुस्तक योजनाओं जैसे 'दहेज़ दावानल', 'बेगम हजरत महल' और 'स्त्री समता' आदि में 1986 से 1990 तक बतौर निदेशिका कार्य किया। वे फिल्म सेंसर बोर्ड की मानद सदस्य भी रहीं। 1980 में 'आशीर्वाद फिल्म अवार्ड' में बतौर जूरी सदस्य चुनी गईं। 2002 के 49वें राष्ट्रे फिल्म पुरस्कार की जूरी सदस्य चुनी गईं और इन्डियन पैनोरमा 2002 की भी सदस्य रहीं। 2003 से 2008 तक प्रसार भारती ब्राडकास्टिंग ऑफ इंडिया के बोर्ड में भी रहीं।

कलात्मक अभिव्यक्ति
चित्रा मुदगल अपने लेखन में कलात्मक अभिव्यक्ति को ले कर जानी जाती है। स्त्रीलेखन, स्त्री द्वारा लिखी गई कहानियां सिर्फ स्त्री जीवन को ले कर उठाए गए विषय नहीं है, बल्कि पूरा एक युग, एक बदलता हुआ परीदृश्य, परिवेश, जीवन, विचार, मूल्य उन्हें जोड़ते हैं।

वे अपने को 'करियार्वादी' नारी विमर्श के खानों में नहीं पातीं और कहती हैं की साहित्य में कोई भी शौर्टकट स्थायी नहीं होता।

03 अगस्त 2010

महाभारत - भीष्म प्रतिज्ञा

एक बार हस्तिनापुर के महाराज प्रतीप गंगा के किनारे तपस्या कर रहे थे। उनके रूप-सौन्दर्य से मोहित हो कर देवी गंगा उनकी दाहिनी जाँघ पर आकर बैठ गईं। महाराज यह देख कर आश्चर्य में पड़ गये तब गंगा ने कहा, "हे राजन्! मैं जह्नु ऋषि की पुत्री गंगा हूँ* और आपसे विवाह करने की अभिलाषा ले कर आपके पास आई हूँ।" इस पर महाराज प्रतीप बोले, "गंगे! तुम मेरी दहिनी जाँघ पर बैठी हो। पत्नी को तो वामांगी होना चाहिये, दाहिनी जाँघ तो पुत्र का प्रतीक है अतः मैं तुम्हें अपने पुत्रवधू के रूप में स्वीकार करता हूँ।" यह सुन कर गंगा वहाँ से चली गईं।
अब महाराज प्रतीप ने पुत्र प्राप्ति के लिये घोर तप करना आरम्भ कर दिया। उनके तप के फलस्वरूप उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई जिसका नाम उन्होंने शान्तनु रखा। शान्तनु के युवा होने पर उसे गंगा के साथ विवाह करने का आदेश दे महाराज प्रतीप स्वर्ग चले गये। पिता के आदेश का पालन करने के लिये शान्तनु ने गंगा के पास जाकर उनसे विवाह करने के लिये निवेदन किया। गंगा बोलीं, "राजन्! मैं आपके साथ विवाह तो कर सकती हूँ किन्तु आपको वचन देना होगा कि आप मेरे किसी भी कार्य में हस्तक्षेप नहीं करेंगे।" शान्तनु ने गंगा के कहे अनुसार वचन दे कर उनसे विवाह कर लिया। गंगा के गर्भ से महाराज शान्तनु के आठ पुत्र हुये जिनमें से सात को गंगा ने गंगा नदी में ले जा कर बहा दिया और अपने दिये हुये वचन में बँधे होने के कारण महाराज शान्तनु कुछ बोल न सके। जब गंगा का आठवाँ पुत्र हुआ और वह उसे भी नदी में बहाने के लिये ले जाने लगी तो राजा शान्तनु से रहा न गया और वे बोले, "गंगे! तुमने मेरे सात पुत्रों को नदी में बहा दिया किन्तु अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार मैंने कुछ न कहा। अब तुम मेरे इस आठवें पुत्र को भी बहाने जा रही हो। मैं तुमसे प्रार्थना करता हूँ कि कृपा करके इसे नदी में मत बहाओ।" यह सुन कर गंगा ने कहा, "राजन्! आपने अपनी प्रतिज्ञा भंग कर दी है इसलिये अब मैं आपके पास नहीं रह सकती।" इतना कह कर गंगा अपने पुत्र के साथ अन्तर्ध्यान हो गईं। तत्पश्चात् महाराज शान्तनु ने छत्तीस वर्ष ब्रह्मचर्य व्रत धारण कर के व्यतीत कर दिये। फिर एक दिन उन्होंने गंगा के किनारे जा कर गंगा से कहा, "गंगे! आज मेरी इच्छा उस बालक को देखने की हो रही है जिसे तुम अपने साथ ले गई थीं।" गंगा एक सुन्दर स्त्री के रूप में उस बालक के साथ प्रकट हो गईं और बोलीं, "राजन्! यह आपका पुत्र है तथा इसका नाम देवव्रत है, इसे ग्रहण करो। यह पराक्रमी होने के साथ विद्वान भी होगा। अस्त्र विद्या में यह परशुराम के समान होगा।" महाराज शान्तनु अपने पुत्र देवव्रत को पाकर अत्यन्त प्रसन्न हुये और उसे अपने साथ हस्तिनापुर लाकर युवराज घोषित कर दिया।

एक दिन महाराज शान्तनु यमुना के तट पर घूम रहे थे कि उन्हें नदी में नाव चलाते हुये एक सुन्दर कन्या दृष्टिगत हुई। उसके अंग अंग से सुगन्ध निकल रही थी। महाराज ने उस कन्या से पूछा, "हे देवि! तुम कौन हो?" कन्या ने बताया, "महाराज! मेरा नाम सत्यवती है और मैं निषाद कन्या हूँ।" महाराज उसके रूप यौवन पर रीझ कर तत्काल उसके पिता के पास पहुँचे और सत्यवती के साथ अपने विवाह का प्रस्ताव किया। इस पर धींवर (निषाद) बोला, "राजन्! मुझे अपनी कन्या का आपके साथ विवाह करने में कोई आपत्ति नहीं है परन्तु आपको मेरी कन्या के गर्भ से उत्पन्न पुत्र को ही अपने राज्य का उत्तराधिकारी बनाना होगा।।" निषाद के इन वचनों को सुन कर महाराज शान्तनु चुपचाप हस्तिनापुर लौट आये।

सत्यवती के वियोग में महाराज शान्तनु व्याकुल रहने लगे। उनका शरीर दुर्बल होने लगा। महाराज की इस दशा को देख कर देवव्रत को बड़ी चिंता हुई। जब उन्हें मन्त्रियों के द्वारा पिता की इस प्रकार की दशा होने का कारण ज्ञात हुआ तो वे तत्काल समस्त मन्त्रियों के साथ निषाद के घर जा पहुँचे और उन्होंने निषाद से कहा, "हे निषाद! आप सहर्ष अपनी पुत्री सत्यवती का विवाह मेरे पिता शान्तनु के साथ कर दें। मैं आपको वचन देता हूँ कि आपकी पुत्री के गर्भ से जो बालक जन्म लेगा वही राज्य का उत्तराधिकारी होगा। कालान्तर में मेरी कोई सन्तान आपकी पुत्री के सन्तान का अधिकार छीन न पाये इस कारण से मैं प्रतिज्ञा करता हूँ कि मैं आजन्म अविवाहित रहूँगा।" उनकी इस प्रतिज्ञा को सुन कर निषाद ने हाथ जोड़ कर कहा, "हे देवव्रत! आपकी यह प्रतिज्ञा अभूतपूर्व है।" इतना कह कर निषाद ने तत्काल अपनी पुत्री सत्यवती को देवव्रत तथा उनके मन्त्रियों के साथ हस्तिनापुर भेज दिया।

देवव्रत ने अपनी माता सत्यवती को लाकर अपने पिता शान्तनु को सौंप दिया। पिता ने प्रसन्न होकर पुत्र से कहा, "वत्स! तूने पितृभक्ति के वशीभूत होकर ऐसी प्रतिज्ञा की है जैसी कि न आज तक किसी ने किया है और न भविष्य में करेगा। मैं तुझे वरदान देता हूँ कि तेरी मृत्यु तेरी इच्छा से ही होगी। तेरी इस प्रकार की प्रतिज्ञा करने के कारण तू भीष्म कहलायेगा और तेरी प्रतिज्ञा भीष्म प्रतिज्ञा के नाम से सदैव प्रख्यात रहेगी।"

गंगा ने स्वयं का परिचय जह्नु ऋषि की पुत्री के रूप में दिया जबकि वे हिमालय-पुत्री थीं। मैं अच्छी प्रकार से जानता हूँ कि विज्ञ पाठक अवश्य यह समझते होंगे कि गंगा ने ऐसा क्यों कहा। किन्तु यह भी हो सकता है कि कुछ विज्ञ पाठको को ज्ञात न हो कि गंगा जह्नु ऋषि की पुत्री कैसे हुईं। अपनी इस जिज्ञासा को शान्त करने के लिये वे गंगा जन्म की कथा का अवलोकन कर सकते हैं।

02 अगस्त 2010

पानी में बागवानी ( Gardening in Water )

वाटर गार्डनिंग यानी कि पानी में बागबानी का अपना अलग ही महत्त्व है। आप भी अपने घर में वाटर गार्डनिंग कर के ठंडक एवं ताजगी से भरा खूबसूरत माहौल बना सकते हैं।



ह गार्डनिंग की एक प्राचीन और बुद्ध के समय की एक प्रचलित कला है। उन दिनों मंदिरों के आसपास कमल के तालाबों का इतिहास में उल्लेख किया गया है। वाटर गार्डन में गर्मी के मौसम का अपना एक अनोखा महत्त्व होता है। आसपास ठंडक एवं ताजापन का एहसास कराने वाले खुशनुमा माहौल को महसूस किया जा सकता है। झाडियों और फ़ूलों की परछाई पानी में देख कर देखने वाले का मन मोहित हो जाता है। रात में पानी के अंदर चंद्रमा का प्रतिबिंब बागवानी के सौंदर्यीकरण में चार चांद लगा देते हैं। आकाश के बादलों की परछाई भी पानी में खूबसूरत तसवीर बनाती है। बागवानी प्रेमी बगीचे में इस का आनंद ले सकते हैं।

स्थान का चुनाव : वाटर गार्डन के लिए निम्न बिंदुओं पर विचार कर लेना जरूरी होता है:
1.   तालाब में दिन के समय पूर्ण धूप आनी चाहिए,
2.   पानी की नियमित सप्लाई की व्यवस्था सुनिश्चित हो।
3.   छायादार वृक्षों के निकट तालाब न हो।

वाटर गार्डन के लिए तालाब का निर्माण :  तालाब का आकार और प्रकार बाग के आकार के मुताबिक रखा जाता है। आमतौर पर फ़ारमल और इनफ़ारमल 2 तरह के तालाब हो सकते हैं। फ़ारमल वाटर गार्डन कंकरीट एवं सीमेंट से पक्का बनाया जाता है, जबकि इनफ़ारमल गार्डन का आकार वर्गाकार, आयताकार या अंडाकार किसी भी तरह का हो सकता है। सब से पहले उस क्षेत्र को 1 से डेढ मीटर गहरा खोदा जाता है। नीचे की सतह को ठोस बनाया जाता है। यह कंकरीट, मोटा बालू डाल कर तैयार किया जाता है, किंतु पानी के निकास के लिए पाइप को पहले ही फ़िक्स कर लिया जाता है। निकासी के पानी का उपयोग पौधों की सिंचाई के लिए किया जाता है। तालाब दी दीवारें ईंटों से निर्मित होनी चाहिए। तालाब के नीचे की सतह को 1 भाग सीमेंट और 3 भाग महीने रेत के मिश्रण से तैयार करवा लेनी चाहिए।

आमतौर पर तालाब की गहराई 60 सेंटीमीटर रखनी चाहिए। किंतु कमल या वाटर लिली जैसे पौधों के लिए कम से कम 1 मीटर से डेढ मीटर गहराई होनी चाहिए। जिस तालाब की गहराई 180 से 250 सेंटीमीटर रखी जाती है। तालाब का पानी साल में एक या 2 बार निकालते रहें।

पौधों को लगाने का तरीका : पानी के पौधों को पूरे साल में कभी भी लगाया जा सकता है। कमल या वाटर लिली के राइजोम को कंपोस्ट की टोकरी में भर कर लगाया जाता है, किंतु पक्के बनाए गए तालाब की तली में सब से पहले कंपोस्ट एवं मिटटी का मिश्रण 15 से 25 सेंटीमीटर मोटाई में बिछा देते हैं। इस के बाद ही पौधे लगाते हैं।

वाटर गार्डन की देखभाल : तालाब की सतह एवं किनारों की दीवारों पर काई के नियंत्रण के लिए 30 ग्राम पोटेशियम मेटाबाई सल्फ़ेट नामक रसायन प्रति लिटर पानी में घोलते हैं ध्यान रहे, पौधों का रोपण करते समय तालाब में मछली नहीं छोडनी चाहिए, मछली 3 सप्ताह बाद ही छोडें। रगीन गोल्ड फ़िश, इस के लिए उपयुक्त हैं।

पौधों का चुनाव : वाटर गार्डन के लिए पौधों का चुनाव गार्डन के प्रकार, उपयोग में लाने वाले पात्रों के आधार पर करना चाहिए। मुख्य पौधे निम्न प्रकार से हैं:

कमल : यह बडे तालाब के लिए उपयुक्त है, क्योंकि इस के पत्ते का आकार बडा होता है। फ़ूल भी बडे खुशबूदार सफ़ेद, गुलाबी, लाल आदि रंगों के होते हैं।
अमेरिकन कमल ( नीलंबा ल्यूटिया) : इस के फ़ूल पीले खुशबूदार होते हैं।
कुमुदनी : इस के फ़ूल भी बडे आकार के होते हैं। पत्तियों का रंग सफ़ेद, गुलाबी व लाल होता है। इस के खुशबू नहीं होती है।
वाटरलिली : इस का प्रसारण ट्यूबर या कंदो (बल्ब) द्वारा होता है।
वाटर टेप ग्रास (वैलिस्नेरिया स्पाइरैलिस) : यह आक्सीजन पैदा करने वाला पौधा है। इस से तालाब की सफ़ाई में मदद मिलती है।
सैजिटेरिया : वाटर हायसिंथ (आएशर्निया क्रैसिटेस) पत्तियों की खूबसूरती के लिए उगाया जाता है। यह तैरने वाला पौधा ।है
अंबेला पाम : यह तालाब के किनारे खाली भूमि पर उगाया जा सकता है। इस के अलावा अन्य पौधे दलदली स्थानों पर उगाए जा सकते हैं। उन पर फ़ूल आते हैं, जिन में प्रमुख रूप से आइरिस, सैजिटेरिया एवं टाइफ़ा आदि हैं।

वसुंधरा राजे सिंधिया ( Vasundhra raaje )


वर्षीय वसुंधरा को राजनीति विरासत में मिली है। ग्वालियर के शासक जीवाजी राव सिंधिया और उन की पत्नी राजमाता विजया राजे सिंधिया की चौथी संतान वसुंधरा का जन्म मुंबई में हुआ। प्रेजेंटेशन कान्वेंट स्कूल, कोडैकनाल से स्कूली पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने सोफिया कालेज, मुंबई यूनिवर्सिटी से इकोनोमिक्स और साइंस आनर्स से ग्रेजुएशन की।

वसुंधरा की शादी धौलपुर राजघराने के महाराजा हेमंतसिंह  के साथ हुई थी। तभी से वे राजस्थान से जुड़ गईं।

1984 में उन को भारतीय जनता पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में शामिल किया गया। अपनी कार्यक्षमता, विनम्रता और पार्टी के प्रति वफादारी के चलते 1998-99 में अटलबिहारी वाजपेयी मंत्रीमंडल में वसुंधरा को विदेश राज्य  मंत्री बनाया गया अक्टूबर, 1999 में फिर केंद्रिया मंत्रीमंडल में उन को राज्यमंत्री के तर पर स्माल इंडस्ट्रीज, कार्मिक एंड ट्रेनिंग, पेंशन व पेंशनर्स कल्याण, न्यूक्लियर एनर्जी  विभाग एवं स्पेस विभाग का स्वतंत्र प्रभार सौंपा गया।

वसुंधरा ने अपनी काबलियत से देश की राजनीति में अपनी पहचान कायम कर ली। इसी बीच राजस्थान में भैरों सिंह शेखावत के उपराष्ट्रपति बनने से प्रदेश में किसी दमदार नेता का अभाव खटकने लगा। लिहाजा वसुंधरा के पुराने बैकग्राउंड को देखते हुए केंद्रीय पार्टी ने उन को राज्य इकाई का अध्यक्ष बना कर भेज दिया।

उन्होंने चुनावों के मद्देनजर प्रदेश भर में परिवर्तन यात्रा निकाली। इस यात्रा के जरिये वे आम जनता से मिलती थीं। खासतौर से महिलाओं को लुभाने के लिये जिस इलाके में जातीं उसी इलाके की वेशभूषा पहन कर जाती थी।

नतीजा यह हुआ की विधानसभा चुनावों में वे भरी बहुमत के बल पर पार्टी को सत्ता में ले आईं। 1 दिसंबर 2003 में राज्य की पहली महिला मुख्यमंत्री बनीं।

वसुंधरा राजे ने अपने मुख्यमंत्रित्व काल में महिलाओं को आगे बढाने के लिये 2007-08 के बजट में शिक्षा, रोजगार, बालविवाह प्रथा पर रोक जैसे 5 सूत्री कार्यक्रम बनाए थे।

स्वशाक्तीकरण के प्रयास
2007 में  यूएनओ  द्वारा वसुंधरा को महिला के लिये स्वशाक्तीकरण के प्रयासों के लिये 'विमन टूगेदर अवार्ड' दिया गया।

अध्ययन, संगीत, घुड़सवारी, फोटोग्राफी और बागबानी की शौक़ीन राजे विभिन्न महंगी साड़ियाँ पहनना और उच्च रहनसहन उन का शौक है। यह रूतबा देख कर राजस्थान की जनता ही नहीं, पक्षविपक्ष  के नेता विधानसभा तक में उन्हें महारानी ही कहते थे।

कुछ भी हो, वसुंधरा राजे ने हमेशा अपनी काबिलीयत का लोहा मनवाया और आगे बढ़ते हुए राजनीतिक विजय के झंडे गाड़े।

01 अगस्त 2010

उमा भारती ( Uma Bharti )


जनीति में अपनी जगह व पहचान बना पाने में कामयाब उमा भारती मध्य प्रदेश के पिछड़े इलाके बुंदेलखंड के गाँव बड़ा मलहरा में 3 मई, 1955 को जन्मी थीं। उमा का बचपन कितने अभावों में बीता होगा, इस का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है की उन्हें औरचारिक स्कूली शिक्षा भी हासिल नहीं ही। बचपन से ही उन का रूझान धर्म की तरफ था। लिहाजा वे रामचरितमानस बांचने लगीं।

किशोरवय तक आते आते उन्हें ग्रन्थ पूरा कंठस्थ हो गया था। जल्द ही वे प्रवचन भी करने लगीं और भगवा कपडे पहन कर संन्यास भी ले लिया।

हिन्दूवाद की हिमायती
भाजपा की दिग्गज नेत्री राजमाता के नाम से मशहूर विजयराजे सिंधिया की नजर उमा पर पडी तो वे उन की प्रवचनशैली से खासी प्रभावित हुई और उन्हें राजनीति में ले आएं। इस के बाद तो उमा के तेवर इतने बदले की समाज का भलाबुरा छोड़ वे उग्र हिन्दूवाद की हिमायती हो गईं। पहली दफा 1984 में खजुराहो लोकसभा सीट से चुनाव हारने के बाद आगामी 5 चुनाव उन्होंने लगातार जीते और भोपाल लोकसभा सीट भी भारी अंतर से जीती।
केंद्रीय मंत्री बनने के बाद उन्होंने मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री पद की कुर्सी संभाली और प्रदेश की पहली महिला मुख्यमंत्री बनीं।

कर्नाटक में साम्प्रदायिकता फैलाने के आरोप में मुख्यमंत्री रहते वारंट निकला तो उन्होंने पद से त्यागपत्र दे दिया और कुर्सी अपने भरोसेमंद बाबूलाल गौर के हवाले कर दी। उमा को उम्मीद थी की जब वे इस मामले से फारिग हो कर वापिस आएँगी तो उन्हें अपनी कुर्सी ज्यों की त्यों मिल जाएगी।

मगर उन की यह खुसफहमी जल्द ही दूर हो गई, जब भाजपा आलाकमान ने गौर को भी हटाते हुए शिवराज सिंह चौहान को मध्य प्रदेश का मुख्यमंत्री बना डाला। आहात और तिलमिलाई उमा ने भाजपा छोड़ अपनी नई पार्टी 'भारतीय जनशक्ति पार्टी' बना ली। उन का यह मुगालता भी दूर हो गया की भाजपा का वजूद उन से है और पार्टी उन की मुहताज है। अब निराश, हताश उमा भाजपा में बगैर किसी शर्त के वापस आने के लिये तैयार हैं।

वापसी की उम्मीद
मगर यह बात ज्यादा उल्लेखनीय है की पिछड़े वर्ग की एक निर्धन परिवार की जुझारू महिला देन्द्र तक पहुँची और कई विवादों के बाद भी घबराए नहीं। उमा अपना घर नहीं बसा पाई। भाई स्वामी लोधी से भी उन के विवाद काफी हलके स्तर पर सार्वजनिक हुए। 1993 में विवादित ढांचा ढहाने में अग्रणी रही हिंदुत्व की राह दोबारा पकड़ रही उमा इसे कामयाबी का मंत्र मान बैठी हैं।

भाजपा में वापसी की उम्मीद देख उमा ने अपनी ही पार्टी के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया। बहरहाल, उन का भविष्य अब क्या होगा, इस का अंदाजा कोई नहीं लगा पा रहा।