30 मार्च 2010

सबसे ख़राब धंधा


पुराने जमाने की बात है। वैशाली नगर में सोमगुप्त नामक एक व्यापारी था। व्यापार के द्वारा सोमगुप्त पर्याप्त मात्रा में धनार्जन कर लेता था, मगर वह उस छोटे से व्यापार से संतुष्ट नहीं था। वह बहुत जल्द करोड़पति बन जाना चाहता था। इसके वास्ते उसने एक दूसरा पेशा अपनाने का संकल्प किया। पर वह यह निश्चय न कर पाया कि कौन-सा पेशा सबसे ज़्यादा लाभदायक होगा? उन्हीं दिनों एक लखपति के घर में चोरों ने डाका डाला और कीमती सोना-चाँदी व दो-चार लाख़ नक़द भी चुरा ले गये। सोमगुप्त को लगा कि ऐसी एक बड़ी चोरी ज़िंदगी में सिर्फ़ एक दफ़ा कर ले तो शेष सारी ज़िंदगी आराम से काटी जा सकती है। इस पेशे में एक पैसे की भी पूँजी लगाने की ज़रूरत नहीं है।

इस विचार के आते ही सोमगुप्त ने चोरों के साथ परिचय तथा उस पेशे के सारे रहस्यों की जानकारी प्राप्त करनी चाही। उसने बड़े प्रयास के बाद यह जान लिया कि रात के व़क्त चोरों का दल कहाँ पर इकट्ठा होता है। सोमगुप्त संध्या के समय उजड़े मंदिर के पास पहुँचा और मंदिर के एक चबूतरे पर लेटकर सोने का अभिनय करते चोरों का वार्तालाप सुनता रहा। उसने अनुभव किया कि चोरी करने के लिए अत्यंत साहस और दूरदृष्टि की आवश्यकता है।

प्रतिदिन सोमगुप्त को चबूतरे पर लेटकर सोते चोरों ने देखा और सोचा कि यह कोई अनाथ होगा, कभी ज़रूरत के व़क्त इसकी मदद भी ली जा सकती है।

एक दिन आधी रात को दो चोर दो बहंगियाँ उठाकर ले आये। उनमें एक बड़ा था और दूसरा छोटा था। छोटे चोर ने सोमगुप्त को जगाकर समझाया, ‘‘सुनो भाई, आज हमारा एक साथी नहीं आया है, तुम हमारे साथ चलोगे तो चोरी के माल में से तुम्हें भी थोड़ा-बहुत हिस्सा देंगे। तुम्हें डरने की ज़रूरत नहीं कि हमारा काम तुम न कर सकोगे। तुम हमारे कहे अनुसार करते जाओ, बस, तुम्हें बचाने की जिम्मेदारी हमारी है।''

सोमगुप्त ऐसे ही मौक़े के इंतज़ार में था, इसलिए उसने झट से मान लिया।

चोरों ने सोमगुप्त का वेष बदल डाला, उसका कुर्ता खोल दिया, उसके सिर पर पगड़ी बांध दी। चेहरे पर काला रंग पोत दिया, छोटी-सी दाढ़ी चिपका दी।

धोती सिर्फ़ घुटने तक पहना दी। हाथ में एक लाठी थमा दी, सिर पर एक बोरा रखा, हाथ में गुड़ के सात-आठ टुकड़े देकर कहा, ‘‘अब चलो हमारे साथ।''

सोमगुप्त जानता न था कि चोरी करने के लिए ऐसी पूर्व तैयारी भी करनी होती है। चोरों ने उसे एक किसान के रूप में बदल डाला था। उस रूप में उसकी पत्नी भी उसे पहचान न सकती थी।

यों सोचते सोमगुप्त रास्ते पर बढ़ा जा रहा था। रास्ते में एक कुत्ता लेटा हुआ था। उस पर सोमगुप्त ने अपना पैर रखा। फिर क्या था, वह ज़ोर-शोर से भूँकने लगा। सोमगुप्त घबरा गया, उसने चीख़कर हाथ के गुड़ के टुकड़े गिरा दिये। कुत्ता भूँकना बंद करके गुड़ के टुकड़ों को चाटने लगा।

बड़े चोर ने सोमगुप्त के हाथ गुड़ के और थोड़े टुकड़े देकर समझाया, ‘‘दोस्त! हम लोग चोरी करने जा रहे हैं, शादी की दावत उड़ाने के लिए नहीं; तुम्हें और सावधान रहना होगा।''

छोटे चोर ने कहा, ‘‘सुनो भाई, कुत्ते का भूँकना और तुरंत मुँह बंद करना सुनकर कोतवाल समझ जायेगा कि कहीं दाल में कुछ काला है। वह ज़रूर इस ओर आ धमकेगा। नाना प्रकार के सवाल पूछेगा। तुम अपना मुँह मत खोलो। उसके सारे सवालों का जवाब मैं ख़ुद दूँगा।''

छोटे चोर की कल्पना के मुताबिक़ कोतवाल घोड़े पर उधर से आ निकला। उसने गरजकर पूछा, ‘‘तुम लोग कौन हो? यह नहीं जानते कि आधी रात के व़क्त गलियों में घूमना मना है। सच कहो, इतनी रात गये तुम लोग किस काम से निकले हो?''

कोतवाल की कड़कती आवाज़ सुनने पर सोमगुप्त के कलेजे में धड़कन होने लगी।

‘छी छीः, प्रत्येक पल प्राणों को हथेली में रखकर जीनेवाला यह कैसा पेशा है? चाहे इस पेशे में भले ही ज़्यादा मुनाफ़ा क्यों न हो? इसके पूर्व इस कोतवाल को क्या, इससे भी बड़े अधिकारी को देख मैं कभी डरा नहीं था?' सोमगुप्त ने मन में सोचा।

छोटे चोर ने कोतवाल से कहा, ‘‘हम रामापुर के निवासी हैं सरकार! गुड़ बेचने के ख़्याल से बहंगियों में लेके आये, इस अंधेरे में हमें सराय के रास्ते का पता न चला। इसीलिए भटक रहे हैं, आप मेहरबानी करके रास्ता बताकर पुण्य लूटिये।''

‘‘सराय का रास्ता बता दूँगा, पहले तुम लोग अपने नाम बतला दो। यह तोंदवाला कौन है? यह तो मेहनत करनेवाला जैसा नहीं लगता।'' कोतवाल ने व्यापारी की ओर देखते हुए पूछा। व्यापारी को लगा कि उसके प्राण उड़े जा रहे हैं।

‘‘मेरा नाम रंगदास है, ये मेरे भाई भीमदास हैं और ये व्यापारी मंगाराम हैं, बिना मेहनत किये मुनाफ़ा पाकर तोंद बढ़ा ली है।'' छोटे चोर ने जवाब दिया।

कोतवाल हँस पड़ा। सराय का रास्ता दिखाकर बोला, ‘‘एक घड़ी के अंदर मैं सराय में आ जाता हूँ, मैं देखूँगा, तुम तीनों वहाँ पर हो कि नहीं। खबरदार! जाओ।'' तीनों के दिल हलके हुए, तब ख़ुशी-ख़ुशी चोरी करने चल पड़े।

व्यापारी के मन में अब तक चोर के पेशे के प्रति पूर्ण रूप से घृणा पैदा हो गई। पल-पल पर डरना पड़ता है, क़दम-क़दम पर झूठ बोलना पड़ता है। चोरी करने के पहले अगर यह हालत है तो इस पेशे को अपनाने के बाद पूर्ण रूप से मानसिक शांति जाती रहेगी। इस पेशे में बिलकुल प्रवेश नहीं करना है, किसी भी उपाय से यहॉं से बचकर भागना है। व्यापारी ने अपने मन में सोचा।



इसके बाद तीनों जाकर एक बड़े मकान के सामने जा रुके। उसी घर में वे लोग डाका डालना चाहते थे।
‘‘मैं ताला तोड़ दूँगा। हम दोनों अंदर जाकर माल लेकर आयेंगे, तब तक ये बुजुर्ग बाहर पहरा देते रहेंगे।'' यों आपस में सलाह करके चोरों ने ताला तोड़कर अंदर प्रवेश किया।

तभी व्यापारी वहाँ से चलकर अपने घर पहुँचा। वह गली का नुक्कड़ पार कर ही रहा था कि तभी उसने देखा, राजभट एक चोर को बन्दी बनाये कोड़े मारते ले जा रहे हैं।

चोर के पीछे उसकी पत्नी और बच्चे रोते-चिल्लाते जा रहे हैं। इसे देख ग्रामवासियों में से किसी ने भी उनके प्रति सहानुभूति न दिखाई।

व्यापारी के मन में उस चोर के प्रति अगाध सहानुभूति पैदा हुई। उसने सोचा, ‘न मालूम यह कैसा पेशा है! चोर हाथ में आ जाता है तो उसे चाहे जो भी दण्ड दिया जाये, समाज उसका समर्थन करता है। यदि मैं भी पकड़ा जाऊँ तो मेरी भी हालत यही होगी न?'

इसके बाद पिछवाड़े के रास्ते से उसने अपने घर में प्रवेश किया, अपना वेश बदल लिया, हाथ-मुँह धोकर शांत मन से अपने घर के चबूतरे पर जा लेटा।

सवेरा होते ही व्यापारी की पत्नी ने उसे जगाया और बताया कि आधी रात के बाद दो चोरों को भागते देख कोतवाल ने उनका पीछा किया और तलवार से उन्हें मार डाला ।

व्यापारी ने मन ही मन सोचा, ‘भगवान ने मुझे इस खराब धन्धे से बचा लिया। मैं अब कोई और धन्धा नहीं करूँगा और अपने छोटे व्यापार में ही सन्तोष करूँगा। ठीक कहा गया है सन्तोष से बड़ा कोई धन नहीं।