उस आदमीके पिछे पिछे सायबर कॅफेके बाहर जाते हूए विवेक सोचने लगा.
उसने तो मुझे जो हूवा वह सब भूल जानेके लिए मेल की थी ...
फिर वह अचानक भागकर क्यों आगई होगी? ....
शायद उसके रिश्तेदारोंने उसपर दबाव बनाया होगा ...
और इसलिए उसने वह मेल लिखी होगी ...
अब विवेक उस आदमीके पिछे पिछे सायबर कॅफेके बाहर पहूंच गया था. बाहर सब तरफ अंधेरा था और अंधेरेमें एक कोनेमें उसे एक खिडकीयोंको सब काले शिशे लगाई हूई कार दिखाई दी.
इसी गाडीमें आई होगी अंजली...
जैसे वह आदमी उस गाडीकी तरफ बढने लगा, विवेकभी उसके पिछे पिछे उस गाडीकी तरफ बढने लगा. गाडीके पास पहूंचतेही उसके खयालमें आगया की गाडीका पिछला दरवाजा खुला है.
दरवाजा खुला रखकर वह अपनी राह देख रही होगी....
गाडीके और पास पहूंचतेही विवेकने पिछले खुले दरवाजेसे अंजलीके लिए अंदर झांककर देखा.
लेकिन यह क्या ?...
तभी किसी काले सायेने पिछेसे आकर उसके नाकपर क्लोरोफॉर्मका रुमाल रख दिया और उसे अंदर गाडीमें धकेल दिया. वह अंदर जानेके लिए प्रतिकार करने लगा तो उस काले सायेने लगभग जबरदस्ती उसे अंदर ठूंस दिया. गाडीका दरवाजा बंद होगया और गाडी तेजीसे दौडने लगी. विवेकके खयालमें आगयाकी उसके साथ कुछ धोखा हूवा है. लेकिन तबतक देर हो चुकी थी. उसे अब अहसास होने लगा था की वह अपना होश खोने लगा है.
जिस आदमीने विवेकको गाडीतक लाया था उसने जेबसे पैसे निकाले और वह वे पैसे गिनते हूए वहांसे निकल गया.
विवेक एक बेडपर बेसुध पडा हुवा था. अब धीरे धीरे उसे होश आने लगा था. जैसेही वह पुरी तरह होशमें आगया, उसे वह एक अन्जान जगहपर है ऐसा अहसास होगया. वह तुरंत बैठ गया और अपनी नजर चारो तरफ दौडाने लगा. उसके सामने अलेक्स और उसके दो साथी काले लिबासमें बैठे थे. उनके चेहरेभी काले कपडेसे ढंके हूए थे. विवेकने उठकर खडे होनेकी कोशीश की तब उसके खयालमें आगया की उसके हाथपैर बंधे हूए है.
वैसेही हालमें जोर लगाकर फिरसे उठकर खडे होनेकी कोशीश करते हूए वह बोला, " कौन हो आप लोग? ... मुझे यहां कहां और क्यो लाया आप लोगोनें ..."
" चिंता मत करो ... यहां हम तुझे ठाठबाठमें रखनेवाले है ... हमने तुम्हे अंजलीजीके रिस्तेदारोंके कहे अनुसार यहा लाया है ... वैसे वे लोग बहुत अच्छे है ... जादातर ऐसे झमेलेमें पडते नही है ... लेकिन क्या करे इसबार बाते उनके बसके बाहर निकल गई .. फिरभी उन्होने तुम्हे कोई तकलिफ ना हो इसका खास ध्यान रखनेकी हिदायत दी है ... "
अलेक्स वहांसे उठकर जानेलगा तो विवेक चिल्लाया.
" मुझे छोड दो ... मुझे पकडकर तुम्हे क्या मिलनेवाला है ?"
अलेक्स जाते हूए एकदमसे रुक गया, और मुंहपर उंगली रखते हुए विवेकसे बोला,
" चूप जादा आवाज नही करना ... "
फिर अपने दो साथीकी तरफ देखकर वह बोला, " ओय... तुम दोनो इसपर ध्यान रखो ... "
फिर दुबारा विवेककी तरफ देखकर अलेक्स बोला, " और मजनू तूम ... जादा चालाकी करनेकी कोशीश मत करना.. नही तो दोनो पैर तोडकर तुम्हारे हाथमें दे देंगे... और ध्यान रखो अंजलीजीके रिश्तेदार अच्छे लोग होंगे ... हम नही ... "
अलेक्स आगे और उसके दो साथी उसके पिछे पिछे कमरेके बाहर निकल गए. उन्होने कमरेको बाहरसे ताला लगाकर चाबी उन दोनोंमेसे एक के पास दी, उसे वह चाबी संभालकर रखनेकी हिदायत दी और अलेक्स वहांसे निकल गया.
21 मार्च 2010
Hindi Novel - Elove-CH-32 सायबर कॅफेके बाहर
Posted by Udit bhargava at 3/21/2010 08:16:00 pm
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