अशर्फीलाल, घनपुर का निवासी था। वह ब्याज का व्यापारी था। लोग कहते थे कि वह बड़ा निर्दयी है। महावीर नामक एक धनाढ्य उसके बारे में कहा करता था, ‘‘अशर्फीलाल को देखकर यह जानिये कि आदमी को कैसा होना नहीं चाहिये। इसीलिए बिना ब्याज के मैं कर्ज देता रहता हूँ। गुप्त दान करता रहता हूँ।''
महावीर उस गाँव के लोगों को वचन दे चुका था कि लाखों अशर्फियाँ जो मुझे मिलनी हैं, अगर वे वसूल हो जाएँ तो उसमें से उस गाँव के मंदिर और पाठशाला को दस-दस हज़ार अशर्फियाँ दान में दूँगा। परंतु कुछ लोगों का यह कहना है कि जो उससे कर्ज़ माँगते हैं, कोई न कोई बहाना बनाकर बात को टाल देता है। न ही कर्ज़ के रूप में या दान के रूप में किसी को भी कुछ नहीं देता। बहुत से लोगों की यह राय थी कि महावीर तिल का ताड़ बनाता है, बढ़ा-चढ़ाकर बातें करता है, पर करता कुछ भी नहीं है। पर सूरज नामक एक गरीब किसान उसका विश्वास करता था, उसे महा परोपकारी मानता था । इसी विश्वास पर वह अपनी बेटी की शादी के लिए सौ अशर्फियों का कर्ज़ माँगने उसके पास गया।
महावीर ने कहा, ‘‘परसों ही मैंने तीन हजार अशर्फियों का दान दिया। कल एक और को ब्याज लिये बिना दस हज़ार अशर्फियाँ कर्ज़ में दीं। आज मेरे पास दस अशर्फियाँ भी नहीं हैं । यह तुम्हारा दुर्भाग्य है।''
लाचार होकर सूरज अशर्फीलाल के पास गया। उसने इस शर्त पर धन दे दियाकि एक साल के अंदर यह रक़म लौटायी नहीं गयी तो वह और उसकी पत्नी लक्ष्मी उसके घर में बेगारी करेंगे। सूरज ने यह शर्त मान ली । लेकिन उस साल अच्छी फसल नहीं हो पायी, इसलिए वह रक़म समय पर उसे लौटा नहीं पाया।
अशर्फीलाल का कर्ज़ चुकाने के लिए सूरज ने पुनः महावीर से कर्ज़ माँगा। महावीर ने सोच-विचार के बाद कहा, ‘‘दूसरों की सहायता लेकर कब तक ज़िन्दगी बिताते रहोगे? अशर्फीलाल के यहाँ बेगारी करने चले जाओ। तुम्हें आजन्म खाने, कपड़े की चिंता करनी नहीं पड़ेगी।''
‘‘साहब, मैं और मेरी पत्नी बेगारी करने को सन्नद्ध हैं। परंतु मेरा बेटा शेखर इसके ख़िलाफ है। वह थोड़ा-बहुत पढ़ा-लिखा है। कहता है, व्यापार करके कमाऊँगा और ऋण चुका दूँगा। इस बीच, मुझे आपकी मदद चाहिये।'' ‘‘तो एक काम करना। शेखर को मेरे सुपुर्द करना और तुम अशर्फीलाल के यहाँ नौकरी पर लग जाना। उसे बड़ा बनाऊँगा और तुम्हें बेगारी से मुक्त करूँगा। तब गाँव के सब लोग तुम्हारे पुरुषार्थ की प्रशंसा करेंगे। यों मैंने दस परिवारों की सहायता की। तुम ग्यारहवें परिवार के हो।'' महावीर ने कहा।
सूरज ने शेखर को उसके सुपुर्द कर दिया और बेगारी करने पत्नी समेत अशर्फीलाल के यहाँ पहुँच गया। शेखर ने व्यापार शुरू करने के लिए महावीर से हज़ार अशर्फियाँ माँगी। ‘‘हज़ार क्या, लाख अशर्फियाँ दूँगा। लेकिन किसी की दी हुई पूंजी से व्यापार में उन्नति नहीं होती। अ़क्लमंदी ही, व्यापार की पूंजी है । हाल ही में मैंने पुराणिक, रंगा और भद्र नामक तीन गरीबों को आश्रय दिया, पढ़ाया-लिखाया। शादियाँ भी करवायीं। व्यापार करने के लिए हर एक को हज़ार अशर्फियाँ दीं। एक साल के अंदर ही वे फिर से मेरे पास धन के लिए आये और कहने लगे कि व्यापार में नुक़सान हुआ है। मैंने धन देने से इनकार किया तो वे जनपुर गये और व्यापार करके लाखों रुपये कमाये। परंतु मुझे फूटी कौडी भी नहीं लौटायी।'' महावीर ने कहा।
शेखर ने कहा, ‘‘मैं ऐसे लोगों में से नहीं हूँ। जो रकम आप देंगे, उसे ब्याज सहित लौटाऊँगा।''
महावीर ने मुस्कुराते हुए कहा, ‘‘मैं थोड़े ही ब्याज लूँगा। रक़म वापस किसी और की सहायता करने के उद्देश्य से ही लेता हूँ। तुम भी जनपुर जाना, उन तीनों से मिलना। अपनी बुद्धि व चालाकी को उपयोग में लाना और जितनी रक़म तुम उनसे वसूल कर सकते हो, वसूल कर लेना। उसी को पूंजी मानकर व्यापार शुरू कर देना। जब कमाओगे तब मेरी रक़म मुझे लौटा देना।''
शेखर जनपुर गया। पहले वह भद्र से मिला और जो हुआ, उससे कहा। भद्र का चेहरा क्रोध से तमतमा उठा। उसने कहा, ‘‘महावीर तिल का ताड़ बना रहा है। जानते हो, असल में उसने पुराणिक, रंगा और मुझे क्या दिया? एक-एक को तीन-तीन अशर्फियाँ। पहली अशर्फी पढ़ाई के लिए, दूसरी विवाह के लिए, तीसरी व्यापार के लिए।''
शेखर ने कहा, ‘‘रक़म वसूल करने मैं तुम्हारे पास नहीं आया हूँ। महावीर की बातों का विश्वास करके मेरे माता-पिता बेगारी कर रहे हैं। मैं यह जानना चाहता था कि कहाँ तक उसकी बातों का विश्वास किया जाए, इसीलिए आप तीनों से मिलने आया। अब उसे सबक़ सिखाकर ही रहूँगा।''
भद्र ने कहा, ‘‘तुम अगर उसे सबक़ सिखाने का वचन दोगे तो मैं तुम्हें अपने व्यापार में भागीदार बनाऊँगा। परंतु, इसके पहले तुम्हें एक काम करना होगा। एक हफ्ते के अंदर तुम्हें अपने माँ-बाप को बेगारी से छुटकारा दिलाना होगा और अपनी बुद्धिमानी को साबित करना होगा।''
इसके बाद शेखर रंगा से मिला और जो हुआ, बताया। रंगा ने अपने क्रोध को काबू में रखते हुए कहा, ‘‘तुम अगर महावीर को सबक़ सिखाने का वादा करोगे तो मैं तुम्हारे माँ-बाप को बेगारी से मुक्ति दिलवाऊँगा। इसके लिए तुम्हें एक हफ़्ते के अंदर किसी अच्छे परिवार की लड़की से शादी करनी होगी और अपनी अ़क्लमंदी को साबित करना होगा।''
आख़िर में शेखर पुराणिक से मिला। उसकी पत्नी उसके पचासवें साल में मर गयी थी तो उसने दूसरी शादी कर ली। बेटी बालिग हो गयी। वह चाहता था कि जल्दी उसकी शादी कर दी जाए, क्योंकि सौतेली माँ और उसके बीच हर दिन झगड़े हुआ करते थे । शेखर को देखते ही पुराणिक को वह योग्य व समर्थ लगा। अपनी बेटी की शादी उससे करने की इच्छा उसमें जगी। इसलिए उसने कहा, ‘‘अपनी बेटी से तुम्हारी शादी कराऊँगा। परंतु हफ्ते के अंदर तुम्हें महावीर को सबक़ सिखाना होगा और अपना चातुर्य साबित करना होगा।'' उसने यों शर्त रखी।
शेखर सोच में पड़ गया। खूब माथापच्ची करने के बाद उसे एक उपाय सूझा। उसने पुराणिक से बताया तो वह बेहद खुश हुआ। उसने उसे तीस अशर्फियाँ दीं। शेखर घनपुर लौटा और महावीर से कहा, ‘‘पुराणिक, रंगा और भद्र का कहना है कि आपसे हर एक ने तीन-तीन अशर्फियाँ ही लीं। ब्याज सहित आपको देने तीस अशर्फियाँ देकर उन्होंने मुझे जबरदस्ती भेजा। उन्होंने यह भी कहा कि आप इन अशर्फियों को स्वीकार नहीं करेंगे तो वे इस गाँव में आकर बखेडा खड़ा कर देंगे?''
यह कहते हुए उसने तीस अशर्फियाँ उसके हाथ में रख दीं। महावीर को सचमुच ही लगा कि वे तीनों यहाँ आयेंगे और बखेड़ा खड़ा कर देंगे। उसने शेखर से कहा, ‘‘यह बात किसी और से मत कहना।''
‘‘आप मेरे आदर्श हैं। मैं आपके कहे अनुसार ही करूँगा।'' शेखर ने कहा। महावीर बहुत प्रसन्न हुआ। इसके बाद शेखर गाँव के चंद प्रमुखों से मिला और कहा, ‘‘यह झूठ है कि महावीर तिलका ताड़ बनाते हैं। सचमुच ही किसी को तीस हज़ार अशर्फियाँ देकर वे चुप बैठे हैं। मैंने वह रक़म बडे प्रयास के बाद वसूल की। ब्याज सहित लाख रुपये अब उन्हें मिल गये। इसपर प्रसन्न होकर उन्होंने मेरे माँ-बाप को बेगारी से मुक्ति दिलाने का वचन दिया। मुझे नौकरी दिलवाकर, मेरी शादी कराने का भी उन्होंने वादा किया। अब मुझे किसी बात की चिंता नहीं।''
यह समाचार महावीर को भी मालूम हुआ। वह घबरा गया और शेखर को बुलाकर कहा, ‘‘तुमने मुझे तीस अशर्फियाँ ही दीं। गाँव में लाख बताया। मैंने तुम्हारे उपकार के विषय में कुछ भी नहीं कहा। परंतु गाँव में तुमने बताया कि मैं तुम्हारा उपकार करनेवाला हूँ। तुम चाहते हो कि दान-धर्म के नाम पर लोग मुझे लूटें। मैं तुम्हारी शरारत कामयाब होने नहीं दूँगा। तुमने जो झूठ कहे, सबको बता दूँगा।'' उसने धमकाया।
तब शेखर ने विनयपूर्वक कहा, ‘‘मैं आपसे कह चुका हूँ कि जो भी कहूँगा, आपके कहे अनुसार ही कहूँगा, करूँगा। फिर आपने पुराणिक, रंगा और भद्र को तीन-तीन अशर्फियाँ दीं और गाँव भर में ढिंढोरा पीटा कि उन्हें दस-दस हज़ार अशर्फियाँ दीं। इसका यही मतलब हुआ ना कि तीन अशर्फियाँ लाख अशर्फियाँ हैं। तिल का ताड़ बनाना आपकी पद्धति है। मैंने भी यही पद्धति अपनायी। सोचा कि आप मेरी तारीफ़ करेंगे। मेरी बातें ठीक नहीं लगीं तो गाँव भर में बता दीजिये।''
शेखर का कहा झूठ है, यह बता दिया जाए तो उसी का राज़ खुल जायेगा। इसलिए वह चुप हो गया। यही नहीं, पहले गाँव के मंदिर और पाठशाला को दस-दस हज़ार अशर्फियाँ दान में देने का जो वचन दिया, उसे पूरा किया। अपने ही आप बडबडाने लगा, ‘‘अब बुद्धि ठिकाने आ गयी। आगे तिल का ताड़ बनाकर कहने की आदत से दूर रहूँगा।''
इतने में पुराणिक, रंगा और भद्र घनपुर आये। महावीर को सबक़ सिखाया, यह जानकर खुश हुए। भद्र ने शेखर को अपने व्यापार में हिस्सा दिया। रंगा और भद्र ने अशर्फीलाल का कर्ज़ चुकाकर सूरज दंपति को बेगारी से मु़क्ति दिलायी। पुराणिक ने अपनी बेटी से उसकी शादी करायी।
जनपुर जाने के पहले शेखर ने एक बड़ी दावत दी और कहा, ‘‘मेरे जीवन में आज कायापलट हो गया, इसका कारण महावीर ही हैं।''
‘‘अरे शेखर, तिल का ताड़ न बनाओ। यह ठीक आदत नहीं है।'' पीछे से महावीर चिल्लाया ।
30 मार्च 2010
तिल का ताड़
Posted by Udit bhargava at 3/30/2010 07:36:00 pm
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