06 फ़रवरी 2010

संयुक्त घराना के अकार्य

अनेक प्रकार्यो के साथ-साथ, संयुक्त परिवार अथवा घराना की संरचना में कई अकार्य भी देखने में आते हैं। समाजशास्त्रियों द्वारा निम्नलिखित अकार्यों की चर्चा की गई है:-
संयुक्त घर छोटी-छोटी बातों पर संघर्ष का केंद्र होता है। सदस्यों के बीच में आपसी तालमेल, समायोजन तथा सात्मीकरण का सामान्यत: अभाव होता है। मतभेद एवं कटुता से आंतरिक अंतर्विरोध पैदा होता है। जो संयुक्त घराने के विघटन के लिए रास्ता तैयार करता है।
संयुक्त घराने को सदस्यों के स्वतंत्र व्यक्तित्व के विकास में बाधा माना जाता है। सामान्यत: घर का मुखिया सारे महत्त्वपूर्ण निर्णय खुद लिया करता है फलस्वरूप हर व्यक्ति की पसंद या नापसंद का खयाल रखना संयुक्त घर में संभव नहीं हो पाता। इस तरह स्वतंत्र रचनात्मक संभावना का पूरी तरह विकास एवं दोहन नहीं हो पाता।
कभी-कभी नये विवाहित जोड़ी के बीच आत्मीयता का विकास नहीं हो पाता फलस्वरूप मनोवैज्ञानिक असंतोष एवं नासमझी का माहौल रहता है। संयुक्त परिवार व्यवस्था के अंतर्गत विवाहित युवा स्त्रियों का अधिकांश समय घर के सभी सदस्यों की आवश्यकता पूर्ति में खर्च होता है। इसके कारण उन्हें उचित तरीके से अपने स्वास्थ्य पर धयान देने या आनंद उठाने के लिए समय या अवसर नहीं मिल पाता।
संयुक्त घराने में बुर्जुग तथा युवा दोनों प्रकार के सदस्य पाये जाते है, फलस्वरूप पीढ़ियों के संघर्ष कई प्रकार से उभरते रहते है। बुर्जग लोग कठोरता से पारंपरिक मूल्यों एवं विश्वासों का पालन करते हैं। वे नए सांस्कृतिक चलन एवं सीमा को स्वीकार नहीं पाते। आजकल युवा व्यक्तिवाद के पक्षञ्र होने लगे है एवं पारंपरिक मूल्यों को अञ्निायकवादी, पक्षपातपूर्ण एवं अन्यायी मानकर इनका विरोध करने लगे हैं। इसके कारण कई बार परिवार में समस्याएँ पैदा हो जाती है और घर की शांति भंग हो जाती है। विभिन्न पीढ़ियों की सामाजिक अभिरूचियों में अंतर होता है।

संयुक्त परिवार में परिवर्तन
संयुक्त परिवार में निम्नलिखित परिवर्तनों की चर्चा समाजशास्त्रियों द्वारा अक्सर की जाती है :-
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संरचनात्मक परिवर्तन
जिन तथ्यों एवं मूल्यों ने संयुक्त परिवार या घराने की व्यवस्था का पोषण किया, स्थायित्व दिया एवं कायम रखा वे निम्नलिखित हैं :-
(1) पुत्रों में पिता के प्रति समर्पण की भावना,
(2) आर्थिक रूप से समर्थ सदस्यों का संयुक्त परिवार के अन्य सदस्यों की मदद के लिए तत्पर रहना जो खुद अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करने में असमर्थ हैं,
(3) बुजुर्ग स्त्री-पुरूष के लिए राज्य द्वारा नियोजित सामाजिक सुरक्षा की व्यवस्था का अभाव होना, एवं
(4) जमीन, पूंजी एवं श्रम के चतुर्दिक लाभ की दृष्टि से संगठन एवं दोहन के लिए संयुक्त परिवार के आकार द्वारा दिया गया भौतिक प्रोत्साहन।

अब संयुक्त घरों में निम्नलिखित कारणों से विघटन हो रहा है :-
(1) भाइयों की आमदनी में अंतर जो घर में कलह को जन्म देता है।
(2) बेटों और उनकी पत्नियों में पारिवारिक जिम्मेदारी निभाने की भावना में कमी।
(3) पाश्चात्य शैली के प्रभावस्वरूप युवकों मे व्यक्तिवाद का विकास।
(4) अर्थव्यवस्था में सेवाक्षेत्र का बढ़ता महत्त्व तथा बाहरी आमदनी के बढ़ते अवसर के कारण नाभिकीय परिवारों को वरीयता।

प्रकार्यात्मक परिवर्तन
इसकी तीन स्तरों पर पड़ताल की जा सकती है :
1। पति-पत्नी संबंध - पारंपरिक घरों में निर्णय लेने के काम में पत्नी, अपने पति के सहायक की भूमिका निभाती थी। परन्तु समकालीन घरों में पत्नी, अपने पति के बराबर ज्यादा सक्रिय भूमिका निभाती है। फलस्वरूप घर के कार्य एवं बाहर के कार्य की दृष्टि से पति-पत्नी एक - दूसरे के साथ सहयोग एवं समयोजन करने लगे हैं।
2। माता-पिता एवं बच्चों का संबंध - पारंपरिक परिवारों में शक्ति एवं अधिकार पूरी तरह से र् कत्ता के हाथ में होता था और उसे शिक्षा, व्यवसाय एवं बच्चों के विवाह के बारे में निर्णय लेने के लिए परिवार में असीमित अधिकार प्राप्त होते थे। समकालीन परिवारों में अब अधिकांशत: माता-पिता एवं उनके बच्चे सामूहिक रूप से मिल-जुल कर निर्णय करने लगे हैं।
3। सास-श्वसुर (ससुर) के साथ बहू का संबंध - इस संबंध में एक महत्त्वपूर्ण परिवर्तन आया है। शिक्षित बहू अपने ससुर के सामने पर्दा नहीं रखती। सास-बहू के संबंध में भी पहले की तुलना में अब कम कटुता है। सास अब शक्तिशाली पद नहीं रहा परन्तु वह ससुर की तरह एक सम्मानीय संबंधी अब भी है।

जीवन साथी चुनने के नियम

समाज के एक खास समूह की पहचान व पवित्रता कायम रखने के लिए हिन्दू स्मृतिकारों ने योग्य साथी चुनने या विवाह करने के लिए विस्तृत नियम तथा रीतियों की व्यवस्था दी है। ये नियम दो सिध्दांतों पर आधारित हैं, यथा अन्तर्विवाह के नियम तथा बहिर्विवाह के नियम।

अन्तर्विवाह - जीवन साथी चुनने के लिए अपनी जाति या उपजाति के अंतर्गत ही चुनाव करने की स्वतंत्रता है।
1। जातिय अंतर्विवाह : इस नियम के अंतर्गत एक व्यक्ति को अपनी जाति के अंतर्गत ही विवाह करने की छूट है। कोई व्यक्ति अपनी जाति के बाहर विवाह नहीं कर सकता। इस नियम को नहीं मानने वाले व्यक्ति को जाति पंचायत के द्वारा सामाजिक एवं आर्थिक रूप से कठोर दंड दिया जाता है। दंड के फलस्वरूप व्यक्ति के साथ जातिगत सहयोग और सुरक्षा के हर दरवाजे बंद कर दिए जाते हैं और उसे जाति से बहिष्कृत कर दिया जाता है।

2। उपजातिय अंतर्विवाह : प्रत्येक जाति अनेक उपजाति में विभक्त होती है जिनमें तुलनात्मक श्रेष्ठता को लेकर अंतर्विरोध होता है। ऐसे प्रत्येक समूह धीरे-धीरे अंतर्विवाही बन जाते है। जैसे ब्राह्मण जाति के अंतर्गत ही सारस्वत, गौड़, कान्यकुब्ज जैसी उपजातियाँ हैं जो अंतर्विवाही हैं।

बहिर्विवाह :
बहिर्विवाह के नियम के अनुसार हर व्यक्ति को अपने समूह के बाहर विवाह करना होता है। यद्यपि अंतर्विवाह एवं बहिर्विवाह के नियम प्रत्यक्ष रूप में विराधी दिखाई पड़ते हैं परन्तु दोनों नियम एक - दूसरे के पूरक है तथा दो स्तरों पर व्यवहारित होते हैं। हिंदू समाज में बहिर्विवाह के दो रूप पाये जाते हैं :-
1. सगोत्र बहिर्विवाह :
एक गोत्र से जुड़े व्यक्ति सगोत्रीय कहलाते हैं। गोत्र एक वंश समूह (क्लान) या परिवार समूह है, जिसके सदस्य आपस में विवाह करने से प्रतिबंञ्ति होते हैं। यह मान्यता है कि सभी सगोत्रीय एक ही पूर्वज की संतान होते हैं और उन सभी में रक्त संबंध होता है। सगोत्र बहिर्विवाह के नियम को हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 ने अप्रभावी बना दिया है।

2. सपिण्ड बहिर्विवाह :
सपिण्ड लोग एक दूसरे के रक्त संबंधी होते हैं। पिता की ओर से सात एवं माता की ओर से पांच पीढ़ियों तक जुड़े रक्त संबंध सपिण्ड कहलाते हैं। एक व्यक्ति अपने जीवन साथी का चुनाव सपिण्ड समूह के अंतर्गत नही कर सकता। हिंदू विवाह अधिनियम 1955 सामान्यत: सपिण्ड अन्तर्विवाह की इजाजत नहीं देता, परन्तु दक्षिण भारत में प्रचलित ममेरे-फुफेरे भाई बहनों को भी प्रथागत रूप में अपवाद स्वरूप स्वीकार करता है। सपिण्ड बहिर्विवाह का नियम सपिण्ड रिश्तेदारों में विवाह का निषेध करता है। जीवित व्यक्ति और उसके मरे हुए पुरखों के बीच संबंध को सपिण्ड संबंध कहते हैं। सपिण्ड का अर्थ है (1) वे जिनके शरीर का पिण्ड एक समान हैं तथा (2) वे जो मृत पूर्वज को एक साथ पिण्ड दान करते हैं। हिंदु स्मृतिकार सगोत्र की अलग-अलग परिभाषा देते हैं। हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 पिता की तरफ से पांच पीढ़ियों एवं माता की तरफ से तीन पीढ़ियों तक सपिण्ड संबंध से जुड़े व्यक्तियों के बीच वैवाहिक संबंध की स्वीकृति नहीं देता।

अंतर्जातीय विवाह :
दो भिन्न जातियों के स्त्री-पुरूष के बीच के वैवाहिक संबंध को अंतर्जातीय विवाह कहते हैं। उदाहरण के लिए, जब ब्राह्मण जाति की एक स्त्री बुनकर जाति के एक पुरूष से विवाह करती है तो इसे अंतर्जातीय विवाह कहते हैं। प्रथा के अनुसार अंतर्जातीय विवाह को स्वीकृति नहीं है, परंतु अब शहरी इलाकों में इस प्रथा का पूरी तरह से पालन नहीं किया जाता।

विवाह के अन्य नियम :
1. अनुलोम विवाह - अनुलोम उस विवाह को कहते है, जिसमें उच्च कुल का पुरूष निम्न कुल की स्त्री से विवाह करता है ।
2। प्रतिलोम विवाह - प्रतिलोम उस विवाह को कहते हैं, जिसमें उच्च कुल की स्त्री निम्न कुल के पुरूष से विवाह करती है। विशेष विवाह अध्िनियम 1954, हिन्दू विवाह अधिनियम 1955, हिन्दू विवाह कानून (संशोञ्न) अधिनियम 1976 इत्यादि के कारण अब अंतर्जातीय विवाह को कानूनी मान्यता प्राप्त हो गई है। फलस्वरूप प्रतिलोम नियम कमजोर हो गया है।

हिन्दू विवाह के प्रकार

हिन्दू धर्म ग्रंथों में विवाह के आठ प्रकार का वर्णन है जो निम्नलिखित हैं :

1। ब्राह्म विवाह : हिन्दुओं में यह आदर्श, सबसे लोकप्रिय और प्रतिष्ठित विवाह का रूप माना जाता है। इस विवाह के अंतर्गत कन्या का पिता अपनी कन्या के लिए विद्वता, सामर्थ्य एवं चरित्र की दृष्टि से सबसे सुयोग्य वर को विवाह के लिए आमंत्रित करता है। और उसके साथ पुत्री का कन्यादान करता है। इसे आजकल सामाजिक विवाह या कन्यादान विवाह भी कहा जाता है।

2। दैव विवाह : इस विवाह के अंतर्गत कन्या का पिता अपनी सुपुत्री को यज्ञ कराने वाले पुरोहित को देता था। यह प्राचीन काल में एक आदर्श विवाह माना जाता था। आजकल यह अप्रासंगिक हो गया है।

3। आर्ष विवाह : यह प्राचीन काल में सन्यासियों तथा ऋषियों में गृहस्थ बनने की इच्छा जागने पर विवाह की स्वीकृत पध्दति थी। ऋषि अपनी पसन्द की कन्या के पिता को गाय और बैल का एक जोड़ा भेंट करता था। यदि कन्या के पिता को यह रिश्ता मंजूर होता था तो वह यह भेंट स्वीकार कर लेता था और विवाह हो जाता था परंतु रिश्ता मंजूर नहीं होने पर यह भेंट सादर लौटा दी जाती थी।

4। प्रजापत्य विवाह : यह ब्राह्म विवाह का एक कम विस्तृत, संशोञ्ति रूप था। दोनों में मूल अंतर सपिण्ड बहिर्विवाह के नियम तक सीमित था। ब्राह्म विवाह का आदर्श पिता की तरफ से सात एवं माता की तरफ से पांच पीढ़ियों तक जुड़े लोगों से विवाह संबंध नहीं रखने का रहा है। जबकि प्रजापत्य विवाह पिता की तरफ से पांच एवं माता की तरफ से तीन पीढ़ियों के सपिण्डों में ही विवाह निषेध की बात करता है।

5। आसुर विवाह : यह विवाह का वह रूप है जिसमें ब्राह्म विवाह या कन्यादान के आदर्श के विपरीत कन्यामूल्य एवं अदला-बदली की इजाजत दी गई है। ब्राह्म विवाह में कन्यामूल्य लेना कन्या के पिता के लिए निषिध्द है। ब्राह्म विवाह में कन्या के भाई और वर की बहन का विवाह (अदला-बदली) भी निषिध्द होता है।

6। गंधर्व विवाह : यह आधुनिक प्रेम विवाह का पारंपरिक रूप था। इस विवाह की कुछ विशेष परिस्थितियों एवं विशेष वर्गों में स्वीकृति थी परन्तु परंपरा में इसे आदर्श विवाह नहीं माना जाता था।

7। राक्षस विवाह : यह विवाह आदिवासियों में लोकप्रिय हरण विवाह को हिन्दू विवाह में दी गई स्वीकृति है। प्राचीन काल में राजाओं और कबीलों ने युध्द में हारे राजा तथा सरदारों में मैत्री संबंध बनाने के उद्देश्य से उनकी पुत्रियों से विवाह करने की प्रथा चलायी थी। इस विवाह में स्त्री को जीत के प्रतीक के रूप में पत्नी बनाया जाता था। यह स्वीकृत था परंतु आदर्श नहीं माना जाता था।

8। पैशाच विवाह : यह विवाह का निकृष्टतम रूप माना गया है। यह ञेखे या जबरदस्ती से शीलहरण की गई लड़की के अधिकारों की रक्षा के लिए अंतिम विकल्प के रूप में स्वीकारा गया विवाह रूप माना गया है। इस विवाह से उत्पन्न संतान को वैध संतान के सारे अधिकार प्राप्त होते हैं।

संत शिरोमणि गुरु रविदास

संत रविदास की गणना केवल भारत में ही नहीं अपितु विश्व के महान संतों में की जाती है। जिन्हें संत शिरोमणि गुरु रविदास से नवाजा गया है। संत रविदास की वाणी के अनुवाद संसार की विभिन्न भाषाओं में पाए जाते हैं, जिसका मूल कारण यह है कि संत रविदास उस समाज से सम्बद्ध थे, जो उस समय बौद्धिकता और ज्ञान के नाम से पूर्णतः अछूता था।

समय जहाँ विविध प्रकार की समस्याओं को लेकर आता है वहीं समाधान भी अपने आगोश में छिपाए रहता है। परंतु महान व्यक्तित्व समय की परिधि को लाँघकर अपने बाद के हजारों वर्षों बाद तक प्रेरणा प्रदान करते रहते हैं। वे ऐसे कार्य की शुरुआत करते हैं जिनका मूल्य समय के क्रूर प्रहारों से कम नहीं हो सकता। ऐसे संत रविदासजी की जयंती, जो पूरे विश्व में मनाई जाती है।



आज दिवस लेऊँ बलिहारा,
मेरे घर आया प्रभु का प्यारा।

आँगन बंगला भवन भयो पावन,
प्रभुजन बैठे हरिजस गावन।

करूँ दंडवत चरण पखारूँ,
तन मन धन उन परि बारूँ।

कथा कहैं अरु अर्थ विचारैं,
आप तरैं औरन को तारैं।

कहिं रैदास मिलैं निज दास,
जनम जनम कै काँटे पांस।


ऐसे पावन और मानवता के उद्धारक सतगुरु रविदास का संदेश निःसंदेह दुनिया के लिए बहुत कल्याणकारी तथा उपयोगी है।

भारतीय रहस्यदर्शी मेहर बाबा

सूफी, वेदांत और रहस्यवादी दर्शन से प्रभावित मेहर बाबा एक रहस्यवादी सिद्ध पुरुष थे। कई वर्षों तक वे मौन साधना में रहे। मेहर बाबा के भक्त उन्हें परमेश्वर का अवतर मानते हैं।

25 फरवरी 1894 में मेहर बाबा का जन्म पूना में पारसी परिवार में हुआ। 31 जनवरी 1969 को मेहराबाद में उन्होंने देह छोड़ दी। उनका मूल नाम मेरवान एस। ईरानी था। वह एस. मुंदेगर ईरानी के दूसरे नंबर के पुत्र थे।

बाबा एक अच्छे कवि और वक्त थे तथा उन्हें कई भाषाओं का ज्ञान था। 19 वर्ष की आयु में उनकी मुलाकात रहस्यदर्शी महिला संत हजरत बाबाजान से हुई और उनका जीवन बदल गया। इसके बाद उन्होंने नागपुर के हजरत ताजुद्दीन बाबा, केदगाँव के नारायण महाराज, शिर्डी के साँई बाबा और साकोरी के उपासनी महाराज अर्थात पाँच महत्वपूर्ण हस्तियों को अपना गुरु माना।

मेहर मंदिर : उत्तर प्रदेश के हमीरपुर जिले में बाबा के भक्त परमेश्वरी दयाल पुकर ने 1964 ई। में मेहर मंदिर का निर्माण करवाया था। 18 नवम्बर 1970 ई. को मंदिर में अवतार मेहर बाबा की प्रतिमा स्थापित की गई थी। यहाँ पर प्रत्येक वर्ष 18 और 19 नवम्बर को मेहर प्रेम मेले का आयोजन किया जाता है। इसके अलावा भी मेहर बाबा के कई मंदिर है।

मेहराबाद आश्रम : हालाँकि मूलत: उनका विशालकाय आश्रम महाराष्ट्र के अहमदनगर के पास मेहराबाद में हैं जो मेहर बाबा के भक्तों की गतिविधियों का केंद्र माना जाता है। इसके पहले मुंबई में आश्रम था।

गजानन महाराज

समर्थ श्री गजानन महाराज का प्रगटोत्सव 5 फरवरी को मनाया जाता है। पृथ्वी पर समस्त जग का कल्याण करने के लिए समय-समय पर संतों के अवतार होते हैं और वे परोपकार में ही अपनी देह खपाते रहते हैं। ऐसे ही एक संत है- श्री गजानन महाराज शेगाँव वाले। उनका समाधि मंदिर शेगाँव में ही है।

गजानन महाराज दिगंबर वृत्ति के सिद्ध कोटि के साधु थे। जो भी मिले खा लेना, कहीं भी रह लेना, कहीं भी भ्रमण करना और मुख से हमेशा परमेश्वर का भजन करते रहना, ऐसी उनकी दिनचर्या थी।

भक्तों के संकट दूर करके परमेश्वर दर्शन करवाने के सैकड़ों उदाहरण उनके चरित्र में हैं। शेगाँव स्थित गजानन महाराज के मंदिर में हमेशा भक्‍तों की भीड़ लगी रहती है। शेगाँव का नाम महाराष्‍ट्र के प्रमुख तीर्थस्‍थानों में शामिल है।


महाराष्ट्र में बुलढाना जिले में सेंट्रल रेलवे के मुंबई-नागपुर मार्ग पर शेगाँव स्थित है। श्री गजानन का मंदिर बीचों-बीच स्थित है जिसके महाद्वार की खिड़की रात भर खुली रहती है। उनका समाधि मंदिर गुफा में स्थित है। मंदिर परिसर में वर्ष भर भजन व प्रवचन चलते रहते हैं। रोजाना सुबह होने वाली पूजा-अर्चना विधिवत चलती है। जिसमें काकड़ आरती और शयन आरती भी‍ शामिल हैं।

श्री गजानन महाराज का प्रकट दिवस माघ वद्यानवमी (फरवरी माह) में तथा इनकी पुण्यतिथि (ऋषि पंचमी के दिन) पर शेगाँव में प्रमुख उत्सव मनाया जाता है, मंदिर के चारों ओर रोशनी की जाती है। हाथी, घोड़ा, रथ, पालकी, दिंडी आदि के साथ जुलूस निकाला जाता है।

शहरी चमक-दमक से दूर शेगाँव में सादगी और महाराष्‍ट्र के ग्रामीण जीवन की सहजता की झलक मिलती है। जो लोग यहाँ आध्‍यात्मिक शांति की तलाश में आते हैं, उनके लिए यहाँ पर बहुत कुछ हैं। मंदिर परिसर में ही एक धार्मिक वाचनालय है। जो भक्‍तों के लिए खुला रहता है। पास में ही 'गजानन वाटिका' नामक सुंदर वाटिका है और एक प्राणी संग्रहालय भी हैं। बाहर से आने वाले भक्तों की सुविधा के लिए मंदिर परिसर में ही भव्य 'भक्त निवास' बना हुआ है, जहाँ कम दरों पर कमरे मिलते हैं। साथ ही महाप्रसादी का वितरण भी किया जाता है।

वृन्दावन की रासलीला

भगवान् श्रीकृष्ण की लीलाओं की मनोहारी प्रस्तुति अपने देश की प्राचीन एवं गौरवशाली परंपरा रही है, जिसकी प्रमुख रंग-स्थली वृन्दावन है। श्रावण के महीने में तो यहाँ रासलीला की निराली ही धूम रहती है। पुरानों में कहा गया है कि माया के आवरण से रहित जीव का ब्रहम के साथ विलास ही रास है। इसमें लौकिक काम नहीं है।

अतः यह साधारण स्त्री- पुरुष का नहीं, अपितु जीव और इश्वर का मिलन है।
रासलीला के मंचन की शुरुआत महाप्रभु वल्लभाचार्य जी की प्रेरणा से आज से लगभग पांच सौ वर्ष पूर्व भक्तिकाल में हुई थी। भक्तिकाल में जब मुसलमानों का शासन था तब महाप्रभु वल्लभाचार्य जी ने चौरासी कोस में स्थित समूचे ब्रज मंडल का भ्रमण कर उन-उन स्थानों को खोजा था, जहाँ-जहाँ भगवान् श्रीकृष्ण ने लीला की थी। श्रीमद्भागवत के प्रसंगों के आधार पर बरसाना के निकट करहला गाँव में रासलीला के दौरान भगवान् श्रीकृष्ण के स्वरूप को मोर पंखों का जो मुकुट धारण कराया था, वह आज भी करहला में सुरक्षित रखा हुआ है।

श्री नारायण भट्ट को रास मंडलों का संस्थापक माना जाता है। नारायण भट्ट जी ने संवत 1604 में बरसाना के भ्रमेशवर गिरी में से राधारानी का प्राकटय किया था। भट्ट जी नए कुल 28 रास मंडलों की स्थापना की थी। उसी समय वृन्दावन में श्रीहित हरिवंश जी, स्वामी श्री हरिदास जी एवं श्री हरिराम व्यास ने भी पांच रास्मंदलों की स्थापना की। नारायण भट्ट ने बरसाना में बूढी लीलाओं के मंचन की भी शुरुआत की। यह लीलाएं आज भी संत समाज के सहयोग से चिकसोंली के फत्ते स्वामी के वंशज बालकों के द्वारा बाबा चतुर्भुज दास पुजारी के निर्देशन में की जाती हैं। इस समय यह उत्तर प्रदेश की अत्यंत समृद्ध लोक नाट्यकला है। नृत्य, संगीत, नाटक और कविता इसके प्रमुख अंग है। समस्त नौ रस इसमें निहित है।

रासलीला के प्रसंगों को दिन ब दिन विकसित करने में संतों, कवियों और भक्तों आदि का विशेष योगदान रहा है। जयदेव, सूरदास, चतुर्भुज दास, स्वामी हरिदास, कुम्हन दास, नंदास, हरिराम व्यास एवं परमानंद आदि ने रासलीला को मजबूत धरातल प्रदान किया।

इस समय ब्रज में दो प्रकार की रास मंडलियाँ प्रमुख हैं - बायें मुकुटवाली जो कि निम्बार्की मंडली कहलाती है एवं दायें मुकुटवाली, जो कि वल्लभकुली मंडली कहलाती हैं। रासलीला के दो मुख्य भाग है 'रास' और 'लीला'। रास वह हैं जिसमें मंगलाचरण, आरती, गायन, वादन व नृत्य आदि होता है, जिसे 'नृत्य रास' या नृत्य रास' कहा जाता है। लीला में भगवान् श्रीकृष्ण की सुमधुर रसमयी, चंचल व गंभीर निकुंज लीलाओं एवं पौराणिक कथाओं की लीलाओं व भक्त चरित्रों आदि का अभिनयात्मक प्रदर्शक गात्मक और पात्मक शैली में होता है।

रासलीला में 'राधा' व 'कृष्ण' के स्वरूपों को साक्षात् भगवान् मानकर पूजा जाता है। दर्शक उनकी आरती उतारते हैं।
रासलीला की एक प्रमुख लीला महारास। इसके जनक स्वयं भगवान् श्रीकृष्ण थे। उन्होंने इस लीला को शरद पूर्णिमा की रात्री में वृन्दावन के यमुना तट स्थित वंशीवट पर सोलह हजार एक सुन आठ गोपिकाओं के साथ किया था। सर्वप्रथम उन्होनें अपनी लोक विमोहिनी बंसी बजा कर यमुना के किनारे गोपिकाओं को एकत्रित किया, फिर योग माया के बल पर प्रत्येक गोपी के साथ एक- एक कृष्ण प्रकट किये। तत्पश्चात महारास लीला की। इस लीला में गोपियाँ अनंत थयें, लेकिन उनमएं से प्रत्येक को यह अनुभव हो रहा था कि श्रीकृष्ण के वाल उन्हीं के साथ हैं। भगवान् शिव भी गोपी का रूप धारण कर इस अद्वित्य लीलो को देखने के लिए आये थे। तभी से भगवान् शिव को गोपेश्वर महादेव भी कहा जाता है। अन्य देवता भी इस लीलो को देखने के लिए अपने विमानों में बैठकर आकाश पर छाए रहे थे। यह लीला आज भी प्राय: शरद पूर्णिमा पर ही की जाती है। चूंकि इस लीला मएं अनेक श्रीक्रिश्नों की आवश्यकता पड़ती है, इसलिए इसमें अनेक रासमं डालियों के ठाकुर ( भगवान् श्रीकृष्ण के स्वरुप) भाग लेते हैं। यह लीला रात्री गए प्रारंभ होकर प्रातः लगभग दो-तीन बजे तक चलती है।

महारास लीला के अतिरिक्त ' अष्ट्याम लीला' भी रासलीला की एक महत्वपूर्ण लीला मानी जाती है। तीन घंटे का एक 'याम' होने से दिन और रात के चौबीस घंटों में कुल आठ याम होते हैं, उन्हें ही अष्ट्याम कहा गया है। इन आठों यामों में ठाकुर जी (भगवान् श्रीकृष्ण) ने ब्रज में राधारानी के साथ निकुंज बिहारी के रूप में एवं नन्द बाबा के यहाँ बलराम जी के साथ जो-जो लीलाएं की थीं, उनका अभिनयात्मक प्रदर्शन किया जाता है।

रामायण - उत्तरकाण्ड - राजा इल की कथा

जब लक्ष्मण ने अश्‍वमेघ यज्ञ के विशेष आग्रह किया तो श्री रामचन्द्र जी अत्यन्त प्रसन्न हुये और बोले, "हे सौम्य! इस विषय में मैं तुम्हें राजा इल की कथा सुनाता हूँ। प्रजापति कर्दम के पुत्र इल वाह्लिक देश के राजा थे। एक समय शिकार खेलते हुये वे उस स्थान पर जा पहुँचे जहाँ स्वामी कार्तिकेय का जन्म हुआ था और भगवान शंकर अपने सेवकों के साथ पार्वती का मनोरंजन करते थे। उस प्रदेश में शिव की माया से सभी प्राणी स्त्री वर्ग के हो गये थे। नर पशु-पक्षी या मनुष्य कोई भी दिखाई नहीं देता था। राजा इल ने भी सैनिकों सहित स्वयं को वहाँ स्त्री रूप में परिणित होते देखा। इससे भयभीत होकर वे शंकर जी के शरणागत हुये और उनसे पुरुषत्व प्रदान करने की प्रार्थना करने लगे।

"जब भगवान शंकर ने उनकी प्रार्थना स्वीकार नहीं की तो उन्होंने व्याकुल होकर, गिड़गिड़ा कर उमा से प्रार्थना की। इससे प्रसन्न होकर उमा ने कहा कि मैं भगवान शंकर की केवल अर्द्धांगिनी हूँ। इलिये मैं तुम्हें तुम्हारे जीवन के केवल आधे काल के लिये पुरुष बना सकती हूँ। बोलो, तुम अपनी आयु के पूर्वार्द्ध के लिये पुरुषत्व चाहते हो या उत्तरार्द्ध के लिये? इल कुछ क्षण सोचकर बोले कि देवि! ऐसा कर दीजिये कि मैं एक मास पुरुष और एक मास स्त्री रहा करूँ। पार्वती जी ने 'तथास्तु' कहकर उनकी इच्छा पूरी कर दी। इस वरदान के फलस्वरूप इल प्रथम मास में त्रिभुवन सुन्दरी नारी बन गये तथा इल से इला कहलाने लगे। इल उक्‍त क्षेत्र से निकलकर उस सरोवर पर पहुँचे जहाँ सोमपुत्र बुध तपस्या कर रहे थे। इला पर द‍ृष्टि पड़ते ही बुध उस पर आसक्‍त हो गये एवं उसके साथ रमण करने लगे। उन्होंने राजा के साथ आये स्त्रीरूपी सैनिकों का वृतान्त जानकर उन्हें किंपुरुषी (किन्नरी) होकर पर्वत के किनारे रहने का निर्देश दिया। उन्होंने आग्रह करके इल को एक वर्ष के लिये वहीं रोक लिया।

"एक मास पश्‍चात् इला ने इल के रूप में पुरुषत्व प्राप्त किया। अगले मास वे फिर नारी बन गये। इसी प्रकार यह क्रम चलता रहा और नवें मास में इला ने पुरुरवा को जन्म दिया। अन्त में इल को इस रूप परिवर्तन से मुक्‍ति दिलाने के लिये बुध ने महात्माओं से विचार विमर्श करके शिव जी को विशेष प्रिय लगने वाला अश्‍वमेघ यज्ञ कराया। इससे प्रसन्न होकर शिव जी ने राजा इल को स्थाई रूप से पौरुष प्रदान किया।" श्री रामचन्द्र जी बोले, "हे महाबाहु! वास्तव में अश्‍वमेघ यज्ञ अमित प्रभाव वाला है।"

'सेक्स किया करो मियां, दिल सेहतमंद रहता है'

तो सेक्स करने के लिए पुरुषों को किसी वजह की जरूरत कम ही पड़ती है। लेकिन अगर कभी जरूरत पड़े भी, तो एक बड़ी वजह है दिल की सेहत। कहा जा रहा है कि लव मेकिंग पुरुषों के दिल के लिए बहुत अच्छा होता है। एक रिसर्च बताता है कि जो पुरुष हफ्ते में कम से कम दो बार सेक्स करते हैं, वे दिल की बीमारी के खतरे से लगभग बाहर होते हैं।

यह रिसर्च कहता है कि जो पुरुष नियमित तौर पर सेक्स करते हैं, उनके दिल की जानलेवा बीमारियों से बचे रहने के चांस 45 फीसदी ज्यादा होते हैं। यह रिसर्च 1000 पुरुषों पर की गई स्टडी के बाद सामने आई है। इसके मुताबिक ऐसा लगता है कि सेक्स पुरुषों के दिल के लिए सुरक्षात्मक प्रभाव पैदा करता है। हालांकि इसका महिलाओं पर क्या असर होता है, इसके बारे में कुछ नहीं कहा गया है। इस अध्ययन के आधार पर अमेरिकी रिसर्चर्स ने डॉक्टरों से कहा है कि वे पुरुषों के दिल के खतरों की जांच करते वक्त उनकी सेक्शुअल लाइफ पर भी ध्यान दें।

रिसर्चर्स ने कहा है कि लव मेकिंग के ये प्रभाव शारीरिक और भावुक दोनों वजहों से हो सकते हैं। अमेरिकन जर्नल ऑफ कॉर्डियॉलजी को इन रिसर्चर्स ने बताया कि जिन पुरुषों में सेक्स की इच्छा लगातार बनी रहती है और जो नियमित तौर पर सेक्स करते हैं, वे ज्यादा सेहतमंद होते हैं। लेकिन सेक्स शारीरिक क्रिया भी है और इस क्रिया का यही हिस्सा दिल की सेहत को संभाल कर रखता है।

इतना ही नहीं, वैज्ञानिक इस नतीजे पर भी पहुंचे हैं कि जो पुरुष सेक्स में नियमित होते हैं, वे अंतरंग संबंधों में ज्यादा सपोर्टिव होते हैं।

मैसाचुसेट्स के न्यू इंग्लैंड रिसर्च इंस्टिट्यूट के वैज्ञानिकों ने 40 से 70 साल के बीच के पुरुषों की सेक्शुअल ऐक्टिविटी के अध्ययन में 16 साल बिताए हैं। इसके लिए हर वॉलन्टियर पुरुष से अलग-अलग समय पर उनकी सेक्शुअल ऐक्टिविटी से जुड़े सवाल पूछे गए। इसके बाद उनके दिल की जांच की गई। इसमें उम्र, वजन, ब्लड प्रेशर और कॉलेस्ट्रॉल लेवल जैसी बातों का भी ध्यान रखा गया।

हालांकि सेक्स को बहुत पहले से शारीरिक और मानसिक सेहत के लिए अच्छा बताया जाता रहा है, लेकिन अब तक इसके वैज्ञानिक प्रमाण उपलब्ध नहीं थे।

स्त्री-पुरुष रोगों की दवाएँ

आयुर्वेदिक दवाओं की जानकारी में हम अभी तक विभिन्न रोगों की दवाएँ बता चुके हैं। इसी कड़ी के अंतर्गत स्त्री संबंधी तथा पुरुष संबंधी रोगों में उपयोगी दवाओं की जानकारी दे रहे हैं।

स्त्री रोगों की दवाएँ
बंध्यत्व : फल घृत, वंग भस्म, शुद्ध शिलाजीत, अशोकारिष्ट।

प्रदर (लाल, पीला, सफेद, पानी जाना) : अशोकारिष्ट, फेमीकेयर सीरप, प्रदरहर वटी, पत्रांगासव, लोध्रासव, प्रदरांतक लौह, पुष्पानुग चूर्ण।

रक्त प्रदर : रक्त स्तम्भक, कामदुधा, रस मौ।यु, कहरवा पिष्टी, बोलबद्ध रस, प्रवाल पिष्टी, अशोकारिष्ट, लोध्रासव, पुष्पानुग चूर्ण, दुग्ध पाषण भस्म।

कष्टार्तव (मासिक धर्म के समय दर्द) पेडू का दर्द : ऋतुरूजाहर, रजः प्रवर्तनी वटी, अशोकारिष्ट, लोध्रासव, कुमारी आसव, पुष्पावरोधग्न चूर्ण।

गर्भवती स्त्रियों के लिए उपयोगी : फल घृत, बादाम तेल, मधुमालिनी वसंत, दशमूराशिष्ट पाल रस, लवंगादि चूर्ण।

प्रसव के पश्चात उपयोगी : दशमूलारिष्ट, सुपारी पाक, जीरकाद्यरिष्ट दशमूल काढ़ा।

पुरुष रोगों की दवाएँ
शुक्रदोष, धातुक्षीणता, नपुंसकता : सिद्ध मकरध्वज, पुष्पधन्वा रस, त्रिवंग भस्म, बंग भस्म, स्वर्णराज बंगेश्वर, शतावरी घृत, अश्वगंधारिष्ट, शतावरी चूर्ण, अश्वगंधादि चूर्ण।

स्वप्न दोष (सोते में धातु जाना आदि) : चन्द्रप्रभा वटी, स्वप्न, प्रमेहरी, त्रिबंग भस्म, शुद्ध शिलाजीत, अश्वगंधारिष्ट। साथ में पेट साफ रखने हेतु स्वादिष्ट विरेचन चूर्ण लेना चाहिए।

प्रोस्टेट ग्रंथि बढ़ना (बार-बार पेशाब जाना व तकलीफ से थोड़ा-थोड़ा होना) : चन्द्रप्रभा वटी, गोक्षुरादि गूगल, शुद्ध शिलाजीत।

धातु पौष्टिक व काम शक्ति वर्द्धक : कामिनी विद्रावणरस, सिद्ध मकरध्वज, शक्रवल्लभ रस, पुष्पधन्वा रस, बंगेश्वर रस, मूसली पाक, दशमूलराष्टि, गोक्षुरादि चूर्ण, अश्वगंधादि चूर्ण।

यहाँ भी मिल सकती है नौकरी

केस 1- गायिका आकांक्षा जाचक ने अपनी ऑरकुट प्रोफाइल पर अपने रिकॉर्ड, गाने के उद्देश्य, उपलब्धियों सहित कुछ गीत भी डाउनलोड कर रखे हैं। इतना ही नहीं, किसी खास अवसर पर वे अपनी फ्रेंड लिस्ट में शामिल लोगों को स्क्रेप में भी अपने द्वारा गाया गीत ही भेजती हैं।

केस 2- सॉफ्टवेयर इंजीनियर अनुराग ने अपनी ऑरकुट प्रोफाइल पर सभी प्रोजेक्ट्स की डिटेल दे रखी है। पुरानी कंपनी में जहाँ वे काम कर चुके हैं, उसके साथ ही वर्तमान कंपनी की डिटेल सहित खुद के पद, जॉब प्रोफाइल आदि के बारे में भी दर्शा रखा है।

केस 3- मीडिया प्रोफेशनल अभिनव ने भी अपनी ऑरकुट प्रोफाइल में अपने कार्यक्षेत्र और बीट्‍स के बारे में निर्धारित तरीके से बताया है। इसी के साथ उन्होंने अपनी एक्सक्लूसिव स्टोरी फोटो के साथ यहाँ लोड कर रखी है।

एचआर हेड कहते हैं सोशल नेटवर्किंग साइट्स से अच्छे उम्मीदवारों की हाइरिंग करना काफी पुराना फंडा है। यह बात अलग है कि यह लाइमलाइट में अब आया है। वे बताते हैं हेड हंटर्स फेसबुक, ऑरकुट या लिंक्डइन जैसी सोशल नेटवर्किंग साइट्स अचानक से विजिट करते हैं।

यहाँ वे प्रोफाइल में दी गई जानकारियों के जरिए जॉब सीकर्स (जॉब लेने वाले) को तलाशते हैं। उनकी प्रोफाइल को आधार बनाकर वे कम्युनिटी के ऑनर से कॉन्टेक्ट करते हैं और निर्धारित व्यक्ति के बारे में जानकारियाँ लेते हैं। उन्होंने कहा, इसलिए कोई फ्रेशर हो या अनुभवी व्यक्ति अपनी प्रोफाइल में जानकारियों को अच्छे से सजाकर जॉब प्रोफाइडर को आकर्षित कर सकते हैं। उदाहरण के लिए मीडिया संबंधित कोर्स कर चुके फ्रेशर हाल ही में स्वयं द्वारा पूरा किया गया प्रोजेक्ट अपलोड कर सकते हैं। वे अपनी प्रोफाइल पर लिंक भी क्रिएट कर सकते हैं।

एक अन्य एचआर मैनेजर कहती हैं, सोशल नेटवर्किंग साइट्स के जरिए किसी व्यक्ति की स्कील्स के बारे में पता चलता है और कंपनी की कॉस्ट में कट भी हो जाता है। वे कहती हैं हाँ लेकिन यह ध्यान रखने योग्य बात है कि ऑरकुट जैसी सोशल नेटवर्किंग साइट से शॉर्टलिस्ट होने के बाद अपने रिज्यूम को अच्छे-से तैयार करें।

जब भी इंटरव्यू के लिए जाएँ, अपने सीवी में किसी भी झूठी बात का समावेश न करें, क्योंकि आपके सीवी को आपकी ऑरकुट प्रोफाइल से वेरीफाई भी किया जा सकता है। इसके अलावा स्क्रेपबुक को चेक करके ब्रेकग्राउंड चेकिंग भी की जा सकती है।इंदौर। इन तीन केसेस के जरिए हम बताना चाह रहे हैं कि सोशल नेटवर्किंग साइट केवल चैटिंग, दोस्तों से कनेक्ट रहने और एंटरटेनमेंट के लिए ही नहीं है, बल्कि इसके जरिए अब कंपनियाँ व जॉब प्रोफाइडर अपने-अपने श्रेत्र के बेहतर कर्मचारियों को भी ढूँढ़ रहे हैं यानी अब क्लासीफाइड्स को भूल जाइए...।

अब अदद उम्मीदवार ढूँढने वाले लोग सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर सही उम्मीदवार का चयन करने लगे हैं। ऐसे में हो सकता है आपकी ऑरकुट या लिंक्डइन प्रोफाइल इनका अगला डेस्टिनेशन हो।

05 फ़रवरी 2010

जैन धर्मग्रंथ का संक्षिप्त परिचय

जैन धर्म ग्रंथ पर आधारित धर्म नहीं है। भगवान महावीर ने सिर्फ प्रवचन ही दिए। उन्होंने कोई ग्रंथ नहीं रचा, लेकिन बाद में उनके गणधरों ने, प्रमुख शिष्यों ने उनके अमृत वचन और प्रवचनों का संग्रह कर लिया। यह संग्रह मूलत: प्राकृत भाषा में है, विशेष रूप से मागधी में।

भगवान महावीर से पूर्व के जैन धार्मिक साहित्य को महावीर के शिष्य गौतम ने संकलित किया था जिसे 'पूर्व' माना जाता है। इस तरह चौदह पूर्वों का उल्लेख मिलता है। जैन धर्म के सबसे पुराने आगम ग्रंथ 46 माने जाते हैं। इनका वर्गीकरण इस प्रकार किया गया है। समस्त आगम ग्रंथो को चार भागो मैं बाँटा गया है:- 1। प्रथमानुयोग 2. करनानुयोग 3. चरर्नानुयोग 4. द्रव्यानुयोग।


12 अंगग्रंथ :- 1। आचार, 2. सूत्रकृत, 3. स्थान, 4. समवाय 5. भगवती, 6. ज्ञाता धर्मकथा, 7. उपासकदशा, 8. अन्तकृतदशा, 9. अनुत्तर उपपातिकदशा, 10. प्रश्न-व्याकरण, 11. विपाक और 12. दृष्टिवाद। इनमें 11 अंग तो मिलते हैं, बारहवाँ दृष्टिवाद अंग नहीं मिलता।
12 उपांगग्रंथ :- 1। औपपातिक, 2. राजप्रश्नीय, 3. जीवाभिगम, 4. प्रज्ञापना, 5. जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति 6. चंद्र प्रज्ञप्ति, 7. सूर्य प्रज्ञप्ति, 8. निरयावली या कल्पिक, 9. कल्पावतसिका, 10. पुष्पिका, 11. पुष्पचूड़ा और 12. वृष्णिदशा।

10 प्रकीर्णग्रंथ :- 1। चतुःशरण, 2. संस्तार, 3. आतुर प्रत्याख्यान, 4. भक्तपरिज्ञा, 5. तण्डुल वैतालिक, 6. चंदाविथ्यय, 7. देवेन्द्रस्तव, 8. गणितविद्या, 9. महाप्रत्याख्यान 10. वीरस्तव।
6 छेदग्रंथ :- 1। निशीथ, 2. महानिशीथ, 3. व्यवहार, 4. दशशतस्कंध, 5. बृहत्कल्प और 6. पञ्चकल्प।

4 मूलसूत्र :- 1। उत्तराध्ययन, 2. आवश्यक, 3. दशवैकालिक और 4. पिण्डनिर्य्युक्ति।

2 स्वतंत्र ग्रंथ :- 1। अनुयोग द्वार 2. नन्दी द्वार।

जैन पुराणों का परिचय : जैन परम्परा में 63 शलाका-महापुरुष माने गए हैं। पुराणों में इनकी कथाएँ तथा धर्म का वर्णन आदि है। प्राकृत, संस्कृत, अपभ्रंश तथा अन्य देशी भाषाओं में अनेक पुराणों की रचना हुई है। दोनों सम्प्रदायों का पुराण-साहित्य विपुल परिमाण में उपलब्ध है। इनमें भारतीय इतिहास की महत्वपूर्ण सामग्री मिलती है।

मुख्य पुराण हैं:- जिनसेन का 'आदिपुराण' और जिनसेन (द्वि।) का 'अरिष्टनेमि' (हरिवंश) पुराण, रविषेण का 'पद्मपुराण' और गुणभद्र का 'उत्तरपुराण'। प्राकृत और अपभ्रंश भाषाओं में भी ये पुराण उपलब्ध हैं। भारत की संस्कृति, परम्परा, दार्शनिक विचार, भाषा, शैली आदि की दृष्टि से ये पुराण बहुत महत्वपूर्ण हैं।

अन्य ग्रंथ:- षट्खण्डागम, धवला टीका, महाधवला टीका, कसायपाहुड, जयधवला टीका, समयसार, योगसार प्रवचनसार, पञ्चास्तिकायसार, बारसाणुवेक्खा, आप्तमीमांसा, अष्टशती टीका, अष्टसहस्री टीका, रत्नकरण्ड श्रावकाचार, तत्त्वार्थसूत्र, तत्त्वार्थराजवार्तिक टीका, तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक टीका, समाधितन्त्र, इष्टोपदेश, भगवती आराधना, मूलाचार, गोम्मटसार, द्रव्यसङ्ग्रह, अकलङ्कग्रन्थत्रयी, लघीयस्त्रयी, न्यायकुमुदचन्द्र टीका, प्रमाणसङ्ग्रह, न्यायविनिश्चयविवरण, सिद्धिविनिश्चयविवरण, परीक्षामुख, प्रमेयकमलमार्तण्ड टीका, पुरुषार्थसिद्ध्युपाय भद्रबाहु संहिता आदि।

इन्हें भी देखें :-

जयवीयराय सूत्र
स्तवन
चैत्य-वंदन की शुरुआत
आचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज
क्षमावाणी का महापर्व...
आनंद के आंतरिक स्त्रोतों की खोज यात्रा
जैन सिद्ध क्षेत्र
आराधना स्तोत्र

रामायण – उत्तरकाण्ड - अश्‍वमेघ यज्ञ का अनुष्ठान

सब भाइयों के आग्रह को मानकर रामचन्द्र जी ने वशिष्ठ, वामदेव, जाबालि, काश्यप आदि ऋषियों को बुलाकर परामर्श किया। उनकी स्वीकृति मिल जाने पर वानरराज सुग्रीव को सन्देश भेजा गया कि वे विशाल वानर सेना के साथ यज्ञोत्सव में भाग लेने के लिये आवें। फिर विभीषण सहित अन्य राज-महाराजाओं को भी इसी प्रकार के सन्देश और निमन्त्रण भेजे गये। संसार भर के ऋषि-महर्षियों को भी सपरिवार आमन्त्रित किया गया। कुशल कलाकारों द्वारा नैमिषारण्य में गोमती तट पर विशाल एवं कलापूर्ण यज्ञ मण्डप बनाने की व्यवस्था की गई। विशाल हवन सामग्री के साथ आगन्तुकों के भोजन, निवास आदि के लिये बहुत बड़े पैमाने पर प्रबन्ध किया गया। नैमिषारण्य में दूर-दूर तक बड़े-बड़े बाजार लगवाये गये। सीता की सुवर्णमय प्रतिमा बनवाई गई। लक्ष्मण को एक विशाल सेना और शुभ लक्षणों से सम्पन्न कृष्ण वर्ण अश्‍व के साथ विश्‍व भ्रमण के लिये भेजा गया।

देश-देश के राजाओं ने श्रीराम को अद्‍भुत उपहार भेंट करके अपने पूर्ण सहयोग का आश्‍वासन दिया। आगत याचकों को मनचाही वस्तुएँ संकेतमात्र से ही दी जा रही थीं। उस यज्ञ को देखकर ऋषि-मुनियों का कहना था कि ऐसा यज्ञ पहले कभी नहीं हुआ। यह यज्ञ एक वर्ष से भी अधिक समय तक चलता रहा। इस यज्ञ में सम्मिलित होने के लिये महर्षि वाल्मीकि भी अपने शिष्यों सहित पधारे। जब उनके निवास की समुचित व्यवस्था हो गई तो उन्होंने अपनरे दो शिष्यों लव और कुश को आज्ञा दी कि वे दोनों भाई नगर में सर्वत्र घूमकर रामायण काव्य का गान करें। उनसे यह भी कहा कि जब तुमसे कोई पूछे कि तुम किसके पुत्र हो तो तुम केवल इतना कहना कि हम ऋषि वाल्मीकि के शिष्य हैं। यह आदेश पाकर सीता के दोनों पुत्र रामायण का सस्वर गान करने के लिये चल पड़े।

लव-कुश द्वारा रामायण गान
जब-लव कुश अपने रामायण गान से पुरवासियों एवं आगन्तुकों का मन मोहने लगे तब एक दिन श्रीराम ने उन दोनों बालकों को अपनी राजसभा में बुलाया। उस समय राजसभा में श्रेष्ठ नैयायिक, दर्शन एवं कल्पसूत्र के विद्वान, संगीत तथा छन्द कला मर्मज्ञ, विभिन्न शास्त्रों के ज्ञाता, ब्रह्मवेत्ता आदि मनीषि विद्यमान थे। लव-कुश को देखकर सबको ऐसा प्रतीत होता था मानो दोनों श्रीराम के ही प्रतिरूप हैं। यदि इनके सिर पर जटाजूट और शरीर पर वल्कल न होते तो इनमें और श्रीराम में कोई अन्तर दिखाई न देता। दोनों भाइयों ने अपराह्न तक प्रारम्भिक बीस सर्गों का गान किया और उस दिन का कार्यक्रम समाप्त किया। पाठ समाप्त होने पर श्रीराम ने भरत को आदेश दिया कि दोनों भाइयों को अट्ठारह हजार स्वर्ण मुद्राएँ दी जायें, किन्तु लव-कुश ने उसे लेने से इन्कार कर दिया और कहा कि हम वनवासी हैं, हमें धन की क्या आवश्यकता है। इससे श्रीराम सहित सब श्रोताओं को भारी आश्‍चर्य हुआ। उन्होंने पूछा, "यह काव्य किसने लिखा है और इसमें कितने श्‍लोक हैं?"

यह सुनकर उन मुनिकुमारों ने बताया, "महर्षि वाल्मीकि ने इस महाकाव्य की रचना की है। इसमें चौबीस हजार श्‍लोक और एक सौ उपाख्यान हैं। इसमें कुल पाँच सर्ग और छः काण्ड हैं। इसके अतिरिक्‍त उत्तरकाण्ड इसका सातवाँ काण्ड है। आपका चरित्र ही इस महाकाव्य का विषय है।" यह सुनकर रघुनाथ जी ने यज्ञ समाप्त होने के पश्‍चात् सम्पूर्ण महाकाव्य सुनने की इच्छा प्रकट की। इस काव्य-कथा को सुनकर उन्हें पता चला कि कुश और लव सीता के ही सुपुत्र हैं।

उपवास : सर्वश्रेष्ठ औषधि

दुनिया के सभी धर्मों में उपवास का महत्व है। खासतौर पर बीमार होने के बाद उपवास को सबसे अच्छा इलाज माना गया है। आयुर्वेद में बीमारी को दूर करने के लिए शरीर के विषैले तत्वों को दूर करने की बात कही जाती है और उपवास करने से इन्हें शरीर से निकाला जा सकता है। इसीलिए 'लंघन्‌म सर्वोत्तम औषधं' यानी उपवास को सर्वश्रेष्ठ औषधि माना जाता है।

संसार के सभी धर्मों में उपवास को ईश्वर के निकट पहुँचने का एक सबसे कारगर उपाय माना गया है। धार्मिक मान्यताओं के परे यह निर्विवाद सत्य है कि उपवास करने से शरीर स्वस्थ रहता है। संभवतः इसके महत्व को समझते हुए सभी धर्मों के प्रणेताओं ने इसे धार्मिक रीति-रिवाजों से जोड़ दिया है ताकि लोग उपवास के अनुशासन में बँधे रहें।

आयुर्वेद समेत दूसरी सभी चिकित्सा पद्धतियों में उपवास यानी पेट को खाली रखने की प्रथा रही है। हालाँकि हर बीमारी का इलाज भी उपवास नहीं लेकिन यह अधिकांश समस्याओं में कारगर रहता है। दरअसल उपवास का धार्मिक अर्थ न ग्रहण करते हुए इसका चिकित्सकीय रूप समझना चाहिए। पेट को खाली रखने का ही अर्थ उपवास है।

यह आर्थराइटिस, अस्थमा, उच्च रक्तचाप, हमेशा बनी रहने वाली थकान, कोलाइटिस, स्पास्टिक कोलन, इरिटेबल बॉवेल, लकवे के कई प्रकारों के साथ-साथ न्यूराल्जिया, न्यूरोसिस और कई तरह की मानसिक बीमारियों में फायदेमंद साबित होता है। माना तो यहाँ तक जाता है कि इससे कैंसर की बीमारी तक ठीक हो सकती है क्योंकि उपवास से ट्यूमर के टुकड़े तक हो जाते हैं। यह नहीं भूलना चाहिए कि लीवर के कैंसर में उपवास कारगर नहीं होता।

उपवास के अनगिनत फायदे हैं। उपवास जितना लंबा होगा शरीर की ऊर्जा उतनी ही अधिक बढ़ेगी। उपवास करने वाले की श्वासोच्छवास विकार रहित होकर गहरा और बाधा रहित हो जाता है। इससे स्वाद ग्रहण करने वाली ग्रंथियाँ पुनः सक्रिय होकर काम करने लगती हैं। उपवास आपके आत्मविश्वास को इतना बढ़ा सकता है ताकि आप अपने शरीर और जीवन और क्षुधा पर अधिक नियंत्रण हासिल कर सकें।

हमारा शरीर एक स्वनियंत्रित एवं खुद को ठीक करने वाली प्रजाति का हिस्सा है। उपवास के जरिए यह अपने मेटॉबॉलिज्म को सामान्य स्तर पर ले आता हैतथा ऊतकों की प्राणवायु प्रणाली को पुनर्जीवित कर सकता है।

उपवास आपके शरीर के विषैले तत्वों को बाहर निकाल फेंकता है। शरीर में जमा विषैले तत्व श्लेष्मा, थूक, पसीना, उल्टियाँ, कभी-कभी दस्त के रूप में बाहर निकलते हैं। यही वजह है कि जो लोग लंबे उपवास (3 दिन या 7 दिन) करते हैं, उनकी साँसों से दूसरे दिन ही बास आने लगती है।

कई लोगों को उल्टियाँ आने लगती हैं, ये सब विषैले तत्वों के बाहर निकलने के लक्षण हैं। फैट सेल्स, आर्टरी में जमा वसा के थक्के, श्लेष्मा तथा यहाँ तक कि बरसों से जमा रखी हुई चिंताएँ औरभावनाएँ भी बाहर निकल आती हैं परन्तु उपवास का अर्थ भूखे मरना नहीं होता। वस्तुतः उपवास शरीर रूपी मशीन के पाचन तंत्र को आराम देना व उसकी ओवरहालिंग जैसा होता है पर अति सर्वज्ञ वर्जते के अनुसार अतिशय व अवैज्ञानिक तरीके से किए गए उपवास के खराब परिणाम भी सामने आ सकते हैं।

उपवास कैसे करें
उपवास करने का सबसे सुरक्षित तरीका है एक दिन के उपवास से शुरुआत करना। बाद में इसे हफ्ते में एक दिन नियमित रूप से किया जा सकता है। आप शुरुआत में अन्न का त्याग कर सकते हैं तथा इन पदार्थों पर निर्भर रहते हुए दिन निकाल सकते हैं।

* ताजी सब्जियों का रस * फल * पानी * बिना पकी कच्ची सब्जियाँ * ताजे फलों का रस।

इनसे बचें :
पकी हुई सब्जियाँ, अन्न या अन्न के बने दूसरे पदार्थ, रोटियाँ, ब्रेड, बिस्कुट, पास्ता न खाएँ। इसके अलावा चाय, दूध, दही, आइसक्रीम, मक्खन, अंडे, मांस, फास्ट फूड, जंक फूड, तैयार किया हुआ भोजन, आलू की चिप्स, साबुदाने की खिचड़ी, मूँगफली के दाने या फरियाली मिक्चर भी आपके उपवास के मकसद को नष्ट कर सकते हैं।

फायदे
* मानसिक स्पष्टता में वृद्धि होती है तथा मस्तिष्क का धुंधलका छँट जाता है।
* तत्काल एवं सुरक्षित तरीके से वजन घटता है।
* तंत्रिका तंत्र में संतुलन कायम होता है।
* ऊर्जा का स्तर बढ़ने से संवेदी क्षमताओं में वृद्धि होती है।
* शरीर के सभी अवयवों में ऊर्जा का संचार होता है।
* सेल्युलर बायोकेमेस्ट्री में संतुलन कायम होता है।
* त्वचा संवेदनशील, नर्म और रेशमी हो जाती है।
* आपके हाथ-पैरों का संचालन सरलता से होने लगता है।
* पाचन तंत्र ठीक होकर सुचारु रूप से काम करने लगता है।
*आंतों में भोजन से रस सोखने की क्रिया में वृद्धि होती है।

सावधानियाँ
उपवास करने वालों को यह बात ध्यान में रखना चाहिए कि यदि वे किसी असाध्य बीमारी से पीड़ित हैं या किसी बीमारी के लंबे इलाज को ले रहे हैं तो आपको अपने चिकित्सक की सलाह लिए बिना उपवास नहीं करना चाहिए। डायबिटीज के रोगियों व गर्भवती महिलाओं व स्तनपान करा रही माताओं को भी उपवास नहीं करना चाहिए। उपवास अपनी शारीरिक सामर्थ्य से अधिक नहीं करना चाहिए।

04 फ़रवरी 2010

वाइल्ड सेक्स से बढ़ जाते हैं प्रेग्नंसी के चांस

प्रेग्नंसी के लिए कपल्स क्या-क्या नहीं करते। डॉक्टरों के चक्कर काटने से लेकर वूडू तक सब किया जाता है। लेकिन साइंटिस्ट कहते हैं कि एक आसान तरीका भी है। वाइल्ड सेक्स कीजिए। यानी इतने जोश और जुनून से कि सारी सीमाएं टूट जाएं।

टॉप 10 सेक्स गेम्स
साइंटिस्ट कहते हैं कि लव मेकिंग यानी सेक्स की क्वॉलिटी जितनी अच्छी होगी , महिलाओं के कन्सीव करने के चांस उतने ही ज्यादा होंगे। शेफील्ड यूनिवर्सिटी के सीनियर लेक्चरर ऐलन पासी के मुताबिक ऐसा सेक्स , जिसमें दोनों पार्टनर एक-दूसरे को संतुष्ट करने की पूरी कोशिश करते हैं , प्रेग्नंसी के चांस को बढ़ा देता है। वह कहते हैं कि जो कपल बच्चे के लिए कोशिश कर रहे होते हैं , वे अक्सर सेक्स को एक काम की तरह करते हैं। पासी के मुताबिक ऐसे कपल्स ने बताया है कि उनका सेक्स बहुत मशीनी और रूटीन काम जैसा होता है। यह गलत है।

सेक्स के 10 फायदे
ब्रिटिश फर्टिलिटी सोसायटी के सेक्रटरी पासी कहते हैं कि सेक्स वैसा ही वाइल्ड और थ्रिलिंग होना चाहिए , जैसा आप पहली बार मिलने पर कर रहे थे और बच्चे के बारे में नहीं सोच रहे थे। आमतौर पर इंटरकोर्स के दौरान 25 करोड़ स्पर्म्स पैदा होते हैं। लेकिन एक रिसर्च के मुताबिक जब पुरुष सेक्स में पूरी तरह संतुष्ट होता है , तो स्पर्म्स की संख्या 50 फीसदी तक बढ़ जाती है।

टेक्नॉलजी और सेक्स
पासी बताते हैं कि अगर आप सेक्स को रूटीन से पांच मिनट ज्यादा लंबा खींचते हैं , तो स्पर्म्स की संख्या ढाई करोड़ तक बढ़ सकती है।

लाइफ में सेक्स का तड़का

अगर आप सोचते हैं कि सेक्स सिर्फ मजे के लिए होता है, तो हम आपको बताना चाहेंगे कि आप थोड़े गलत हैं। दरअसल, मजे के अलावा सेक्स सेहत के लिए भी बेहद फायदेमंद होता है और अगर आप रोज इसका आनंद लेते हैं, तो फिर क्या कहने! इससे न सिर्फ आपको अच्छी नींद आती है, बल्कि स्ट्रेस दूर हो जाता है और कैलरी भी बर्न होती है। इसके अलावा और भी तमाम वजहें हैं, जो हेल्दी सेक्स को जिंदगी के लिए जरूरी बनाता है।

हार्ट रहेगा हैपी
हाल ही में आई एक स्टडी के मुताबिक, जो लोग हफ्ते में दो बार से ज्यादा सेक्स करते हैं, उनको महीने में एक बार सेक्स करने वालों के मुकाबले हार्ट अटैक का खतरा बेहद कम रहता है।

टेंशन होगी हवा
आप परेशान हैं और इसलिए सेक्स से कतरा रहे हैं? नहीं, ऐसा मत कीजिए। सेक्स तो आपके लिए दवा का काम करेगा। यह साबित हो चुका है कि सेक्स दर्द और स्ट्रेस को दूर करने में मदद मिलती है। दरअसल, जब आप आर्गेज्म के करीब होते हैं, तो ऑक्सिटोसिन हॉमोर्न पांच गुना ज्यादा रिलीज होता है और आप बेहतर फील करने लगते हैं।

अगर आप काम या फैमिली प्रॉब्लम की वजह से स्ट्रेस में रहते हैं, तो इसे बेड रूम से दूर रखिए। एक स्टडी के मुताबिक जो लोग रेग्युलर बेड रूम एक्टिविटीज में ऐक्टिव रहते हैं, वे औरों के मुकाबले ज्यादा खुश रहते हैं।

इम्यून होंगे आप
रोजाना संबंध बनाने से बॉडी की इम्यूनिटी बढ़ती है। इससे आपकी बॉडी को कॉमन कोल्ड और बुखार जैसी बीमारियों का मजबूती से सामना करने में मदद मिलती है। तो स्वाइन फ्लू के बारे में आप क्या सोचते हैं?

हेल्दी लाइफ
ऑर्गेज्म के दौरान एक खास हॉर्मोन रिलीज होता है, जो आपकी इम्यूनिटी पावर को बढ़ाता है और टिश्यूज की मरम्मत कर स्किन को हेल्दी रखता है। अगर आपने हफ्ते में दो बार ऑर्गेज्म हासिल कर लिया, तो समझिए आप उस आदमी के मुकाबले ज्यादा जीएंगे, जो कई हफ्तों में एक बार सेक्स करता है।

सेक्स के दौरान टेस्टस्टेरॉन का स्त्राव बढ़ जाता है। पुरुषों में इस हॉर्मोन की ज्यादा मात्रा उन्हें बेड पर बेहतर परफॉर्म करने में मदद करती है। फिर इससे हड्डियां व मसल्स मजबूत होती हैं, हार्ट हेल्दी रहता है और कॉलेस्ट्रॉल भी कंट्रोल में रहता है। इसी तरह सेक्स महिलाओं में स्त्राव होने वाला एस्ट्रोजन हार्ट डिजीज से बचाव करता है।

स्लीपिंग पिल्स
सेक्स के समय हार्ट रेट बढ़ जाती है। इससे बॉडी के सभी ऑर्गन्स और एक-एक सेल्स तक फ्रेश ब्लड पहुंचता है। इसके बाद जब ब्लड अपनी जगह वापस जाता है, तो शरीर को थकान-सी महसूस होती है। अगर आप ध्यान देंगे, तो पाएंगे कि आप चाहे लाख टेंशन में रहें, लेकिन इसके बाद आपको सुकून भरी नींद आती है। जाहिर है, अगर आपको अच्छी नहीं आ रही और आप इस वजह से परेशान हैं, तो सेक्स को एंजॉय कर सकते हैं। रात को अच्छी नींद आएगी, तो आप ज्यादा स्वस्थ रहेंगे।

कैलरी बर्न में सहायक
अगर आप रोजाना जिम जाकर और दूसरे उपायों से अपना वेट कंट्रोल करने की कोशिशों में जुटे हुए हैं, तो आपके लिए एक और उपाय है। तमाम स्टडीज से यह साबित हो चुका है कि रोजाना सेक्स करने से आपको अपनी वेस्ट लाइन कम करने में मदद मिलती है। अगर आप प्यार को आधा घंटा देते हैं, तो 80 कैलरी बर्न करते हैं। है ना फायदेमंद!

Hindi Novels - Novel - ELove CH-20 चारा

अंजली अपने ऑफीसमें कुर्सीपर बैठकर कुछ सोच रही थी। उसका चेहरा मायूस दिख रहा था। शायद उसने उसके जिवनमें इतना बडा भूचाल आएगा ऐसा कभी सोचा नही होगा। उसने अपना कॉम्प्यूतर शुरु कर रखा तो था, लेकिन उसे ना चाटींग करनेकी इच्छा हो रही थी ना किसी दोस्तको मेल भेजनेकी। उसने अपनी सारी ऑफीशियल मेल्स चेक की और फिरसे वह सोचने लगी। तभी कॉम्प्यूटरपर बझर बजा। उसने अपनी चेअर घुमाकर कॉम्प्यूटरकी तरफ अपना रुख कीया -

' हाय ... मिस अंजली'

विवेकका चॅटींगपर मेसेज था।

उसे अहसास हो गया की उसके दिलकी धडकने तेज होने लगी है। लेकिन इसबार धडकने बढनेकी वजह कुछ अलग थी। अंजली सिर्फ उस मेसेजकी तरफ देखती रही। उसे अब क्या किया जाए कुछ सुझ नही रहा था। तभी शरवरी अंदर आ गई। अंजलीने शरवरीको विवेकका मेसेज आया है ऐसा कुछ इशारा किया। शरवरी झटसे बाहर चली गई, मानो पहले उन्होने कुछ तय किया हो। अंजली अबभी उस मेसेजकी तरफ देख रही थी।

' अंजली कम ऑन एकनॉलेज यूवर प्रेझेन्स' विवेकका फिरसे मेसेज आ गया।

' यस' अंजलीने टाईप किया और सेंड बटनपर क्लीक किया।

अंजलीने कॉम्प्यूटर ऑपरेट करते हूए उसके हाथोमें और उंगलियोंमे पहली बार कंपन महसूस किया।

' मै अब मेलमें सारी जानकारी भेज रहा हूं ' विवेकका मेसेज आ गया।

' लेकिन 50 लाख रुपए देनेके बादभी फिरसे तुम ब्लॅकमेल नही करोगे इसकी क्या गॅरंटी। ?' अंजलीने मेसेज भेजकर उसे बार बार सता रहा सवाल उठाया.

विवेकने उधरसे एक हंसता हूवा छोटासा चेहरा भेजा।

इस बार अंजलीको उस चेहरेके हसनेमें मासूमियतसे जादा कपट दिख रहा था।

' देखो ... यह दुनिया भरोसेपर चलती है ... तुम्हे मुझपर भरोसा करना पडेगा ... और तुम्हारे पास मुझपर भरोसा करनेके अलावा और क्या चारा है ?' उधरसे विवेकका ताना मारता हुवा मेसेज आ गया।

और वहभी सचही तो था ... उसके पास उसपर भरोसा करनेके अलावा कोई दुसरा चारा नही था....

अंजली अब उसने भेजे मेसेजको क्या जवाब दिया जाए इसके बारेमें सोचने लगी। तभी अगला मेसेज आ गया -

' ओके देन बाय... दिस इज अवर लास्ट कन्व्हरसेशन... टेक केअर... तुम्हारा ... और सिर्फ तुम्हारा विवेक...'

अंजली उस मेसेजकी तरफ काफी देरतक देखती रही। बादमें उसे क्या सुझा क्या मालूम, उसने फटाफट कीबोर्डपर कुछ बटन्स दबाए और कुछ माऊस क्लीक्स किए। उसके सामने उसका खुला हुवा मेलबॉक्स अवतरीत हुवा। उसके अपेक्षानुसार और विवेकने जैसा कहा था, उसकी मेल उसके मेलबॉक्समें पहूंच चूकी थी। उसने पलभरकी भी देरी ना करते हूए वह मेल खोली।

मेलमें 50 लाख रुपए कहां, कैसे, और कब पहुचाने है यह सब विस्तारपुर्वक बताया था। साथमें पुलिसके चक्करमें ना पडनेकी हिदायतरुप धमकीभी दी थी। अंजलीने अपनी कलाईपर बंधी घडीकी तरफ देखा। अबभी मेलमें बताए स्थानपर पैसे पहुंचानेमें 4 घंटेका अवधी बाकी था। उसने एक दिर्घ श्वास लेकर धीरेसे छोड दी। वह वैसे कर शायद अपने मनका बोझ हलका करनेकी कोशीश करती होगी। वैसे चार घंटे उसके लिए काफी समय था। और पैसोंका बंदोबस्त भी उसने पहलेसे ही कर रखा था - यहांतक की पैसे सुटकेसमें पॅकभी कर रखे थे। मेलकी तरफ देखते देखते उसके अचानक ध्यानमें आ गया की मेलके साथ कोई अटॅचमेंटभी आई हूई है। उसने वह अटॅचमेंट खोलकर देखी। वह एक JPG फॉरमॅटमें भेजा हुवा एक फोटो था। उसने क्लीक कर वह फोटो खोला।

वह उनके हॉटेलके रुममें दोनो जब एक दिर्घ चुंबन लेते हूए आलिंगनबध्द थे तबका फोटो था।

Hindi Books - Novel - ELove CH - 19 सॉलीटेअर

सायबर कॅफेमें लोग अपने अपने क्यूबीकल्समें अपने अपने इंटरनेट सर्फींगमें बिझी थे। कुछ कॉम्प्यूटर्स वही खुले हॉलमें रखे थे, वहांभी कोई कॉम्प्यूटर खाली नही था। की बोर्डके बटन्स दबानेका एक अजिब आवाज एक लय और तालमें सारे कॅफेमें घुम रहा था। सब लोग, कोई चॅटींग, कोई सर्फींग, कोई गेम्स खेलनेमें तो कोई मेल्स भेजनेमें मग्न था। तभी एक आदमी दरवाजेसे अंदर आ गया। वह अंदर आकर जिस तरहसे इधर उधर देख रहा था, कमसे कम उससे वह यहां पर पहली बार आया हो ऐसा लग रहा था। रिसेप्शन काऊंटरपर बैठा स्टाफ मेंबर उसके सामने रखे कॉम्प्यूटरपर ताशका गेम 'सॉलीटेअर' खेल रहा था। उस आदमीकी आहट होतेही उसने झटसे, बडी स्फुर्तीके साथ अपने मॉनिटरपर चल रहा वह गेम मिनीमाईझ किया और आया हुवा आदमी अपना बॉस या उसके घरका कोई आदमी नही है यह ध्यानमें आतेही वह फिरसे वह गेम मॅक्सीमाईज करके खेलने लगा। वह अंदर आया हुवा आदमी कुछ पलके लिए रिसेप्शन काऊंटरके पास मंडराया और रुककर स्टाफको पुछने लगा -

'' विवेक आया क्या ?''

उस स्टाफने भावना विरहित चेहरेसे उसकी तरफ देखकर पुछा -

'' कौन विवेक?''

'' विवेक सरकार ... वह मेरा दोस्त है ..... और उसनेही मुझे यहां बुलाया है ॥'' उस आदमीने कहा।

'' अच्छा वह विवेक... नही आज तो वह दिखा नही ॥ वैसे तो वह रोज आता है ... लेकिन कलसे मैने उसे देखा नही है ... '' काऊंटरपर बैठे स्टाफने जवाब दिया और वह सामने रखे हूए कॉम्प्यूटरपर फिरसे 'सॉलीटेअर' खेलनेमें व्यस्त हो गया।

अंजली कॉन्फरंन्स रुममें दिवारपर लगे छोटे पडदेपर प्रोजेक्टरकी सहाय्यतासे शरवरीको कुछ समझा रही थी। और शरवरी वह जो बोल रही है वह ध्यान देकर सुन रही थी।

'' शरवरी जैसा तुमने कहा था वैसेही मैने विवेकको समझाकर देखनेके लिए एक मेल भेजी है ... लेकिन उसे सिर्फ मेलही ना भेजते हूए मैने एक बडा दांव भी फेंका है ... '' अंजली बोल रही थी।

'' दांव? ... कैसा ?...'' शरवरीने कुछ ना समझते हूए आश्चर्यसे पुछा।

'' उसे भेजे हूए मेलके साथ मैने एक सॉफ्टवेअर प्रोग्रॅम अटॅच कर भेजा है'' अंजलीने कहा।

'' कैसा प्रोग्रॅम?'' शरवरीको अभीभी कुछ समझ नही रहा था।

'' उस प्रोग्रॅमको 'स्निफर' कहते है ... जैसेही विवेक उसे भेजी हूई मेल खोलेगा ॥ वह स्निफर प्रोग्रॅम रन होगा ...'' अंजली बोल रही थी।

'' लेकिन वह प्रोग्रॅम रन होनेसे क्या होगा ?'' शरवरीने पुछा।

'' उस प्रोग्रॅमका काम है ... विवेकके मेलका पासवर्ड मालूम करना ... और वह पासवर्ड मालूम होतेही वह प्रोग्रॅम हमे वह पासवर्ड मेलद्वारा भेजेगा ... '' अंजली बोल रही थी।

'' अरे वा... '' शरवरी उत्साहभरे स्वरमें बोली लेकिन अगलेही पल कुछ सोचते हूए उसने पुछा, '' लेकिन उसका पासवर्ड मालूम कर हमें क्या मिलेगा ?''

'' जिस तरहसे विवेक मुझे ब्लॅकमेल कर रहा है ... उसी तरह हो सकता है की वह और बहुत लोगोंको ब्लॅकमेल कर रहा होगा ...या फिर उसके मेलबॉक्समें हमे उसकी कुछ कमजोरी... या जो हमारे कामका साबीत हो ऐसा कुछतो हमें पता चलेगा ... वैसे फिलहाल हम अंधेरेमें निशाना साध रहे है.... लेकिन मुझे यकिन है ... हमें कुछ ना कुछतो जरुर मिलेगा '' अंजली बता रही थी।

'' हां ... हो सकता है '' शरवरीने कहा।

और फिर कुछ सोचकर उसने कहा, '' मुझे क्या लगता है ... हमें अपना दुश्मन कौन है यह पता है ... वह कहां रहता है यहभी पता है ... फिर वह अपनेपर वार करनेके पहलेही अगर हम उसपर वार करते है तो ?''

'' वह संभावनाभी मैने जांचकर देखी है ... लेकिन अब वह उसके होस्टेलसे गायब है ... वुई डोन्ट नो हिज व्हेअर अबाऊट्स''

तभी कॉम्प्यूटरका बझर बजा। अंजलीने और शरवरीने झटसे पलटकर मॉनिटरकी तरफ देखा। मॉनिटरकी तरफ देखतेही दोनोके चेहरे खिल गए। क्योंकी उनकी अपेक्षानुसार अंजलीने विवेकके मेलको अटॅच कर भेजे 'स्निफर' सॉफ्टवेअरकीही वह मेल थी। अब दोनोंको वह मेल खोलनेकी जल्दी हो गई थी। कब एक बार वह मेल खोलती हूं और कब एक बार उस मेल द्वारा आए विवेकके पासवर्डसे उसका मेल अकाऊंट खोलती हूं ऐसा अंजलीको हुवा था। उसने तुरंत डबलक्लीक कर वह मेल खोली।

'' यस्स!'' उसके मुंहसे विजयी उद्गार निकले।

उसने भेजे स्निफरने अपना काम बराबर किया था।

उसने बिजलीके गतीसे मेल सॉफ्टवेअर ओपन किया और ...

'' यह उसका मेल आयडी और यह उसका पासवर्ड'' बोलते हूए विवेकका मेल ऍड्रेस टाईप कर उस प्रोग्रॅमको विवेकके मेलका पासवर्ड दिया।

अंजलीने उसका मेल अकाऊंट खोलतेही और कुछ की बोर्डकी बटन्स और दो चार माऊस क्लीक्स किए। और दोनो अब कॉम्प्यूटरके मॉनिटरकी तरफ देखने लगी।

'' ओ माय गॉड ... आय जस्ट कान्ट बिलीव्ह'' अंजलीके खुले मुंहसे निकल गया।

शरवरी कभी मॉनिटरकी तरफ तो कभी अंजलीके खुले मुंहकी तरफ असमंजससे देख रही थी।

Hindi literature - Novel - ELove CH-18 क्या हुआ ?

शरवरीको आनंदजींका मेसेज मिलतेही वह तुरंत अंजलीके कॅबिनमें गई। देखती है तो अंजली हताश, निराश दोनो हाथोंके बिच टेबलपर अपना सर रखकर बैठी थी.

"" अंजली क्या हुवा ?'' अंजलीको उस अवस्थामें बैठी हुई पाकर शरवरीने चिंताभरे स्वरमें, उसके पास जाकर, उसके पिठपर हाथ सहलाते हूए पुछा।

उसने उसे इतना हताश और निराश, और वह भी ऑफीसमें कभी नही देखा था।

ऐसा अचानक क्या हुवा होगा?...

शरवरी सोचने लगी। अंजलीने धीरेसे अपना सर उठाया. उसके हर हरकतमें एक धीमापन और दर्द दुख का अहसास दिख रहा था. उसका चेहराभी उदास दिख रहा था.

हां उसके पिताजी जब अचानक हार्ट अटॅकसे गुजर गए थे तबभी वह ऐसीही दिख रही थी....

धीरेसे अपना चेहरा कॉम्प्यूटरके मॉनीटरकी तरफ घुमाते हूए अंजली बोली, "" शरवरी... सब कुछ खतम हो चुका है ''

कॉम्प्यूटरका मॉनीटर शुरुही था। शरवरीने झटसे नजदिक जाकर कॉम्प्यूटरपर क्या चल रहा है यह देखा. उसे मॉनीटरपर विवेककी अंजलीने खोली हूई मेल दिखाई दी. शरवरी वह मेल पढने लगी -

"" मिस अंजली... हाय... वुई हॅड अ नाईस टाईम ... आय रिअली ऍन्जॉइड इट॥ खुशीसे और तुम्हारे प्यारकी वर्षावसे भिगे हुए वह पल मैने मेरे दिलमें और मेरे कॅमेरेमें कैद करके रखे है... मै तुम्हारी माफी चाहता हूं की वे पल मैने तुम्हारे इजाजतके बिना कॅमेरेमें बंद किये है ... वह पल थे ही ऐसे की मै अपने मोहको रोक नही सका.... तुम्हे झूट तो नही लग रहा है न? .. देखो ... उन पलोंसे एक चुने हूए पलको मैने इस फोटोग्राफके स्वरुपमें तुम्हारे मेलके साथ अटॅच करके भेजा है.... ऐसे बहुतसे पल मैने मेरे कॅमेरेमे और मेरे हृदयमें कैद कर रखे है ... सोचता हूं की उन पलोंको .. इन फोटोग्राफ्सको इंटरनेटपर पब्लीश कर दूं .. क्यो कैसी दिमागवाली आयडिया है ? है ना? ... लेकिन यह तुम्हे पसंद नही आएगी ... तुम्हारी अगर इच्छा नही हो तो उन पलोंको मै हमेशाके लिए मेरे दिलमें दफन करके रख सकता हूं ... लेकिन उसके लिए तुम्हे उसकी एक मामुलीसी किमत अदा करनी पडेगी.... क्या करे हर बात की एक तय किमत होती है ... है की नही ?...कुछ नही बस 50 लाख रुपए... तुम्हारे लिए बहुतही मामुली रकम ... और हां ... पैसेका बंदोबस्त तुरंत होना चाहिए ... पैसे कब कैसे पहुंचाने है ... यह बादमें मेलके द्वारा बताऊंगा ...

मै इस मेलके लिए तुम्हारी तहे दिलसे माफी चाहता हूं ॥ लेकिन क्या करें कुछ पाने के लिए कुछ खोना पडता है ... अगले मेलका इंतजार करना ... और हां ... तुम्हे बता दूं की मुझे पुलिसका बहुत डर लगता है ... और जब मै डरता हूं तब हडबडाहटमें कुछभी अटपटासा करने लगता हूं .... किसीका खुनभी ...

तुम्हारा ... सिर्फ तुम्हारा ... विवेक ''

मेल पढकर शरवरीको मानो उसके पैरके निचेसे जमिन खिसक गई हो ऐसा लग रहा था। वह एकदम सुन्न हो गई थी. ऐसाभी हो सकता है, इसपर उसका विश्वासही नही हो रहा था. उसने विवेकके बारेमें क्या सोचा था, और वह क्या निकला था.

'' ओ माय गॉड... ही इज अ बिग फ्रॉड... आय कांट बिलीव्ह इट...'' शरवरीके आश्चर्यसे खुले मुंहसे निकल गया।

शरवरीने मेलके साथ अटॅच कर भेजे फोटोके लिंकपर क्लीक करके देखा। वह अंजलीका और विवेकका हॉटेलके सुईटमें एकदुसरेको बाहों में लिया हुवा नग्न फोटो था.

'' लेकिन उसने यह फोटो, कैसे लिया होगा ?'' शरवरीने अपनी उलझन जाहिर की।

"" मै मुंबईको कब जानेवाली थी ... कहा रुकने वाली थी ... इसकी उसे पहलेसेही पुरी जानकारी थी। '' अंजलीने कहा.

'' यह तो सिधा सिधा ब्लॅकमेलींग है।'' शरवरी गुस्सेसे आवेशमें आकर चिढकर बोली.

'' उसके मासूम चेहरेके पिछे इतना भयानक चेहराभी छिपा हूवा हो सकता है ... मुझे तो अबभी विश्वास नही होता। '' अंजलीने दुखसे कहा.

'' कमसे कम शादीके पहले हमें उसका यह भयानक रुप पता चला... नही तो न जाने क्या हो जाता ...'' शरवरीने कहा।

'' मुझे दुख पैसेका नही ... दुख है तो सिर्फ उसने दिए इतने बडे धोखे और विश्वासघात का है। '' अंजलीने कहा.

'' एक पलके लिए समझ लो की अगर हम उसे 50 लाख रुपए दे देते है... लेकिन पैसे लेनेके बादभी वह फिरसे हमें ब्लॅकमेल नही करेगा इसकी क्या ग्यारंटी? ... '' शरवरीने फिरसे अपने मनमें चल रहा सवाल जाहिर किया।

अंजली चेहरे पर डर लिए सिर्फ उसकी तरफ देखती रही। क्योंकी उसके पासभी इस सवालका कोई जवाब नही था.

"" मुझे लगता है तूम एक बार उसे मेल कर उसका मन परिवर्तीत करनेका प्रयास करो... और अगर फिरभी वह नही मानता है तो ... चिंता मत करो... हम जरुर इसमेंसेभी कुछ रास्ता निकालेंगे. '' शरवरी उसको ढांढस बढाते हूई बोली.

Hindi literature - Novel - ELove : CH-17 कहाँ गलती हूई ?

अंजली चिंताग्रस्त अवस्था में अपनी कुर्सी पर बैठी थी। उसके टेबल के सामने ही शरवरी बैठी हूई थी। विवेक के साथ बिताया एक एक पल याद करते हूए पिछले तीन दिन कैसे बीत गए अंजली को कुछ पता ही नही चला था। लेकिन आज उसे चिंता होने लगी थी।

"" आज तीन दिन हो गए ... ना वह चैटिंग पर मिल रहा है ना उसकी कोई मेल आई है।'' अंजली ने शरवरी से चिंता भरे स्वर में कहा।

एक दिन में न जाने कितनी बार चैटिंग पर चैट करने वाला और एक दिन में न जाने कितनी मेल्स भेजने वाला विवेक अब अचानक तीन दिन से चुप क्यों हो गया ? सच मुच यह एक चिंता की ही बात थी।

"" उसका कोई कॉन्टॅक्ट नंबर तो होगा ना ?'' शरवरी ने पूछा।

"" हां है... लेकिन वह कॉलेज का नंबर है... लेकिन वहां फोन कर उसके बारे में पूछना उचीत होगा क्या ?'' अंजली ने कहा।

"" हा वह भी है '' शरवरी ने कहा।

"" मुझे चिंता है ... कही वह मेरे बारे में कुछ गलत सलत सोचकर ना बैठे ... और अगर वैसा है तो पता नही वह मेरे बारें में क्या सोच रहा होगा ... '' अंजली ने मानो खुद से ही सवाल किया।

हॉटेल में जो हुआ वह नही होना चाहिए था ...

उसकी वजह से शायद वह अपने बारे में कुछ गलत सोच रहा होगा....

लेकिन जो भी हुआ वह कैसे ... अचानक... दोनों को कोई मौका दिए बिना हो गया....

मैने उसे हॉटेल में बुलाना ही नही चाहिए था...

उसे अगर हॉटेल में नही बुलाया होता तो यह घटना घटी ही नही होती...

अंजली के दिमाग में पता नही कितने सवाल और उनके जवाब भिड कर रहे थे।

"" मुझे नही लगता की वह तुम्हारे बारे में कुछ गलत सोच रहा होगा... वह दूसरे ही किसी कारणवश तुम्हारे संपर्क में नही होगा... जैसे किसी महत्वपूर्ण काम के सिलसिले में वह शहर से बहार गया होगा....'' शरवरी अंजली के दिल को समझाने बहलाने की कोशीश करते हुए बोली।

लेकिन अंदर से वह भी उतनी ही चिंतातूर थी। अंजली ने शरवरी को हॉटेल में घटित घटना के बारे में विस्तार से बताया मालूम हो रहा था। वैसे वह उसे अपनी बहुत करीबी दोस्त मानती थी और उससे निजी बाते भी नही छुपाती थी।

"" उसे होटल के अंदर बुलाया नही होता तो शायद यह नौबत नही आती '' अंजली ने कहा।

"" नही नही वैसा कुछ नही होगा... पहले तुम अपने आपको बिना मतलब कोसना बंद कर दो... '' शरवरी उसे समझाने की कोशीश करती हुई बोली।

मोना ने जल्दी जल्दी उसके सामने से गुजर रहे आनंदजीं को रोका।

""आनंदजी आपने शरवरी को देखा क्या ?'' मोना ने पूछा।

"" हां ॥ वह उपर विकास के पास बैठी हूई है ... क्यो क्या हुआ ?'' आनंदजीने मोना का चिंता से ग्रस्त चेहरा देखकर पुछा।

"" कुछ नही... अंजली मैम ने उसे तुरंत बुलाने के लिए कहा है ॥ आप उधर ही जा रहे हो ना ... तो उसे अंजली मैम के पास तुरंत भेज देंगे प्लीज... कुछ महत्वपूर्ण काम लगता है '' मोना आनंदजीं से बोली।

"" ठीक है ... मै अभी भेज देता हूं ॥'' आनंदजी सीडियां चढते हूए बोले।

Hindi upanyas - Novel - ELove : CH-16 सहारा

होटेल का सुईट जैसे जैसे नजदिक आने लगा, वैसे एक अन्जानी भावनासे अंजली के दिल की धडकन तेज होने लगी थी। एक अनामिक डरने मानो उसे घेर लिया था। विवेक भले ही उसके पिछे पिछे चल रहा था लेकिन उसके सासोंकी गति विचलीत हो चुकी थी। अंजली ने सुईट का दरवाजा खोला और अंदर चली गई।

विवेक दरवाजेमेही इधर उधर करता हुवा खडा हो गया।

'' अरे आवोना अंदर आवो '' अंजली उनके बिच बनी, असहजता, एक तणाव दूर करनेका प्रयास करती हुई बोली।

'' बैठो '' अंजली उसे बैठने का इशारा करती हुई बोली और वही कोने में रखा फोन उठाने के लिए उसके पास ही बैठ गई।

अंजलीने विवेक के पास रखा हुवा फोन उठाने के लिए हाथ बढाया और बोली, '' क्या लोगे ठंडा या गरम''

फोन उठाते हूए अंजली का हाथ का हल्कासा स्पर्ष विवेक को हुआ था। उसका दिल जोर जोर से धडकने लगा। अंजली को भी वह स्पर्श आल्हाददायक और अच्छा लगा था। लेकिन चेहरे पर वैसा कुछ ना बताते हूए उसने ऑर्डर देनेके लिए फोन का क्रेडल उठाया।

फोन का नंबर डायल करने के लिए अब उसने अपना दुसरा हाथ बढाया। इसबार इस हाथ का भी हल्कासा स्पर्ष विवेक को हुआ। इस बार वह अपने आपको रोक नही सका। उसने अंजली ने आगे बढाया हुआ हाथ हल्के ही अपने हाथ में लिया। अंजली उसकी तरफ देखकर शर्माकर मुस्कुराई। उसे वह हाथ उसके हाथ से छुडाकर लेना नही हो रहा था। मानो वह हाथ सुन्न हो गया हो। विवेक ने अब वह हाथ कसकर पकडकर उसे खिंचकर अपनी बाहों में भर लिया। सब कुछ कैसे तेजी से घट रहा था और वह सब अंजली को भी अच्छा लग रहा था। उसका पूरा बदन गर्म हो गया था और होंठ कांपने लगे थे। विवेक ने भी अपने गर्म और बेकाबू हूए होंठ उसके कांपते होंठो पर रख दिए। अंजली का एक मन प्रतिकार करनेके लिए कह रहा था। लेकिन दुसरा मन तो विद्रोही होकर सारी मर्यादाए तोडने निकला था। वह उस पर हावी होता जा रहा था और अंजली की मानो होशोहवास खोए जैसी स्थिती हो गई थी। विवेक ने उसे झट से अपने मजबूत बाहों में उठाकर बगल में रखे बेड पर लिटाया। उसके उस उठाने में उसे एक आधार देने वाली मर्दानी और हक जताने वाली भावना दिखी इसलिए वह इन्कार भी नही कर सकी। या यू कहिए उसके पास प्रतिकार करने के लिए कुछ शक्ती ही नही बची थी।

उसे उसका वह सवाल याद आ गया , '' अंजली मुझसे शादी करोगी ?''

और उसे अपना जवाब भी याद आ गया , '' मैने ना थोडी ही कहा है ''

उसे अब उसके बाहों में एक सुरक्षा का अहसास हो रहा था। वह भी अब उसके हर भावना को उतनी ही उत्कटता से प्रतिसाद दे रही थी।

'' विवेक आय लव्ह यू सो मच'' उसके मुंह से शब्द बाहर आ गये।

'' आय टू'' विवेक मानो उसके गले का चुंबन लेते हूए उसके कान में कह रहा था।

धीरे धीरे उसका मजबूत मर्दानी हाथ उसके नाजूक बदनसे खेलने लगा। और वह भी किसी लतीका की तरह उसको चिपककर अपने भविष्य के आयुष्य का सहारा ढूंढ रही थी।

' हां मैं ही तुम्हारे आगे के आयूष्य का सहारा ... साथीदार हूँ ' इस हक से अब वह उसके बदन से एक एक कपडे हटाने लगा था।

' हां मैने भी अब तुम्हे सब कुछ अर्पन कर दिया है .. ' इस विश्वास के साथ समर्पन करके वह भी उसके शरीर से एक एक कपडे हटाने लगी।

अंजली अचानक हडबडाकर नींद से जाग गई। उसने बेड पर बगल में देखा तो वहा विवेक निर्वस्त्र अवस्था में चादर बदन पर ओढे गहरी निंद सो रहा था। लेकिन निंद में भी उसका एक हाथ अंजली के निर्वस्त्र बदनपर था। इतने दिनों में रात को अचानक बुरे सपने से जगने के बाद उसे पहली बार उसके हाथ का एक बडा सहारा महसूस हुआ था।

ELove ( ई लव) - Hindi Romantic, suspense Novel – (Complete)



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Ch-1 जिम्मेदारी
CH-2 चॅटींग
CH-3 मेलींग ऍड्रेस
CH-4 जब लब्ज नही सुझते
CH -5 मिटींग
CH-6 : उस मेल का क्या हूवा ?
CH-7 ब्लॅंक रिप्लाय
CH-8 अधीर मन
CH- 9 हटके
CH-10 स्माईल प्लीज
CH-11 : मिटींग
CH 12 हॉटेल ओबेराय
CH-13 वर्सोवा बीच
CH-14 प्रपोज
CH:15 सहचारी
.Ch-43 चलो
.Link
! समाप्त !
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Hindi books - Novels - ELove CH:15 सहचारी

अंजली गाडी ड्राईव्ह कर रही थी और गाडीमें आगे उसके बगलकीही सिटपर विवेक बैठा हुवा था। गाडीमें काफी समयतक दोनो अपने आपमें खोए हूए गुमसुमसे बैठे हूए थे.

सच कहा जाए तो विवेक उसने सोचे उससेभी जादा चुस्त , तेज तर्रार और देखनेमें उमदा है ... और उसका स्वभाव कितना सिधा और सरल है ...

पहलेही मुलाकातमें शादीके बारेमें सवाल कर उसने अपनी भावनाएं जाहिर की यह एक तरहसे अच्छा ही हुवा॥ सच कहा जाए तो उसने वह सवाल पुछकर मुझेभी उसके बारेमें अपनी भावनाएं व्यक्त करनेका मौका दिया है...

उसे अब उसके बारेंमे एक अपनापन महसूस हो रहा था। उसने अब उसमें अपना भावी सहचारी ... एक दोस्त... जो हमेशा दुख और सुखमें उसका साथ देगा ... देखना शुरु किया था.

उसने सोचते हूए उसकी तरफ एक कटाक्ष डाला। उसनेभी उसकी तरफ देखकर एक मधूर मुस्कुराहट बिखेरी.

लेकिन अब वहभी अपनेही बारेमें सोच रहा होगा क्या?...

'' तूम पढाई वैगेरा कब करते हो... नही ॥ मतलब .. हमेशा तो चॅटींग और इंटरनेटपरही बिझी रहते हो '' अंजली कुछ तो बोलना है और विवेकको थोडा छेडनेके उद्देश्यसे बोली।

विवेक उसके छेडनेका मुड पहचानकर सिर्फ मुस्कुरा दिया।

हालहीमें तुम्हारे कंपनीका प्रोग्रेस क्या कहता है ? '' विवेकने पुछा।

'' अच्छा है ... क्यों?... हमारी कंपनी तो दिनबदीन प्रोग्रेस करती जा रही है '' अंजलीने कहा।

'' नही मैने सोचा ... हमेशा चॅटींग और इंटरनेटपर बिझी होनेसे उसका असर कंपनीके कामपर हुवा होगा। ... नही?'' विवेकभी उसे वैसाही नटखट जवाब देते हूए बोला.

वहभी उसके तरफ देखकर सिर्फ हंस दी। वह उसके इस बातोंमें उलझानेके खुबीसे वाकीफ थी और उसे उसका इस बारेमें हमेशा अभिमान रहा करता था.

अंजलीकी गाडी एक आलीशान हॉटेलके सामने - हॉटेल ओबेरायके सामने आकर रुकी। गाडी पार्कींगमें ले जाकर अंजलीने कहा, '' एक मिनीट मै मेरा मोबाईल हॉटेलमें भूल गई हूं ... वह झटसे लेकर आती हूं और फिर हम निकलेंगे... नही तो एक काम कर सकते है ... कुछ ठंडा या गरम हो जाए तो मजा आ जाएगा ... नही?... और फिर निकलेंगे '' अंजली गाडीके निचे उतरते हूए बोली.

अंजली उतरकर हॉटेलमें जाने लगी और विवेकभी उतरकर उसके साथ हो लिया।

Hindi Novels - Novel- ELove : CH-14 प्रपोज

अंजली और विवेक दोनो न जाने कितनी देर सिर्फ एक दुसरे की तरफ ताक रहे थे। भलेही वे एकदुसरे को एक महिने से जानते थे लेकिन वे एक दुसरे के सामने पहली बार आ रहे थे. वैसे वे एकदुसरे को सिर्फ जानते ही नही थे तो उन्होने एक दुसरेको अच्छी तरह से समझ लिया था. एकदुसरे के स्वभाव की खुबीया या खामीयां वे भली भांती जानते थे. फिरभी एक दुसरे के सामने आते ही उन्हे क्या बोले कुछ समझ नही आ रहा था. वे इतने चूप थे की मानो दो-दो तिन-तिन पेजेस की मेल करनेवाले वे हमही है क्या? ऐसी उन्हे आशंका आए. आखिर विवेकने ही पहल करते हूए शुरवात की,

'' ट्रॅफिकमें अटक गया था... इसलिए देर हो गई ...''

'' मै तो साडेचार बजेसेही तुम्हारी राह देख रही हूं ॥'' अंजलीने कहा।

'' लेकिन तूमने तो पांच का वक्त दिया था। '' विवेकने कहा.

सिर्फ शुरु करनेकी ही देरी थी, अब वे आपस में अच्छे खासे घुल मिलकर बाते करने लगे, मानो इंटरनेट पर चॅटींग कर रहे हो। बाते करते करते वे धीरे धीरे बीचके रेतपर समुंदरके किनारे किनारे चलने लगे. चलते चलते कब उनके हाथ एकदुसरे में गुथ गए, उन्हे पताही नही चला. न जाने कितनी देर तक वे एक दुसरेके हाथ पकडकर बीचपर घुम रहे थे.

सुर्यास्त हो चुका था और अब अंधेराभी छाने लगा था। बिचमेंही अचानक रुककर, गंभीर होकर विवेकने कहा,

'' अंजली... एक बात पुछू ?''

उसने आखोंसेही मानो हा कह दिया।

'' मुझसे शादी करोगी ?'' उसने सिधे सिधे पुछा।

उसके इस अनपेक्षित सवालसे वह एक पल के लिए गडबडासी गई। अपने गडबडाए हालातसे संभलकर उसने कुछ ना बोलते हूए अपनी गर्दन निचे झूकाई.

विवेकका दिल अब जोरजोरसे धडकने लगा था।

मैने बडा ढांढस कर यह सवाल तो पुछा....

लेकिन वह 'हां' कहेगी या 'नही' ?...

वह उसके जवाबकी प्रतिक्षा करने लगा।

मैने यह सवाल पुछनेमें कुछ जल्दी तो नही कर दी ?...

उसने अगर 'नही' कहा तो ?...

उसके जहनमें अलग अलग आशंकाएं आने लगी।

थोडी देरसे वह बोली,

'' चलो हमें निकलना चाहिए ॥''

उसने बोलने के लिए मुंह खोला तब उसका दिल जोर जोरसे धडकने लगा था।

लेकिन यह क्या ... वह उसके सवालके जवाबसे बच रही थी....

लेकिन वह एक पीएचडी का छात्र था। किसी भी सवाल के जवाब का पिछा करना उसके खुनमें ही भिना हूवा था.

'' ॥ तूमने मेरे सवाल का जवाब नही दिया ..'' उसने उसे टोका।

'' चलो मै तुम्हे छोड आती हूं '' वह फिर से उसके सवाल के जवाब से बचते हूए बोली।

लेकिन वहभी कुछ कम नही था।

'' अभी तक तूमने मेरे सवालका जवाब नही दिया ''

वह शर्मके मारे चूर चूर हो रही थी। उसकी गर्दन झूकी हूई थी और उसका गोरा चेहरा शर्मके मारे लाल लाल हुवा था. वह अपनी भावनाए छुपानेके लिए पैर के अंगुठेसे जमीन कुरेदने लगी.

'' मैने थोडी ना कहा है '' वह किसी तरह, अभीभी अपनी गर्दन निची रखते हूए बोली।

अपने मुंहसे वह शब्द बाहर पडे इसका उसे खुदको ही आश्चर्य लग रहा था। विवेक का अब तक मायूस हुवा चेहरा एकदम से खुशीके मारे खिल उठा. उसे इतनी खुशी हुई थी की वह उसे कैसे व्यक्त करे कुछ समझ नही पा रहा था. उसने अपने आपको ना रोक पाकर उसे अपने बाहोंमें कसकर भरकर उपर उठा लिया.

Hindi literature - Novel - ELove : CH-13 वर्सोवा बीच

अंजली वर्सोवा बीचपर आकर विवेककी राह देखने लगी। उसने फिरसे एकबार अपनी घडीकी तरफ देखा. विवेकके आनेको अभी वक्त था. इसलिए उसने समुंदरके किनारे खडे होकर दुरतक अपनी नजरे दौडाई. नजर दौडाते हूए उसके विचार जा चक्र भूतकालमें चला गया. उसके दिलमें अब उसकी बचपनकी यादे आने लगी...

वर्सोवा बीच यह अंजलीका मुंबईमें स्थित पसंदीदा स्थान था। बचपनमें वह उसके मां बापके साथ यहां अक्सर आया करती थी. उसे उसके मां बाप की आज बहुत याद आ रही थी. भलेही आज वह समुंदर का किनारा इतना साफ सुधरा नही था लेकिन उसके बचपनमें वह बहुत साफ सुधरा रहा करता था. सामने समुंदरके लहरोंका आवाज उसके दिलमें एक अजीबसी कसक पैदा कर रहा था.

उसने अपने कलाईपर बंधे घडीकी तरफ फिरसे देखा। विवेकको उसने शामके पांचका वक्त दिया था.

पांच तो कबके बज चूके थे ... फिर वह अबतक कैसे नही पहूंचा ?...

उसके जहनमें एक सवाल उठा ...

कही ट्रॅफिकमें तो नही फंस गया? ...

मुंबईकी ट्रॅफिक में कब कोई और कहां फंस जाएं कुछ कहा नही जा सकता....

उसने लंबी आह भरते हुए फिरसे चारों ओर अपनी नजरे दौडाई।

सामने किनारेपर एक लडका समुंदरके किनारे रेतके साथ खेल रहा था। वह देखकर उसके विचार फिरसे भूतकालमें चले गए और फिर एक बार उसकी बचपनकी यादोंमे डूब गए.

वह तब लगभग 12-13 सालकी होगी जब वह अपने मां और पिताके साथ इसी बीचपर आई थी। वह लडका जहां खेल रहा था, लगभग वही कही रेतका किला बना रहे थे. तभी उसके पिताने कहा था,

'' देखो अंजली उधर तो देखो...''

समुंदर के किनारे एक लडका कुछ चिज समुंदरके अंदर दुरतक फेंकनेका जीतोड प्रयास कर रहा था। वह लेकिन समुंदरकी लहरे उस चिजको फिरसे किनारेपर वापस लाती थी. वह लडका बार बार उस चिजको समुंदरमें बहुत दुरतक फेकनेकेका प्रयास करता था और बार बार वह लहरें उस चिजको किनारेपर लाकर छोडती थी.

फिर उसके पिताजीने अंजलीसे कहा -

'' देखो अंजली वह लडका देखो ... वह चिज वह समुंदरमें फेकनेकी कोशीश कर रहा है और वह वस्तू बार बार किनारेपर वापस आ रही है... अपने जिवनमेंभी दु:ख और सुखका ऐसेही होता है... आदमी जैसे जैसे अपने जिवनमें आए दुखको दुर करनेका प्रयास करता है... उस वक्त के लिए लगता है की दुख चला गया है और वह फिरसे वापस कभी नही आएगा... लेकिन दुखका उस चिज जैसाही रहता है ... जितना तुम उसे दुर धकेलनेकी कोशीश करो वह फिरसे उतनेही जोरसे वापस आता है... अब देखो वह लडका थोडी देर बाद अपने खेलनेमें व्यस्त हो जाएगा... और वह उस चिजको पुरी तरहसे भूल जाएगा... फिर जब उसे उस चिजकी याद आएगी... वह चिज किनारेपर ढूंढकरभी नही मिलेगी... वैसेही आदमीने अगर दुखको जादा महत्व ना देते हूए ... सुख और दूखका एकही अंदाजसे सामना किया तो उसे दुखसे तकलिफ नही होगी... ...देअर विल बी पेन बट टू सफर ऑर नॉट टू सफर वील बी अप टू यू!''

उसे याद आ रहा था की उसके पिता कैसे उसे छोटी छोटी बातोंसे बहुत कुछ सिखकी बाते कह जाते थे।

जब अंजली अपनी पुरानी यादोंसे बाहर आ गई, उसके सामने विवेक खडा था। उंचा, गठीला शरीर, चेहरेपर हमेशा मुस्कान और उसकी हर एक हरकतसे दिखता उसका उत्साह. उसने देखे उसके फोटोसे वह बहुत अलग और मोहक लग रहा था. वे एकदुसरेसे पहली बारही मिल रहे थे इसलिए दोनोंके चेहरे खुशीसे दमक उठे थे. दोनों एकदुसरे की तरफ सिर्फ एकटक देखने लगे.