07 मई 2011

जीवन की सुख-समृद्धी में भवन वास्तु व्यवस्था का महत्व

देवताओं के शिल्पी भगवान् विश्वकर्मा के अनुसार वास्तु-शास्त्र का ज्ञान मनुष्य को धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के लिये सहायक होता है अर्थात रिद्धि-सिद्धि का वास्तु शास्त्र से अंतरंग संबंध है। भूमि क्रय से लेकर गृह प्रवेश तक हमें वास्तु के नियमों का पालन करना चाहिए। कई बार हमें यह सुनने को मिलता है कि अमुक मकान बहुत अपशकुनी है। यदि हम उनकी वास्तु व्यवस्था भूमिक्रय एवं गृह प्रवेश के समय का अधयन्न करें तो अवश्य ही हमें कहीं न कहीं दोष प्रकाश में आयेंगे। कुछ लोग वास्तु को केवल भवन तकनीक का नाम देते हैं किन्तु मेरा मानना है कि वास्तु एक धार्मिक अनुष्ठान है। आर्थिक रूप से आपको सम्पन्नता आपके कर्म, भाग्य के अतिरिक्त आपके भूखण्ड/भवन पर भी निर्भर करती है। इस हेतु वास्तु से सम्बंधित कुछ ख़ास नियमों को निम्न प्रकार से अंकित किया जा रहा है:-

भूमि चयन
आपकी जन्मतिथि एवं जन्म कुण्डली पर स्थित ग्रहों के अनुरूप ही दिशा विशेष मुखी भूखण्ड का चयन करना चाहिए। भूखण्ड आयताकार अथवा वर्गाकार होना चाहिए। विषमबाहु भूखण्ड का चयन नहीं करना चाहिए। किन्तु यदि भूखण्ड का उत्तर-पूर्वी कोना बढ़ा हुआ हैं तो ऐसे भूखण्ड को शुभ माना जाता है। यदि भूखण्ड का केंद्र स्थल धंसा हुआ है, तो ऐसे भूखण्ड चयन नहीं करना चाहिए।

भूमि क्रय एवं शिलान्यास
भूमि का क्रय एवं शिलान्यास शुभ मुहूर्त में किसी विद्वान् ज्योतिषी से सलाह मशविरा करने के उपरान्त करना चाहिए।

निर्माण संबंधी नियम
1.   पूर्वी तथा उत्तरी भाग में पश्चिम तथा दक्षिणी भाग की उपेक्षा अधिक खाली रखें एवं पूर्वी तथा उत्तरी भाग का तल पश्चिमी एवं दक्षिणी भाग की तुलना में नीचा होना चाहिए।

2.   यदि पूर्वी भाग में चबूतरा अथवा बरामदा बनवाना हो तो बरामदे का तल एवं छत नीची होना चाहिए।

3.   पूर्वी भाग में कूड़ा-करकट, पत्थर एवं मिट्टी के ढेर, अनुपयोगी सामान का संग्रह कदापि नहीं करें। पूर्व मुखी भवन में पूर्वी भाग की चाहरदीवारी अन्य भागों की उपेक्षा नीची होनी चाहिए विशेषतः पश्चिमी भाग की तुलना में।

4.   उत्तर मुखी भवन में चाहरदीवारी का निर्माण गृह निर्माण पूर्व होने के पश्चात करवाना चाहिए।

5.   यदि उत्तरी भाग में बरामदा बनवाना हो तो बरामदे की छत एवं फर्श निम्न होनी चाहिए। भूखण्ड/भवन के उत्तरी भाग में अनुपयोगी एवं भारी सामान एकत्र नहीं करें।

6.   पश्चिमी भाग में चबूतरे/बरामदें का तल नीचा नहीं होना चाहिए। पश्चिमी भाग में कूड़ा एवं अनुपयोगी सामान का संग्रह कर सकते हैं।

7.   दक्षिणी भाग में कुआं होने पर अर्थ हानि एवं दुर्घटना संभावित है। दक्षिणी भाग के कमरे यदि अन्य भागों की उपेक्षा ऊंचे बनवाये जावें तो सत्परिणाम प्राप्त हो सकते हैं। किन्तु दक्षिणी भाग के निर्मित स्थल एवं खाली स्थल का तल अन्य भागों की उपेक्षा नीचा नहीं होना चाहिए। भूमिगत जलस्त्रोत उत्तर-पूर्वी भाग में होना चाहिए किन्तु इसका ध्यान रखें कि यह उत्तर-पूर्वी भाग के दक्षिणी-पश्चिमी भाग से मिलाने वाले रेखा पर नहीं हो।

8.   भवन एवं भूखण्ड का उत्तर-पूर्वी भाग दोषरहित रहना चैये। यदि उत्तर-पूर्वी भाग अग्रेत हो एवं अन्य कोई वास्तु दोष उपस्थित नहीं हो तो यह माना जाता है कि उस भवन के निवासी धन के अभाव में कष्ट नहीं उठाएंगे, साथ ही उनकी संतान मेधावी हो।

9.   यदि भूखण्ड के उत्तर-पूर्वी भाग से सताते हुए तालाब, नहर अथवा कुआं हो तो इसे शुभ संकेत माना जाता है। भूखण्ड का उत्तर-पूर्वी भाग समस्त भागों की उपेक्षा नीचा होना चाहिए।

10.   यदि उत्तर-पूर्वी भाग के उत्तरी भाग में मार्ग प्रहार हो तो यह संकेत माना जाता है।

11.   वर्षा का जल यदि भूखण्ड के उत्तरी-पूर्वी भाग से निकलता हो तो यह शुभ लक्षण माना जाता है।

12.   उत्तरी-पूर्वी भाग में शौचालय का निर्माण कदापि नहीं करें न ही सैप्टिक टैंक का निर्माण करावें।

13.   यदि आपका भवन दक्षिण-पूर्व मुखी है तो निम्न बातों का ध्यान रखें।

(A)  दक्षिण-पूर्वी भाग अग्रेत नहीं होना चाहिए।
(B)  उत्तरी भाग में खाली स्थल छोड़ना चाहिए किन्तु यह खाली स्थल दक्षिणी भाग में छोड़े गए खाली स्थल से अधिक होना चाहिए। इसी प्रकार पूर्व में पश्चिम की उपेक्षा अधिक खाली स्थल होना चाहिए।
(C)  चाहरदीवारी का फाटक दक्षिण, दक्षिण-पश्चिम अथवा पूर्व, दक्षिण-पूर्व में नहीं रखें।
(D)  जहाँ तक सम्भव हो उत्तर पूर्वी दीवार को हद बनाकर निर्माण नहीं करवाएं। उत्तर एवं पूर्वी भाग दक्षिण एवं पश्चिम भाग की तुलना में ऊंचा भी नहीं होना चाहिए।

14.   भूखण्ड एवं भवन की दक्षिण-पश्चमी भाग अन्य समस्त भागों की तुलना में ऊंचा होना चाहिए।

15.   दक्षिण-पश्चिम भाग अग्रेत नहीं होना चाहिए।

16.   उत्तर-पूर्वी भाग में सीढियां होने पर आर्थिक हानि संभावित है। सीढ़ियों का निर्माण दक्षिण, पश्चिम अथवा दक्षिण-पश्चिम भाग में करवाना चाहिए।

17.   रसोईघर दक्षिण-पूर्वी भाग में होना चाहिए। किन्तु उत्तर-पूर्वी, दक्षिण-पश्चिमी एवं दक्षिणी भाग में निर्माण नहीं करवाएं।

18.   भवन के मुख्य प्रवेश द्वार पर शुभ मुहूर्त में गणपति की स्थापना करें किन्तु गणपति का मुंह दक्षिण दिशा की ओर नहीं होना चाहिए।

19.   केंद्र स्थल पर किसी दीवार/खम्बे का निर्माण नहीं करें।

03 मई 2011

अपनाएं सकारात्मक दृष्टिकोण


जीवन में घटने वाली किसी भी घटना या परिस्थिति का अपना कोई स्वतंत्र मूल्य नहीं होताघटनाओं या परिस्थितियों के जिस दृष्टिकोण से हम आत्मसात करते हैं, वही उसका मूल्य हो जाता है। 

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म्पूर्ण व्यक्तित्व विकास के लिये सकारात्मक दृष्टिकोण का होना बहुत जरूरी है। लोग अक्सर अपने दृष्टिकोण से ही अपना मूल्यांकन, दूसरों के आचार-व्यवहार और विचारों के अच्छे-बुरे होने का निर्णय लेते हैं। जीवन में लोग उन्हीं चीजों को महत्व देते हैं, जिन्हें वह स्वयं महत्वपूर्ण मानते हैं अथवा जिस क्षेत्र में उनकी योग्यता अच्छी होती है, उसी क्षेत्र को वे अच्छा मानते हैं।

दृष्टि और दृष्टिकोण का अंतर
इस सन्दर्भ में आगे चर्चा करने से पहले हमें दृष्टि और दृष्टिकोण का अंतर समझना होगा। आपकी दृष्टी जहाँ तक जाती है, वह आपका दृष्टिकोण नहीं है वह तो आपका सिर्फ देखना होता है। पर उसी चीज को आप किस नजरिये से देखते हैं वह आपका दृष्टिकोण होता है। यदि आप अपने किसी कार्य को करने से पहले ही सफल होते हुए देखते हैं तो वह आपका सकारात्मक दृष्टिकोण होगा, वहीं अगर आप अपने किसी कार्य को करने से पहले ही असफल होते हुए देखते हैं या सोचते हैं तो वह आपका नकारात्मक दृष्टिकोण होगा। कहने का तात्पर्य यह है कि जैसा आप सोचने व देखने का नजरिया रखते हैं वह थीं वैसा ही आपके साथ घटित होता है। दरअसल आपकी सोच ही आपकी आतंरिक शक्ति बन जाती है। अच्छी सोच जहाँ सफलता दिलाने के लिये मजबूत आत्मबल प्रदान करती है, वहीं गलत सोच आपका आत्मबल कमजोर करती है। दरअसल आपका सकारात्मक दृष्टिकोण आपको वह तस्वीर दिखाता है, जिसे आप अपनी नज़रों से नहीं देख पाते।

स्वयं पर भरोसा जरूरी
दरअसल महत्वपूर्ण बात यह है कि आपका दृष्टिकोण आपके स्व-विश्वास से बनता है। यदि आपको स्वयं पर भरोसा है, तो आपका दृष्टिकोण भी सकारात्मक होगा। ऐसे में आप जो भी योजना बनाएंगे, उसके एवज में आप अपने विश्वास के बल पर उस योजना को कामयाब होते पहले ही देख लेते हैं।

भविष्य की प्लानिंग करें
आज रिलायंस पूरी दुनिया में किसी परिचय की मोहताज नहीं है। दूसरी तरफ कुछ लोग भविष्य के विषय में सोचना बेकार का काम समझते हैं। दरअसल उनका अपना कोई दृष्टिकोण नहीं होता, भविष्य की कोई प्लानिंग नहीं होती। उस पर तुर्रा यह कि 'हम आज में जी रहे हैं,' आज जीओ, आज खाओ-पीओ, मौज करो। कल की जब कोई बात होती तब देखेंगे। उनकी यही सोच उन्हें असफलता की ओर ले जाती है। ऐसे लोग जीवन में कभी कुछ नहीं बन पाते। वे कुँए के मेंढक की भांति 'आज' नामक कुँए में डुबकियां मारते रहते हैं और 'कल' नामक मीठे पानी वाली गंगा का कभी आनंद नहीं ले पाते। कडवा सच यह है कि वे जानते ही नहीं कि इस 'आज में 'कल' छिपा है। 'कल' जिसे वे 'आज' कहेंगे, वही उनका भविष्य है, लेकिन विचारों की व्यापकता और सकारात्मक दृष्टिकोण न होने के कारण वे लोग आगे नहीं बढ़ पाते।

इस प्रकार के लोगों का व्यक्तित्व भी प्रभावशाली नहीं बन पाता। नायक वाले गुण, दूसरों को चुम्बक की भांति अपनी ओर खींचने वाला, आकर्षित करने वाला आकर्षण उनमें पैदा ही नहीं हो पाता। दूसरों को सम्मोहित करने वाला आकर्षण कैसे पैदा हो, वे इस बट को जानते-समझने की जरूरत ही नहीं समझते।

सकारात्मक सोच रखें
जिस दिन आप अपने दृष्टिकोण को सकारात्मक बना लेंगे, उस दिन आप पाएंगे कि आपमें स्वतः कई प्रकार की असीम शक्तियों का विकास हो चुका है। आप पाएंगे कि आपका आत्मविश्वास पहले से कई गुना बढ़ चुका है। आपके चेहरे पर एक मनमोहक व प्रभावशाली चमक आ चुकी है। आपके माथे पर तेज आ गया है। आपकी बातों में वजन, चाल में अजब से शान और विश्वास आ चुका है। आप यह देखकर आश्चर्यचकित रह जाएंगे कि लोग खुद-ब-खुद आपसे आकर्षित होकर आपकी तरफ खींचे चले आ रहे हैं।

जीवन का वट वृक्ष विचार शक्ति पर ही निर्भर करता है। आप अपने बारे में जैसा सोचते हैं, वैसा ही बन पाते हैं। जहाँ कोई एक सकारात्मक विचार आपको सुख-समृद्धी के अथाह सागर तक ले जाता है, तो वही कोई नकारात्मक विचार आपको अन्धकार और गुमनामियों की खाई में धकेल देता है। साधू बनेंगे या शैतान, यह पाके विचार के अनुसार अपने चारों तरफ का वातावरण तैयार करते हैं। यदि आप अपने विचारों में सकारात्मकता ले आएं तो आप शैतान को साधू में बदल सकते हैं। इस तरह देखेंगे कि आपकी दुनिया ही बदल जाएगी।