22 मार्च 2010

Hindi Novel - ELove : Ch-41 वही गलती दुबारा ?

अंजली और विवेक जबसे आए थे तबसे अंजलीके बेडरुममें, एक दुसरेकों बाहोंमे भरकर, लेटे हूए थे. ना उन्हे खानेकी सुध ती ना पिनेकी.

'' जब उसकी पहली मेल आई, तब तुम्हे क्या लगा?'' विवेकने पुछा.

'' सच कहूं ... मुझे तो मानो मेरे पैर के निचेसे जमिन और सर के उपरसे आसमान खिसक गया ऐसा लगा था... मैने तो दिलसे तुम्हे स्विकारा था और ऐसी स्थितीमें ऐसाभी कुछ हो सकता है, मैने सपनेभी नही सोचा था....'' अंजलीने कहा.

'' इसका मतलब तुम्हे सब सच लगा था '' विवेकने मजाकिया अंदाजमें पुछा.

'' अरे.. मतलब ?... भलेही दिल नही मानता था पर परिस्थितीयां उसीके ओर इशारा कर रही थी. '' अंजलीने अपना बचाव करते हूए कहा.

'' और तुम्हे क्या लगा था ?'' अंजलीने पुछा.

'' नही तुम ठिक कहती हो ... मेराभी हाल कुछ कुछ तुम जैसाही था ... भलेही दिल ना माने परिस्थितीयां किसी ओर इशारा कर रही थी. '' विवेकने उसे सहलाते हूए कहा.

'' ऐसा वक्त फिरसे अपने जिंदगीमें कभी ना आए '' अंजलीने कहा.

'' सचमुछ... पहले तो मुझे अपने प्यारको किसीकी नजर लगी हो ऐसाही लग रहा था. '' विवेक उसके माथेको चुमते हूए बोला.

उसने उसके माथेको चुम लिया और वह उसके होंठोके पास अपने होंठ ले जाकर बडे बडे सांस लेते हूए वही रुक गया. और फिर आवेशके साथ एकदुसरेके होठोंको अपने मुंहमें लेकर वे एक बडे चुंबनमें मशगुल हो गए.

अचानक अंजलीको उनका पहले हॉटेलमें हुवा वह प्रणय याद आ गया और उसीके साथ कोई उनके फोटो खिंच रहा है ऐसा आभास हो गया.

वह झटसे अपने होंठ उसके होठोंसे हटाते हूए वह पिछे हट गई.

'' क्या हुवा ?'' विवेकने पुछा.

'' हम वही गलती दुबारा तो दोहरा नही रहे है '' अंजलीने मानो खुदसेही पुछा.

'' मतलब ?'' विवेकने पुछा.

'' यह सब और वहभी शादीसे पहले... तूम मेरे बारेंमे क्या सोच रहे होगे '' अंजलीने अपने जहनमें उठा दुसरा सवालभी पुछा.

'' डोन्ट बी सिली'' वह फिरसे पहल करते हूए बोला.

लेकिन उसके हाथपैर मानो ठंडे पड चुके थे. वह कुछभी प्रतिक्रिया नही दे रही थी.

'' तुम्हे अगर इसमें गलत लगता है और... तुम्हारा दिल अब नही मान रहा है तो ठिक है ... '' वह उससे अलग होते हूए वहांसे उठते हूए बोला.

'' वैसा नही हनी ... डोन्ट मिसअंडरस्टॅंड मी'' वह उसे फिरसे अपने पास खिंचते हूए बोली.

उसने फिरसे उठनेका प्रयास किया लेकिन अब वह उसे छोडनेके लिए तैयार नही थी. विवेकको कुछ समझ नही रहा था की. वह शिथील होकर सिर्फ उसके पास बैठा रहा. लेकिन अब मानो अंजलीके शरीरमें किसी चिजका संचार हुवा था. वह कॉटपर उसे एक तरफ गिराकर उसके उपर चढ गई और उसके शरीरपर सब तरफ चुंबनोकी मानो बरसात करने लगी. और फिर उनके बिच कुछ पलके लिए क्यों ना हो तैयार हुवा फासला मिट गया और वे एकदुसरेमें कब समा गए उन्हे कुछ पताही नही चला.


अंजली सुबह सुबह निंदसे जब जाग गई तब वह अपने पास पडे विवेकके मासूम चेहरेकी तरफ एकटक देखने लगी. उसने खिडकीसे बाहर झांककर देखा. बाहर अभीभी अंधेरा था. वह फिरसे विवेकके चेहरेकी तरफ एकटक देखने लगी. अचानक उसके खयालमें आगयाकी उसका मासूम चेहरा धीरे धीरे उग्र होता जा रहा है.

शायद वह कोई बुरा सपना देख रहा हो....

उसने उसके चेहरेपर हाथ फेरनेकी कोशीश की. लेकिन उसके हाथका स्पर्ष होतेही वह चौंककर उठ गया और गुस्सेसे बोला, ' मै तुम्हे छोडूंगा नही ... मै तुम्हे छोडूंगा नही ''

कुछ पलके लिए तो अंजलीभी घबराकर असमंजसमें पड गई.

'' क्या हुवा ?'' अंजलीने पुछा.

लेकिन कुछ पलमेंही उसका गुस्सा ठंडा पडा दिखाई दिया. और वह इधर उधर देखते हूए फिरसे सोनेके लिए लेटते हूए बोला,

'' कुछ नही ''

और फिरसे सो गया.