एक जमाने में राजा महासेन सारा भारत जीतकर चक्रवर्ती बना। महासेन द्वारा जो राजा हार गये, वे उसके सामंत बनकर उसके आदेशों का पालन करने और उसे नियमित रूप से शुल्क देने लगे।
साम्राज्य की स्थापना करने के विचार से महासेन ने अनेक युद्ध किये। मगर उसने कभी प्रजा को नहीं सताया। उल्टे जनता के हित के बारे में वह सदा सोचा करता था। इसके लिए अनेक योजनाएँ बनवाकर उन्हें सारे राज्य में अमल करवाता था। यही कारण है कि महासेन के साम्राज्य में सभी राज्य सुसंपन्न रहा करते थे, सिर्फ़ कोसल देश की स्थिति इससे भिन्न थी।
महासेन की समझ में यह बात न आई कि जब उसकी योजनाएँ सभी देशों में सफल हो गयी हैं तो केवल कोसल में क्यों विफल हो रही हैं। इस संबंध में महासेन ने काफी समाचार इकठ्ठा किया, परंतु विफल होने का कारण मालूम न हुआ।
चक्रवर्ती के यहॉं एक राजपुरोहित था। उसका एक रिश्तेदार गुणनिधि नामक एक भोला व्यक्ति था। गुणनिधि की बातचीत सबको हँसा देनेवाली होती थी। महासेन भी विराम के समय गुणनिधि को बुला भेजता और उसकी हास्य भरी बातें सुनकर अपना मनोरंजन कर लेता था।
गुणनिधि देवताओं के प्रति अधिक श्रद्धा एवं भक्ति रखता था। उसके मन में सभी देवताओं के दर्शनकर बहुत सारा पुण्य कमाने की बड़ी इच्छा थी। गुणनिधि ने सुन रखा था कि कोसल देश के प्रत्येक गॉंव में एक देवता है, हर गांव में एक मंदिर है, वहॉं के दुर्गम जंगलों में भी अत्यंत प्राचीन मंदिर हैं। इसलिए उस देश में तीर्थाटन करने के ख़्याल से वह चल पड़ा।
गुणनिधि की यात्रा सुगमतापूर्वक और आराम से हो, इस ख़्याल से राजपुरोहित ने उसके लिए आवश्यक अन्य सुविधाओं के साथ एक रथ और सारथी का भी प्रबंध किया। कोसल देश की सीमा में पहुँचते ही गुणनिधि रामपुरी नामक गॉंव पहुँचा। वहॉं पर ईश्वर नटराज के रूप में सुशोभित थे।
जनता ने नटराज के लिए एक सुंदर मंदिर बनवाया था। गुणनिधि उस मंदिर को देखते ही पुलकित हो उठा। मंदिर के भीतर भगवान की मूर्ति को देख वह तन्मय हो ज़ोर से चिल्ला उठा, ‘‘हर हर महादेव!’’
दूसरे ही क्षण दो सिपाही कहीं से आ धमके और गुणनिधि को कसकर पकड़ लिया।
गुणनिधि ने विस्मय में आकर पूछा, ‘‘यह क्या है? मैंने तो कोई अपराध नहीं किया है? तुम लोग मुझे क्यों तंग करना चाहते हो?’’
‘‘मंदिर के गर्भगृह में चिल्लाना अपराध है। चलो, गॉंव के मुखिये के पास! वहीं इस अपराध का फ़ैसला होगा।’’ सिपाहियों ने कहा।
गुणनिधि ने उनसे निवेदन किया कि वह यह बात नहीं जानता है। इस गॉंव के लिए वह नया है। इसलिए उसके इस अपराध को पहला अपराध मानकर उसे छोड़ दे। मगर सिपाहियों ने बिलकुल नहीं माना। उल्टे वे लोग मुखिये के पास जाने की जल्दबाजी मचाने लगे। लाचार हो गुणनिधि उनके साथ जाने को तैयार हो गया।
मंदिर में बैठे एक युवक यह सब देखता रहा। उसने धीरे से गुणनिधि के निकट पहुँचकर उसके कान में यों कहा, ‘‘इन लोगों से क्यों झगड़ा करते हो? तुम चुपचाप इन दोनों को एक एक रुपया दे दो, तुमको छोड़ देंगे।’’
गुणनिधि ने दोनों को दो रुपये दे दिये। तब वे लोग उसे मुक्त करके वहॉं से चले गये। तब उसने उस युवक के प्रति कृतज्ञता प्रकट की और पूछा, ‘‘गर्भगृह में भगवान का नाम लेना अपराध कैसे हो सकता है?’’
युवक ने हँसकर कहा,‘‘इस देश में इस बात के लिए कोई नियम नहीं है कि यह सही है और वह गलत है। कब कौन बात गलत हो जाती है, इसे इस गॉंव के हमलोग भी नहीं जानते! हम सिर्फ़ यही जानते हैं कि सिपाही जब हम पर दोषारोपण करते हैं, तब उन्हें रिश्वत देकर अपना पिंड छुड़ा लें। यदि मुखिया के पास जाते हैं तो वहॉं इससे भी बड़ी रक़म देनी पड़ती है। वे न्याय और अन्याय का विचार नहीं करते!’’
गुणनिधि ने विस्मय में आकर पूछा, ‘‘क्या मुखिया भी रिश्वत लेता है? ऐसी हालत में आप लोग राजा से इसकी शिकायत कर सकते हैं न?’’
‘‘शिकायत क्या करेंगे? वे तो राजा के साले ठहरे!’’ युवक ने जवाब दिया।
गुणनिधि ने उस युवक से बताया कि वह राजपुरोहित का रिश्तेदार है। तब युवक ने कहा, ‘‘आप यह बात मुखिया से बताइयेगा तो आइंदा आपको कोई कष्ट न होगा।’’
गुणनिधि ने ऐसा ही किया। फिर उसे उस गॉंव में कोई तक़लीफ़ नहीं हुई। दूसरे गॉंवों में भी उसने ऐसा ही किया और निर्विघ्न अपनी तीर्थयात्राएँ समाप्त कीं। लेकिन उसने हर गॉंव में रामपुरी जैसे सिपाहियों के द्वारा जनता को हर छोटी-सी बात के लिए सताना, रिश्वत लेना, उसमें से थोड़ा हिस्सा ऊपरी अधिकारियों को सौंपना, ये सब स्वयं अपनी आँखों से देखा। परंतु उन अधिकारियों के प्रति राजा से शिकायत करने से सब लोग डरते थे। क्योंकि सब गॉंवों के मुखिये राजा के साले थे।
गुणनिधि ने अपनी यात्रा के दौरान में प्रायः हर गॉंव में यही सुना, ‘‘हमारे गॉंव का मुखिया राजा का साला हो गया, हम क्या कर सकते हैं?’’
चक्रवर्ती महासेन को जब मालूम हुआ कि गुणनिधि अपनी तीर्थयात्राएँ समाप्त कर लौट आया है, तब राजा ने उसे बुला भेजा और यात्रा के विशेष समाचार पूछा। गुणनिधि ने एक-एक करके सारे समाचार सुनाये और अंत में कहा, ‘‘रसिकता में कृष्ण के बाद उस कोसल नरेश का ही नाम लेना होगा। हम बता नहीं सकते कि उसके कितने साले हैं।’’
महासेन ने अपनी हँसी को रोकते हुए पूछा, ‘‘तुमने उसकी गिनती क्यों नहीं की?’’
‘‘महाराज, मैं कैसे गिन पाता? हर गॉंव का मुखिया राजा का साला है। राज्य संबंधी सारे कार्य देखनेवाले सभी लोग राजा के साले हैं।’’ गुणनिधि ने उत्तर दिया।
इस बार महाराजा को हँसी नहीं आई। उसने गुणनिधि से कई सवाल पूछकर यह जान लिया कि गुणनिधि जो कुछ कह रहा है, वह सब उसने कोसल की जनता के मुँह से सुना है। उसे लगा कि इसमें कोई गुप्त बात होगी। महासेन की जहॉं तक जानकारी है, कोसल राजा के दो ही रानियॉं हैं। उनमें से एक महासेन की सगी बहन है। ऐसी हालत में कोसल राजा के सारे कार्य उसके साले कैसे देख रहे हैं। कोसल राजा की दूसरी पत्नी के हज़ारों भाइयों का होना असंभव है।
इसके बाद गुणनिधि को भेजकर राजा सोच में पड़ गया। उसने जो योजनाएँ तैयार कीं, उनकी उत्तमता पर वह प्रसन्न था, मगर उसने कभी उन्हें अमल करनेवाले योग्य व्यक्तियों के बारे में विचार नहीं किया। तब उसे लगा कि अपनी योजनाओं का केवल कोसल राज्य में सफल न होने का कारण अधिकारियों की अयोग्यता हो सकती है। इस पर तुरंत राजा ने दो योग्य गुप्तचरों को कोसल देश में भेजा। गुप्तचरों ने कोसल देश का भ्रमण करके राजा के लिए आवश्यक समाचार का संग्रह किया।
गुणनिधि के कहे अनुसार कोसल देश में स्वेच्छापूर्वक लोगों को सताया जा रहा है। अधिकारी अपने अधिकार का दुरुपयोग कर रहे हैं। इसका मुख्य कारण अधिकारियों की नियुक्ति उनकी योग्यताओं के आधार पर न होना ही है। उदाहरण के लिए कोसल का सेनापति शूरसिंह तलवार चलाना तक जानता न था। उसका सारा पराक्रम उसके नाम में ही निहित था। वह राजा का साला था। यही कारण है कि कोसल देश में बिना योग्यता के अन्य कारणों की वजह से अधिकारी बननेवाले प्रत्येक व्यक्ति के लिए ‘राजा का साला’ शब्द प्रचलन में आ गया था।
ये सारी बातें सुनने पर राजा महासेन की आँखें खुल गईं। कोसल राजा उसका बहनोई था इसीलिए वहॉं की योजनाओं के विफल हो जाने पर भी सही कारण जाने बिना वह राजा के बताये बहानों पर विश्वास करके चुप रह गया था। अब उसे स्पष्ट हो गया कि ऐसा अंध विश्वास जनता के लिए कैसे हानिकारक साबित हो सकता है?
इसके बाद महासेन ने उचित कार्रवाई करके अयोग्य अधिकारियों को अपने अपने पदों से हटाया। कुछ ही सालों में कोसल देश फिर से संपन्न और समृद्ध बना। राजा ने जब फिर वहॉं का भ्रमण किया, लोगों ने उससे कहा, ‘‘हमारा मुखिया राजा का साला नहीं, इसलिए हमलोग आराम से हैं।’’
30 मार्च 2010
राजा का साला
Posted by Udit bhargava at 3/30/2010 07:54:00 pm
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