अचानक कुछ छोटे बच्चों के ऊँचे स्वर में मन्त्रोच्चारण से उसकी नींद टूट गई। एक मुल्ला अपने घर पर कुछ बच्चों को पढ़ा रहा था। उसने मुल्ला को चिल्लाकर यह कहते सुना, ‘‘तुम पर चीखने-चिल्लाने का कोई लाभ नहीं । तुम सब गधे हो। मैं तुम्हें इनसान बनाने की कोशिश कर रहा हूँ। लेकिन लगता है तुमने मेरी बात को न समझने के लिए कसम खा ली है।''
जीवनसिंह ने देखा कि बच्चे चुपचाप बाहर निकल रहे हैं। उसे अपने बचपन की याद आ गई जब उसने किसी स्कूल का मुँह नहीं देखा। उसका स्कूल उसके पिता की दुकान थी, वहीं उसने लिखना, पढ़ना, बोलना और हिसाब-किताब की जटिलता सीखी थी। इससे भी अधिक उपयोगी उसके पिता ने यह सिखाया था कि ग्रहकों के साथ कैसा बरताव करना चाहिये। उसने जीवन में पहली बार सोचा कि यहाँ एक ऐसा आदमी है जो गधों को इनसान बनाने की कोशिश कर रहा है। और उसके पास एक गधा है जो भार ढोने के अलावा और किसी लायक नहीं है। शायद उस काम के लिए गधे को बुद्धि की ज़रूरत नहीं होती।
मुल्ला को बड़ी हँसी आई जब जीवनसिंह ने पेड़ के नीचे सोते हुए जो कुछ सुना, उसे बताते हुए मुल्ला से अपने गधे को इनसान बनाने के लिए अनुरोध किया। मुल्ला ने देखा कि व्यापारी बड़ी सच्चाई से कह रहा है। ‘‘ठीक है'', उसने कहा, ‘‘गधे को यहाँ छोड़ जाओ और तीन महीनों तक उसे खिलाने के लिए काफी धन दे जाओ। उसके बाद उसे तुम ले जा सकते हो।''
जीवनसिंह ने बचा हुआ धन उसे दे दिया, गधे पर से सामान उतारा और अपनी पीठ पर लाद लिया और उसे धन्यवाद देकर वह घर की ओर चल पड़ा। चालाक मुल्ला गधे को तब तक अपने उपयोग के लिए रखना चाहता था जब तक व्यापारी उसे लेने के लिए न आ जाये। आखिर खिलाने के लिए उसे कौन-सा अपना धन खर्च करना था।
तीन महीनों के बाद जीवनसिंह ठीक समय पर यह आशा लिये आ गया कि एक मज़बूत नवयुवक उसे उसका इन्तज़ार करता हुआ मिलेगा। मुल्ला ने मुस्कुराते हुए उसका स्वागत किया, ‘‘तुम्हारा गधा मेरी अपेक्षाओं से कहीं आगे निकला। कुरान की सतरें याद करते समय धीरे-धीरे वह एक ख़ूबसूरत नौजवान में बदल गया। अगले गाँव का मुखिया मर गया था और गाँव वाले उसके स्थान पर रखने के लिए किसी व्यक्ति की तलाश कर रहे थे। वे लोग मुझसे मेरी सलाह मांगने आये। मैंने गधे से आदमी बने युवक की सिफारिश की। गाँव के वयोवृद्ध मेरे एहसानमन्द हो गये। वे युवक को ले गये।''
जीवनसिंह बहुत प्रसन्न हो गया। फिर भी, वह अचानक अपने गधे की कमी महसूस करने लगा। उसने अनुभव किया कि ऐसे बुद्धिमान नवयुवक की सेवा उसे ही मिल पाती तो उसे कितनी खुशी होती! उसने फिर पड़ोसी गाँव में जाकर उससे मिलने का निश्चय किया। वह सीधे मुखिया के घर पर पहुँचा।
मुखिया उस समय वरिष्ठ लोगों से विचार-विमर्श कर रहा था। जीवनसिंह ने देखा कि मुखिया वैसा सुन्दर और युवा नहीं है जैसा कि मुल्ला ने कहा था। लेकिन जिस तरह उसने गाँव की समस्याओं को सुलझाया उससे वह निश्चित रूप से बुद्धिमान लगा। जब विचार-विमर्श ख़त्म हो गया, जीवनसिंह ने पास जाकर अभिवादन किया। ‘‘अरे यार, क्या तुमने मुझे पहचाना नहीं? मैं तुम्हारा मालिक हूँ। मैंने तुम्हें तालीम याफ्ता मुल्ला के पास छोड़ दिया था।''
मुखिया ने, सौभाग्यवश, इस अनजान आदमी के व्यवहार का बुरा न माना। बल्कि शिष्टतापूर्वक कहा, ‘‘महोदय, मैं इस गाँव का मुखिया हूँ। मैं नहीं समझता तुम क्या कह रहे हो और कैसे तुम मेरे मालिक थे।'' उसने देखा कि गाँव के सभी वयोवृद्ध जन एक दूसरे को और उत्सुकता से आगन्तुक को कैसे देख रहे हैं।
जीवनसिंह ने तब तीन महीने पहले मुल्ला के साथ हुई भेंट के बारे में उसे बताया। यह सुनकर मुखिया ठठाकर हँसा कि कभी वह व्यापारी का गधा था। उसने बुरा न माना, बल्कि उस सीधे सादे आदमी के लिए इस मज़ाक को और आगे बढ़ा दिया। ‘‘मेरे अच्छे दोस्त'', उसने जीवनसिंह के हाथ को अपने हाथ में लेते हुए कहा, ‘‘मुल्ला को समझने में गलती हो गई। वास्तव में तुम्हारा गधा फकीर हो गया है जो अनेक धर्मों का मुखिया है। तुम उसी से जाकर मिलो।''
व्यापारी अब फकीर की तलाश करने निकला। वह दिन भर गलियों, हाटों, मस्जिदों, दरगाहों पर भटकता रहा, लेकिन फकीर कहीं नहीं मिला। शाम हो रही थी। आखिर वह थकामांदा पानी पीने के लिए-नदी किनारे पहुँचा। वहाँ उसने एक फकीर को देखा। वह नदी किनारे प्रार्थना कर रहा था। प्रार्थना खत्म होने के बाद जीवनसिंह उससे मिला। ‘‘क्या तुम्हें याद है कि पड़ोसी गाँव के मुल्ला ने तुम्हें कुरान की आयतें सिखाई थीं और फकीर में बदल दिया था। इससे पूर्व तुम मेरे गधे थे और मैं तुम्हारा मालिक था।''
‘‘क्या मैं गधा था? मैं क्या सुन रहा हूँ! मैं किसी मुल्ला को नहीं जानता । मैंने कुरान की आयतें मदरसा में सीखीं। जो भी हो, तुम्हारा दिमाग तो ठीक है न?'' फकीर ने चिल्ला कर पूछा। ‘‘मैं समझता हूँ कि तुम्हें मतिभ्रम का रोग हो गया है। मेरे पास जादू की कुछ शक्तियॉं हैं जिनसे मैं तुम्हें ठीक कर सकता हूँ, लेकिन इससे पहले तुम्हें अपने गधे के बारे में सब कुछ बताना होगा!''
जीवनसिंह, जिसे डर था कि फकीर अब मार बैठेगा, यह देख कर शान्त खड़ा था कि फकीर नरम पड़ गया है। इसलिए उसने विस्तारपूर्वक सब कुछ बता दिया, जिससे जादू का प्रभाव ठीक ठीक पड़ सके। उसे आशा के विपरीत आशा होने लगी कि फकीर का जादू अन्त में उसी का गधे में बदल देगा और अपने पहले मालिक को पहचान लेगा।
फकीर आँखें बन्द कर तब तक बैठ चुका था। जीवनसिंह भी साँस रोक कर उसके सामने बैठ गया। फकीर ने धीरे-धीरे आँखें खोलीं और कहा, ‘‘मेरे अच्छे दोस्त, जब कोई बहादुरी का काम करता है, तब हम उसे शेर कहते हैं । जब कोई चालाकी करता है तब हम उसे दुष्ट कहते हैं। हम उसे लोमड़ी भी कह सकते हैं। हम जब अपनी भावनाओं को इस तरह प्रकट करते हैं तब लोग बेहतर समझते हैं। वैसे ही जब मुल्ला ने देखा कि बच्चे उसकी तालीम को देर से समझते हैं, तब उसने उन्हें गधा कहना ज्यादा पसन्द किया, यद्यपि वह अपने दिल में यही ख्वाहिश करता रहा कि कैसे वह इन छोटे ‘गधों' को बुद्धिमान मनुष्य बना दे। कहने के ढंग में मुल्ला की गलती नहीं है और न तुम्हारी गलती है कि क्यों तुमने मुल्ला से अपने गधे को इनसान में बदलने की उम्मीद की। लेकिन जब तुम मुल्ला के पास अपने गधे को लेकर गये, तब उसने तुम्हारी बेवकूफी से फायदा उठाया। याद रखो, गधा हमेशा गधा ही रहता है। गधे को इनसान नहीं बना सकते। लेकिन तुम जैसे इनसान को गधा ज़रूर बनाया जा सकता है जो मुल्ला ने कर दिखाया। मुल्ला के पास वापस जाओ और तुम्हें उसके घर के पिछवाड़े में तुम्हारा गधा बँधा हुआ मिल जायेगा! मेरी दुआ तेरे साथ है।''
‘‘धन्यवाद, हे परम आदरणीय महाराज!'' जीवनसिंह ने खड़ा होते हुए कहा। ‘‘आज मैंने जीवन में पहला पाठ सीखा है। मैं सीधा मुल्ला के पास जाकर अपना गधा माँगूंगा। मैं अपने गधे को कभी अलग नहीं कर सकता भले ही वह बेदिमाग हो।''
जैसा कि फकीर ने अनुमान लगाया था, गधा मुल्ला के घर के पिछवाड़े में मिल गया। मुल्ला वहाँ पर नहीं था, इसलिए जीवनसिंह अपने गधे को साथ ले कर वहाँ से अपने घर की ओर चल पड़ा। व्यापारी उस दिन गधे पर सवार नहीं हुआ, जैसा कि हमेशा किया करता था, यद्यपि उसके पास उस दिन कोई बोझ नहीं था।
एक टिप्पणी भेजें