15 मई 2010
जो जैसा सोचता है, वो वैसा ही....
Posted by Udit bhargava at 5/15/2010 09:00:00 am 0 comments
14 मई 2010
रिश्ते सुधारने के नुस्खे
दोस्तो! हर किसी की यही तमन्ना होती है कि जो उसे प्यार करे हमेशा एक सा प्यार करता रहे पर बहुत कम रिश्तों में ऐसा होता है जहाँ हमेशा खुशी और उत्साह बना रहे। एक बार रिश्ता कोई स्वरूप धारण कर लेता है तो बस उसी के इर्द-गिर्द एक बेजान मशीन की तरह वह घूमता रहता है पर हताश होने की जरूरत नहीं इस बेजान सी मशीन में फिर से जान डाली जा सकती है। यूँ तो बहुत से तरीके हैं अपने बेरंग रिश्ते में रंग भरने के लेकिन यहाँ पर उन्हीं नुस्खों को आपके लिए पेश किया जा रहा है जिसमें दोनों की खुशी बरकरार हो :
निर्जीव हुए रिश्तों में जान फूँकने का सबसे अच्छा तरीका है अपनों के साथ समय बिताना। जो लोग आपके जीवन में मायने रखते हों उनके साथ क्वालिटी टाइम यानी गुणवत्ता समय बिताना बहुत असरदार होता है। समय का अभाव है तो समय निकालें। समय चाहे थोड़ा हो पर यह अहसास करना कि उनके साथ समय बिताना आपके लिए कितना महत्वपूर्ण है, जरूरी है। कई बार दोनों अपने-अपने काम में इतने व्यस्त हो जाते हैं कि एक-दूसरे के लिए समय निकालने की जरूरत ही नहीं समझते हैं। उनके दिमाग में एक ही बात होती है कि हम ये सब काम सिर्फ अपने लिए तो नहीं कर रहे हैं पर ऐसा करते हुए हम एक घर में रहते हुए भी अकेले से हो जाते हैं। इस अजनबीयत को तोड़ने का बस एक ही तरीका है कि सोच-समझकर समय साथ-साथ बिताएँ।
हम पूरी दुनिया की बात ध्यान से सुनते हैं और उन्हें सम्मान करते हैं पर जो हमारे अपने होते हैं हम उनकी बातों को ध्यान से सुनने की जरूरत ही नहीं समझते और ऐसा कर हम उनका अपमान करते हैं। यह आदत बदलने की जरूरत है। हमने सामाजिक व्यवहार में यही सीखा हुआ होता है कि यदि हम किसी के विचारों से असहमत हैं फिर भी उनके नजरिए को जरूर सुनें पर अपने करीबी लोगों के साथ ऐसा व्यवहार करने का प्रशिक्षण हमें अमूमन नहीं मिला होता है इसलिए जैसे ही किसी की राय हमसे भिन्न होती है तो हम बेचैन होकर उसी समय उस बात को काटकर रोक देते हैं।
* अपने सब्र का दामन कभी न छोड़ें, चाहे शिकायत का मुद्दा आपकी सोच से विपरीत क्यों न हो। अगर आपने उनकी शिकायत को धैर्य से नहीं सुना तो सामने वाले को यही लगेगा कि आपको उनकी परवाह नहीं है। हो सकता है उनकी शिकायत पूरी तरह वाजिब न हो पर यह दुख या सवाल उनके मन में आपके ही किसी व्यवहार से आया है। बेहतर यही है कि उस शिकायत को खुले दिल से सुन लें। ऐसी परिस्थितियों से बचने से या अपनी बात कहकर चुप कराने से रिश्तों का अपनापन जाता रहता है।
* अपने प्यार करने वालों को घर की मुर्गी की तरह नहीं लेना चाहिए। अकसर कुछ समय के बाद हम यही मानने लगते हैं कि यह कहाँ जाएगा या जाएगी। इस खड़ूस को कौन चाहने वाला मिल सकता है या मिल सकती है पर जब कभी ऐसा होता है तब पाँव तले से जमीन खिसकने लगती है। हैरानी तब होती है जब वही व्यक्ति डर के मारे छोटी-बड़ी बातों का खयाल रखने लगता है। फिर उन्हें अपने साथी की पसंद-नापसंद पर नजर रखना भी आ जाता है। हँसना-हँसाना भी वे सीख जाते हैं पर यही सारा कुछ कोई पहले से ही करे तो जिंदगी इतनी बेरौनक न हो कि गुलजार करने के लिए किसी और का सहारा लिया जाए।
* अगर आप किसी रिश्ते को लेकर आश्वस्त हैं तो आपके साथी तक अपने आप ही उस आश्वस्ती की लहर पहुँच जाएगी। आपका भरोसा, अपनापन बिना शब्दों में ढाले ही दूसरे पर प्रतिबिंबित होगी। जहाँ मन की सच्चाई नहीं हो वहाँ कोई शब्द, कोई जादू-टोना काम नहीं करता। यदि एक व्यक्ति आश्वस्त नहीं है तो दूसरे से आश्वस्ती की उम्मीद करना बेकार है।
* यदि अनजाने में कोई भूल हो गई है तो माफ करने की कोशिश करनी चाहिए। यदि सचमुच उसका इरादा दुख पहुँचाने का नहीं था तो उस बात को दिल से लगाए रखने का कोई तुक नहीं है। माफ करते हुए रिश्ते को आगे बढ़ने का मौका देना चाहिए। समझौते की गुंजाइश हमेशा रहने देना चाहिए। चीखना-चिल्लाना और बहुत क्रूर होना तो भूल ही जाना चाहिए। इससे रिश्ते सुधरते नहीं हैं बल्कि बिगड़ते हैं।
ऊपर लिखे सातों नुस्खों को हम यदि आजमाएँ तो यकीन मानिए कम से कम पचास प्रतिशत तो हमारे रिश्ते में सुधार आना निश्चित है। रिश्ते में गरमाहट और खुशी भी तभी मिलती है जब हम उसे सच्चे मन व सचेत रूप से निभाते हैं।
Labels: प्रेम गुरु
Posted by Udit bhargava at 5/14/2010 06:43:00 pm 0 comments
तलाश... जो पूरी न हुई
लियो टॉल्स्टाय ने 18वीं सदी में एक उपन्यास लिखा था- अन्ना कारेनिना। एक विवाहित स्त्री का प्रेम के लिए भटकना और उसे पाकर भी मौत को पाना, विचारों की जटिलता प्रस्तुत करता है। यह एक ऐसे दौर की कथा है, जब समाज में स्त्री का प्रेम करना अपराध माना जाता था और यदि एक विवाहित स्त्री ऐसा कर रही है, तो उससे बड़ा कलंक और क्या हो सकता था! लेकिन उपन्यास की नायिका अन्ना कारेनिना ने उन बंधनों को मानने से इंकार कर दिया और प्रेम कर बैठी।
अन्ना ने जिस प्यार के लिए अपने पति और पूरे समाज से बगावत की, उससे ही दूरियाँ बढ़ने लगीं थीं। अब अन्ना और व्रोन्स्की के रिश्ते बोझिल होने लगे थे, अन्ना के जीवन में न प्रेम रहा और न ही पति नाम का कोई सामाजिक रिश्ता। दोराहे पर खड़ी अन्ना को लगा कि उसकी जिंदगी में मौत से बेहतर विकल्प और कुछ नहीं हो सकता। अंतत: उसने ट्रेन के आगे कूदकर आत्महत्या कर ली, और प्रेम की तलाश पूरी होकर भी अधूरी रह गई।
Labels: प्रेम गुरु
Posted by Udit bhargava at 5/14/2010 06:42:00 pm 0 comments
प्यार को कभी भूलना भी जरूरी
हैलो दोस्तो ! सच्चे अपनेपन से बड़ा अहसास और कोई नहीं होता। आप दुनिया के किसी कोने में हों, यदि आपको यह भरोसा हो कि कोई आपकी सलामती की दुआ करता है, आपके इंतजार में है और आपसे मिलने को बेचैन है तो आप अकेले होकर भी अकेले नहीं होते। आप अपने अंदर सुकून महसूस करते हैं और दिल लगाकर अपना काम पूरा करने में लग जाते हैं ताकि अपने साथी से जब मिलें तो पूरे संतोष के साथ मिलें लेकिन यदि कोई किसी का इंतजार करने से इनकार कर दे तो निश्चित ही यह दिल तोड़ने वाली बात होगी।
ऐसी ही स्थिति में हैं अजय (नाम बदला हुआ) जो शिप पर सेकेंड इंजीनियर हैं। अजय और उनकी दोस्त एक जाति के नहीं हैं। पहले तो इनमें खूब प्यार था पर धीरे-धीरे अजय की दोस्त को लगने लगा कि यह प्यार शादी में नहीं बदल सकता। उसने अजय को सलाह दी कि वह इस प्रेम को भूल जाएँ पर अजय हैं कि चाहे वह कहीं भी हों वहाँ से अपनी दोस्त को फोन करते हैं पर दोस्त बात तक नहीं करती। अजय के लिए इस प्यार को भुलाना मुश्किल हो रहा है।
अजय जी आपने पूछा है आप क्या करें? दरअसल, आप कुछ कर ही नहीं सकते हैं। आप तो प्यार कर ही रहे हैं। रिश्ता तोड़ने का फैसला तो आपकी दोस्त ले रही हैं। आप चाहें न चाहें, आपको उस फैसले को मानना ही है। चाहें तो एकतरफा प्यार करें पर उसकी क्या तुक है। अपनी दोस्त के बारे में कोई दुर्भावना रखने के बजाय उसे माफ करते हुए जीवन में आगे बढ़ जाना ही उचित होगा। अपनी दोस्त के मुँह फेर लेने से आपके प्यार भरे दिल को ठेस जरूर पहुँची है पर यदि आप उसके दृष्टिकोण का विश्लेषण करें तो शायद आपका दुख और क्रोध कम हो जाए और उसका फैसला कुछ हद तक जायज लगे। पुरानी मान्यताओं के कारण संभव है कि अलग जाति की वजह से दोनों ही परिवार इस शादी का वैसा स्वागत न करें जैसा अपनी जाति के रिश्तों में करते हैं। आप तो ज्यादा वक्त जहाज पर रहते हैं।
ऐसे में उस अकेली को यहाँ सहयोग करने वाला कौन रहेगा? जीवन में हर कदम पर समाज और परिवार की मदद की जरूरत पड़ती है। आप दोनों साथ-साथ होते तो शायद वह परिवार वालों की नाराजगी झेलने का साहस जुटा पाती। पर, भविष्य में आने वाली व्यावहारिक कठिनाइयों से वह घबरा गई है। यूँ प्यार करने वालों से यही उम्मीद की जाती है कि वे जोखिम उठाने का दमखम रखें पर अपना जो सामाजिक ढांचा है वहाँ प्यार में कोई चैन सुकून से जी सके ऐसा बहुत ही मुश्किल है। आपकी दोस्त जानती है कि समय पड़ने पर मदद करने के बजाय लोग ताना कसने में जुट जाएँगे। उन सबकी कल्पना से ही वह विचलित हो गई होगी।
खैर ! बेहतर तो यही होता कि आप दोनों एक होते पर समय रहते ही उसके मन का सही द्वंद्व सामने आ गया, इसे आप बढ़िया संकेत समझें वरना शादी के बाद यह समस्या बेहद जटिल हो जाती और तब मनमुटाव-तकरार आपके जीवन का बहुत बड़ा भाग छीन लेता। अभी आपके हिस्से में बड़ा भाग खूबसूरत यादों का है। उसे संभालते हुए दूसरे साथी की तलाश में जुट जाएँ। जब कोई अपनी जुबान से अलग होने का प्रस्ताव रखता हो तो उसे प्यार से विदा कर देना चाहिए। प्यार दो दिलों का मेल होता है। जबर्दस्ती या रोना रोकर तो आप किसी को नहीं रोक सकते न। प्यार में विवशता नहीं होनी चाहिए। प्यार आजादी का दूसरा नाम है। रिश्ते में कई बार इतनी गहराई नहीं होती है कि वे एक-दूसरे से सारी बातें शेयर करें। सामने वाले को यह भरोसा नहीं होता है कि वह जो कुछ बताएगा उसे उसका साथी उसी भावना से समझ पाएगा,आत्मसात कर पाएगा इसलिए जोड़े काफी समय तक एक-दूसरे से छोटी-छोटी बातें भी छुपाते हैं। इस छुपाने को कई लोग इतनी गंभीरता से लेते हैं कि रिश्ते ही टूट जाते हैं।
ऐसी ही एक समस्या है गुड़िया की जो लता की दोस्त हैं। लता ने लिखा है कि उनकी दोस्त गुड़िया ने अपने प्रेमी हेम को एक एसएमएस देखने नहीं दिया। हेम को जब एसएमएस जानने वाले के बारे में पता चला तो दोनों में झड़प हो गई। जहाँ हेम को एसएमएस पर आपत्ति थी वहीं गुड़िया को उसके मोबाइल के मामले में हस्तक्षेप करने के मामले में। एक साल से चल रहा प्रेम-प्रसंग इस एक बात पर टूट गया।
कई महीनों की चुप्पी के बाद अब गुड़िया ने नया मोबाइल नंबर ले लिया है। लता पूछती हैं कि क्या गुड़िया फिर से प्रेम के बारे में सोचे? मेरे खयाल से नहीं। आपसी समझदारी ही प्यार के रिश्ते को आधार देती है। और पुरानी घटना यही बताती है कि उन दोनों में आपसी समझदारी की कमी है। एक खास प्रकार का रिश्ता जी लेने के बाद केवल दोस्त बनकर एक-दूसरे को समझना भी बहुत परिपक्वता खोजता है जो कि हेम और गुड़िया में फिलहाल नजर नहीं आता। बेहतर है इस प्रसंग को भूल जाएँ।
Labels: प्रेम गुरु
Posted by Udit bhargava at 5/14/2010 06:41:00 pm 1 comments
प्यार का मतलब रब होता है
कहने को ढाई अक्षर भर हैं, पर कितना कुछ समेटे है अपने अंदर। आशय कितना विराट और बहुआयामी। भाँति-भाँति के रंग लिए हुए। नि:शब्द, लेकिन अनुगूँज ठेठ अंदर तक। एक अमूर्त अहसास। अपनी संपूर्ण उदात्तता में प्रेम कोमल भावनाओं की मौन अभिव्यक्ति है। प्रेम कुछ देखा, कुछ अनदेखा, कुछ व्यक्त, कुछ अव्यक्त और कुछ दृश्य, कुछ अदृश्य-सा होता है। उसे किसी एक परिभाषा में बाँधना, उसे छोटा करके देखना है। प्यार का इज़हार आँखों से होता है, जबान से नहीं।
प्रदर्शनकारी होने पर प्रेम की महत्ता घटती है। 'आई लव यू' और 'आई लव यू टू' शब्द बहुत औपचारिक हो गए हैं। टीवी और सिनेमा के पर्दे पर ही अच्छे लगते हैं। पति का झूठा खाने से प्रेम प्रमाणित नहीं होता। दरअसल, शोर प्रेम के मार्ग की सबसे बड़ी बाधा है। प्रेम तो अनंत है, असीम। वह बाँटने से बढ़ता है।
प्यार का इजहार भले ही आँखों से होता हो, होता वह हृदय है। कहने को दिल माँस का लोथड़ा भर है, पर कितना परेशान करता है। चैन नहीं लेने देता। तनिक-सी उथल-पुथल से धड़कन बढ़ जाती है। हेंपशायर (ब्रिटेन) की जेनिफर सटन का दिल शल्य चिकित्सा द्वारा बदला गया था। जब जेनिफर को निकाला गया उसका दिल दिखाया गया तो उसके मुँह से सहसा निकला, 'तो माँस का यही लोथड़ा था जिसने मुझे तरह-तरह से परेशान किया।' प्रेम हृदय से होता है, पर हृदय पर किसी का वश नहीं।
वह कब किस पर आ जाएगा, कहना कठिन है। स्त्री इस मामले में अधिक भावुक और संवेदनशील है। वह कब किसको माथे का सिंदूर बना लेगी, कब प्रेमी की खातिर पति की हत्या करवा देगी और कब पति की चिता पर बैठकर सती हो जाएगी, कहना मुश्किल है। कहना मुश्किल है। प्यार पाने के लिए स्त्री राजपाट, पदवी सब छोड़ने को तत्पर रहती है। एक बार प्रेम का अंकुर फूट आए तो फिर उसे मन से बुहारना मुश्किल है। जापान की राजकुमारी साया ने एक आम नागरिक कुरोदा से विवाह करने के लिए शाही परिवार से अलग हो, राजकुमारी की पदवी त्याग दी थी। जापान के शाही परिवार में ऐसे और भी हादसे हुए हैं।
ब्रिटेन के राजकुमार को भी अपने प्रेम की बड़ी कीमत चुकानी पड़ी थी। बांग्लादेश की अठारह वर्षीय सायरा ने ब्रिटेन की जेल में बंद अपराधी चार्ल्स ब्रोवासन से शादी रचा ली थी, जबकि सायरा चार्ल्स से सिर्फ तीन बार मिली थी। पर्दे पर नारी-अस्मिता की बड़ी-बड़ी बातें करने वाली खूबसूरत अभिनेत्रियों ने अपनी उम्र से काफी बड़े, विवाहित और युवा संतानों के पिता से विवाह कर लिया, यह भूलकर ऐसा करके वे दूसरी स्त्री का घर बर्बाद कर रही है। नोबेल पुरस्कार विजेता डोरिस लैसिंग ने शायद सही ही कहा है कि औरत ऐसा यथार्थ है, जिसकी व्याख्या नहीं की जा सकती। मैत्रेयी पुष्पा ने भी सच कहा है कि पुरुष भले ही औरत के शरीर पर बंधन लगा दे, पर उसके स्वच्छंद विचरण करते मन पर प्रतिबंध लगाना उसके वश में नहीं है।
इश्क वो नासूर है जिसका कोई मरहम नहीं।
प्रेम की प्रारंभिक अवस्था में भी सेक्स के आकर्षण से इंकार नहीं किया जा सकता। सत्येनकुमार की कहानियाँ 'तेंदुआ' और काँच में भी प्रेम के साथ शरीर का संगीत है। देखा गया है कि अरैंज्ड मैरिज में देह के साथ-साथ प्रेम परवान चढ़ता है - स्थायी भाव के रूप में - एक अव्यक्त सुखानुभूति के साथ। उसी से समर्पण बढ़ता है।
तो आइए, इस भयावह समय में घृणा, स्वार्थ और ईर्ष्या के कोहरे को चीरकर प्रेम की सरिता बहाएँ। बगिया में ऐसे फूल उगाएँ जिनकी सांस्कृतिक सुगंध दूर तक फैलकर धरती को इस लायक बनाए कि मनुष्य उस पर सुख, शांति और सुकून से रह सके।
Labels: प्रेम गुरु
Posted by Udit bhargava at 5/14/2010 06:41:00 pm 0 comments
प्रेम की शक्ति से चलती है जिंदगी
प्यार, केवल ढाई अक्षर का छोटा-सा शब्द अपने आप में कितने सारे अर्थ समेटे हुए है। प्रेम के विराट स्वरूप और उसके अनंत छोर तक फैले असीमित विस्तार सहित मानव जीवन के लिए उसकी अनिवार्यता का अंदाजा महज इसी बात से लगाया जा सकता है कि इस छोटे से शब्द की विस्तृत सत्ता तथा महिमा के संबंध में न जाने कितने ही कवियों, गीतकारों, शायरों, संत-महात्माओं द्वारा इतना कुछ कहा एवं लिखा जा चुका है कि अब कुछ और कहे या लिखे जाने की कोई गुंजाइश नजर नहीं आती। फिर भी इसके महत्व एवं अस्तित्व के विषय में अनुभवी व्यक्तियों द्वारा अपने मत लिखे जाने का सिलसिला अनवरत जारी है।
अभी भी ऐसी कमी महसूस की जा रही है कि प्रेम के संबंध में बहुत कुछ लिखा जाना शेष है, जो अनकहा रह गया है। मेरा तो यहाँ तक मानना है कि जब तक धरा पर मानव रहेगा, तब तक प्रेम का वजूद कायम रहेगा। किसी भी स्तर पर प्रेम की आवश्यकता एवं उसके महत्व को नकारा नहीं जा सकता।
प्रेम के संदर्भ में इतना ज्यादा सार्थक एवं अर्थपूर्ण लेखन किए जाने के बावजूद किसी संत या मनीषी द्वारा आज तक निर्विकार प्रेम की ऐसी कोई सार्वभौमिक या सर्वमान्य परिभाषा नहीं लिखी जा सकी है, जिसे सभी एकमत होकर स्वीकार कर सकें और न ही भविष्य में ऐसा होने की कोई संभावना है। ऐसा कहा जाता है कि प्रेम को अभिव्यक्त करने की सर्वोत्तम भाषा मौन है, क्योंकि प्रेम मानव मन का वह भाव है, जो कहने-सुनने के लिए नहीं बल्कि समझने के लिए होता है या उससे भी बढ़कर महसूस करने के लिए होता है। प्रेम ही मानव जीवन की नींव है। प्रेम के बिना सार्थक एवं सुखमय इंसानी जीवन की कल्पना तक नहीं की जा सकती है। प्रेम की परिभाषा शब्दों की सहायता से संभव ही नहीं है।
सारे शब्दों के अर्थ जहां जाकर अर्थरहित हो जाते हैं, वहीं से प्रेम के बीज का प्रस्फुटन होता है। वहीं से प्रेम की परिभाषा आरंभ होती है। प्रेम का अर्थ शब्दों से परे है। प्रेम एक सुमधुर सुखद अहसास मात्र है। प्रेम की मादकता भरी खुशबू को केवल महसूस किया जा सकता है। प्रेम का अहसास अवर्णनीय है। इसलिए इस मधुर अहसास के विश्लेषण की भाषा को मौन कहा गया है। प्रेम को शब्द रूपी मोतियों की सहायता से भावना की डोर में पिरोया तो जा सकता है किंतु उसकी व्याख्या नहीं की जा सकती है क्योंकि जिसे परिभाषित किया जा सकता है, जिसकी व्याख्या की जा सकती है, वह चीज तो एक निश्चित दायरे में सिमटकर रह जाती है जबकि प्रेम तो सर्वत्र है। प्रेम के अभाव में जीवन कोरी कल्पना से ज्यादा कुछ नहीं।
प्रेम इंसान की आत्मा में पलने वाला एक पवित्र भाव है। दिल में उठने वाली भावनाओं को आप बखूबी व्यक्त कर सकते हैं किंतु यदि आपके हृदय में किसी के प्रति प्रेम है तो आप उसे अभिव्यक्त कर ही नहीं सकते, क्योंकि यह एक अहसास है और अहसास बेजुबान होता है, उसकी कोई भाषा नहीं होती।
प्रेम में बहुत शक्ति होती है। इसकी सहायता से सब कुछ संभव है तभी तो प्यार की बेजुबान बोली जानवर भी बखूबी समझ लेते हैं।प्यार कब, क्यों, कहाँ, कैसे और किससे हो जाए, इस विषय में कुछ कहा नहीं जा सकता। इसके लिए पहले से कोई व्यक्ति, विशेष स्थान, समय, परिस्थिति आदि कुछ भी निर्धारित नहीं है। जिसे प्यार जैसी दौलत मिल जाए उसका तो जीवन के प्रति नजरिया ही इंद्रधनुषी हो जाता है। उसे सारी सृष्टि बेहद खूबसूरत नजर आने लगती है। प्रेम के अनेक रूप हैं। बचपन में माता-पिता, भाई-बहनों का प्यार, स्कूल-कॉलेज में दोस्तों का प्यार, दाम्पत्य जीवन में पति-पत्नी का प्यार। प्रेम ही हमारी जीवन की आधारशिला है तभी तो मानव जीवन के आरंभ से ही धरती पर प्रेम की पवित्र निर्मल गंगा हमारे हर कदम के साथ बह रही है। किसी शायर ने क्या खूब कहा है-
साँसों से नहीं, कदमों से नहीं,
मुहब्बत से चलती है दुनिया।
सच्चा प्यार केवल देने और देते रहने में ही विश्वास करता है। जहाँ प्यार है, वहाँ समर्पण है। जहाँ समर्पण है, वहाँ अपनेपन की भावना है और जहाँ यह भावना रूपी उपजाऊ जमीन है, वहीं प्रेम का बीज अंकुरित होने की संभावना है। जिस प्रकार सीने के लिए धड़कन जरूरी है, उसी तरह जीवन के लिए प्रेम आवश्यक है। तभी तो प्रेम केवल जोड़ने में विश्वास रखता है न कि तोड़ने में।
सही मायने में सच्चा एवं परिपक्व प्रेम वह होता है, जो कि अपने प्रिय के साथ हर दुःख-सुख, धूप-छाँव, पीड़ा आदि में हर कदम सदैव साथ रहता है और अहसास कराता है कि मैं हर हाल में तुम्हारे साथ, तुम्हारे लिए हूँ। प्रेम को देखने-परखने के सबके नजरिए अलग हो सकते हैं, किंतु प्रेम केवल प्रेम ही है और प्रेम ही रहेगा क्योंकि अभिव्यक्ति का संपूर्ण कोष रिक्त हो जाने के बावजूद और अहसासों की पूर्णता पर पहुँचने के बाद भी प्रेम केवल प्रेम रहता है।
Labels: प्रेम गुरु
Posted by Udit bhargava at 5/14/2010 06:41:00 pm 0 comments
तुम्हें क्यों न चाहे मन?
मम्मी आपने दाल में नमक ही नहीं डाला, क्या खाना बनाया है?' श्रुति ने ठुनकते हुए नम्रता से कहा। 'क्या बात कर रही हो? अभी-अभी तो पापा खाना खाकर गए हैं उन्होंने तो कुछ नहीं कहा', नम्रता ने कहा। तभी नम्रता की ननद रीतिका चुटकी लेते हुए बोली 'भैया तो आपके प्यार में बिना नमक का खाना भी स्वाद लेकर खा लेते हैं। वो क्या बोलेंगे।' नम्रता को तब भी विश्वास नहीं हुआ, उसने खुद दाल चखी। दाल बिल्कुल बेस्वाद थी। नम्रता परेशान हो उठी, 'अभिनव कहीं किसी परेशानी में तो नहीं है', जो उन्हें खाने में भी स्वाद का पता नहीं चला।'
नम्रता की परेशानी को भाँपते हुए रीतिका बोली 'भाभी आप भी न खामखाँ परेशान हो रही हैं। आप दोनों हर वक्त एक दूसरे के लिए परेशान रहते हो। बिना बोले ही एक दूसरे के मन की बात समझ जाते हो, परेशानी भाँप जाते हो। आप परेशान या शर्मिंदा न हों, इसलिए भैया ने कुछ नहीं बोला होगा।' रीतिका के समझाने पर नम्रता थोड़ी शांत हो गई।
शाम को श्रुति दौड़ती हुई आई - 'मम्मी-मम्मी ये देखो पापा आपके लिए क्या लाए हैं?' नम्रता पूछती है 'पापा आ गए? कहाँ हैं?' श्रुति ने बताया ड्राइंगरूम में हैं। नम्रता हाथ में पैकेट लिए अभिनव के पास ही चली आई,' ये क्या लाए हैं आप?' अभिनव अखबार पर नज़र गड़ाए हुए ही बोले 'यह एक मशीन है, इससे प्याज, गाजर, गोभी और भी सारी सब्जियाँ बहुत आराम से कट जाती हैं। तुम्हें इससे रसोई का काम करने में बहुत आराम होगा इसलिए ले लिया।' कितने की आई?'
नम्रता के इस सवाल पर अभिनव सिर ऊपर उठा के मुस्कुराते हुए बोले 'क्यों पसंद नहीं आई? पैसे से तुम्हें क्या करना?' नम्रता ने हँसते हुए कहा 'क्यों? सुबह की दाल में नमक नहीं डालने का इनाम लाए हो?' इस पर अभिनव हँसने लगे और कहा - 'अरे वो तो मुझे पता भी नहीं चला, सब्जियाँ जो बहुत स्वादिष्ट थीं। अच्छा! एक प्याला चाय बना दो।' नम्रता हँसते हुए बोली 'वो भी बिना चीनी के बना देती हूँ। क्यों? चलेगी? 'और मुस्कुराती हुई चली जाती है।
नम्रता का यह मुस्कुराता चेहरा देख रीतिका ने कहा - 'देखा भाभी, आप तो यूँ ही परेशान हो रही थीं और एक भैया का प्यार है आपके प्रति, जो बिना बोले ही आपकी परेशानी को समझ लेते हैं। मैं तो भगवान से प्रार्थना करती हूँ कि हंसों का यह जोड़ा यूँ ही सदा हँसता-मुस्कुराता रहे।
आपके प्यार को किसी की नजर न लगे। टच वुड! काश! मुझे भी इतना ही प्यार करने वाला पति मिल जाए, मैं तो ख्वाबों के आसमान में पंख लगा के उड़ जाऊँ।' नम्रता ने कहा - 'हाँ, हाँ जरूर उड़ना, लेकिन ऐसा पति मिल गया न तो बस भगवान ही मालिक है। न कभी प्यार की दो बातें करते हैं, न कोई हँसी मजाक।
बस, हर वक्त पढ़ाई में ही लगे रहते हैं। प्यार का इजहार तो दूर की बात है, कभी जताते तक नहीं। रोमांस क्या होता है, ये बस फिल्मों में ही देखा है। कभी सचाई के धरातल पर इसका अनुभव करने का मौका ही नहीं मिला। अगर ऐसे पति मिल गए न, तो दो-चार मीठी बातों के लिए भी तरसोगी।' इतना कहते-कहते नम्रता के दिल का दर्द उसकी आँखों में उतर आया, जिस देख रीतिका ने कहा 'पता है भाभी! कुछ इंसान बोलते हैं ज्यादा, करते हैं कम, दिखाते हैं ज्यादा, करते हैं कम, दिखाते हैं ज्यादा और होते हैं कुछ नहीं।
याद है आपको? एक बार आप और भैया बाजार गए थे। आपने लाल वाली साड़ी देखकर बस, इतना कहा था 'वाह! कितनी सुंदर साड़ी है?' उस वक्त भैया ने सिर्फ उसे देखा था। और अगले ही दिन वह आपके हाथ में थी। ये प्यार नहीं तो और क्या है? आपको पता नहीं है भाभी, कुछ लोग मान-मर्यादा, रीतिरिवाज का हवाला देकर पत्नियों को परेशान करते हैं?
ये मत पहनो, उससे बात मत करो, कहाँ गई थी? इतना समय कहाँ लगा दिया? इतने पैसे कहाँ खर्च कर दिए? जैसे अनगिनत सवालों से अपनी पत्नी को अपमानित करते हैं। भैया ने तो शादी के बाद आपकी इच्छा पर आपको एम।ए.करवाया। आपने पेंटिंग कोर्स करना चाहा तो भैया ने आपके शौक को पूरा करने के लिए कभी ना नहीं कहा। कितनों के पति सिर्फ पत्नी की खुशी के लिए यह सब करने देते हैं? आपने कहा कि ब्यूटी पार्लर खोलना चाहती हैं, चुपचाप बिना रकम भरा चेक काट के आपको चेक दे दिया।
भाभी आप तो बहुत भाग्यशाली हैं जो आपको इतना प्यार करने वाला पति मिला है। जरूर आपने पिछले जन्म में मोती दान किए होंगे।' इतना सुनने के बाद नम्रता सचाई के स्वरूप को समझ गई। वह समझ गई कि वाकई में अभिनव उसे कितना प्यार करते हैं। उनके बीच भावनाओं का बंधन है। जीने की आजादी है। इतनी देर में प्यार से भरी एक प्याली चाय तैयार हो चुकी थी, जिसके साथ मीठे जज्बात के बिस्कुट थे, जिसे लेकर वो ड्राइंगरूम में आ गई। दोनों चुप थे पर दोनों एक-दूसरे के दिलों के एहसास को समझ रहे थे तभी श्रुति कूदती-फानती हुई पापा के गोद में आ बैठी और बाप-बेटी दोनों अपनी ही बातों में लग गए। मुस्कुरा कर नम्रता दोनों को एक भरपूर नजर से निहारने लगती है।
रात को सारे काम निपटाने के बाद जब नम्रता बेडरूम में आई तो, अभिनव ने कहा 'तुम्हारे लिए अलमारी में कुछ रखा है।' नम्रता ने जैसे ही अलमारी खोली वहाँ एक लाल रंग का लिफाफा रखा हुआ था उसने आश्चर्यचकित होकर उसे खोला। पत्नी को समर्पित एक संगीत वाला कार्ड था उसमें जो 'आई लव यू' बोल रहा था। साथ ही एक पत्र था -
मेरी जिंदगी की हर सुबह खुशनसीब होती है क्योंकि वो तुम्हारे सुंदर चेहरे को देखकर शुरू होती है। मैं चाहता हूँ कि अंत भी ऐसा ही हो। तुमने जैसे पति की कल्पना की थी वैसा मैं नहीं हो सका इसके लिए माफी चाहता हूँ, क्योंकि मेरी परवरिश बहुत गरीबी में हुई, जहाँ मुझे फिल्म देखने का मौका नहीं मिला। मामा के यहाँ रह कर किसी तरह पढ़-लिखकर एक नौकरी हासिल करने के लक्ष्य के आगे कभी कुछ सोच ही नहीं पाया। परंतु, अब मैं कोशिश करूँगा तुम्हारे ख्वाबों का पति बनने की, क्या तुम थोड़ी मदद करोगी?
तुम्हारा और सिर्फ तुम्हारा
अभिनव
पत्र पढ़कर नम्रता की आँखें भर आईं, जिसे देख अभिनव घबराए से नम्रता के पास आए। 'अरे! ये क्या हुआ? मेरा इरादा ऐसा तो कतई नहीं था। मैंने तुम्हारी और रीतिका की बातें सुन ली थीं इसलिए... लेकिन मैं तो तुम्हें खुशी देने के लिए यह सब किया और तुम तो रोने लगीं।'
नम्रता अभिनव के सीने से लग कर रोते हुए बोली 'आप बहुत अच्छे हैं। आप बिल्कुल मत बदलिए आप जैसे हैं वैसे ही मुझे प्यारे हैं। मैं क्यों न आप से ही आपकी तरह ही प्यार करूँ?'
Labels: प्रेम गुरु
Posted by Udit bhargava at 5/14/2010 06:41:00 pm 0 comments
पति-पत्नी की दोस्ती असंभव?
श्रीमती शालिनी एक परिपक्व उम्र की महिला हैं। पिछले कुछ दिनों से वे किसी तनाव से गुजर रही थीं। वे चूँकि गृहिणी हैं सो कारण भी कुछ घरेलू ही थे। नौकरीपेशा महिलाओं के साथ तो दोहरी समस्याएँ रहती हैं। यद्यपि मेरी उनसे बहुत अंतरंग बातें नहीं होती थीं लेकिन इस बार वे जैसे अपना मन ही खोलकर रख गईं। हुआ यूँ कि घर में छोटी-मोटी बातों के चलते एक दिन उन्हें कुछ उदास देखकर उनके पति ने पूछ लिया, 'क्या बात है? कुछ परेशान हो क्या?' आँखों में तैरते आँसुओं को रोकते हुए उन्होंने एक-दो समस्याएँ अपने पति को बताई।
साथ ही कहने लगीं - 'मैं बहुत परेशान हूँ। समझ में नहीं आता इस समस्या से कैसे निपटूँ?' पति ने आम आदमी की तरह जवाब दिया - 'तुम औरतें सोचती बहुत हो। इस कान से सुनो उस कान से निकाल दो या अपनी किसी दोस्त के साथ शेयर करो।'
'तुम्हें तो पता है मेरी ऐसी कोई घनिष्ठ मित्र नहीं और मेरे सबसे अच्छे दोस्त तो तुम ही हो'
'मैं और दोस्त? हो ही नहीं सकता। नेव्हर।'
'मैं तो सोचती थी, हम दोनों एक-दूसरे के अच्छे दोस्त हैं।'
'ऐसा भ्रम न पालना। पति-पत्नी एक-दूसरे के दोस्त हो ही नहीं सकते।
कई बातें ऐसी होती हैं जो मैं तुम्हें नहीं बता सकता और बताता भी नहीं हूँ। लेकिन अपने दोस्त को बता सकता हूँ।
छनाक की आवाज भी नहीं हुई और बगैर कोई आवाज किए पत्नी का दिल टूटा। एक ही झटके में उसका मोह भंग हो गया। इतने वर्षों के वैवाहिक जीवन में वह यही समझती थी कि उसके सच्चे दोस्त उसके पति हैं। और वह स्वयं उनकी मित्र। अब इस उम्र में क्या वे दोस्त ढूँढ़ेंगी, जिसे वह अपने मन की सारी बातें कह सकें? और वे तो पिछले कई वर्षों से अपने मन की सारी बातें अपने पति से कह लेती थीं यहाँ तक कि स्त्रियोचित निंदा रस से भरी बातें भी वे अपने पति से कर लिया करती थीं। (हालाँकि ये बात उन्हें अब उन्हें ध्यान आ रही है कि पतिदेव हाँ, हूँ से ज्यादा जवाब नहीं देते थे।)
अपनी बात का ऐसा अप्रत्याशित जवाब पाकर वे एकाएक ही मानो सुन्न होकर चुप्पी लगा गई। लेकिन अनायास ही मेरे सामने एक प्रश्न मुँह बाए खड़ा हो गया। क्या सचमुच पति-पत्नी दोस्त नहीं हो सकते? क्या पत्नी अच्छा भोजन बनाकर पेट तक व प्रेम प्रदर्शित कर हृदय तक ही पहुँच सकती है? क्या पति-पत्नी दोस्त बनकर एक-दूसरे की दिमागी उलझनों को नहीं सुलझा सकते? दोस्ती का मतलब क्या है? यही न कि दो दोस्त एक-दूसरे के दुख दर्द को बाँटें। एक-दूसरे की खुशी में खुश हो व एक-दूसरे की उन्नति को देखकर गर्व करें। यही बात पति-पत्नी के साथ होती है। फिर दोस्ती न होने का क्या कारण है?
Labels: प्रेम गुरु
Posted by Udit bhargava at 5/14/2010 06:40:00 pm 0 comments
निभाएँ प्यार की जिम्मेदारी
हेलो दोस्तो! कौन नहीं चाहता कि उसकी जिंदगी सुचारु रूप से चले। जिस रिश्ते में वह रहे वह स्वच्छ जल की मानिंद कल-कल बहता जाए। बस वहाँ खुशी और सुकून हो, अनबन की गुंजाइश ही न हो। एक-दूसरे से केवल शक्ति पाएँ तथा उसे रचनात्मक काम लगाएँ। हमारा समय आपसी उलझन को सुलझाने में नष्ट न हो। पर ऐसा नहीं होता है। हम हर रिश्ते में कुछ न कुछ परेशानी झेलते ही रहते हैं।
ऐसी ही समस्या से जूझ रही हैं रोशनी। उसे पता ही नहीं चलता है वह अपने दोस्त के साथ कैसे संतुलन बनाए। जब दोनों बेहद प्यार में डूबे रहते हैं तो एक-दूसरे पर अधिक अधिकार और अपेक्षाएँ जोड़ लेते हैं और किसी भी कारणवश वे अपेक्षाएँ पूरी नहीं होने पर प्यार का भरोसा हिलने लगता है। फिर एक-दूसरे की मजबूरी समझने में कई दिन लग जाते हैं। गिला, शिकवा, रूठना-मनाना इसमें ही बेहतरीन समय नष्ट हो जाता है। रोशनी को लगता है आखिर क्या तरीका अपनाया जाए कि वे दोनों अपनी गरिमा और स्वतंत्रता बरकरार रखते हुए भी बिल्कुल एक महसूस करें।
रोशनी जी, आपकी समस्या आज कमोबेश सभी रिश्तों में नजर आती है। हाँ, आपकी एक बात जरूर भिन्नता लिए हुए है, वह है आप दोनों प्यार में रहते हुए भी अपना स्वतंत्र अस्तित्व रखना चाहते हैं। यह प्रयास आम चलन से हटकर है इसलिए इसमें उतार-चढ़ाव की गुंजाइश भी ज्यादा है। ऐसी सोच समझदारी के साथ-साथ धैर्य और बौद्धिक नजरिए की भी माँग करता है। ऐसा रिश्ता सींचने में हम यदि कामयाब हो जाएँ तो इससे खूबसूरत चीज और कोई नहीं हो सकती।
सवाल यह उठता है कि आखिर यह स्वाधीनता कैसे बनाए रखी जाए। कैसे अपना प्यार लुटाते हुए भी दूसरे से अपेक्षा न करें। सच यह है तो बहुत ही पेचीदा प्रश्न। पर जहाँ चाह है वहाँ राह है। हमें सबसे पहले बहुत संजीदगी से विचार कर लेना चाहिए कि हम किस स्थिति में जीना चाहते हैं। अगर हमने यह तय कर लिया कि जिसे हम प्यार करते हैं उसे हर हाल में प्यार करते रहेंगे, चाहे जो भी सामंजस्य करना पड़े तो मेरे खयाल से बहुत सारी दुविधा और अपेक्षाएँ खत्म हो जाती हैं। प्यार के रिश्ते में भावनाओं की प्राथमिकता तय करना बहुत अहम है। यदि प्यार में सम्मान, खुशी और शांति से जीना है तो केवल अपनी जिम्मेदारी निभाने के विषय में सोचना चाहिए।
आप ही नहीं, बहुत जोड़ों की यही शिकायत रहती है कि फलाँ हालत में मैंने इतना समय दिया, इतना कष्ट उठाया पर जब मेरी बारी आई तो उसने वैसा कुछ भी नहीं किया। हम यह भूल जाते हैं कि हम किसी की बीमारी में कोई सेवा या कोई भी कष्ट इसलिए उठाते हैं कि हमें वैसा करके संतोष मिलता है। उस व्यक्ति को हम स्वस्थ और खुश देखना चाहते हैं ताकि हमें सुकून मिले इसलिए कष्ट उठाना बुरा नहीं लगता है। पर वैसे ही व्यवहार की कामना करना अपनी और दूसरे की स्वाधीनता पर प्रतिबंध लगाना है।
जब माँ-बाप बच्चों को यह सुनाते रहते हैं कि हमने तुम्हारे लिए यह कष्ट उठाया अब तुम्हारी बारी है तो उस वक्त बच्चों को लगता है काश उन्होंने हमारे लिए इतना न किया होता और हमारी आजादी बरकरार रहती। बच्चे माँ-बाप के लिए बहुत कुछ कर भी सकते हैं बशर्ते कि उसे किसी उलाहने के बदले में न करना पड़े। हर किसी को यदि हम मुक्त रहने का अहसास दिलाएँ तो शायद सभी रिश्ते में ज्यादा सच्चाई और गहराई हो सकती है।
रोशनी जी, आप तो रिश्ते में रहते हुए स्वाधीन रहना चाहती हैं। ऐसी हालत में आप केवल अपने प्यार की जिम्मेदारी संभालें। अपने साथी को आजाद छोड़ें। यह उसका सिरदर्द है, वह आपके साथ कैसा व्यवहार करे।
Labels: प्रेम गुरु
Posted by Udit bhargava at 5/14/2010 06:37:00 pm 0 comments
लिख दें अपनी मोहब्बत का अफसाना
'मजा आता अगर गुजरी हुई बातों का अफसाना
कहीं से हम बयां करते, कहीं से तुम बयां करते'
वाकई जब प्यार किसी से होता है तो हर दिन कोई नया अफसाना बनता है और फिर आगे बढ़ती है प्रेम कहानी। हर प्रेमी युगल अपने प्यार को हमेशा अपने साथ रखने का ख्वाहिशमंद होता है। हर कोई चाहता है कि अपने महबूब के साथ गुजरे हर पल का लेखा-जोखा उसके पास हो ताकि तन्हाइयों में वह उन पलों को याद करके एक बार फिर उस सुखद अहसास की अनुभूति कर सके।
लेकिन ये क्या जब आप अपना हाले दिल कागज पर उतारने की कोशिश करते हैं तो समझ ही नहीं आता कि कहाँ से शुरू करें? क्या लिखें? आपकी कलम तो अपना काम करने के लिए तैयार रहती है, बस शब्द ही नहीं मिलते। बात सिर्फ शुरुआत की ही नहीं रहती, यदि आप इसे शुरू कर भी लेते हैं तो इसे आगे बढ़ाने में भी आपको मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है। खैर, कोई बात नहीं हम आपको कुछ मशविरा दिए देते हैं ताकि आप अपने इस अफसाना-ए-मोहब्बत को धाराप्रवाह लिख सकें।
पहले इस बात पर गौर फरमाएँ कि आपकी प्रेम कहानी में कुछ ऐसा खास हो जो आपको बाँधे रखे और आप उसे पढ़ते समय उस दौर को महसूस कर सकें। हाँ, कुछ विशेष स्वरूप देने के लिए बीच-बीच में शेरो-शायरी, कविता, ग़ज़लें या फिर लव कोटेशन का इस्तेमाल भी कर सकते हैं। अब जरा बात करें कि इसमें आप शामिल क्या करेंगे? देखिए जनाब इसमें कई सारी बातें शामिल की जा सकती हैं लेकिन कुछ खास बातें बहुत ही जरूरी रहेंगी। जरा आगे पढ़ें-
* उनसे मिलने के बाद आपके दिल ने क्या कहा?
* आपने दोस्ती के लिए उन्हें कैसे प्रपोज किया?
* आपको इस बात का अहसास कब और कैसे हुआ कि आप उनके प्यार में डूब चुके हैं?
* अपने प्यार की अनुभूति को अपने महबूब तक पहुँचाने के लिए आपने क्या किया?
* आपके प्रेम-प्रस्ताव पर उनकी प्रतिक्रिया।
* पहली बार जब आप दोनों मिले वो दिन, तारीख, समय तथा बातचीत का ब्यौरा।
* आप दोनों ने कब पहली बार एक-दूसरे को प्यार भरे वो तीन शब्द कहे, जिसे कहने-सुनने के लिए हर प्रेमी युगल बेकरार रहता है।
ये और इनके जैसी और भी कई बातें हैं, जिसे आप अपनी प्रेम कहानी में शामिल कर सकते हैं। अब जरा देखें कि मोहब्बत के इस अफसाने का स्वरूप क्या हो?
इसके लिए आप कुछ ऐसा कर सकते हैं कि ये कहानी आपकी होते हुए भी कुछ अलग लगे। यानी कि यदि आपके अलावा कोई तीसरा व्यक्ति भी इसे पढ़े तो ये जान न सके कि ये कहानी आपकी ही है। क्या करेंगे इसके लिए? ज्यादा कुछ नहीं करना होगा सिवाय नाम बदलने के। अपने महबूब समेत ऐसे व्यक्तित्व जिन्हें कहानी में शामिल करना है, सभी को नया नाम दे दें। साथ ही अपनी कल्पना शक्ति का उपयोग करके कुछ ऐसी बातें शामिल करें जो अलग हों।
चाहें तो अपनी कहानी को कुछ इस अंदाज में लिख सकते हैं कि- 'कुछ साल पहले की बात है....'
या फिर इस अफसाने को डायरी की शक्ल भी दे सकते हैं। जैसे कि जब आप दोनों मिले उस तारीख के साथ लिखें - 'आज मैंने उसे पहली बार देखा...।'
यदि कुछ और अंदाज में लिखना चाहें तो शुरुआत करें शायरी से॥ या फिर किसी कविता की कुछ चुनिंदा पंक्तियों से।
तो जनाब अब जबकि आपने अपनी प्रेम कहानी लिखने का मन बना ही लिया है तो फिर हम कहाँ ठहरते हैं। बस उठाइए कागज-कलम और रच दीजिए अपनी प्रेम कहानी....।
Labels: प्रेम गुरु
Posted by Udit bhargava at 5/14/2010 06:36:00 pm 0 comments
वो तेरे प्यार का गम!
''तुम्हें क्या मिला वह तो मैं नहीं जानता लेकिन एक बात जरूर जानता हूँ कि तुमने उस शख्स को खोया है जो कभी अपने आपसे भी ज्यादा तुम्हें प्यार करता था। तुमने उसे धोखा दिया है जिसने अपने जीवन में सिर्फ और सिर्फ तुम पर भरोसा किया। खैर तुम्हे जो करना था वह तुमने कर लिया बस अब एक आखिरी गुजारिश है। मेरे बाकी बचे जीवन में कभी भी और कहीं भी अगर तुम्हारा मुझसे सामना हो जाए तो भगवान के लिए अपना रास्ता बदल देना या फिर अपना मुँह फेर लेना। क्योंकि मैं जानता हूँ कि जब कभी भी मैं तुम्हारा चेहरा देखूँगा तब मुझे सिर्फ एक ही बात का अफसोस रहेगा कि मैंने इस चेहरे के पीछे छुपे हुए उस शख्स से प्यार किया जिसने आखिर तक मुझे धोखे के अलावा और कुछ भी नहीं दिया। हो सकता है कि उस वक्त मैं गुस्से में आकर कुछ ऎसा काम कर जाऊँ जो मैं कभी नहीं करना चाहता।''
उस दिन अचानक ही रीटा की नजर राजीव के द्वारा लिखे गए उस खत पर पड़ गई जो कई सालों से एक किताब के पन्नों के बीच में सड़ रहा था। यह खत राजीव और रीटा की प्यार की यादों को बयाँ करने वाला आखिर खत था।
कॉलेज के दिनो में ही इन दोनों के प्यार का गुल खिला था। रीटा प्रिंसीपल साहब की ऑफिस से बाहर ही निकली थी कि अचानक ही सामने के कैन्टीन में राजीव अपने दोस्तों के साथ काफी पी रहा था। नई स्टूडेंट को देखकर सभी सीनियर्स रीटा के नजदीक आ गए और देखते ही देखते उसकी रैगिंग शरू कर दी। हद तो तब हो गई जब रीटा को कहा गया कि 'वह एक अपाहिज महिला की तरह लंगडाती लंगडाती सभी स्टूडेन्ट्स के सामने आकर भीख माँगे।
रीटा के लिए दिल्ली शहर बिल्कुल नया था और यहाँ के लोग भी। वह बिलकुल घबरा गई और फूट फूट कर रोने लगी। उस समय राजीव ही था जो एक फरिश्ता बनकर उसे बचाने आया था। उसने सभी सीनियर्स को खूब डाँटा और उन्हें रीटा से माफी माँगने के लिए भी कहा।
उसी दिन से राजीव रीटा के मन को भा गया। धीरे-धीरे उन दोनों की दोस्ती बढ़ने लगी। दूरियाँ नजदीकियों में तब्दील होने लगी और एक दिन रीटा ने सामने से ही राजीव को प्रप्रोज कर दिया। राजीव को भी रीटा बहुत पसंद थी उसने भी उसे खुले मन से स्वीकार कर लिया। समय बीतता गया और उनका प्यार परवान चढ़ते गया। बात शादी तक भी आ पहुँची।
अब राजीव एक प्रतिष्ठित कंपनी में मैनेजर था उसकी तनख्वाह भी अच्छी थी। रीटा भी हाईस्कूल के विद्यार्थियों को पढ़ाती थी। अचानक ही राजीव का तबादला मुंबई शहर में हो गया। रीटा से कोसों दूर होने के बावजूद भी वह हर महीने उसे मिलने के लिए मुंबई से दिल्ली आता रहता था। दोनों घंटों तक टेलीफोन पर एक-दूसरे से बातें किया करते थे। लेकिन धीरे-धीरे रीटा के फोन आने बंद हो गए। राजीव जब कभी भी फोन करता या तो फोन काट दिया जाता या फिर लंबे समय तक उसमे घंटियाँ बजती रहती।
राजीव भी थोड़ा व्यस्त होने के कारण चार-पाँच महीनों तक दिल्ली नहीं जा पाया। बाद में राजीव को मालूम हुआ कि रीटा और उनका परिवार दिल्ली छोड़कर कहीं दूर चले गए हैं। राजीव ने रीटा के बारे में जानने के लिए पूरी कोशिश की। वह रीटा के हर दोस्त, हर रिश्तेदार से मिला लेकिन किसी को भी रीटा कहाँ है उसकी जानकारी नहीं थी।
इस बात को पूरे पाँच साल बीत गए। एक दिन राजीव ऑफिस से बाहर ही निकला था कि सामने सड़क पर खड़े एक गुब्बारे वाले के पास एक महिला अपने छोटे बच्चे के साथ खड़ी थी। उसका बेटा गुब्बारे खरीदने के लिए बार बार उससे जिद करता था लेकिन वह मना कर रही थी।
राजीव को उस महिला का चेहरा कुछ जाना पहचाना लगा। वह न चाहते हुए भी अपनी कार को रोड के दूसरी तरफ ले गया। उसने उस महिला को गौर से देखने का प्रयास किया, वह महिला और कोई नहीं बल्कि रीटा ही थी और वह बच्चा जो कब से उससे गुब्बारा खरीदने की जिद कर रहा था वह उसका ही बेटा था। एक मिनट के लिए राजीव अपने आपको सँभाल नहीं पाया। रीटा अब तक कहाँ थी और कब उसकी शादी हो गई, उसने क्यों मुझे नहीं बताया? ऎसे कई सवाल थे जो राजीव को परेशान कर रहे थे। उसने धीरे से अपनी गाड़ी का दरवाजा खोला और रीटा के नजदीक आकर खड़ा हो गया।
एक पल के लिए तो अपने सामने राजीव को देखकर रीटा हैरान ही रह गई लेकिन बाद में अपने आपको सँभालते हुए सिर्फ फॉर्मलिटी के लिए उसने न चाहते हुए भी कहा 'हैलो राजीव कैसे हो?'
जिंदा हूँ। राजीव ने कड़वे लहजे में जवाब दिया। उसके जेहन में पिछले कई सालों से जो सवाल एक शूल की भाँति चुभ रहा था वह आज बाहर निकल ही गया 'रीटा तुम बिना बताए कहाँ चली गई थीं? मैंने तुम्हें कहाँ-कहाँ नहीं ढूँढा।
रीटा ने राजीव की इस बात का जवाब देना मुनासिब नहीं समझा और अपने बेटे के पास जाकर कहा' सोहम, बेटा यह राजीव अंकल हैं उन्हें हैलो कहो। सोहम ने मीठी मुस्कान के साथ राजीव को हैलो कहा। उसकी मुस्कान को देखकर राजीव अपनी कड़वाहट और गुस्सा भूल गया, उसने गुब्बारे वाले से एक बड़ा गुब्बारा खरीदकर उसके हाथ में थमा दिया।
रीटा सोहम की अँगुली पकड़कर अब सड़क के दूसरे छोर पर चलने लगी। सामने के मल्टी में ही उसका फ्लैट था। राजीव ने सोहम का दूसरा हाथ पकड़ लिया। राजीव बार-बार एक ही बात रट रहा था जिससे परेशान होकर आखिर में रीटा भड़क गई।
'देखो राजीव अब हमारे बीच में ऎसा कुछ भी नहीं रहा, जैसा तुम चाहते थे। कहीं मेरे पति ने तुम्हें मेरे साथ देख लिया तो मेरी गृहस्थी बर्बाद हो जाएगी। भगवान के लिए यहाँ से चले जाओ। प्लीस राजीव यहाँ से चले जाओ।' रीटा ने मुँह फेरते हुए कहा।
आज रीटा पूरी तरह बदल चुकी थी। यह वही रीटा थी जो कभी राजीव के लिए अपनी जान देने के लिए भी तैयार हो जाती थी लेकिन अचानक उसे क्या हो गया। आधी अधूरी बातों से राजीव को यह तो मालूम हो गया कि रीटा ने लंदन के एक बड़े उद्योगपति मोहन अग्रवाल से उसी समय शादी कर ली थी जब वह मुंबई में था। यह रिश्ता रीटा के चाचाजी लाए थे। उस वक्त रीटा असमंज में थी कि वह किसे चुने एक तरफ राजीव था तो और दूसरी और मोहन।
मोहन के सामने राजीव की औकात फूटी कौड़ी की भी नहीं थी। उसके पास पुरखों की जायदाद और एक बड़ा कारोबार था। घर में दस-दस नौकर थे, वह रीटा के वो सभी सपने पूरे कर सकता था जिसे वह दिन-रात देखा करती थी। जबकि दूसरी और राजीव के पास उस व्यक्त रहने के लिए खुद का एक कमरा भी नहीं था। काफी सोच विचारकर अंत में रीटा ने प्यार के बदले पैसे देखकर मोहन से शादी कर ली और उसका पूरा परिवार दिल्ली छोड़ लंडन जा बसा।
बेचारा राजीव आखिर तक यह बात नहीं जान पाया कि वह सालों से जिस लड़की की प्रतिक्षा कर रहा था, वह आज एक लड़के की माँ बन चुकी है और मुंबई में अपने एक रिश्तेदार की शादी के लिए आई है।
राजीव अब तुम वापस चले जाओ। मेरे परिचितों का घर आ गया है। वो हम दोनों को जानते हैं। प्लीज चले जाओ' रीटा ने सामने वाली बिल्डिंग की और इशारा करते हुए कहा।
'लेकिन रीटा मेरी बात तो सुनो' राजीव अपनी बात पूरी भी नहीं कर पाया और रीटा अपने पति का विजिटिंग कार्ड देकर मल्टी के भीतर चली गई कार्ड में लिखा था। मि।मोहन कुमार अग्रवाल, एमडी फोर्च्युन प्राइवेट लि. लंदन।
उस मल्टी में दो-तीन तक शादी का माहौल रहा। शादी खत्म होने के बाद जब रीटा अपने परिवार के साथ लंदन जाने के लिए रवाना हो रही थी तभी मल्टी के चौकीदार ने उसे एक लेटर दिया और कहा कि मैडम यह एक साहब आपके लिए छोड़कर चले गए हैं। यह वही लेटर था जो रीटा आज पढ़ रही थी। उसने उसका दूसरा पन्ना खोला जिसे पढ़ने का कष्ट रीटा ने आज से पहले कभी नहीं किया था। जिसमें राजीव ने एक बड़ी बात लिखी थी।
'रीटा मालूम नहीं क्यों मैं चाहकर भी तुमसे नफरत नहीं कर पाया। तुम्हारे जाने के बाद भी मुझे हमेशा ऎसा लगा कि तुम मेरे साथ हो रीटा तुम नहीं हो फिर भी हमेशा ऎसा लगता कि तुम मेरे साथ हो, जब भी कोई बात होती है तब लोगों से मैं तुम्हारी बात छेड़ देता हूँ। तुम्हीं मेरी वो आँखें हो जो मुझे सूनी और तन्हा राहों में रास्ता दिखाती है। तुम्हारे मुस्कान को याद करके में दुनियाभर का गम भूल जाता हूँ। मैं तुम्हें कल भी प्यार करता था, आज भी करता हूँ और हमेशा करता रहूँगा। हो सके तो अगले जन्म में जरूर मिलना। सदा तुम्हें प्यार करने वाला राजीव!
रीटा ने लेटर के नीचे देखा जिसमें उसी कंपनी का पता लिखा था जिसमें रीटा के पति काम करते थे। दूसरे दिन सुबह-सुबह रीटा ने अपने पति से पूछा 'क्या आप राजीव शर्मा को जानते हैं?
क्यों नहीं भला एक नौकर अपने बॉस को कैसे भूल सकता है। वह हमारी कंपनी के सीईओ हैं। फिलहाल वह मुंबई में हैं। मोहन ने बिना रीटा को देखे एक हाथ में चाय का कप और दूसरे हाथ में अखबार रखते हुए कहा।
Labels: प्रेम गुरु
Posted by Udit bhargava at 5/14/2010 06:35:00 pm 2 comments
श्रीकृष्ण्ा-रुक्मिनी की प्रेम-कथा
विदर्भ के राजा की पुत्री थी रुक्मिनी, जिन्होंने कृष्ण्ा के शौर्य और तेज के बारे में काफी सुन रखा था, उनके पिता भी चाहते थे कि कृष्ण का विवाह उनकी बेटी से हो जाए। लेकिन जरासंध के होते हुए यह संभव नहीं था। इधर रुक्मिनी मन-ही-मन कृष्ण को अपना पति मान चुकी थी और उनसे ही विवाह के सपने सँजोने लगी थी, इधर कृष्ण ने भी रुक्मिनी के रूप-गुणों की चर्चाएँ सुनी थी और वो भी उनसे मिलने को आतुर थे। अब दोनों का मन एक-दूसरे से मिलने के लिए विचलित होने लगा था। रुक्मिनी अपने हृदय से मात खा चुकी थीं और उनसे श्रीकृष्ण से दूर रह पाना संभव नहीं हो पा रहा था और उन्होंने अपने मन की बात संदेश के जरिए श्रीकृष्ण के पास भिजवा दी।
श्रीकृष्ण अपने भ्राता बलराम के साथ रुक्मिनी का हरण करने पहुँचे। रुक्मिनी ने स्वयं ही अपने अपहरण की योजना श्रीकृष्ण को बताई थी। श्रीकृष्ण ने उनका हरण कर उनसे विधिवत् विवाह किया और उन्हें अपनी सबसे प्रिय रानी बना कर रखा। इतने युग बीतने के बाद भी इनकी प्रेमकथा लोगों के स्मरण में ताजा है।
Labels: प्रेम गुरु
Posted by Udit bhargava at 5/14/2010 06:33:00 pm 0 comments
ट्रिंग-ट्रिंग...
वक्त काफी बीत गया है, लेकिन रश्मि के लिए सब कुछ पल भर पहले की बात है। लगता है कि बस कल की बात हो। उसने स्कूल की पढा़ई पूरी की और घर में जिद कर अपने शहर से दूर दूसरे शहर में आ गई। पढ़ाई में अच्छी होने के कारण घर में भी किसी ने खास ऐतराज नहीं जताया। गर्ल्स हॉस्टल में रहने लगी। शुरू-शुरू में तो कुछ डर लगा, लेकिन मुझे तमाम परेशानियों को सहने के बाद भी सब कुछ अच्छा लग रहा था।
Labels: प्रेम गुरु
Posted by Udit bhargava at 5/14/2010 06:31:00 pm 0 comments
सोहनी-महिवाल : दोनों की मोहब्बत ने किया कमाल
पंजाब की चनाब नदी के तट पर तुला को एक बेटी हुई सोहनी। कुम्हार की बेटी सोहनी की खूबसूरती की क्या बात थी। उसका नाम भी सोहनी था और रूप भी सुहाना था। उसी के साथ एक मुगल व्यापारी के यहाँ जन्म लिया इज्जत बेग ने जो आगे जाकर महिवाल कहलाया। इन दोनों के इश्क के किस्से पंजाब ही नहीं सारी दुनिया में मशहूर हैं।
घुमक्कड़ इज्जत बेग ने पिताजी से अनुमति लेकर देश भ्रमण का फैसला किया। दिल्ली में उसका दिल नहीं लगा तो वह लाहौर चला गया। वहाँ भी जब उसे सुकून नहीं मिला तो वह घर लौटने लगा। रास्ते में वह गुजरात में एक जगह रुककर तुला के बरतन देखने गया लेकिन उसकी बेटी सोहनी को देखते ही सबकुछ भूल गया। सोहनी के इश्क में गिरफ्तार इज्जत बेग ने उसी के घर में जानवर चराने की नौकरी कर ली। पंजाब में भैंसों को माहियाँ कहा जाता है। इसलिए भैंसों को चराने वाला इज्जत बेग महिवाल कहलाने लगा। महिवाल भी गजब का खूबसूरत था। दोनों की मुलाकात मोहब्बत में बदल गई।
जब सोहनी की माँ को यह बात पता चली तो उसने सोहनी को फटकारा। तब सोहनी ने बताया कि किस तरह उसके प्यार में व्यापारी महिवाल भैंस चराने वाला बना। उसने यह भी चेतावनी दी कि यदि उसे महिवाल नहीं मिला तो वह जान दे देगी। सोहनी की माँ ने महिवाल को अपने घर से निकाल दिया। महिवाल जंगल में जाकर सोहनी का नाम ले-लेकर रोने लगा। उधर सोहनी भी महिवाल के इश्क में दीवानी थी। उसकी शादी किसी और से कर दी गई। लेकिन सोहनी ने उसे कुबूल नहीं किया।
उधर महिवाल ने अपने खूने-दिल से लिखा खत सोहनी को भिजवाया। खत पढ़कर सोहनी ने जवाब दिया कि मैं तुम्हारी थी और तुम्हारी ही रहूँगी। जवाब पाकर महिवाल ने साधु का भेष बनाया और सोहनी से जा मिला। दोनों की मुलाकातें होने लगीं। सोहनी मिट्टी के घड़े से तैरती हुई चनाब के एक किनारे से दूसरे किनारे आती और दोनों घंटों प्रेममग्न होकर बैठे रहते। इसकी भनक जब सोहनी की भाभी को लगी तो उसने सोहनी का पक्का घड़ा बदलकर मिट्टी का कच्चा घड़ा रख दिया। सोहनी को पता चल गया कि उसका घड़ा बदल गया है फिर भी अपने प्रियजन से मिलने की ललक में वह कच्चा घड़ा लेकर चनाब में कूद पड़ी। कच्चा घड़ा टूट गया और वह पानी में डूब गई। दूसरे किनारे पर पैर लटकाए महिवाल सोहनी का इंतजार कर रहा था। जब सोहनी का मुर्दा जिस्म उसके पैरों से टकराया। अपनी प्रियतमा की ऐसी हालत देखकर महिवाल पागल हो गया। उसने सोहनी के जिस्म को अपनी बाँहों में थामा और चनाब की लहरों में गुम हो गया। सुबह जब मछुआरों ने अपना जाल डाला तो उन्हें अपने जाल में सोहनी-महिवाल के आबद्ध जिस्म मिले जो मर कर भी एक हो गए थे। गाँव वालों ने उनकी मोहब्बत में एक यादगार स्मारक बनाया, जिसे मुसलमान मजार और हिन्दू समाधी कहते हैं। क्या फर्क पड़ता है मोहब्बत का कोई मजहब नहीं होता। आज सोहनी और महिवाल भले ही हमारे बीच न हों लेकिन जिंदा है उनकी अमर मोहब्बत।
Labels: प्रेम गुरु
Posted by Udit bhargava at 5/14/2010 06:31:00 pm 0 comments
सब कुछ जायज है प्यार में...!
रवि और अनिता की पहली मुलाकात कॉलेज के दिनों में हुई थी। अनिता की आँखों ने पहली नजर में ही रवि को अपने प्यार के मोहजाल में फँसा लिया था और रवि भी बिना कुछ सोचे समझे उसकी तरफ खिंचता जा रहा था।
धीरे-धीरे यह प्यार परवान चढ़ने लगा। दोनों को लगा कि कुदरत ने उनको एक-दूसरे के लिए ही बनाया है। दोनों ने निश्वय किया कि जब उनकी पढ़ाई खत्म होगी और रवि को किसी कंपनी में अच्छी जॉब मिल जाएगा तब वह अपने माता-पिता से अपनी शादी की बात करेंगे।
वक्त गुजरता गया और रवि को एक मल्टीनेशनल कंपनी में अच्छे पैकेज पर जॉब भी मिल गया। रवि अनिता को बहुत प्यार करता था और अनिता भी जान से ज्यादा रवि को चाहती थी और एक-दिन दोनों ने अपने माता-पिता के समक्ष अपनी शादी का प्रस्ताव रखा, लेकिन शायद किस्मत को कुछ और ही मंजूर था।
कहते हैं ना कि दुनिया का हर शख्स किस्मत के बारे में जानता जरूर है लेकिन किस्मत में क्या लिखा होता है वह कोई भी नहीं जानता। अनिता के माता-पिता किसी भी हालात मैं अपनी बेटी का हाथ रवि के हाथ में सौंपना नहीं चाहते थे। क्योंकि दोनों की जाति अलग थी और अनिता के पिता अंतरजातीय विवाह में बिल्कुल भी भरोसा नहीं करते थे उन्हें यह रिश्ता पसंद नहीं था। जब बात बिगड़ने लगी तो रवि अलग होने के लिए तैयार हो गया। वह अनिता की नजरों से बहुत दूर हो गया।
इस घटना को छ: साल बीत गए और एक दिन फिर रवि और अनिता एक-दूसरे के सामने आकर खड़े हो गए लेकिन अब हालात पूरी तरह बदल चुके थे शिवा नाम के एक शख्स के साथ अनिता की सगाई हो चुकी थी। अनिता अपनी पिछली जिंदगी और पहले प्यार को पूरी तरह भुला चुकी थी और अपने नए जीवन की शुरुआत करने जा रही थी लेकिन रवि तब भी उसे भुला नहीं पाया था। उसने सगाई तोड़ने के लिए अनिता को मनाया भी लेकिन वह असफल रहा।
किसी ने सच ही कहा है कि, 'प्यार को पाने के लिए आदमी किसी भी हद तक जा सकता है।' रवि भी अपने प्यार को पाने के लिए हैवानियत की हद तक जा पहुँचा उसने किसी भी तरह शिवा को रास्ते से हटाने का मन ही मन फैसला कर लिया और क्रोध में आकर जून 2002 में उत्तरी दिल्ली की एक इमारत की सातवीँ मंजिल से शिवा को फेंक दिया।
शिवा की मौत के आरोप में रवि की गिरफ्तारी हुई, पूरा मामला कोर्ट में गया और जिसे वह अपनी जान से भी ज्यादा प्यार करता था उसी अनिता की गवाही पर रवि को कोर्ट ने आजीवन कारावास की सजा सुना दी। रवि को जेल की सलाखों के पीछे धकेल दिया गया।
प्यार एक ऎसा नशा है जो कभी उतरने का नाम नहीं लेता। रवि भी इस नशे की गिरफ्त मैं पूरी तरह आ चुका था। जेल जाने के बावजूद भी उसके मन में अनिता के प्रति प्रेम जीवित था। जब वह जमानत पर छूटकर बाहर आया तो वही प्यार फिर से परवान चढ़ने लगा। इस बार किस्मत ने रवि का पूरा साथ दिया और अनिता ने उसके प्यार को स्वीकार करके उसके साथ शादी कर ली।
दूसरी तरफ रवि का मामला दिल्ली हाईकोर्ट में चला गया। किसी समय अपने भावी पति शिवा की हत्या के आरोपी को सजा सुनाने के लिए कोर्ट में गवाही देने वाली अनिता अब उसी आरोपी पति रवि को बचाने के लिए बेताब हो गई उसने अपने पहली गवाही बदलने की इच्छा जाहिर की लेकिन भारत का कानून कहाँ कभी किसी को छोड़ता है। कोर्ट ने अनिता की याचिका खारिज करते हुए रवि की सजा को बरकरार रखा। आज भी अनिता रवि को कानून की गिरफ्त से बचाने के लिए पूरी तरह जद्दोजहद कर रही है। किसी ने गलत नहीं कहाँ कि 'प्यार' और 'युद्ध' में सब कुछ जायज होता है।
यह कहानी किसी फिल्म की पटकथा से कम तो नहीं है लेकिन यह एक सत्य कथा है जो नई दिल्ली में घटित हुई थी।
Labels: प्रेम गुरु
Posted by Udit bhargava at 5/14/2010 06:24:00 pm 0 comments
सच बताना चाहते थे सुनील दत्त
नरगिस ने अपने भाई की गृहस्थी बसाने में खूब मदद की पर भाई ने नरगिस की ओर ध्यान नहीं दिया। नरगिस अपनी पीड़ा को सुनील दत्त से व्यक्त करती थीं पर सुनील की ओर से जवाब नहीं मिलने की स्थिति में उन्होंने कई बार आत्महत्या करने का भी प्रयास किया। यहाँ तक कि नरगिस ने अपने हाथ से अपनी ऊँगली को ब्लेड से काटने का प्रयास भी किया।
नरगिस का जिक्र कई किताबों में आया और प्रत्येक किताब में नरगिस और राजकपूर के बारे में कई ऐसी बातें लिखी गई थीं जो सही नहीं थीं। स्व। सुनील दत्त स्वयं चाहते थे कि नरगिस व राजकपूर के बारे में लोगों को सचाई पता चले। ईश्वर देसाई द्वारा लिखित किताब 'डॉर्लिंगजीः द ट्रू लव स्टोरी ऑफ नरगिस एंड सुनील दत्त' में सुनील दत्त और नरगिस के बीच के संबंधों को लेकर कुछेक बातें ऐसी लिखी गई हैं जिन्हें पढ़ने से पता चलता है कि दोनों के बीच संबंध किन ऊँचाइयों पर थे।
नरगिस के बारे में इतनी गहराई से पहले शायद ही किसी ने लिखा हो। किताब आरंभ एक तेरह वर्षीय विधवा से होती है, जिसकी मुलाकात मुस्लिम सारंगी वादक से होती है। कई वर्षों बाद उनकी बेटी जद्दनबाई मुंबई जाती है तथा फिल्मों व नाटकों में काम करते-करते एक स्टार बन जाती है । मरीन ड्राइव स्थित जद्दनबाई का मकान शाम की महफिलों के लिए जाना जाता था। इन महफिलों में दिलीप कुमार, मेहबूब, कमाल अमरोही भी नजर आते थे। जद्दनबाई की बेटी फातिमा यानी नरगिस।
नरगिस ने अपने बलबूते पर ऊँचाई हासिल की और जिंदगी को अपने ढंग से जीने की कोशिश भी की। मात्र पाँच वर्ष की उम्र से नरगिस ने काम करना आरंभ कर दिया था। किताब में नरगिस से जुड़े कई प्रसंग दिए गए हैं पर मुख्य रूप से सुनील दत्त और नरगिस के संबंधों के बारे में लिखा गया है। किताब लिखने से पूर्व लेखक ने नरगिस और सुनील दत्त द्वारा एक-दूसरे को लिखे पत्रों का अध्ययन भी किया।
सुनील दत्त नरगिस को पिया कह के पुकारते थे तथा पत्रों में एक-दूसरे को मार्लिन मुनरो और एल्विस प्रिंसले लिखा करते थे। वे एक-दूसरे को डार्लिंगजी भी पुकारते थे।
नरगिस ने काफी कम उम्र में काम करना आरंभ कर दिया था, वहीं सुनील दत्त ने भी काफी कम उम्र में अपने पिता को खो दिया था साथ ही दोनों ने बँटवारे की त्रासदी को भी भोगा था। दोनों की इच्छा थी कि वे उनके बच्चों को किसी भी तरह की तकलीफों का सामना नहीं करने देंगे।
* दोनों के बीच के संबंध देखने में काफी जटिल लगते थे क्योंकि नरगिस 50 व 60 के दशक की स्टार नायिका थीं जबकि सुनील दत्त उन दिनों संघर्ष कर रहे थे। उस समय समाज सफल महिला के पति को अलग नजर से देखता था पर सुनील दत्त ने किसी की परवाह नहीं की बल्कि नरगिस से बातचीत कर अपनी समस्याओं को हल किया।
* फिल्म मदर इंडिया के सेट पर दोनों के बीच रोमांस चला था पर यह खबर बाहर फैलने नहीं दी गई क्योंकि इससे फिल्म की लोकप्रियता पर असर पड़ता। फिल्म में सुनील दत्त नरगिस के बेटे बने थे। फिल्म की शूटिंग के दौरान ही सुनील दत्त ने नरगिस को आग से बचाया था।
* नरगिस समाज कार्य करने के लिए हरदम तत्पर रहती थीं । फिल्म मदर इंडिया की शूटिंग के दौरान जब उन्हें पता चला कि एक लड़की की मृत्यु प्रसव के दौरान हुई है तभी नरगिस ने तय किया कि वे नर्स बनेंगी क्योंकि उम्र ज्यादा होने के कारण वे डॉक्टर नहीं बन सकती थीं।नरगिस ने विदेश जाकर नर्सिंग का कोर्स करने की भी ठानी थी ताकि ग्रामीण महिलाओं की सेवा कर सकें।
* नरगिस जब बीमार पड़ीं तब उन्हें इलाज के लिए कुछ महीने विदेश जाना पड़ा। इस खबर से ही सुनील दत्त अवसाद में आ गए थे। संजय दत्त उन दिनों फिल्मों व ड्रग्स में ऐसे डूबे थे कि उन्हें घर-परिवार की ज्यादा सुध नहीं थी। प्रिया भी उम्र में काफी छोटी थी, ऐसे में नम्रता ने संपूर्ण घर को संभाला।
* सुनील दत्त के अनुसार नरगिस व राजकपूर के संबंध केवल युवावस्था का आकर्षण भर था।
* सुनील दत्त को यह अच्छा नहीं लगता था कि पार्टियों में नरगिस अतिथियों के साथ चुटकुलों पर हँसे और अतिथियों को चुटकुले सुनाती रहें।
* नरगिस ने अपने भाई की गृहस्थी बसाने में खूब मदद की पर भाई ने नरगिस की ओर ध्यान नहीं दिया। नरगिस अपनी पीड़ा को सुनील दत्त से व्यक्त करती थीं पर सुनील की ओर से जवाब नहीं मिलने की स्थिति में उन्होंने कई बार आत्महत्या करने का भी प्रयास किया। यहाँ तक कि नरगिस ने अपने हाथ से अपनी उँगली को ब्लेड से काटने का प्रयास भी किया।
Labels: प्रेम गुरु
Posted by Udit bhargava at 5/14/2010 06:18:00 pm 0 comments
सत्य पर रखें प्यार की नींव
जैसे एक मजबूत मकान बनाने के लिए मजबूत नींव का होना बहुत जरूरी होता है। वैसे ही प्यार का महल खड़ा करने के लिए सत्य और विश्वास की नींव का होना बहुत जरूरी है। अगर आपके प्यार रूपी महल की नींव कमजोर होगी तो प्यार के इस महल को गिरने में कुछ पल ही लगेंगे। अगर देखा जाए तो हर रिश्ते की बुनियाद सत्य पर ही रखनी चाहिए, वरना घुँघरू एवं पायल की तरह रिश्ता टूटने में कोई ज्यादा वक्त नहीं लगेगा।
घुँघरू की पायल से पहली मुलाकात एक शादी समारोह में हुई। समारोह में 'दिलवाले दुल्हनिया ले जाएँगे' की नायिका सिमरन सी दिखने वाली पायल ने घुँघरू को आकर्षित किया। दोनों में खूब बातें हुई, अक्सर जब दो अजनबी मिलते हैं, तो बात आगे बातों से ही बढ़ती है। दोनों में अच्छी दोस्ती हो गई।
पायल के लिए घुँघरू अब कुछ भी कर सकता था। अभी इस दोस्ती को एक महीना ही हुआ था कि घुँघरू एवं पायल ने खुद को शादी के बंधन में बांधने की ठान ली। घूंगरू के घरवाले तो राजी हो गए, लेकिन पायल ने शादी के बारे में अपने घर बताना उचित नहीं समझा। घूंगरू ने अपने घर पर ही शादी समारोह की पूरी तरह करवाई, वहीं पर ही पायल घूंगरू की दुल्हन बन गई। दोनों ने शादी कर ली, लाखों रुपए घुँघरू ने अपनी पायल के लिए खर्च दिए। इसके कुछ दिनों बाद दोनों हनीमून के लिए भी गए, वहाँ पर भी घुँघरू पायल ने बहुत मस्ती की।
घुँघरू पायल को उसके घर छोड़ आया और ये कहते हुए सदा के लिए रिश्ता तोड़ आया कि ये तलाक का नाटक मुझे इसलिए खेलना पड़ा क्योंकि तुमने मुझसे सच छुपाया, तुमने मेरे विश्वास को तोड़ा है। घुँघरू अब सच जान चुका था कि पायल तलाकशुदा ही नहीं उसका चरित्र भी अच्छा नहीं। उसके बाद घुँघरू और पायल के रास्ते अलग-अलग हो गए। अगर आप चाहते हो कि आपका प्यार इस रिश्ते की तरह तार-तार न हो तो, प्यार की नींव सत्य पर रखें।
Labels: प्रेम गुरु
Posted by Udit bhargava at 5/14/2010 06:15:00 pm 0 comments
10 बातें, जो 'उसे' आपका दीवाना बना देंगी
क्या आप अपनी डेट को अपना दीवाना बना देना चाहते हैं? लील लॉन्डेस ने एक किताब लिखी है - How to Make Anyone Fall in Love With You. इस किताब में उन्होंने कुछ ऐसे टिप्स दिए हैं, जिनसे आप 'उसे' लुभा सकते हैं, और अपना दीवाना बना सकते हैं। लीजिए, 10 टिप्स आप भी पढ़िए....
Labels: सेक्स रिलेशन
Posted by Udit bhargava at 5/14/2010 06:10:00 pm 0 comments
इनपर टिका है धर्म का आशियाना
धर्म जो कि स्वयं ही निराकार है, उसके आधार को तो निराकार होना ही था। यहां धर्म के वे आधार दिये गए हैं जिनपर धर्म टिका हुआ है-
1. धैर्य: धन संपत्ति, यश एवं वैभव आदि का नाश होने पर धीरज बनाए रखना तथा कोई कष्ट, कठिनाई या रूकावट आने पर निराश न होना।
2. क्षमा: दूसरों के दुव्र्यवहार और अपराध को लेना तथा क्रोश न करते हुए बदले की भावना न रखना ही क्षमा है।
3. दम: मन की स्वच्छंदता को रोकना। बुराइयों के वातावरण में तथा कुसंगति में भी अपने आप को पवित्र बनाए रखना एवं मन को मनमानी करने से रोकना ही दम है।
4. अस्तेय: अपरिग्रह- किसी अन्य की वस्तु या अमानत को पाने की चाह न रखना। अन्याय से किसी के धन, संपत्ति और अधिकार का हरण न करना ही अस्तेय है।
5. शौच: शरीर को बाहर और भीतर से पूर्णत: पवित्र रखना, आहार और विहार में पूरी शुद्धता एवं पवित्रता का ध्यान रखना।
6. इंद्रिय निग्रह: पांचों इंद्रियों को सांसारिक विषय वासनाओं एवं सुख-भोगों में डूबने, प्रवृत्त होने या आसक्त होने से रोकना ही इंद्रिय निगह है।
7. धी: भलीभांति समझना। शास्त्रों के गूढ़-गंभीर अर्थ को समझना आत्मनिष्ठ बुद्धि को प्राप्त करना। प्रतिपक्ष के संशय को दूर करना।
8. विद्या: आत्मा-परमात्मा विषयक ज्ञान, जीवन के रहस्य और उद्देश्य को समझना। जीवन जीते की सच्ची कला ही विद्या है।
9. सत्य: मन, कर्म, वचन से पूर्णत: सत्य का आचरण करना। अवास्तविक, परिवर्तित एवं बदले हुए रूप में किसी, बात, घटना या प्रसंग का वर्णन करना या बोलना ही सत्याचरण है।
10. आक्रोध: दुव्र्यवहार एवं दुराचार के लिए किसी को माफ करने पर भी यदि उसका व्यवहार न बदले तब भी क्रोध न करना। अपनी इच्छा और योजना में बाधा पहुंचाने वाले पर भी क्रोध न करना। हर स्थिति में क्रोध का शमन करने का हर संभव प्रयास करना।
Posted by Udit bhargava at 5/14/2010 08:57:00 am 0 comments
60 सालों में कितना बदल गया है महिला का फिगर
पिछले साठ सालों में वैसे तो दुनिया में काफी कुछ बदला है, लेकिन सौंदर्य के मामले में हमारे मानकों में भी बड़ी तब्दीली आई है। खासकर महिलाओं के मामले में। महिलाओं के सौंदर्य का पैमाना काफी कुछ बदल गया। इसकी सीधी वजह आज के दौर की लाइफ स्टाइल है। 1949 में महिलाओं की सुंदरता का पैमाना आज की महिला की सुंदरता और उसकी फिगर के हिसाब से बिल्कुल अलग है। 1949 के जमाने में 37-27-39 को आदर्श फिगर माना जाता था। जबकि , आज के दौर में 38-34-40 को महिलाओं का आइडियल फिगर माना जाता है। आइए देखते हैं कि किस तरह महिला की खूबसूरती का पैमान इन 60 सालों में बदल गया है :
लंबाई
1949 में : 5 फुट दो इंच
2009 में 5 फुट चार इंच
वजह : बेहतर डाइट , अच्छे घर और अच्छी दवाइयों की वजह से महिलाओं की ग्रोथ बढ़ी।
वजन
1949 में : 61 किलो
2009 : 65 किलो
वजह : फैट , शुगर , अल्कोहल का ज़्यादा इस्तेमाल। कम घरेलू काम और बेहतर ट्रांसपोर्टेशन।
ब्रेस्ट
1949 में : 37 बी
2009 में : 38 सी (+)
वजह : ब्रेस्ट का साइज बढ़ने की एक वजह है मोटापा बढ़ना , मिनोपॉज यानी मासिक धर्म के दौरान हार्मोन थेरेपी।
कमर
1949 में : 27 इंच
2009 में : 34 इंच
वजह : सैचुरेटेड फैट वाली डाइट लेना और कम कसरत के चलते महिलाओं की वेस्टलाइन बढ़ गई है।
हिप्स
1949 में : 39 इंच
2009 में : 40 इंच
वजह : 60 सालों में ज़्यादा बदलाव नहीं। एस्ट्रोजन लेवल के असंतुलित होने के नाते फैट अब हिप्स की बजाय कमर पर इकट्ठा होती है।
पैरों का आकार
1949 में : 3.5
2009 में : 6
वजह : भारी शरीर को थामने के लिए पैर भी ज्यादा चौड़े और बड़े होने चाहिए। यही वजह है कि अब महिलाओं के पैरों का आकार पहले की तुलना में बढ़ गया है।
उम्र
1949 में : 70.9
साल 2009 में : 81.5
वजह : ज़्यादा साफ सुथरा रहन - सहन और भोजन आदि की आदतें। बेहतर दवाएं और पोषण भी महिलाओं की लंबी उम्र और सुंदरता के लिए जिम्मेदार है।
Labels: सेक्स रिलेशन
Posted by Udit bhargava at 5/14/2010 06:00:00 am 0 comments
15 साल की उम्र से पहले सेक्स करने में लड़कियां आगे
यह ख़बर उन लोगों को झटका दे सकती है जो स्कूलों में सेक्स एजुकेशन की खिलाफ़त कर रहे हैं। शादी से पूर्व सेक्स युवा पुरुषों में बेहद आम है, लेकिन चौंकाने वाली बात है कि 15 साल की उम्र तक विवाह पूर्व सेक्स के मामले में महिलाएं पुरुषों से आगे निकल गई हैं। एक सर्वे के मुताबिक युवा पुरुषों का इंटरव्यू किया गया, जिसमें करीब 15 फीसदी ने यह माना कि उन्होंने विवाह पूर्व सेक्स किया है। वहीं, इंटरव्यू की गईं महिलाओं में से 4 फीसदी ने माना कि उन्होंने शादी से पहले सेक्स किया है। इनमें से करीब 24 फीसदी महिलाओं ने 15 साल की उम्र तक ही विवाह पूर्व सेक्स कर लिया था जबकि पुरुषों में यह प्रतिशत 9 रहा। इंटरव्यू में 15 साल से लेकर 24 साल तक के युवा शामिल थे।
शादी से पहले सेक्स के मामले में ग्रामीण नौजवान शहरी यूथ से काफी आगे हैं। यह बात भारत सरकार कह रही है। केंद्रीय हेल्थ मिनिस्टर गुलाम नबी आजाद ने एक सर्वे जारी किया है, जिसमें यह बात कही गई है। इस रिपोर्ट के मुताबिक पूरे देश में 15 पर्सेंट पुरुष और 4 पर्सेंट महिलाएं शादी से पहले सेक्स संबंध बनाते हैं। लेकिन हेल्थ और फैमिली वेलफेयर मिनिस्ट्री द्वारा कराई गई इस स्टडी में पाया गया है इन नौजवानों में ग्रामीणों की तादाद कहीं ज्यादा है। स्टडी के मुताबिक गांवों में 17 पर्सेंट पुरुष शादी से पहले सेक्स संबंध बनाते हैं, जबकि शहरों में इनकी तादाद सिर्फ 10 पर्सेंट है। इस मामले में महिलाएं भी गांवों में ही आगे हैं। गांवों में 4 पर्सेंट महिलाएं शादी से पहले शारीरिक संबंध बनाती हैं, जबकि शहरों में इनकी तादाद सिर्फ 2 पर्सेंट है।
इस स्टडी में सेक्स एजुकेशन को बेहद जरूरी बताते हुए कहा गया है कि रूरल और अर्बन दोनों ही इलाकों में नौजवान असुरक्षित यौन संबंध बनाते हैं। यह स्टडी छह राज्यों में की गई है। ये राज्य हैं - आंध्र प्रदेश, बिहार, झारखंड, महाराष्ट्र, राजस्थान और तमिलनाडु। साल 2006 से 2008 के बीच हुई इस स्टडी में 15 से 29 साल के 58,000 नौजवानों को शामिल किया गया था।
इस बारे में हेल्थ मिनिस्टर गुलाम नबी आजाद ने कहा कि 19 साल के कम उम्र के 8 पर्सेंट से ज्यादा युवा सेक्स संबंधों में इन्वॉल्व हैं, जिससे पता चलता है कि देश में सेक्स एजुकेशन कितनी जरूरी हो गई है। इस स्टडी के मुताबिक शादी से पहले सेक्स के मामलों में कॉन्डम का इस्तेमाल न के बराबर होता है। इतना ही नहीं, जो लोग शादी से पहले ऐसे संबंध बनाते हैं, उनमें से ज्यादातर के एक से ज्यादा पार्टनर्स होते हैं।
रिपोर्ट के रिलीज के मौके पर मौजूद नॉबेल पुरस्कार विजेता अमर्त्य सेन ने कहा कि लोगों कॉन्ट्रासेप्टिव्स की जानकारी तो काफी है, लेकिन इनका इस्तेमाल बहुत कम है। इसका पता यहीं से चल जाता है कि 70 पर्सेंट से ज्यादा युवा नहीं जानते थे कि कॉन्डम का इस्तेमाल सिर्फ एक बार हो सकता है।
Labels: सेक्स रिलेशन
Posted by Udit bhargava at 5/14/2010 05:47:00 am 0 comments
12 मई 2010
क्यों है लक्ष्मी भगवान विष्णु के पैरों में
Posted by Udit bhargava at 5/12/2010 08:56:00 am 0 comments
11 मई 2010
महाभारत - जरासंघ वध
एक बार धर्मराज युधिष्ठिर ने राजसूय यज्ञ किया तथा अपने चारों भाइयों को दिग्विजय करने की आज्ञा दी। चारों भाइयों ने चारों दिशा में जाकर समस्त नरपतियों पर विजय प्राप्त की किन्तु जरासंघ को न जीत सके। इस पर श्री कृष्ण, अर्जुन तथा भीमसेन ब्राह्मण का रूप धर कर मगध देश की राजधानी में जरासंघ के पास पहुँचे। जरासंघ ने इन ब्राह्मणों का यथोचित आदर सत्कार करके पूछा, "हे ब्राह्मणों! मैं आप लोगों की क्या सेवा कर सकता हूँ?"
जरासंघ के इस प्रकार कहने पर श्री कृष्ण बोले, "हे मगजधराज! हम आपसे याचना करने आये हैं। हम यह भली भाँति जानते हैं कि आप याचकों को कभी विमुख नहीं होने देते हैं। राजा हरिश्चन्द्र ने विश्वामित्र जी की याचना करने पर उन्हें सर्वस्व दे डाला था। राजा बलि से याचना करने पर उन्होंने त्रिलोक का राज्य दे दिया था। फिर आपसे यह कभी आशा नहीं की जा सकती कि आप हमें निराश कर देंगे। हम आपसे गौ, धन, रत्नादि की याचना नहीं करते। हम केवल आपसे युद्ध की याचना करते हैं, आप हमे द्वन्द्व युद्ध की भिक्षा दीजिये।"
श्री कृष्ण के इस प्रकार याचना करने पर जरासंघ समझ गया कि छद्मवेष में ये कृष्ण, अर्जुन तथा भीमसेन हैं। उसने क्रोधित होकर कहा, "अरे मूर्खों! यदि तुम युद्ध ही चाहते हो तो मुझे तुम्हारी याचना स्वीकार है। किन्तु कृष्ण! तुम मुझसे पहले ही पराजित होकर रण छोड़ कर भाग चुके हो। नीति कहती है कि भगोड़े तथा पीठ दिखाने वाले के साथ युद्ध नहीं करना चाहिये। अतः मैं तुमसे युद्ध नहीं करूँगा। यह अर्जुन भी दुबला-पतला और कमजोर है तथा यह वृहन्नला के रूप में नपुंसक भी रह चुका है। इसलिये मैं इससे भी युद्ध नहीं करूँगा। हाँ यह भीम मुझ जैसा ही बलवान है, मैं इसके साथ अवश्य युद्ध करूँगा।"
इसके पश्चात् दोनों ही अपना-अपना गदा सँभाल कर युद्ध के मैदान में डट पड़े। दोनों ही महाबली तथा गदायुद्ध के विशेषज्ञ थे। पैंतरे बदल-बदल कर युद्ध करने लगे। कभी भीमसेन का प्रहार जरासंघ को व्याकुल कर देती तो कभी जरासंघ चोट कर जाता। सूर्योदय से सूर्यास्त तक दोनों युद्ध करते और सूर्यास्त के पश्चात् युद्ध विराम होने पर मित्रभाव हो जाते। इस प्रकार सत्ताइस दिन व्यतीत हो गये और दोनों में से कोई भी पराजित न हो सका। अट्ठाइसवें दिन प्रातः भीमसेन कृष्ण से बोले, "हे जनार्दन! यह जरासंघ तो पराजित ही नहीं हो रहा है। अब आप ही इसे पराजित करने का कोई उपाय बताइये।" भीम की बात सुनकर श्री कृष्ण ने कहा, "भीम! यह जरासंघ अपने जन्म के समय दो टुकड़ों में उत्पन्न हुआ था, तब जरा नाम की राक्षसी ने दोनों टुकड़ों को जोड़ दिया था। इसलिये युद्ध करते समय जब मै तुम्हें संकेत करूँगा तो तुम इसके शरीर को दो टुकड़ों में विभक्त कर देना। बिना इसके शरीर के दो टुकड़े हुये इसका वध नहीं हो सकता।"
जनार्दन की बातों को ध्यान में रख कर भीमसेन जरासंघ से युद्ध करने लगे। युद्ध करते-करते दोनों की गदाओं के टुकड़े-टुकड़े हो गये तब वे मल्ल युद्ध करने लगे। मल्ल युद्ध में ज्योंही भी ने जरासंघ को भूमि पर पटका, श्री कृष्ण ने एक वृक्ष की डाली को बीच से चीरकर भीमसेन को संकेत किया। उनका संकेत समझ कर भीम ने अपने एक पैर से जरासंघ के एक टांग को दबा दिया और उसकी दूसरी टांग को दोनों हाथों से पकड़ कर कंधे से ऊपर तक उठा दिया जिससे जरासंघ के दो टुकड़े हो गये। भीम ने उसके दोनों टुकड़ों को अपने दोनों हाथों में लेकर पूरी शक्ति के साथ विपरीत दिशाओं में फेंक दिया और इस प्रकार महाबली जरासंघ का वध हो गया।
Labels: महाभारत की कथाएँ|
Posted by Udit bhargava at 5/11/2010 07:30:00 pm 0 comments
मन को जीतना मुश्किल है, नामुमकिन नहीं
Posted by Udit bhargava at 5/11/2010 08:54:00 am 0 comments
एक टिप्पणी भेजें