30 मार्च 2010

छल ही छल


हेलापुरी का निवासी माधव सामान्य परिवार का था। किन्तु उसकी पत्नी नीरजा चाहती थी कि सजी-धजी दिखूँ और ठाठ-बाट से रहूँ।

नीरजा के रिश्तेदारों के घर में होनेवाले विवाह के लिए उसे और माधव को न्योता मिला।

नीरजा के पास गले में पहनने योग्य सोने के आभूषण नहीं थे।

पड़ोसिन श्यामला के गले में चमकते हुए कंठहार को देखकर वह उसपर रीझ गयी। श्यामला ने वह हार उसे इस शर्त पर दिया कि लौटते ही वह उसे वापस कर देगी।

बडे ही आनंद के साथ नीरजा ने वह कंठहार अपने गले में डाल लिया और रिश्तेदारों के घर विवाह पर गयी। हफ्ता बीत चुकने के बाद भी नीरजा ने, श्यामला को वह कंठहार नहीं लौटाया। श्यामला ने भी माँगा नहीं।

दस दिनों के बाद क्रोध-भरा मुख लिये वह श्यामला के घर गयी और कंठहार को उसके हाथ में थमाते हुए कहा, ‘‘मैंने कभी सोचा तक नहीं था कि दुनिया में इतने बड़े धोखेबाज़ होते हैं। सोने का कंठहार कहती हुई, तुमने नक़ली हार दे दिया।’’ उसकी आवाज़ में कर्कशता थी।

फिर भी, श्यामला ने शांत स्वर में कहा, ‘‘मैंने तुमसे थोड़े ही कहा था कि कंठहार सोने का है। तुम चाहती थी, बस, मैंने दे दिया। तुम्हें कैसे मालूम हुआ कि कंठहार सोने का नहीं बल्कि नक़ली है?’’

इसपर नीरजा ने क्रोध-भरे स्वर में कहा, ‘‘थोड़ी रक़म की ज़रूरत आ पड़ी। गिरवी रखने साहूकार के पास चली गयी। उसने
पत्थर पर रगड़कर बताया कि यह हार नकली है।’’

यह जवाब सुनकर श्यामला स्तब्ध रह गयी।