09 जनवरी 2010
मौसमी सब्जियाँ : पौष्टिक और गुणकारी
Labels: आहार
Posted by Udit bhargava at 1/09/2010 10:12:00 pm 0 comments
कच्ची सब्जियाँ खाएँ, सेहत बनाएँ
Labels: आहार
Posted by Udit bhargava at 1/09/2010 09:59:00 pm 0 comments
पाँच प्रकार के भक्त
Labels: प्रवचन
Posted by Udit bhargava at 1/09/2010 07:33:00 pm 0 comments
अरण्मूल का पार्थसारथी मंदिर
अरण्मूल श्रीपार्थसारथी मंदिर केरल के प्राचीनतम मंदिरों में से एक है। यहाँ भगवान श्रीकृष्ण श्रीपार्थसारथी के रूप में विराजमान हैं। मंदिर पथानमथिट्टा जिले के अरण्मूल में पवित्र नदी पंबा के किनारे पर स्थित है।
कहा जाता है कि अरण्मूल मंदिर का निर्माण अर्जुन ने युद्धभूमि में निहत्थे कर्ण को मारने के अपराध के प्रायश्चित स्वरूप किया था। एक अन्य कथा के अनुसार यह मंदिर सबरीमाला के पास नीलकल में बनाया गया था और बाद में मूर्ति को बाँस के छह टुकड़ों से बने बेड़े पर यहाँ लाया गया। इसीलिए इस जगह का नाम अरण्मूल पड़ा जिसका मलयालम में अर्थ होता है बाँस के छह टुकड़े।
प्रतिवर्ष भगवान अय्यप्पन के स्वर्ण अंकी (पवित्र गहना) को यहीं से विशाल शोभायात्रा में सबरीमाला तक ले जाया जाता है। ओणम् त्योहार के दौरान यहाँ प्रसिद्ध अरण्मूल नौका दौड़ भी आयोजित की जाती है। मंदिर में 18वीं सदी के भित्ति चित्रों का भी ऐतिहासिक संग्रह है।
अरण्मूल श्रीपार्थसारथी मंदिर केरल की वास्तुकला शैली का अद्भुत नमूना है। पार्थसारथी की मूर्ति छह फीट ऊँची है। मंदिर की दीवारों पर 18वीं सदी की सुंदर नक्काशी है। मंदिर बाहरी दीवारों के चार कोनों के चार स्तंभों पर बना है। पूर्वी स्तंभ पर चढ़ने के लिए 18 सीढ़ियाँ हैं और उत्तरी स्तंभ से उतरने के लिए 57 सीढ़ियाँ हैं जो पंबा नदी तक जाती हैं।
मंदिर की प्रतिमा की स्थापना की वर्षगाँठ के उपलक्ष्य में प्रतिवर्ष 10 दिन उत्सव तक मनाया जाता है। यह उत्सव मलयालम माह मीनम में पड़ता है।
ओणम् (केरल का मुख्य त्योहार) के दौरान अरण्मूल मंदिर अपने पानी के उत्सव के लिए अधिक लोकप्रिय है जिसे अरण्मूल वल्लम्कली (अरण्मूल बोट रेस) के रूप में जाना जाता है। इस दौरान नौका में चावल और अन्य पदार्थ भेजने की प्रथा है जिसे पास के गाँव में नजराने के तौर पर भेजा जाता है। इसे मानगढ़ कहते हैं जो त्योहार की उत्पत्ति से संबंधित है। यह प्रथा आज भी जारी है। उत्सव की शुरुआत कोडियेट्टम (ध्वजारोहण) से होती है और इसकी समाप्ति मूर्ति की पंबा नदी में डुबकी लगाने पर होती है जिसे अरट्टू कहा जाता है।
गरूड़वाहन ईजुनल्लातु, उत्सव के दौरान निकलने वाली रंगारंग शोभायात्रा है जिसमें भगवान पार्थसारथी को गरुड़ पर, सजाए गए हाथियों के साथ पंबा नदी के किनारे ले जाया जाता है। उत्सव के समय वल्ला सद्या जो एक महत्वपूर्ण वजिपाडू अर्थात् नजराना होता है, मंदिर को दिया जाता है।
खांडवनादाहनम् नामक एक अन्य उत्सव मलयालम माह धनुस में मनाया जाता है। उत्सव के दौरान मंदिर के सामने सूखे पौधों, पत्तियों और झाड़ियों से जंगल का प्रतिरूप बनाया जाता है। फिर महाभारत में खांडववन की आग के प्रतीक के रूप में इन्हें जलाया जाता है। भगवान श्रीकृष्ण का जन्मदिन अष्टमीरोहिणी के रूप में इस मंदिर में धूमधाम से मनाया जाता है।
कैसे पहुँचें:-
सड़क मार्ग: अरण्मूल पथानमथिट्टा के जिला मुख्यालय से 16 किमी की दूरी पर है जहाँ पहुँचने के लिए बस उपलब्ध है।
रेल मार्ग: यहाँ से निकटतम रेलवे स्टेशन चेनगन्नूर है जहाँ से बस द्वारा 14 किमी की यात्रा तय कर मंदिर तक पहुँचा जा सकता है।
हवाई मार्ग: यहाँ से निकटतम हवाई अड्डा कोच्चि है जो अरण्मूल से 110 किमी दूरी पर स्थित है।
Posted by Udit bhargava at 1/09/2010 07:21:00 pm 0 comments
अहमदाबाद का जगन्नाथ मंदिर
धर्म यात्रा की इस बार की कड़ी में हम आपको लेकर चलते हैं भगवान जगन्नाथ अर्थात कृष्ण की शरण में। अहमदाबाद में अपनी भव्यता और सुंदरता के लिए भगवान जगन्नाथ का मंदिर काफी प्रसिद्ध है। जमालपुर स्थित यह प्राचीन मंदिर अहमदाबाद की शान माना जाता है।
इस मंदिर के निर्मिती के बारे में कहा जाता है कि करीब 150 वर्ष पूर्व भगवान जगन्नाथजी ने महंत नरसिंहदासजी के सपने में जाकर आदेश दिया कि यहाँ उनके भाई बलदेव और बहन सुभद्रा के साथ उनका मंदिर स्थापित किया जाए। प्रात: महंतजी ने यह स्वप्न की बात गाँववालों के समक्ष रखी और सभी ने इसे सहर्ष स्वीकारते हुए धूमधाम के साथ भगवान जगन्नाथ की प्राण-प्रतिष्ठा की।
भगवान जगन्नाथ को विराजित करते ही क्षेत्र की रौनक में चार चाँद लग गए। यहाँ भगवान जगन्नाथ, बलभद्रजी तथा देवी सुभद्रा की आकर्षक प्रतिमाएँ आने वाले हर भक्त का मन मोह लेती हैं। तत्पश्चात 1878 से आषाढ़ी बीज के दिन निकाली जाने वाली रथयात्रा अब यहाँ की परंपरा का हिस्सा बन गई है। इस दौरान मंदिर की विशेष रूप से साज-सज्जा भी की जाती है। रथयात्रा में शामिल होने वाले भक्त स्वयं को भाग्यशाली मानते हैं।
जय रणछोड़, माखनचोर की गूँज के साथ भगवान जगन्नाथ के दर्शन के लिए यहाँ दूर-दूर से आए भक्तों का ताँता लगा रहता है। इसके मद्देनजर यहाँ सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए जाते हैं। भक्तों का मानना है कि भगवान जगन्नाथ के दर्शन मात्र से ही सारी इच्छाएँ पूर्ण हो जाती हैं।
यहाँ महामंडलेश्वर महंत नरसिंहदासजी महाराज द्वारा 'भूखे को भोजन' इस भाव से सदाव्रत शुरू किया गया है। इसके तहत आज भी यहाँ प्रतिदिन हजारों गरीब, भिखारी और जरूरतमंद लोग पेट की भूख को शांत करते हैं।
कैसे पहुँचें?
वायु मार्ग:- अहमदाबाद एयरपोर्ट देश के सभी प्रमुख एयरपोर्ट से जुड़ा हुआ है। एयरपोर्ट से निजी टैक्सी से मंदिर पहुँचा जा सकता है।
रेल मार्ग:- अहमदाबाद देश के बड़े शहरों के साथ ही कुछ छोटे शहरों से भी रेल लाइन द्वारा जुडा हुआ है। यहाँ स्थित कालूपुर स्टेशन मंदिर से 3 किमी दूरी पर स्थित है। मणिनगर और साबरमती रेलवे स्टेशन से भी मंदिर तक आसानी से पहुँचा जा सकता है।
सड़क मार्ग:- सभी राज्यों से अहमदाबाद के लिए बस सेवा उपलब्ध है। यहाँ गीता मंदिर स्थित बस डिपो पहुँचकर टैक्सी के माध्यम से मंदिर तक पहुँचा जा सकता है।
Posted by Udit bhargava at 1/09/2010 07:11:00 pm 0 comments
आस्था का केंद्र माँ चन्द्रिका देवी धाम
श्रद्धालु अपनी मनोकामना पूरी करने के लिए माँ के दरबार में आकर मन्नत माँगते हैं, चुनरी की गाँठ बाँधते हैं तथा मनोकामना पूरी होने पर माँ को चुनरी, प्रसाद चढ़ाकर मंदिर परिसर में घण्टा बाँधते हैं। अमीर हो अथवा गरीब, अगड़ा हो अथवा पिछड़ा, माँ चन्द्रिका देवी के दरबार में सभी को समान अधिकार है।
आगे पढ़ें :-
आत्मा, परमात्मा और प्रकृति का संगम ओंकारेश्वर
प्राचीनतम नगरी श्री अयोध्या
अरण्मूल का पार्थसारथी मंदिर
अहमदाबाद का जगन्नाथ मंदिर
चार वटों में से एक सिद्धवट धर्म
Posted by Udit bhargava at 1/09/2010 06:59:00 pm 1 comments
चार वटों में से एक सिद्धवट
Posted by Udit bhargava at 1/09/2010 06:37:00 pm 0 comments
वास्तुदोष भी प्रभवित करते हैं जीवन को
वर्त्तमान में मानवीय जीवन अत्यधिक कठिन हो गया है। गाँव से जनसमुदाय सहारों की ओर पलायन कर रहा है। इससे सहारों का विस्तार लगातार बढ़ता जा रहा है। भारत के कई बड़े सहरोंमें तो घर बनाना सामान्य व्यक्ति के लिए सिर्फ दिवास्वप्न के समान है। ऐसे में जैसा और जो भी घर मिले उस्सी में रहकर कई परिवार अपना पालन-पोषण करने को मजबूर हैं। ऐसी दौड-भाग वाली ज़िन्दगी में सन्तुष्टि किसी को भी नहीं है, इसलिए वे अपने दुखों को जाने के लिए उघत रहते हैं।
इन दुखों का कारन कुछ भी हो सकता है, परन्तु इन कारणों में से ही जिस घर में आप रह रहे हैं, उस घर में व्याप्त उर्जा भी आपतो प्रभावित करती है। यह उर्जा यदी नकारात्मक होगी, तो निश्चित ही आपके दुखों का कारन भी होगी हालांकि यह आवश्यक नहीं है कि आपके जीवन में जो समस्याएं हैं, उनका कारन यही है, लेकिन घर में लगातार अशांति रहती हो, घर में आते ही मन विचलित हो जाता हो, परिजनों के मध्य पारस्परिक मतभेद रहता हो, सभी परिजनों कि उन्नति में बाधाएं उपस्थित हो रही हों, घर में मांगलिक कार्य संपन्न होने में बहुत अधिक विध्न उत्त्पन्न होते हों, तो यह समझिये कि यह आपके घर की नकारात्मक उर्जा ही है, जो आप सभी को प्रभावित कर रही है। कई बार जन्मपत्रिका अथवा हस्तरेखाओं का अध्यन करते समय यह समस्या नजर नहीं आ पति है और हम यह सोचकर चिंतित होते रहते हैं कि मेरा अच्छा वक्त चल रहा फिर भी क्यों मेरे जीवन में ऐसी समस्याएं उपस्थित हो रही हैं।
जिस प्रकार घर कि नकारात्मक उर्जा परिवार एवं परिजनों को प्रभावित करती है, उसी प्रकार आपके कार्यस्थल, फैक्ट्री, दुकान आदि की नकारात्मक उर्जा आपके कार्य और व्यापर को प्रभावित करती है।
यह नकारात्मक उर्जा आखिर है क्या? इस प्रशन का उत्तर आज से कई वर्षों पूर्व ही विद्वानों ने वास्तुशास्त्र विषय के अंतर्गत वास्तुदोषों के नाम से उल्लिखित कर दिया है। घर अथवा व्यापर स्थल कि नकारात्मक उर्जा मतलब उस स्थान पर स्थित वास्तुदोस्त। ये वास्तुदोष निर्मंकार्य को लेकर हो सकते हैं, भूमि कि प्रकति को लेकर हो सकते हैं, आस-पास के निर्माण कार्य को लेकर हो सकते हैं तथा कई अन्य प्राकतिक स्थितियां भी इसका कारन हो सकती हैं।
व्यक्ति अपने घर अथवा व्यापारस्थल की नकारात्मक उर्जा का कारन जानते ही व्यक्ति उसको दूर करने का उपाय ढूंढता है और उसका निवारण भी करवाता है, लेकिन यह प्रत्येक व्यक्ति के साथ संभव नहीं है। जो व्यक्ति बड़े शहरों में येन-केन प्रकारें अपना आशियाना बनाकर रहने लगता है, अपने अब तक के जीवन की पूंजी लगाकर अपने घर का निर्माण करता है, उसे यदि यह कहा जाए कि आपके घर में जो नकारात्मक उर्जा उत्पन्न हो रही है, उसे दूर करने के लिए आपको पुनः तोड़फोड़ करके दोबारा निर्माण करवाना होगा, तो यह उसके लिए बहुत मुश्किल होता है। ऐसे में वह उस नकारात्मक उर्जा के साथ में रहने को मजबूर हो जाता है। ऐसे ही आस-पास के निर्माण कार्य और भूमि कि प्रकति से उत्त्पन्न होने वाले वास्तुदोषों का भी कोई हल नहीं मिल पता है।
Posted by Udit bhargava at 1/09/2010 04:31:00 pm 0 comments
पुरानी चीजें बड़े काम कीं ( Old things made big job )
इसके अलावा यहाँ हर इलाके में चलने लायक बाइक्स भी हैं जो मैदानी व पहाड़ी इलाकों में आसानी से चल सकती हैं। इनके टायर हल्के हैं और इनकी बाहरी सतह एंटी स्किड ग्रिप वाली है। बाज़ार में उभरती साइकिलों की कीमत 5200 रूपए से लेकर 2,50,000 रूपए तक है और साइकिल का यह बाज़ार 25 फीसदी की दर से बढ़ रहा है। संभवतः यही वजह है कि कई कम्पनियाँ फ़ेशनेबल तरीके कि साइकिल बनाने के इस ने कारोबार में आ रहइ हैं ऐसे में कोई अस्चर्या नहीं होता है कि खेल सामग्री बनाने वाली एडिडास और रीबांक जैसे कम्पनियाँ साइकिल इन्डस्ट्री में प्रवेश कर चुकी हैं। इन साइकिलों को तीन हिस्सों में मोड़ा जा सकता है और कार बूट में रखा जा सकता है। इसके अलावा साइकिल इन्डस्ट्री ख़ास महिलाओं के लिए भी साइकिलों का निर्माण कर रही है। हालाकिं, भारत में यह नहीं बात नहीं है, क्योकि यहाँ पहले से लेडीज साइकिलें चलन में रही हैं, जिन्मिन आगे का डंडा नहीं होता, लेकिन नए दौर की इन साइकिलों में आज की महिलायओं की सुविधा के हिसाब से और भी कई खूबियाँ होंगी। साइकिल इन्डस्ट्री में किस कदर बदलाव आ गया है।
पहले साइकिलों को परिवहन के एक सस्ते साधन के रूप में निर्मित किया जाता था, लेकिन आज साइकिल इन्डस्ट्री ने इस दुपहिया वाहन के साथ भी किसी कार के मालिक होने की तरह गौरव के भाव को जोड़ दिया है। इसने अलग तरह की शब्दावली इस्तेमाल की, इसमें कई वैल्यू-बेस्ड सुविधायें जूताई और इस तरह एक साधारण से दोपहिया वाहन जो 80 के दशक के मध्य तक महज 500 रूपए में आता था, उसकी कीमत आज लाखों में पहुँच गई। इसके साथ भी गर्व का भाव जुड़ गया है।
फ़ंडा यह है कि.... पुराने उत्पाद की उपयोगिता थोड़ी और बढाएं, साथ ही आधुनिक साज-सज्जा के साथ इसकी कुछ इस तरह से रीपैकेजिंग करें जिससे यह नए दौर के बच्चो या लोगों के हिसाब से मुफीद हो।
Labels: मैनेजमेंट मंत्र
Posted by Udit bhargava at 1/09/2010 08:03:00 am 0 comments
08 जनवरी 2010
बेडरूम में झगड़े का कारण
दाम्पत्य सुख में गोचर ग्रहों का प्रभाव
आज के भौतिकवादी एवं जागरूक समाज में पति-पत्नी दोनों पढ़े-लिखे होते हैं और सभी अपने अधिकारों व कर्त्तव्यों के प्रति सजग होते हैं परन्तु सामान्य-सी समझ की कमी या वैचारिक मतभेद होने पर मनमुटाव होने लगता हैं। शिक्षित होने के कारण सार्वजनिक रूप से लड़ाई न होकर पति-पत्नी बेडरूम में ही झगड़ा करते हैं।
Posted by Udit bhargava at 1/08/2010 08:32:00 pm 0 comments
अविवाहित किस दिशा में सोएँ
जिससे शीघ्र विवाह हो
Posted by Udit bhargava at 1/08/2010 08:19:00 pm 0 comments
ऑरा चिकित्सा
ऊर्जावर्धक उपकरण
ऑरिया (प्रभामंडल) उत्पादों की श्रृंखला, चिकित्सा और परिवेश ऊर्जावर्धक उपकरणों के जरिए प्राकृतिक एवं व्यक्तिगत ऑरा तथा ब्रह्मांडीय ऊर्जा के बीच समन्वय स्थापित कर आपको लाभ पहुँचाने का माध्यम है। इन्हें अंतरिक्ष रहस्यवेत्ताओं के मार्गदर्शन में ऊर्जाचक्र और स्पर्श चिकित्सा के गूढ़ अध्ययन के बाद विकसित किया गया है।
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झाँझ- हाथ में पकड़े जा सकने वाले इस उपकरण को नकारात्मक विचार-अभिव्यक्ति और व्याधि शक्ति से मुकाबले के लिए तैयार किया गया है।
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द्वार गुणावृत्ति शोधक- घर या दफ्तर के दरवाजे पर लटकाए जाने वाले इस उपकरण के जरिए नकारात्मक ऊर्जा प्रतिस्थापित कर लाभदायक ऊर्जा प्रवाहित की जाती है।
ऑरिया (प्रभामंडल) उत्पादों की श्रृंखला, चिकित्सा और परिवेश ऊर्जावर्धक उपकरणों के जरिए प्राकृतिक एवं व्यक्तिगत ऑरा तथा ब्रह्मांडीय ऊर्जा के बीच समन्वय स्थापित कर आपको लाभ पहुँचाने का माध्यम है।
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घंटी वाद्य- त्रिआयामी ऊर्जा वाले इस उपकरण में स्वस्तिक, ओम और त्रिशूल की सम्मिलित शक्ति है। घर एवं कार्यालय में नकारात्मक ऊर्जा से प्रभावित शिथिल ऑरा को पुनः चैतन्य करने हेतु इसे प्रयुक्त किया जाता है। यह उपकरण आप अपने घर के शयन कक्ष अथवा स्नानघर में लटका सकते हैं।
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रंगीन काँच के उपकरण- पूर्वी, मध्य-पूर्व जैन और वैदिक संस्कृति के खगोलशास्त्रीय अध्ययन के जरिए सौभाग्यवर्धक और नकारात्मक प्रभावरोधक इन उपकरणों को तैयार किया गया है- (अ) ऑरिया हस्त, (ब) ऑरिया जेन, (स) ऑरिया त्रिशक्ति।
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चाबी के छल्ले- दैनिक जीवन में इनसे खुशहाली लाई जा सकती है। यात्रा के दौरान भी ये आपको सुरक्षित रखते हैं- (अ) हस्त की-चेन (ब) ट्रेवलर की-चेन, (स) एविल आई की चेन।
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लक्ष्मी मोमबत्ती स्टैंड- इतालवी काँच से निर्मित इस उपकरण को रहस्यवेत्ताओं के मार्गदर्शन में वैदिक सूत्रों के अनुरूप बनाया गया है। व्यक्ति की भौतिक एवं आध्यात्मिक उन्नति के समन्वित उद्देश्य वाला यह उपकरण समृद्धिदायक और सफलता लाने वाला है। जीवन के हर क्षेत्र में उन्नति के लिए यह उपयोगी है।
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हस्त मोमबत्ती स्टैंड- धातु एवं मिश्र धातुओं से निर्मित इस यंत्र को रखने से शांति और सौभाग्य की वृद्धि होती है।
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सूर्य ऊर्जा संग्राहक- प्राचीन विद्या से प्रेरित इस उपकरण को सही जगह लटकाने पर घर के सभी सदस्यों को लाभ मिलता है। (अ) ओम ऑरिया संग्राहक, (ब) स्वस्तिक ऑरिया संग्राहक।
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कपूर से बना ब्रह्मांडीय ऑरा यंत्र- यह वातावरण के नकारात्मक प्रभाव को दूर कर उसे शुद्ध करने हेतु प्रयुक्त होता है।
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जल तरंग एवं खगोलीय सौभाग्यवर्धक- हड़प्पा सभ्यता के विज्ञान से प्रेरित इस उपकरण से मन-मस्तिष्क को शांति मिलती है। खास तौर से तब, जब इसे कमरे की उत्तर-पूर्व दिशा में रखा जाए।
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बाल स्मरण-शक्तिवर्धक यंत्र- अपने ऑरा के जागृत होने से बच्चों का मस्तिष्क अधिक तेजी से काम करता है।
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रेकी हर्ष- रेकी की त्रिआयामी शक्ति सम्मिलित रूप से भौतिक एवं आध्यात्मिक ऊर्जा का विकास करती है। इसे नाभि के ऊपरी हिस्से में चमड़े के उत्पादों से दूर रखकर बाँधना चाहिए।
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ऑरा प्रार्थना पुंज- अपने ऑरा को जागृत कर दिन के लिए उपयुक्त प्रार्थना पत्रक चुनें और भावनात्मक तथा आध्यात्मिक परिवेश को अनुकूल बनाएँ।
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लेप्रेशॉन- रंगीन काँच से बना यह नक्काशीदार उपकरण एक चक्र पर घूमता है। इसके घूर्णन पंखों के जरिए नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है।
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आत्म ऊर्जा पत्र- इसे नाभि के ऊपर चमड़े से बने उत्पादों से दूर रखकर बांधने से आत्मिक ऊर्जा में वृद्धि होती है।
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द्वार वास्तु संवर्धक- घर के भीतर दरवाजे के बाईं ओर के हिस्से में इसे आँख की ऊँचाई पर लटकाने से ऑरा प्रवाह संकेंद्रित होता है।
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त्रिशक्ति सागर लवण- (शुद्ध स्वर्ण, रजत एवं तांबा युक्त)।
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बाह्य उपयोग के लिए स्नान गुटिका - स्वर्ण नकारात्मक ऊर्जा सकारात्मक दिशा में बदलता है। चाँदी प्रतिकूल ऊर्जा को दूर हटाती है और तांबा प्रभामंडल को संतुलित बनाता है। आलस्य, तनाव और अवसाद दूर करने हेतु यह उपयोगी है।
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कार घंटी वाद्य- यात्रा के दौरान आप कार में इसे लटकाकर सुरक्षित और आनंददायक सफर कर सकते हैं।
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ऑराजन्य ब्रह्मांडीय वास्तु परिशोधक चित्र- इन सुनहरे चित्रों को लगाने से प्रतिकूल ऊर्जा सकारात्मक बनती है। इसमें जड़े रत्न बुरे प्रभावों से वातावरण को दूर रखते हैं।
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सद्भाव दोलक- दरवाजे पर इसे लटकाने से शांति और सद्भाव की वृद्धि होती है।इन उत्पादों को ऑरा एवं वास्तु विशेषज्ञों की देखरेख में तैयार किया गया है।
Posted by Udit bhargava at 1/08/2010 08:05:00 pm 0 comments
आँगन : मकान का केन्द्रीय स्थल
सदैव खुला व साफ रखें ब्रह्म
आँगन मकान का केन्द्रीय स्थल होता है। यह ब्रह्म स्थान भी कहलाता है। ब्रह्म स्थान सदैव खुला व साफ रखना चाहिए। पुराने जमाने में ब्रह्म स्थान में चौक, आँगन होता था। गाँवों की बात छोड़ दें, तो शहरों में मकान में आँगन रखने का रिवाज लगभग उठ-सा गया है। वास्तु शास्त्र में मकान आँगन रखने पर जोर दिया जाता है। वास्तु के अनुसार, मकान का प्रारूप इस प्रकार रखना चाहिए कि आँगन मध्य में अवश्य हो। अगर स्थानाभाव है, तो मकान में खुला क्षेत्र इस प्रकार उत्तर या पूर्व की ओर रखें, जिससे सूर्य का प्रकाश व ताप मकान में अधिकाधिक प्रवेश कर सके। इस तरह की व्यवस्था होने पर घर में रहने वाले प्राणी बहुत कम बीमार होते हैं। वे हमेशा सुखी रहते हैं, स्वस्थ व प्रसन्न रहते हैं। आँगन किस प्रकार होना चाहिए- यह मध्य में ऊँचा और चारों ओर से नीचा हो। अगर यह मध्य में नीचा व चारों ओर से ऊँचा है, तो यह आपके लिए नुकसान देह है। आपकी सम्पत्ति नष्ट हो सकती है। परिवार में विपदा बढ़ेगी।आँगन के फला फल को दूसरे तरीके से भी जाना जा सकता है। वास्तु के अनुसार आँगन की लंबाई और चौड़ाई के योग को 8 से गुणा करके 9 से भाग देने पर शेष का नाम व फल इस प्रकार जानें:-
शेष का नाम फल
1 तस्कर ,, चोट भय
2 भोगी ,, ईश्वरी
3 विलक्षण ,, बौद्धिक विकास
4 दाता ,, धर्म-कर्म में वृद्धि
5 नृपति ,, राज-सम्मान
6 नपुंसक ,, स्त्री-पुत्रादि की हानि
7 धनद ,, धन का आगमन
8 दरिद्र ,, धन नाश
9 भयदाता ,, चोरी, शत्रुभय।
Posted by Udit bhargava at 1/08/2010 06:31:00 pm 0 comments
शनि ग्रह और वास्तु
Posted by Udit bhargava at 1/08/2010 06:28:00 pm 0 comments
आग्नेय में स्थापित करें रसोईघर
दक्षिण-पूर्व में रखें डाइनिंग टेबल
रसोईघरः आग्नेय कोण में अथवा पूर्व व आग्नेय के मध्य या फिर पूर्व में रसोईघर स्थापित करें। आग्नेय कोण सर्वश्रेष्ठ है। अगर आपका खाना पकाना आग्नेय कोण में नहीं हो रहा हो, तो चूल्हा या गैस आग्नेय कोण में जरूर रखें। भोजन बनाने वाली का मुँह पूर्व दिशा में होना चाहिए।
स्टोर अथवा भंडार गृह : पुराने जमाने में भवन में पूरे साल के लिए अनाज संग्रह किया जाता था अथवा जरूरत का सामान हिफाजत से रखा जाता था। उसके लिए अलग कक्ष होता था। किन्तु आज के समय में जगह की कमी के कारण रसोई घर में ही भण्डारण की व्यवस्था कर ली जाती है। रसोई घर में भण्डारण ईशान व आग्नेय कोण के मध्य पूर्वी दीवार के सहारे होना चाहिए। यदि स्थान की सुविधा है, तो भवन के ईशान व आग्नेय कोण के मध्य पूर्व में स्टोर का निर्माण किया जाना चाहिए।
डायनिंग हॉल अथवा भोजन कक्ष : वास्तु के हिसाब से आपकी डाइनिंग टेबल दक्षिण-पूर्व में होनी चाहिए। अगर आपने अपने मकान में अलग डायनिंग हॉल की व्यवस्था की है, तब तो अति उत्तम, अन्यथा ड्राइंग रूम में बैठकर भोजन किया जा सकता है। लेकिन हमेशा ध्यान रखें- आपके खाने की मेज की स्थिति दक्षिण-पूर्व में होनी चाहिए। वास्तु शास्त्र के अनुसार किसी मकान में डायनिंग हॉल पश्चिम या पूर्व दिशा में होना चाहिए।
Posted by Udit bhargava at 1/08/2010 06:18:00 pm 0 comments
विष्णु पुराण
भारतीय जीवन-धारा में जिन ग्रन्थों का महत्वपूर्ण स्थान है उनमें पुराण भक्ति ग्रंथों के रूप में बहुत महत्वपूर्ण माने जाते हैं। पुराण साहित्य भारतीय जीवन और साहित्य की अक्षुण्ण निधि हैं। इनमें मानव जीवन के उत्कर्ष और अपकर्ष की अनेक गाथाएँ मिलती हैं। कर्मकांड से ज्ञान की ओर आते हुए भारतीय मानस चिंतन के बाद भक्ति की अविरल धारा प्रवाहित हुई है। विकास की इसी प्रक्रिया में बहुदेववाद और निर्गुण ब्रह्म की स्वरूपात्मक व्याख्या से धीरे-धीरे मानस अवतारवाद या सगुण भक्ति की ओर प्रेरित हुआ। अठारह पुराणों में अलग-अलग देवी-देवताओं को केन्द्र मानकर पाप और पुण्य, धर्म और अधर्म, कर्म, और अकर्म की गाथाएँ कही गई हैं।
आज के निरन्तर द्वन्द्व के युग में पुराणों का पठन मनुष्य़ को उस द्वन्द्व से मुक्ति दिलाने में एक निश्चित दिशा दे सकता है और मानवता के मूल्यों की स्थापना में एक सफल प्रयास सिद्ध हो सकता है। इसी उद्देश्य को सामने रखकर पाठकों की रुचि के अनुसार सरल, सहज और भाषा में पुराण साहित्य की श्रृंखला में यह विष्णु पुराण प्रस्तुत है।
विष्णु पुराण की संक्षिप्त जानकारी श्रीब्रह्माजी कहते है- वत्स! सुनो,अब मैं वैष्णव महापुराण का वर्णन करता हूँ,इसकी श्लोक संख्या तेईस हजार है,यह सब पातकों का नाश करने वाला है। इसके पूर्वभाग में शक्ति नन्दन पराशर ने मैत्रेय को छ: अंश सुनाये है,उनमें प्रथम अंश में इस पुराण की अवतरणिका दी गयी है। आदि कारण सर्ग देवता आदि जी उत्पत्ति समुद्र मन्थन की कथा दक्ष आदि के वंश का वर्णन ध्रुव तथा पृथु का चरित्र प्राचेतस का उपाख्यान प्रहलाद की कथा और ब्रह्माजी के द्वारा देव तिर्यक मनुष्य आदि वर्गों के प्रधान प्रधान व्यक्तियो को पृथक पृथक राज्याधिकार दिये जाने का वर्णन इन सब विषयों को प्रथम अंश कहा गया है। प्रियव्रत के वंश का वर्णन द्वीपों और वर्षों का वर्णन पाताल और नरकों का कथन,सात स्वर्गों का निरूपण अलग अलग लक्षणों से युक्त सूर्यादि ग्रहों की गति का प्रतिपादन भरत चरित्र मुक्तिमार्ग निदर्शन तथा निदाघ और ऋभु का संवाद ये सब विषय द्वितीय अंश के अन्तर्गत कहे गये हैं। मन्वन्तरों का वर्णन वेदव्यास का अवतार,तथा इसके बाद नरकों से उद्धार का वर्णन कहा गया है। सगर और और्ब के संवाद में सब धर्मों का निरूपण श्राद्धकल्प तथा वर्णाश्रम धर्म सदाचार निरूपण तथा माहामोह की कथा,यह सब तीसरे अंश में बताया गया है,जो पापों का नाश करने वाला है। मुनि श्रेष्ठ ! सूर्यवंश की पवित्र कथा,चन्द्रवंश का वर्णन तथा नाना प्रकार के राजाओं का वृतान्त चतुर्थ अंश के अन्दर है। श्रीकृष्णावतार विषयक प्रश्न,गोकुल की कथा,बाल्यावस्था में श्रीकृष्ण द्वारा पूतना आदि का वध,कुमारावस्था में अघासुर आदि की हिंसा,किशोरावस्था में कंस का वध,मथुरापुरी की लीला, तदनन्तर युवावस्था में द्वारका की लीलायें समस्त दैत्यों का वध,भगवान के प्रथक प्रथक विवाह,द्वारका में रहकर योगीश्वरों के भी ईश्वर जगन्नाथ श्रीकृष्ण के द्वारा शत्रुओं के वध के द्वारा पृथ्वी का भार उतारा जाना,और अष्टावक्र जी का उपाख्यान ये सब बातें पांचवें अंश के अन्तर्गत हैं। कलियुग का चरित्र चार प्रकार के महाप्रलय तथा केशिध्वज के द्वारा खाण्डिक्य जनक को ब्रह्मज्ञान का उपदेश इत्यादि छठा अंश कहा गया है। इसके बाद विष्णु पुराण का उत्तरभाग प्रारम्भ होता है,जिसमें शौनक आदि के द्वारा आदरपूर्वक पूछे जाने पर सूतजी ने सनातन विष्णुधर्मोत्तर नामसे प्रसिद्ध नाना प्रकार के धर्मों कथायें कही है,अनेकानेक पुण्यव्रत यम नियम धर्मशास्त्र अर्थशास्त्र वेदान्त ज्योतिष वंशवर्णन के प्रकरण स्तोत्र मन्त्र तथा सब लोगों का उपकार करने वाली नाना प्रकार की विद्यायें सुनायी गयीं है,यह विष्णुपुराण है,जिसमें सब शास्त्रों के सिद्धान्त का संग्रह हुआ है। इसमे वेदव्यासजी ने वाराकल्प का वृतान्त कहा है,जो मनुष्य भक्ति और आदर के साथ विष्णु पुराण को पढते और सुनते है,वे दोनों यहां मनोवांछित भोग भोगकर विष्णुलोक में जाते है। भागवत पुराण भागवत पुराण हिन्दुओं के अट्ठारह पुराणों में से एक है। इसे श्रीमद्भागवतम् या केवल भागवतम् भी कहते हैं। (यह भागवद् गीता से भिन्न ग्रन्थ है।) इसका मुख्य वर्ण्य विषय भक्ति योग है जिसमे कृष्ण को सभी देवों का देव या स्वयं भगवान के रूप में चित्रित किया गया है। इसके रचयिता वेद व्यास हैं। भागवत पुराण में महर्षि सुत गोस्वामी उनके समक्ष प्रस्तुत साधुओं को एक कथा सुनाते हैं। साधु लोग उनसे विष्णु के विभिन्न अवतारों के बारे में प्रश्न पूछते हैं। सुत गोस्वामी कहते हैं कि यह कथा उन्होने एक दूसरे ऋषि सुकदेव से सुनी थी। इसमें कुल बारह काण्ड हैं। प्रथम काण्ड में सभी अवतारों को साराश रूप में वर्णन किया गया है। इस पुराण की भाषा वेदों की भाषा जैसी है। इससे इसके पुराने होने का अनुमान लगाया जाता है। नारद पुराण नारद पुराण स्वयं महर्षि नारद के मुख से कहा गया पुराण पुराण है। द्वारा लिपिबद्ध किए गए १८ पुराणों में से एक है। प्रारंभ में यह २५,००० का संग्रह था लेकिन वर्तमान में उपलब्ध संस्करण में केवल २२,००० श्लोक ही उपलब्ध है। संपूर्ण नारद पुराण दो प्रमुख भागों में विभाजित है। पहले भाग में चार अध्याय हैं जिसमें सुत और शौनक का संवाद है, ब्रह्मांड की उत्पत्ति, विलय, का जन्म, मंत्रोच्चार की शिक्षा, पूजा के कर्मकांड, विभिन्न में पड़ने वाले विभिन्न व्रतों के अनुष्ठानों की विधि और फल दिए गए हैं। दूसरे भाग में भगवान पुराण गरूड़ पुराण से सम्बन्धित है और <> के बाद सद्गति प्रदान करने वाला माना जाता है। इसलिये सनातन हिन्दू धर्म में मृत्यु के बाद गरुड़ पुराण के श्रवण का प्रावधान है। किन्तु यह भ्रम की स्थिति है। प्राय: कर्मकाण्डी ब्राह्मण इस पुराण के उत्तर खण्ड में वर्णित 'प्रेतकल्प' को ही 'गरूड़ पुराण' मानकर यजमानों के सम्मुख प्रस्तुत कर देते हैं और उन्हें लूटते हैं। इसके अतिरिक्त इस पुराण में श्राद्ध-तर्पण, मुक्ति के उपायों तथा जीव की गति का विस्तृत वर्णन मिलता है। 'गरूड़ पुराण' में उन्नीस हजार श्लोक कहे जाते हैं, किन्तु वर्तमान समय में कुल सात हजार श्लोक ही उपलब्ध हैं। इस पुराण को दो भागों में रखकर देखना चाहिए। पहले भाग में विष्णु भक्ति और उपासना की विधियों का उल्लेख है तथा मृत्यु के उपरान्त प्राय: 'गरूड़ पुराण' के श्रवण का प्रावधान है। दूसरे भाग में प्रेत कल्प का विस्तार से वर्णन करते हुए विभिन्न नरकों में जीव के पड़ने का वृत्तान्त है। इसमें मरने के बाद मनुष्य की क्या गति होती है, उसका किस प्रकार की योनियों में जन्म होता है, प्रेत योनि से मुक्त कैसे पाई जा सकती है, श्राद्ध और पितृ कर्म किस तरह करने चाहिए तथा नरकों के दारूण दुख से कैसे मोक्ष प्राप्त किया जा सकता है आदि का विस्तारपूर्वक वर्णन प्राप्त होता है। गरुण पुराण में -भक्ति का विस्तार से वर्णन है। भगवान विष्णु के चौबीस अवतारों का वर्णन ठीक उसी प्रकार यहां प्राप्त होता है, जिस प्रकार '' में उपलब्ध होता है। आरम्भ में मनु से सृष्टि की उत्पत्ति, ध्रुव चरित्र और बारह आदित्यों की कथा प्राप्त होती है। उसके उपरान्त सूर्य और चन्द्र ग्रहों के मंत्र, शिव-पार्वती मंत्र, इन्द्र से सम्बन्धित मंत्र, सरस्वती के मंत्र और नौ शक्तियों के विषय में विस्तार से बताया गया है।
पद्म पुराण
महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित संस्कृत भाषा में रचे गए अठारण पुराणों में से एक पुराण ग्रंथ है। सभी अठारह पुराणों की गणना में ‘पदम पुराण’ को द्वितीय स्थान प्राप्त है। श्लोक संख्या की दृष्टि से भी इसे द्वितीय स्थान रखा जा सकता है। पहला स्थान स्कंद पुराण को प्राप्त है। पदम का अर्थ है-‘कमल का पुष्प’। चूंकि सृष्टि रचयिता ब्रह्माजी ने भगवान नारायण के नाभि कमल से उत्पन्न होकर सृष्टि-रचना संबंधी ज्ञान का विस्तार किया था, इसलिए इस पुराण को पदम पुराण की संज्ञा दी गई है।
विषय वस्तु
यह पुराण सर्ग, प्रतिसर्ग, वंश, मन्वतंर और वंशानुचरित –इन पाँच महत्वपूर्ण लक्षणों से युक्त है। भगवान विष्णु के स्वरूप और पूजा उपासना का प्रतिपादन करने के कारण इस पुराण को वैष्णव पुराण भी कहा गया है। इस पुराण में विभिन्न पौराणिक आख्यानों और उपाख्यानों का वर्णन किया गया है, जिसके माध्यम से भगवान विष्णु से संबंधित भक्तिपूर्ण कथानकों को अन्य पुराणों की अपेक्षा अधिक विस्तृत ढंग से प्रस्तुत किया है। पदम-पुराण सृष्टि की उत्पत्ति अर्थात् ब्रह्मा द्वारा सृष्टि की रचना और अनेक प्रकार के अन्य ज्ञानों से परिपूर्ण है तथा अनेक विषयों के गम्भीर रहस्यों का इसमें उद्घाटन किया गया है। इसमें सृष्टि खंड, भूमि खंड और उसके बाद स्वर्ग खण्ड महत्वपूर्ण अध्याय है। फिर ब्रह्म खण्ड और उत्तर खण्ड के साथ क्रिया योग सार भी दिया गया है। इसमें अनेक बातें ऐसी हैं जो अन्य पुराणों में भी किसी-न-किसी रूप में मिल जाती हैं। किन्तु पदम पुराण में विष्णु के महत्व के साथ शंकर की अनेक कथाओं को भी लिया गया है। शंकर का विवाह और उसके उपरान्त अन्य ऋषि-मुनियों के कथानक तत्व विवेचन के लिए महत्वपूर्ण है।
विद्वानों के अनुसार इसमें पांच और सात खण्ड हैं। किसी विद्वान ने पांच खण्ड माने हैं और कुछ ने सात। पांच खण्ड इस प्रकार हैं-
1.सृष्टि खण्ड: इस खण्ड में भीष्म ने सृष्टि की उत्पत्ति के विषय में पुलस्त्य से पूछा। पुलस्त्य और भीष्म के संवाद में ब्रह्मा के द्वारा रचित सृष्टि के विषय में बताते हुए शंकर के विवाह आदि की भी चर्चा की।
2.भूमि खण्ड: इस खण्ड में भीष्म और पुलस्त्य के संवाद में कश्यप और अदिति की संतान, परम्परा सृष्टि, सृष्टि के प्रकार तथा अन्य कुछ कथाएं संकलित है।
3.स्वर्ग खण्ड: स्वर्ग खण्ड में स्वर्ग की चर्चा है। मनुष्य के ज्ञान और भारत के तीर्थों का उल्लेख करते हुए तत्वज्ञान की शिक्षा दी गई है।
4. ब्रह्म खण्ड: इस खण्ड में पुरुषों के कल्याण का सुलभ उपाय धर्म आदि की विवेचन तथा निषिद्ध तत्वों का उल्लेख किया गया है। पाताल खण्ड में राम के प्रसंग का कथानक आया है। इससे यह पता चलता है कि भक्ति के प्रवाह में विष्णु और राम में कोई भेद नहीं है। उत्तर खण्ड में भक्ति के स्वरूप को समझाते हुए योग और भक्ति की बात की गई है। साकार की उपासना पर बल देते हुए जलंधर के कथानक को विस्तार से लिया गया है।
5.क्रियायोग सार खण्ड: क्रियायोग सार खण्ड में कृष्ण के जीवन से सम्बन्धित तथा कुछ अन्य संक्षिप्त बातों को लिया गया है। इस प्रकार यह खण्ड सामान्यत: तत्व का विवेचन करता है।
वाराह पुराण
श्री ब्रह्माजी कहते हैं -- वत्स! सुनो,अब मैं वाराह पुराण का वर्णन करता हूँ,यह दो भागों से युक्त है,और सनातन भगवान विष्णु के माहात्मय का सूचक है,पूर्वकाल में मेरे द्वारा निर्मित जो मानव कल्प का प्रसंग है,उसी को विद्वानों में श्रेष्ठ साक्षात नारायण स्वरूप वेदव्यास ने भूतल पर इस पुराण में लिपिबद्ध है। वाराह पुराण की श्लोक संख्या चौबीस हजार है,इसमें सबसे पहले पृथ्वी और बाराह भगवान का शुभ संवाद है,तदनन्तर आदि सत्ययुग के वृतांत में रैम्य का चरित्र है,फ़िर दुर्जेय के चरित्र और श्राद्ध कल्प का वर्णन है,तत्पश्चात महातपा का आख्यान,गौरी की उत्पत्ति,विनायक,नागगण सेनानी (कार्तिकेय) आदित्यगण देवी धनद तथा वृष का आख्यान है। उसके बाद सत्यतपा के व्रत की कथा दी गयी है,तदनन्तर अगस्त्य गीता तथा रुद्रगीता कही गयी है,महिषासुर के विध्वंस में ब्रह्मा विष्णु रुद्र तीनों की शक्तियों का माहात्म्य प्रकट किया गया है,तत्पश्चात पर्वाध्याय श्वेतोपाख्यान गोप्रदानिक इत्यादि सत्ययुग वृतान्त मैंने प्रथम भाग में दिखाया गया है,फ़िर भगवर्द्ध में व्रत और तीर्थों की कथायें है,बत्तीस अपराधों का शारीरिक प्रायश्चित बताया गया है,प्राय: सभी तीर्थों के पृथक पृथक माहात्मय का वर्णन है,मथुरा की महिमा विशेषरूप से दी गयी है,उसके बाद श्राद्ध आदि की विधि है,तदनन्तर ऋषि पुत्र के प्रसंग से यमलोक का वर्णन है,कर्मविपाक एवं विष्णुव्रत का निरूपण है,गोकर्ण के पापनाशक माहात्मय का भी वर्नन किया गया है,इस प्रकार वाराहपुराण का यह पूर्वभाग कहा गया है,उत्तर भाग में पुलस्त्य और पुरुराज के सम्वाद में विस्तार के साथ सब तीर्थों के माहात्मय का पृथक पृथक वर्णन है। फ़िर सम्पूर्ण धर्मों की व्याख्या और पुष्कर नामक पुण्य पर्व का भी वर्णन है,इस प्रकार मैने तुम्हें पापनाशक वाराहपुराण का परिचय दिया है,यह पढने और सुनने वाले को मन में भक्ति बढाने वाला है।
Posted by Udit bhargava at 1/08/2010 05:14:00 pm 1 comments
भगवान् श्रीकृष्ण की व्रजभूमि
भगवान् श्रीकृष्ण धन्य हैं, उनकी लीलाएँ धन्य हैं और इसी प्रकार वह भूमि भी धन्य है, जहाँ वह त्रिभुवनपति मानस रूप में अवतरित हुए और जहाँ उन्होंने वे परम पुनीत अनुपम अलौकिक लीलाएँ कीं। जिनकी एक-एक झाँकी की नकल तक भावुक हृदयों को अलौकिक आनंद देने वाली है।
ता वां वास्तून्युश्मसि गमध्यै यत्र गावो भूरिश्रृंगा
तब फिर यहाँ तो अनन्त दर्शनीय स्थान हैं, अनन्त सुंदर मठ-मंदिर, वन-उपवन, सर-सरोवर हैं, जो अपनी शोभा के लिए दर्शनीय हैं और पावनता के लिए भी दर्शनीय हैं। सबके साथ अपना-अपना इतिहास है। यद्यपि मुसलमानों के आक्रमण पर आक्रमण होने से व्रज की सम्पदा नष्ट प्राय हो गई है।
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Posted by Udit bhargava at 1/08/2010 04:25:00 pm 0 comments
बारह ज्योतिर्लिंग
यह बारह ज्योतिर्लिंग हैं। सोमनाथ, नागेश्वर, महाकाल, मल्लिकार्जुन, भीमशंकर, ओंकारेश्वर, केदारनाथ, विश्वनाथ, त्र्यंबकेश्वर, घृष्णेश्वर, रामेश्वर, बैद्यनाथ।
सोमनाथ
सौराष्ट्र (गुजरात) स्थित यह सबसे प्राचीन व महत्वपूर्ण ज्योतिर्लिंग हैं। इस ज्योतिर्लिंग का वर्णन ऋग्वेद् में भी है। सोमनाथ मंदिर के बारे में कहा जाता है कि सबसे पहले इस मंदिर का निर्माण चंद्रदेव ने स्वर्ण से करवाया था, उसके पश्चात् रावण ने चाँदी से इस मंदिर का निर्माण करवाया। रावण के बाद भगवान श्रीकृष्ण ने चंदन की लकडि़यों से इस मंदिर को बनवाया और उनके बाद सोलंकी वंश के राजा भीमदेव ने पत्थर से इस मंदिर का निर्माण करवाया था।
सोमनाथ के मंदिर पर छह बार आक्रमणकारियों ने हमला किया है। हर बार इस मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया गया। मंदिर के वर्तमान भवन और परिसर का निर्माण श्री सोमनाथ ट्रस्ट ने करवाया है। इसे सन् 1995 में राष्ट्र को समर्पित किया गया था। सोमनाथ का मंदिर इस बात का प्रतीक की सृजनकर्ता की शक्ति हमेशा विनाशकर्ता से अधिक होती हैं।
नागेश्वर
द्वारका स्थित नागेश्वर ज्योतिर्लिंग के उद्भव की कथा भी बहुत रोचक है। शिवपुराण में इस ज्योतिर्लिंग की कथा का वर्णन है। दारूका नामक एक राक्षस ने एक निरपराध शिवभक्त सुप्रिया को कारावास में कैद कर दिया था।
निर्दोष सुप्रिया ने अपनी रक्षा के लिए ॐ नम: शिवाय मंत्र का जाप किया। उसने जेल में अन्य कैदियों को भी मंत्र का जाप करना सिखा दिया। उन सब की भक्तिभाव से परिपूर्ण पुकार सुनकर भगवान शिव वहाँ पर प्रकट हुए और उन्होंने दारूका नामक दैत्य का वध किया। उसके पश्चात् वे ज्योतिर्लिंग के रूप में वहीं पर निवास करने लगे।
महाकालेश्वर
उज्जैन (मध्यप्रदेश) स्थित महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग एकमात्र दक्षिणमुखी ज्योतिर्लिंग है। इसलिए इस ज्योतिर्लिंग का पौराणिक और तांत्रिक महत्व सबसे ज्यादा है। यह ज्योतिर्लिंग भी स्वयंभू है। महाकाल ज्योतिर्लिंग के सच्चे मन से दर्शन करने वाले भक्तों को अभय दान मिलता है। महाकाल के भक्तों को मृत्यु और बीमारी से भय नहीं लगता है। दरअसल महाकाल ज्योतिर्लिंग को देवता के साथ-साथ उज्जैन के राजा के रूप में भी पूजा जाता है। इसके उद्भव की कथा में ही इसे अवंतिका (उज्जैन) के राजा के रूप में प्रतिष्ठित किया गया है।
अवंतिका के राजा वृषभसेन भगवान शिव के अनन्य भक्त थे। उनका पूरा समय शिवभक्ति में बीतता था। एक बार वृषभसेन के पड़ोसी राज्य के राजा ने अवंतिका पर हमला कर दिया। वृषभसेन की सेना ने उसके हमले को निष्फल कर दिया। तब आक्रमणकारी राजा ने एक असुर दुशान की मदद ली, जिसे अदृश्य होने का वरदान प्राप्त था। दुशान ने अवंतिका पर खूब कहर बरपाया। ऐसे समय अवंतिका के लोगों ने भगवान शिव को पुकारा। भगवान शिव वहाँ साक्षात् प्रकट हुए और उन्होंने अवंतिका की प्रजा की रक्षा की। इसके बाद राजा वृषभसेन ने भगवान शिव से अवंतिका में बसने और अवंतिका का प्रमुख बनने की विनती की। राजा की प्रार्थना सुनकर भगवान वहाँ ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हुए। भगवान महाकाल को आज भी उज्जैन का शासक ही माना जाता है।
मल्लिकार्जुन
आंध्रप्रदेश के कुर्नुर जिले में कृष्णा नदी के किनारे पर मल्लिकार्जुन मंदिर में 'श्रीसेलम' ज्योतिर्लिंग स्थित है। स्कंद पुराण में एक पूरा अध्याय' श्रीसेलाकंदम' इस ज्योतिर्लिंग की महिमा का वर्णन करता है। मल्लिकार्जुन मंदिर के बारे में एक प्राचीन कथा है, जिसके अनुसार शिवगण नंदी ने यहाँ तपस्या की थी। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शंकर और देवी पार्वती ने उन्हें मल्लिकार्जुन और ब्रहृमारंभा के रूप में दर्शन दिए थे। इस ज्योतिर्लिंग का वर्णन महाभारत में भी है। पाण्डवों ने पंचपाण्डव लिंगों की स्थापना यहाँ पर की थी। भगवान राम ने भी इस मंदिर के दर्शन किए थे। भक्त प्रहलाद का पिता राक्षसराज हिरण्यकश्यप भी यहाँ पर पूजा अर्चना करता था।
भीमशंकर
महाराष्ट्र में पुणे के समीप स्थित भीमशंकर ज्योतिर्लिंग भीमवती नदी के किनारे है। इस ज्योतिर्लिंग के उद्भव के बारे में प्रचलित कथा इस प्रकार है। सहृयाद्रि और इसके आस-पास के लोगों को त्रिपुरासुर नामक दैत्य अपनी असुरी शक्तियों से बहुत सताता था। इस दैत्य से मुक्ति दिलाने के लिए भगवान शंकर यहाँ भीमकाय स्वरूप में प्रकट हुए। त्रिपुरासुर को युद्ध में पराजित करने के बाद भक्तों के आग्रह पर भगवान शंकर वहाँ ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हो गए। कहते है कि युद्ध के बाद भगवान शंकर के तन से जो पसीना बहा उस पसीने से वहाँ पर भीमवती नदी का जन्म हुआ।
ओंकारेश्वर
मध्यप्रदेश स्थित ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग नर्मदा नदी के किनारे स्थित है। इस स्थान पर भगवान शिव के दो मंदिर हैं- ओंकारेश्वर और ममलेश्वर। कहते है कि देवताओं की प्रार्थना पर यहाँ का शिवलिंग दो भागों में विभक्त हो गया। ओंकारेश्वर की खासियत यह है कि यहाँ की पहाड़ी ॐ के आकार की प्रतीत होती है। इसके साथ ही पर्वत पर से देखने पर नर्मदा नदी भी ॐ के आकार में बहती हुई दिखाई देती है। ओंकारेश्वर के साथ भी अनेक दंतकथाएँ जुड़ी हैं। कहते है कि शंकराचार्य के गुरू ओंकारेश्वर की एक गुफा में निवास करते थे।
केदारनाथ
उत्तराखंड में हिमालय पर्वत की गोद में केदारनाथ मंदिर बारह ज्योतिर्लिंग में सम्मिलित होने के साथ चार धामों में भी शामिल हैं। यहाँ की प्रतिकूल जलवायु की वजह से यह मंदिर अप्रैल से नवंबर माह के मध्य ही दर्शन के लिए खुलता है। पत्थरों से बने इस खूबसूरत मंदिर के बारे में कहा जाता है कि इसका निर्माण आदि शंकराचार्य ने करवाया था।
काशी विश्वनाथ
वाराणसी भारत का एक प्राचीन नगर है। यहाँ पर स्थित विश्वनाथ मंदिर बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है। यह मंदिर पिछले एक हजार वर्षों से यहाँ पर स्थित है। काशी विश्वनाथ मंदिर का हिंदू धर्म में एक विशिष्ट स्थान है। एक बार इस मंदिर के दर्शन करने और पवित्र गंगा में स्नान कर लेने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। हर व्यक्ति जीवन में एक बार यहाँ पर दर्शन के लिए आना चाहता है। इस मंदिर में दर्शन करने के लिए आदि शंकराचार्य, रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानंद, स्वामी दयानंद, गोस्वामी तुलसीदास सभी का आगमन हुआ हैं।
त्र्यंबकेश्वर
नासिक (महाराष्ट्र) स्थित त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग में ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों ही विराजित हैं यही इस ज्योतिर्लिंग की सबसे बड़ी विशेषता है। अन्य सभी ज्योतिर्लिंगों में केवल भगवान शिव ही विराजित हैं। गोदावरी नदी के किनारे स्थित त्र्यंबकेश्वर मंदिर काले पत्थरों से बना है। मंदिर का स्थापत्य अद्भुत है। इस मंदिर में कालसर्प शांति, त्रिपिंडी विधि और नारायण नागबलि की पूजा संपन्न होती है। जिन्हें भक्तजन अलग-अलग मुराद पूरी होने के लिए करवाते हैं।
रामेश्वरम्
तमिलनाडु स्थित रामेश्वरम् ज्योतिर्लिंग समंदर किनारे स्थित हैं। यहाँ पर स्वयं श्रीराम ने भगवान शंकर की पूजा की थी। रावण के साथ युद्ध में कदाचित कोई पाप न हो जाए इसलिए भगवान राम ने मंदिर में शिवजी की आराधना की थी। रामेश्वरम् हिंदू धर्म के प्रमुख तीर्थ स्थानों में से एक है। हिंदू धर्म का हर अनुयायी अपने जीवन में एक बार इस मंदिर के दर्शन करने की अभिलाषा अपने मन में रखता है।
घृष्णेश्वर
महाराष्ट्र में औरंगाबाद के नजदीक दौलताबाद से 11 किलोमीटर दूर घृष्णेश्वर महादेव का मंदिर स्थित है। यह बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है। कुछ लोग इसे घुश्मेश्वर के नाम से भी पुकारते हैं। बौद्ध भिक्षुओं द्वारा निर्मित एलोरा की प्रसिद्ध गुफाएँ इस मंदिर के समीप ही स्थित हैं। इस मंदिर का निर्माण देवी अहिल्याबाई होलकर ने करवाया था। शहर से दूर स्थित यह मंदिर सादगी से परिपूर्ण है।
बैद्यनाथ
यह ज्योतिर्लिंग झारखंड के देवघर नाम स्थान पर है। कुछ लोग इसे वैद्यनाथ भी कहते हैं। देवघर अर्थात देवताओं का घर। बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग स्थित होने के कारण इस स्थान को देवघर नाम मिला है। यह ज्योतिर्लिंग एक सिद्धपीठ है। कहा जाता है कि यहाँ पर आने वालों की सारी मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं। इस लिंग को 'कामना लिंग' भी कहा जाता हैं।
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Posted by Udit bhargava at 1/08/2010 04:17:00 pm 1 comments
बड़ा गणपति
इंदौर के चिंतामण गणेश
श्री गणेश के इस अनन्य भक्त को 16 साल की आयु में स्वप्न में विराट गणेश के दर्शन हुए और वह मनोहारी विराट रूप उनके मन में बस गया और एक धुन लग गई उसे साकार करने की।
इसी साधना के सिद्धि की उम्मीद लिए नारायणजी हर बुधवार को उज्जैन से चार किलोमीटर दूर पैदल चलकर चिंतामण गणेश जाकर भगवान से याचना करते रहे ।उन्हें आना पड़ा जहाँ उनका यह स्वप्न साकार हुआ। बोंदरजी पटेल ने सौ वर्गफुट भूमि की रजिस्ट्री 42 रुपए 2 आने में करवा दी।
यह विशाल गणेश प्रतिमा सीमेंट की नही वरन ईंट, चूने, रेत और बालू रेत में गुड़ व मैथीदाने का मसाला मिलाकर बनाई गई है। इसमें समस्त तीर्थों का जल और अयोध्या, मथुरा, माया, काशी, काँची, उज्जैन और द्वारका इन सात मोक्षपुरियों की माटी मिलाई गई। निर्माण लगभग ढाई वर्ष में पूर्ण हुआ।
संवत 1961 माघ सुदी चतुर्थी (संकष्टी) को मूर्ति का प्राण प्रतिष्ठा की गई। मूर्ति की ऊँचाई चरणों से मुकुट तक 25 फुट और चौड़ाई 16 फुट है। मूर्ति चार फुट ऊँची चौकी पर विराजमान है। इस मूर्ति के दर्शन करने देश-विदेश से लोग आते हैं। गणेश चतुर्थी पर तो इस मंदिर में खासी भीड़ देखी जा सकती है। दिलों को सुकून देने वाली यह गणेश प्रतिमा सभी की चिंताओं का हरण करके लोगों को सुखी और समृद्ध बनाती है।
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Posted by Udit bhargava at 1/08/2010 03:53:00 pm 0 comments
अतिशयपूर्ण : गोपाचल पर्वत
इन विशाल मूर्तियों का निर्माण तोमरवंशी राजा वीरमदेव, डूंगरसिंह व कीर्तिसिंह के काल में हुआ। अपभ्रंश के महाकवि पं. रइधू के सान्निध्य में इनकी प्रतिष्ठा हुई।
काल परिवर्तन के साथ जब मुगल सम्राट बाबर ने गोपाचल पर अधिकार किया, तब उसने इन विशाल मूर्तियों को देख कुपित होकर सं. 1557 में इन्हें नष्ट करने का आदेश दे दिया। परन्तु जैसे ही उन्होंने भगवान पार्श्वनाथजी की विशाल पद्मासन मूर्ति पर वार किया तो दैवी देवपुणीत चमत्कार हुआ एवं विध्वंसक भाग खड़े हुए और वह विशाल मूर्ति नष्ट होने से बच गई।
यद्यपि ये प्रतिमाएँ विश्व भर में अनूठी हैं, इस धरोहर पर जैन-समाज और सरकार अगर ध्यान दें तो हम इसे विश्व को गर्व से दिखा सकते हैं।
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Posted by Udit bhargava at 1/08/2010 03:46:00 pm 0 comments
असाधारण देव-स्थान शनि शिंगणापुर
महर्षि पाराशर ने कहा कि शनि जिस अवस्था में होगा, उसके अनुरूप फल प्रदान करेगा। जैसे प्रचंड अग्नि सोने को तपाकर कुंदन बना देती है, वैसे ही शनि भी विभिन्न परिस्थितियों के ताप में तपाकर मनुष्य को उन्नति पथ पर बढ़ने की सामर्थ्य एवं लक्ष्य प्राप्ति के साधन उपलब्ध कराता है।
नवग्रहों में शनि को सर्वश्रेष्ठ इसलिए कहा जाता है, क्योंकि यह एक राशि पर सबसे ज्यादा समय तक विराजमान रहता है। श्री शनि देवता अत्यंत जाज्वल्यमान और जागृत देवता हैं।
आजकल शनि देव को मानने के लिए प्रत्येक वर्ग के लोग इनके दरबार में नियमित हाजिरी दे रहे हैं। यूँ तो शनि तीर्थ क्षेत्र महाराष्ट्र में ही शनिदेव के अनेक स्थान हैं, पर शनि शिंगणापुर का एक अलग ही महत्व है। यहाँ शनि देव हैं, लेकिन मंदिर नहीं है। घर है परंतु दरवाजा नहीं। वृक्ष है लेकिन छाया नहीं।
शनि भगवान की स्वयंभू मूर्ति काले रंग की है। 5 फुट 9 इंच ऊँची व 1 फुट 6 इंच चौड़ी यह मूर्ति संगमरमर के एक चबूतरे पर धूप में ही विराजमान है। यहाँ शनिदेव अष्ट प्रहर धूप हो, आँधी हो, तूफान हो या जाड़ा हो, सभी ऋतुओं में बिना छत्र धारण किए खड़े हैं। राजनेता व प्रभावशाली वर्गों के लोग यहाँ नियमित रूप से एवं साधारण भक्त हजारों की संख्या में देव दर्शनार्थ प्रतिदिन आते हैं।
लगभग तीन हजार जनसंख्या के शनि शिंगणापुर गाँव में किसी भी घर में दरवाजा नहीं है। कहीं भी कुंडी तथा कड़ी लगाकर ताला नहीं लगाया जाता। इतना ही नहीं, घर में लोग आलीमारी, सूटकेस आदि नहीं रखते। ऐसा शनि भगवान की आज्ञा से किया जाता है।
लोग घर की मूल्यवान वस्तुएँ, गहने, कपड़े, रुपए-पैसे आदि रखने के लिए थैली तथा डिब्बे या ताक का प्रयोग करते हैं। केवल पशुओं से रक्षा हो, इसलिए बाँस का ढँकना दरवाजे पर लगाया जाता है।
गाँव छोटा है, पर लोग समृद्ध हैं। इसलिए अनेक लोगों के घर आधुनिक तकनीक से ईंट-पत्थर तथा सीमेंट का इस्तेमाल करके बनाए गए हैं। फिर भी दरवाजों में किवाड़ नहीं हैं। यहाँ दुमंजिला मकान भी नहीं है। यहाँ पर कभी चोरी नहीं हुई। यहाँ आने वाले भक्त अपने वाहनों में कभी ताला नहीं लगाते। कितना भी बड़ा मेला क्यों न हो, कभी किसी वाहन की चोरी नहीं हुई।
शनिवार के दिन आने वाली अमावस को तथा प्रत्येक शनिवार को महाराष्ट्र के कोने-कोने से दर्शनाभिलाषी यहाँ आते हैं तथा शनि भगवान की पूजा, अभिषेक आदि करते हैं। प्रतिदिनप्रातः 4 बजे एवं सायंकाल 5 बजे यहाँ आरती होती है। शनि जयंती पर जगह-जगह से प्रसिद्ध ब्राह्मणों को बुलाकर 'लघुरुद्राभिषेक' कराया जाता है। यह कार्यक्रम प्रातः 7 से सायं 6 बजे तक चलता है।
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Posted by Udit bhargava at 1/08/2010 03:09:00 pm 0 comments
अनूठा शिवपुर तीर्थ
यह अनूठा तीर्थ स्थल प्रदेश के देवास जिले की बागली तहसील में चापड़ा से मात्र 8 कि.मी. दूर इंदौर-बैतूल राष्ट्रीय राजमार्ग 59-ए पर स्थित ग्राम मातमोर से 3 कि.मी. दक्षिण दिशा में स्थित है। प्रदेश ही नहीं अपितु राजस्थान, गुजरात व महाराष्ट्र राज्य के हजारों दर्शनार्थियों के लिए यह स्थल महत्वपूर्ण होता जा रहा है।
लगभग 2 करोड़ की लागत से निर्मित दुनिया का एकमात्र श्री त्रिभुवन भानु पार्श्वनाथ भगवान का रथाकार मंदिर, स्वयंभू श्री माणिभद्र वीर बाबा का मंदिर, श्री सिद्ध चक्र गुरु मंदिर की भव्यता व कलात्मकता देखते ही बनती है। यह लगभग 35 बीघा क्षेत्रफल में फैला तीर्थ है।
समाज के संत पू. पन्यास प्रवर वीररत्नविजयजी का इस धरा पर पावन पदार्पण होने के बाद ही तीर्थ की कल्पना ने आकार लेना प्रारंभ किया। अपने आराध्य देव की खोज में निकले मुनिश्री को इस धरा पर पहुँचते ही यहाँ का प्राकृतिक वातावरण भा गया। ध्यान लगाते ही मुनिश्री को दिव्य संकेत मिला।
23 मार्च 1988 को इस पावन भूमि का भूमिपूजन संपन्न हुआ था। भूमिपूजन के बाद लगभग 2 माह के समय में ही 19 मई 1988 बैशाख शुक्ल छठ के दिन रवि पुष्य नक्षत्र में तीन आम्र वृक्षों के मध्य स्वयंभू श्री माणिभद्र वीर बाबा का प्रकटीकरण हुआ। तभी से सिलसिला शुरू हुआ इस तीर्थ स्थल को महातीर्थ बनाने का।
स्वयंभू बाबा श्री माणिभद्र को भव्य मंदिर बनाकर प्रतिष्ठित किया गया। प्रतिवर्ष बसंत पंचमी पर पूर्ण श्रद्धा के साथ बाबा का जन्मोत्सव मनाया जाता है।
14 फरवरी 1994 को गुजरात से आए पत्थरों को राजस्थान के कारीगरों ने दिल खोलकर तराशा और देखते ही देखते दुनिया का सबसे बड़ा रथाकार जैन मंदिर अपनी भव्यता, कलात्मकता व आस्था के अनुरूप बनकर तैयार हो गया।
इस रथाकार मंदिर में 17 प्रभु प्रतिमाओं से समालंकृत मुख्य मंदिर है। मुख्य गंभारा (सभागृह) के गुम्बज में देव-देवी, चामरधारी (इंद्र-इंद्राणी) तथा श्रावक-श्राविकाओं से युक्त 24 तीर्थंकरों की प्रतिमाओं को देखकर मन को अद्भुत शांति मिलती है। रथाकार मंदिर के आठों पहियों पर जैन संतों के 14 स्वप्नों की कलाकृति तथा अष्ट मंगल के प्रतीक चिह्न उत्कीर्ण हैं।
रथाकार मंदिर को चलायमान-सा प्रतीत करते दो काष्ठ (लकड़ी) निर्मित घोड़े हैं, जो अपने आकार व सजीवंतता से श्रद्धालुओं को प्रभु के दर्शन के लिए खींचते हैं।
तीर्थ में प्रवेश करते ही रथाकार मंदिर के दाहिनी ओर माणिभद्र बाबा का चमत्कारी मंदिर है तथा बाईं ओर श्री सिद्ध चक्र गुरु मंदिर है। गुरु मंदिर बनाने में उड़ीसा के कलाकारों ने पाषाण में अपनी रचना शक्ति का बखूबी उपयोग कर प्राचीन शिल्प की याद ताजा करा दी। गुरु मंदिर के गुम्बज में भगवान सुधर्मा स्वामी से लेकर जैनाचार्य श्री दान सूरीश्वरजी म.सा. तक 75 सूरी देवों की मूर्तियाँ स्थापित की गई हैं।
उक्त तीनों प्रमुख मंदिरों के अलावा ज्ञान मंदिर, धर्मशाला, भोजनशाला की भी व्यवस्था है, जहाँ संपूर्ण सुविधाएँ श्रद्धालुओं को उपलब्ध करवाई जाती हैं। इस महातीर्थ की एक प्रमुख विशेषता यह भी रही है कि यहाँ अभी तक करोड़ों रुपए के निर्माण कार्य हो चुके हैं, लेकिन कभी किसी प्रकार का धन संग्रहण (चंदा) नहीं लिया गया।
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Posted by Udit bhargava at 1/08/2010 03:07:00 pm 0 comments
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