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Posted by Udit bhargava at 1/09/2010 10:12:00 pm 0 comments
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Posted by Udit bhargava at 1/09/2010 09:59:00 pm 0 comments
Labels: प्रवचन
Posted by Udit bhargava at 1/09/2010 07:33:00 pm 0 comments
अरण्मूल श्रीपार्थसारथी मंदिर केरल के प्राचीनतम मंदिरों में से एक है। यहाँ भगवान श्रीकृष्ण श्रीपार्थसारथी के रूप में विराजमान हैं। मंदिर पथानमथिट्टा जिले के अरण्मूल में पवित्र नदी पंबा के किनारे पर स्थित है।
कहा जाता है कि अरण्मूल मंदिर का निर्माण अर्जुन ने युद्धभूमि में निहत्थे कर्ण को मारने के अपराध के प्रायश्चित स्वरूप किया था। एक अन्य कथा के अनुसार यह मंदिर सबरीमाला के पास नीलकल में बनाया गया था और बाद में मूर्ति को बाँस के छह टुकड़ों से बने बेड़े पर यहाँ लाया गया। इसीलिए इस जगह का नाम अरण्मूल पड़ा जिसका मलयालम में अर्थ होता है बाँस के छह टुकड़े।
प्रतिवर्ष भगवान अय्यप्पन के स्वर्ण अंकी (पवित्र गहना) को यहीं से विशाल शोभायात्रा में सबरीमाला तक ले जाया जाता है। ओणम् त्योहार के दौरान यहाँ प्रसिद्ध अरण्मूल नौका दौड़ भी आयोजित की जाती है। मंदिर में 18वीं सदी के भित्ति चित्रों का भी ऐतिहासिक संग्रह है।
अरण्मूल श्रीपार्थसारथी मंदिर केरल की वास्तुकला शैली का अद्भुत नमूना है। पार्थसारथी की मूर्ति छह फीट ऊँची है। मंदिर की दीवारों पर 18वीं सदी की सुंदर नक्काशी है। मंदिर बाहरी दीवारों के चार कोनों के चार स्तंभों पर बना है। पूर्वी स्तंभ पर चढ़ने के लिए 18 सीढ़ियाँ हैं और उत्तरी स्तंभ से उतरने के लिए 57 सीढ़ियाँ हैं जो पंबा नदी तक जाती हैं।
मंदिर की प्रतिमा की स्थापना की वर्षगाँठ के उपलक्ष्य में प्रतिवर्ष 10 दिन उत्सव तक मनाया जाता है। यह उत्सव मलयालम माह मीनम में पड़ता है।
ओणम् (केरल का मुख्य त्योहार) के दौरान अरण्मूल मंदिर अपने पानी के उत्सव के लिए अधिक लोकप्रिय है जिसे अरण्मूल वल्लम्कली (अरण्मूल बोट रेस) के रूप में जाना जाता है। इस दौरान नौका में चावल और अन्य पदार्थ भेजने की प्रथा है जिसे पास के गाँव में नजराने के तौर पर भेजा जाता है। इसे मानगढ़ कहते हैं जो त्योहार की उत्पत्ति से संबंधित है। यह प्रथा आज भी जारी है। उत्सव की शुरुआत कोडियेट्टम (ध्वजारोहण) से होती है और इसकी समाप्ति मूर्ति की पंबा नदी में डुबकी लगाने पर होती है जिसे अरट्टू कहा जाता है।
गरूड़वाहन ईजुनल्लातु, उत्सव के दौरान निकलने वाली रंगारंग शोभायात्रा है जिसमें भगवान पार्थसारथी को गरुड़ पर, सजाए गए हाथियों के साथ पंबा नदी के किनारे ले जाया जाता है। उत्सव के समय वल्ला सद्या जो एक महत्वपूर्ण वजिपाडू अर्थात् नजराना होता है, मंदिर को दिया जाता है।
खांडवनादाहनम् नामक एक अन्य उत्सव मलयालम माह धनुस में मनाया जाता है। उत्सव के दौरान मंदिर के सामने सूखे पौधों, पत्तियों और झाड़ियों से जंगल का प्रतिरूप बनाया जाता है। फिर महाभारत में खांडववन की आग के प्रतीक के रूप में इन्हें जलाया जाता है। भगवान श्रीकृष्ण का जन्मदिन अष्टमीरोहिणी के रूप में इस मंदिर में धूमधाम से मनाया जाता है।
कैसे पहुँचें:-
सड़क मार्ग: अरण्मूल पथानमथिट्टा के जिला मुख्यालय से 16 किमी की दूरी पर है जहाँ पहुँचने के लिए बस उपलब्ध है।
रेल मार्ग: यहाँ से निकटतम रेलवे स्टेशन चेनगन्नूर है जहाँ से बस द्वारा 14 किमी की यात्रा तय कर मंदिर तक पहुँचा जा सकता है।
हवाई मार्ग: यहाँ से निकटतम हवाई अड्डा कोच्चि है जो अरण्मूल से 110 किमी दूरी पर स्थित है।
Posted by Udit bhargava at 1/09/2010 07:21:00 pm 0 comments
धर्म यात्रा की इस बार की कड़ी में हम आपको लेकर चलते हैं भगवान जगन्नाथ अर्थात कृष्ण की शरण में। अहमदाबाद में अपनी भव्यता और सुंदरता के लिए भगवान जगन्नाथ का मंदिर काफी प्रसिद्ध है। जमालपुर स्थित यह प्राचीन मंदिर अहमदाबाद की शान माना जाता है।
इस मंदिर के निर्मिती के बारे में कहा जाता है कि करीब 150 वर्ष पूर्व भगवान जगन्नाथजी ने महंत नरसिंहदासजी के सपने में जाकर आदेश दिया कि यहाँ उनके भाई बलदेव और बहन सुभद्रा के साथ उनका मंदिर स्थापित किया जाए। प्रात: महंतजी ने यह स्वप्न की बात गाँववालों के समक्ष रखी और सभी ने इसे सहर्ष स्वीकारते हुए धूमधाम के साथ भगवान जगन्नाथ की प्राण-प्रतिष्ठा की।
भगवान जगन्नाथ को विराजित करते ही क्षेत्र की रौनक में चार चाँद लग गए। यहाँ भगवान जगन्नाथ, बलभद्रजी तथा देवी सुभद्रा की आकर्षक प्रतिमाएँ आने वाले हर भक्त का मन मोह लेती हैं। तत्पश्चात 1878 से आषाढ़ी बीज के दिन निकाली जाने वाली रथयात्रा अब यहाँ की परंपरा का हिस्सा बन गई है। इस दौरान मंदिर की विशेष रूप से साज-सज्जा भी की जाती है। रथयात्रा में शामिल होने वाले भक्त स्वयं को भाग्यशाली मानते हैं।
जय रणछोड़, माखनचोर की गूँज के साथ भगवान जगन्नाथ के दर्शन के लिए यहाँ दूर-दूर से आए भक्तों का ताँता लगा रहता है। इसके मद्देनजर यहाँ सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए जाते हैं। भक्तों का मानना है कि भगवान जगन्नाथ के दर्शन मात्र से ही सारी इच्छाएँ पूर्ण हो जाती हैं।
यहाँ महामंडलेश्वर महंत नरसिंहदासजी महाराज द्वारा 'भूखे को भोजन' इस भाव से सदाव्रत शुरू किया गया है। इसके तहत आज भी यहाँ प्रतिदिन हजारों गरीब, भिखारी और जरूरतमंद लोग पेट की भूख को शांत करते हैं।
कैसे पहुँचें?
वायु मार्ग:- अहमदाबाद एयरपोर्ट देश के सभी प्रमुख एयरपोर्ट से जुड़ा हुआ है। एयरपोर्ट से निजी टैक्सी से मंदिर पहुँचा जा सकता है।
रेल मार्ग:- अहमदाबाद देश के बड़े शहरों के साथ ही कुछ छोटे शहरों से भी रेल लाइन द्वारा जुडा हुआ है। यहाँ स्थित कालूपुर स्टेशन मंदिर से 3 किमी दूरी पर स्थित है। मणिनगर और साबरमती रेलवे स्टेशन से भी मंदिर तक आसानी से पहुँचा जा सकता है।
सड़क मार्ग:- सभी राज्यों से अहमदाबाद के लिए बस सेवा उपलब्ध है। यहाँ गीता मंदिर स्थित बस डिपो पहुँचकर टैक्सी के माध्यम से मंदिर तक पहुँचा जा सकता है।
Posted by Udit bhargava at 1/09/2010 07:11:00 pm 0 comments
Posted by Udit bhargava at 1/09/2010 06:59:00 pm 1 comments
Posted by Udit bhargava at 1/09/2010 06:37:00 pm 0 comments
वर्त्तमान में मानवीय जीवन अत्यधिक कठिन हो गया है। गाँव से जनसमुदाय सहारों की ओर पलायन कर रहा है। इससे सहारों का विस्तार लगातार बढ़ता जा रहा है। भारत के कई बड़े सहरोंमें तो घर बनाना सामान्य व्यक्ति के लिए सिर्फ दिवास्वप्न के समान है। ऐसे में जैसा और जो भी घर मिले उस्सी में रहकर कई परिवार अपना पालन-पोषण करने को मजबूर हैं। ऐसी दौड-भाग वाली ज़िन्दगी में सन्तुष्टि किसी को भी नहीं है, इसलिए वे अपने दुखों को जाने के लिए उघत रहते हैं।
इन दुखों का कारन कुछ भी हो सकता है, परन्तु इन कारणों में से ही जिस घर में आप रह रहे हैं, उस घर में व्याप्त उर्जा भी आपतो प्रभावित करती है। यह उर्जा यदी नकारात्मक होगी, तो निश्चित ही आपके दुखों का कारन भी होगी हालांकि यह आवश्यक नहीं है कि आपके जीवन में जो समस्याएं हैं, उनका कारन यही है, लेकिन घर में लगातार अशांति रहती हो, घर में आते ही मन विचलित हो जाता हो, परिजनों के मध्य पारस्परिक मतभेद रहता हो, सभी परिजनों कि उन्नति में बाधाएं उपस्थित हो रही हों, घर में मांगलिक कार्य संपन्न होने में बहुत अधिक विध्न उत्त्पन्न होते हों, तो यह समझिये कि यह आपके घर की नकारात्मक उर्जा ही है, जो आप सभी को प्रभावित कर रही है। कई बार जन्मपत्रिका अथवा हस्तरेखाओं का अध्यन करते समय यह समस्या नजर नहीं आ पति है और हम यह सोचकर चिंतित होते रहते हैं कि मेरा अच्छा वक्त चल रहा फिर भी क्यों मेरे जीवन में ऐसी समस्याएं उपस्थित हो रही हैं।
जिस प्रकार घर कि नकारात्मक उर्जा परिवार एवं परिजनों को प्रभावित करती है, उसी प्रकार आपके कार्यस्थल, फैक्ट्री, दुकान आदि की नकारात्मक उर्जा आपके कार्य और व्यापर को प्रभावित करती है।
यह नकारात्मक उर्जा आखिर है क्या? इस प्रशन का उत्तर आज से कई वर्षों पूर्व ही विद्वानों ने वास्तुशास्त्र विषय के अंतर्गत वास्तुदोषों के नाम से उल्लिखित कर दिया है। घर अथवा व्यापर स्थल कि नकारात्मक उर्जा मतलब उस स्थान पर स्थित वास्तुदोस्त। ये वास्तुदोष निर्मंकार्य को लेकर हो सकते हैं, भूमि कि प्रकति को लेकर हो सकते हैं, आस-पास के निर्माण कार्य को लेकर हो सकते हैं तथा कई अन्य प्राकतिक स्थितियां भी इसका कारन हो सकती हैं।
व्यक्ति अपने घर अथवा व्यापारस्थल की नकारात्मक उर्जा का कारन जानते ही व्यक्ति उसको दूर करने का उपाय ढूंढता है और उसका निवारण भी करवाता है, लेकिन यह प्रत्येक व्यक्ति के साथ संभव नहीं है। जो व्यक्ति बड़े शहरों में येन-केन प्रकारें अपना आशियाना बनाकर रहने लगता है, अपने अब तक के जीवन की पूंजी लगाकर अपने घर का निर्माण करता है, उसे यदि यह कहा जाए कि आपके घर में जो नकारात्मक उर्जा उत्पन्न हो रही है, उसे दूर करने के लिए आपको पुनः तोड़फोड़ करके दोबारा निर्माण करवाना होगा, तो यह उसके लिए बहुत मुश्किल होता है। ऐसे में वह उस नकारात्मक उर्जा के साथ में रहने को मजबूर हो जाता है। ऐसे ही आस-पास के निर्माण कार्य और भूमि कि प्रकति से उत्त्पन्न होने वाले वास्तुदोषों का भी कोई हल नहीं मिल पता है।
Posted by Udit bhargava at 1/09/2010 04:31:00 pm 0 comments
Labels: मैनेजमेंट मंत्र
Posted by Udit bhargava at 1/09/2010 08:03:00 am 0 comments
दाम्पत्य सुख में गोचर ग्रहों का प्रभाव
Posted by Udit bhargava at 1/08/2010 08:32:00 pm 0 comments
जिससे शीघ्र विवाह हो
Posted by Udit bhargava at 1/08/2010 08:19:00 pm 0 comments
ऊर्जावर्धक उपकरणऑरिया (प्रभामंडल) उत्पादों की श्रृंखला, चिकित्सा और परिवेश ऊर्जावर्धक उपकरणों के जरिए प्राकृतिक एवं व्यक्तिगत ऑरा तथा ब्रह्मांडीय ऊर्जा के बीच समन्वय स्थापित कर आपको लाभ पहुँचाने का माध्यम है। इन्हें अंतरिक्ष रहस्यवेत्ताओं के मार्गदर्शन में ऊर्जाचक्र और स्पर्श चिकित्सा के गूढ़ अध्ययन के बाद विकसित किया गया है।
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झाँझ- हाथ में पकड़े जा सकने वाले इस उपकरण को नकारात्मक विचार-अभिव्यक्ति और व्याधि शक्ति से मुकाबले के लिए तैयार किया गया है।
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द्वार गुणावृत्ति शोधक- घर या दफ्तर के दरवाजे पर लटकाए जाने वाले इस उपकरण के जरिए नकारात्मक ऊर्जा प्रतिस्थापित कर लाभदायक ऊर्जा प्रवाहित की जाती है।
ऑरिया (प्रभामंडल) उत्पादों की श्रृंखला, चिकित्सा और परिवेश ऊर्जावर्धक उपकरणों के जरिए प्राकृतिक एवं व्यक्तिगत ऑरा तथा ब्रह्मांडीय ऊर्जा के बीच समन्वय स्थापित कर आपको लाभ पहुँचाने का माध्यम है।
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घंटी वाद्य- त्रिआयामी ऊर्जा वाले इस उपकरण में स्वस्तिक, ओम और त्रिशूल की सम्मिलित शक्ति है। घर एवं कार्यालय में नकारात्मक ऊर्जा से प्रभावित शिथिल ऑरा को पुनः चैतन्य करने हेतु इसे प्रयुक्त किया जाता है। यह उपकरण आप अपने घर के शयन कक्ष अथवा स्नानघर में लटका सकते हैं।
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रंगीन काँच के उपकरण- पूर्वी, मध्य-पूर्व जैन और वैदिक संस्कृति के खगोलशास्त्रीय अध्ययन के जरिए सौभाग्यवर्धक और नकारात्मक प्रभावरोधक इन उपकरणों को तैयार किया गया है- (अ) ऑरिया हस्त, (ब) ऑरिया जेन, (स) ऑरिया त्रिशक्ति।
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चाबी के छल्ले- दैनिक जीवन में इनसे खुशहाली लाई जा सकती है। यात्रा के दौरान भी ये आपको सुरक्षित रखते हैं- (अ) हस्त की-चेन (ब) ट्रेवलर की-चेन, (स) एविल आई की चेन।
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लक्ष्मी मोमबत्ती स्टैंड- इतालवी काँच से निर्मित इस उपकरण को रहस्यवेत्ताओं के मार्गदर्शन में वैदिक सूत्रों के अनुरूप बनाया गया है। व्यक्ति की भौतिक एवं आध्यात्मिक उन्नति के समन्वित उद्देश्य वाला यह उपकरण समृद्धिदायक और सफलता लाने वाला है। जीवन के हर क्षेत्र में उन्नति के लिए यह उपयोगी है।
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हस्त मोमबत्ती स्टैंड- धातु एवं मिश्र धातुओं से निर्मित इस यंत्र को रखने से शांति और सौभाग्य की वृद्धि होती है।
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सूर्य ऊर्जा संग्राहक- प्राचीन विद्या से प्रेरित इस उपकरण को सही जगह लटकाने पर घर के सभी सदस्यों को लाभ मिलता है। (अ) ओम ऑरिया संग्राहक, (ब) स्वस्तिक ऑरिया संग्राहक।
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कपूर से बना ब्रह्मांडीय ऑरा यंत्र- यह वातावरण के नकारात्मक प्रभाव को दूर कर उसे शुद्ध करने हेतु प्रयुक्त होता है।
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जल तरंग एवं खगोलीय सौभाग्यवर्धक- हड़प्पा सभ्यता के विज्ञान से प्रेरित इस उपकरण से मन-मस्तिष्क को शांति मिलती है। खास तौर से तब, जब इसे कमरे की उत्तर-पूर्व दिशा में रखा जाए।
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बाल स्मरण-शक्तिवर्धक यंत्र- अपने ऑरा के जागृत होने से बच्चों का मस्तिष्क अधिक तेजी से काम करता है।
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रेकी हर्ष- रेकी की त्रिआयामी शक्ति सम्मिलित रूप से भौतिक एवं आध्यात्मिक ऊर्जा का विकास करती है। इसे नाभि के ऊपरी हिस्से में चमड़े के उत्पादों से दूर रखकर बाँधना चाहिए।
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ऑरा प्रार्थना पुंज- अपने ऑरा को जागृत कर दिन के लिए उपयुक्त प्रार्थना पत्रक चुनें और भावनात्मक तथा आध्यात्मिक परिवेश को अनुकूल बनाएँ।
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लेप्रेशॉन- रंगीन काँच से बना यह नक्काशीदार उपकरण एक चक्र पर घूमता है। इसके घूर्णन पंखों के जरिए नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है।
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आत्म ऊर्जा पत्र- इसे नाभि के ऊपर चमड़े से बने उत्पादों से दूर रखकर बांधने से आत्मिक ऊर्जा में वृद्धि होती है।
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द्वार वास्तु संवर्धक- घर के भीतर दरवाजे के बाईं ओर के हिस्से में इसे आँख की ऊँचाई पर लटकाने से ऑरा प्रवाह संकेंद्रित होता है।
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त्रिशक्ति सागर लवण- (शुद्ध स्वर्ण, रजत एवं तांबा युक्त)।
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बाह्य उपयोग के लिए स्नान गुटिका - स्वर्ण नकारात्मक ऊर्जा सकारात्मक दिशा में बदलता है। चाँदी प्रतिकूल ऊर्जा को दूर हटाती है और तांबा प्रभामंडल को संतुलित बनाता है। आलस्य, तनाव और अवसाद दूर करने हेतु यह उपयोगी है।
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कार घंटी वाद्य- यात्रा के दौरान आप कार में इसे लटकाकर सुरक्षित और आनंददायक सफर कर सकते हैं।
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ऑराजन्य ब्रह्मांडीय वास्तु परिशोधक चित्र- इन सुनहरे चित्रों को लगाने से प्रतिकूल ऊर्जा सकारात्मक बनती है। इसमें जड़े रत्न बुरे प्रभावों से वातावरण को दूर रखते हैं।
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सद्भाव दोलक- दरवाजे पर इसे लटकाने से शांति और सद्भाव की वृद्धि होती है।इन उत्पादों को ऑरा एवं वास्तु विशेषज्ञों की देखरेख में तैयार किया गया है।
Posted by Udit bhargava at 1/08/2010 08:05:00 pm 0 comments
सदैव खुला व साफ रखें ब्रह्म आँगन मकान का केन्द्रीय स्थल होता है। यह ब्रह्म स्थान भी कहलाता है। ब्रह्म स्थान सदैव खुला व साफ रखना चाहिए। पुराने जमाने में ब्रह्म स्थान में चौक, आँगन होता था। गाँवों की बात छोड़ दें, तो शहरों में मकान में आँगन रखने का रिवाज लगभग उठ-सा गया है। वास्तु शास्त्र में मकान आँगन रखने पर जोर दिया जाता है। वास्तु के अनुसार, मकान का प्रारूप इस प्रकार रखना चाहिए कि आँगन मध्य में अवश्य हो। अगर स्थानाभाव है, तो मकान में खुला क्षेत्र इस प्रकार उत्तर या पूर्व की ओर रखें, जिससे सूर्य का प्रकाश व ताप मकान में अधिकाधिक प्रवेश कर सके। इस तरह की व्यवस्था होने पर घर में रहने वाले प्राणी बहुत कम बीमार होते हैं। वे हमेशा सुखी रहते हैं, स्वस्थ व प्रसन्न रहते हैं। आँगन किस प्रकार होना चाहिए- यह मध्य में ऊँचा और चारों ओर से नीचा हो। अगर यह मध्य में नीचा व चारों ओर से ऊँचा है, तो यह आपके लिए नुकसान देह है। आपकी सम्पत्ति नष्ट हो सकती है। परिवार में विपदा बढ़ेगी।आँगन के फला फल को दूसरे तरीके से भी जाना जा सकता है। वास्तु के अनुसार आँगन की लंबाई और चौड़ाई के योग को 8 से गुणा करके 9 से भाग देने पर शेष का नाम व फल इस प्रकार जानें:-
शेष का नाम फल
1 तस्कर ,, चोट भय
2 भोगी ,, ईश्वरी
3 विलक्षण ,, बौद्धिक विकास
4 दाता ,, धर्म-कर्म में वृद्धि
5 नृपति ,, राज-सम्मान
6 नपुंसक ,, स्त्री-पुत्रादि की हानि
7 धनद ,, धन का आगमन
8 दरिद्र ,, धन नाश
9 भयदाता ,, चोरी, शत्रुभय।
Posted by Udit bhargava at 1/08/2010 06:31:00 pm 0 comments
Posted by Udit bhargava at 1/08/2010 06:28:00 pm 0 comments
दक्षिण-पूर्व में रखें डाइनिंग टेबलरसोईघरः आग्नेय कोण में अथवा पूर्व व आग्नेय के मध्य या फिर पूर्व में रसोईघर स्थापित करें। आग्नेय कोण सर्वश्रेष्ठ है। अगर आपका खाना पकाना आग्नेय कोण में नहीं हो रहा हो, तो चूल्हा या गैस आग्नेय कोण में जरूर रखें। भोजन बनाने वाली का मुँह पूर्व दिशा में होना चाहिए।
स्टोर अथवा भंडार गृह : पुराने जमाने में भवन में पूरे साल के लिए अनाज संग्रह किया जाता था अथवा जरूरत का सामान हिफाजत से रखा जाता था। उसके लिए अलग कक्ष होता था। किन्तु आज के समय में जगह की कमी के कारण रसोई घर में ही भण्डारण की व्यवस्था कर ली जाती है। रसोई घर में भण्डारण ईशान व आग्नेय कोण के मध्य पूर्वी दीवार के सहारे होना चाहिए। यदि स्थान की सुविधा है, तो भवन के ईशान व आग्नेय कोण के मध्य पूर्व में स्टोर का निर्माण किया जाना चाहिए।डायनिंग हॉल अथवा भोजन कक्ष : वास्तु के हिसाब से आपकी डाइनिंग टेबल दक्षिण-पूर्व में होनी चाहिए। अगर आपने अपने मकान में अलग डायनिंग हॉल की व्यवस्था की है, तब तो अति उत्तम, अन्यथा ड्राइंग रूम में बैठकर भोजन किया जा सकता है। लेकिन हमेशा ध्यान रखें- आपके खाने की मेज की स्थिति दक्षिण-पूर्व में होनी चाहिए। वास्तु शास्त्र के अनुसार किसी मकान में डायनिंग हॉल पश्चिम या पूर्व दिशा में होना चाहिए।
Posted by Udit bhargava at 1/08/2010 06:18:00 pm 0 comments
भारतीय जीवन-धारा में जिन ग्रन्थों का महत्वपूर्ण स्थान है उनमें पुराण भक्ति ग्रंथों के रूप में बहुत महत्वपूर्ण माने जाते हैं। पुराण साहित्य भारतीय जीवन और साहित्य की अक्षुण्ण निधि हैं। इनमें मानव जीवन के उत्कर्ष और अपकर्ष की अनेक गाथाएँ मिलती हैं। कर्मकांड से ज्ञान की ओर आते हुए भारतीय मानस चिंतन के बाद भक्ति की अविरल धारा प्रवाहित हुई है। विकास की इसी प्रक्रिया में बहुदेववाद और निर्गुण ब्रह्म की स्वरूपात्मक व्याख्या से धीरे-धीरे मानस अवतारवाद या सगुण भक्ति की ओर प्रेरित हुआ। अठारह पुराणों में अलग-अलग देवी-देवताओं को केन्द्र मानकर पाप और पुण्य, धर्म और अधर्म, कर्म, और अकर्म की गाथाएँ कही गई हैं।
आज के निरन्तर द्वन्द्व के युग में पुराणों का पठन मनुष्य़ को उस द्वन्द्व से मुक्ति दिलाने में एक निश्चित दिशा दे सकता है और मानवता के मूल्यों की स्थापना में एक सफल प्रयास सिद्ध हो सकता है। इसी उद्देश्य को सामने रखकर पाठकों की रुचि के अनुसार सरल, सहज और भाषा में पुराण साहित्य की श्रृंखला में यह विष्णु पुराण प्रस्तुत है।
विष्णु पुराण की संक्षिप्त जानकारी श्रीब्रह्माजी कहते है- वत्स! सुनो,अब मैं वैष्णव महापुराण का वर्णन करता हूँ,इसकी श्लोक संख्या तेईस हजार है,यह सब पातकों का नाश करने वाला है। इसके पूर्वभाग में शक्ति नन्दन पराशर ने मैत्रेय को छ: अंश सुनाये है,उनमें प्रथम अंश में इस पुराण की अवतरणिका दी गयी है। आदि कारण सर्ग देवता आदि जी उत्पत्ति समुद्र मन्थन की कथा दक्ष आदि के वंश का वर्णन ध्रुव तथा पृथु का चरित्र प्राचेतस का उपाख्यान प्रहलाद की कथा और ब्रह्माजी के द्वारा देव तिर्यक मनुष्य आदि वर्गों के प्रधान प्रधान व्यक्तियो को पृथक पृथक राज्याधिकार दिये जाने का वर्णन इन सब विषयों को प्रथम अंश कहा गया है। प्रियव्रत के वंश का वर्णन द्वीपों और वर्षों का वर्णन पाताल और नरकों का कथन,सात स्वर्गों का निरूपण अलग अलग लक्षणों से युक्त सूर्यादि ग्रहों की गति का प्रतिपादन भरत चरित्र मुक्तिमार्ग निदर्शन तथा निदाघ और ऋभु का संवाद ये सब विषय द्वितीय अंश के अन्तर्गत कहे गये हैं। मन्वन्तरों का वर्णन वेदव्यास का अवतार,तथा इसके बाद नरकों से उद्धार का वर्णन कहा गया है। सगर और और्ब के संवाद में सब धर्मों का निरूपण श्राद्धकल्प तथा वर्णाश्रम धर्म सदाचार निरूपण तथा माहामोह की कथा,यह सब तीसरे अंश में बताया गया है,जो पापों का नाश करने वाला है। मुनि श्रेष्ठ ! सूर्यवंश की पवित्र कथा,चन्द्रवंश का वर्णन तथा नाना प्रकार के राजाओं का वृतान्त चतुर्थ अंश के अन्दर है। श्रीकृष्णावतार विषयक प्रश्न,गोकुल की कथा,बाल्यावस्था में श्रीकृष्ण द्वारा पूतना आदि का वध,कुमारावस्था में अघासुर आदि की हिंसा,किशोरावस्था में कंस का वध,मथुरापुरी की लीला, तदनन्तर युवावस्था में द्वारका की लीलायें समस्त दैत्यों का वध,भगवान के प्रथक प्रथक विवाह,द्वारका में रहकर योगीश्वरों के भी ईश्वर जगन्नाथ श्रीकृष्ण के द्वारा शत्रुओं के वध के द्वारा पृथ्वी का भार उतारा जाना,और अष्टावक्र जी का उपाख्यान ये सब बातें पांचवें अंश के अन्तर्गत हैं। कलियुग का चरित्र चार प्रकार के महाप्रलय तथा केशिध्वज के द्वारा खाण्डिक्य जनक को ब्रह्मज्ञान का उपदेश इत्यादि छठा अंश कहा गया है। इसके बाद विष्णु पुराण का उत्तरभाग प्रारम्भ होता है,जिसमें शौनक आदि के द्वारा आदरपूर्वक पूछे जाने पर सूतजी ने सनातन विष्णुधर्मोत्तर नामसे प्रसिद्ध नाना प्रकार के धर्मों कथायें कही है,अनेकानेक पुण्यव्रत यम नियम धर्मशास्त्र अर्थशास्त्र वेदान्त ज्योतिष वंशवर्णन के प्रकरण स्तोत्र मन्त्र तथा सब लोगों का उपकार करने वाली नाना प्रकार की विद्यायें सुनायी गयीं है,यह विष्णुपुराण है,जिसमें सब शास्त्रों के सिद्धान्त का संग्रह हुआ है। इसमे वेदव्यासजी ने वाराकल्प का वृतान्त कहा है,जो मनुष्य भक्ति और आदर के साथ विष्णु पुराण को पढते और सुनते है,वे दोनों यहां मनोवांछित भोग भोगकर विष्णुलोक में जाते है। भागवत पुराण भागवत पुराण हिन्दुओं के अट्ठारह पुराणों में से एक है। इसे श्रीमद्भागवतम् या केवल भागवतम् भी कहते हैं। (यह भागवद् गीता से भिन्न ग्रन्थ है।) इसका मुख्य वर्ण्य विषय भक्ति योग है जिसमे कृष्ण को सभी देवों का देव या स्वयं भगवान के रूप में चित्रित किया गया है। इसके रचयिता वेद व्यास हैं। भागवत पुराण में महर्षि सुत गोस्वामी उनके समक्ष प्रस्तुत साधुओं को एक कथा सुनाते हैं। साधु लोग उनसे विष्णु के विभिन्न अवतारों के बारे में प्रश्न पूछते हैं। सुत गोस्वामी कहते हैं कि यह कथा उन्होने एक दूसरे ऋषि सुकदेव से सुनी थी। इसमें कुल बारह काण्ड हैं। प्रथम काण्ड में सभी अवतारों को साराश रूप में वर्णन किया गया है। इस पुराण की भाषा वेदों की भाषा जैसी है। इससे इसके पुराने होने का अनुमान लगाया जाता है। नारद पुराण नारद पुराण स्वयं महर्षि नारद के मुख से कहा गया पुराण पुराण है। द्वारा लिपिबद्ध किए गए १८ पुराणों में से एक है। प्रारंभ में यह २५,००० का संग्रह था लेकिन वर्तमान में उपलब्ध संस्करण में केवल २२,००० श्लोक ही उपलब्ध है। संपूर्ण नारद पुराण दो प्रमुख भागों में विभाजित है। पहले भाग में चार अध्याय हैं जिसमें सुत और शौनक का संवाद है, ब्रह्मांड की उत्पत्ति, विलय, का जन्म, मंत्रोच्चार की शिक्षा, पूजा के कर्मकांड, विभिन्न में पड़ने वाले विभिन्न व्रतों के अनुष्ठानों की विधि और फल दिए गए हैं। दूसरे भाग में भगवान पुराण गरूड़ पुराण से सम्बन्धित है और <> के बाद सद्गति प्रदान करने वाला माना जाता है। इसलिये सनातन हिन्दू धर्म में मृत्यु के बाद गरुड़ पुराण के श्रवण का प्रावधान है। किन्तु यह भ्रम की स्थिति है। प्राय: कर्मकाण्डी ब्राह्मण इस पुराण के उत्तर खण्ड में वर्णित 'प्रेतकल्प' को ही 'गरूड़ पुराण' मानकर यजमानों के सम्मुख प्रस्तुत कर देते हैं और उन्हें लूटते हैं। इसके अतिरिक्त इस पुराण में श्राद्ध-तर्पण, मुक्ति के उपायों तथा जीव की गति का विस्तृत वर्णन मिलता है। 'गरूड़ पुराण' में उन्नीस हजार श्लोक कहे जाते हैं, किन्तु वर्तमान समय में कुल सात हजार श्लोक ही उपलब्ध हैं। इस पुराण को दो भागों में रखकर देखना चाहिए। पहले भाग में विष्णु भक्ति और उपासना की विधियों का उल्लेख है तथा मृत्यु के उपरान्त प्राय: 'गरूड़ पुराण' के श्रवण का प्रावधान है। दूसरे भाग में प्रेत कल्प का विस्तार से वर्णन करते हुए विभिन्न नरकों में जीव के पड़ने का वृत्तान्त है। इसमें मरने के बाद मनुष्य की क्या गति होती है, उसका किस प्रकार की योनियों में जन्म होता है, प्रेत योनि से मुक्त कैसे पाई जा सकती है, श्राद्ध और पितृ कर्म किस तरह करने चाहिए तथा नरकों के दारूण दुख से कैसे मोक्ष प्राप्त किया जा सकता है आदि का विस्तारपूर्वक वर्णन प्राप्त होता है। गरुण पुराण में -भक्ति का विस्तार से वर्णन है। भगवान विष्णु के चौबीस अवतारों का वर्णन ठीक उसी प्रकार यहां प्राप्त होता है, जिस प्रकार '' में उपलब्ध होता है। आरम्भ में मनु से सृष्टि की उत्पत्ति, ध्रुव चरित्र और बारह आदित्यों की कथा प्राप्त होती है। उसके उपरान्त सूर्य और चन्द्र ग्रहों के मंत्र, शिव-पार्वती मंत्र, इन्द्र से सम्बन्धित मंत्र, सरस्वती के मंत्र और नौ शक्तियों के विषय में विस्तार से बताया गया है।
पद्म पुराण
महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित संस्कृत भाषा में रचे गए अठारण पुराणों में से एक पुराण ग्रंथ है। सभी अठारह पुराणों की गणना में ‘पदम पुराण’ को द्वितीय स्थान प्राप्त है। श्लोक संख्या की दृष्टि से भी इसे द्वितीय स्थान रखा जा सकता है। पहला स्थान स्कंद पुराण को प्राप्त है। पदम का अर्थ है-‘कमल का पुष्प’। चूंकि सृष्टि रचयिता ब्रह्माजी ने भगवान नारायण के नाभि कमल से उत्पन्न होकर सृष्टि-रचना संबंधी ज्ञान का विस्तार किया था, इसलिए इस पुराण को पदम पुराण की संज्ञा दी गई है।
विषय वस्तु
यह पुराण सर्ग, प्रतिसर्ग, वंश, मन्वतंर और वंशानुचरित –इन पाँच महत्वपूर्ण लक्षणों से युक्त है। भगवान विष्णु के स्वरूप और पूजा उपासना का प्रतिपादन करने के कारण इस पुराण को वैष्णव पुराण भी कहा गया है। इस पुराण में विभिन्न पौराणिक आख्यानों और उपाख्यानों का वर्णन किया गया है, जिसके माध्यम से भगवान विष्णु से संबंधित भक्तिपूर्ण कथानकों को अन्य पुराणों की अपेक्षा अधिक विस्तृत ढंग से प्रस्तुत किया है। पदम-पुराण सृष्टि की उत्पत्ति अर्थात् ब्रह्मा द्वारा सृष्टि की रचना और अनेक प्रकार के अन्य ज्ञानों से परिपूर्ण है तथा अनेक विषयों के गम्भीर रहस्यों का इसमें उद्घाटन किया गया है। इसमें सृष्टि खंड, भूमि खंड और उसके बाद स्वर्ग खण्ड महत्वपूर्ण अध्याय है। फिर ब्रह्म खण्ड और उत्तर खण्ड के साथ क्रिया योग सार भी दिया गया है। इसमें अनेक बातें ऐसी हैं जो अन्य पुराणों में भी किसी-न-किसी रूप में मिल जाती हैं। किन्तु पदम पुराण में विष्णु के महत्व के साथ शंकर की अनेक कथाओं को भी लिया गया है। शंकर का विवाह और उसके उपरान्त अन्य ऋषि-मुनियों के कथानक तत्व विवेचन के लिए महत्वपूर्ण है।
विद्वानों के अनुसार इसमें पांच और सात खण्ड हैं। किसी विद्वान ने पांच खण्ड माने हैं और कुछ ने सात। पांच खण्ड इस प्रकार हैं-
1.सृष्टि खण्ड: इस खण्ड में भीष्म ने सृष्टि की उत्पत्ति के विषय में पुलस्त्य से पूछा। पुलस्त्य और भीष्म के संवाद में ब्रह्मा के द्वारा रचित सृष्टि के विषय में बताते हुए शंकर के विवाह आदि की भी चर्चा की।
2.भूमि खण्ड: इस खण्ड में भीष्म और पुलस्त्य के संवाद में कश्यप और अदिति की संतान, परम्परा सृष्टि, सृष्टि के प्रकार तथा अन्य कुछ कथाएं संकलित है।
3.स्वर्ग खण्ड: स्वर्ग खण्ड में स्वर्ग की चर्चा है। मनुष्य के ज्ञान और भारत के तीर्थों का उल्लेख करते हुए तत्वज्ञान की शिक्षा दी गई है।
4. ब्रह्म खण्ड: इस खण्ड में पुरुषों के कल्याण का सुलभ उपाय धर्म आदि की विवेचन तथा निषिद्ध तत्वों का उल्लेख किया गया है। पाताल खण्ड में राम के प्रसंग का कथानक आया है। इससे यह पता चलता है कि भक्ति के प्रवाह में विष्णु और राम में कोई भेद नहीं है। उत्तर खण्ड में भक्ति के स्वरूप को समझाते हुए योग और भक्ति की बात की गई है। साकार की उपासना पर बल देते हुए जलंधर के कथानक को विस्तार से लिया गया है।
5.क्रियायोग सार खण्ड: क्रियायोग सार खण्ड में कृष्ण के जीवन से सम्बन्धित तथा कुछ अन्य संक्षिप्त बातों को लिया गया है। इस प्रकार यह खण्ड सामान्यत: तत्व का विवेचन करता है।
वाराह पुराण
श्री ब्रह्माजी कहते हैं -- वत्स! सुनो,अब मैं वाराह पुराण का वर्णन करता हूँ,यह दो भागों से युक्त है,और सनातन भगवान विष्णु के माहात्मय का सूचक है,पूर्वकाल में मेरे द्वारा निर्मित जो मानव कल्प का प्रसंग है,उसी को विद्वानों में श्रेष्ठ साक्षात नारायण स्वरूप वेदव्यास ने भूतल पर इस पुराण में लिपिबद्ध है। वाराह पुराण की श्लोक संख्या चौबीस हजार है,इसमें सबसे पहले पृथ्वी और बाराह भगवान का शुभ संवाद है,तदनन्तर आदि सत्ययुग के वृतांत में रैम्य का चरित्र है,फ़िर दुर्जेय के चरित्र और श्राद्ध कल्प का वर्णन है,तत्पश्चात महातपा का आख्यान,गौरी की उत्पत्ति,विनायक,नागगण सेनानी (कार्तिकेय) आदित्यगण देवी धनद तथा वृष का आख्यान है। उसके बाद सत्यतपा के व्रत की कथा दी गयी है,तदनन्तर अगस्त्य गीता तथा रुद्रगीता कही गयी है,महिषासुर के विध्वंस में ब्रह्मा विष्णु रुद्र तीनों की शक्तियों का माहात्म्य प्रकट किया गया है,तत्पश्चात पर्वाध्याय श्वेतोपाख्यान गोप्रदानिक इत्यादि सत्ययुग वृतान्त मैंने प्रथम भाग में दिखाया गया है,फ़िर भगवर्द्ध में व्रत और तीर्थों की कथायें है,बत्तीस अपराधों का शारीरिक प्रायश्चित बताया गया है,प्राय: सभी तीर्थों के पृथक पृथक माहात्मय का वर्णन है,मथुरा की महिमा विशेषरूप से दी गयी है,उसके बाद श्राद्ध आदि की विधि है,तदनन्तर ऋषि पुत्र के प्रसंग से यमलोक का वर्णन है,कर्मविपाक एवं विष्णुव्रत का निरूपण है,गोकर्ण के पापनाशक माहात्मय का भी वर्नन किया गया है,इस प्रकार वाराहपुराण का यह पूर्वभाग कहा गया है,उत्तर भाग में पुलस्त्य और पुरुराज के सम्वाद में विस्तार के साथ सब तीर्थों के माहात्मय का पृथक पृथक वर्णन है। फ़िर सम्पूर्ण धर्मों की व्याख्या और पुष्कर नामक पुण्य पर्व का भी वर्णन है,इस प्रकार मैने तुम्हें पापनाशक वाराहपुराण का परिचय दिया है,यह पढने और सुनने वाले को मन में भक्ति बढाने वाला है।
Posted by Udit bhargava at 1/08/2010 05:14:00 pm 1 comments
भगवान् श्रीकृष्ण धन्य हैं, उनकी लीलाएँ धन्य हैं और इसी प्रकार वह भूमि भी धन्य है, जहाँ वह त्रिभुवनपति मानस रूप में अवतरित हुए और जहाँ उन्होंने वे परम पुनीत अनुपम अलौकिक लीलाएँ कीं। जिनकी एक-एक झाँकी की नकल तक भावुक हृदयों को अलौकिक आनंद देने वाली है।
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Posted by Udit bhargava at 1/08/2010 04:25:00 pm 0 comments
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Posted by Udit bhargava at 1/08/2010 04:17:00 pm 1 comments
इंदौर के चिंतामण गणेश
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Posted by Udit bhargava at 1/08/2010 03:53:00 pm 0 comments
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Posted by Udit bhargava at 1/08/2010 03:46:00 pm 0 comments
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Posted by Udit bhargava at 1/08/2010 03:09:00 pm 0 comments
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Posted by Udit bhargava at 1/08/2010 03:07:00 pm 0 comments
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