लक्ष्मीपुर के एक भूस्वामी के यहाँ, लल्लू नामक एक आदमी खेती के कामों के साथ-साथ, शहर जाकर उसके घर के लिए आवश्यक सामान खरीदकर ले आने के काम भी करता रहता था।
गाँववाले कहा करते थे कि लल्लू वाक्पटु है और अक्लमंद भी। पर वह उदास चेहरा लिये कहा करता था, ‘‘मैं तो यह जानता नहीं कि जितनी आप मेरी तारीफ़ करते हैं, उतना मैं वाक्पटु व अक्लमंद हूँ या नहीं। आपका कहा अगर सच भी हो तो यह वाक्पटुता व अक्लमंदी जीने की राह में, एक पग भी मुझे आगे नहीं ले जा पायीं। मेरी कोई तरक्की नहीं हो पायी। भूस्वामी जो थोडा-बहुत देते हैं, उसी से पेट भर लेता हूँ। बस, मेहनत किये जा रहा हूँ।''
भूस्वामी के चार बैलों के जोड़े थे। उनमें से बैलों का एक जोड़ा बूढ़ा हो गया था, जिसकी वजह से गाड़ी खींचना, खेत जोतना उनसे हो नहीं पाता था। भूस्वामी ने सोचा कि बैलों का एक और जोड़ा खरीद ही लूँ। इस काम के लिए वह अठारह साल की उम्र के अपने बेटे अर्जुन और लल्लू को लेकर हर मंगलवार को होनेवाले पशुओं की हाट में गया।
हाट का पूरा का पूरा मैदान गायों, बैलों और सुंदर बछड़ों से खचाखच भरा हुआ था। भूस्वामी ने बेटे और लल्लू की सलाह से दो छोटे-छोटे बैल खरीदे और हाँककर घर ले आया।
थोडे ही दिनों में बारिश होनेवाली है, इसलिए अर्जुन बैलों को गाड़ी खींचने और खेती के अन्य काम करने का प्रशिक्षण देने लगा।
लल्लू ने अर्जुन को सावधान करते हुए कहा, ‘‘छोटे मालिक, ये दोनों छोटे बैल बहुत चुस्त हैं। आप भी जवान और इन्हीं की तरह चुस्त हैं। इसलिए सावधान रहयेगा।''
दो हफ़्ते गुज़र गये। एक दिन सबेरे अर्जुन उन नये छोटे बैलों की गाड़ी को हांकता हुआ घर लौट रहा था। वह खेतों के बीच के रास्ते से होता हुआ लौट रहा था। रास्ते की एक मोड़ में वे बैल अचानक घबरा गये और सामने से आते हुए लल्लू पर गाड़ी खींचते हुए चले गये। ऐसे तो उस समय लल्लू को कोई बड़ी चोट नहीं पहुँची, पर वह ज़मीन पर गिरकर हाथ-पैर फैलाकर छटपटाने लगा।
ग्रामीणों ने उसकी यह हालत देखी और वे अर्जुन को कोसते हुए लल्लू को उसके घर ले आये। घर पहुँचने के बाद भी लल्लू कराहने लगा। वह ऐसा देखने लगा, मानों वह किसी को भी पहचान नहीं पा रहा हो। उसकी इस हालत को देखकर ग्रामीण इस निर्णय पर आ गये कि वह कुछ दिनों तक काम करने लायक़ नहीं होगा। उन्होंने भूस्वामी से कहा, ‘‘लल्लू आप ही के भरोसे जी रहा है। दुर्भाग्यवश अब उसकी स्थिति दयनीय है। उसे सहारा देना आपकी ज़िम्मेदारी है।''
भूस्वामी में इस बात का डर पैदा हो गया कि अगर अब लल्लू की देखभाल नहीं करूँगा तो गाँव में बदनामी होगी। इसलिए वह तुरंत लल्लू के घर गया, उसका कुशल-मंगल जाना और उसकी पत्नी को दो हज़ार रुपये देते हुए कहा, ‘‘यह मेरे बेटे के निकम्मेपन की वजह से हुआ है। लल्लू जब फिर से ठीक हो जायेगा तो उसे ऐसे काम करने नहीं होंगे, जिनमें मेहनत करनी पड़े। बस, खेत में काम करनेवालों पर निगरानी रखे तो वही काफी है।''
भूस्वामी की दया पर लल्लू की पत्नी की आँखों में आँसू उमड़ आये। उसके चले जाने के बाद उसने लल्लू से कहा, ‘‘देखा, बड़े मालिक कितने दयालु हैं। अब भी सही, चोट का बहाना छोड़ो और काम पर चले जाओ।''
इस पर लल्लू ने मुस्कुराते हुए कहा, ‘‘अभी से चलना -फिरना शुरू कर दूँ तो ग्रामीण मुझे धोख़ेबाज ठहरायेंगे। कम से कम एक महीने तक मुझे घर पर आराम करने दो। भूस्वामी अब तक कड़ी से कड़ी मेहनत करवाते थे और देते नहीं के बराबर थे। कंजूस भूस्वामी से ब्याज सहित वसूल कर लिया, यही बहुत बड़ी बात है। जा, अपना काम कर।''
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