अयोध्या से प्रस्थान करने के तीसरे दिन शत्रुघ्न ने महर्षि वाल्मीकि के आश्रम में विश्राम किया। रात्रि में उन्होंने मुनि से पूछा, "हे महर्षि! आपके आश्रम के निकट पूर्व में यह किसका यज्ञ-स्थल दिखाइ पड़ रहा है?"
महर्षि बोले, हे सौमित्र! यह यज्ञ-स्थल तुम्हारे कुल के महान राजाओं ने बनवाया था। मैं उनके विषय में बताता हूँ। तुम्हारे कुल में राजा सौदास बड़े धार्मिक हुये हैं। एक दिन आखेट करते हुये उन्होंने वन में दो भयंकर दुर्दुर्ष राक्षसों को देखा। राजा ने बाण चलाकर उनमें से एक को मार गिराया। यह देखकर दूसरा राक्षस यह कहता हुआ अदृश्य हो गया कि हे पापी! तूने मेरे इस मित्र को निरपराध मारा है, अतः मैं इसका प्रतिशोध अवश्य लूँगा।
कुछ समय पश्चात् सौदास का पुत्र वीर्यसह राज्य देकर सौदास ने वशिष्ठ जी को पुरोहित बनाकर इस स्थान पर अश्वमेघ यज्ञ किया। उस समय वही राक्षस अपने प्रतिशोध चुकाने के लिये वहाँ आया और वशिष्ठ जी का रूप बनाकर राजा से बोले कि आज मुझे माँसयुक्त भोजन कराओ, इसमें सोच-विचार की आवश्यकता नहीं है। राजा ने अपने रसोइये को ऐसा ही आदेश दिया। इस आदेश को सुनकर वह आश्चर्य में पड़ गया। तभी वह राक्षस रसोइये के वेश में वहाँ उपस्थित हुआ और भोजन में मनुष्य का माँस मिलाकर राजा को दिया। राजा ने अपनी पत्नी सहित वह भोजन वशिष्ठ जी को परोसा। जब वशिष्ठ जी को ज्ञात हुये कि भोजन में मनुष्य का माँस है तो उन्होंने क्रोधित होकर राजा को शाप दिया कि राजन्! जैसा भोजन तूने मुझे प्रस्तुत किया है, वैसा ही भोजन तुझे प्राप्त होगा। तब तो राजा वीर्यसह ने भी क्रोधित हो हाथ में जल लेकर वशिष्ठ जी को शाप देना चाहा। परन्तु रानी के समझाने पर वह जल अपने पैरों पर डाल दिया। इससे उनके दोनों पैर काले हो गये। तभी से उनका नाम कल्माषपाद पड़ गया। तत्पश्चात् राजा और रानी ने महर्षि वशिष्ठ के पैर पकड़ कर क्षमा माँगी और पूरा वृतान्त उन्हें कह सुनाया। तब वशिष्ठ जी ने कहा कि राजन्! बारह वर्ष पश्चात् आप इस शाप से मुक्त हो जाओगे और तुम्हें इसका स्मरण भी नहीं रहेगा। हे शत्रुघ्न! इस प्रकार राजा कल्माषपाद उस शाप को भोगकर पुनः राज्य प्राप्त कर धैर्यपूर्वक प्रजा का पालन करने लगे। उन्हीं राजा सौदास और राजा कल्माषपाद का यह सुन्दर यज्ञ-स्थल है।" यह कथा सुनकर शत्रुघ्न अपनी पर्णशाला में विश्राम करने चले गये।
जिस दिन शत्रुघ्न वाल्मीकि के आश्रम में पहुँचे उसी रात को सीताजी ने एक साथ दो पुत्रों को जन्म दिया। तपस्विनी बालाओं से उनके जन्म का समाचार सुनकर महर्षि ने एक कुशाओं का मुट्ठा और उनके लव लेकर मन्त्रच्चार द्वारा उनकी भावी बाधाओं से रक्षा करने की व्यवस्था की। फिर एक का कुश और दूसरे का लव से मार्जन कराया। इस प्रकारे बड़ बालक का नाम कुश और दूसरे का लव रखा गया। शत्रुघ्न को भी यह समाचार पाकर अत्यन्त प्रसन्नता हुई।
अगले दिन प्रातःकाल सब कृत्यों से निवृत हो शत्रुघ्न मधुपुरी की ओर चल दिये। मार्ग में सात रात्रियाँ व्यतीत कर वे महर्षि च्यवन के आश्रम में पहुँचे।
13 फ़रवरी 2010
रामायण – उत्तरकाण्ड - पूर्व राजाओं के यज्ञ-स्थल एवं लवकुश का जन्म
Posted by Udit bhargava at 2/13/2010 08:30:00 pm 0 comments
पौष्टिक आहार को दे अहमियत
* गर्मी के मौसम में अपने खान-पान पर पूरा ध्यान दें। संतुलित भोजन (दाल, चावल, सब्जी-रोटी और सलाद-दही) को ही अपनी दिनचर्या में शामिल करें।
* विटामिन-सी हमारे शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता हैं, इसलिए आप अपने भोजन में विटामिन-सी युक्त फलों जैसे:- संतरा, अँगूर, तरबूज, आँवला आदि को शामिल करें।
* तेलयुक्त और मसालेदार भोजन से बचें। जंक-फूड, पिज्जा, बर्गर और वेफर्स को भोजन में शामिल न करें। ताजा फलों के रस को शामिल करना लाभदायक रहेगा।
* प्रतिदिन 8-10 ग्लास पानी पिएँ। प्रतिदिन सुबह खाली पेट एक ग्लास पानी में नींबू का रस निचोड़कर पीने से चेहरे पर चमक आती हैं और डिहाइड्रेशन से भी बचा जा सकता हैं।
* दिन में एक या दो बार नींबू-पानी-शक्कर डालकर पीना चाहिए। इसके अतिरिक्त दही, छाछ या मीठे शर्बत का सेवन करना चाहिए। इससे शरीर में शीतलता व तरावट बनी रहती है।
Posted by Udit bhargava at 2/13/2010 07:02:00 am 0 comments
रत्नों की श्रेष्ठता
रत्नों की श्रेष्ठता प्रमाणित करने में उसके मुख्यतया तीन गुण हैं- रत्नों की अद्भुत सौंदर्यता, रत्नों की दुर्लभता, रत्नों का स्थायित्व।
मनुष्य विकसित होने के साथ-साथ रत्नों की तरफ भी अधिक आकर्षित हो गया है। अतः रत्नों को विभाजित करते समय विशेष रूप से तीन बातों का ध्यान देते हैं कि प्राप्त रत्न निम्न तीन में से किस प्रकार का है? पारदर्शक है, अल्प पारदर्शक है अथवा अपारदर्शक है।
पारदर्शक रत्न सर्वोत्तम श्रेणी में आता है। यह भी दो प्रकार का होता है-
रंगविहीन- जिस रत्न में रंग बिल्कुल ही न हो।
रंगहीन- जिसमें रंग तो हो, परन्तु हीन दशा में हो अर्थात् रंग न अधिक गहरा हो और न अधिक हल्का तथा पारदर्शक हो, वह श्रेष्ठ होता है।
अधिक गहरा रंग होने के कारण रत्न अपारदर्शक हो जाता है। अपारदर्शक रत्नों में फीरोजा का उच्च स्थान है, तो वैसे नीलम, पुखराज तथा पन्ना भी अपने विशिष्ट रंगों के कारण मनुष्य को अपनी तरफ मोहित करते हैं।
रत्नों की दुर्लभता भी मनुष्य को उसकी तरफ आकर्षित होने का एक प्रमुख कारण है। ठीक उसी तरह जैसे कि आपके सामने से कोई सुंदर आकर्षक नवयौवना आ रही हो उसे एक बार देखने के पश्चात आपके हृदय में बार-बार उसे देखने की लालसा नहीं उठती, क्योंकि उसके चेहरे पर उसके तन पर किसी प्रकार का परदा नहीं है।
आपको देखने में कोई रोक टोक नहीं है तथा ठीक इसके विपरीत कोई महिला काली कलूटी व बदसूरत हो, परन्तु वह एक लम्बा घूँघट निकाले हुए तथा अपने शरीर को लम्बी चादर से ढँके हुए आ रही हो तो आप बार-बार उसके मुख मंडल के सौंदर्य का रसपान करना चाहते हैं। यहाँ तक कि दूर चले जाने पर भी आप बार-बार मुड़कर देखते हैं कि जरा सी भी उसकी झलक दिखाई दे जाए। ऐसा क्यों? इसलिए कि उसका मुख मंडल, शरीर सौष्ठव आपको देख पाना कठिन है, इसलिए उसकी तरफ लालायित हैं।
जिन रत्नों में स्थायित्व है तथा उनकी चमक व गुणों पर ऋतुओं व अम्ल आदि के द्वारा कोई बुरा प्रभाव नहीं पड़ता वह रत्न अधिक मूल्यवान होता है। हर व्यक्ति के पास इसे खरीदने की क्षमता नहीं होती या अधिक मूल्यवान होने के कारण हर तीसरे-चौथे वर्ष उसे खरीद सकना सम्भव नहीं है। अतः रत्नों की कठोरता होना जिससे कि उसे किसी प्रकार का खरोंच या रगड़ने का दाग न पड़े श्रेष्ठ होता है। जैसे-हीरा, पन्ना, पुखराज आदि। रत्नों के विषय में अग्नि पुराण, गरुड़ पुराण, देवी भागवत, महाभारत, विष्णु धर्मोत्तर आदि अनेकों प्राचीन ग्रंथों में वर्णन मिलता है।
Posted by Udit bhargava at 2/13/2010 06:12:00 am 0 comments
12 फ़रवरी 2010
रामायण – उत्तरकाण्ड - मान्धाता की कथा
रात्रि होने पर शत्रुघ्न ने महर्षि च्यवन से लवणासुर के विषय में अन्य जानकारी प्राप्त की तथा पूछा कि उस शूल से कौन-कौन शूरवीर मारे गये हैं। च्यवन ऋषि बोले, "हे रघुनन्दन! शिवजी के इस त्रिशूल से अब तक असंख्य योद्धा मारे जा चुके हैं। तुम्हारे कुल में तुम्हारे पूर्वज राजा मान्धाता भी इसी के द्वारा मारे गये थे।"
शत्रुघ्न द्वारा पूरा विवरण पूछे जाने पर महर्षि ने बताया, "हे राज्! पूर्वकाल में महाराजा युवनाश्व के पुत्र महाबली मान्धाता ने स्वर्ग विजय की इच्छा से देवराज इन्द्र को युदध के लिये ललकारा। तब इन्द्र ने उने से कहा कि राजा! अभी तो तुम समस्त पृथ्वी को ही वश में नहीं कर सके हो, फिर देवलोक पर आक्रमण की इच्छा क्यों करते हो? तुम पहले मधुवन निवासी लवणासुर पर विजय प्राप्त करो। यह सुनकर राजा पृथ्वी पर लौट आये और लवणासुर से युद्ध करने के लिये उसके पास अपना दूत भेजा। परन्तु उस नरभक्षी लवण ने उस दूत का ही भक्षण कर लिया। जब राजा को इसका पता चला तो उन्होंने क्रोधित होकर उस पर बाणों की प्रचण्ड वर्षा प्रारम्भ कर दी।
उन बाणों की असह्य पीड़ा से पीड़ित हो उस राक्षस ने शंकर से प्राप्त उस शूल को उठाकर राजा का वध कर डाला। इस प्रकार उस शूल में बड़ा बल है। हे रघुकुलश्रेष्ठ! मान्धाता को इस शूल के विषय में कोई जानकारी नहीं थी अतः वे धोखे में मारे गये। परन्तु तुम निःसन्देह ही उस राक्षस को मारने में सफल होगे।
Posted by Udit bhargava at 2/12/2010 08:30:00 pm 0 comments
महाशिवरात्रि पर इस तरह करें स्नान
मेष - कुंभ स्नान नई चेतना देने वाला है। राज्यभाव में चंद्रमा की उपस्थिति अनुकूल है तथापि अन्य ग्रहों की अनुकूलता के लिए स्नान करते समय लाल पुष्प एवं हल्दी जल में प्रवाहित करें तथा इस मंत्र का जाप करें- ऊं ऐं क्लीं सौ:।
वृषभ - भाग्यवर्धक योग है। अन्य ग्रहों की अनुकूलता एवं शीघ्र शुभ फल की प्राप्ति के लिए स्नान करते समय अखंड़ चावल व चंदन प्रवाहित कर स्नान करें, हो सके तो अपने साथ गौमती चक्र रखें। ऊं ऐं क्लीं श्रीं मंत्र का जप करें।
मिथुन - ग्रहगोचर सम बने हुए हैं। विशेष परिश्रम से सफलता मिल सकेगी। दूध मिश्रित जल तथा जौं प्रवाहित कर स्नान करें। स्नान के समय शंख या सीप अपने साथ रखें तथाऊं क्लीं ऐं सौ: मंत्र का जप करने से विशेष सफलता प्राप्त होगी।
कर्क - ग्रहगोचर विशेष फलदायी हैं। स्नान के पूर्व शहद, लाल फूल तथा तिल का प्रवाह करें। स्फटिक साथ में रखकर स्नान किया जाए तो शुभ फल प्राप्ति में सहयोग मिल सकेगा। ऊं ह्रीं क्लीं श्रीं मंत्र का जप आपको यशस्वी बना सकता है।
सिंह - छठे भाव में सूर्य बुध चक्र की उपस्थिति तथा सप्तम में स्थित गुरु शुक्र सफलतादायक हैं। तिल, सुगंधित इत्र तथा गोमूत्र का प्रवाह करते हुए ऊं ह्रीं श्रीं सौ: मंत्र जाप करते हुए स्नान करें। रुद्राक्ष धारण कर स्नान करना फलदायी हो सकेगा।
कन्या - जन्मस्थ शनि तथा गुरु शुक्र से षडाष्टक योग मिश्रित फलदायी है। ऐसे में स्नान के समय तिल, सुपारी व एकाधिक सिक्के प्रवाहित करें। ऊं क्लीं ऐं सौ: इस मंत्र का जाप करते हुए स्नान करें तो सफलता सहज हो सकेगी।
तुला - द्वाद्वश शनि तथा चतुर्थ में बुध सूर्य चंद्र की उपस्थिति सफलता प्राप्ति में संदेह दर्शाती है। ऐसे में स्नान के पूर्व सुगंधित इत्र, श्वेत पुष्प तथा तिल का प्रवाह करते हुए ऐं क्लीं श्रीं मंत्र का जाप सफलता दिलाने में मददगार साबित हो सकता है।
वृश्चिक - पराक्रम में सूर्य बुध तथा भाग्य में मंगल शुभ है। चतुर्थ गुरु शुक्र व्यवधान कारक हैं। ऐसे में स्नान करते समय चने की दाल, चावल व हल्दी प्रवाहित करें। स्नान करते समय ऊं ऐं क्लीं सौ: मंत्र का जाप करें।
धनु - लग्न में राहु तथा पराक्रम में गुरु शुक्र आध्यात्मिक उन्नतिकारक हैं। शुभफल की विशेष प्राप्ति के लिए स्नान के पूर्व श्वेत वस्त्र, चावल व मुलेठी लपेटकर प्रवाहित करें तथा स्नान के समय ऊं ह्रीं क्लीं सौ: मंत्र का जाप सफलतादायी रहेगा।
मकर - लग्न में सूर्य या सप्तम में मंगल की उपस्थिति सम बनी हैं। शुभ फल की प्राप्ति के लिए स्नान के समय अरगजा युक्त जल एवं तिल प्रवाहित करें तथा गोमती चक्र साथ में रखते हुए ऊं ऐं क्लीं ह्रीं श्रीं सौ: मंत्र का जप करें, सफलता प्राप्त होगी।
कुंभ - लग्नस्थ गुरु शुक्र तथा लाभ भाव में राहु आध्यात्मिक चेतना जाग्रत करने वाला है। स्नान के समय गोमूत्र एवं यज्ञ भस्म प्रवाहित करें तथा ऊं ह्रीं ऐं क्लीं श्रीं मंत्र का जप करें। इससे सफलता अर्जित कर सकेंगे।
मीन - पंचमस्थ मंगल तथा राज्य भाव में राहु की उपस्थिति शुभ है। अन्य ग्रहों की शुभता के लिए स्नान के समय पंचामृत एवं तुलसी का प्रवाह कर ऊं ह्रीं क्लीं सौ: मंत्र का जप करें। स्नान के समय तुलसीमाला पहनना विशेष लाभकारी रहेगा।
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Posted by Udit bhargava at 2/12/2010 06:20:00 am 0 comments
चाहत 'स्लिम श्रीमती' की
हाल ही में हुए एक सर्वे की रिपोर्ट बताती है कि स्लिम लाइफ पार्टनर चाहने के मामले में भारतीय पुरुष सबसे आगे हैं। तो जाहिर है कि ऐसे में महिलाओं को अपनी बॉडी को लेकर खासा कॉन्शस होने की जरूरत है।
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Posted by Udit bhargava at 2/12/2010 06:13:00 am 0 comments
प्रतिदिन की सैर लाभदायक
मोटापा न केवल खूबसूरती का दुश्मन है वरन अनेक रोगों का घर है। मोटापा विभिन्न रोगों को निमंत्रण भी देता है। मोटापा एक ऐसा रोग है जो बहुत प्रयत्न के बाद भी शायद ही पीछा छोड़े। खानपान, रहन-सहन में थोड़ी-सी लापरवाही मोटापे का द्वार खोल देती है।
इसके लिए आप अपने आचार-व्यवहार, रहन-सहन पर अंकुश लगाए बगैर छरहरे नहीं रह सकते। स्वास्थ्यप्रद क्रियाकलापों को हम अपनी दिनचर्या में शामिल कर लें तो मोटापे के जालिम पंजों से बचा जा सकता है।
- मानसिक कार्य करने वाले व्यक्ति, अधिकारी जिनको पैदल चलने का काम कम पड़ता है, अक्सर मोटापे का शिकार हो जाते हैं। ऐसे व्यक्ति को खानपान का विशेष रूप से ध्यान रखना चाहिए। प्रतिदिन व्यायाम व सैर भी लाभदायक होती है।
- सुबह-शाम ताजा भोजन करें। समय व श्रम की बचत करने के लिए बहुत-सी महिलाएँ फ्रिज की बदौलत ढेर सारा खाना बना लेती हैं। समय व श्रम की बचत के और भी कई तरीके हैं, उन्हें आजमाइए।
- बासी भोजन में पौष्टिकता अमूमन पूरी तरह नष्ट हो जाती है। गरिष्ठ, तले, मसालेदार, खटाईयुक्त भोजन से परहेज करें। इनसे मोटापे के साथ-साथ अन्य बीमारियों की संभावना कई गुना बढ़ जाती है।
- भोजन चाहे हल्का-फुल्का हो या गरिष्ठ अपनी क्षमता के अनुसार ही ग्रहण करें। जितनी कैलोरी ग्रहण की है, शारीरिक श्रम द्वारा उतनी ही खर्च भी करें।
Posted by Udit bhargava at 2/12/2010 06:12:00 am 0 comments
विघ्नहर्ता गणपति और प्रबंधन
यह करियर और कॉम्पिटिशन का दौर है। तेजी और चतुराई का समय है। हर कोई होड़ जीतना चाहता है। भूमंडलीकरण के दौर में युवाओं हेतु संभावनाओं के नए दरवाजे खुले हैं। उनके सामने अपार लक्ष्य हैं। जाहिर है वह अपनी मेहनत और लगन से अपने लक्ष्यों को हासिल करना चाहता है। लेकिन कई बार ऐसा होता है कि बिना किसी तैयारी या मैनेजमेंट के वह इसमें कामयाब नहीं हो पाता है। कहने की जरूरत नहीं कि आज कामयाबी हासिल करने के लिए हर स्तर पर मैनेजमेंट की जरूरत है।
जीवन को नई दिशा देने में आज प्रबंधन ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। भारतीय समाज में एक श्रेष्ठ प्रबंधक के गुण हमारे देवताओं में भी मौजूद हैं। उन्हीं में एक शुभारंभ के प्रतीक हैं श्री गणेश, जो प्रथम वंदनीय और विघ्नहर्ता तथा बुद्धि के देवता हैं। उनमें और उनकी जीवनलीला में प्रबंधन के कई ऐसे गुर मौजूद हैं जिसकी सहायता से और उनसे सीखकर शीर्ष पर पहुँचा जा सकता है। गणेशजी के समान ही समय के साथ सही प्रबंधन का गठजोड़ कर वह हर कठिन कार्य को उन्हीं के समान तेजी से, चतुराई से और धैर्य के साथ आसानी से पूरा कर सकता है।
आईआईपीएस के मार्केटिंग विषय के प्रो. रजनीश जैन कहते हैं कि श्री गणेश को ज्ञान का देवता कहा गया है और आज के समय में 'ज्ञान ही शक्ति' है। वे कहते हैं कि श्री गणेश का बड़ा सिर इस बात का प्रतीक है कि हमेशा बड़े विचार रखें, बड़ा सोच रखें और साथ ही यह भी कि बड़े लाभ के बारे में सोचना है। उनके बड़े कान का अर्थ है दूसरी की बातों और उनके सुझाव या आइडियाज को ध्यान से सुनना। उनकी छोटी आँखें हमें यह संदेश देती हैं कि हमें किसी भी उद्देश्य की प्राप्ति के लिए बहुत फोकस रहना है।
एकाग्रता रखकर अपने लक्ष्य हासिल करना है। उनका छोटा मुख हमें सिखाता है कि हमें जितना हो सके कम बोलना है और जब भी बोलना है हमेशा अर्थवान बोलना है। और यह भी कि ज्यादा से ज्यादा सुनना है। कई बार स्टूडेंट्स अति उत्साह में ऐसा कुछ बोल जाते हैं, जो उनके बस में नही होता या अनर्थ हो जाता है।
श्री गणेश जब अंकुश का प्रतीक धारण करते हैं तो संकेत देते हैं कि हमें बुद्धि संपन्न होने के साथ ही खुद पर नियत्रंण करना आना चाहिए। वरदान देने की मुद्रा का आशय अपनी सकारात्मकता का सतत प्रसार करना है और अभयमुद्रा का आशय सकारात्मकता का संरक्षण करना सिखाता है।
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Posted by Udit bhargava at 2/12/2010 06:10:00 am 0 comments
महाशिवरात्रिः छोटे-छोटे उपाय सुख-समृद्धि लाएं
* किसी गहरे पात्र में पारद शिवलिंग स्थापित करें। पात्र को सफेद वस्त्र पर स्थापित करें। ॐ ह्रिं नम: शिवाय ह्रिं मंत्र का ठीक आधे घंटे तक जाप करते हुए जलधारा पारद शिवलिंग पर अर्पित करें। अर्पित जल को बाद में किसी पवित्र वृक्ष की जड़ में डाल दें। शिवलिंग पूजा स्थान में स्थापित करें और नित्य नियम से मंत्र का जाप करें।
* यदि ग्यारह सफेद एवं सुगंधित पुष्प लेकर चौराहे के मध्य प्रात: काल सूर्योदय से पूर्व रख दिए जाएं, तो ऐसे व्यक्ति को अचानक धन लाभ की प्राप्ति की संभावना बनती है। यदि यह उपाय करते वक्त या उपाय करने के लिए घर से निकलने समय कोई सुहागिन स्त्री दिखाई दे, तो निश्चय ही धन-समृद्धि में वृद्धि होती है। चौराहे के मध्य में गुलाब के इत्र की शीशी खोलकर इत्र डालकर वहीं छोड़ आएं, तो ऐसे भी समृद्धि बढ़ती जाती है। जो महाशिवरात्रि पर न कर पाएं, वह शुक्ल पक्ष के दूसरे शुक्रवार को यह उपाय कर समृद्ध बन सकता है।
* एक बांसुरी को लाल साटन में लपेटकर व पूजनकर तिजोरी में स्थापित किया जाए, तो व्यवसाय में बढ़ोतरी होती है।
जिस व्यक्ति को नजर लगी हो या बार-बार नजर लग जाती हो तो उस व्यक्ति के ऊपर से मीठी रोटी उसारकर ढाक के पत्ते पर रखकर चौराहे के मध्य में प्रात:काल सूर्योदय से पूर्व रखना चाहिए। मीठी रोटी को रखने के बाद उसके चारों ओर सुगंधित फूल की माला रख देनी चाहिए। यह याद रखें कि जिस व्यक्ति को जल्दी-जल्दी नजर लगती हो उन्हें चौराहे के ठीक मध्य भाग से नहीं गुजरना चाहिए।
ग्रह दोष निवारण के लिए
पहले जान लें कि किस ग्रह के कारण बाधाएं जीवन में आ रही हैं। उस ग्रह से संबंधित अनाज लेकर ढाक के पत्ते पर रखकर चौराहे के मध्य में रखना चाहिए तथा उसके चारों ओर सुगंधित पुष्पमाला चढ़ानी चाहिए। विभिन्न ग्रहों से संबंधित अनाज इस प्रकार हैं। महाशिवरात्रि पर सूर्योदय से पूर्व ग्रह से संबंधित अनाज रख कर आएं। ध्यान रखें कि अनाज की मात्रा 250 ग्राम से कम न हो। जिस चौराहे पर वर्षा ऋतु में जल का भराव हो जाता हो, उस चौराहे पर उपाय नहीं करने चाहिए। वहां अभीष्ट फल की प्राप्ति नहीं होती।
पुत्र प्राप्ति के लिए
पश्चिम दिशा में मुंह करके पीले आसन पर बैठें। जहां तक हो सके पीले वस्त्र पहनें। लकड़ी की चौकी पर पीला वस्त्र बिछा कर एक ताम्रपत्र में ‘संतान गोपाल यंत्र’ तीन कौड़ियां, एक लग्न मंडप सुपारी स्थापित करें, केसर का तिलक लगाएं। पीले फूल चढ़ाएं व भगवान कृष्ण के बाल स्वरूप का ध्यान करें व स्फटिक माला से प्रतिदिन 5 माला जप निम्न मंत्र का करें।
देवकी सुत गोविंद वासुदेव जगत्पये
जीवन में सफलता के लिए नवग्रह रुद्राक्ष माला सवरेतम है। किसी कारणवश जो इस अवसर पर रुद्राक्ष न पहन सकें, तो वे श्रावण माह में अवश्य धारण कर लाभ प्राप्त कर सकते हैं। रुद्राक्ष बिल्कुल शुद्ध होना चाहिए।
* राजनेताओं को पूर्ण सफलता के लिए तेरह मुखी रुद्राक्ष धारण करना चाहिए।
Labels: देवी-देवता
Posted by Udit bhargava at 2/12/2010 05:22:00 am 0 comments
11 फ़रवरी 2010
आशीर्वाद
आत्मानंद को अपने परिचित युवा मित्र के विवाह पर आयोजित आशीर्वाद समारोह पर स्वरूचि भोज का निमंत्रण मिला था। समय तो 7 बजे अंकित था पर वे घर से ही घंटे डेढ़ घंटे बाद समारोह स्थल के लिए रवाना हुए थे।
विद्युत का जगमगाता प्रकाश दूर से ही आकर्षित कर रहा था। प्रवेश द्वार पर चूनड़ी का साफा बांधे, बंद गले का जोधपुरी कोट पहने एक सान खड़े थे। उनके पास ही खडी थी, आभूषणों में सजी धजी महिला, शायद उनकी पत्नी। जो भी आ रहा था, वह उन्हें आशीर्वाद का लिफाफा देकर भीतर प्रवेश कर रहा था। लिफाफों से उनकेकोट की दोनों जेबें लबालब भरी थीं।
आत्मानंद ने उन्हें ही युवा मित्र का पिता समझ, अपना आशीर्वाद का लिफाफा दे दिया। लम्बी नाल से गलियारे में बिछे कालीन को जूतों से खटाखट से दबाते जैसे ही भीतर पहूंचे, मंच पर दोनों आसन खाली दिखे। सामने कुसिर्यों पर अवश्य महिलाऐं जमीं थीं। कुछ दूर आगे बगल में भोजन पर भीड़ टूटी पड़ी थी।
आत्मानंद को वहां से यथा शीघ्र निपटकर दूसरी जगह आवश्यक रूप से पहुंचना था। इसलिए उन्होंने सीधे पहुंच भोजन किया और बाहर आ जैसे ही गाड़ी स्टार्ट की, उनके कानों में आवाज आई, बारात आ गई - बारात आ गई। वे सोच में पड़ गये। क्या वे मित्र के पिता नहीं थे? क्या वधू पक्ष के भोजन को ही उन्होंने अपना स्वरूचि भोज मान मित्रों को वहीं आमंत्रित किया है। उनके माथे पर सल पड़ गये। सोचने लगे कब तक होता होगा वधू पक्ष का इस तरह शोषण। पढ़ी लिखी लड़की देकर भी इस पुरूष- प्रधान समाज में लड़की का पिता कब तक छला जाता रहेगा। मित्र ने अपना भार दूसरे के कंधे पर डाल दिया। कैसा जमाना आ गया है। यह कहते-कहते उन्होंने अपना माथा ठोक लिया। एक बार तो सोचा कि लौट चलूं और मित्र को इस सबके लिए उपालम्भ भी दूं। लेकिन द्वार पर खडा वह लड़की का पता समझेगा कि दुबारा खाने के लिए आ गया। इसी उहापोह में उनकी गाड़ी गंतव्य की ओर बढ़ती रही। वे सोचते रहे क्या लड़कियों की भ्रूण- हत्या इसीलिए होती है। क्या इसीलिए युवा लड़कियों आत्महत्या कर लेती हैं? क्या इसीलिये विधवाउं अपनी बच्चियों को लेकर कुओं में कूद जीवित समाधि ले लेती हैं? कब रूकेगी लड़के वालों की यह भूख? कब मिलेगा लड़कियों को उचित सम्मान?
गाड़ी गंतव्य पर पहुंच चुकी थी। फाटक लगाते हुए उन्होंने यह सोच संतोष की सांस ली कि जिसे आशीर्वाद चाहिये था, उसे ही उन्होंने आशीर्वाद दिया है। वे प्रसन्न प्रसन्न त्वर गति से भीतर प्रवेश कर गये।
Posted by Udit bhargava at 2/11/2010 10:43:00 pm 0 comments
रामायण – उत्तरकाण्ड - लवणासुर वध
अगले दिन प्रातःकाल होने पर जब लवणासुर अपने पुर से बाहर निकला, तब ही शत्रुघ्न हाथ में धनुष बाण ले मधुपुरी को घेर कर खड़े हो गये। दोपहर होने पर वह क्रूर राक्षस हजारों मरे हुये जीवों को लेकर वहाँ आया तो शत्रुघ्न ने उसे द्वन्द्व युद्ध के लिये ललकारा। अभिमानी लवण तत्काल उनसे युद्ध करने के लिये तैयार हो गया और बोला, "तेरे भाई ने रावण को मारा था जो मेरी मौसी शूर्पणखा का भाई था। आज मैं उसका बदला तुझसे लूँगा। तुझे पत नहीं, अब तक मैं बड़े-बड़े शूरवीरों को धराशायी कर चुका हूँ तेरी भला क्या गिनती है?"
यह सुनकर शत्रुघ्न बोले, "नराधम! जब तूने उन वीरों को धराशायी किया होगा तब शत्रुघ्न का जन्म नहीं हुआ था। आज मैं तुझे अपने तीक्ष्ण बाणों से सीधा यमलोक का रास्ता दिखाउँगा।" यह सुनते ही लवण ने क्रोध कर एक वृक्ष उखाड़ कर शत्रुघ्न को मारा, परन्तु उन्होंने मार्ग में ही उसके सैकड़ों टुकड़े कर दिये। फिर उन्होंने उस पर बाणों की झड़ी लगा दी, किन्तु लवण इस आक्रमण से तनिक भी विचलित नहीं हुआ। उल्टे उसने शीघ्रता से एक भारी वृक्ष उखाड़कर उनके सिर पर मारा जिससे उन्हें क्षणिक मूर्छा आ गई। मूर्छित शत्रुघ्न को मरा हुआ समझ वह अपना आहार जुटाने और सैनिों को खाने लग गया। अपना शूल लेने नहीं गया।
मूर्छा भंग होते ही शत्रुघ्न ने रघुनाथजी द्वारा दिया हुआ अमोघ बाण लेकर उसके वक्षस्थल पर छोड़ दिया वह बाण लवण का हृदय चीरता हुआ रसातल में घुस गया और फिर शत्रुघ्न के पास लौट आया। उधर लवणासुर ने भयंकर चीत्कार करके अपने प्राण त्याग दिये। शत्रुघ्न ने उस नगर को फिर से बसाकर उसका नाम मधुपुरी रखा। थोड़े ही दिनों में नगर सब प्रकार से सुख सम्पन्न हो गया। इस नगर को नवीन रूप पाने में बारह वर्ष लग गये। फिर एक सप्ताह के लिये शत्रुघ्न अयोध्या चले गये।
Posted by Udit bhargava at 2/11/2010 08:10:00 am 0 comments
बबूल के गुणकारी नुस्खे
सूखी खाँसी : बबूल के गोंद का छोटा सा टुकड़ा मुँह में रखकर चूसने से खाँसी में आराम होता है।
ज्यादा पसीना : शरीर से बहुत पसीना आता हो तो बबूल की पत्तियाँ पीसकर शरीर पर मसलें। इसके बाद छोटी हरड़ का महीन पिसा हुआ चूर्ण भभूति की तरह पूरे शरीर पर लगाकर मसलें और फिर स्नान कर लें। थोड़े दिन यह प्रयोग करने पर पसीना आना बन्द हो जाता है।
रक्त प्रदर : बबूल का गोंद घी में तल कर फूले निकाल लें और पीस लें। इसके बराबर वजन में असली सोना गेरू पीसकर मिला कर तीन बार छान कर शीशी में भर लें। मासिक ऋतु स्राव के दिनों में सुबह शाम 1-1 बड़ा चम्मच चूर्ण ताजे पानी के साथ लेने से रक्त प्रदर यानी अधिक मात्रा में स्राव होना बन्द हो जाता है।
Posted by Udit bhargava at 2/11/2010 06:57:00 am 0 comments
नवग्रह रत्न एवं समयावधि
ग्रह विशेष की अनुकूलता प्राप्त करने के लिए अक्सर आपको रत्नों की अंगूठी पहनने की सलाह दी जाती है। ग्रह संबंधी रत्न धारण करने से व्यक्ति को लाभ होता है। लेकिन रत्न एक निश्चित समयावधि तक ही प्रभावी होते हैं। समयावधि समाप्त होने के बाद रत्न निष्क्रिय और प्रभावहीन हो जाते हैं। रत्नों को फिर से प्रभावशाली बनाने के लिए फिर से इनकी प्राण-प्रतिष्ठा कराएं या नया रत्न धारण करें, तभी यह लाभकारी सिद्ध होंगे। किस ग्रह के रत्न की समयावधि क्या है, आइए जानें-ग्रह की शुभता या अनुकूलता प्राप्त करने के लिए प्राय: हम रत्नों की अंगूठी धारण करते हैं। इन रत्नों का प्रभाव एक निश्चित समय तक ही रहता है। उसके बाद ये निष्क्रिय हो जाते हैं। नव ग्रह संबंधी रत्नों का प्रभावशाली समय कितने वर्ष, माह, दिन का है। आइए इस पर चर्चा करें-
Posted by Udit bhargava at 2/11/2010 06:32:00 am 0 comments
10 फ़रवरी 2010
रामायण – उत्तरकाण्ड - ब्राह्मण बालक की मृत्यु
एक दिन श्रीराम अपने दरबार में बैठे थे तभी एक बूढ़ा ब्राह्मण अपने मरे हुये पुत्र का शव लेकर राजद्वार पर आया और 'हा पुत्र!' 'हा पुत्र!' कहकर विलाप करते हुये कहने लगा, "मैंने पूर्वजन्म में कौन से पाप किये थे जिससे मुझे अपनी आँखों से अपने इकलौते पुत्र की मृत्यु देखनी पड़ी। केवल तेरह वर्ष दस महीने और बीस दिन की आयु में ही तू मुझे छोड़कर सिधार गया। मैंने इस जन्में कोई पाप या मिथ्या-भाषण भी नहीं किया। फिर तेरी अकाल मृत्यु क्यों हुई? इस राज्य में ऐसी दुर्घटना पहले कभी नहीं हुई। निःसन्देह यह श्रीराम के ही किसी दुष्कर्म का फल है। उनके राज्य में ऐसी दुर्घटना घटी है। यदि श्रीराम ने तुझे जीवित नहीं किया तो हम स्त्री-पुरुष यहीं राजद्वार पर भूखे-प्यासे रहकर अपने प्राण त्याग देंगे। श्रीराम! फिर तुम इस ब्रह्महत्या का पाप लेकर सुखी रहना। राजा के दोष से जब प्रजा का विधिवत पालन नहीं होता तभी प्रजा को ऐसी विपत्तियों का सामना करना पड़ता है। इससे स्पष्ट है कि राजा से ही कहीं कोई अपराध हुआ है।" इस प्रकार की बातें करता हुआ वह विलाप करने लगा।
जब श्रीरामचन्द्रजी इस विषय पर मनन कर रहे थे तभी वशिष्ठजी आठ ऋषि-मुनियों के साथ दरबार में पधारे। उनमें नारद जी भी थे। श्री राम ने जब यह समस्या उनके सम्मुख रखी तो नारद जी बोले, "राजन्! जिस कारण से इस बालक की अकाल मृत्यु हुई वह मैं आपको बताता हूँ। सतयुग में केवल ब्राह्मण ही तपस्या किया करते थे। फिर त्रेता के प्रारम्भ में क्षत्रियों को भी तपस्या का अधिकार मिल गया। अन्य वर्णों का तपस्या में रत होना अधर्म है। हे राजन्! निश्चय ही आपके राज्य में कोई शूद्र वर्ण का मनुष्य तपस्या कर रहा है, उसी से इस बालक की मृत्यु हुई है। इसलिये आप खोज कराइये कि आपके राज्य में कोई व्यक्ति कर्तव्यों की सीमा का उल्लंघन तो नहीं कर रहा। इस बीच ब्राह्मण के इस बालक को सुरक्षित रखने की व्यवस्था कराइये।"
नारदजी की बात सुनकर उन्होंने ऐसा ही किया। एक ओर सेवकों को इस बात का पता लगाने के लिये भेजा कि कोई अवांछित व्यक्ति ऐसा कार्य तो नहीं कर रहा जो उसे नहीं करना चाहिये। दूसरी ओर विप्र पुत्र के शरीर की सुरक्षा का प्रबन्ध कराया। वे स्वयं भी पुष्पक विमान में बैठकर ऐसे व्यक्ति की खोज में निकल पड़े। पुष्पक उन्हें दक्षिण दिशा में स्थित शैवाल पर्वत पर बने एक सरोवर पर ले गया जहाँ एक तपस्वी नीचे की ओर मुख करके उल्टा लटका हुआ भयंकर तपस्या कर रहा था। उसकी यह विकट तपस्या देख कर उन्होंने पूछा, "हे तपस्वी! तुम कौन हो? किस वर्ण के हो और यह भयंकर तपस्या क्यों कर रहे हो?"
यह सुनकर वह तपस्वी बोले, "महात्मन्! मैं शूद्र योनि से उत्पन्न हूँ और सशरीर स्वर्ग जाने के लिये यह उग्र तपस्या कर रहा हूँ। मेरा नाम शम्बूक है।" शम्बूक की बात सुकर रामचन्द्र ने म्यान से तलवार निकालकर उसका सिर काट डाला। जब इन्द्र आदि देवताओं ने महाँ आकर उनकी प्रशंसा की तो श्रीराम बोले, "यदि आप मेरे कार्य को उचित समझते हैं तो उस ब्राह्मण के मृतक पुत्र को जीवित कर दीजिये।" राम के अनुरोध को स्वीकार कर इन्द्र ने विप्र पुत्र को तत्काल जीवित कर दिया।
Posted by Udit bhargava at 2/10/2010 08:00:00 am 0 comments
विकास को पंख देगा शिक्षा का अधिकार
हमारे यहाँ अभी तक जो 100 बच्चे बेसिक शिक्षा में एडमिशन लेते हैं उनमें सिर्फ 12 बच्चे ही ग्रेजुएशन तक पहुँच पाते हैं जबकि योरप में 100 में से 50-70 बच्चे तक कॉलेज पहुँचते हैं। सरकार का आकलन है कि इस विधेयक के कानून बन जाने के बाद भारत में कॉलेज पहुँचने वाले छात्रों की संख्या 2020 तक 30 से 35 फीसदी की सीमा पार कर जाएगी।
स्कूलों को इस कानून पर खरा उतरने के लिए तीन सालों के अंदर तमाम ढाँचागत सुविधाएँ हासिल करनी होंगी। स्कूलों को कम से कम 50 प्रतिशत महिला शिक्षकों को भर्ती करना होगा। जहाँ तक सामुदायिक स्कूलों का सवाल है, तो वे अपने विशेष समुदाय को 50 फीसदी सीटें दे सकते हैं। उच्च आय वाले देशों में जहाँ फिलहाल पढ़ने की उम्र समूह वाले (5 से 24 साल) 92 फीसदी लोग शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं, वहीं भारत में यह आँकड़ा अभी तक सिर्फ 63 फीसदी है।
भारत के मुकाबले विकास दर में काफी पीछे चलने वाले ब्राजील और रूस में 89 फीसदी स्कूल जाने की उम्र के बच्चे पढ़ रहे हैं। चीन में भी लगभग 70 फीसदी स्कूल जाने की उम्र वाले बच्चे स्कूल जा रहे हैं।
संयुक्त राष्ट्र के अध्ययन अनुमानों के मुताबिक 100 फीसदी शिक्षा का लक्ष्य हासिल करने में भारत को 15 से 20 साल लग जाएँगे जबकि हर साल शिक्षा के बजट में पिछले साल के मुकाबले 15 से 20 फीसदी की बढ़ोतरी होती रही। गौरतलब है कि शिक्षा के लिए हम अपनी तमाम सामूहिक प्रतिबद्धता जताने के बावजूद अभी तक अपने कुल बजट का 5 फीसदी भी खर्च करने के लिए अपने आपको तैयार नहीं कर पाए हैं।
एक तरफ शिक्षा के प्रति हमारी शासकीय दरिद्रता जगजाहिर है, दूसरी तरफ शिक्षा के प्रति भारतीय जनमानस की लगन और बढ़-चढ़कर शिक्षित होने की प्रक्रिया में भारतीयों का उत्साह देखने लायक है। इसका अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि पिछले आठ वर्षों में बाकी क्षेत्रों के खर्चों में जहाँ बढोतरी 30 से 40 फीसदी तक हुई है वहीं शिक्षा के खर्च का आँकड़ा 200 फीसद को पार कर गया है।
एसोचेम (औद्योगिक संगठन) के एक अध्ययन के मुताबिक हाल के वर्षों में पढ़ाई के खर्च में सबसे ज्यादा तीव्रता से बढ़ातरी हुई है और यह बढ़ोतरी सिर्फ तथाकथित ब्लू चिप वर्ग में ही नहीं हुई बल्कि दूसरे क्षेत्रों में यह बढ़ोतरी देखने लायक है।
एसोचेम के अध्ययन के मुताबिक औसत मध्यमवर्गीय परिवार में जहाँ सन् 2000 में एक बच्चे की समूची पढ़ाई का खर्चा 25, 000 रु. वार्षिक था, वहीं 2008 में यह बढ़कर 65,000 से 80,000 रु. वार्षिक हो चुका है। यह लगभग 160 से 200 फीसदी की बढ़ोतरी दर्शाता है जबकि इस दौरान औसत माँ-बाप की आय में अधिकतम 30 से 35 फीसदी तक का ही इजाफा हुआ है। अब चूँकि शिक्षा को मूलभूत अधिकार के दायरे में लाया गया है इससे उम्मीद की जा सकती है कि जल्द ही शिक्षा भारत के लिए संपूर्ण क्रांति का जरिया साबित होगी।
हाल के वर्षों में अगर दुनिया में एक मजबूत, प्रगतिशील और लोकतांत्रिक देश के रूप में हमारी छवि पुख्ता हुई है तो इसमें कहीं न कहीं हमारे मजबूत शैक्षिक आधार का भी हाथ है। इसलिए उम्मीद की जानी चाहिए कि अब जबकि देश के हर नौनिहाल को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का हक हासिल हो गया है, तो भारत और तेजी से आगे बढ़ेगा और दुनिया का सिरमौर बनेगा।
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Posted by Udit bhargava at 2/10/2010 07:40:00 am 0 comments
मीठे सेब के अचूक प्रयोग
सेबफल के घरेलू नुस्खे
Posted by Udit bhargava at 2/10/2010 06:52:00 am 0 comments
वायग्रा की तरह असर करता है तरबूज
वॉशिंगटनः अब तक सेक्स ड्राइव बढ़ाने के लिए लोग न जाने कौन-कौन से नुस्खे आजमाते थे और तरह-तरह की दवाइयों का उपयोग करते थे। लेकिन हाल में हुई एक रिसर्च से पता चला है कि गर्मियों में शरीर को ठंडा रखने के लिए खाए जाने वाला तरबूज सेक्स ड्राइव बढ़ाने के मामले में किसी वायग्रा से कम नहीं।
अमेरिकी शोधकर्ताओं ने हाल ही में एक रिसर्च में कहा है कि तरबूज का असर वायग्रा की तरह होता है। तरबूज में वह सभी गुण मौजूद हैं जो सेक्स ड्राइव बढ़ाने के लिए शरीर पर असर डालते हैं।
भारतीय मूल के वैज्ञानिक के नेतृत्व में अमेरिकी वैज्ञानिकों की टीम ने यह रिसर्च किया। शोधकर्ताओं ने कहा कि अंग्रेजी में वाटरमेलन, हिंदी में तरबूज, बंगाली में तॉरमूज, मराठी में कलंदर, गुजराती में इंद्रक, और कन्नड़ में करबूजा कहे जाने वाले इस साधारण से फल में वह सभी तत्व मौजूद हैं जो शरीर के ब्लड वेसल्स पर वायग्रा जैसा असर डालते हैं और सेक्स ड्राइव को बढ़ाते हैं।
टेक्सस एएंडएम के फ्रूट और वेजिटेबल इम्प्रूवमंट सेंटर के डायरेक्ट डॉ। भीमनगौडा (भीमू) पाटिल ने कहा- जैसे जैसे हमने तरबूज के बारे में अध्ययन किया हमें पता चला कि यह कोई साधारण फल नहीं। इसमें शरीर के लिए प्रभावकारी प्राकृतिक तत्व मौजूद हैं। अब तक तरबूज के बारे में हम सिर्फ यही जानते थे कि यह तरबूज सेहत के लिए बहुत अच्छा होता है। इसमें 92 प्रतिशत पानी मौजूद होता है और 0 पर्सेंट कैलरी होती है। लेकिन इसके अलावा भी तरबूज से होने वाले फायदों की लिस्ट काफी लंबी है।
उन्होंने बताया कि तरबूज से होने वाला एक सबसे बड़ा फायदा यह है कि व्यक्ति की सेक्स ड्राइव को बढ़ाता है। बहुत से फलों और सब्जियों में पौषक तत्व मौजूद होते हैं। इन्हें मेडिकल भाषा में पाइथो-न्युट्रिअंट्स कहते हैं, जिनमें ऐसी बायोऐक्टिव क्षमता होती है जो शरीर के साथ आसानी से प्रतिक्रिया करने में सक्षम होते हैं और मानव शरीर पर स्वस्थवर्धक प्रभाव डालते हैं।
Labels: सेक्स रिलेशन
Posted by Udit bhargava at 2/10/2010 06:37:00 am 0 comments
तृष्णा का बंधन
न तं दल्हं बन्धनमाहु धीरा यदायसं दारुजं बब्बजं च।
सारत्तरत्ता मणिकुंडलेसु पुत्तेसु दारेसु च या अपेक्खा॥
बौद्ध धर्म कहता है लोहे का बंधन हो, लकड़ी का बंधन हो, रस्सी का बंधन हो, इसे बुद्धिमान लोग बंधन नहीं मानते। इनसे कड़ा बंधन तो है सोने का, चाँदी का, मणि का, कुंडल का, पुत्र का, स्त्री का।
सरितानि सिनेहितानि च सोममस्सानि भवन्ति जन्तुनो।
ते सीतसिता सुखेसिनो ते वे जातिजरूपगा नरा॥
तृष्णा की नदियाँ मनुष्य को बहुत प्यारी और मनोहर लगती हैं। जो इनमें नहाकर सुख खोजते हैं, उन्हें बार- बार जन्म, मरण और बुढ़ापे के चक्कर में पड़ना पड़ता है।
न वे कदरिया देवलोकं वजन्ति बालाह वे न प्पसंसन्तिदानम्।
धीरो च दानं अनुमोदमानो तेनेव सो होति सुखी परत्थ॥
बुद्ध कहते हैं कि कंजूस आदमी देवलोक में नहीं जाते। मूर्ख लोग दान की प्रशंसा नहीं करते। पंडित लोग दान का अनुमोदन करते हैं। दान से ही मनुष्य लोक-परलोक में सुखी होता है।
मा पमादमनुयुञ्जेथ मा कामरतिसन्थवं।
अप्पमत्तो हि झायन्तो पप्पोति विपुलं सुखं॥
भगवान बुद्ध कहते हैं कि प्रमाद में मत फँसो। भोग-विलास में मत फँसो। कामदेव के चक्कर में मत फँसो। प्रमाद से दूर रहकर ध्यान में लगने वाला व्यक्ति महासुख प्राप्त करता है।
अप्पमादो अमतपदं पमादो मच्चुनो पदं।
अप्पमत्ता न मीयन्ति ये पमत्ता यथा मता॥
प्रमाद न करने से, जागरूक रहने से अमृत का पद मिलता है, निर्वाण मिलता है। प्रमाद करने से आदमी बे-मौत मरता है। अप्रमादी नहीं मरते। प्रमादी तो जीते हुए भी मरे जैसे हैं।
Posted by Udit bhargava at 2/10/2010 06:15:00 am 0 comments
09 फ़रवरी 2010
रामायण – उत्तरकाण्ड - राजा श्वेत की कथा
इन्द्र से वर प्राप्त करके रघुनन्दन राम महर्षि अगस्त्य के आश्रम में पहुँचे। वे शम्बूक वध की कथा सुनकर बहुत प्रसन्न हुये और उन्होंने विश्वकर्मा द्वारा दिया हुआ एक दिव्य आभूषण श्रीराम को अर्पित किया। वह आभूषण सूर्य के समान दीप्तिमान, दिव्य, विचित्र तथा अद्भुत था। उसे देखकर उन्होंने महर्षि अगस्त्य से पूछा, "मुनिवर! विश्वकर्मा का यह अद्भुत आभूषण आपके पास कहाँ से आया? जब यह आभूषण इतना विचित्र है तो इसकी कथा भी विचित्र ही होगी। यह जानने का मेरे मन में कौतूहल हो रहा है।"
श्रीराम की जिज्ञासा और कौतूहल को शान्त करने के लिये महर्षि ने कहा, "प्राचीन काल में एक बहत विस्तृत वन था जो चारों ओर सौ योजन तक फैला हुआ था, परन्तु उस वन में कोई प्राणी-पशु-पक्षी तक भी नहीं रहता था। उसमें एक मनोहर सरोवर भी था। उस स्थान को पूर्णतया एकान्त पाकर मैं वहाँ तपस्या करने के लिये चला गया था। सरोवर के चारों ओर चक्कर लगाने पर मुझे एक पुराना विचित्र आश्रम दिखाई दिया। उसमें एक भी तपस्वी नहीं था। मैंने रात्रि वहीं विश्राम किया। जब मैं प्रातःकाल स्नानादि के लिये सरोवर की ओर जाने लगा तो मुझे सरोवर के तट पर हृष्ट-पुष्ट निर्मल शव दिखाई दिया। मैं आश्चर्य से वहा बैठकर उस शव के विषय में विचार करने लगा। थोड़ी देर पश्चात् वहाँ एक दिव्य विमान उतरा जिस पर एक सुन्दर देवता विराजमान था। उसके चारों ओर सुन्दर वस्त्राभूषणों से अलंकृत अनेक अप्सराएँ बैठी थीं। उनमें से कुछ उन पर चँवर डुला रही थीं। फिर वह देवता सहसा विमान से उतरकर उस शव के पास आया और उसने मेरे देखते ही देखते उस शव को खाकर फिर सरोवर में जाकर हाथ-मुँह धोने लगा। जब वह पुनः विमान पर चढ़ने लगा तो मैंने उसे रोककर पूछा कि हे तेजस्वी पुरुष! आका यह देवोमय सौम्य रूप और यह घृणित आहार? मैं इसका रहस्य जानना चाहता हूँ। मेरे विचार से आपको यह घृणित कार्य नहीं करना चाहिये था।
"मेरी बात सुकर वह दिव्य पुरुष बोला कि मेरे महायशस्वी पिता विदर्भ देश के पराक्रमी राजा थे। उनका नाम सुदेव था। उनकी दो पत्नियाँ थीं जनसे दो पुत्र उत्पन्न हुये। एक का नाम था श्वेत और दूसरे का सुरथ। मैं श्वेत हूँ। पिता की मृत्यु के बाद मैं राजा बना और धर्मानुकूल राज्य करने लगा। एक दिन मुझे अपनी मृत्यु की तिथि का पता चल गया और मैं सुरथ को राज्य देकर इसी वन में तपस्या करने के लिये चला आया। दीर्घकाल तक तपस्या करके मैं ब्रह्मलोक को प्राप्त हुआ, परन्तु अपनी भूख-प्यास पर विजय प्राप्त न कर सका। जब मैंने ब्रह्माजी से कहा तो वे बोले कि तुम मृत्युलोक में जाकर अपने ही शरीर का नित्य भोजन किया करो। यही तुम्हारा उपचार है क्योंकि तुमने किसी को कभी कोई दान नहीं दिया, केवल अपने ही शरीर का पोषण किया है। ब्रह्मलोक भी तुम्हें तुम्हारी तपस्या के कारण ही प्राप्त हुआ है। जब कभी महर्षि अगस्त्यत उस वन में पधारेंगे तभी तुम्हें भूख-प्यास से छुटकारा मिल जायेगा। अब आप मुझे मिल गये हैं, अतएव आप मेरा उद्धार करें और मेरा उद्धार करने के प्रतिदान स्वरूप यह दिव्य आभूषण ग्रहण करें। यह आभूषण दिव्य वस्त्र, स्वर्ण, धन आदि देने वाला है। इसके साथ मैं अपनी सम्पूर्ण कामनाएँ आपको समर्पित कर रहा हूँ। मेरे आभूषण लेते ही राजर्षि श्वेत पूर्णतः तृप्त होकर स्वर्ग को प्राप्त हुये और वह शव भी लुप्त हो गया।"
Posted by Udit bhargava at 2/09/2010 08:30:00 pm 0 comments
तीखा होता प्यार का इजहार
चॉकलेट डे पर विशेष
रूठी गर्लफ़्रेंड को मनाना हो तो चॉकलेट, प्यार का इजहार करना हो तो फूलों के साथ चॉकलेट गिफ्ट, रोते बच्चे को हसाना हो तो चॉकलेट... देखा कितने मर्जों की दवा है चॉकलेट। लेकिन सोचिए अगर हमें तीखी चॉकलेट खिलाई जाती तो? सोचए अगर कोई पूछता कि क्या आप चॉकलेट पीना पसंद करेंगे? तो क्या होता...प्यार का इजहार शायद फिर कुछ तीखा हो गया होता। बहुतों को शायद चॉकलेट पसंद ही नहीं होती। चॉकलेट शायद इसीलिए इतनी हिट है क्योंकि वो स्वीट है।
चॉकलेट का इतिहास
'चॉकलेट' इस शब्द के बारे में बहुत से तथ्य हैं। कुछ के अनुसार यह शब्द मूलत: स्पैनिश भाषा का शब्द है। ज्यादातर तथ्य बताते हैं कि चॉकलेट शब्द माया और एजटेक सभ्यताओं की पैदाइश है जो मध्य अमेरिका से संबंध रखती हैं। एजटेक की भाषा नेहुटल में चॉकलेट शब्द का अर्थ होता है खट्टा या कड़वा।
चॉंकलेट की प्रमुख सामग्री केको या कोको के पेड़ की खोज 2000 वर्ष पूर्व अमेरिका के वर्षा वनों में की गई थी। इस पेड़ की फलियों में जो बीज होते हैं उनसे चॉकलेट बनाई जाते है। सबसे पहले चॉकलेट बनाने वाले लॉग मैक्सिको और मध्य अमेरिका के थे।
1528 में स्पेन ने जब मैक्सिको पर कब्जा किया तो वहाँ का राजा भारी मात्रा में कोको के बीजों और चॉकलेट बनाने के यंत्रों को अपने साथ स्पेन ले गया। जल्दी ही स्पेन में चॉकलेट रईसों का फैशनेबल ड्रिंक बन गया।
इटली के एक यात्री फ्रेंसिस्को कारलेटी ने सबसे पहले चॉकलेट पर स्पेन के एकाधिकार को खत्म किया। उसने मध्य अमेरिका के इंडियंस को चॉकलेट बनाते देखा और अपने देश इटली में भी चॉकलेट का प्रचार प्रसार किया। 1606 तक इटली में भी चॉकलेट प्रसिद्ध हो गई।
फ्रांस ने 1615 में ड्रिंकिंग चॉकलेट का स्वाद चखा। फ्रांस के लोगों को यह स्वास्थ्य की दृष्टि बहुत लाभदायक पदार्थ लगा। इंग्लैंड में चॉकलेट की आमद 1650 में हुई।
अभी तक लोग चॉकलेट को पीते थे। एक अंग्रेज डॉक्टर सर हैंस स्लोने ने दक्षिण अमेरिका का दौरा किया और खाने वाली चॉकलेट की रेसिपी तैयार की। सोचिए एक डॉक्टर और चॉकलेट की रेसिपी। कैडबरी मिल्क चॉकलेट की रेसिपी इन्हीं डॉक्टर ने बनाई।
आपको जानकार आश्चर्य होगा की पहले चॉकलेट तीखी हुआ करती थी और पी जाती थी। अमरिका के लोग कोको बीजों को पीसकर उसमें विभिन्न प्रकार के मसाले जैसे चिली वॉटर, वनीला, आदि डालकर एक स्पाइसी और झागदार तीखा पेय पदार्थ बनाते थे।
चॉकलेट को मीठा बनाने का श्रेय यूरोप को जाता है जिसने चॉकलेट से मिर्च हटाकर दूध और शक्कर डाली। चॉकलेट को पीने की चीज से खाने की चीज भी यूरोप ने ही बनाया।
Labels: प्रेम गुरु
Posted by Udit bhargava at 2/09/2010 03:10:00 pm 0 comments
यूथ की नजर में पर्सनल मसला है समलैंगिकता
समलैंगिकता को लेकर भले ही धार्मिक नेता हो हल्ला मचा रहे हैं, लेकिन नौजवान पीढ़ी इसे किसी का भी व्यक्तिगत मामला और आईपीसी के सेक्शन 377 को व्यक्तिगत स्वतंत्रता का हनन मानती है। वहीं सायकायट्रिस्ट का कहना है कि इसके लिए काफी हद तक जेनेटिक कारण और फैमिली एनवायरनमेंट जिम्मेदार होता है। वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन के मुताबिक समलैंगिकता दिमागी बीमारी नहीं है, यह एक व्यावहारिक दिक्कत है।
फॉरेन ऐंबंसी में काम करने वाली अर्चना का कहना है कि सेक्शन 377 खत्म होना चाहिए क्योंकि लोगों को उनकी सेक्सुअल प्रिफरेंस चुनने का हक देना चाहिए। लेकिन व्यक्तिगत तौर पर मेरा मानना है कि शादी या सेक्स मेल-फीमेल के बीच ही होना चाहिए। ऐड एजंसी में क्रिएटिव राइटर बिमल कहते हैं कि इस दुनिया में बिना किसी को नुकसान पहुंचाए सभी को वह करने का हक है, जो वह चाहते हैं। सेक्सुअल प्रिफरेंस व्यक्तिगत मामला है। यहीं काम कर रहे आदित्य का मानना है कि इसके साथ ही समाज के नजरिए को भी बदलने की जरूरत है। अगर आप इसके खिलाफ हैं तो किसी को भी समझा सकते हैं और उसे अपनी बात पर सहमत कर सकते हैं लेकिन इसे अपराध नहीं माना जाना चाहिए।
मीडिया हाउस में काम करने वाली कामिनी का कहना है कि अगर हेल्थ की चिंता है तो अवेयरनेस बढ़ानी चाहिए, बल्कि होमोसेक्सुअल लोगों को सरकार को भरोसे में लेना चाहिए, ताकि वे खुलकर सामने आएं और अपने संदेह दुनिया के सामने रखें। सॉफ्टवेयर इंजीनियर साहिल कहते हैं कि फिल्मों सहित खबरों तक में जिस तरह से समलैंगिकता की बातें हो रही हैं, उससे सामान्य दोस्ती को भी शक की निगाह से देखा जाने लगा है। दोस्त अपने बीच की नजदीकी को पब्लिकली जाहिर करने से पहले सोचने लगे हैं।
वहीं लोगों की इस दुविधा पर सीनियर सायकायट्रिस्ट डॉ। संदीप वोहरा कहते हैं कि जरूरी नहीं कि हर दोस्ती समलैंगिकता हो। बार-बार इस तरह से शक करने पर बच्चों के मन पर गलत असर भी पड़ सकता है। पैरंट्स को शक करने के बजाय बच्चों से प्यार से साफ-साफ पूछ लेना चाहिए और अगर ऐसी कोई बात हो तो उन्हें प्यार से समझाएं और सायकायट्रिस्ट की मदद लें।
आखिर कोई क्यों समलैंगिक होता है?
आरएमएल हॉस्पिटल में सायकायट्री डिपार्टमेंट की हेड डॉ। स्मिता देशपांडे बताती हैं कि यह अभी तक पता नहीं लग पाया है, लेकिन केस स्टडी से पता चलता है कि इसके लिए काफी हद तक जेनेटिक कारण और फैमिली एनवायरनमेंट जिम्मेदार होता है। वह कहती हैं कि जिसकी फैमिली में पहले कोई समलैंगिक रह चुका हो, उसमें इसकी संभावना ज्यादा रहती है। डॉ. संदीप वोहरा कहते हैं कि अगर किसी बच्चे के मन में अपोजिट सेक्स वालों की नेगेटिव इमेज बन जाए तो वह भी सेम सेक्स की तरफ आकर्षित हो सकता है।
(पहचान छुपाने के लिए नाम बदले गए हैं।)
Labels: सेक्स रिलेशन
Posted by Udit bhargava at 2/09/2010 07:20:00 am 0 comments
बैठे गले का इलाज़
कच्चा सुंहागा आधा ग्राम (मटर के बराबर सुहागे को टुकड़ा) मुँह में रखें और रस चुसते रहें। उसके गल जाने के बाद स्वरभंग तुरंत आराम हो जाता है। दो तीन घण्टों मे ही गला बिलकुल साफ हो जाता है। उपदेशकों और गायकों की बैठी हुई आवाज खोलने के लिये अत्युत्तम है।
या सोते समय एक ग्राम मुलहठी के चूर्ण को मुख में रखकर कुछ देर चबाते रहे। फिर वैसे ही मुँह में रखकर सो रहें। प्रातः काल तक गला अवश्य साफ हो जायेगा। मुलठी चुर्ण को पान के पत्ते में रखकर लिया जाय तो और भी आसान और उत्तम रहेगा। इससे प्रातः गला खुलने के अतिरिक्त गले का दर्द और सूजन भी दूर होती है।
या रात को सोते समय सात काली मिर्च और उतने ही बताशे चबाकर सो जायें। सर्दी जुकाम, स्वर भंग ठीक हो जाएगा। बताशे न मिलें तो काली मिर्च व मिश्री मुँह में रखकर धीरे-धीरे चुसते रहने से बैठा खुल जाता है।
या भोजन के पश्चात दस काली मिर्च का चुर्ण घी के साथ चाटें अथवा दस बताशे की चासनी में दस काली मिर्च का चुर्ण मिलाकर चाटें।
Posted by Udit bhargava at 2/09/2010 05:55:00 am 0 comments
08 फ़रवरी 2010
सेक्स: महिलाओं के लिए कुछ टिप्स
क्या आप संभोग के अंतिम पड़ाव तक पहुंचने में असफल रहती हैं? संभोग के चरम आनंद तक पहुंचने में आपको कठिनाई होती है? या फिर रति निष्पत्ति से पहले ही आप ठंडी पड़ जाती हैं? यदि ऐसा है, तो घबराने की बात नहीं है। यह बात सच है कि पुरुष बिना किसी कठिनाई के संभोग के चरम आनंद तक पहुंच जाते हैं, लेकिन महिलाओं को वहां तक पहुंचने में समय लगता है।
पुरुष पार्टनर की भूमिका अहम
चूंकि गर्भधारण के लिए महिलाओं में रति निष्पत्ति होना जरूरी नहीं है, इसलिए डॉक्टर भी इस बात को ज्यादा तरजीह नहीं देते। हाल ही में अमेरिका में इसी बात पर एक शोध किया गया। शोध में पता चला कि महिलाएं चाहें तो हर बार चरम आनंद प्राप्त कर सकती हैं। बस कुछ बातों को ध्यान में रखने की जरूरत है। इसमें सबसे बड़ी भूमिका पुरुष पार्टनर की होती है। यदि वो सेक्स के बारे में ज्ञान रखता है और आपकी परवाह करता है तो वो आपको चरम आनंद तक पहुंचाने में जरूर मदद कर सकता है।
शोध में पाया गया है कि चरम आनंद तक पहुंचने में सबसे ज्यादा परेशानी 20 से 30 के बीच की उम्र में होती है। तकाम सेक्सोलॉजिस्ट कहते हैं कि यदि आप संभोग के दौरान चरम आनंद तक नहीं पहुंच पाती हैं, तो मैथुन करने के प्रयास करें। गुदा मैथुन चरम आनंद तक पहुंचने की क्रिया को सीखने में मदद करता है। एक शोध के मुताबिक 47 प्रतिशत स्त्रियां पहली बार मैथुन के दौरान ही चरम आनंद पर पहुंचती हैं।
चरम आनंद के लिए कुछ टिप्स
महिलाओं के साथ सबसे बड़ी समस्या यह है कि यदि संभोग के बीच में वो रुक जाती हैं, तो वापस वही भावनाएं लाने में काफी समय लगता है। जबकि पुरुष जहां पर रुकते हैं वहीं से शुरू करते हैं। इसलिए संभोग से पहले अपने आस-पास से ऐसी वस्तुओं जैसे मोबाइल फोन, अलार्म घड़ी, टेलीफोन, आदि को हटा दें जो आपको डिस्टर्ब कर सकती है। कमरे की रोशनी कम कर दें।
इसके अलावा यदि आपको लगता है कि कोई बीच में आपके बेडरूम का दरवाजा खटखटा सकता है तो उसके लिए पहले से तैयार रहें। ऐसा होने पर एकदम से प्रतिक्रिया नहीं दें। सेक्स के दौरान सबसे महत्वपूर्ण होती हैं संभोग की क्रियाएं। यदि आपको चरम आनंद पहुंचने में दिक्कत आती है तो क्रियाएं बदल-बदल कर संभोग करें।
अलग-अलग तरीके से सेक्स करने पर चरम सुख तक पहुंचने में आसानी होती है। सबसे अहम बात यह है कि आप बीच-बीच में अपने पार्टनर को इस बात का अहसास दिलाती रहें कि वे रति निष्पत्ति के लिए थोड़ा रुक जाएं, जाकि आपको समय मिल सके। इसके अलावा संभोग से पहले पार्टनर को फोर प्ले के लिए उकसाने से भी लाभ मिलता है।
Labels: सेक्स रिलेशन
Posted by Udit bhargava at 2/08/2010 09:43:00 pm 0 comments
Hindi Book - ELove CH-25 तालीयोंकी गुंज
अंजली और शरवरी कॉफी हाऊसमें एकदुसरेके सामने बैठे थे और दोनो अपने अपने सोच मे डूबी धीरे धीरे कॉफीकी चुस्कीयां ले रही थी. उनमें एक अजिबसा सन्नाटा फैला हुवा था. आखिर अंजलीने उस सन्नाटेको भंग किया -
'' बराबर 2 दिन हो गए है ... उसकी अगली मेल अभीतक कैसे नही आई ? ''
'' शायद उसे शक हुवा होगा '' शरवरीने कहा।
'' ऐसाही लगता है ... '' अंजली आह भरती हुई बोली।
'' मुझे लग रहा था की इस बार हम उसे पकडनेमें जरुर कामयाब होंगे ... लेकिन अब मुझे चिंता होने लगी है की हम उसे कभी पकडनेमें कामयाबभी होंगे की नही '' अंजलीने कहा।
'' और हा उसे शक होना भी उतनाही खतरनाक है... उसने सारे फोटो अगर इंटरनेटपर डाले तो सारा ही खेल बिगड जाएगा ... और बदनामीभी होगी वह अलग '' शरवरीने कहा।
अंजलीने अपने सोचमें डूबे हूए हालतमें सिर्फ सर हिलाया।
'' एकही झटकेमें उसे पकडना जरुरी है ... नही तो अपना प्लान पुरा फेल हो जाएगा '' अंजलीने कहा ....
.... हॉलमें चल रहे तालीयोंकी गुंजसे अंजली अपने सोचके विश्वसे बाहर आ गई। उसने चारो तरफ अपनी नजरे दौडाई. भाटीयाजींका स्पीच खत्म हो चुका था और वे उसके बगलकेही सिटपर वापस आ रहे थे. वह उनके तरफ देखकर मुस्कुराई, मानो उनके स्पिचकी सराहना कर रही हो. उधर ऍन्कर फिरसे माईकके पास गया था और उसने ऐलान किया - '' अब मै पारितोषीक वितरणके लिए जी. एच. इन्फॉरमेटीक्सकी मॅनेजींग डायरेक्टर ... दि आय. टी वुमन ऑफ दिस इयर... मिस. अंजली अंजुळकर ... उन्हे आमंत्रित करता हूं ...''
अंजली उठ खडी होगई और माइकके पास चली गई। फिरसे हॉल तालीयोंसे गुंज उठा।
'' तो अब हम पारितोषीक वितरणके लिए आगे बढते है ... '' एन्करने माइकपर जाहिर किया।
''... जैसे आप लोग जानते हो ... इस प्रतियोगिता को जब जाहिर किया गया तब हमे इसमें भाग लेनेके लिए इच्छूक लोगोंका बहुत प्रतिसाद मिला... देशभरसे लगभग तिन हजार लोगोंके अप्लीकेशन फॉर्मस हमें मिले .... पहले छाननीमें हमनें उसमेंसे सिर्फ 50 अप्लीकेशन्स चूने ... और अब फायनलमें जो चुने है वे है सिर्फ तिन ... लेकिन उन तिन लोगोंके नाम जाननेके पहले हमें थाडा रुकना पडेगा। क्योंकी पहले हम कुछ लोगोंको कुछ प्रोत्साहनपर प्राईजेस देने वाले है ....''
प्रोत्साहनपर प्राइजेस देनेमें जादा समय न बिताते हूए ऍन्कर एक एकको स्टेजपर बुला रहा था और अंजली उनको प्राईज देकर उनको शाबासकी देकर उनकी वहांसे रवानगी कर रही थी। प्रोत्साहनपर प्राईजेस खत्म हूए वैसे लोगोंमे फिरसें उत्साह बढता हूवा दिखने लगा।
'' अब जिन तिनोंके नाम जाननेके लिए हम उत्सुक है वह वक्त आ चुका है ... सबसे पहले मै तिसरा प्राईज जिसे मिला उस प्रतियोगीका नाम जाहिर करने वाला हूं ... '' एन्करने सब लोगोंकी जिज्ञासा और बढाते हूए एक बडा पॉज लिया , '' तिसरा प्राईज है 1 लाख रुपये कॅश और मोमेंटो... तो थर्ड प्राईज... मि। अमोल राठोड फ्रॉम जयपूर... प्लीज कम ऑन द स्टेज... ''
हॉलमें तालियां गुंजने लगी। एक पतलासा सावला 20 -22 जिसकी उम्र होगी ऐसा एक लडका सामनेके दसमेंसे एक कतारमेंसे खडा होकर स्टेजकी तरफ जाने लगा। उस प्रतियोगीकी तरफ देखकर किसे लगेगा नही की उसे तिसरा प्राईज मिल सकता है ... लेकिन उसके चलनेमें एक जबरदस्त आत्मविश्वास झलक रहा था। अमोल राठोड स्टेजपर आया। जिस आत्मविश्वाससे वह चला था उसी आत्मविश्वासके साथ उसने पुरस्कारका स्विकार किया और अंजलीसे हस्तांदोलन किया। हॉलमें मेडीयाकी भी काफी उपस्थिती थी। पुरस्कार स्विकार करते वक्त बिजली चमकें ऐसे फोटोंकें फ्लॅश दोनोंके उपर चमक रहे थे।
फिरसे हॉलमें मानो जोरसे बारिश हो ऐसे लोगोंने तालियां बजाई। अमोल राठोड स्टेजसे उतरकर फिरसे अपने कुर्सीकी तरफ जाने लगा वैसे ऍन्कर दुसरा प्राईज जिसे मिला उसके नामका ऐलान करनेके लिए सामने आया,
'' दुसरा पारितोषीक है 1।5 लाख रुपये कॅश और मोमेंटो... तो थर्ड प्राईज गोज टू... मिस. अनघा देशपांडे फ्रॉम पुणे ... प्लीज कम ऑन द स्टेज... ''
हॉलमें फिरसे तालियां बजने लगी। एक गोरी उंची पतली नाजूकसी लगभग 20-21 सालकी युवती स्टेजपर आने लगी। अंजली शायद वह खुदभी एक स्त्री होनेसे उस लडकीकी तरफ आंखे भरकर देख रही थी। अनघा स्टेजपर अंजलीके पास आ गई। पुरस्कार देकर अंजलीने उसे गले लगा लिया। फिरसे कॅमेरेके फ्लॅश जैसे बिजली चमके ऐसे चमकने लगे।
पहले CH-1 पर जाएँ।
Posted by Udit bhargava at 2/08/2010 06:31:00 pm 0 comments
Hindi Book - Elove CH-24 कॉम्पीटीशन
'इथीकल हॅकींग कॉम्पीटीशन - ऑर्गनायझर - नेट सेक्यूरा' ऐसा एक बॅनर बडे अक्षरोंमें स्टेजपर लगाया गया था। आज कॉम्पीटीशन का आखरी दिन था और जितनेवालोंके नाम घोषीत किए जाने थे। पारीतोषीक वितरणके लिए प्रमुख अतिथीके तौर पर अंजलीको बुलाया गया था। स्टेजपर उस बॅनरके बगलमें अंजली प्रमुख अतिथी के लिए आरक्षित कुर्सीपर बैठी हुई थी। और उसके बगलमें एक अधेड उम्र आदमी, भाटीयाजी बैठे थे। वे 'नेट सेक्यूरा' के हेड थे। तभी स्टेजके पिछेसे ऍन्कर सामने माईकके पास जाकर बोलने लगा,
'' गुड मॉर्निंग लेडीज ऍंड जन्टलमन... जैसे की आप सब लोग जानते हो की हमारी कंपनी '' नेट सेक्यूराका यह सिल्वर जूबिली साल है और उसी सिलसिले में हमने 'इथीकल हॅकींग' इस प्रतियोगीता का आयोजन किया था ... आज हम उस प्रतियोगीताके आखरी दौरसे यानीकी पारितोषीक वितरणके दौरसे गुजरने वाले है ... इस पारितोषीक वितरण के लिए हमने एक खास मेहमान को यहां आमंत्रित किया है ... जिन्हे हालहीमें 'आय टी वूमन ऑफ द ईयर' सम्मान देकर गौरवान्वीत किया गया है ... ''
हॉलमें बैठे सब लोगोंकी नजरे स्टेजपर बैठे अंजलीपर टीक गई थी। अंजलीनेभी एक मंद स्मित बिखेरते हूए हॉलमें बैठे लोगोंपर एक नजर दौडाई।
'' और उन खास मेहमानका नाम है ... मिस अंजली अंजुळकर .... उनके स्वागतके लिए मै स्टेजपर हमारे एक्सीक्यूटीव मॅनेजर श्रीमती नगमा शेख इन्हे आमंत्रित करता हूं ...''
श्रीमती नगमा शेखने स्टेजपर आकर फुलोंका गुलदस्ता देकर अंजलीका स्वागत किया। अंजलीनेभी खडे होकर उस गुलदस्तेका बडे विनयके साथ अभिवादन करते हूए स्विकार किया. हॉलमें तालीयां गुंज उठी. मानो एक पलमें वहां उपस्थित लोगोंके शरीमें उत्साह प्रवेश कर गया हो. तालीयोंकी आवाज थमतेही ऍन्कर आगे बोलने लगा -
'' अब मै स्टेजपर उपस्थित हमारे मॅनेजींग डायरेक्टर श्री। भाटीयाजीके स्वागतके लिए हमारे मार्केटींग मॅनेजर श्री. सॅम्यूअल रेक्सजीको यहां आमंत्रित करता हूं ...''
श्री। सॅम्यूअल रेक्सने स्टेजपर जाकर भाटीयाजीका एक गुलदस्ता देकर स्वागत किया। हॉलमें फिरसे तालियां गुंज उठी।
'' अब भाटीयाजींको मै बिनती करता हूं की वे यहां आकर दो शब्द बोलें '' ऍन्करने माईकपर कहां और वह भाटीयाजींकी माईकके पास आनेकी राह देखते हूए खडा रहा।
भाटीयाजी खुर्चीसे उठकर खडे हो गए। उन्होने एक बार अंजलीकी तरफ देखा। दोनों एक दुसरेकी तरफ देखकर मुस्कुराए। और अपना मोटा शरीर संभालते हूए धीरे धीरे चलते हूए भाटीयाजी माईकके पास आकर पहूंच गए।
'' आज इथीकल हॅकींग इस स्पर्धाके लिए आमंत्रित की गई ... जी।एच इन्फॉर्मॆटीक्स इस कंपनीकी मॅनेजींग डायरेक्टर और आय टी वूमन ऑफ दिस इयर मिस अंजली अंजुळकर, यहां उपस्थित मेरे कंपनीके सिनीयर आणि जुनियर स्टाफ मेंबर्स, इस स्पर्धामें शामिल हूए देशके कोने कोनेसे आए उत्साही युवक आणि युवतीयां, और इस स्पर्धाका नतिजा जाननेके लिए उत्सुक लेडीज ऍन्ड जन्टलमन... सच कहूं तो ... यह एक स्पर्धा है इसलिए नही तो हर एक के जिंदगी की हर एक बात एक स्पर्धाही होती है ... लेकिन स्पर्धा हमेशा खिलाडू वृत्तीसे खेली जानी चाहिए ॥ अब देखो ना ... यह इतना बडा अपने कंपनीके स्टाफका समुदाय देखकर मुझे एक पुरानी बात याद आ गई ... की 1984 में हमने यह कंपनी शुरु की थी.... तब इस कंपनीके स्टाफकी गिनती सिर्फ 3 थी ... मै और, और दो सॉफ्टवेअर इंजिनिअर्स... और तबसे हमने हर दिन लढते झगडते .... हर दिनको एक स्पर्धा एक कॉंपीटीशन समझते हूए हम आज इस स्थितीमें पहूंच गए है..... मुझे यह बताते हूए खुशी और अभिमान होता है की आज अपने कंपनीने इस देशमेंही नही तो विदेशमेंभी अपना झंडा फहराया है और आज अपने स्टाफकी गिनती... 30000 के उपर पहूंच चूकी है ...''
हॉलमें फिरसे एकबार लोगोंने तालियां बजाते हूए हॉल सर पर उठा लिया। तालीयां थमनेके बाद भाटीयाजी फिरसे आगे बोलने लगे. लेकिन स्टेजपर बैठी अंजली उनका भाषण सुनते हूए कब अपने खयालोंमे डूब गई उसे पताही नही चला ...
पहेल CH - 1 पर जाएँ।
Posted by Udit bhargava at 2/08/2010 06:24:00 pm 0 comments
Hindi Book - ELove CH-23 अवार्ड
उस दिलको दर्द देनेवाले, नही दिल को पुरी तरह तबाह कर देनेवाले घटनाको घटकर अब लगभग 10-15 दिन हो गए होंगे। उस घटना को जितना हो सके उतना भूलनेकी कोशीश करते हूए अंजली अब पहले जैसे अपने काममें व्यस्त हो गई थी। या यू कहिए उन घटनासे होनेवाले दर्दसे बचनेके लिए उसने खुदको पुरी तरह अपने काममें व्यस्त कर लिया था। उसी बिच अंजलीको आयटी क्षेत्रमें भूषणाह समझे जाने वाला 'आय टी वुमन ऑफ द ईअर' अवार्ड मिला। उस अवार्डकी वजहसे उसके यहां प्रेसवालोंका तांता लगने लगा था। उस भिडकी अब अंजलीकोभी जरुरत महसूस होने लगी थी। क्योंकी उस तरहसे वह अपने अकेलेपनसे और कटू यादोंसे बच सकती थी। पिछले चारपांच दिनसे लगभग रोजही कभी न्यूजपेपरमें तो कभी टिव्हीपर उसके इंटरव्हू आ रहे थे।
अंजली ऑफीसमें बैठी हूई थी। शरवरी उसके बगलमेंही बैठकर उसके कॉम्प्यूटरपर काम कर रही थी। उस बुरे अनुभवके बाद अंजलीका चॅटींग और दोस्तोंको मेल भेजना एकदमही कम हुवा था। खाली समयमें वह यूंही बैठकर शुन्यमें ताकते हुए सोचते बैठती थी। उसके दिमागमें मानो अलग अलग तरहकी विचारोंका सैलाब उठता था। लेकिन वह तुरंत उन विचारोंको अपने दिमागसे झटकती थी। अबभी उसके मनमें विचारोंका सैलाब उमड पडा था। उसने तुरंत अपने दिमागमें चल रहे विचार झटकर अपने मनको दुसरे किसी चिजमे व्यस्त करनेके लिए टेबलका ड्रावर खोला। ड्रॉवरमें उसे उसने संभालकर रखे हूए न्यूजपेपरके कुछ कटींग्ज दिखाई दिए। ' आय टी वुमन ऑफ द इअर - अंजली अंजुळकर' न्यूज पेपरके एक कटींगपर हेडलाईन थी। उसने वह कटींग बाहर निकालकर टेबलपर फैलाया और वह फिरसे वह समाचार पढने लगी।
यह समाचार पढनेके लिए अब इस वक्त मेरे पिताजी होने चाहिए थे....
उसके जहनमें एक विचार आकर गया।
उन्हे कितना गर्व महसूस हुवा होता... अपनी बेटीका ...
लेकिन भाग्यके आगे किसका कुछ चला है? ...
अब देखोना अभी अभी आया हुवा विवेकका ताजा अनुभव ...
वह सोच रही थी तभी कॉम्प्यूटरका बझर बजा।
काफी दिनोंसे चॅटींग और मेलींग कम करनेके बाद ज्यादातर उसे किसीका मेसेज नही आता था ....
फिर यह आज किसका मेसेज होगा ...
कोई हितचिंतक?...
या कोई हितशत्रू...
आजकल कैसे हर बातमें उसे दोनो पहेलू दिखते थे - एक अच्छा और एक बुरा। ठेस पहूंचनेपर आदमी कैसे संभल जाता है और हर कदम सोच समझकर बढाता है।
अंजलीने पलटकर मॉनीटरकी तरफ देखा।
'' विवेकका मेसेज है ...'' कॉम्प्यूटरपर बैठी शरवरी अंजलीकी तरफ देखकर सहमकर बोली। शरवरीके चेहरेपर डर और आश्चर्य साफ नजर आ रहा था। वह भावनाए अब अंजलीके चेहरेपरभी दिख रही थी। अंजली तुरंत उठकर शरवरीके पास गई। शरवरी अंजलीको कॉम्प्यूटरके सामने बैठनेके लिए जगह देकर वहांसे उठकर बगलमें खडी हो गई। अंजलीने कॉम्प्यूटरपर बैठनेके पहले शरवरीको कुछ इशारा किया वैसे शरवरी तुरंत दरवाजेके पास जाकर जल्दी जल्दी कॅबिनसे बाहर निकल गई।
'' मिस। अंजली ... हाय ... कैसी हो ?'' विवेकका उधरसे आया मेसेज अंजलीने पढा।
एक पल उसने कुछ सोचा और वह भी चॅटींगका मेसेज टाईप करने लगी -
'' ठीक है ... '' उसने मेसेज टाईप किया और सेंड बटनपर क्लीक करते हूए उसे भेज दिया।
'' तुम्हे फिरसे तकलिफ देते हूए मुझे बुरा लग रहा है ... लेकिन क्या करे? ... पैसा यह साली चिजही वैसी है ... कितनेभी संभलकर इस्तमाल करो तो भी खतम हो जाती है ...'' उधरसे विवेकका मेसेज आ गया।
अंजलीको शक थाही की कभी ना कभी वह और पैसे मांगेगा ...
'' मुझे इस बार 20 लाख रुपएकी सख्त जरुरत है ...'' उधरसे विवेकका मेसेज आ गया।
अभी तो तुम्हे 50 लाख रुपए दिए थे ... अब मेरे पास पैसे नही है ...'' अंजलीने झटसे टाईप करते हूए मेसेज भेज भी दिया।
मेसेज टाईप करते हूए उसके दिमागमें औरभी काफी विचारोंका चक्र चल रहा था।
'' बस यह आखरी बार ... क्योंकी यह पैसे लेकर मै परदेस जानेकी सोच रहा हूं '' उधरसे विवेकका मेसेज आया।
'' तुम परदेस जावो ... या और कही जावो ... मुझे उससे कुछ लेना देना नही है ... देखो ... मेरे पास कोई पैसोका पेढ तो नही है ... '' अंजलीने मेसेज भेजा।
'' ठिक है ... तुम्हे अब मुझे कमसे कम 10 लाख रुपए तो भी देने पडेंगे ... पैसे कब कहा और कैसे पहूंचाने है वह मै तुम्हे मेल कर सब बता दुंगा ...'' उधरसे मेसेज आया।
अंजली कुछ टाईप कर उसे भेजनेसे पहलेही विवेकका चॅटींग सेशन बंद हो गया था। अंजली एकटक उसके सामने रखे कॉम्प्यूटरके मॉनिटरकी तरफ देखने लगी। वह देखतो मॉनिटरके तरफ थी लेकिन उसके दिमागमें विचारोंका तांता लग गया था। लेकिन फिरसे उसके दिमागमें क्या आया क्या मालूम?, वह झटसे उठकर खडी हो गई और लंबे लंबे कदम भरते हूए कॅबिनसे बाहर निकल गई।
Posted by Udit bhargava at 2/08/2010 06:14:00 pm 0 comments
Hindi Books - ELove CH-22 ब्रिफकेस
घना जंगल। जंगलमें चारो तरफ बढे हूए उंचे उंचे पेढ। और पेढोंके निचे सुखे पत्ते फैले हूए थे। जंगलके पेढोंके बिचसे बने संकरे जगहसे रास्ता ढूंढते हूए एक काली, काले कांच चढाई हूई, कार तेडेमेडे मोड लेते हूए सुखे पत्तोसे गुजरने लगी। उस कारके चलनेके साथही उस सुखे पत्तोका एक अजिब मसलने जैसा आवाज आ रहा था। धीरे धीरे चल रही वह कार उस जंगलसे रास्ता निकालते हूए एक पेढके पास आकर रुकी। उस कारके ड्रायव्हर सिटका काला शिशा धीरे धीरे निचे सरक गया। ड्रायव्हींग सिटपर अंजली काला गॉगल पहनकर बैठी हूई थी। उसने कारका इंजीन बंद किया और बगलके पेढके तनेपर लगे लाल निशानकी तरफ देखा।
उसने यही वह पेढ ऐसा मनही मन पक्का किया होगा...
फिर उसने जंगलमें चारो ओर एक नजर दौडाई। दुर-दुरतक कोई परींदाभी नही दिख रहा था। आसपास किसीकीभी उपस्थिती नही है इसका यकिन होतेही उसने अपने बगलके सिटपर रखी ब्रिफकेस उठाकर पहले अपने गोदीमें ली। ब्रिफकेसपर दो बार अपना हाथ थपथपाकर उसने अपना इरादा पक्का किया होगा। और मानो अपना इरादा डगमगा ना जाए इस डरसे उसने झटसे वह ब्रिफकेस कारके खिडकीसे उस पेढके तरफ फेंक दी। धप्प और साथही सुखे पत्तोंका मसलनेजैसा एक अजिब आवाज आया।
होगया अपना काम तो होगया ...
चलो अब अपनी इस मसलेसे छूट्टी होगई...
ऐसा सोचते हूए उसने छुटनेके अहसाससे भरी लंबी आह भरी। लेकिन अगलेही क्षण उसके मनमें एक खयाल आया।
क्या सचमुछ वह इस सारे मसलेसे छूट चूकी थी? ...
या वह अपने आपको एक झूटी तसल्ली दे रही थी...
उसने फिरसे चारो तरफ देखा। आसपास कहीभी कोई मानवी हरकत नही दिख रही थी। उसने फिरसे कार स्टार्ट की। और एक मोड लेते हूए कार वहांसे तेज गतिसे चली गई। मानो वहांसे निकल जाना यह उसके लिए इस मसलेसे हमेशाके लिए छूटनेजैसा था।
जैसेही कार वहांसे चली गई, उस सुनसान जागहके एक पेढके उपर, उंचाईपर कुछ हरकत हो गई। उस पेढके उपर उंचाई पर बैठे, हरे पेढके पत्तोके रंगके कपडे पहने हूए एक आदमीने उसी हरे रंगका वायरलेस बोलनेके लिए अपने मुंहके पास लीया।
'' सर एव्हरी थींग इज क्लिअर ... यू कॅन प्रोसीड'' वह वायरलेसपर बोला और फिरसे अपनी पैनी नजर इधर उधर घूमाने लगा। शायद वह, वहांसे चली गई कार कही वापस तो नही आ रही है, या उस कारका पिछा करते हूए वहां और कोई तो नही आयाना, इस बातकी तसल्ली करता होगा।
'' सर एव्हती थींग इज क्लिअर... कन्फर्मींग अगेन'' वह फिरसे वायरलेसपर बोला।
उस पेढपर बैठे आदमीका इशारा मिलतेही जिस पेढके तनेको लाल निशान लगाया हुवा था, उस पेढके बगलमेंही एक बढा सुखे हूए पत्तोका ढेर था, उसमें कुछ हरकत होगई। कार शुरु होनेका आवाज आया और उस सुखे हूए पत्तोके ढेरको चिरते हूए, उसमेंसे एक कार बाहर आ गई। वह कार धीर धीरे आगे सरकती हूई जहां वह ब्रीफकेस पडी हूई थी वहा गई। कारसे एक काले कपडे पहना हूवा और मुंहपरभी काले कपडे बंधा हूवा एक आदमी बाहर आ गया। उसने अपनी पैनी नजरसे इधर उधर देखा। जहां उसका आदमी पेढपर बैठा हूवा था उधरभी देखा और उसे अंगुठा दिखाकर इशारा किया। बदलेमें उस पेढपर बैठे आदमीनेभी अंगूठा दिखाकर जवाब दिया। शायद सबकुछ कंट्रोलमें होनेका संकेत दिया। उस कारमेंसे उतरे, उस काले कपडे पहने आदमीने आसपास कोई उसे देखतो नही रहा है इसकी तसल्ली करते हूए वह निचे पडी हूई ब्रीफकेस धीरेसे उठाई। ब्रीफकेस उठाकर कारके बोनेटपर रखकर खोलकर देखी। हजार रुपयोंके एकके उपर एक ऐसे रखे हूए बंडल्स देखतेही उसके चेहरेपर काले कपडेके पिछे, एक खुशीकी लहर जरुर दौड गई होगी। और उन नोटोंकी खुशबू उसके नाकसे होते हूए उसके मश्तिश्क तक उसे एक नशा चखाती हूए दौड गई होगी। उसने उसमेंसे एक बंडल उठाकर उंगली फेरकर देखकर फिरसे ब्रिफकेसमें रख दिया। उसने फिरसे ब्रिफकेस बंद की। पेढपर बैठे आदमीको फिरसे अंगुठा दिखाकर सबकुछ ठिक होनेका इशारा किया। वह काला साया वह ब्रिफकेस उठाकर फिरसे अपने कारमें जाकर बैठ गया। कारका दरवाजा बंद हो गया, कार शुरु होगई और धीरे धीरे गति पकडती हूई तेज गतिसे वहांसे अदृष्य होगई। मानो वहांसे जल्द से जल्द निकल जाना उस कारमें बैठे आदमीके लिए उन नोटोंपर जल्द से जल्द कब्जा जमाने जैसा था।
Posted by Udit bhargava at 2/08/2010 06:10:00 pm 0 comments
Hindi Books - ELove CH-21 विवेक कहा गया होगा ?
जॉनी अपनेही धुनमें मस्त मजेमें सिटी बजाते हूए रास्तेपर चल रहा था। तभी उसे पिछेसे किसीने आवाज दिया।
'' जॉनी...''
जॉनीने वही रुककर सिटी बजाना रोक दिया। आवाज पहचानका नही लग रहा था इसलिए उसने पिछे मुडकर देखा। एक आदमी जल्दी जल्दी उसीके ओर आ रहा था। जॉनी असमंजससा उस आदमीकी तरफ देखने लगा क्योंकी वह उस आदमीको पहचानता नही था।
फिर उसे अपना नाम कैसे पता चला ?..
जॉनी उलझनमें वहा खडा था। तबतक वह आदमी आकर उसके पास पहूंच गया।
'' मै विवेकका दोस्त हूं ... मै उसे कलसे ढूंढ रहा हूं ... मुझे कॅफेपर काम करनेवाले लडकेने बताया की शायद तुम्हे उसका पता मालूम हो '' वह आदमी बोला।
शायद उस आदमीने जॉनीके मनकी उलझन पढ ली थी।
'' नही वैसे वह मुझेतो बताकर नही गया। ... लेकिन कल मै उसके होस्टेलपर गया था... वहां उसका एक दोस्त बता रहा था की वह 10-15 दिनके लिए किसी रिस्तेदारके यहां गया है ...'' जॉनीने बताया।
'' कौनसे रिस्तेदारके यहां ?'' उस आदमीने पुछा।
'' नही उतना तो मुझे मालूम नही ... उसे मैने वैसा पुछाभी था लेकिन वह उसेभी पता नही था ... उसे सिर्फ उसकी मेल मिली थी '' जॉनीने जानकारी दी।
अंजली अपने कुर्सीपर बैठी हूई थी और उसके सामने रखे टेबलपर एक बंद ब्रिफकेस रखी हूई थी। उसके सामने शरवरी बैठी हूई थी। उनमें एक अजीबसा सन्नाटा छाया हूवा था. अचानक अंजली उठ खडी हो गई और अपना हाथ धीरेसे उस ब्रिफकेसपर फेरते हूए बोली, '' सब पहेलूसे अगर सोचा जाए तो एकही बात उभरकर सामने आती है ..''
अंजली बोलते हूए रुक गई। लेकीन शरवरीको सुननेकी बेसब्री थी।
'' कौनसी ?'' शरवरीने पुछा।
'' ... की हमें उस ब्लॅकमेलरको 50 लाख देनेके अलावा फिलहाल अपने पास कोई चारा नही है ... और हम रिस्क भी तो नही ले सकते ''
'' हां तुम ठिक कहती हो '' शरवरी शुन्यमें देखते हूए, शायद पुरी घटनापर गौर करते हूए बोली।
अंजलीने वह ब्रिफकेस खोली। ब्रिफकेसमें हजार हजारके बंडल्स ठिकसे एक के उपर एक करके रखे हूए थे. उसने उन नोटोंपर एक नजर दौडाई, फिर ब्रिफकेस बंद कर उठाई और लंबे लंबे कदम भरते हूए वह वहांसे जाने लगी. तभी उसे पिछेसे शरवरीने आवाज दिया -
'' अंजली...''
अंजली ब्रेक लगे जैसे रुक गई और शरवरीके तरफ मुडकर देखने लगी।
'' अपना खयाल रखना '' शरवरीने अपनी चिंता जताते हूए कहा।
अंजली दो कदम फिरसे अंदर आ गई, शरवरीके पास गई, शरवरीके कंधेपर उसने हाथ रखा औड़ मुडकर फिरसे लंबे लंबे कदम भरते हूए वहांसे चली गई।
पहले CH - 1 पर जाएँ।
Posted by Udit bhargava at 2/08/2010 06:00:00 pm 0 comments
रामायण – उत्तरकाण्ड - राजा दण्ड की कथा
महर्षि अगस्त्य से श्वेत की कथा सुनकर श्रीरामचन्द्र ने पूछा, "मुनिराज! कृपया यह और बताइये कि जिस भयंकर वन में विदर्भराज श्वेत तपस्या करते थे, वह वन पशु-पक्षियों से रहित क्यों हो गया था?"
रघुनाथ जी की जिज्ञासा सुनकर महर्षि अगस्त्य ने बताया, "सतयुग की बात है, जब इस पृथ्वी पर मनु के पुत्र इक्ष्वाकु राज्य करते थे। राजा इक्ष्वाकु के सौ पुत्र उत्पन्न हुये। उन पुत्रों में सबसे छोटा मूर्ख और उद्दण्ड था। इक्ष्वाकु समझ गये कि इस मंदबुद्धि पर कभी न कभी दण्डपात अवश्य होगा। इसलिये वे उसे दण्ड के नाम से पुकारने लगे। जब वह बड़ा हुआ तो पिता ने उसे विन्ध्य और शैवल पर्वत के बीच का राज्य दे दिया। दण्ड ने उस सथान का नाम मधुमन्त रखा और शुक्राचार्य को अपना पुरोहित बनाया।
"एक दिन राजा दण्ड भ्रमण करता हुआ शुक्राचार्य के आश्रम की ओर जा निकला। वहाँ उसने शुक्राचार्य की अत्यन्त लावण्यमयी कन्या अरजा को देखा। वह कामपीड़ित होकर उसके साथ बलात्कार करने लगा। जब शुक्राचार्य ने अरजा की दुर्दशा देखी तो उन्होंने शाप दिया कि दण्ड सात दिन के अन्दर अपने पुत्र, सेना आदि सहित नष्ट हो जाय। इन्द्र ऐसी भयंकर धूल की वर्षा करेंगे जिससे उसका सम्पूर्ण राज्य ही नहीं, पशु-पक्षी तक नष्ट हो जायेंगे। फिर अपनी कन्या से उन्होंने कहा कि तू इसी आश्रम में इस सरोवर के निकट रहकर ईश्वर की आराधना और अपने पाप का प्रायश्चित कर। जो जीव इस अवधि में तेरे पास रहेंगे वे धूल की वर्षा से नष्ट नहीं होंगे। शुक्राचात्य के शाप के कारण दण्ड, उसका राज्य और पशु-पक्षी आदि सब नष्ट हो गये। तभी से यह भूभाग दण्डकारण्य कहलाता है।" यह वृतान्त सुनकर श्रीराम विश्राम करने चले गये। दूसरे दिन प्रातःकाल वे वहाँ से विदा हो गये।
Posted by Udit bhargava at 2/08/2010 07:51:00 am 0 comments
महाभारत - एकलव्य की गुरुभक्ति
आचार्य द्रोण राजकुमारों को धनुर्विद्या की विधिवत शिक्षा प्रदान करने लगे। उन राजकुमारों में अर्जुन के अत्यन्त प्रतिभावान तथा गुरुभक्त होने के कारण वे द्रोणाचार्य के प्रिय शिष्य थे। द्रोणाचार्य का अपने पुत्र अश्वत्थामा पर भी विशेष अनुराग था इसलिये धनुर्विद्या में वे भी सभी राजकुमारों में अग्रणी थे, किन्तु अर्जुन अश्वत्थामा से भी अधिक प्रतिभावान थे। एक रात्रि को गुरु के आश्रम में जब सभी शिष्य भोजन कर रहे थे तभी अकस्मात् हवा के झौंके से दीपक बुझ गया। अर्जुन ने देखा अन्धकार हो जाने पर भी भोजन के कौर को हाथ मुँह तक ले जाता है। इस घटना से उन्हें यह समझ में आया कि निशाना लगाने के लिये प्रकाश से अधिक अभ्यास की आवश्यकता है और वे रात्रि के अन्धकार में निशाना लगाने का अभ्यास करना आरम्भ कर दिया। गुरु द्रोण उनके इस प्रकार के अभ्यास से अत्यन्त प्रसन्न हुये। उन्होंने अर्जुन को धनुर्विद्या के साथ ही साथ गदा, तोमर, तलवार आदि शस्त्रों के प्रयोग में निपुण कर दिया।
उन्हीं दिनों हिरण्य धनु नामक निषाद का पुत्र एकलव्य भी धनुर्विद्या सीखने के उद्देश्य से द्रोणाचार्य के आश्रम में आया किन्तु निम्न वर्ण का होने के कारण द्रोणाचार्य ने उसे अपना शिष्य बनाना स्वीकार नहीं किया। निराश हो कर एकलव्य वन में चला गया। उसने द्रोणाचार्य की एक मूर्ति बनाई और उस मूर्ति को गुरु मान कर धनुर्विद्या का अभ्यास करने लगा। एकाग्रचित्त से साधना करते हुये अल्पकाल में ही वह धनु्र्विद्या में अत्यन्त निपुण हो गया।
एक दिन सारे राजकुमार गुरु द्रोण के साथ आखेट के लिये उसी वन में गये जहाँ पर एकलव्य आश्रम बना कर धनुर्विद्या का अभ्यास कर रहा था। राजकुमारों का कुत्ता भटक कर एकलव्य के आश्रम में जा पहुँचा। एकलव्य को देख कर वह भौंकने लगा। इससे क्रोधित हो कर एकलव्य ने उस कुत्ते अपना बाण चला-चला कर उसके मुँह को बाणों से से भर दिया। एकलव्य ने इस कौशल से बाण चलाये थे कि कुत्ते को किसी प्रकार की चोट नहीं लगी किन्तु बाणों से बिंध जाने के कारण उसका भौंकना बन्द हो गया।
कुत्ते के लौटने पर जब अर्जुन ने धनुर्विद्या के उस कौशल को देखा तो वे द्रोणाचार्य से बोले, "हे गुरुदेव! इस कुत्ते के मुँह में जिस कौशल से बाण चलाये गये हैं उससे तो प्रतीत होता है कि यहाँ पर कोई मुझसे भी बड़ा धनुर्धर रहता है।" अपने सभी शिष्यों को ले कर द्रोणाचार्य एकलव्य के पास पहुँचे और पूछे, "हे वत्स! क्या ये बाण तुम्हीं ने चलाये है?" एकलव्य के स्वीकार करने पर उन्होंने पुनः प्रश्न किया, "तुम्हें धनुर्विद्या की शिक्षा देने वाले कौन हैं?" एकलव्य ने उत्तर दिया, "गुरुदेव! मैंने तो आपको ही गुरु स्वीकार कर के धनुर्विद्या सीखी है।" इतना कह कर उसने द्रोणाचार्य की उनकी मूर्ति के समक्ष ले जा कर खड़ा कर दिया।
द्रोणाचार्य नहीं चाहते थे कि कोई अर्जुन से बड़ा धनुर्धारी बन पाये। वे एकलव्य से बोले, "यदि मैं तुम्हारा गुरु हूँ तो तुम्हें मुझको गुरुदक्षिणा देनी होगी।" एकलव्य बोला, "गुरुदेव! गुरुदक्षिणा के रूप में आप जो भी माँगेंगे मैं देने के लिये तैयार हूँ।" इस पर द्रोणाचार्य ने एकलव्य से गुरुदक्षिणा के रूप में उसके दाहिने हाथ के अँगूठे की माँग की। एकलव्य ने सहर्ष अपना अँगूठा दे दिया। इस प्रकार एकलव्य अपने हाथ से धनुष चलाने में असमर्थ हो गया तो अपने पैरों से धनुष चलाने का अभ्यास करना आरम्भ कर दिया।
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Posted by Udit bhargava at 2/08/2010 07:50:00 am 0 comments
विवादों का विश्वविद्यालय
रवींद्र नाथ टैगोर के सपनों की विश्वभारती की परंपरा में भ्रष्टाचार, कुप्रबंधन और गुटबाजी का पलीता लगा हुआ है। विश्वविद्यालय का गुरुकुल जैसा परिसर इन दिनों राजनीति का अखाड़ा बना हुआ है। इस संस्थान की स्थापना के समय पुरातन गुरुकुल परंपरा के आदर्श को ध्यान में रखा गया था। इस संस्थान के संस्थापक के शब्दों में यहाँ विश्व भर की शिक्षा की प्यास बुझेगी। आज की तारीख में यह संस्थान विवादों के केंद्र में है। भ्रष्टाचार से लेकर खस्ताहाल प्रबंधन तक के आरोपों का अंबार लगा हुआ है। आखिर कैसे बिगड़े हालात?
यहाँ बात बंगाल के शांतिनिकेतन स्थित प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय विश्वभारती की हो रही है। संस्थापक गुरुदेव रवींद्र नाथ टैगोर का जमाना देख चुके लोग आज इसके मौजूदा हालात पर खून के आंसू रो रहे हैं। यहाँ के कुलपति रजत कांत राय के खिलाफ धन लेकर मनमर्जी से नियुक्तियां करने, फर्जी मेडिकल बिल जमा कर 10 लाख से अधिक रुपए का री-इंबर्शमेंट लेने, यहाँ के प्राथमिक स्कूल में अपने रिश्तेदारों को नौकरियाँ देने और गुरुदेव रवींद्र नाथ टैगोर की कुछ पेंटिंग्स को अवैध तरीके से एक निजी कंपनी को बेच देने से आरोप लग रहे हैं। विश्वविद्यालय परिसर में पिछले 15 सितंबर से धरना-प्रदर्शन पर बैठे विश्वभारती के शिक्षकों-कर्मचारियों के संगठनकर्मी सभा के अध्यक्ष देवव्रत सरकार का दावा है कि 12वीं पास लोगों तक को शिक्षक पद पर नियुक्त कर लिया गया है।
हालात यह हैं कि विश्वविद्यालय प्रशासन की ओर से कर्मी सभा के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई गई। मामला आगे बढ़ा और भ्रष्टाचार के आरोपों को लेकर सीबीआई जांच की मांग पर 24 अक्टूबर से विश्वविद्यालय में हड़ताल करा दी गई। उसी दिन बेहद नाटकीय अंदाज में कर्मी सभा के खिलाफ विश्वविद्यालय के वीसी भी धरने पर बैठ गए। वीसी ने राज्यपाल से मिलकर अपना पक्ष रखा है लेकिन हालात बिगड़ते जा रहे हैं। विश्वविद्यालय में गुटबाजी चरम पर है। अब ताजा घटनाक्रमों के संदर्भ में विश्वविद्यालय के काले अतीत की खूब चर्चा है।
गुटबाजी की स्थिति तब से ही चली आ रही है, जब 1951 में इसे केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा मिला। तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने महान वैज्ञानिक सत्येंद्र नाथ बोस को यहाँ का वीसी बनाया था। उनके जमाने में चित्रकार रामकिंकर बैज और अंग्रेजी के एक वरिष्ठ प्राध्यापक के बीच गुटबाजी चरम पर थी। कैंपस दो गुटों में बंट गया था। विवाद बढ़ा तो नेहरूजी ने मशहूर कृषि वैज्ञानिक लियोनार्द एमहर्स्ट की अगुवाई में जांच आयोग बिठाया, जिसने अपनी रिपोर्ट में लिखा कि वीसी बोस प्रतिष्ठित वैज्ञानिक हैं लेकिन अच्छे प्रशासक नहीं।
उस जमाने में हालात गुटबाजी और अन्य प्रशासनिक दायित्वों को लेकर सीमित रहे लेकिन रवींद्र के सपनों के इस मंडप पर 2004 से भ्रष्टाचार की छाया मंडराने लगी। तब के वीसी दिलीप सिन्हा पर आरोप लगा कि उन्होंने फर्जी अंकपत्र के आधार पर अपने एक रिश्तेदार को गणित का प्राध्यापक बना दिया। उन्होंने देशभर में कई कॉलेजों को अवैध रूप से मान्यता पत्र जारी कर दिया। दोनों ही मामलों में केंद्रीय जाँच टीम ने सिन्हा के खिलाफ आरोपों को सही पाया और उन्हें जेल भी हुई। उनके बाद आए वीसी सुजीत बासु के जमाने में टैगोर को मिले नोबेल पुरस्कार के मेडल और अन्य बहुमूल्य पेंटिंग आदि चोरी चले गए और अब वीसी रजत कांत राय के खिलाफ आरोपों का पुलिंदा! आश्रम से जुड़े रहे कुछ ऐसे लोगों की मानें तो अगर 1951 में विश्वभारती को यूनिवर्सिटी ग्रांट कमीशन के अंतर्गत लाए जाने के बजाय इसके मूल स्वरूप को बचाए रखते हुए कोई अलग दर्जा दिया जाता तो शायद यहाँ के परिवेश में राजनीति, गुटबाजी, चूहादौड़ और अन्य गंदगियों का प्रवेश नहीं होता।
यह भारत का अकेला ऐसा विश्वविद्यालय है जहाँ केजी से लेकर डॉक्टरेट तक की पढ़ाई की व्यवस्था है। गुरुदेव ने ऐसे शैक्षणिक केंद्र का सपना देखा था जहाँ किसी प्रकार की कोई दीवार न हो। यहाँ के बांग्ला विभाग और विद्या भावना (कला) के 41 साल तक प्रमुख रह चुके बुजुर्ग अमृतसूदन भट्टाचार्य का मानना है कि यहाँ ऐसे वीसी की जरूरत है जो टैगोर की फिलॉसफी को समझता हो। यहाँ केंद्र ने भारत के बेस्ट स्कॉलर्स को वीसी बनाया लेकिन यह देखने की कोशिश नहीं की कि वे टैगोर के विचारों को कितना समझ पाते हैं।
शायद अपने आखिरी दिनों में गुरुदेव भी आज के हालात को ताड़ चुके थे। उन्होंने अपने जीवनकाल में कई दफा विश्वभारती के तेजी से विस्तार पर नाखुशी जताते हुए टिप्पणी की थी कि इसे किसी आम विश्वविद्यालय की तरह नहीं बनना चाहिए। ऐसा होने पर विश्वभारती अपना मूल स्वरूप खो बैठेगा। 1941 में टैगोर के निधन के बाद विश्वभारती को सरकारी फंड मिलना शुरू हुआ। 1951 में इसे केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा मिला। यहाँ पढ़ा चुके 92 साल के पेंटर दिनकर कौशिक के अनुसार, शायद वहीं से गड़बड़ियों का पौधारोपण हो गया। कौशिक यहाँ 1940 में नंदलाल बोस और रामकिंकर बैज से चित्रकारी सिखने आए थे। शांतिनिकेतन में ही रह रहे टैगोर खानदान के वंशज सुप्रिय टैगोर यहाँ के पाठ भवन के प्रिंसिपल की हैसियत से चार दशक पहले रिटायर हुए। उनके अनुसार, "केंद्रीय विश्वविद्यालय बनने पर यहाँ फंड अफरात आने लगा। गुरुदेव के जमाने में धन की कमी महसूस की जा रही थी जो दूर हो गई थी लेकिन नियुक्तियों और कामकाज में जिस तरह से सरकारी नियमों की पैठ बढ़ी गड़बड़ियाँ बढ़ती चली गईं।
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Posted by Udit bhargava at 2/08/2010 07:36:00 am 0 comments
याद करो और उगल दो!
जरा गौर कीजिए एक "टिपिकल" भारतीय स्कूल की क्लास पर: "पढ़ाते" टीचर और "पढ़ते" बच्चे। यानी टीचर बोलेंगे और बच्चे सुनेंगे व जो सुना उसे याद रखने की कोशिश करेंगे। यानी टीचर ब्लैकबोर्ड पर लिखेंगे और बच्चे अपनी कॉपी में उसे जस का तस उतारेंगे व जो उतारा उसे याद रखने की कोशिश करेंगे।
बच्चों को फिक्र कि सब कुछ याद करना है और टीचर को फिक्र कि इतने समय में सारा कोर्स पूरा करना है। आज यह पाठ निपटा दिया, कल वह और शनिवार तक उसके बाद वाला चैप्टर भी कम्पलीट करवा देना है।
इस झटपट, टारगेट ओरिएंटेड शिक्षण में वे बच्चे रोड़ा होते हैं, जो सवाल करते हैं। टाइम वेस्ट करते हैं वे बच्चे! तयशुदा कार्यक्रम के अनुसार कोर्स "निपटाने" में बाधा खड़ी करते हैं। अच्छे स्टूडेंट वे होते हैं जो कुछ पूछते नहीं, सिर्फ सुनते हैं। जो सोचते नहीं, सिर्फ रटते हैं।
कहने की जरूरत नहीं कि यह प्रक्रिया न बच्चों के लिए आनंददायी है और न ही शिक्षकों के लिए। तेजी से भागती दुनिया में आज जो पढ़ाया, वह कल, परसों, नरसों कब तक उपयोगी रहेगा, कहा नहीं जा सकता।
ऐसे में निर्धारित पाठ बेवजह रटाने के बजाए होना यह चाहिए कि बच्चों में सीखने की ललक पैदा की जाए, तर्क करने का कौशल विकसित किया जाए। उनकी जिज्ञासा को खाद-पानी दिया जाए, उसमें मट्ठा न डाला जाए। तभी तो बेजान रोबोट के बजाए तैयार होंगे चीजों को जानने-समझने वाले युवा। नई खोज करने वाले युवा, नए शिखर छूने वाले युवा।
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Posted by Udit bhargava at 2/08/2010 07:34:00 am 0 comments
07 फ़रवरी 2010
रत्नों के प्रकार
* मासर मणि- यह अकीक पत्थर के समान होता है।
* माक्षिक- यह सोना मक्खी के रंग का पत्थर है।
* माणिक्य- यह गुलाबी तथा सुर्ख लाल रंग का होता है तथा काले रंग का भी पाया जाता है। गुलाबी रंग का माणिक्य श्रेष्ठ माना गया है।
* मूवेनजफ- यह सफेद रंग का काली धारी से युक्त पत्थर होता है। यह फर्श बनाने के काम आता है।
* मूँगा- यह लाल, सिंदूर वर्ण तथा गुलाबी रंग का होता है। यह सफेद व कृष्ण वर्ण में भी प्राप्य है। इसका प्राप्ति स्थान समुद्र है। इसका दूसरा नाम प्रवाल भी है।
* मोती- यह सफेद, काला, पीला, लाल तथा आसमानी व अनेक रंगों में पाया जाता है। यह समुद्र से सीपों से प्राप्त किया जाता है।
* रक्तमणि- यह पत्थर लाल, जामुनी रंग का सुर्ख में कत्थे तथा गोमेद के रंग का पाया जाता है, इसे 'तामड़ा' भी कहा जाता है।
* रक्ताश्म- यह पत्थर गुम, कठोर, मलिन, पीला तथा नीले रंग लिए, हरे रंग का तथा ऊपर लाल रंग का छींटा भी होता है।
* लहसुनिया- यह बिल्ली के आँख के समान चमकदार होता है। इसमें पीले, काले तथा सफेद रंग की झाईं भी होती है। इसका दूसरा नाम वैदूर्य है।
* लालड़ी- यह रत्न रक्त रंग का, पारदर्शक कांतिपूर्ण, लाल रंग तथा कृष्णाभायुक्त होता है, इसे सूर्यमणि भी कहते हैं।
* लास- यह मकराने की जाति का पत्थर है।
* लूधिया- यह गुम तथा हरे रंग का होता है। इसका उपयोग खरल बनाने में किया जाता है।
* शेष मणि- यह काले डोरे से युक्त सफेद रंग का होता है। सफेद रंग के डोरे से युक्त काले रंग के पत्थर को सुलेमानी कहा जाता है।
* शैलमणि- यह पत्थर मृदु, स्वच्छ, सफेद तथा पारदर्शक होता है, इसे स्फटिक तथा बिल्लौर भी कहते हैं।
* शोभामणि- यह पत्थर स्वच्छ पारदर्शक तथा अनेक रंगों में पाया जाता है। इसे वैक्रान्त भी कहते हैं।
* संगिया- यह चाक से मिलता-जुलता मुलायम पत्थर होता है।
* संगेहदीद- यह भारी भूरापन लिए स्याही के रंग का होता है। इसका औषधि में प्रयोग होता है।
* संगेसिमाक- यह गुम सख्त तथा मलिनता लिए लाल रंग का होता है, जिस पर सफेद रंग के छींटे होते हैं। इसका उपयोग खरल बनाने तथा नीलम व माणिक्य को पीसने के काम आता है।
* संगमूसा- यह काले रंग का पत्थर होता है। इसका उपयोग प्याले व तश्तरी बनाने में होता है।
* संगमरमर- यह पत्थर सफेद, काले तथा अन्य कई रंगों में होता है। इसका उपयोग मूर्तियों तथा मकान बनाने के काम में किया जाता है।
* संगसितारा- यह कषाय रंग का पत्थर है। इसमें सोने के समान छींटे चमकते दिखाई देते हैं।
* सिफरी- यह अपारदर्शी, हरापन लिए आसमानी रंग का होता है। यह औषधि के काम में आता है।
* सिन्दूरिया- यह गुलाबी रंग का पानीदार चमकदार व मृदु पत्थर होता है।
* सींगली- यह गुम स्याही तथा रक्त मिश्रित माणिक्य जाति का पत्थर होता है। इसके अंदर छह कलाओं से युक्त सितारे होते हैं।
* सीजरी- यह अकीक के समान विविध रंगों में फूल-पत्तीदार व दाग डालने वाला पत्थर होता है।
* सुनहला- यह पीले रंग का नरम तथा पूर्ण पारदर्शक होता है।
* सूर्यकान्त- इसका रंग चमकदार श्वेत रंग का होता है।
* सुरमा- यह काले रंग का पत्थर होता है तथा इसका उपयोग नेत्रांजन बनाने में होता है।
* सेलखड़ी- यह सफेद रंग का मृदु पत्थर होता है, इसका उपयोग क्रीम, पावडर आदि बनाने के काम में किया जाता है।
* स्फटिक- यह मृदु सफेद रंग का पारदर्शी व चमकदार होता है। इसे फिटकरी भी कहा जाता है।
* सोनामक्खी- इसे स्वर्ण माक्षिक भी कहते हैं। यह कंकड़ के समान पीत वर्ण का होता है। इसका उपयोग औषधि में करते हैं।
* हजरते बेर- यह औषधि में उपयोग होने वाला मटमैला बेर के समान होता है।
* हजरते ऊद- यह पत्थर गुलाबी रंग का लचकदार तथा खुरदरा होता है।
* हरितोपल- यह हरे रंग का चमकदार पत्थर होता है।
* हकीक- यह पत्थर पीले, काले, सफेद, लाल तथा अनेक रंगों में पाया जाता है। यह अपारदर्शी होता है।
* हरितमणि- यह चिकना, कठोर, अपारदर्शी तथा सफेद काले अंगूरी व गुलाबी रंग का होता है।
* हीरा- यह सफेद, नीला, पीला, गुलाबी, काला, लाल आदि अनेक रंगों में होता है। सफेद हीरा सर्वोत्तम है तथा हीरा सभी प्रकार के रत्नों में श्रेष्ठ है।
इन्हें भी देखें :-
रत्न चिकित्सा
रत्नों क़ी श्रेष्ठता
नवग्रह रत्न एवं समयावधि
रत्नों के प्रकार
संयुक्त रत्न पहनना श्रेष्ठ फलदायी
रत्नों क़ी उत्त्पत्ति
रत्नों के प्राप्ति स्थान
धन देता है श्वेत मोती
Posted by Udit bhargava at 2/07/2010 09:59:00 pm 0 comments
संयुक्त रत्न पहनना श्रेष्ठ फलदायी
रत्न कोई भी हो अपने आपमें प्रभावशाली होता है। हीरा शुक्र को अनुकूल बनाने के लिए होता है तो नीलम शनि को। इसी प्रकार माणिक रत्न सूर्य के प्रभाव को कई गुना बड़ा कर उत्तम फलदायी होता है। मोती जहाँ मन को शांति प्रदान करता है तो मूँगा उष्णता को प्रदान करता है। इसके पहनने से साहस में वृद्धि होती है।
Posted by Udit bhargava at 2/07/2010 09:07:00 pm 0 comments
रामायण – उत्तरकाण्ड - वृत्रासुर की कथा
एक दिन श्रीरामचन्द्रजी ने भरत और लक्ष्मण को अपने पास बुलाकर कहा, "हे भाइयों! मेरी इच्छा राजसूय यज्ञ करने की है क्योंकि वह राजधर्म की चरमसीमा है। इस यज्ञ से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं तथा अक्षय और अविनाशी फल की प्राप्ति होती है। अतः तुम दोनों विचारकर कहो कि इस लोक और परलोक के कल्याण के लिये क्या यह यज्ञ उत्तम रहेगा?"
बड़े भाई के ये वचन सुनकर धर्मात्मा भरत बोले, "महाराज! इस पृथ्वी पर सर्वोत्तम धर्म, यश और स्वयं यह पृथ्वी आप ही में प्रतिष्ठित है। आप ही इस सम्पूर्ण पृथ्वी और इस पर रहने वाले समस्त राजा भी आपको पितृतुल्य मानते हैं। अतः आप ऐसा यज्ञ किस प्रकार कर सकते हैं जिससे इस पृथ्वी के सब राजवंशों और वीरों का हमारे द्वारा संहार होने की आशंका हो?" भरत के युकतियुक्त वचन सुनकर श्रीराम बहुत प्रसन्न हुये और बोले, "भरत! तुम्हारा सत्यपरामर्श धर्मसंगत और पृथ्वी की रक्षा करने वाला है। तुम्हारा यह उत्तम कथन स्वीकार कर मैं राजसूय यज्ञ करने की इच्छा त्याग देता हूँ।"
तत्पश्चात लक्ष्मण बोले, "हे रघुनन्दन! सब पापों को नष्ट करने वाला तो अश्वमेघ यज्ञ भी है। यदि आप यज्ञ करना ही चाहते हैं तो इस यज्ञ को कीजिये। महात्मा इन्द्र के विषय में यह प्राचीन वृतान्त सुनने में आता है कि जब इन्द्र को ब्रह्महत्या लगी थी, तब वे अशवमेघ यज्ञ करके ही पवित्र हुये थे।" श्री राम द्वारा पूरी कथा पूछने पर लक्ष्मण बोले, "प्राचीनकाल में वृत्रासुर नामक असुर पृथ्वी पर पूर्ण धार्मिक निष्ठा से राज्य करता था। एक बार वह अपने ज्येष्ठ पुत्र मधुरेश्वर को राज्य भार सौंपकर कठोर तपस्या करने वन में चला गया। उसकी तपस्या से इन्द्र का भी आसन हिल गया। वह भगवान विष्णु के पास जाकर बोले कि प्रभो! तपस्या के बल से वृत्रासुर ने इतनी अधिक शक्ति संचित कर ली है कि मैं अब उस पर शासन नहीं कर सकता। यदि उसने तपस्या के फलस्वरूप कुछ शक्ति और बढ़ा ली तो हम सब देवताओं को सदा उसके आधीन रहना पड़ेगा। इसलिये प्रभो! आप कृपा करके सम्पूर्ण लोकों को उसके आधिपत्य से बचाइये। किसी भी प्रकार उसका वध कीजिये।
"देवराज इन्द्र की यह प्रार्थना सुनकर भगवान विष्णु बोले कि यह तो तुम जानते हो देवराज! मझे वृत्रासुर से स्नेह है। इसलिये मैं उसका वध नहीं कर सकता परन्तु तुम्हारी प्रार्थना भी मैं अस्वीकार नहीं कर सकता। इसलिये मैं अपने तेज को तीन भागों में इस प्रकार विभाजित कर दूँगा जिससे तुम स्वयं वृत्रासुर का वध कर सको। मेरे तेज का एक भाग तुम्हारे अन्दर प्रवेश करेगा, दूसरा तुम्हारे वज्र में और तीसरा पृथ्वी में ताकि वह वृत्रासुर के धराशायी होने पर उसका भार सहन कर सके। भगवान से यह वरदान पाकर इन्द्र देवताओं सहित उस वन में गये जहाँ वृत्र तपस्या कर रहा था। अवसर पाकर इन्द्र ने अपने शक्तिशाली वज्र वृत्रासुर के मस्तक पर दे मारा। इससे वृत्र का सिर कटकर अलग जा पड़ा। सिर कटते ही इन्द्र सोचने लगे, मैंने एक निरपराध व्यक्ति की हत्या करके भारी पाप किया है। यह सोचकर वे किसी अन्धकारमय स्था में जाकर प्रायश्चित करने लगे। इन्द्र के लोप हो जाने पर देवताओं ने विष्णु भगवान से प्रार्थना की कि हे दीनबन्धु! वृत्रासुर मारा तो आपके तेज से गया है, परन्तु ब्रह्महत्या का पाप इन्द्र को भुगतना पड़ रहा है। इसलिये आप उनके उद्धार का कोई उपाय बताइये। यह सुनकर विषणु बोले कि यदि इन्द्र अश्वमेघ यज्ञ करके मुझ यज्ञपुरुष की आराधना करेंगे तो वे निष्पाप होकर देवेन्द्र पद को प्राप्त कर लेंगे। इन्द्र ने ऐसा ही किया और अश्वमेघ यज्ञ के प्रताप से उन्होंने ब्रह्महत्या से मुक्ति प्राप्त की।"
Posted by Udit bhargava at 2/07/2010 08:30:00 am 0 comments
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