31 मार्च 2010

बेतुकी सलाहें


रामदीन अपने बाप-दादों के ज़माने की एक झोंपड़ी का मालिक था। उससे सटकर एक विशाल पिछवाड़ा था। उसने अपने पिछवाड़े में केले के कल्ले रोप दिये। केले का बगीचा ख़ूब बढ़ा, हरा-भरा तथा देखने में मनमोहक था।

एक दिन सवेरे रामदीन केले के बगीचे में पानी सींच रहा था। तभी गाड़ी में से जमीन्दार की पत्नी उतर पड़ी। रामदीन अपने हाथों को साफ़ कर जमीन्दार की पत्नी के सामने आ खड़ा हुआ।

जमीन्दार की पत्नी ने रामदीन का नाम पूछकर कहा, ‘‘रामदीन, तुम अपने पिछवाड़े के साथ अपनी झोंपड़ी को बेच सकते हो?''

रामदीन विस्मय में आ गया। वह कोई उत्तर न दे पाया। समझ न पाया कि जमीन्दार की पत्नी उसकी पुरानी झोंपड़ी लेकर करेंगी ही क्या?

‘‘पैसे की तुम चिंता न करो। मैं तुम्हें पाँच सौ रुपये दूँगी।''

रामदीन अपने कानों पर यक़ीन नहीं कर पाया, क्योंकि उस झोंपड़ी के लिए कोई दो सौ रुपयों से ज़्यादा न देगा।

रामदीन को मौन देख जमीन्दार की पत्नी बोली, ‘‘अच्छी बात है! साढ़े सात सौ रुपये देती हूँ। अब मोल-भाव मत करो।''

रामदीन को लगा कि वह बेहोश होता जा रहा है। साढ़े सात सौ रुपये! वह इस विचार में खो गया कि इतनी पूँजी लगाकर कोई भी व्यापार कर सकता है।

इस बार भी रामदीन को मौन देख वह ख़ीझकर बोली, ‘‘मैं अंतिम बात कह रही हूँ- एक हज़ार रुपये दूँगी! झोंपड़ी बेचते हो या नहीं?''

रामदीन ने स्वीकृति सूचक सिर हिलाया और कहा, ‘‘शाम के अंदर हम झोंपड़ी ख़ाली कर देंगे। शाम को आप इस पर कब्ज़ा कर सकती हैं।''

‘‘शामको मैं अपने नौकर के द्वारा रुपये भेज दूँगी!'' यों कहकर जमीन्दार की पत्नी बड़ी खुशी के साथ चली गई।

उसके जाते ही रामदीन अपनी औरत से बोला, ‘‘अरी! सुनो! हमारी क़िस्मत खुल गई ।''

इधर जमीन्दार की गाड़ी रामदीन की झोंपड़ी के आगे आकर जब रुकी, तभी से अड़ोस-पड़ोस के लोग उनकी बातचीत बड़ी उत्सुकता के साथ सुन रहे थे। वे अब आकर आश्चर्य से बोले, ‘‘क्या तुम सचमुच इस झोंपड़ी को बेच दोगे?''

‘‘अरे साहब! एक हज़ार रुपये मिल रहे हैं तो क्यों न बेचूँगा?'' रामदीन ने उल्टा सवाल किया।

‘‘अरे, तुम्हारी अ़क्ल चरने गई है! तुमने यह भी सोचा है कि तुम्हारी इस टूटी-फूटी झोंपड़ी के लिए एक हज़ार रुपये क्यों दिये जा रहे हैं? इस झोंपड़ी से बहुत बड़ा लाभ न हो तो जमीन्दारिन इतने रुपये क्यों लुटा देंगी? उन्हें यह मालूम होगा कि तुम्हारी झोंपड़ी के अन्दर कोई खज़ाना है। तुम तो भोले और बुद्धू ठहरे ! इसीलिए झट बेचने को तैयार हो गये हो? हमारी बात सुनो, तुम किसी भी दाम पर झोंपड़ी को मत बेचो, तुम्हीं ख़ुद खोदकर उस खज़ाने को ले लो।'' यों सबने रामदीन को बेतुकी सलाहें दीं और वहाँ से चले गये।

ये बेतुकी सलाहें रामदीन को उचित प्रतीत हुईं। उसकी औरत ने भी पड़ोसियों की बातों में आकर कहा, ‘‘इन लोगों का कहना सच मालूम होता है। हाल ही में जमीन्दारिन अपनी कन्या का विवाह भी करने जा रही है, ऐसी हालत में एक हज़ार रुपये ख़र्च करके यह झोंपड़ी क्यों ख़रीद लेगी? इस झोंपड़ी में अपनी लड़की को थोड़े ही बिठाने वाली है?''

शामको जब जमीन्दार का नौकर एक हज़ार रुपये लेकर पहुँचा, तब पति-पत्नी दोनों ने झोंपड़ी बेचने से इनकार कर दिया।

उस दिन रात को लालटेन की रोशनी में रामदीन ने केले के पौधों को उखाड़कर फेंक दिया, सारे पिछवाड़े को गहराई तक खोदा। झोंपड़ी के भीतर उसे कोई चीज़ दिखाई न दी । इस पर उसने झोंपड़ी की छत को हटाकर ढूँढ़ा, कहीं कोई चीज़ हाथ न लगी।

इतने में सवेरा हो गया। रामदीन रुआँस स्वर में बोला, ‘‘हमने बहुत बढ़िया सौदा हाथ से निकल जाने दिया ।''


‘‘अब भी कुछ बिगड़ा नहीं, तुम तुरंत जाकर जमीन्दारिन से कह दो कि हम झोंपड़ी बेचने के लिए तैयार हैं। पाँच सौ भी दे, मान जाओ।'' रामदीन की पत्नी ने सुझाया।

रामदीन जमीन्दार के घर चला गया, जमीन्दार की औरत से बोला, ‘‘मैंने मूर्खतावश लोगों की बेतुकी सलाहें मानकर झोंपड़ी बेचने से इनकार कर दिया था। अब मैं बेचना चाहता हूँ। आप जो उचित समझें, सो दे दीजिए!''

जमीन्दारिन ने मुस्कुराकर जवाब दिया, ‘‘अब तुम्हारी झोंपड़ी मेरे लिए किस काम की? मैं अपना दाँव तो हार चुकी हूँ!'' इन शब्दों के साथ उसने जमीन्दार तथा उसके बीच जो दाँव लगाया गया था, उसका वृत्तांत सुनाया।

असल में बात यह थी कि जमीन्दार की गाड़ी उसके दादा-परदादाओं के ज़माने की थी। जब से वह ससुराल आई है, तब से वह जमीन्दार द्वारा नई गाड़ी ख़रीदवाने की कोशिश कर रही है। मगर जमीन्दार को अपनी पुरानी गाड़ी ही प्यारी है। उसके दादा-परदादा उसी में घूमते थे।

‘‘पुरखों से चली आनेवाली चीज़ को कोई त्याग नहीं देता। आख़िर हमारे गाँव के छोर पर स्थित केले के पौधोंवाला भी अपने दादा-परदादाओं के ज़माने की झोंपड़ी को छोड़ना नहीं चाहेगा। तुम चाहे, उसके क़द के बराबर धन का ढेर लगा दो, तब भी वह उस झोंपड़ी को नहीं बेचेगा।'' जमीन्दार ने कहा था।

इस पर दोनों ने एक-एक हज़ार रुपयों का दाँव लगाया थाऔर जमीन्दारिन हार चुकी थी।

‘‘मैंने इस आशा से तुम्हें एक हज़ार रुपये देने को मान लिया था कि मैं दाँव में जीत जाऊँगी और जमीन्दार के द्वारा नई गाड़ी ख़रीदवा दूँगी। तुमने लोगों की बेतुकी सलाहें सुनकर मेरी आशा पर पानी फेर दिया। जानते हो? तुम्हें जिन लोगों ने झोंपड़ी न बेचने की सलाह दी, उन्हीं लोगों ने मेरे पास आकर अपनी झोंपड़ियाँ पाँच-पाँच सौ रुपयों में बेचने की इच्छा प्रकट की। दूसरों की बातों में आकर नुक़सान पा चुके हो। अब भी सही, अपनी अ़क्ल ठिकाने पर रखो।''

रामदीन लज्ज़ित हो अपना सिर झुकाये उल्टे पाँव लौट आया।