श्वेता का हाथ मेरे हाथ में था और मेरी आँखों से बह रहे आंसू उसकी हथेलियों पर गिर रहे थे। पर वह निष्प्रभाव सहमी सी चुपचाप बैठी थी। मुझे विश्वास ही नहीं हो रहा था कि ये वही श्वेता है जिसे देखते ही मुस्कुराने का दिल करता था। जिसकी मुस्कराहट ऐसी लगती थी जैसे गुलाब कि पंखुरियों के बीच एक मोती की माला राखी हो। आज श्वेता की उसी मुस्कराहट के लिए मैं कुछ भी करने को तैयार हूं।
मुझे आज भी याद है वो दिन जब मैंने कॉलेज से आते समय अपने पड़ोस के घर में टैम्पो से सामान उतरते देखा था। घर पहुचने पर मैंने देखा एक अनजान महिला मेरी मां के साथ बैठकर चाय पी रही थी। मुझे देखते ही मां ने बताया यह पूनम जी हैं। हमारे बगल वाले घर में रहने आई हैं। मैं उन्हें नमस्ते कर, उनका हाल-चाल पूछकर अन्दर कमरे में चला गया। अगले दिन सुबह मै अपने छत पर टहल रहा था, तभी मेरी नज़र पूनम आंटी की तरफ गई। वहां एक लड़की कपडे सुखा रही थी। उसके गीले बालों से पानी टपक रहा था। सांवली सलोनी, काली आंखें, मासूम सा चेहरा और पावों में पायल। इस सादगी में भी उसका प्राकृतिक सौन्दर्य निखर रहा था।
वह श्वेता ही थी। मै मंत्रमुग्ध सा उसकी सुन्दरता को निठुर रहा था। तभी अचानक उसकी नज़र मुझ पर पड़ी। अपनी ओर एक अनजान लड़के को इस तरह निहारते देख वो थोड़ा घबरा गई और नीचे चली गई। मैंने घड़ी की ओर देखा तो नौ बज रहे थे। मुझे भी कॉलेज जाना था , इसीलिए मै भी नीचे चला गया। कॉलेज में मैं अपने दोस्तों के साथ बैठा बातचीत कर रहा था कि तभी मेरी नज़र मेन गेट पर रुकी और एक ऑटो से निकलती एक परिचित चेहरे पर चली गई। यह वही लड़की थी जिसे मैंने छत पर देखा था।
सफ़ेद चूडीदार सलवार सूट, खुले बाल, सांवला चेहरा, माथे पर छोटी सी बिंदी, कानों में झुमके, हाथों में चूड़ियां और पैरों में पायल, दिल्ली जैसे बड़े शहर में सुन्दरता और सादगी का ऐसा मिश्रण मैंने पहली बार देखा था। सफ़ेद सूट पर लाल दुपट्टा ऐसा लग रहा था जैसे सफ़ेद बादलों के बीच सूर्य की लालिमा फैली हो। उसके मासूम से चेहरे पर घबराहट की हल्की सी रेखा यह स्पष्ट कर रही थी कि वो नए शहर, नए लोग और नए कॉलेज को देख थोड़ी विचलित हो रही थी।
उसने पहले नज़र उठाकर चारों तरफ देखा, फिर नज़रें झुकाकर धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगी। कॉलेज में नई छात्रा को आते देख कुछ पुराने छात्र-छात्राएं आगे बढे। सब लोगों को अपनी ओर आता देख वह थोड़ा और घबरा गई। लेकिन इससे पहले कि वे लोग उसे परेशान करते, मैंने दौड़कर उन्हें रोका। और बात परिचय तक टल गई। मेरे दोस्तों के द्वारा नाम पूछने पर मैंने पहली बार उसकी कोमल आवाज़ सुनी। उसका नाम था "श्वेता"।
उसका नाम और उसकी पोशाक देखकर ऐसा लग रहा था कि जैसे उसने अपने नाम को अपने रूप में ही ढाल लिया हो। बातचीत के क्रम में पता चला कि उसके पिता का तबादला दिल्ली हो गया था। इससे पहले वह पटना में कार्यरत थे। श्वेता कि पढाई वहीं चल रही थी। वहां कॉलेज के फर्स्ट ईयर की परीक्षा देकर पूरा परिवार दिल्ली उसके पिता के पास आ गया था। श्वेता का प्रवेश हमारी कक्षा में ही हुआ था। हमलोगों के बातचीत के लहजे और ठीक-ठाक बर्ताव के कारण धीरे-धीरे उसका संकोच और घबराहट जाता रहा। हमारी क्लास का समय हो रहा था इसीलिए मैंने श्वेता से भी साथ चलने को कहा। कक्षा में पहुचने के बाद मैंने पूरी कक्षा से उसका परिचय ऐसे करवाया जैसे मैं उसे काफी वक़्त से जानता था।
श्वेता बहुत ही मिलनसार लड़की थी। वह बहुत जल्दी सबसे घुलमिल गई। सभी छात्र उसे घेरे खड़े थे और वह हंस-हंस कर सबसे बात कर रही थी। न जाने क्यों लेकिन मै उसकी तरफ एक अनचाहा आकर्षण महसूस कर रहा था।
प्रोफ़ेसर साहब के आने के बाद एक बार फिर श्वेता का परिचय उनसे हुआ और सबने अपना-अपना स्थान ग्रहण किया। श्वेता आगे कि सीट पर खिड़की के पास बैठी थी। हल्की-हल्की हवा चल रही थी। श्वेता बड़े ध्यान से प्रोफ़ेसर साहब की बातें सुन रही थी। पर मेरा ध्यान तो बार-बार उसकी ओर ही जा रहा था। कभी-कभी हवा के झोंके उसके खुले बालों के कुछ लटों को उसके चेहरे पर बिखेर देते और वह अपने चेहरे से उन्हें हटाती तो उसका चेहरा किसी शायर की कल्पना की तरह लगने लगता।
किसी तरह क्लास ख़त्म हुई और हम कक्षा से बहार निकले। कक्षा से निकलने के बाद मैं उसके पास गया और साथ घर चलने को कहा। पहले तो वो थोड़ा हिचकिचाई पर बाद में मेरे कहने पर मान गई।
बस में बैठने के बाद हमारी बातचीत का क्रम आगे बढा। मैं उसके परिवार, स्वाभाव, रुचियों, अरुचियों के बारे में जानने लगा। वह भी काफी हद तक मुझसे खुल चुकी थी। वह अपने माता-पिता कि इकलौती संतान थी। पर इसके बावजूद भी वह बड़े ही सरल स्वाभाव की थी जो कि मुझे उसके तरफ सबसे ज्यादा आकर्षित कर रहा था। उससे बातचीत करते-करते समय कैसे बीत गया, पता ही नहीं चला। हमारा बस स्टॉप आ गया था। बस से उतरने के बाद हम दोनों अपने-अपने घर आ गए। अब हमारा मिलना-जुलना बढ़ गया। हम कॉलेज साथ जाते, साथ आते, फिर भी समय-समय पर मिलते रहते। जल्द ही हम बड़े अच्छे दोस्त बन गए। हमारा परिवार भी काफी नज़दीक आ चुका था, इसीलिए हमें कोई रोक-टोक नहीं थी।
इधर कॉलेज कि पढ़ाई समाप्त हो चुकी थी। हम दोनों ग्रैजुएट हो चुके थे। मेरा हमेशा से यही सपना रहा था कि मैं एक कंप्यूटर इंजिनियर बनू, इसीलिए मैंने बेंगलुरु के एक इंस्टिट्यूट से आगे की पढ़ाई करने का फैसला किया। श्वेता ने अपनी पढ़ाई वहीं से जारी रखने का फैसला किया। मुझे बेंगलुरु में दो साल रहकर पढ़ाई करनी थी। मुझे एक ओर अपने परिवार और श्वेता से दूर होने का दुःख था तो दूसरी ओर अपना सपना पूरा करने का निश्चय।
जिस दिन मैं जाने वाला था श्वेता सुबह ही मेरे घर आ गई। वह मंदिर से मेरे लिए प्रसाद लाई थी। उसने पहले मुझे टीका किया और प्रसाद दिया और बाद में मेरी ओर उपहार का एक छोटा सा पैकेट बढ़ाया। जिस पर लिखा था "मेरे सबसे अच्छे दोस्त के लिए"।
मैंने जब वह पैकेट खोला तो एक बहुत खुबसूरत कलाई घडी निकली। उसने मुस्कुराते हुए पूछा, " पसंद आई ?" मैंने कहा, " बहुत, पर इसकी क्या जरुरत थी ?"
उसने कहा, " इसी देखकर तुम कभी-कभी मुझे याद तो कर लिया करोगे।" मैंने मन-ही-मन कहा कि याद तो उन्हें किया जाता है जिसे दिल कभी भूल पाए और उसे तो मैं कभी भूल ही नहीं सकता था। मेरे पापा के साथ वो भी मुझे छोड़ने स्टेशन आई। उसने बड़े हक़ से मुझसे अपना ध्यान रखने को कहा। मैं कुछ कह तो नहीं पाया, पर हां में गर्दन हिला दी। ट्रेन आई, मैं चढ़ गया और ट्रेन चल पड़ी। हमने हाथ हिलाकर एक-दूसरे से विदा ली। मैंने देखा कि उसकी आंखें नम थीं पर चेहरे पे थी मुस्कराहट। जैसे वह मुझे रोते हुए विदा नहीं करना चाहती थी। बेंगलुरु पहुंचने के बाद भी हम पत्र और टेलिफोन के माध्यम से जुड़े रहे। जब भी मैं अकेला होता, उसका चेहरा मेरी आंखों से सामने घूमता रहता। कभी-कभी मैं भावुक हो जाया करता था और एक दिन मैं इसी भावुकता में बहकर मैंने उसे पत्र में कुछ ऐसी बातें लिख दी जिसे वो मेरे बारे में कभी सोच भी नहीं सकती थी।
मेरे उस पत्र के बाद काफी दिनों तक उसका कोई जवाब नहीं आया। लेकिन कुछ दिनों के बाद उसका पत्र आया। मैं बहुत खुश था। लेकिन पत्र पढने के बाद ही मैं आत्मग्लानि से भर गया। पत्र में श्वेता ने सिर्फ एक पंक्ति लिखी थी, " मैंने तुम्हे अपना सबसे अच्छा दोस्त माना था, पर आज तुमने मुझसे वह भी छीन लिया। इसे पढ़ने के बाद मेरे पास पछताने के सिवा और कोई चारा नहीं था। मैंने भावुकता में बहकर अपना सबसे प्यारा दोस्त भी खो दिया था। मैंने उसे माफ़ी मांगने के लिए बहुत सारे पत्र लिखे, टेलीफोन पर बात करने की कोशिश की, पर शायद मैंने उसके दिल को बहुत चोट पंहुचा दी थी।
मैं बहुत बेचैन और परेशान हो गया। पर मैंने खुद को यह कहकर दिलासा दिया कि पढ़ाई पूरी होते ही मैं उससे मिलकर सारी ग़लतफ़हमी दूर कर दूंगा। मुझे क्या पता था कि मेरा ऐसा सोचना ही मेरे जीवन की सबसे बड़ी भूल बन जाएगा, जिसका पश्चाताप मुझे जिंदगी भर रहेगा।
मेरी पढाई पूरी होने के बाद जब घर जाने का समय आया तो मैं ख़ुशी और उमंग से भर गया। मैंने अपने घरवाले, मां, पापा और श्वेता के लिए कई उपहार ख़रीदे। दिल्ली स्टेशन पर मुझे पिताजी लेने आये। उनका आशीर्वाद लेने के बाद मैंने उनसे घर का हाल-चाल पूछा और बाहर निकलकर ऑटो पर सवार हो गया।
स्टेशन से घर के सफ़र में मैं श्वेता के ख्यालों में डूबा रहा। मैं रस्ते भर यही सोचता रहा कि उससे मिलूंगा तो उससे क्या कहूंगा और वो क्या जवाब देगी ? मेरे उपहार को वो लेगी भी या नहीं ?
घर पहुंचने के बाद मेरा ध्यान उसके घर की ओर गया। वहां वो रौनक नहीं थी जो दो साल पहले हुआ करती थी। मेरे घर पर मेरी मां पलकें बिछाए मेरा इंतज़ार कर रही थी। पहुंचते ही उन्होंने मुझे अपने सीने से लगा लिया। मां से मिलने के बाद मेरी नज़र एक ओर खड़ी पूनम आंटी पर गई। मैंने पैर छूकर उनका आशीर्वाद और हालचाल लिया। उनसे श्वेता के बारे में पूछने पर थोडा उदास होते हुए बताया कि एक महीने पहले उसकी शादी हो गई और वो अपने ससुराल चली गई।
मुझे जैसे एक धक्का सा लगा। मेरी मां ने मुझे बताया कि उसने मुझे ये बात बताने के लिए इसीलिए मना किया था कि उस समय मेरी परीक्षा चल रही थी। आज मुझे अहसास हुआ कि उस समय देर करके मैंने कितनी बड़ी गलती की। आज मुझे लगा कि मैंने सही मायने में अपना सबसे अच्छा दोस्त खो दिया। रात भर मैं बेचैन और परेशान रहा। कभी मैं उसके लिए लाए झुमके को देखता तो कभी उसके द्वारा दी गई घड़ी को निहारता। पर सुबह होते-होते मैंने खुद को संभाला।
अब दिल में बस यही चाहत थी कि मेरा दोस्त जहां भी रहे खुश रहे। मैं खुद को सामान्य बनाने की कोशिश करने लगा। पर उसकी यादें अकेले में उसका पीछा नहीं छोड़ती थी। इधर मुंबई में मेरी नौकरी की अर्जी मंजूर हो गई और मैं कुछ दिन तक घर में रहने के बाद यहां चला आया। यहां मैं अपनी दिनचर्या में व्यस्त हो गया और धीरे-धीरे उसे भूलने लगा।
कहते हैं समय बीतते देर नहीं लगती। 6 महीने कैसे बीत गए, पता ही नहीं चला। अब मुझे घर की याद सताने लगी थी। मैंने दस दिन की छुट्टी ली और घर आ गया। मैंने सोचा कि अचानक घर पहुचकर सबको चौंका दूंगा, पर घर पहुचने पर वहां का माहौल देखकर बुरी तरह से चौंक गया। मेरे घर पर ताला लगा था। मेरी मां श्वेता के घर में बैठी श्वेता के रोते माता-पिता को सांत्वना दे रही थी। मैं घबरा गया और दौड़कर अन्दर गया। मुझे देखते ही सब चौंक गए। श्वेता की मां मुझसे लिपट कर रोने लगी. मुझे कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था, पर फिर भी आंटी को सांत्वना दे रहा था और बात जानने की कोशिश कर रहा था। पर वो थी कि बस रोये ही जा रही थीं।
मेरी मां आईं और उन्होंने आंटी को बिठाया, पानी पिलाया और फिर मैंने इशारे से उन्हें एक कोने में बुलाया। मेरे पास आकर मां ने बताया कि श्वेता की शादी के समय श्वेता के पिता ने लड़के वालों की सभी मांगों को पूरा किया था। शादी के कुछ दिनों के बाद तक सब ठीक-ठाक रहा। पर कुछ दिनों के बाद श्वेता को प्रताड़नाएं दी जाने लगीं। श्वेता ने इसके बारे में अपने माता-पिता को बताया तो उसके ससुराल वालों ने अपनी कुछ नई मांगे उनके सामने रख दीं। श्वेता के पिता ने अपनी बेटी की ख़ुशी के लिए इन्हें भी पूरा किया। पर इसके बाद ससुराल वालों की मांगे बढ़ने लगीं और उधर श्वेता पर शारीरिक और मानसिक यातनाएं।
श्वेता शायद अपने माता-पिता को परेशान नहीं करना चाहती थी। इसीलिए सारे जुल्म चुपचाप सहती रही। इसी घुटन और उत्पीड़न के कारण वह धीरे-धीरे अपना मानसिक संतुलन खोने लगी। उसकी मानसिक स्थिति बिगड़ती देखकर भी ससुराल वालों ने न तो उसका इलाज करवाया और न ही उसके माता-पिता को इस बात की खबर होने दी। उस पर अत्याचार और बढ़ गए और कुछ ही समय में मेरी मासूम श्वेता उस स्थिति में पहुच गयी जिसे लोग "पागल" कहते हैं। श्वेता के परिवार वालों की दुष्टता में अब भी कोई कमी नहीं आई थी। उन्होंने श्वेता को बिना किसी को बताये पागलखाने में भर्ती करा दिया।
आज सुबह जब किसी तरह अंकल-आंटी को यह बात किसी तरह पता चली तो वे दोनों भागे-दौड़े श्वेता के पास पहुचे। पर उसकी हालत देखते ही वे दोनों फूट-फूट कर रोने लगे। जिस बेटी को उन्होंने पलकों पर बिठाकर पाला था, आज उसकी स्थिति ऐसी थी कि कोई अजनबी भी उसे देखता तो उसकी भी आंखें भर आतीं।
मां मुझे लगातार बताये जा रही थी और मेरे आँखों से आंसू लगातार बहे जा रहे थे। मेरा दिल दुःख और गुस्से से भर गया था। मैं अंकल के पास गया और उनसे कानूनी कार्रवाई के बारे में कहा था तो उन्होंने कहा कि उन्होंने प्राथमिकी तो लिखा दी है, पर कुछ नहीं हो सकता क्योंकि श्वेता के ससुरालवालों ने पहले ही धोखे से श्वेता के दस्तखत तलाक के कागज पर ले लिए थे। श्वेता के बारे में पूछने पर पता चला कि उन्होंने उसे एक अच्छे मानसिक चिकित्सालय में दाखिल करवा दिया है।
मैं उसी वक़्त श्वेता से मिलने चल पड़ा। अस्पताल पहुचने पर मैंने देखा कि श्वेता के कमरे में और भी कई तरह के मानसिक रोगी थे। कोई हंस रहा था, कोई रो रहा था, कोई बोले जा रहा था, पर श्वेता अपने बेड़ पर चुपचाप सिमटकर नज़रे झुकाए बैठी थी। उसका सांवला रंग कला पड़ चुका था। उसकी वो प्यारी आंखें पीली पड़ चुकी थीं और काफी अन्दर तक धंस गई थीं। उसके बाल उलझे थे और काफी गंदे हो गए थे। जिन हाथों में कभी चूड़ियों कि खनखनाहट होती थी, आज वही हाथ जगह-जगह पर चोटों के निशान से भरे पड़े थे।
उसकी यह स्थिति देखर मेरा मन हुआ कि मैं उससे लिपटकर खूब रोऊं। मैं उसके पास गया, उसका चेहरा अपने हाथ में लिया और अपनी ओर उठाया, पर उसने मेरी ओर देखा तक नहीं। मेरी आंखों से आंसू बह रहे थे। मैंने उसे बहुत झकझोरा और मुझसे बात करने को कहा, पर मेरे सबसे प्यारे दोस्त ने अपनी पलकें भी नहीं झपकी।
थक कर मैंने उसका हाथ अपने हाथों में लिया और उससे कहा कि मेरी छोटी सी गलती माफ़ नहीं कर सकती हो? कैसी दोस्त हो तुम? मुझे उस गलती की इतनी बड़ी सजा मत दो।
मैं रोते हुए यही सोच रहा था कि काश मैंने वह पत्र न लिखा होता। काश मैं उसका सबसे अच्छा दोस्त बनकर ही रहा होता, तो शायद वो मुझसे अपने ऊपर हो रहे अत्याचार के बारे में बता पाती, तो शायद समय रहते मैं उसके लिए कुछ कर पाता। पर अब मेरे पास पछताने के सिवा और कोई चारा नहीं था और हाथ में था सिर्फ एक "काश"!
30 जनवरी 2010
प्रेम कहानीः काश! मैं वो खत न लिखता
Posted by Udit bhargava at 1/30/2010 11:00:00 pm 0 comments
सारी उम्र हम मर मर के जी लिये एक पल तो अब हमें जीने दो......जीने दो
Posted by Udit bhargava at 1/30/2010 07:50:00 pm 0 comments
28 जनवरी 2010
व्यायाम में बदलाव करें
अक्सर ही लोग सर्दियों में व्यायाम करना छोड़ देते हैं। ऐसा करने से उनके स्वास्थ्य पर प्रभाव दिखना शुरू हो जाता है। हाल ही में सेंट लुईस यूनिवर्सिटी के एक्सराइज एक्सपर्ट ने दिनचर्या को व्यवस्थित करने के लिए कुछ टिप्स दिए हैं। मौसम में आया बदलाव आपकी सोच पर प्रभाव डालता है। तापमान के घटने के साथ ही एथलीटों को अपने रूटीन में एडजस्ट करना चाहिए। इसके लिए आपको कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिए। .
व्यायाम में बदलाव करें
पार्क में दौड़ने, गोल्फ खेलने व तैराकी की बजाए कुछ क्रिएटिव करना चाहिए। इस दौरान आइस स्केटिंग, क्रास कंट्री स्कीइंग या योगा करना ज्यादा मुफीद होगा।
आप जो कपड़े पहन रहे हैं वह स्किन को हवा लेने लायक हो व व्यायाम के उपयुक्त हो। कॉटन कपड़ों को पहनने से बचना चाहिए। इसके बजाए गर्म कपड़ों को तरजीह देनी चाहिए।
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चोटों से बचें
अगर सर्दियों के मौसम में आप बास्केटबॉल या रॅकैटबॉल जैसे खेल में भागीदारी कर रहे हैं तो इस दौरान आपके गिरने या रपटने का खतरा बरकरार रहता है। इस दौरान आपको चोटों से बचना चाहिए।
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आप क्या खा व पी रहे हैं
सर्दियों के दौरान भरपूर खाना, एनर्जी ड्रिंक व मीठे पकवान को बढ़ावा दे रहे हैं तब आपको अपने फिटनेस पर ध्यान देना चाहिए। आपको साथ ही द्रव पदार्थ ज्यादा लेना चाहिए। लेकिन उसमें कैफीन व अल्कोहल वाली ड्रिंक
लेने से बचना चाहिए।
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Labels: योग-साधना
Posted by Udit bhargava at 1/28/2010 10:36:00 pm 0 comments
सलाद भी है फायदेमंद
Labels: आहार
Posted by Udit bhargava at 1/28/2010 10:34:00 pm 0 comments
चिता भस्म क्यों रमाते हैं शिव?
Labels: देवी-देवता
Posted by Udit bhargava at 1/28/2010 10:27:00 pm 0 comments
स्वस्थ और सुखी जीवन का रहस्य
पुराने समय में एक राजा था। राजा के पास सभी सुख-सुविधाएं और असंख्य सेवक-सेविकाएं हर समय उनकी सेवा उपलब्ध रहते थे। उन्हें किसी चीज की कमी नहीं थी। फिर भी राजा उसके जीवन के सुखी नहीं था। क्योंकि वह अपने स्वास्थ्य को लेकर काफी परेशान रहता था। वे सदा बीमारियों से घिरे रहते थे। राजा का उपचार सभी बड़े-बड़े वैद्यों द्वारा किया गया परंतु राजा को स्वस्थ नहीं हो सके। समय के साथ राजा की बीमारी बढ़ती जा रही थी। अच्छे राजा की बढ़ती बीमारी से राज दरबार चिंतित हो गया। राजा की बीमारी दूर करने के लिए दरबारियों द्वारा नगर में ऐलान करवा दिया गया कि जो भी राजा स्वास्थ्य ठीक करेगा उसे असंख्य स्वर्ण मुहरे दी जाएगी।
यह सुनकर एक वृद्ध राजा का इलाज करने राजा के महल में गया। वृद्ध ने राजा के पास आकर कहा, ‘महाराज, आप आज्ञा दे तो आपकी बीमारी का इलाज मैं कर सकता हूं।’ राजा की आज्ञा पाकर वह बोला, ‘आप किसी पूर्ण सुखी मनुष्य के वस्त्र पहनिए, आप अवश्य स्वस्थ और सुखी हो जाएंगे।’ वृद्ध की बात सुनकर राजा के सभी मंत्री और सेवक जोर-जोर से हंसने लगे। इस पर वृद्ध ने कहा ‘महाराज आपने सारे उपचार करके देख लिए है, यह भी करके देखिए आप अवश्य स्वस्थ हो जाएंगे।’ राजा ने उसकी बात से सहमत होकर के सेवकों को सुखी मनुष्य की खोज में राज्य की चारों दिशाओं में भेज दिया। परंतु उन्हें कोई पूर्ण सुखी मनुष्य नहीं मिला।
प्रजा में सभी को किसी न किसी बात का दुख था। अब राजा स्वयं सुखी मनुष्य की खोज में निकल पड़े। अत्यंत गर्मी के दिन होने से राजा का बुरा हाल हो गया और वह एक पेड़ की छाया में विश्राम हेतु रुका। तभी राजा को एक मजदूर इतनी गर्मी में मजदूरी करता दिखाई दिया। राजा ने उससे पूछा, ‘क्या, आप पूर्ण सुखी हो?’ मजदूर खुशी-खुशी और सहज भाव से बोला भगवान की कृपा से मैं पूर्ण सुखी हूं। यह सुनते ही राजा भी अतिप्रसन्न हुआ। उसने मजदूर को ऊपर से नीचे तक देखा तो मजदूर ने सिर्फ धोती पहनी थी और वह गाढ़ी मेहनत से पूरा पसीने से तर है। राजा यह देखकर समझ गया कि श्रम करने से ही एक आम मजदूर भी सुखी है और राजा कोई श्रम नहीं करने की वजह से बीमारी से घिरे रहते हैं। राजा ने लौटकर उस वृद्ध का उपकार मान उसे असंख्य स्वर्ण मुद्राएं दी। अब राजा स्वयं आराम और आलस्य छोड़कर श्रम करने लगे। परिश्रम से कुछ ही दिनों में राजा पूर्ण स्वस्थ और सुखी हो गए।
कथा का सार यही है कि आज हम भौतिक सुख-सुविधाओं के इतने आदि हो गए हैं कि हमारे शरीर की रोगों से लड़ने की शक्ति क्षीण हो जा रही है। इससे हम जल्द ही बीमारी की गिरफ्त में आ जाते हैं। अत: स्वस्थ और सुखी जीवन का रहस्य यही है कि थोड़ा बहुत शारीरिक परिश्रम जैसे योगा, ध्यान, भ्रमण आदि अवश्य करें।
Posted by Udit bhargava at 1/28/2010 10:25:00 pm 0 comments
जीवन का रंग हो जाए बसंती
पतझड़ में पेड़ों से पुराने पत्तों का गिरना और इसके बाद नए पत्तों का आना बसंत के आगमन का सूचक है। बसंत जीवन में सकारात्मक भाव, ऊर्जा, आशा और विश्वास जगाता है। यह भाव बनाए रखने के लिए ज्ञान की आवश्यकता होती है। यही कारण है कि ज्ञान और विद्या की देवी की पूजा के साथ बसंत ऋतु का स्वागत किया जाता है। माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी बसंत पंचमी के रूप में मनाई जाती है। 20 जनवरी को मनाया जाने वाला यह पर्व जीवन में उत्सव का प्रतीक है। यह बसंत ऋतु के आगमन का प्रथम दिन माना जाता है। यह दिन सरस्वती की जयंती के रूप में मनाया जाता है। इसे श्री पंचमी भी कहते हैं। इस दिन ज्ञान की प्राप्ति के लिए देवी सरस्वती की पूजा की परंपरा है।
इस दिन माता सरस्वती, भगवान कृष्ण और कामदेव व रति की पूजा की परंपरा है। पंचमी ज्ञान और भोग दोनों का पर्व है। जीवन में भोग हो लेकिन विवेकपूर्ण हो, इसलिए सरस्वती आवश्यक है। जीवन में सारे कर्म ज्ञान और विवेक के जरिए हों, ऐसा होता है तो जीवन में बसंत आता है जो नई आशाओं, सफलताओं का प्रतीक है।
इस दिन विद्या की देवी सरस्वती के जन्म हुआ था। धार्मिक मान्यता है कि बसंत पंचमी के दिन ही ब्रrा के मानस से सरस्वती पैदा हुई थी। माता सरस्वती को बुद्धि, ज्ञान, संगीत और कला की देवी माना जाता है। पुरातन काल में भी ऋषि-मुनियों के आश्रम एवं गुरुकुल में बालकों को विद्या प्राप्ति के लिए प्रवेश कराया जाता था। यह सिखाती है बसंत पंचमी बसंत पंचमी को सरस्वती मां की पूजा की जाती है। सरस्वती ज्ञान और विद्या की देवी है। सरस्वती की आराधना से विद्या आती है, विद्या से विनम्रता, विनम्रता से पात्रता, पात्रता से धन और धन से सुख मिलता है। बसंत में वामदेव और शनि की पूजा की भी परंपरा है। सनातन धर्म में काम को पुरुषार्थ कहा गया है। कामदेव की पूजा कर इसी पुरुषार्थ की प्राप्ति की जाती है। पंचमी बसंत ऋतु के आगमन का प्रथम दिन होता है। कृष्ण ने गीता में स्वयं को ऋतुओं में बसंत कहा है। जिसका अर्थ है बसंत की तरह उल्लास से भरना । बसंत ऋतु फूलों का मौसम है, फूलों की तरह मुस्कुराहट फैलाएं। बसंत श्रृंगार की ऋतु है। जो व्यक्ति को व्यवस्थित रखने और सजे-धजे रहने की सीख देती है। बसंत का रंग बासंती होता है। जो त्याग का, विजय का रंग है, अपने विकारों का त्याग करें एवं कमजोरियों पर विजय पाएं। उल्लास से भरे हुए रहें। वसंत में सूर्य उत्तरायण होता है। जो संदेश देता है कि सूर्य की भांति हम भी प्रखर और गंभीर बनें।
प्राकृतिक दृष्टि से बसंत को ऋतुओं का राजा कहा गया है। क्योंकि बसंत एकमात्र ऐसी ऋतु है जिसमें उर्वरा शक्ति यानि उत्पादन क्षमता अन्य ऋतु की अपेक्षा बढ़ जाती है। वृक्षों में नए पत्ते आते हैं, फसल पकती है और सृजन की क्षमता बढ़ जाती है। मौसम न ज्यादा ठंडा न ही ज्यादा गरम होता है, जो कार्यक्षमता बढ़ाता है। बसंत पंचमी के साथ ही शीत ऋतु की विदाई होती है । इसके बाद गर्मी शुरू होती है। इसलिए कहा गया है बसंत में गर्म वस्तुओं को सेवन नहीं करना चाहिए । पंचमी को रक्त विकारों से बचाव के लिए आम के बोर भी खाए जाते हैं।
Posted by Udit bhargava at 1/28/2010 09:52:00 pm 0 comments
24 जनवरी 2010
श्री सन्तोषी माता जी की आरती
जय सन्तोषी माता, मैया जय सन्तोषी माता ।
अपने सेवक जन की सुख सम्पति दाता ।
मैया जय सन्तोषी माता ।
सुन्दर चीर सुनहरी माँ धारण कीन्हो
मैया माँ धारण कींहो
हीरा पन्ना दमके तन शृंगार कीन्हो
मैया जय सन्तोषी माता ।
गेरू लाल छटा छबि बदन कमल सोहे
मैया बदन कमल सोहे
मंद हँसत करुणामयि त्रिभुवन मन मोहे
मैया जय सन्तोषी माता ।
स्वर्ण सिंहासन बैठी चँवर डुले प्यारे
मैया चँवर डुले प्यारे
धूप दीप मधु मेवा, भोज धरे न्यारे
मैया जय सन्तोषी माता ।
गुड़ और चना परम प्रिय ता में संतोष कियो
मैया ता में सन्तोष कियो
संतोषी कहलाई भक्तन विभव दियो
मैया जय सन्तोषी माता ।
शुक्रवार प्रिय मानत आज दिवस सो ही,
मैया आज दिवस सो ही
भक्त मंडली छाई कथा सुनत मो ही
मैया जय सन्तोषी माता ।
मंदिर जग मग ज्योति मंगल ध्वनि छाई
मैया मंगल ध्वनि छाई
बिनय करें हम सेवक चरनन सिर नाई
मैया जय सन्तोषी माता ।
भक्ति भावमय पूजा अंगीकृत कीजै
मैया अंगीकृत कीजै
जो मन बसे हमारे इच्छित फल दीजै
मैया जय सन्तोषी माता ।
दुखी दरिद्री रोगी संकट मुक्त किये
मैया संकट मुक्त किये
बहु धन धान्य भरे घर सुख सौभाग्य दिये
मैया जय सन्तोषी माता ।
ध्यान धरे जो तेरा वाँछित फल पायो
मनवाँछित फल पायो
पूजा कथा श्रवण कर घर आनन्द आयो
मैया जय सन्तोषी माता ।
चरण गहे की लज्जा रखियो जगदम्बे
मैया रखियो जगदम्बे
संकट तू ही निवारे दयामयी अम्बे
मैया जय सन्तोषी माता ।
सन्तोषी माता की आरती जो कोई जन गावे
मैया जो कोई जन गावे
ऋद्धि सिद्धि सुख सम्पति जी भर के पावे
मैया जय सन्तोषी माता .
Labels: देवी-देवता
Posted by Udit bhargava at 1/24/2010 10:57:00 pm 0 comments
श्री हनुमान जी की आरती
आरति कीजै हनुमान लला की ।
दुष्ट दलन रघुनाथ कला की ॥
जाके बल से गिरिवर काँपे
रोग दोष जाके निकट न झाँके ।
अंजनि पुत्र महा बलदायी
संतन के प्रभु सदा सहायी ॥
आरति कीजै हनुमान लला की ।
दे बीड़ा रघुनाथ पठाये
लंका जाय सिया सुधि लाये ।
लंका सौ कोटि समुद्र सी खाई
जात पवनसुत बार न लाई ॥
आरति कीजै हनुमान लला की ।
लंका जारि असुर संघारे
सिया रामजी के काज संवारे ।
लक्ष्मण मूर्छित पड़े सकारे
आन संजीवन प्राण उबारे ॥
आरति कीजै हनुमान लला की ।
पैठि पाताल तोड़ि यम कारे
अहिरावन की भुजा उखारे ।
बाँये भुजा असुरदल मारे
दाहिने भुजा संत जन तारे ॥
आरति कीजै हनुमान लला की ।
सुर नर मुनि जन आरति उतारे
जय जय जय हनुमान उचारे ।
कंचन थार कपूर लौ छाई
आरती करति अंजना माई ॥
आरति कीजै हनुमान लला की ।
जो हनुमान जी की आरति गावे
बसि वैकुण्ठ परम पद पावे ।
आरति कीजै हनुमान लला की ।
दुष्ट दलन रघुनाथ कला की ..
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Posted by Udit bhargava at 1/24/2010 10:53:00 pm 0 comments
~~~ साई बाबा की आरती~~~
आरती उतारे हम तुम्हारी साईँ बाबा ।
चरणों के तेरे हम पुजारी साईँ बाबा ॥
विद्या बल बुद्धि, बन्धु माता पिता हो
तन मन धन प्राण, तुम ही सखा हो
हे जगदाता अवतारे, साईँ बाबा ।
आरती उतारे हम तुम्हारी साईँ बाबा ॥
ब्रह्म के सगुण अवतार तुम स्वामी
ज्ञानी दयावान प्रभु अंतरयामी
सुन लो विनती हमारी साईँ बाबा ।
आरती उतारे हम तुम्हारी साईँ बाबा ॥
आदि हो अनंत त्रिगुणात्मक मूर्ति सिंधु
करुणा के हो उद्धारक मूर्ति
शिरडी के संत चमत्कारी साईँ बाबा ।
आरती उतारे हम तुम्हारी साईँ बाबा ॥
भक्तों की खातिर, जनम लिये तुम
प्रेम ज्ञान सत्य स्नेह, मरम दिये तुम
दुखिया जनों के हितकारी साईँ बाबा ।
आरती उतारे हम तुम्हारी साईँ बाबा ॥
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Posted by Udit bhargava at 1/24/2010 10:48:00 pm 0 comments
~~~वृहस्पतिवार व्रत की आरती~~~
जय जय आरती राम तुम्हारी।
राम दयालु भक्त हितकारी॥
जनहित प्रगटे हरि व्रतधारी।
जन प्रहलाद प्रतिज्ञा पारी॥
द्रुपदसुता को चीर बढ़ायो।
गज के काज पयादे धायो॥
दस सिर छेदि बीस भुज तोरे।
तैंतीसकोटि देव बंदी छोरे॥
छत्र लिए सर लक्ष्मण भ्राता।
आरती करत कौशल्या माता॥
शुक शारद नारदमुनि ध्यावैं।
भरत शत्रुघन चँवर ढुरावैं॥
राम के चरण गहे महावीरा।
ध्रुव प्रहलाद बालिसुर वीरा॥
लंका जीति अवध हरि आए।
सब संतन मिलि मंगल गाए॥
सीय सहित सिंहासन बैठे। रामा।
सभी भक्तजन करें प्रणामा॥
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Posted by Udit bhargava at 1/24/2010 10:46:00 pm 0 comments
~~~॥श्री शनिदेव जी की आरती॥~~~
जय जय श्री शनिदेव भक्तन हितकारी।
सूरज के पुत्र प्रभु छाया महतारी॥ जय॥
श्याम अंक वक्र दृष्ट चतुर्भुजा धारी।
नीलाम्बर धार नाथ गज की असवारी॥जय॥
क्रीट मुकुट शीश रजित दिपत है लिलारी।
मुक्तन की माला गले शोभित बलिहारी॥ जय॥
मोदक मिष्ठान पान चढ़त हैं सुपारी।
लोहा तिल तेल उड़द महिषी अति प्यारी॥ जय॥
देव दनुज ऋषि मुनि सुमरिन नर नारी।
विश्वनाथ धरत ध्यान शरण हैं तुम्हारी ॥जय॥
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Posted by Udit bhargava at 1/24/2010 10:45:00 pm 0 comments
बुधवार व्रत की आरती~~~
आरती युगलकिशोर की कीजै।
तन मन धन न्योछावर कीजै॥
गौरश्याम मुख निरखन लीजै।
हरि का रूप नयन भरि पीजै॥
रवि शशि कोटि बदन की शोभा।
ताहि निरखि मेरो मन लोभा॥
ओढ़े नील पीत पट सारी।
कुंजबिहारी गिरिवरधारी॥
फूलन सेज फूल की माला।
रत्न सिंहासन बैठे नंदलाला॥
कंचन थार कपूर की बाती।
हरि आए निर्मल भई छाती॥
श्री पुरुषोत्तम गिरिवरधारी।
आरती करें सकल नर नारी॥
नंदनंदन बृजभान किशोरी।
परमानंद स्वामी अविचल जोरी॥
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Posted by Udit bhargava at 1/24/2010 10:43:00 pm 0 comments
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