20 मार्च 2010

इस्लाम धर्म - मुसलमानों के कर्तव्य और शरियत

इस्लाम के ५ स्तंभ

इस्लाम के दो प्रमुख वर्ग हैं, शिया और सुन्नी. दोनों के अपने अपने इस्लामी नियम हैं लेकिन बुनयादी सिद्धांत मिलते जुलते हैं। सुन्नी इस्लाम में हर मुसलमान के ५ आवश्यक कर्तव्य होते हैं जिन्हें इस्लाम के ५ स्तंभ भी कहा जाता है। शिया इस्लाम में थोड़े अलग सिद्धांतों को स्तंभ कहा जाता है। सुन्नी इस्लाम के ५ स्तंभ हैं-

शहादाह- इस का शाब्दिक अर्थ है गवाही देना। इस्लाम में इसका अर्थ मे इस अरबी घोषणा से हैः
अरबी:ﻻ ﺍﻟﻪ ﺍﻻﺍ ﷲ ﻣﺤﻤﺪﺍ ﻟﺮﺳﻮﻝﺍ ﷲ
हिंदी: ईश्वर के सिवा और कोई पूजनीय (पूजा के योग्य) नहीं और मुहम्मद ईश्वर के रसूल हैं।

इस घोषणा से हर मुसलमान ईश्वर की एकेश्वरवादिता और मुहम्मद साहब के रसूल होने के अपने यक़ीन की गवाही देता है। यह इस्लाम का सबसे अहम सिद्धांत है। हर मुसलमान के लिये अनिवार्य है कि वह इसे स्वींकारे। एक गैर मुस्लिम को इस्लाम कबूल करने के लिये केवल इसे स्वींकार कर लेना काफी है।

सलात- इसे हिन्दुस्तानी में नमाज़ भी कहते हैं। यह एक प्रकार की प्रार्थना है जो अरबी भाषा में एक विशेष नियम से पढ़ी जाती है। इस्लाम के अनुसार नमाज़ ईश्वर के प्रति मनुष्य की कृतज्ञता दर्शाती है। यह मक्का की ओर मुँह कर के पढ़ी जाती है। हर मुसलमान के लिये दिन में ५ बार नमाज़ें पढ़ना अनिवार्य है। मजबूरी और बीमारी की हालत में इसे टाला जा सकता है और बाद में समय मिलने पर छूटी हूई नमाज़ें पढ़ी जा सकती हैं।

ज़कात- यह एक सालाना दान है जो कि हर आर्थिक रूप से सक्षम मुसलमान को गरीबों को देना अनिवार्य है। अधिकतम मुसलमान अपनी सालाना आय का २.५% ज़कात में देते हैं। यह एक धार्मिक कर्तव्य इस लिये है क्योंकि इस्लाम के अनुसार मनुष्य की पूंजी असल में ईश्वर की अमानत है।

सौम- इस के अनुसार इस्लामी कैलेण्डर के नवें महीने में सभी सक्षम मुसलमानों के लिये सूर्योदय से सूर्यास्त तक वृत रख्नना अनिवार्य है। इस वृत को रोज़ा भी कहते हैं। रोज़े में हर प्रकार का खाना-पीना वर्जित है। अन्य व्यर्थ कर्मों से भी अपने आप को दूर रखा जाता है। यौनिक गतिविधियाँ भी वर्जित हैं। मजबूरी में रोज़ा रखना ज़रूरी नहीं होता। रोज़ा रखने के कई उद्देश्य हैं जिन में से दो प्रमुख उद्देश्य यह हैं कि दुनिया की बाक़ी आकर्षणों से ध्यान हटा कर ईश्वर से नज़दीकी महसूस की जाए और दूसरा यह कि ग़रीबों, फ़कीरों और भूखों की समस्याओं और मुश्किलों का एहसास हो।
हज- हज उस धार्मिक तीर्थ यात्रा का नाम है जो इस्लामी कैलेण्डर के १२वें महीने में मक्का के शहर में
जाकर की जाती है। हर समर्पित मुसलमान (जो ह्ज का खर्च‍‍ उठा सकता हो और मजबूर न हो) के लिये जीवन में एक बार इसे करना अनिवार्य है।

शरियत और इस्लामी न्यायशास्त्र
मुसलमानों
के लिये इस्लाम जीवन के हर पहलू पर अपना असर रखता है। इस्लामी सिद्धांत मुसलमानों के घरेलू जीवन, उनके राजनैतिक या आर्थिक जीवन, मुसलमान राज्यों की विदेश निति इत्यादि पर प्रभाव डालते हैं। शरियत उस समुच्चय निति को कहते हैं जो इस्लामी कानूनी परंपराओं और इस्लामी व्यक्तिगत और नैतिक आचरणों पर आधारित होती है। शरियत की निति को नींव बना कर न्यायशास्त्र के अध्य्यन को फिक़ह कहते हैं। फिक़ह के मामले में इस्लामी विद्वानों की अलग अलग व्याख्याओं के कारण इस्लाम में न्यायशास्त्र कई भागों में बट गया और कई अलग अलग न्यायशास्त्र से संबंधित विचारधारओं का जन्म हुआ। इन्हें मज़हब कहते हैं। सुन्नी इस्लाम में प्रमुख मज़हब हैं-

हनफी मज़हब- इसके अनुयायी दक्षिण एशिया और मध्य एशिया में हैं।
मालिकी मज़हब-इसके अनुयायी पश्चिम अफ्रीका और अरब के कुछ हिस्सों में हैं।
शाफ्यी मज़हब-इसके अनुयायी अफ्रीका पूर्वी अफ्रीका, अरब के कुछ हिस्सों और दक्षिण पूर्व एशिया में हैं।

हंबली मज़हब- इसके अनुयायी सऊदी अरब में हैं।
अधिकतम मुसलमानों का मानना है कि चारों मज़हब बुनियादी तौर पर सही हैं और इनमें जो मतभेद हैं वह न्यायशास्त्र की बारीक व्याख्याओं को लेकर है।


इस्लाम धर्म - अल्लाह



अल्लाह (अरबी : अल्लाह्,الله या اللّه या اللّٰه या ﺍﷲ) अरबी भाषा में ईश्वर का नाम है । ज़्यादातर इसे मुसलमान अपने एकमात्र परमेश्वर के लिये प्रयुक्त करते हैं । अल्लाह नाम है एक अल्लाह का। जो सच मे है। जिसके बारे मे लगभग एक लाख चौबिस हजार पैगम्बरों ने बताया है। और उसका होना साबित किया है। हम जिस पर् इमान लाते है। हम इमान गैब यानी जिसे कभी देखा नहीं या ये मान लो जिसके बारे में हम ज्यादा सोच नहीं सकते।क्युकि उसकी जात वारा उल वारा यानि मुक्म्मल जिस को किसी कि जरूरत नही, ना हमारी तरह खाने कि, न सोने कि, ना सास लेने कि क्युकि वो अजर है अमर है, यानि ना बुडडा हो सकता है ना ही उसको मोत आ सकती है सिर्फ उसी पर भरोसा कर सकते हैं।

मान्यता
इस्लाम में मान्यता है कि अल्लाह अदृश्य पराशक्ति है। उसका कोई रूप (मानव-समान या कोई अन्य) नहीं,वह इस कायनात मे सबसे बलवान है। उसका कोई पिता-माता या पुत्र-पुत्री नहीं। उसकी मूर्ति या चित्र बनाने पर सख़्त मनाही है। सिर्फ़ वही पूजा योग्य है। वो सर्वशक्तिमान, सर्वज्ञ और सर्वव्यापक है। क़ुरान में अल्लाह के ९९ नाम दिये गये हैं। अल्लाह की ख़िदमत में कई फ़रिश्ते भी हैं। उसीने मुहम्मद स्,अ,व्, को क़ुरान सुनवाया।

इस्लाम धर्म - इस्लामी धर्म मत




इस्लामी धर्म के प्रमुख मत यह हैं

ईश्वर की एकता
मुसलमान एक ही ईश्वर को मानते हैं, जिसे वो अल्लाह (फ़ारसी: ख़ुदा) कहते हैं। एकेश्वरवाद को अरबी में तौहीद कहते हैं, जो शब्द वाहिद से आता है जिसका अर्थ है एक। इस्लाम में इश्वर को मानव की समझ से ऊपर समझा जाता है। मुसलमानों से इश्वर की कल्पना करने के बजाय उसकी प्रार्थना और जय जयकार करने को कहा गया है। मुसलमानों के अनुसार इश्वर अद्वितीय हैः उसके जैसा और कोई नहीं। इस्लाम में ईश्वर की एक विलक्षण अवधारणा पर ज़ोर दिया गया है। साथ में यह भी माना जाता कि उसकी पूरी कल्पना मनुष्य के बस में नहीं है।

कहो: है ईश्वर एक और अनुपम।
है ईश्वर सनातन, हमेशा से हमेशा तक जीने वाला।
उसकी न कोई औलाद है न वह खुद किसी की औलाद है।
और उस जैसा कोई और नहीं॥”
(कुरान, सूरत ११२, आयते १ - ४)

नबी और रसूल
इस्लाम के अनुसार ईश्वर ने धरती पर मनुष्य के मार्गदर्शन के लिये समय समय पर किसी व्यक्ति को अपना दूत बनाया। यह दूत भी मनुष्य जाति में से होते थे और ईश्वर की ओर लोगों को बुलाते थे। ईश्वर इन दूतों से विभिन्न रूपों से समपर्क रखते थे। इन को इस्लाम में नबी कहते हैं। जिन नबियों को इश्वर ने स्वयं शास्त्र या धर्म पुस्तकें प्रदान कीं उन्हें रसूल कहते हैं। मुहम्मद साहिब भी इसी कड़ी का हिस्सा थे। उनको जो धार्मिक पुस्तक प्रदान की गयी उसका नाम कुरान है। कुरान में ईश्वर के २५ अन्य नबियों का वर्णन है। स्वयं कुरान के अनुसार ईश्वर ने इन नबियों के अलावा धरती पर और भी कई नबी भेजे हैं जिनका वर्णन कुरान में नहीं है।

सभी मुसलमान ईश्वर द्वारा भेजे गये सभी नबियों की वैधता स्वींकार करते हैं और मुसलमान मुहम्मद साहब को ईशवर का अन्तिम नबी मानते हैं। अहमदिय्या समुदाय के लोग मुहम्मद साहब को अन्तिम नबी नहीं मानते हैं और स्वयं को इस्लाम का अनुयायी भी कहते हैं। भारत के उच्चतम न्यायालय के अनुसार उनको भारत में मुसलमान माना जाता है।[३] कई अन्य प्रतिष्ठित मुसलमान विद्वान समय समय पर पहले भी मुहम्मद साहब के अन्तिम नबी होने पर सवाल उठा चुके हैं।[४][५][६]


धर्म पुस्तकें
मुसलमानों के लिये ईश्वर द्वारा रसूलों को प्रदान की गयी सभी धार्मिक पुस्तकें वैध हैं। मुसलमनों के अनुसार कुरान ईश्वर द्वारा मनुष्य को प्रदान की गयी अन्तिम धार्मिक पुस्तक है। कुरान में चार और पुस्तकों की चर्चा है:

सहूफ़ ए इब्राहीमी जो कि इब्राहीम को प्रदान की गयीं। यह अब लुप्त हो चुकी है।
तौरात जो कि मूसा को प्रदान की गयी।
ज़बूर जो कि दाउद को प्रदान की गयी।
इंजील जो कि ईसा को प्रदान की गयी। मुसलमान यह समझते हैं कि ईसाइयों और यहूदियों ने अपनी पुस्तकों के संदशों में बदलाव कर दिये हैं। वह इन चारों के अलावा अन्य धार्मिक पुसतकों की होने की सम्भावना से इन्कार नहीं करते हैं।

फरिश्ते
मुसलमान फरिश्तों (अरबी में मलाइका) के अस्तित्व को मानते हैं। उनके अनुसार फरिश्ते स्वयं कोई इच्छाश्क्ति नहीं रखते और केवल ईश्वर की आज्ञा का पालन ही करते हैं। वह खालिस रोशनी से बनीं हूई अमूर्त और निर्दोष हस्तियों हैं जो कि न मर्द हैं न औरत बल्कि इंसान से हर लिहाज़ से अलग हैं। हालांकि अगणनीय फरिश्ते है पर चार फरिश्ते कुरान में प्रभाव रखते हैं:

जिब्राईल (Gabriel) जो नबीयों और रसूलों को इश्वर का संदेशा ला कर देता है।
इज़्राईल (Azrael) जो इश्वर के समादेश से मौत का फ़रिश्ता जो इन्सान की आत्मा ले जाता है।
मीकाईल (Michael) जो इश्वर के समादेश पर मौसम बदलनेवाला फ़रिश्ता।
इस्राफ़ील (Raphael) जो इश्वर के समादेश पर कयामत के दिन की शुरूवात पर एक आवाज़ देगा।

कयामत
मध्य एशिया के अन्य धर्मों की तरह इस्लाम में भी कयामत का दिन माना जाता है। इसके अनुसार ईशवर एक दिन संसार को समाप्त करेगा। यह दिन कब आयेगा इसकी सही जानकारी केवल ईश्वर को ही है। इसे मुसलमान कयामत का दिन कहते हैं। इस्लाम में शारीरिक रूप से सभी मरे हुए लोगों का उस दिन जी उठने पर बहुत ज़ोर दिया गया है। उस दिन हर इनसान को उसके अच्छे और बुरे कर्मों का फल दिया जाएगा। इस्लाम में हिन्दू मत की तरह समय के परिपत्र होने की अवधारणा नहीं है। कयामत के दिन के बाद दोबारा संसार की रचना नहीं होगी।

तक़दीर
मुसलमान तक़दीर को मानते हैं। तक़दीर का मतलब इनके लिये यह है कि ईश्वर बीते हुए समय, वर्तमान और भविष्य के बारे में सब जानता है। कोई भी चीज़ उसकी अनुमति के बिना नहीं हो सकती है। मनुष्य को अपनी मन मरज़ी से जीने की आज़ादी तो है पर इसकी अनुमति भी ईश्वर ही के द्वारा उसे दी गयी है। ईस्लाम के अनुसार मनुष्य अपने कुकर्मों के लिये स्वयं जिम्मेदार इस लिये है क्योंकि उन्हें करने या न करने का निर्णय ईश्वर मनुष्य को स्वयं ही लेने देता है। उसके कुकर्मों का भी पूर्व ज्ञान ईश्वर को होता है।

शबे-बरा'त: रब को राजी करने के जतन

जब मालिक की रहमत पूरे जोश पर हो तो बंदे भला क्यों पीछे रहें। 6 अगस्त को शबे-बरा"त पर रोशनी से जगमगाती मस्जिदों-घरों में लोग अपने लिए रब की रहमत माँग रहे थे तो कब्रिस्तानों में जाकर दिवंगतों के लिए दुआ कर रहे थे। कुछ जगहों पर जलसे भी हुए। जहाँ दीन पर चलते हुए जिंदगी गुजारने की बातें समझाई गईं।

शबे-बरा"त की पाक रात में जामिआ गौसिया गरीब नवाज की जानिब से 17वीं अहले-सुन्नत कॉन्फ्रेंस बजरिया में आयोजित की गई। मारहरा (उप्र) से आए मौलाना सैयद नजीब हैदर ने कहा कि हिन्दुस्तान हमारा मुल्क है। हम इसके वफादार ही नहीं, जिम्मेदार भी हैं। वफादार तो बिक सकता है, जिम्मेदार कभी नहीं बिकता। रदौली से आए मौलाना मुस्तुफा के मुताबिक मुसलमान का ईमान मजबूत होगा तो अमल भी पुख्ता होगा। मजहबे-इस्लाम पर चलेंगे तो अल्लाह के नेक बंदे व बेहतरीन इंसान बनेंगे।

बस्ती से तशरीफ लाए मुफ्ती कमरूद्दीन ने कहा कि मुल्क से जहालत व बेरोजगारी का खात्मा करना होगा, तभी हम सब तरक्की कर सकते हैं। मुफ्ती शम्सुद्दीन (बहराइच) ने कहा कि नमाज पढ़ने से इंसान की भीतरी व बाहरी यानी दिल की व जिस्म की सफाई होती है। जिसका दिल पाक होगा वह किसी को नुकसान पहुँचाने की बात भी नहीं सोच सकता।

मौलाना रैहान फारुकी ने शबे-बरा"त की अहमियत बयान करते हुए कहा कि यह रमजान आने का ऐलान है। अब हमें रमजान की तैयारियों में लग जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि हम सबको मिलकर तालीम पर तवज्जो देनी चाहिए। इसके बिना न दीन दुरुस्त हो सकता है न दुनिया। लोगों को बुरे कामों से बचने की सीख देते हुए मौलाना ने बताया कि आज की रात रहमतों की रात है लेकिन बुराई करने वालों जैसे शराबी, माँ-बाप का कहना न मानने वाले, लोगों के हक मारने वालों की सुनवाई नहीं होती।

शहर में रात भर गहमागहमी का समाँ था। मस्जिदों व भीड़भाड़ वाले इलाकों में जगह-जगह चाय का खुसूसी इंतजाम किया गया था। रोजा रखने वालों के लिए कुछ जगह "सहरी" की व्यवस्था भी थी। शबे-बरा"त की शब बेदारी (रात्रि जागरण) के बाद जुमे को दिन में लोगों ने रोजा रखकर अल्लाह तआला का शुक्र अदा किया कि उसने शबे-बरा"त की कद्र करने व इस रहमतों वाली रात में इबादतें करने की समझ व हिम्मत दी।

सुन्नते-इब्राहीमी: हज की इब्तिदा

हज इस्लाम के पाँच बुनियादी स्तंभों में से एक है। यह अनिवार्य इबादत उन तमाम मुसलमानों पर फ़र्ज़ है, जो इसकी हैसियत रखते हैं। ग़रीब और कमज़ोर बंदों पर यह फ़र्ज़ नहीं लेकिन सवाब और इनाम के लिए वे इसे करें तो इसका प्रतिफल बहुत है। शब्द हज का अर्थ पवित्र स्थल के दर्शन का इरादा करना है।

इस्लामिक मान्यताओं के अनुसार हज यानी काबा शरीफ़ के दर्शन करना, एक निश्चित समयावधि में कुछ मख्सूस मुक़ामात पर हज के क्रियाकलाप उन तरीक़ों से संपन्न करना जैसे कि हज़रत मुहम्मद ने किए थे। भारत से हर साल एक लाख के क़रीब श्रद्धालु हज के लिए सऊदी अरब के शहर मक्का शरीफ़ जाते हैं और हज अदा करते हैं।

हज का आग़ाज़ : हज की इब्तिदा हजारों साल पहले हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम के ज़माने से हुई है। इसीलिए इसे सुन्नते इब्राहीमी भी कहा जाता है। पहले भी इसका ज़िक्र आ चुका है कि हज़रत इब्राहीम को ईसाई, मुसलमान और यहूदी समान रूप से अल्लाह का नबी मानते हैं। सो अल्लाह के विशेष दूत हज़रत इब्राहीम ऐसी प्रतिष्ठित शख़्सियत हुए, दुनिया की बड़ी आबादी जिनका सम्मान करती है।

इस प्रतिष्ठा में इज़ाफ़ा इससे भी होता है कि इनके वंश में कई नबी पैदा हुए। इन्हीं हज़रत इब्राहीम को अल्लाह तआला कितना प्रिय रखते थे कि क़ुरआन में उन्हें ख़लीलुल्लाह यानी अल्लाह का दोस्त कहा गया है। हज से हज़रत इब्राहीम को ख़ास निस्बत है।

एक तो यह कि वर्तमान में हज का जो स्वरूप है उसकी इब्तिदा हज़रत इब्राहीम से ही हुई। इसके बहुत से क्रियाकलाप हज़रत इब्राहीम की यादगार हैं। उनके साथ उस समय रब के आदेश से जो कुछ घटा, उसकी याद दिलाती हुई कई चीज़ें हज में हर साल दोहराई जाती हैं।

काबा शरीफ़ का पुनर्निर्माण भी अल्लाह पाक के हुक्म से हज़रत इब्राहीम ने ही किया। सऊदी अरब के शहर मक्का में स्थित काबा शरीफ़ को बैतुल्लाह यानी अल्लाह का घर भी कहा जाता है। कुरआन में इसकी बाबद आया है कि 'निस्संदेह इबादत के लिए पहला घर जो ' मानव के लिए' बनाया गया वही है जो मक्का में है, बरकत वाला और सर्वथा मार्गदर्शन, संसार वालों के लिए।'

नमाज़ के वक़्त सारी दुनिया के मुसलमान इसी की तरफ मुँह करके नमाज़ अदा करते हैं। हज में बुनियादी अहमियत इसी ख़ाना-ए-ख़ुदा (अल्लाह के घर) की ज़ियारत (दर्शन) और इसके तवाफ़ (परिक्रमा) की है। हज की ज़्यादातर इबादतें इसी ख़ाना-ए-काबा के आसपास संपन्न होती हैं।

इस्लामी साल के आख़िरी माह ज़िलहहिज्ज की 8, 9 व 10 तारीख़ को हज किया जाता है। साल के दीगर दिनों में हज नहीं किया जा सकता। ठीक उसी तरह जैसे इस्लाम की दीगर अनिवार्य इबादतें कहीं भी की जा सकती हैं, लेकिन हज काबे के आसपास मक्का के चुनिंदा मुक़ामात पर किया जा सकता है। 8 ज़िलहिज्ज से हज की इबादतें शुरू होती हैं। 9 ज़िलहिज्ज को मक्का से 9 मील दूर पूरब में स्थित मैदान-ए-अराफ़ात में जाकर कुछ मख़्सूस इबादतें करना अनिवार्य है। 10 ज़िलहिज्ज को कुर्बानी की जाती है।

तैयारियाँ
: हज के सफ़र पर पूरी तैयारी से जाना ज़रूरी है। इसके लिए सफ़र ख़र्च ले जाने का हुक्म क़ुरआन में आया है। यह शर्त भी है कि मुखिया हज पर जाने से पहले घर वालों के लिए मुनासिब इंतज़ाम करके जाएँ, ऐसा न हो कि उसके जाने के बाद घर वाले परेशान होते रहें। इस पवित्र सफ़र के लिए रास्ते का अमन भी शर्त है। अर्थात राह में लूटमार का जान जाने का डर न हो।

इसके साथ ही हज में की जाने वाली इबादतों और मख़्सूस दुआओं की भी पूरी जानकारी होना चाहिए ताकि अल्लाह के घर में पहुँचकर उसे मनाने और ख़ुद के गुनाह बख़्शवाने में कोई कमी न रह जाए। इसी के मद्देनज़र आजकल हज यात्रियों के लिए ख़ास ट्रेनिंग का इंतज़ाम भी किया जाता है।

हाज़िर हूँ, मेरे अल्लाह : हज के लिए एक लिबास मख़्सूस है, जिसे एहराम कहा जाता है। यह लिबास मर्दों के लिए दो बिना सिली सफ़ेद चादरें हैं। एक तहमद की तरह बाँधी जाती है, दूसरी को दाईं बगल के नीचे से निकालकर बाँए कंधे पर डाला जाता है। यह वस्त्र मक्का में दाख़िल होने से पहले धारण करना जरूरी है। दुनिया के किसी भी हिस्से से आने वाला हज यात्री एक तयशुदा दूरी से यह वस्त्र धारण करके मक्का की तरफ चलता है।

उस समय हाजी की ज़बान पर कुछ ख़ास क़िस्म के बोल होते हैं। वह खुदा के इस अजीम, पवित्र और अमन देने वाले घर में दाख़िल होने से पहले ही उस रब की, उसके घर की मुहब्बत में डूबकर पुकार उठता है - 'हाज़िर हूँ, मेरे अल्लाह! मैं हाज़िर हूँ, तेरा कोई शरीक नहीं, मैं हाज़िर हूँ, बेशक तारीफ़ सब तेरे ही लिए है, नेमतें सब तेरी हैं, सारी बादशाही तेरी है, तेरा कोई शरीक नहीं है'।

एहराम की हालत में कई जायज़ चीज़ें इंसान के लिए हराम हो जाती हैं। इसीलिए इसे एहराम कहा जाता है। एहराम में मर्दों के लिए सिला हुआ कपड़ा पहनना, सर और चेहरा ढँकना. टख़ने ढाँकने वाला जूता या मोज़ा पहनना, नाख़ून काटना, बदन के किसी भी हिस्से के बाल काटना या उखाड़ना, तेल लगाना, कंघी करना, ख़ुशबू लगाना, कोमोत्तेजक क्रियाएँ या बातें करना, शिकार करना वग़ैरह हराम हो जाते हैं।

एहराम की हालत में किसी जीव का वध करना तो दूर, किसी जानवर का शिकार करना बल्कि शिकारी को शिकार का पता बताना भी मना है। औरतों का एहराम अलग होता है। वे सिले हुए कपड़े और मोज़े पहन सकती हैं और सर ढँक लेती हैं। अलबत्ता चेहरे पर कपड़ा डालना, हाथ में दस्ताने पहनना वगैरह मना है।

भेदभाव खत्म : एहराम धारण करते ही सब लोग एक फ़क़ीराना वेशभूषा में आ जाते हैं। अब यहाँ ऊँच-नीच, छोटे-बड़े, काले-गोरे का भेद मिट गया है। सब एक पूज्य के सामने नतमस्तक होने, अपनी कमतरी और उसकी बढ़ाई करने के लिए हाज़िर हुए हैं।

प्रजातंत्र के पैरोकार थे इमाम हुसैन

मोहर्रम की दसवीं तारीख की इस्लामी कैलेंडर में बहुत अहमियत है। मोहर्रम की दसवीं तारीख से हजरत इमाम हुसैन (रजि.) की पाकीजा शहादत बावस्ता (संबद्ध) है। हजरत इमाम हुसैन यानी इस्लाम धर्म के प्रवर्तक पैगम्बर हजरत मोहम्मद (सल्ल.) के नवासे (दौहित्र/पुत्री के पुत्र) जो लगभग चौदह सौ बरस पहले कर्बला (अरब देश इराक का रेगिस्तानी इलाका) के मैदान में ईमान और इंसाफ की खातिर, हक (औचित्य) की जंग में प्यासे ही शहीद कर दिए गए।

छल-फरेब और कुटिलता-कपट का सहारा लेकर खलीफा (शासक) बन बैठे दुराचारी यजीद के चापलूस ने हजरत इमाम हुसैन को जब वो सजदे में थे (नमाज की एक प्रक्रिया जिसमें पेशानी या ललाट को अल्लाह की इबादत में धरती से लगाकर "सुब्हाना रब्बियल आला" अर्थात अल्लाह सर्वोत्तम-सर्वोच्च और गरिमापूर्ण है, कहा जाता है) तब शहीद किया। यजीद की शह पर किया गया यह निहायत कायरतापूर्ण-क्रूर-कृत्य था।

किस्सा-कोताह, ये कि मोहर्रम की दसवीं तारीख दरअसल वो तारीख है जो हजरत इमाम हुसैन की शहादत की पाकीजा रोशनी से मामूर (आलोकित) है। दुराचारी यजीद ने हजरत इमाम हुसैन को पहले तो प्रलोभन दिए फिर धमकियाँ दीं। लेकिन इमाम हुसैन न तो प्रलोभनों से डिगे, न धमकियों से डरे। जिसके दिल में ईमान का उजाला हो वो किसी प्रलोभन या लालच से क्यों डिगेगा? जिसके पास रूहानियत की रोशनी हो, वो अल्लाह के अलावा किसी से क्यों डरेगा? हजरत इमाम हुसैन दरअसल ईमान की ताकत से भरपूर थे और इंसाफ-इंसानियत के लिए मशहूर थे। सब्र और सादगी, सत्य और संयम हजरत इमाम हुसैन के पाकीजा किरदार के नुमायाँ पहलू थे। हर तरह से हजरत हुसैन खिलाफत के हकदार थे। लेकिन साजिश करके दुर्व्यसनी-दुर्र्बुद्धि यजीद ने खिलाफत हथिया ली और खुद खलीफा (शासक) हो गया। दहशत (आतंक) और दरिन्दगी (पाशविकता) का प्रतीक था यजीद जबकि बहबूदी (भलाई) और बंदगी (ईश्वर-स्मरण) के पर्याय थे हजरत इमाम हुसैन। एक वाक्य में कहें तो यजीद यानी विकार और इमाम हुसैन यानी सुसंस्कार।

कर्बला के मैदान में लगभग चौदह सौ साल पहले यजीद और हजरत इमाम हुसैन के बीच हुई जंग दरअसल विकार और सुसंस्कार के बीच जंग थी। यह अन्याय और न्याय के बीच जंग थी। यह भ्रष्टता और शिष्टता के बीच जंग थी। यह शैतानियत और इंसानियत के बीच जंग थी। भ्रष्टता और शैतानियत का प्रतिनिधित्व कर रहा था यजीद, जबकि शिष्टता और इंसानियत की नुमाइंदगी कर रहे थे इमाम हुसैन। न्याय और हक के लिए शहीद हो गए हजरत हुसैन। लेकिन यजीद यानी अन्याय के आगे न तो उन्होंने सिर झुकाया, न सलाम बजाया।

हजरत इमाम हुसैन की शहादत से यह पता चलता है कि जो हक और इंसाफ पर होता है, जो अदल (न्याय) और ईमान पर होता है, जो सुसंस्कारी और सदाचारी होता है उसके खिलाफ भ्रष्ट और अन्यायी लोग साजिशों के जाल बुनते हैं, बेईमानी और बदसलूकी करते हैं, बदनामी के बवंडर चलाते हैं, चाटुकारों और चापलूसों के जरिए शातिरपने की शतरंज बिछाकर छल-फरेब की चालें चलते हैं, लेकिन आखिरकार ईमानदार के सामने बेईमान का बंटाढार हो जाता है।

यहाँ यह जिक्र भी जरूरी है कि हजरत इमाम हुसैन तो रसूले-खुदा यानी हजरत मोहम्मद (सल्ल.) के नवासे थे, इसलिए करिश्माई कुव्वत से भी भरपूर थे। हजरत इमाम हुसैन अगर चाहते तो सिर्फ करिश्मा दिखाकर ही यजीद को और उसके फौजी लश्कर को नेस्तनाबूद (विनष्ट) कर सकते थे, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया।

हक और इंसानियत पर कायम शख्स की तरह उन्होंने 'ईमान' और इंसानियत की आवाज को बुलंद किया और आने वाली पीढ़ियों को सिखाया कि 'अन्याय के आगे सिर झुकाकर सुविधाओं की जिंदगी गुजारने की बजाय न्याय के लिए लड़ते हुए मर जाना यानी शहीद हो जाना बेहतर है।' हजरत हुसैन की आवाज दरअसल उस दौर के प्रजातंत्र की आवाज थी। हजरत इमाम हुसैन 'विरासत' में नहीं, जम्हूरियत में यकीन रखते थे। एक वाक्य में कहें तो हजरत इमाम हुसैन विरासत के तरफदार नहीं, प्रजातंत्र के पैरोकार थे।;

शैतान को मारेंगे कंकरी

दुनियाभर के हजयात्रियों की हज के महत्वपूर्ण पाँच दिनों की शुरुआत हो चुकी है। 27 नवंबर को शैतान को पत्थर मारने की रस्म अदा की जाएगी। सभी हजयात्री पवित्र मक्का शरीफ में सुरक्षित हैं। सफर-ए-हज के 42 दिनों में से अहम 5 दिनों के अरकान पूर्ण करने के लिए सभी हजयात्री मीना जाते हैं। हज का पहला दिन 8 जिलहज्ज होगा। हज के पाँच दिनों में मीना पूरी दुनिया की सबसे बड़ी खेमों की वादी होती है।

हजयात्री दलों में रहकर पाँच नमाजे अदा करेंगे। हज के दूसरे दिन मीना से 8 किमी दूर अराफात के मैदान में हज का खुदबा मस्जिद-ए-नमरा में दिया जाएगा। इस दिन हजयात्री पूरे दिन मैदान में रहकर जोहर व असर की नमाज पढ़ेंगे। इस दिन अराफात दिवस के मौके पर पूरी दुनिया के हजयात्री हज की अहम रस्मों को पूरा

नमाज पढ़ने के बाद खड़े होकर वूकुफे अराफात की रस्म पूरी कर सूरज ढलने के बाद मुजदलफा के मैदान की ओर प्रस्थान करेंगे। अराफात में मगरीब की नमाज अदा नहीं की जाएगी। सभी हाजी गुरुवार को मुजदलफा के मैदान में पूरी रात खुले आसमान के नीचे इबादत में गुजारेंगे। मुजदलफा पहुँचने पर हजयात्री मगरीब व ईशा की नमाज अदा करेंगे। यह रात शबे कद्र की रात से अफजल होती है। पूरी रात इबादत करने के बाद हजयात्री 27 नवंबर को वापस मीना आएँगे। यह दिन 10 जिलहिज्ज हज का तीसरा दिन होगा। इस दिन हजयात्री सबसे पहले बड़े शैतान को 7 कंकरी मारकर कुर्बानी की रस्म अदा करेंगे।

कुर्बानी देने के बाद अहराम की पाबंदी खत्म होगी। तवाफे जियारत के लिए मीना से मक्का शरीफ आएँगे। इसके बाद हजयात्री खान-ए-काबा का तवाफ व सई की रस्म अदा कर रात को मीना आएँगे। 29 नवंबर को हज का चौथा दिन 11 जिनहिज्ज होगा। इस दिन सभी हजयात्री जवाल के बाद तीन शैतानों को 7-7 कंकरी मारेंगे व दिन-रात इबादत में गुजारेंगे। 29 नवंबर को भी तीन शैतानों को 7-7 कंकरी मारने के बाद नमाजे असर मीना से मक्के के लिए रवाना होंगे।

इसके लिए सऊदी सरकार ने मीना, अराफात व मुजदलफा में चाक-चौबंद व्यवस्था की है। मीना में शैतान को पत्थर मारने की रस्म के लिए भी खास इंतजाम किए गए हैं। हजयात्रियों को शैतान को कंकरी मारने के लिए विशेष प्रशिक्षण दिया गया है। कंकरी मारने के लिए अलग-अलग देशों के लिए अलग-अलग तिथियाँ निर्धारित की गई है।

मुसाफ़िराने चल पड़े हज!

हाज़िर हैं हम हाज़िर हैं


मुसाफ़िराने हज चल पड़े हैं। उनके लबों पर ख़ुदा का ज़िक्र है, उसके घर में हाज़िरी देने की गवाही है। वे चल पड़े हैं, अल्लाह के उस घर की जानिब, जिसे 'काबा' कहा जाता है। हज यात्री अब इस घर का दीदार करेंगे, उसके चारों तरफ़ तवाफ़ (परिक्रमा) करेंगे और आइंदा माह यानी दिसंबर के पहले हफ़्ते में ख़ुदा की इस अज़ीम इबादत को अदा करेंगे।

काबा शरीफ़ मक्का में है। इसके लिए मुसाफ़िरों ने यहीं से तैयारी कर ली है। असल में हज आम इबादतों से कुछ अलग तरह की इबादत है। यह ऐसी इबादत है जिसमें काफ़ी चलना-फिरना पड़ता है। सऊदी अरब के पवित्र शहर मक्का और उसके आसपास स्थित अलग-अलग जगहों पर हज की इबादतें अदा की जाती हैं। इनके लिए पहले से तैयारी करना ज़रूरी होता है, ताकि हज ठीक से किया जा सके। इसीलिए हज पर जाने वालों के लिए तरबियती कैंप यानी प्रशिक्षण शिविर लगाए जाते हैं।

हज दरअसल इरादा करके 'काबा' की ज़ियारत यानी दर्शन करने और उन इबादतों को एक विशेष तरीक़े से अदा करने को कहा जाता है। इनके बारे में किताबों में बताया गया है। हज के लिए विशेष लिबास पहना जाता है, जिसे एहराम कहते हैं। यह एक फ़क़ीराना लिबास है। ऐसा लिबास जो हर तरह के भेदभाव मिटा देता है। छोटे-बड़े का, अमीर-ग़रीब, गोरे-काले का। इस दरवेशाना लिबास को धारण करते ही तमाम इंसान बराबर हो जाते हैं और हर तरह की ऊँच-नीच ख़त्म हो जाती है।

तब सारे के सारे एक साथ अल्लाह के सामने हाज़िर होकर उसकी बड़ाई और अपनी कमतरी का इक़रार करते हैं। हज के इरादे से मक्का में दाख़िल होते समय इस लिबास का धारण करना ज़रूरी है। वहाँ पहुँचकर 'काबा' के दर्शन करने के बाद इसे उतार दिया जाता है। 'उमरा' या 'हज' करते समय इसे फिर पहन लिया जाता है।

इसी तरह हज पर रवाना होने वाले हर मुसाफ़िर की ज़बान पर कुछ विशेष शब्द होते हैं। इन शब्दों के माध्यम से इंसान रब्बे-कायनात के समक्ष अपनी हाज़िरी और उसकी बड़ाई बयान करता है।

अरबी में कहे जाने वाले इन शब्दों का अर्थ है : 'हाज़िर हूँ अल्लाह, मैं हाज़िर हूँ। हाज़िर हूँ। तेरा कोई शरीक नहीं, हाज़िर हूँ। तमाम तारीफ़ात अल्लाह ही के लिए है और नेमतें भी तेरी हैं। मुल्क भी तेरा है और तेरा कोई शरीक नहीं है।'

ये ऐसे शब्द हैं जो पूरी हज यात्रा के दौरान हज यात्रियों की ज़बान पर रहते हैं। इसका अर्थ यह है कि इस पूरे मुक़द्दस (पवित्र) सफ़र में उसे हर घड़ी एक बात विशेष रूप से याद रखना है। यह कि वह कायनात के सृष्टा, उस दयालु-करीम के समक्ष हाज़िर है, जिसका कोई संगी-साथी नहीं है। इसके अलावा यह भी कि मुल्को-माल सब अल्लाह तआला का है। इसलिए हमें इस दुनिया में फ़क़ीरों की तरह रहना चाहिए। उसने हमें तरह-तरह की नेमतें बख़्शी हैं, जिनका हम लुत्फ़ उठाते हैं।

इस महा समागम में हर साल लाखों लोग शरीक होते हैं। दुनिया के तमाम देशों से एक अल्लाह को मानने वाले वहाँ जमा हो जाते हैं और सब मिलकर हज के विशेष दिनों में कुछ विशेष इबादतों के ज़रिए अपनी श्रद्धा के फूल पेश करते हैं। सऊदी सरकार इन पवित्र यात्रियों के लिए विशेष व्यवस्थाएँ करती हैं। हर साल इन यात्रियों की तादाद बढ़ती जा रही है। इस साल भी वहाँ 30 लाख से ज़्यादा लोगों के जमा होने की संभावना है।

नमाज का बयान

अल्लाह तआला इरशाद फ़रमाता है ऐ मेरे प्यारे मेहबूब तुम कह दो ईमान वालों से निगेहबानी करो सब नमाजों की (यानी पाँच वक्त की फर्ज नमाज़ों को उनके वक्तों पर अरकानें शरायत के साथ अदा करते रहो) और बीच के नमाज़ की (हज़रत इमामे आज़म अबुहनीफा और जमहूर सहाबा रदियल्लाहोत आला अनहु का मजहब यह है कि इससे नमाज़े अस्र मुराद है) (कंज़ुल ईमाम तर्जुमा क़ुरान पारा 2 रुकु 15 सफ़ा 92)।

रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो अलैहे व सल्लम ने इरशाद फ़रमाया के इस्लाम की बुनियाद पाँच चीज़ों पर है-

इस बात की शहादत देना की अल्लाह तआला के सिवा कोई मअबूद नहीं और (हजरत) मोहम्मद मुस्तफा (सल्लल्लाहो अलैहे व सल्लम) उसके ख़ास बंदे और रसूल हैं।

* नमाज़ क़ायम रखना।
* जक़ात देना।
* हज करना।
* माहे रमजान के रोजे रखना।
(बुख़ारी शरीफ जिल्दे अव्वल सफ़ा 6)

प्यारे नबी सल्लल्लाहो अलैहे व सल्लम ने इरशाद फरमाया अगर किसी के घर के सामने नहर हो वह रोज़ (5) मर्तबा ग़ुस्ल करे तो क्या उसके बदन पर मैल रहेगा। सहाबा ने अर्ज़ की नहीं फ़रमाया यही मिसाल पाँच ऩमाज़ो की है। अल्लाह तआला नमाज़ों के सबब से सब खताओं को मिटा देता है और बंदा जब नमाज़ के लिए खड़ा होता है तो उसके लिए जन्नत के दरवाजे खोल दिए जाते हैं। उसके लिए अल्लाह तआला के बीच के परदे हटा दिए जाते हैं और हूरें उसका इस्तक़बाल करती हैं।

जब इन्सान सजदा करता है तो शैतान रोता हुआ भागता है और कहता है अफसोस कि इन्सान को सजदे का हुक्म हुआ उसने सजदा कर लिया उसको जन्नत मिली। मुझे सजदे का हुक्म हुआ मैंने इनकार किया और मुझे जहन्नुम मिली। और जब तुम्हारे बच्चे सात बरस के हो जाएँ तो उन्हें नमाज़ का हुक्म दो और जब दस (10) बरस के हो जाएँ तो मार के नमाज़ पढ़ाओ। (तिर्मिज़ी शरीफ जिल्दे 1 सफा 54 व इब्ने माजा शरीफ़ सफ़ा 58)

हज़रत अबु ज़र गफ्फारी फ़रमाते हैं रसूलल्लाह सल्लल्लाहो अलैहे व सल्लम सर्दियों के मौसम में बाहर तशरीफ ले गए। पतझड़ का मौसम था आप ने एक दरख्त की दो शाख पकड़कर कर उन्हें हिलाया पत्ते उनसे झड़ने लगे। आप ने फरमाया ऐ अबुजर मैंने अर्ज किया हाजिर हूँ। फ़रमाया जब मुसलमान बंदा नमाज़ पढ़ता है और अल्लाह तआला की रज़ामंदी का इजहार करता है तो उसके गुनाह इस तरह गिरते हैं जैसे इस दरख्त के पत्ते झड़ते हैं। (मिशकात शरीफ़ जिल्द अव्वल सफ़ा 58)।

रसूलुुल्लाह सल्लल्लाहो अलैहे व सल्लम ने फ़रमाया कि नमाज़ में मेरी आँखों की ठंडक रखी गई है और जन्नत की कुंजी नमाज़ है और नमाज़ की कुंजी तहारत है जिसने क़सदन (यानी बगैर किसी उज़र शरई के नमाज़ छोड़ दी) तो जहन्नुम के दरवाजे पर उसका नाम लिख दिया जाता है और उसका कोई दीन नहीं

नमाज़ दीन का सुतून है। क़यामत के दिन सबसे पहले बंदे से नमाज़ के बारे में पूछा जाएगा अगर उसकी नमाज़ें मुकम्मल हुईं तो उसके सारे आमाल क़ुबूल कर लिए जाएँगे और अगर नमाज़ मुकम्मल नहीं हुई तो उसके तमाम आमाल रद्द कर दिए जाएँगे। सबसे बुरा आदमी नमाज़ का चोर है। (मुकाशफ़ातुल कुलूब शरीफ स. 153)।

हज़रत अबु बक़र सिद्दीक़ रदिअल्लाहो तआला अन्हु नमाज़ के वक्त फरमाते हैं ऐ लोगों अल्लाह ने तुम्हारे लिए जो आग लगाई है उठो और उसे नमाज़ के लिए बुझा दो। हज़रत अनस ने फ़रमाया शबे मैराज में सरकारे मदीना सल्लल्लाहो अलैहे व सल्लम के उम्मतियों पर पचास वक्त की नमाज़ें फ़र्ज की गईं, फ़िर कम की गईं। यहाँ तक की पाँच रह गईं। आवाज़ दी गई ऐ मेरे मेहबूब इन पाँच के अन्दर ही पचास का सवाब है (बुख़ारी शरीफ़ जिल्दे अव्वल स.50)।

मसअला- हर आकिल, बालिग़ पर नमाज़ फ़र्ज है। उसकी फ़रज़ीयत का मुनकिर काफ़िर है और जान-बूझकर छोड़ दे अगर चे एक वक्त की हो वह फ़ासिक़ है। जो नमाज़ न पढ़ता हो उसे क़ैद में रखा जाए जब वह तोबा करके नमाज़ पढ़ने लगे तब रिहा किया जाए। इमाम मालिक, इमाम शाफई, इमाम अहमद के नजदीक सुलताने इस्लाम उसके क़त्ल का हुक्म दें।

मसअला- किसी से नमाज़ पढ़ने को कहा उसने जवाब दिया नमाज़ तो पढ़ता हूँ पर उसका कुछ नतीजा नहीं या कहा तुमने नमाज़ पढ़ी क्या फायदा हुआ या कहा नमाज़ पढ़कर क्या करूँ किसके लिए पढ़ूँ माँ-बाप तो मर गए हैं या कहा बहुत पढ़ ली अब दिल घबरा गया है या कहा पढ़ना न पढ़ना दोनों बराबर है। गर्ज़ की इस क़िस्म की बातें करना जिससे फ़रज़ियत पर इनकार करना समझा जाता हो या नमाज़ की तौहीन हो यह कुफ्र है और ऐसा कहने वाला काफिर है। हिज़रत से पहले मेराज की रात में नमाज फर्ज हुई और जकात और जिहाद व रोज़ा 2 हिजरी में फ़र्ज़ हुए। (तफ़सीर नईमी जि. 5 स. 264)।

नाहरशाह वली बाबा की दरगाह

औरंगजेब भी नमाज अदा कर चुके हैं यहाँ


इंदौर के खजराना स्थित हजरत नाहरशाह वली बाबा की यह दरगाह राष्ट्रीय एकता का प्रतीक मानी जाती है। यहाँ दोनों ही प्रमुख संप्रदाय के लोग एक साथ जियारत करते हैं। हर गुरुवार और शुक्रवार को तो सांप्रदायिक एकता का नजारा देखने लायक रहता है।

बुजुर्गों का कहना है कि यहाँ पर बादशाह औरंगजेब भी नमाज अदा कर चुके हैं। किसी समय यहाँ एक पहुँचे हुए फकीर बिलकुल एकांत में इबादत किया करते थे। वे अक्सर यही कहा करते कि मेरी मौत के बाद मय्यत को तहाज्जुद की नमाज के बाद दफनाना।

तहाज्जुद की नमाज उस व्यक्ति द्वारा पढ़ी जाए जिसने 12 वर्ष तक लगातार नमाज पढ़ी हो। एक दफा पीर के सेवकों को पता चला कि बादशाह औरंगजेब का लश्कर दिल्ली से दक्षिण की ओर जा रहा है।

इंदौर के खजराना स्थित हजरत नाहरशाह वली बाबा की यह दरगाह राष्ट्रीय एकता का प्रतीक मानी जाती है। यहाँ दोनों ही प्रमुख संप्रदाय के लोग एक साथ जियारत करते हैं। हर गुरुवार और शुक्रवार को तो सांप्रदायिक एकता का नजारा देखने लायक रहता है।

सेवकों ने सारी बात बादशाह को बताई। इस पर बादशाह ने कहा कि वे तहाज्जुद की नमाज पढ़ने के काबिल हैं। इस प्रकार वे नमाज पढ़ने को तैयार हो गए। नमाज पढ़ने के बाद लाश दफन की गई। वहाँ एक छोटी-सी मजार बनाई गई। बुजुर्गों का कहना है कि यहाँ सच्चे खुदापरस्त बाबा नूरुद्दीन साहब की दरगाह है।

कैसे पड़ा 'नाहरशाह' नाम...

बुजुर्गों की मानें तो किसी जमाने में दरगाह के आसपास शेर टहला करते थे। और तो और अपनी पूँछ से वे पूरे आँगन की साफ-सफाई भी करते थे। शेरों को चूँकि 'नाहर' भी कहा जाता है। इसलिए यह दरगाह आज भी नाहरशाह के नाम से जानी जाती है।

बताते हैं कि यह दरगाह करीब सात सौ वर्ष पुरानी है। कहा जाता है कि यहाँ माँगने वालों की हर मुराद पूरी होती है।

इंसानियत का पैगाम माह-ए-रमजान

रमजानुल मुबारक का मुकद्दस माह इस्लामी कैलेंडर का नवाँ महीना है। हर साल इस माह में रोजे रखना मुसलमानों पर नाजिल फर्जों में से एक अहम फर्ज है।

आज से पूरे माह हर बालिग और सेहतमंद मुसलमान पर रमजानुल मुबारक के रोजे रखना फर्ज करार दिया गया है। हदीस के मुताबिक इस मुबारक माह में जन्नात के दरवाजे खुल जाते हैं और शैतान कैद हो जाता है।

अर्श से फर्श तक नेकियों और रहमतों की बारिश का ऐसा पुरजोर सिलसिला शुरू होता है जिसका हर मुसलमान को बेसब्री और बेकरारी से इंतजार रहता है।

हदीस शरीफ में फर्माया गया है कि रमजान हजरत मोहम्मद सल्लल्लाह अलैहवसल्लम की उम्मत का महीना है। इस माह रोजे रखने वालों को बेइंतहा सवाब (पुण्य) मिलता है और इन दिनों में जो मुसलमान शिद्दत के साथ खुदा तआला की इबादत और कलामपाक की तिलावत करेगा उसके गुनाह ऐसे धुल जाएँगे जैसे साफ पानी में गंदा कपड़ा धुल जाता है।

यह रिवायत है कि रोजे रखने वाले मुसलमान कयामत के दिन अल्लाह के नेक बंदों की शक्ल में पहचाने जाएँगे। रमजानुल मुबारक का यह माह इंसानी शैतानियत को काबू में करने का सबसे बेहतरीन वक्त होता है।

पूरे साल भर गुनाह करने वाले इंसान के मन में भी रमजान के मुकद्दस दिनों में यही खयाल बना रहता है कि उसे अपने किए कामों का खुदा को जवाब देना है। यानी रमजानुल मुबारक गुनाहों को न करने की नसीहत देकर इंसान को अपने आमाल अखलाक (सदाचार) पर गौरकरने का मौका देता है।

रमजान का यह पाक और नेकियों भरा माह इंसानी नफ्स (मानवेंद्रियों) को काबू करने की तालीम देता है। साथ ही भूखे की भूख व प्यासे की प्यास को जानने समझने की नसीहत देकर इंसानी फर्ज की याद दिलाता है।

दरअसल रोजेदार मुसलमान के जहन पर खुदा की खुदाबंदी और अपनी बंदगी का एहसास होना ही रमजान का असल मकसद है। इन दिनों में रोजेदार बंदा खुदा की बंदगी में अपने आपको इतना मसरूफ और मारूफ कर ले कि उसकी तमाम बुराइयाँ और शैतानी खयालात हमेशा के लिए उसकी जिंदगी से निकल जाएँ, यही मकसद है।

इस प्रकार यह माह इंसान को इंसानियत का पैगाम देकर प्यार-मोहब्बत, भाई-चारे, आपसी खलूसी और इंसान को इंसान के लिए मददगार बनने की राह दिखाता है, जिसकी आज सख्त जरूरत है।

रमजान माह में अल सुबह (सादिक के वक्त) सूरज निकलने के पहले से लेकर शाम को मगरिब की अजान (सूर्यास्त) होने तक कुछ भी खाने-पीने की हसरत करना तक हराम करार दिया गया है।

रोजा अफ्तार करने के बाद ही खाना-पीना जायज है। इसमें गौरतलब बात यह है कि सिर्फ खाना-पीना छोड़ देना अर्थात भूखा रहने का नाम रोजा नहीं और खुदा भी 'सिर्फ भूखे' से खुश नहीं।

खुदा तो उन रोजेदारों से खुश रहता है जो रोजे के अरकानों को पूरी अकीदत और ईमान के साथ अदा करते हैं। रोजे की हालत में यह जरूरी है कि रोजेदार हर बुराई से अपने को दूर रखकर रोजे की नफासत और पाकीजगी को पुख्ता करे।

सच्चाई की राह पर चलते हुए गिड़गिड़ाकर खुदा से अपने गुनाहों की माफी माँगे और साथ ही खुदा को हाजिर-नाजिर मानकर यह भी अहद करे कि आइंदा गुनाह में शुमार होने वाले काम हम कभी नहीं करेंगे। रोजेदार पाँचों वक्त की पाबंदी के साथ नमाज अदा करें।

रमजान के दिनों में पाँचों वक्त (फजर, जोहर, असर, मगरिब और इशा) की नमाजों के अलावा इशा की नमाज के साथ बीस रकाअत नमाज तराबीह के तौर पर अदा करना लाजिम है।

यह नमाज जहाँ तक मुमकिन हो हाफिजे कुरआन की इमामत में पढ़ना सबसे अफजल होती है जिसमें हाफिज कुरआन को बिना देखे ही पढ़कर सत्ताईस रमजान की शब में एक कुरान मुकम्मल सुनाते हैं।

रमजान के दिनों में एक ओर जहाँ बुराइयों से परहेज किया जाता है वहीं दूसरी ओर इंसानी नेकियों को अमल में लाना भी हर मुसलमान के लिए बेहद जरूरी है। इसलिए हर इंसान को चाहिए कि वह इंसानियत के रिश्ते को मजबूत करते हुए रमजानुल मुबारक की नेकियों और रहमतों से पूरी दुुनिया की इंसानी कौम को सराबोर करे जिससे इंसानियत का सर शिद्दत और खानी के साथ सदा बुलंद रहे, जिससे अमन की फिजा हमारे मुल्क को नई ताजगी से खुशगवार बना सके।

वुज़ू का बयान

अल्लाह तआला इरशाद फ़रमाता है ऐ ईमान वालों जब नमाज़ को खड़े होना चाहो (और तुम बे वुज़ू हो तो तुम पर वुज़ू फ़र्ज़ है और फ़राईजे वुजू चार हैं जो आगे बयान किए जाते हैं)तो

अपना मुँह धोओ
कुहनियों तक हाथ धोओ
और चौथाई सरों का मसा करो
और गट्टों तक पाँव धोओ
(कंजूलईमान तर्जुमा क़ुरान पारा ६ रुकु ६ सफ़ा १७२)।

रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने फ़रमाया क़यामत के दिन मेरी उम्मत इस हालत में बुलाई जाएगी कि मुँह, हाथ और पाँव आसारे वुज़ू से चमकते होंगे तो जिससे हो सके चमक ज्यादा करे और मुसलमान बंदा जब वुज़ू करता है तो कुल्ली करने से मुँह के गुनाह नीचे गिर जाते है।

जब नाक में पानी डालकर साफ किया तो नाक के गुनाह निकल गए और जब मुँह धोया तो उसके चेहरे के गुनाह निकले। और जब सर का मसह किया तो सर के गुनाह निकले और जब पाँव धोए तो पाँव की खताएँ निकलें और फिर उसका मस्जिद को जाना और नमाज पढ़ना इसका भी सवाब अलग से मिलेगा।

हमारेप्यारे नबी सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने फ़रमाया कि तुम में जो कोई वुज़ू फिर पढ़े अशहदो अल्ला इलाहा इलल्लाहो वहदहू ला शरीका लहू व अश्हदु अन्ना मुहम्मदन अब्दहू व रसूलहू। उसके लिए जन्नत के आठों (८) दरवाज़े खोल दिए जाते हैं। जिस दरवाजे से चाहे दाखिल हो और मिसवाक का इस्तेमाल अपने लिए लाज़िम कर लो, क्योंकि मिसवाक से मुँह के पाकी और अल्लाह तआला की खुशी है।

अगर मुझे अपनी उम्मत पर मशक्क़त और दुश्वारी का ख्याल न होता तो मैं मिसवाक करने को लाज़िम करार देता और मिसवाक करके नमाज़ पढ़ने की फ़जिलत सत्तर (७०) गुना ज्यादा है। बग़ैर मिसवाक के (मिश्कात शरीफ़ जि. १ स. १४५)।

हज़रत अबु हुरेरा रदिअल्लाह अन्हो से रिवायत है कि रसूल्लुल्लाह सल्लल्लाहो अलैहे व सल्लम ने फ़रमाया जो बे वुज़ू हो उसकी नमाज़ बग़ैर वुज़ू किए कुबूल न होगी (बुख़ारी शरीफ़ जिल्दे १ सफा २५)।

इस्लाम धर्म - आलेख - इस्लाम की पाँच बुनियादी बातें

प्रत्येक मुसलमान के लिए इस्लाम में निम्नलिखित पाँच बुनियादी बातें बताई गई हैं तथा उन पर पालन करने के लिए आदेश भी दिए गए हैं। ये बातें हैं-

कलमा पढ़ना-उसे खुदा की बादशाहत और मुहम्मद साहब के पैगम्बर होने की घोषणा करनी चाहिए। इसी घोषणा को 'कलमा' पढ़ना कहते हैं। इसमें कहा जाता है कि 'अल्लाह के अतिरिक्त और कोई खुदा नहीं है और मुहम्मद साहब उसी के पैगम्बर हैं।'

नमाज़ क़ायम रखना- उसे रोज पाँच बार नमाज़ पढ़नी चाहिए और हरेक ज़ुमा के रोज दोपहर के बाद मस्जिद में नमाज़ पढ़नी चाहिए।

जक़ात देना- उसे गरीबों को यह समझकर ज़कात (दान) देना चाहिए कि वह अल्लाह के प्रति कुछ अर्पित कर रहा है। यह एक अच्छा काम है।

माहे रमजान के रोजे रखना- इस्लाम के पवित्र महीने रमजान में उसे रोज़ा(उपवास) रखना चाहिए।

हज करना- उसे अपनी जिंदगी में अपने सामर्थ्य के अनुसार अथवा कम से कम एक बार 'हज' के लिए जाना चाहिए।

वुज़ू का बयान
इंसानियत का पैगाम माह-ए-रमजान
नाहरशाह वली बाबा की दरगाह
नमाज का बयान
मुसाफ़िराने चल पड़े हज!
शैतान को मारेंगे कंकरी
प्रजातंत्र के पैरोकार थे इमाम हुसैन
सुन्नते-इब्राहीमी: हज की इब्तिदा
शबे-बरा'त: रब को राजी करने के जतन

अनुष्ठान: आमलकी एकादशी

पद्मपुराणके उत्तरखण्डमें भगवान श्रीकृष्ण युधिष्ठिर से बोले-धर्मनन्दन! राजा मान्धाताने महामुनिवशिष्ठ को यह बताया था कि फाल्गुन के शुक्लपक्ष की एकादशी का नाम आमलकी है। इसका पवित्र व्रत विष्णुलोककी प्राप्ति करने वाला है। मान्धाताके पूछने पर वशिष्ठजीने आंवले के वृक्ष की उत्पत्ति की कथा और उसकी महिमा बताते हुए कहा कि आमलकी एकादशी में आंवले के वृक्ष के पास जाकर वहां रात्रि में जागरण करना चाहिए। इससे मनुष्य सब पापों से छूट जाता है और सहस्रगोदानोंका फल प्राप्त करता है।

व्रती शरीर में मृत्तिका लगाकर स्नान करे। इस एकादशी में श्रीभगवान विष्णु के अवतार श्रीपरशुरामजी की पूजा की जाती है। पूजनोपरांतइस मंत्र से उन्हें अ‌र्घ्यदें-

नमस्तेदेवदेवेशजामदग्न्यनमोऽस्तुते।
गृहाणा‌र्घ्यमिमंदत्तमामलक्यायुतंहरे॥

देवदेवेश्वर! जगदग्नि-नन्दन! श्रीहरिके स्वरूप परशुरामजी! आपको नमस्कार है, नमस्कार है। आंवले के फल के साथ दिया हुआ मेरा यह अ‌र्घ्यग्रहण कीजिए।

तदनन्तर भगवन्नामका स्मरण,जप,संकीर्तन करते हुए रात भर जगें। उसके बाद भगवान विष्णु के नाम लेते हुए आंवले के वृक्ष की 108 अथवा 28 परिक्रमा करें। द्वादशी में किसी आचार्य को भोजन कराकर पूजा में चढाई गई सामग्री उन्हें दे दें। फिर स्वयं भी व्रत का पारण करें। ऐसा करने से समस्त तीर्थो की यात्रा का पुण्यफलप्राप्त होता है। सब प्रकार के दान देने से मिलने वाला फल भी इस एकादशी के व्रत का विधिपूर्वक पालन करने से उपलब्ध हो जाता है। आमलकीएकादशी के व्रत से सब यज्ञों की अपेक्षा अधिक फल मिलता है। यह दुर्धर्षव्रत मनुष्य को सब पापों से मुक्त करने वाला है।

पद्मपुराणके उत्तरखण्डमें इस व्रत के विधान का अतिविस्तृतवर्णन प्राप्त होता है।

टोने टोटके - कुछ उपाय - 2 ( Tonae Totke - Some Tips - 2 )

छोटे-छोटे उपाय हर घर में लोग जानते हैं, पर उनकी विधिवत्‌जानकारी के अभाव में वे उनके लाभ से वंचित रह जाते हैं। इस लोकप्रियस्तंभ में उपयोगी टोटकों की विधिवत्‌ जानकारी दी जा रही है...


कुछ उपयोगी टोटके

शत्रु शमन के लिए : साबुत उड़द की काली दाल के 38 और चावल के 40 दाने मिलाकर किसी गड्ढे में दबा दें और ऊपर से नीबू निचोड़ दें। नीबू निचोड़ते समय शत्रु का नाम लेते रहें, उसका शमन होगा और वह आपके विरुद्ध कोई कदम नहीं उठाएगा।

रोग से छुटकारा पाने के लिए : एक रुपये का सिक्का रात को सिरहाने में रख कर सोएं और सुबह उठकर उसे श्मशान के आसपास फेंक दें, रोग से मुक्ति मिल जाएगी।

ससुराल में सुखी रहने के लिए : कन्या अपने हाथ से हल्दी की 7 साबुत गांठें, पीतल का एक टुकड़ा और थोड़ा-सा गुड़ ससुराल की तरफ फेंके, ससुराल में सुरक्षित और सुखी रहेगी।

वैवाहिक सुख के लिए : कन्या का विवाह हो जाने के बाद उसके घर से विदा होते समय एक लोटे में गंगाजल, थोड़ी सी हल्दी और एक पीला सिक्का डालकर उसके आगे फेंक दें, उसका वैवाहिक जीवन सुखी रहेगा।

घर में खुशहाली तथा दुकान की उन्नति हेतु : घर या व्यापार स्थल के मुख्य द्वार के एक कोने को गंगाजल से धो लें और वहां स्वास्तिक की स्थापना करें और उस पर रोज चने की दाल और गुड़ रखकर उसकी पूजा करें। साथ ही उसे ध्यान रोज से देखें और जिस दिन वह खराब हो जाए उस दिन उस स्थान पर एकत्र सामग्री को जल में प्रवाहित कर दें। यह क्रिया शुक्ल पक्ष के बृहस्पतिवार को आरंभ कर ११ बृहस्पतिवार तक नियमित रूप से करें। फिर गणेश जी को सिंदूर लगाकर उनके सामने लड्डू रखें तथा ÷जय गणेश काटो कलेश' कहकर उनकी प्रार्थना करें, घर में सुख शांति आ जागी।

सफलता प्राप्ति के लिए : प्रातः सोकर उठने के बाद नियमित रूप से अपनी हथेलियों को ध्यानपूर्वक देखें और तीन बार चूमें। ऐसा करने से हर कार्य में सफलता मिलती है। यह क्रिया शनिवार से शुरू करें।

धन लाभ के लिए : शनिवार की शाम को माह (उड़द) की दाल के दाने पर थोड़ी सी दही और सिंदूर डालकर पीपल के नीचे रख आएं। वापस आते समय पीछे मुड़कर नहीं देखें। यह क्रिया शनिवार को ही शुरू करें और 7 शनिवार को नियमित रूप से किया करें, धन की प्राप्ति होने लगेगी।

संपत्ति में वृद्धि हेतु : किसी भी बृहस्पतिवार को बाजार से जलकुंभी लाएं और उसे पीले कपड़े में बांधकर घर में कहीं लटका दें। लेकिन इसे बार-बार छूएं नहीं। एक सप्ताह के बाद इसे बदल कर नई कुंभी ऐसे ही बांध दें। इस तरह 7 बृहस्पतिवार करें। यह निच्च्ठापूर्वक करें, ईश्वर ने चाहा तो आपकी संपत्ति में वृद्धि अवष्य होगी। 

मां दुर्गा का पांचवां स्वरूप स्कन्दमाता

मां दुर्गा अपने पांचवें स्वरूपमें स्कन्दमाता के नाम से जानी जाती है।
सिंहासनगतानित्यंपद्माश्रितकरद्वया।
शुभदास्तुसदा देवी स्कन्दमातायशस्विनीम्॥

भगवती दुर्गा के पांचवें स्वरूप को स्कन्दमाताके रूप में जाना जाता है। स्कन्द कुमार अर्थात् काíतकेय की माता होने के कारण इन्हें स्कन्दमाताकहते हैं। इनका वाहन मयूर है। मंगलवार के दिन साधक का मन विशुद्ध चक्र में अवस्थितहोता है। इनके विग्रह में भगवान स्कन्दजीबाल रूप में इनकी गोद में बैठे होते हैं। स्कन्द मातुस्वरूपणीदेवी की चार भुजाएं हैं। ये दाहिनी तरफ की ऊपर वाली भुजा से भगवान स्कन्द्रको गोद में पकडे हुए हैं और दाहिने तरफ की नीचे वाली भुजा वरमुद्रामें तथा नीचे वाली भुजा जो ऊपर उठी हुई है, इसमें भी कमल पुष्प ली हुई हैं। इनका वर्ण पूर्णत:शुभ है। ये कमल के आसन पर विराजमान रहती हैं। इसी कारण से इन्हें पद्मासनादेवी कहा जाता है। सिंह भी इनका वाहन है।

ध्यान:- वन्दे वांछित कामर्थेचन्द्रार्घकृतशेखराम्।
सिंहारूढाचतुर्भुजास्कन्धमातायशस्वनीम्॥
धवलवर्णाविशुद्ध चक्रस्थितांपंचम दुर्गा त्रिनेत्राम।
अभय पदमयुग्म करांदक्षिण उरूपुत्रधरामभजेम्॥
पटाम्बरपरिधानाकृदुहज्ञसयानानालंकारभूषिताम्।
मंजीर हार केयूर किंकिणिरत्नकुण्डलधारिणीम।।
प्रभुल्लवंदनापल्लवाधरांकांत कपोलांपीन पयोधराम्।
कमनीयांलावण्यांजारूत्रिवलींनितम्बनीम्॥

स्तोत्र:- नमामि स्कन्धमातास्कन्धधारिणीम्।
समग्रतत्वसागरमपारपारगहराम्॥
शिप्रभांसमुल्वलांस्फुरच्छशागशेखराम्।
ललाटरत्‍‌नभास्कराजगतप्रदीप्तभास्कराम्॥
महेन्द्रकश्यपाíचतांसनत्कुमारसंस्तुताम्।
सुरासेरेन्द्रवन्दितांयथार्थनिर्मलादभुताम्॥
मुमुक्षुभिíवचिन्तितांविशेषतत्वमूचिताम्।
नानालंकारभूषितांकृगेन्द्रवाहनाग्रताम्।।
सुशुद्धतत्वातोषणांत्रिवेदमारभषणाम्।
सुधाíमककौपकारिणीसुरेन्द्रवैरिघातिनीम्॥
शुभांपुष्पमालिनीसुवर्णकल्पशाखिनीम्।
तमोअन्कारयामिनीशिवस्वभावकामिनीम्॥
सहस्त्रसूर्यराजिकांधनज्जयोग्रकारिकाम्।
सुशुद्धकाल कन्दलांसुभृडकृन्दमज्जुलाम्॥
प्रजायिनीप्रजावती नमामिमातरंसतीम्।
स्वकर्मधारणेगतिंहरिप्रयच्छपार्वतीम्॥
इनन्तशक्तिकान्तिदांयशोथमुक्तिदाम्।
पुन:पुनर्जगद्धितांनमाम्यहंसुराíचताम॥
जयेश्वरित्रिलाचनेप्रसीददेवि पाहिमाम्॥

कवच:- ऐं बीजालिंकादेवी पदयुग्मधरापरा।
हृदयंपातुसा देवी कातिकययुता॥
श्रींहीं हुं ऐं देवी पूर्वस्यांपातुसर्वदा।
सर्वाग में सदा पातुस्कन्धमातापुत्रप्रदा॥
वाणवाणामृतेहुं फट् बीज समन्विता।
उत्तरस्यातथाग्नेचवारूणेनेत्रतेअवतु॥
इन्द्राणी भैरवी चैवासितांगीचसंहारिणी।
सर्वदापातुमां देवी चान्यान्यासुहि दिक्षवै॥
भगवती स्कन्दमाताका ध्यान स्तोत्र व कवच का पाठ करने से विशुद्ध चक्र जागृत होता है। इससे मनुष्य की समस्त इच्छाओं की पूíत होती है। परम शांति व सुख का अनुभव होने लगता है।

ब्रह्म मुहूर्त की महत्ता

प्रत्येक प्राणी की दिनचर्या का प्रारंभ प्रातःकाल से होता है। किसी काम की शुरुआत करने के संबंध में सुबह का समय अर्थात ब्रह्म मुहूर्त में किसी से भी मुहूर्त पूछने की आवश्यकता नहीं होती। प्रातःकाल सूर्योदय के साथ ही कमल खिल जाते हैं। सृष्टि में एक नवजीवन, नवचेतन-स्फूर्ति दृष्टिगोचर होने लगती है। ऐसे सुअवसर की उपेक्षा मात्र नादानी के सिवाय कुछ भी नहीं। शारीरिक स्वास्थ्य- मन-बुद्धि, आत्मा के बहुमुखी विकास सभी की दृष्टि से ब्रह्म मुहूर्त में उठना चाहिए। इस समय प्रकृति मुक्त हस्त से स्वास्थ्य, प्रसन्नता, मेधा, बुद्धि एवं आत्मिक अनुदानों की वर्षा करती है। ऋषियों की दृष्टि में अर्थात स्वस्थ मनुष्य आयु की रक्षा के लिए रात के भोजन के पचने, न पचने का विचार करता हुआ ब्रह्म मुहूर्त में उठे।

महर्षि मनु ने कहा है- प्रत्येक मनुष्य को ब्रह्म मुहूर्त में उठकर धर्म और अर्थ का चिंतन करना एवं शरीर के रोग और कारणों का विचार तथा वेद के रहस्यों का विचार-चिंतन करना चाहिए।

आज के प्रचलन- देर से सोने और देर से उठने के प्रपंच से रोगों से दूर रह प्रसन्नता की प्राप्ति असंभव है। प्रातः ब्रह्म मुहूर्त में शय्या अवश्य त्याग देना चाहिए। चौबीस घंटों में ब्रह्म मुहूर्त ही सर्वश्रेष्ठ है। मानव जीवन बड़े भाग्य से प्राप्त होता है। इसका प्रत्येक क्षण बहुमूल्य है, अतः सोने के पश्चात सुबह का समय (ब्रह्म मुहूर्त) जागते ही चेतना का शरीर से सघन संपर्क बनाता है, यही नए जन्म जैसी स्थिति है।

आयुर्वेद के ग्रंथों के कथनानुसार प्रातः उठने से सौंदर्य, यश, वृद्धि, धन-धान्य, स्वास्थ्य और दीर्घायु की प्राप्ति होती है। शरीर कमल के समान खिल जाता है। प्रातः उठकर ईश्वर-चिंतन के साथ हमें जन्म देने वाली पृथ्वी माँ को नमस्कार करना चाहिए।

दिनचर्या में इसके पश्चात उषापान का क्रम आता है। उषापान शौच जाने से पूर्व ही किया जाना चाहिए। आयुर्वेद में उषापान का विधान है। कहा गया है- 'प्रातः उठकर जो नित्य उषापान करता है, निज शरीर को स्वस्थ बना रोगों से अपनी रक्षा करता है।'

आत्मबोध की साधना प्रातः जागरण के साथ ही संपन्ना की जाती है। रात्रि में नींद आते ही यह दृश्य जगत समाप्त हो जाता है। मनुष्य स्वप्न-सुबुद्धि के किसी अन्य जगत में रहता है। इस जगत में पड़े हुए स्थूल शरीर से उसका संपर्क नाममात्र या कामचलाऊ रहता है।

कर्म फ़ल को भोगने के लिये ही व्यक्ति रात को जगता है,अगर दिन मे मेहनत से काम किया है,किसी को सताया नही है तो रात मे थक कर बहुत ही अच्छी नींद आती है,रात को जगने मे जगने वालों के लिये कहा है कि- या जगे कोई रोगी,भोगी,या जगे कोइ चोर,या जगे कोइ संत प्यारा,जाकी लागी प्रभु से डोर,बाबा से ध्यान मे बात करने बाला भी जगता है,मगर ध्यान मे जगने और चिन्ता मे जगने उतना ही अन्तर है ,जितना कि स्वर्ग और नरक का,रात को जल्दी सोये,और सुबह को जल्दी जागे,उस प्राणी से दुनिया के दुख दूर दूर ही भागे।

रामायण – लंकाकाण्ड - धूम्राक्ष और वज्रदंष्ट्र का वध

जब हर्षोन्मत्त वानरों का शोर रावण तक पहुँचा तो उसे आश्चर्य और आशंका ने आ घेरा। उसने तत्काल मन्त्रियों से कहा, "मेघनाद ने राम और लक्ष्मण का वध कर दिया था। फिर वानर सेना में यह नया उत्साह कैसे आ गया? शीघ्र पता लगाकर बताओ, इसका क्या कारण है? भरत तो अयोध्या से विशाल सेना लेकर नहीं आ गया? आखिर ऐसी कौन सी बात हुई है जो वानर सेना राम की मुत्यु का दुःख भी भूलकार गर्जना कर रही है।" तभी एक गुप्तचर ने आकर सूचना दी कि राम और लक्ष्मण मरे नहीं हैं, वे नागपाश से मुक्त होकर युद्ध की तैयारी कर रहे हैं।

यह सुनते ही रावण का मुख फीका पड़ गया। उसने क्रोधित होकर पराक्रमी धूम्राक्ष को आज्ञा दी, "हे वीरश्रेष्ठ धूम्राक्ष! तुमने अब तक अनेक बार अद्भुत पराक्रम दिखाया है। तुम सहस्त्रों वीरों को अकेले मार सकते हो। एक विशाल सेना लेकर जाओ और राम-लक्ष्मण सहित शत्रु सेना का नाश करो।"

रावण की आज्ञा पाते ही शूल, गदा, तोमर, भाले, पट्टिश आदि शस्त्रों से युक्त राक्षसों की विशाल सेना लेकर धूम्राक्ष रणभूमि में जा पहुँचा। इस विशाल वाहिनी को देख कर वानर सेना घोर गर्जना करती हुई उस पर टूट पड़ी। धूम्राक्ष कंकपत्रों वाले तीक्ष्ण बाणों से वानरों को घायल करने लगा। वे भी राक्षसों के वार बचाकर बड़े-बड़े शिलाखण्ड ले आकाश में उड़ कर उन पर फेंकने लगे। आकाश को उद्यत राक्षसी सेना को अपने प्राण बचाने कठिन हो गये। फिर भी राक्षस सेना का एक भाग अपने प्राणों की चिन्ता न करके बाणों, त्रिशूलों आदि से वानरों का लहू बहा रहा था। चारों ओर रक्त की नदियाँ बहने लगीं। जिधर देखो उधर ही राक्षसों और वानरों के रुण्ड-मुण्ड दिखाई देते थे। कानों के पर्दों को फाड़ने वाला चीत्कार और हाहाकार सुनाई दे रहा था। रणोन्मत्त धूम्राक्ष हताहत वीरों के शरीरों को रौंदता हुआ अपने अग्नि बाणों से वानर सेना को भस्मीभूत कर रहा था। उसके आक्रमण की ताव न लाकर वानर सेना इधर-उधर भागने लगी। अपने सेना की यह दुर्दशा देख कर हनुमान ने क्रोध से भरकर एक विशाल शिला उखाड़ी और लक्ष्य तानकर धूम्राक्ष की ओर फेंक दी। उस शिला को अपनी ओर आते देख वह फुर्ती से रथ से कूद पड़ा। इस बीच में रथ चूर-चूर हो चुका था और घोड़े तथा सारथी मर चुके थे। राक्षस सेनापति को इस प्रकार बचता देख हनुमान का क्रोध और भी भड़क उठा। उन्होंने दाँतों, नाखूनों से उनके और धूम्राक्ष के बीच में आने वाले राक्षस समुदाय का विनाश करके मार्ग साफ कर लिया। जब उसने हनुमान को भयंकर रूप से अपनी ओर आते देखा तो लोहे के काँटों से भरी हुई गदा उठाकर उनके सिर पर दे मारी। हनुमान ने वार बचा कर एक भारी शिला उठाई और आकाश में उड़ कर धूम्राक्ष को दे मारी। इससे उसके शरीर की समस्त हड्डियाँ टूट गईं और वह पृथ्वी पर गिरकर यमलोक सिधार गया। उसके मरते ही राक्षस भी भाग छूटे।

रावण ने जब धूम्राक्ष की मृत्यु का समाचार सुना तो वह क्रोध से पागल हो गया। उसके नेत्रों से चिंगारियाँ निकलने लगीं। उसने वज्रदंष्ट्र को बुलाकर आज्ञा दी कि वह राम-लक्ष्मण तथा हनुमान सहित वानरसेना का वध करके अपने शौर्य का परिचय दे। वज्रदंष्ट्र जितना वीर था, उससे अधिक मायावी था। वह अपनी भीमकर्मा पराक्रमी सेना लेकर दक्षिण द्वार से चला। युद्धभूमि में पहुँचते ही उसने अपने सम्मुख अंगद को पाया जो अपनी सेना के साथ उससे युद्ध करने के लिये तत्पर खड़ा था। वज्रदंष्ट्र को देखते ही वानर सेना किचकिचा कर राक्षसों पर टूट पड़ी। दोनों ओर से भयंकर मारकाट मच गई। सम्पूर्ण युद्धभूमि रुण्ड-मुण्डों, हताहत सैनिकों तथा रक्त के नालों एवं सरिताओं से भर गई। रक्त सरिताओं में नाना प्रकार के शस्त्र-शस्त्र, कटे हुये हाथ तथा मस्तक छोटे-छोटे द्वीपों की भाँति दिखाई देने लगे। अंगद तथा वानर सेनापतियों द्वारा बार-बार की जाने वाली सिंहगर्जना ने राक्षस सैनिकों का मनोबल तोड़ दिया। जब उन्हें अपने चारों ओर राक्षसों के कटे हुये अंग दिखाई देने लगे तो वह अपने प्राणों के मोह से रणभूमि से पलायन करने लगे।

अपनी सेना को मरते-कटते और कायरों की तरह भागते देख वज्रदंष्ट्र दुगने पराक्रम और क्रोध से युद्ध करने लगा। उसने तीक्ष्णतर बाणों का प्रयोग करके वानरों को घायल करना आरम्भ कर दिया। क्रुद्ध वज्रदंष्ट्र के भयानक आक्रमण से पीड़ित होकर वानर सेना भी इधर-उधर छिपने लगी। उनकी यह दशा देखकर अंगद ने उस राक्षस सेनापति को ललकारा, "वज्रदंष्ट्र! तूने बहुत मारकाट कर ली। तेरा अंत समय आ गया है। अब मैं तुझे धूम्राक्ष के पास भेजता हूँ।" यह कहकर अंगद उससे जाकर भिड़ गये। दोनों महान योद्धा मस्त हाथियों की भाँति एक दूसरे पर प्रहार करने लगे। दोनों ही रक्त से लथपथ हो गये। फिर अवसर पाकर अंगद ने तलवार से वज्रदंष्ट्र का सिर काट डाला। अपने सेनापति के मरते ही राक्षस सेना मैदान से भाग खड़ी हुई।

19 मार्च 2010

निर्वाण क्या है?

बौद्ध धर्म निर्वाण का अर्थ बुझ जाने से लगाता है। तृष्णा का बुझ जाना। वासनाओं का शांत हो जाना। तृष्णा और वासना से ही दुःख होता है। दुःखों से पूरी तरह छुटकारे का नाम है- निर्वाण।

भगवान बुद्ध ने कहा है- 'भिक्षुओं! संसार अनादि है। अविद्या और तृष्णा से संचालित होकर प्राणी भटकते फिरते हैं। उनके आदि-अंत का पता नहीं चलता। भवचक्र में पड़ा हुआ प्राणी अनादिकाल से बार-बार जन्मता-मरता आया है।

संसार में बार-बार जन्म लेकर प्रिय के वियोग और अप्रिय के संयोग के कारण रो-रोकर अपार आँसू बहाए हैं। दीर्घकाल तक दुःख का, तीव्र दुःख का अनुभव किया है। अब तो सभी संस्कारों से निर्वेद प्राप्त करो, वैराग्य प्राप्त करो, मुक्ति प्राप्त करो।'

जिघच्छा परमा रोगा, संखारा परमा दुखा।
एव ञत्वा यथाभूतं निब्बानं परम सुखं॥

बुद्ध कहते हैं रोगों की जड़ जिघृक्षा है। ग्रहण करने की इच्छा, तृष्णा। सारे दुःखों का मूल है संस्कार। इस तत्व को जानकर तृष्णा और संस्कार के नाश से ही मनुष्य निर्वाण पा सकता है।

सचे नेरेसि अत्तानं कंसो उपहतो यथा।
एस पत्ती सि निब्बानं, सारम्भो तेन विज्जति॥

बुद्ध सलाह देते हैं यदि तुम टूटे हुए काँसे की तरह अपने को नीरव, निश्चल या कर्महीन बना लो तो समझो तुमने निर्वाण पा लिया। कारण, कर्मों का आरंभ अब तुम में रहा नहीं और उसके न रहने से जन्म-मरण का चक्कर भी छूट गया।

विपश्यना क्यों ?

मन में मैत्री करुण रस, वाणी अमृत घोल।
जन जन के हित के लिए, धर्म वचन ही बोल॥

शांति व चैन किसे नहीं चाहिए जब सारे संसार में अशांति और बेचैनी छाई हुई नजर आती है? शांतिपूर्वक जीना आ जाए तो जीने की कला हाथ आ जाए। सच्चा धर्म सचमुच जीने की कला ही है जिससे कि हम स्वयं भी सुख और शांतिपूर्वक जीएँ तथा औरों को भी सुख-शांति से जीने दें। शुद्ध धर्म यही सिखाता है, इसलिए सार्वजनीन, सार्वकालिक और सार्वभौमिक होता है। संप्रदाय धर्म नहीं है। संप्रदाय को धर्म मानना प्रवंचना है।

समझें! धर्म कैसे शांति देता है?
पहले यह जान लें कि हम अशांत और बेचैन क्यों हो जाते हैं? गहराई से सोचने पर साफ मालूम होगा कि जब हमारा मन विकारों से विकृत हो उठता है, तब वह अशांत हो जाता है। चाहे क्रोध हो, लाभ हो, भय हो, ईर्ष्या हो या और कुछ। उस समय विक्षुब्ध होकर हम संतुलन खो बैठते हैं। क्या इलाज है जिससे हममें क्रोध, ईर्ष्या, भय इत्यादि आएँ ही नहीं और आएँ भी तो इनसे हम अशांत न हो उठें।

आखिर ये विकार क्यों आते हैं? अधिकांशतः किसी अप्रिय घटना की प्रतिक्रियास्वरूप आते हैं। तो क्या यह संभव है कि दुनिया में रहते हुए कोई अप्रिय घटना घटे ही नहीं? कोई प्रतिकूल परिस्थिति पैदा ही न हो? नहीं, यह किसी के लिए भी संभव नहीं। जीवन में प्रिय-अप्रिय दोनों प्रकार की परिस्थितियाँ आती ही रहती हैं। प्रयास यही करना है कि विषम परिस्थिति पैदा होने के बावजूद हम अपने मन को शांत व संतुलित रख सकें। रास्ते में काँटे-कंकर रहेंगे ही। उपाय यही हो सकता है कि हम जूते पहनकर चलें। तेज वर्षा-धूप आएगी ही, बचाव इसी में है कि हम छाता तानकर चलें। यानी प्रतिकूल परिस्थितियों के बावजूद हम अपनी सुरक्षा स्वयं करना सीखें।

सुरक्षा इसी में है कि कोई गाली दे, अपमान करे तो भी मैं क्षुब्ध न होकर निर्विकार बनकर रहूँ। यहाँ एक बात यह विचारणीय है कि किसी व्यक्ति द्वारा अयोग्य व्यवहार करने पर यानी उसके दोष के कारण क्षोभ या विकार मुझे क्यों होता है? इसका कारण मुझमें यानी मेरे अचेतन मन में संचित अहंकार, आसक्ति, राग, द्वेष आदि विकार चेतन मन पर उभरते हैं, इसीलिए जिस व्यक्ति का अंतर्मन परम शुद्ध है उसे ऐसी घटनाओं से कोई विकार या अशांति नहीं हो पाती। परन्तु प्रश्न यह है कि जब तक अंतर्मन परम शुद्ध नहीं हो जाता, तब तक क्या किया जाए? मन में पूर्व संचित संस्कारों की गंदगियाँ तो हैं ही और इन्हीं के कारण किसी भी अप्रिय घटना का संपर्क होते ही नए विकारों का उभार आता ही है। ऐसी अवस्था में क्या करें ?

एक उपाय तो यह है कि जब मन में कोई विकार जागे तो उसे दूसरी ओर लगा दें। किसी अन्य चिंतन में अथवा अन्य काम में। यानी वस्तुस्थिति से पलायन करें। परन्तु यह सही उपाय नहीं है। जिसे हमने दूसरी ओर लगाया, वह तो ऊपर-ऊपर का चेतन मन है। अंदर का अचेतन, अर्द्धचेतन मन तो उसी प्रकार क्षुब्ध होकर भीतर ही भीतर मूँज की रस्सी की तरह अकड़ता और गाँठें बाँधता जाता है। भविष्य में जब कभी ये गाँठें उभरकर चेतन मन पर आएँगी तब और अधिक अशांति और बेचैनी पैदा करेंगी। अतः पलायन करना समस्या का सही समाधान नहीं है। रोग का सही इलाज नहीं है।

इसी समस्या के समाधान की खोज आज से लगभग 2500 वर्ष पूर्व इसी देश में भगवान गौतम बुद्ध ने की और लोगों के कल्याण के लिए इसे सर्वसुलभ बनाया। उन्होंने अपनी अनुभूतियों के बल पर जाना कि ऐसे अवसर पर पलायन न करके वस्तुस्थिति का सामना करना चाहिए। किसी भी घटना के कारण जो भी विकार जागे उसे यथावत देखना चाहिए। क्रोध आया तो क्रोध जैसा है उसे वैसा ही देखें। देखते रहें। इससे क्रोध शांत होने लगेगा।

इसी प्रकार जो विकार जागे, उसे यथाभूत देखने लगें तो उसकी शक्ति क्षीण हो जाएगी। परन्तु कठिनाई यह है कि जिस समय विकार जागता है, उस समय हमें होश नहीं रहता। क्रोध आने पर यह नहीं जानते हैं कि क्रोध आया है। क्रोध निकल जाने के बाद होश आता है। तब सोचते हैं कि बड़ी भूल हुई जो क्रोध में आकर किसी को गाली दी या मारपीट पर उतारू हो गए। इस बात को लेकर पश्चाताप करते हैं, परन्तु दूसरी बार वैसी परिस्थिति आने पर फिर वैसा ही करते हैं।

वस्तुतः क्रोध आने पर तो हमें होश रह नहीं पाता। बाद में होश आने पर पश्चाताप करने से लाभ नहीं होता। चोर आए तब तो सोए रहें, परन्तु उसके द्वारा घर का माल चुरा ले जाने के बाद जल्दी-जल्दी ताले लगाएँ तो इससे क्या लाभ? निकल भागने के बाद उस साँप की लकीर पीटते रहें तो क्या लाभ? विकार जागने पर होश कौन दिलाए?

क्या हर आदमी अपने साथ सचेतक के रूप में कोई सहायक रखे? यह संभव नहीं है। और मान लीजिए कि संभव हुआ भी, किसी ने अपने लिए कोई सहायक नियुक्त कर भी लिया और ऐन मौके पर उस सहायक ने सचेत भी कर दिया कि आपको क्रोध आ रहा है, आप क्रोध को देखिए, तो दूसरी कठिनाई यह है कि अमूर्त क्रोध को कोई कैसे देखे?

जब क्रोध को देखने का प्रयास करते हैं, तब जिसके कारण क्रोध आया है, वही आलंबन बार-बार मन में उभरता है और आग में घी का काम करता है। वही तो उद्दीपन है। उसी के चिंतन से, विकार से छुटकारा कैसे होगा? बल्कि उसे बढ़ावा मिलेगा। तो एक और बड़ी समस्या यह है कि आलंबन से छुटकारा पाकर अमूर्त विकार को साक्षीभाव से कैसा देखा जाए?

मां दुर्गा का चतुर्थ स्वरूप कूष्माण्डा

मां दुर्गा अपने चतुर्थ स्वरूप में कूष्माण्डाके नाम से जानी जाती है।
सुरासम्पूर्णकलशंरुधिप्लूतमेव च।
दधाना हस्तपदमाभयां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे॥

भगवती दुर्गा के चतुर्थ स्वरूप का नाम कूष्माण्डा है। अपनी मंद हंसी द्वारा अण्ड अर्थात् ब्रह्माण्ड को उत्पन्न करने के कारण इन्हें कूष्माण्डा देवी के नाम से अभिहित किया गया है। जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था, चारों ओर अंधकार ही अंधकार परिव्याप्त था तब इन्हीं देवी ने अपने ईषत हास्य से ब्रह्माण्ड की रचना की थी। अत: यही सृष्टि की आदि स्वरूपा आदि शक्ति हैं। इनके पूर्व ब्रह्माण्ड का अस्तित्व था ही नहीं। इनकी आठ भुजाएं हैं। अत: ये अष्टभुजा देवी के नाम से विख्यात हैं। इनके सात हाथों में क्रमश: कमण्डल, धनुष बाण, कमल, पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र तथा गदा हैं। आठवें हाथ में सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली जपमाला है। इनका वाहन सिंह है। संस्कृत भाषा में कूष्माण्डा कुम्हडे को कहते हैं। बलियों में कुम्हडे की बलि इन्हें सर्वाधिक प्रिय है। इस कारण से भी यह कूष्माण्डा कही जाती हैं।

ध्यान:- वन्दे वांछित कामर्थे चन्द्रार्घकृत शेखराम्।
सिंहरूढा अष्टभुजा कुष्माण्डा यशस्वनीम्॥
भास्वर भानु निभां अनाहत स्थितां चतुर्थ दुर्गा त्रिनेत्राम्।
कमण्डलु चाप, बाण, पदमसुधाकलश चक्र गदा जपवटीधराम्॥
पटाम्बर परिधानां कमनीया कृदुहगस्या नानालंकार भूषिताम्।
मंजीर हार केयूर किंकिण रत्‍‌नकुण्डल मण्डिताम्।
प्रफुल्ल वदनां नारू चिकुकां कांत कपोलां तुंग कूचाम्।
कोलांगी स्मेरमुखीं क्षीणकटि निम्ननाभि नितम्बनीम् ॥

स्त्रोत:- दुर्गतिनाशिनी त्वंहि दारिद्रादि विनाशिनीम्।
जयंदा धनदां कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम्॥
जगन्माता जगतकत्री जगदाधार रूपणीम्।
चराचरेश्वरी कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम्॥
त्रैलोक्यसुंदरी त्वंहि दु:ख शोक निवारिणाम्।
परमानंदमयी कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम्॥

कवच:- हसरै मे शिर: पातु कूष्माण्डे भवनाशिनीम्।
हसलकरीं नेत्रथ, हसरौश्च ललाटकम्॥
कौमारी पातु सर्वगात्रे वाराही उत्तरे तथा।
पूर्वे पातु वैष्णवी इन्द्राणी दक्षिणे मम।
दिग्दिध सर्वत्रैव कूं बीजं सर्वदावतु॥
भगवती कूष्माण्डा का ध्यान, स्त्रोत, कवच का पाठ करने से अनाहत चक्र जाग्रत हो जाता है, जिससे समस्त रोग नष्ट हो जाते हैं आयु, यश, बल और आरोग्य की वृद्धि होती है।

घरेलु उपचार 8

शुगर
· मधुमेह में प्यास अधिक होने पर पानी में नींबू निचोड़ कर पिलाने से लाभ होता है।
· मधुमेह में रोगी को नारंगी कम मात्रा में खानी चाहिये।
· ताजे ऑंवले के रस में शहद मिलाकर पीने से मधुमेह ठीक हो जाता है।
· मधुमेह के रोगी को जब बहुत तीव्र इच्छा मीठा खाने की हो तो खजूर का सेवन कर सकते हैं।
· मधुमेह में करेला महाऔषधि है रोज प्रात: करेले का रस पीने या दिन में तीन बार 15 ग्राम करेले के रस में 100 ग्राम पानी मिलाकर पीने से लाभ होता है। छाया में सुखाये हुए करेलों का चूर्ण 6 ग्राम दिन में एक बार दें। खाने में करेले की सब्जी लें।

याददाश्त
· सर्दी के मौसम में सवेरे अखरोट की निशास्ता या पेय बनाकर पीना चाहिए। इससे दिमाग बहुत अच्छा हो जाता है, नींद बहुत सुखद आती है। कब्ज भी दूर होती है तथा चेहरे की कान्ति में चार चाँद लग जाते हैं, इसके साथ यह वीर्य-पुष्टिकर एवं वृद्धि करने वाला योग भी है।
· तिल के लड्डू रोजाना खाने से मानसिक दुर्बलता व तनाव कम होता है।
· सौंफ और मिश्री का समभाग चूर्ण मिलाकर दो चम्मच दोनों समय भोजन के बाद, लेते रहने से मस्तिष्क की कमजोरी दूर होती है। एक मास या दो मास लें।
· 4 दिमागी कमजोरी, गुर्दे की खराबी, स्मरण शक्ति की कमी में भोजन से पहले एक मीठा सेब बिना छीले खाना चाहिए।

हिचकी
· यदि किसी को हिचकी आ रही हो तो दो चम्मच प्याज के रस में दो चम्मच ही शहद मिलाकर चाटने से हिचकी आनी बन्द हो जाती है।
· पुदीने की पत्ती को शक्कर के साथ चबाकर उसका रस चूसने तथा नींबू का रस चूसने से हिचकी नहीं आती है।
· सोंठ और पुराना देसी गुड़ बराबर मात्रा में मिलाकर पीसकर दिन में कई बार सूंघने से फायदा होता है।
· यदि हिचकी आ रही हो तो थोड़ी मात्रा में शहद चाटें, सोंठ और छोटी हरड़ को पानी में घिसकर इसका एक चम्मच गाढ़ा लेप एक कप गुनगुने पानी में घोलकर पिलाने से हिचकी में आराम मिलता है।

जी मिचलाना
· तुलसी रस का एक छोटा चम्मच पी जाएँ, या शहद मिलाकर चाटने से जी मिचलना बंद हो जाएगा।
· जीरे को नींबू के रस में भिंगोकर नमक मिलाकर खटाई का जीरा बनाएं। जी मिचलाने पर या गर्भवती स्त्री के जी मिचलाने या उबकाई आदि में यह चूर्ण खाना विशेष लाभदायक है।
· अखरोट खाने से जी मिचलाना दूर हो जाता है।
· जी मिचलाने पर टमाटर का सेवन करने से विशेष लाभ होता है।

अधिक प्यास
· पानी में नींबू निचोड़कर पीयें, तरबूज का सेवन भी हितकारी है। मुलहठी को मुंह में रखकर चूसने से भी धीरे-धीरे प्यास कम होने लगती है।
· आलूबुखारा 10 ग्राम, नमक 1 ग्राम, जीरा 1 ग्राम, इमली 10 ग्राम को पीसकर 100 ग्राम पानी में मिलाकर पीने से प्यास से राहत मिलती है।
· मुलहठी को मुँह में रखकर चूसें तो प्यास मिटती है।
· ताजा कच्चा सिंघाड़ा प्यास को कम करता है।
· शंखा होली 10 ग्राम, मिश्री 30 ग्राम को पीसकर शर्बत बनाकर पीने से प्यास में कमी आ जाती है।

पेट दर्द
· यदि पेट दर्द हो रहा हो तो काली मिर्च, हींग, सोठ तीनों को बराबर मात्रा में लेकर बारीक पीस कर आधा चम्मच फांक कर ऊपर से गुनगुने पानी से लेने से पेट दर्द से तुरंत राहत मिलती है।
· अदरक के रस में नींबू का रस, काली मिर्च का चूर्ण मिलाकर पीने से पेट दर्द गायब हो जाता है।
· तीन इलायची को पीसकर शहद में मिलाकर चाटने से पेट दर्द में जल्द फायदा होता है।
· यदि किसी वस्तु के खाने से पेट दर्द होता है तो कुछ दिन लगातार शहद का सेवन करने से पेट दर्द ठीक हो जाता है।

भूख न लगना
· यदि भूख नहीं लग रही हो, खाया हुआ भोजन देर से पच रहा हो, खट्टी डकार तथा पेट फुलने जैसे पेट संबंधी अनेक बीमारी में बथुआ का साग मात्र एक महीने तक सेवन करने से विशेष फायदा होता है।
· भूख बढ़ाने के लिए सौंठ, हरड़ और काला जीरा के चूर्ण एवं बेल का गूदा छाछ में मिलाकर पीने से भूख बढ़ जाती है।
· खाने की इच्छा नहीं हो रही हो तो सोंठ और गुड़ के साथ हरड़ के चूर्ण का सेवन करने से आशातीत लाभ होता है।
· गर्मी की वजह से भी कई बार भूख नहीं लगती। ऐसी स्थिति में भोजन के एक घण्टे पहले बर्फ का पानी पेट-भर पीने से भी भूख लग आती है।

अनिद्रा
· कुछ लोग ऐसे हैं जिन्हें गहरी नींद नहीं आती है जिसके कारण वे विशेष परेशान हैं, ऐसे में उन्हें क्षीर पाक बनाकर सेवन करना चाहिए। क्षीर पाक बनाने के लिए अश्वगंधा का बारीक चूर्ण 10 ग्राम, गाय का दूध 250 मिलीलीटर, 250 मिलीलीटर पानी मिलाकर किसी मिट्टी के पात्र में धीमी आंच पर उबालें, जब जल उड़ जाए तो छानकर इस दूध का सेवन करें।
· भेड़ का दूध हाथ-पैरों पर मलने से अच्छी नींद आती है।
· सेब का मुरब्बा सोने से पहले खाएं तो अच्छी नींद आएगी। सेब खाकर सोने से भी अच्छी नींद आती है।
· सोने से पहले शहद गर्म पानी में घोलकर पीयें, भरपूर नींद आयेगी।

उल्टी
. नींबू का रस व एक चम्मच शक्कर दो चम्मच जल में मिलाकर एक-एक घंटे पर रोगी को देने पर उल्टी रुक जाती है।
. 5 ग्राम पुदीना, 2 ग्राम सेंधा नमक एक साथ पीसकर और उसे शीतल जल में घोलकर पीने से उल्टी का शमन होता है।

गर्मी में इन्हें भी आजमाइये
. गर्मी के मौसम में सत्तू घोलकर पीने से शरीर को ठंडक मिलती है।
. सौंफ का चूर्ण दूध में मिलाकर पीने से गर्मी से बचाव होता है।

घरेलु उपचार 7

मोटापा
· यदि आप मोटापे से परेशान हों तो सुबह खाली पेट एक गिलास गुनगुने पानी में नींबू को काटकर उसका रस निचोड़ कर पीने के बाद 12 औंस गाजर व 4 औंस पालक का रस पीएं। इससे मोटापे की परेशानी दूर हो जाती है।
· शरीर का वजन तथा मोटापा घटाने के लिए सात दिन में एक बार केवल रस पर उपवास करने से मोटापा घीरे-धीरे कम हो जाती है।
· नींबू निचोड़कर पालक के रस में मिलाकर पीने से मोटापा धीरे-धीरे कम होने लगती है।
· बिना नमक के भोजन करने से मोटापा धीरे-धीरे कम हो जाती तथा फल, सब्जी व सलाद का अधिक सेवन करने से शरीर सुन्दर और सुडौल बन जाता है।

केश झड़ना:-
· नीम की पत्तियां पानी में उबालें और अगर बाल आपके झड़ रहे हो तो ठंडा कर सिर धोएं। एक सप्ताह बाद बाल झड़ने बंद हो जायेंगे। साथ ही बाल मजबूत और काले होंगे।
· यदि बाल निरंतर झड़ रहे हो तो खीरे के रस में नींबू का रस मिलाकर बालों की जड़ों में मालिश करें। घंटा-डेढ़ घंटा लगा रहने के बाद बिना साबुन के स्नान करें। यह क्रि या एक हफ्ते तक नियमित दोहराएँ।
· बाल झड़ना तथा गंजेपन की शिकायत में चुकंदर की कोमल एवं मुलायम पत्तियों को गलने तक पानी में खूब उबालें। अब इन पत्तियों को निचोड़कर उसी पानी का प्रयोग करते हुए पीसकर पतला पेस्ट बनाकर मेहँदी की पत्तियों के साथ पीस लें। अब इसमें वही थोड़ा पानी डालकर उबालकर गाढ़ा पेस्ट बनाएँ। ठंडा होने पर सिर पर लेप करें और खूब सूखने तक सिर पर लगा रहने दें। अब हलके गरम पानी में कुछ बूँदें नीबू के रस की डालकर सिर धो लें। यह प्रक्रिया एक माह तक अपनाएँ। इससे बाल चमकीले तथा घुँघराले बन जाते हैं। इसको सिरके में मिलाकर लगाने से रूसी दूर होती है।

सामान्य ज्वर
· जिन लोगों को खाँसी और बुखार की शिकायत हो, उन्हें पाँच काली मिर्च, पाँच तुलसी के पत्ते, एक लौंग, जरा-सी अदरक, एक इलायची-सबको चाय के साथ उबाल कर नित्य तीन बार पिलाने से खांसी, कफ तथा बुखार की शिकायत दूर हो जाती है।
· 25 दाना काली मिर्च तथा 25 नीम के पत्ते इन दोनों को मलमल के कपड़े में पोटली बांध कर 500 ग्राम पानी में तबतक उबालें जब चौथाई पानी रह जाए उसे ठण्डा होने पर सुबह-शाम पिलाने से पुराना से पुराना बुखार ठीक हो जाता है।
· यदि तेज बुखार आ रहा हो तो ठण्डे पानी में तौलिया भिगोकर सिर पर बार-बार रखें तथा सारा शरीर गीले कपड़े से पोंछें। ऐसा करने बुखार उतर जाएगा। शरीर को हवा न लगने दें।
· बुखार में नीम की पत्तियों का चूर्ण बनाकर दो या तीन ग्राम की मात्रा में गर्म पानी के साथ दिन में तीन बार लेने से बुखार जल्दी उतर जाता है।

घाव
· गाजर को उबाल कर उसकी लुगदी घाव पर लगाने से घाव ठीक हो जाते हैं। गाजर का जूस पीने से भी लाभ होता है।
· घाव पर तुलसी के पत्तों के महीन चूर्ण को बुरकने या पीसकर लेप करने से घाव ठीक हो जाता हैं।
· सरसों के तेल में हल्दी डालकर गरम करने के जब घाव पर रखने लायक हो जाए तो घाव पर लगाने से घाव ठीक हो जाता हैं।
· अनार के छिलके को उबाल कर उस पानी से घावों को धोने से घाव जल्दी ठीक हो जाता है।

दमा
· थोड़ी सी देशी अजवाइन में पच्चीस ग्राम आक की कोपलें और पचास ग्राम गुड़ में कूट-पीस क र दो-दो ग्राम की गोलियां बना लें। सुबह-शाम एक-एक गोली गर्म पानी से लेने से दमा रोग ठीक हो जाता है।
· प्रात: धतूरे का एक बीज आठ दिन तक पानी के साथ निगल लें। दूसरे सप्ताह दो-दो बीज लें। इसी प्रकार प्रति सप्ताह एक-एक बीज बढ़ाते हुए पांचवे सप्ताह पांच बीज लें। उससे पुराना से पुराना दमा ठीक हो जाता है।

गले की सूजन
· यदि आप टांसिल से परेशान हैं तो गर्म पानी में फिटकरी घोल कर गरारे करने के बाद फिर शहतूत का रस पीने से टांसिल सामान्य अवस्था में हो जाता है।
· टांसिल बढ़ गया हो तो बड़ के पत्तों पर तेल लगाकर सेंक करने से तथा सोंठ डालकर बांधने से टांसिल ठीक हो जाता हैं।

फोड़े-फुंसियां
· यदि शरीर के किसी अंग पर फोड़ा हो गया हो और वह पकने में न आ रहा हो और भयानक टीस मार रहा हो तो पान के पत्ते पर हल्का घी गर्म करके चुपड़कर उसे फोड़े पर रात को बांध कर सो जाएं, सुबह तक फोड़ा फूटकर सारी मवाद बाहर निकल जाती है और दर्द से राहत महसूस होती है।
· जौ और मेथी समान मात्रा में लेकर, पीसकर लेप बना लें। दिन में तीन बार लेप करें। मेथी की गर्मी से फोड़ा या गांठ घुल कर बाहर निकल जाएगी। लेकिन जौ के कारण त्वचा झुलसेगी नहीं।
· यदि फोड़ा पक न रहा हो तो पके हुए शरीफे का गूदा निकालकर उसमें चुटकी भर नमक मिलाकर फोड़े पर लेप दीजिए। फोड़ा जल्दी ही पक कर फूट जाता है और मवाद सारा निकल जाता है।
· यदि फोड़ा बह नहीं रहा हो तो 50 ग्राम गाय के घी में 125 ग्राम केले के हरे पत्ते का रस मिलाकर चार खुराक देने से रुका हुआ खराब रक्त बाहर निकल जाता है।

खाज-खुजली
· जीरे को गर्म पानी में पीसकर लगाने से त्वचा में जलन, खुजली व फुंसियां ठीक हो जाती हैं।
· खाज-खुजली से राहत पाने के लिए चने के पौधे की जड़ को धोकर पीस लें। इस पीसे हुए भाग को सरसों के तेल में मिलाकर धीरे-धीरे शरीर में सुबह-शाम मालिश करें। एक सप्ताह तक मालिश करने से त्वचा मुलायम होने के साथ ही खुजली से भी राहत मिलती है।
· खुजली वाले स्थान पर संतरे के ताजे छिलके को पानी के साथ पीसकार लगाने के बाद साबुन से हाथ अच्छी तरह धो लें। संतरे की फ ाकें चबाते-चबाते चूसें। जब संतरों का रस सूख जाये तो बिना साबुन लगायें, त्वचा को मल-मल के धो लें। स्नान करने के बाद सरसों का तेल लगा लें। सन्तरे की जगह नींबू के रस से भी लाभ होता है।
· खाज-खुजली से जल्द छुटकारा पाना है तो 150 ग्राम सरसोें तेल में 25 ग्राम फूली फिटकरी मिलाकर कर गर्म करने के बाद जब ठंडा हो जाए तो उसे शीशी में भर कर दो-तीन टिकिया कपूर डालकर शीशी बन्द कर दें। धूप में बैठकर उसे लगाने के दस मिनट बाद बिना साबुन के स्नान करें। गाजर तथा मूली का जूस पीने से भी लाभ होता है। ऐसा करने से खुजली दो-तीन दिन के अंदर ठीक हो जाती है, लेकिन मिर्च, मसाले, अचार, खट्टे पदार्थो के सेवन से परहेज करना आवश्यक है।

गैस
· दालचीनी गैस से हुए पेट दर्द को ठीक करती है तथा पाचन शक्ति बढ़ाती है। लेकिन याद रहे, अधिक मात्रा में दालचीनी प्रयोग करना नुकसानदायक होता है।
· खांड और घी को आंवले के रस में मिलाकर उपयोग करने से वायु विकार नष्ट होते हैं।
· पेट में गैस भर जाने पर या उदर दर्द में तिलों को पीस कर उनमें कपूर, अजवायन, इलायची और काला नमक-सब चुटकी भर मिलाकर गुनगुने पानी के साथ लेने से आराम मिलता है।
· सोंठ व जायफल का चूर्ण बनाकर लेते रहने से गैस की शिकायत से राहत मिलती है।

चर्म रोग
· जिस जगह पर चर्म रोग हो, उस जगह को बार-बार फिटकरी से धोने से लाभ होता है।
· हरड़ चर्म रोगों में बहुत ही लाभप्रद साबित होती है। इसके 1 महीने तक सेवन करने से चर्म रोग ठीक हो जाता है। हरड़ के चूर्ण की पाँच ग्राम की मात्रा भोजन के बाद पन्द्रह मिनट के अन्दर लेते रहने से चर्म रोग में विशेष लाभ होता है।
· सर्दियों के दिनों में पानी को गरम कर नमक मिलाकर स्नान करने से विशेष लाभ होता है।
· नीम के पत्ते पानी में उबाल कर नित्य स्नान करें। बीस पत्ते एक कप में उबाल कर पानी में छान लें, इसे नित्य प्रात: भूखे पेट तीन सप्ताह पीने से चर्म रोग में राहत मिलती है।

घरेलु उपचार 6

कमजोर स्मरण शक्ति
· सोंठ का मगज, मिश्री तथा बादाम गिरी इन तीनों की ढाई सौ ग्राम की मात्रा में लेकर अच्छी तरह से पीसकर चूर्ण बना लें। रात को सोने से पहले 10 ग्राम की मात्रा में चूर्ण की फंकी दूध के साथ चालीस दिनों तक लगातार पीने से याददाश्त अच्छी होने के साथ आंखों की रोशनी भी बढ़ जाती है।
· आधा लीटर पानी में 125 ग्राम धनिया कूट कर उबालें। जब पानी चौथाई भाग रह जाये तब छानकर 125 ग्राम मिश्री मिलाकर फिर गर्म करें। जब गाढ़ा हो जाये तो उतार लें। यह प्रतिदिन दस ग्राम चाटें। इससे मस्तिष्क की कमजोरी दूर हो जाती है और याददाश्त अच्छी हो जाती है।
· गाय के दूध की छाछ में मुलहठी की जड़ का चूर्ण मिलाकर कुछ दिनों तक नियमित पीने से मस्तिष्क की कमजोरी दूर होने के साथ स्मरण शक्ति भी तेज हो जाती है।
· खरबूजे के साथ खरबूजे के बीज भी खाने चाहिए, क्योंकि बीज स्मरण शक्ति बढ़ाने व शरीर का पोषण करने में समर्थ होता है।

नशा
· एक कप पानी में नींबू के रस में जामुन के पत्ते पीसकर पीने से भांग का नशा गायब हो जाता है।
· नींबू चूसने या पुराना नींबू का अचार खाने से भांग का नशा
· धीरे-धीरे उतर जाता है।
· एक कप पानी में एक नींबू का रस निचोड़कर तब तक पिलाएं जबतक भांग का नशा उतर न जाए।
· मादक पदार्थों के नशे को उतारने के लिए हरे धनिए का रस फायदेमंद होता है।

दमा
· थोड़ी से देसी अजवाइन में पच्चीस ग्राम आक की कोपलें और पचास ग्राम गुड़ में कूट-पीस क र दो-दो ग्राम की गोलियां बना लें। सुबह-शाम एक-एक गोली गर्म पानी से लेने से दमा रोग ठीक हो जाता है।
· प्रात: धतूरे का एक बीज आठ दिन तक पानी के साथ निगल लें। दूसरे सप्ताह दो-दो बीज लें। इसी प्रकार प्रति सप्ताह एक-एक बीज बढ़ाते हुए पांचवे सप्ताह पांच बीज लें। उससे पुराना से पुराना दमा ठीक हो जाता है।
· ताजा लौकी पर गीला आटा लेपिये, उसे साफ कपड़े में लपेटें, भूभल में दबाइये। आधा घण्टे बाद कपड़ा-आटा उतार कर उस भुरते का रस निकाल कर सेवन करें। सवा महीने में दमा रोग से छुटकारा मिल जाता है।
· फूली हुई फिटकरी आधा रत्ती मुंह में डाल लें और उसे चूसते रहें। इससे कफ और दमा दोनों से राहत मिलती है।

क्षय रोग
· यदि क्षय के रोगी नियमित रूप से शहद का सेवन करें तो वे क्षय रोग से मुक्त हो जाएंगे। वजन बढ़ने से खांसी कम होती है और रक्त संचार में सुधार हो जाता है।
· टीबी व जिगर के रोगियों के लिए बकरी का दूध बहुत ही लाभदायक होता है।
· सुबह-शाम भोजन के साथ दो पके केलों को एक माह तक सेवन करने से शरीर के रस, रक्त आदि धातुओं के क्षय में कमी आती है तथा शरीर स्वस्थ हो जाता है और खांसी आनी बंद हो जाती है।
· गुलाब के फूलों का सेवन करने से क्षय रोगी को खांसी से राहत मिलने के साथ ही ज्वर और कमजोरी में बहुत फायदेमंद होता है।

मिर्गी
· जिन्हें मिर्गी के दौरे पड़ रहे हों वे 250 ग्राम दूध में, 60 ग्राम मेंहदी के पत्तों का रस मिलाकर देने से रोगी को आशातीत सफलता हाथ लगती है। प्रतिदिन भोजन करने के दो घंटे बाद नियमित रूप से दो सप्ताह तक सेवन करने से मिर्गी रोग ठीक हो जाता है।
· करौदें के 25 पत्ते छाछ में पीस कर दो सप्ताह तक नित्य सेवन करने से मिर्गी आना बन्द हो जाता है। यह प्रयोग पित्त जनित मिर्गी में विशेष रूप से उपयोगी सिद्ध हुआ है।
· मिर्गी का दौरा पड़ने से बेहोशी की हालत में रोगी को लहसुन कूटकर सुंघाने से होश आ जाता है। दस कली लहसुन को दूध में उबालकर नित्य खिलाने से मिर्गी रोग दूर हो जाता है। यह प्रयोग लम्बे समय तक करने से फायदा होता है।
· मिर्गी से पीड़ित रोगी के पैरों के तलुवों में आक की नौ-दस बूंदे प्रतिदिन शाम को मालिश करने से एक डेढ़ माह में फायदा नजर आने लगता है।

लकवा
· आधा लीटर सरसों का तेल में 250 ग्राम लहसुन को पीसकर इन दोनों को दो किलो पानी लोहे की कड़ाही में मिलाकर गर्म करें। जब सारा जल जाये तो उतार कर ठण्डा करें। ठण्डा होने पर छानकर नित्य इस तेल की मालिश करें। इस तरह एक माह प्रयोग करने से लकवा ठीक हो जाता है।
· एक ओर के अंग में लकवा हो गया हो तो 25 ग्राम छिला हुआ लहसुन पीसकर दूध में उबालें। खीर की तरह गाढ़ा होने पर उतार कर ठण्डा होने पर नित्य प्रात: खाली पेट खाने से लकवा ग्रस्त अंग धीरे-धीरे काम करने लगता है।
· जो लकवे रोग से पीड़ित हैं, उन्हें क रेले की सब्जी भोजन के साथ खाने से फायदा होता है।
· कालीमिर्च पीसकर तेल के साथ लकवे में मालिश करने से लाभ होता है।

हाथ-पैर फटना
· यदि एड़ियां फटने की संभावना हो तो रात को सोते समय एड़ियों पर जैतून का तेल मालिश करने से एडियों की फटने की संभावना कम हो जाती है।
· यदि बिवाइयां हो गई हों तो कच्चा प्याज पीसकर बिवाइयों पर बांधने से सदा के लिए ठीक हो जाएंगी।
· बिवाइयों पर अरण्डी के पत्तों को हल्का सेंक कर उस पर देशी घी व हल्दी को लेप बांधने से दर्द कम होगा तथा बिवाइयां सदा के लिए ठीक हो जाएंगी।
· चार बूंद अमृतधारा को 10 ग्राम वैसलीन में मिलाकर फटी बिवाई व फटे होंठों पर लगाने से दर्द ठीक हो जाता है तथा फटी हुई चमड़ी जुड़ कर ठीक हो जाती है।

सौन्दर्य विकार

· यदि गर्दन और चेहरे पर झुरियां पड़ गई हों तो नींबू का रस शहद में मिलाकर दो सप्ताह तक लगाने से चेहरे तथा गरदन की झुर्रियां गायब हो जाती हैं।
· नींबू तथा ऑंवले का रस समान मात्रा में निकालकर मिला लें। इन दोनों के मिश्रण को चेहरे तथा गर्दन पर लगाने से चेहरे की झांइयां धीरे-धीरे मिट जाती हैं और चेहरे का रंग साफ हो जाता है।
· यदि चेहरे पर दाग-धब्बे व झांई हो तो तुलसी के रस में समान मात्रा में नींबू का रस मिलाकर लगाने से चेहरे पर चेचक के दाग-धब्बे तथा झांई मिट जाती है। यदि तुलसी की पत्तियों को थोड़ी-सी अजवायन मिलाकर पीस लें और इसका लेप कुछ दिनों तक करें तो इससे आशातीत लाभ मिलता है।
· 100 ग्राम शहद में नींबू का रस मिलाकर चेहरे पर लेप करके पंद्रह मिनट के बाद धो डालें। तीन सप्ताह तक नियमित रूप से लगाने से चेहरे पर पड़ी झुर्रियां मिट जाती हैं और चेहरा खिलने लगता है।

दांतों का रोग
· यदि दांतों में रोग लग गए हों तो अनार की छाल को बारीक पीसकर उसमें पीसी हुई फिटकरी मिलाकर मंजन करने से दांतों के रोग दूर हो जाते हैं।
· यदि दांत दर्द हो रहा तो तुलसी की पत्तियां चबाने से दर्द में राहत मिलती है।

दाद
· चुटकी भर चाय की पत्ती दाद वाले स्थान पर बांध देने से दर्द कम हो जाता है और घाव भी धीरे-धीरे ठीक होने लगता है।
· नीम की हरी पत्तियों को दही में पीस दाद व खुजली पर लगाने से फायदा होता है।

घरेलु उपचार 5

साधारण खांसी
· 2 ग्राम हल्दी पाउडर फांकने से खांसी दूर हो जाती है।
· अनार का छिलका चुटकी भर नमक के साथ चूसना लाभप्रद है।
· भुनी तथा कच्ची बराबर-बराबर अजवायन पीसकर शाम को फंकी मारे, पानी न पियें, खाँसी में लाभ होगा।

सूखी खांसी
· खाली पान में अजवायन रखकर चूसना हितकर है।

बलगमी खांसी
· 5 ग्रांम तुलसी के पत्तों के रस में 4 दानें बड़ी इलायची को पीसकर शहद के साथ चाटना लाभकारी है।

पुरानी खांसी
· तुलसी के पत्तों के रस में अदरख तथा पान का रस, कालीमिर्च, काला नमक तथा शहद मिलाकर चाटने से आराम होता है

पेट के कीड़े
· अजवायन के चूर्ण में समान मात्रा में काला नमक पीसकर मिलायें। इस चूर्ण को आधा या चौथाई चम्मच भर मात्रा में रात को सोने से पहले गरम पानी से देने से पेट के कीड़े मर जाते हैं। बालकों के लिए यह चूर्ण बेहतर है।

गला बैठना
· पालक के पत्ते थोड़े पानी में उबालकर लुगदी को गले में बांधने से गले में जलन व सूजन से शीघ्र राहत मिलती है।
· गले की खराश मिटाने के लिए सौ ग्राम पानी में दस ग्राम अनार के छिलके उबालें, इसमें दो लौंग भी पीस कर डाल दें। जब पानी आधा रह जाये तब 25 ग्राम फिटकरी डाल कर गुनगुने पानी से गरारा करना चाहिए।

नाक के रोग
· यदि नाक में फुंसी हो गई हो तो उस पर इलायची का चूर्ण पीसकर लगाया करें। इससे वह पकने-फूटने से पहले ही दब जाती है।
· नाक में फुंसी हो जाये तो बरगद के दूध में रुई को गीला कर फुंसी पर लगाना चाहिए। बरगद के दूध से कुछ समय के लिए पीड़ा व जलन होगी लेकिन फूंसी सूख जाती है।

जोड़ों का दर्द
· सुबह बासी मुँह लहुसन के प्रयोग से पेट के रोग, दाँत और जोड़ों के दर्द में लाभ होता है।

मधुमेह
· मेथी के प्रयोग से मधुमेह में कमी आती हैं।

शरीर दर्द
· नित्य शाम को थकावट व शरीर दर्द हो जाता हो तो गोमूत्र के साथ एक चम्मच त्रिफला वूर्ण नित्य सेवन करें।

घरेलु उपचार 4

पीलिया
· यदि कोई पीलिया रोग से पीड़ित हों तो कच्चे पपीते का रस 11 बूंद एक बताशा पर डालकर 15 दिन तक खाने से पीलिया रोग दूर हो जाता है।
· गर्म पानी या पोटेशियम परमैंगनेट में मूली को धोकर पत्ते सहित, गुड़ के साथ प्रात: तथा दोपहर में सेवन करने से पीलिया रोग जड़ से समाप्त हो जाता है।

न्यूमोनिया
· लहसुन का रस एक चम्मच गर्म पानी में मिलाकर पिलाने से न्यूमोनिया में फायदा होता है।
· न्यूमोनिया हो जाने पर तारपीन के तेल में कपूर मिलाकर रोगी की छाती पर मालिश करने से शीघ्र आराम मिलता है।

आंतों की सूजन
· मैथी दाने की चाय ज्वर को कम करने में कुनेन जैसा कार्य करती है। यह पेय शरीर का आंतरिक शोधन करता है। शेषमा को घोलता है, पेट और आंतो की सूजन ठीक करने में सहायक होता है।

बाल बढ़ाने के लिए
· 100 मिली। नारियल का तेल लेकर उसमें 3 ग्राम कपूर मिला लें। इस तेल का इस्तेमाल सिर में प्रतिदिन रात में करें सिर पर उंगलियों के पोरों से अच्छी तरह तेल लगाकर मालिश करें। पंद्रह दिनों में ही रूसी समाप्त हो जाएगी एवं जुएं भी मर जायेंगी।

नशा उतारना
· एक कप पानी में नींबू के रस में जामुन के पत्ते पीसकर पीने से भांग का नशा गायब हो जाता है।
· शराब का नशा होने पर दो चम्मच घी और इतनी ही चीनी मिलाकर पीने से नशा धीरे-धीरे उतरने लगता है।

नाखूनों की देखभाल
· नाखूनों पर चमक व लाली लाने के लिए मधुमक्खी के छत्ते के मोम की मालिश करना अच्छा रहता है।
· नाखूनों पर आये धब्बे हटाने के लिए आलू या नींबू का टुकड़ा मलना अच्छा रहता है। हाइड्रोजन पराक्साइड की कुछ बूंदों को रुई पर लेकर साफ करने से भी ये धब्बे हटाये जा सकते हैं।

काले दाग
· चेहरे के काले दागों से छुटकारा पाने के लिए उड़द की दाल को भिगोकर पीस लें। फिर इसमें नींबू रस की कुछ बूंदें व चुटकी भर हल्दी मिलाकर लेप बना लें। इसे उबटन की तरह चेहरे पर लगाकर हल्के हाथों से रगड़कर साफ करें। कुछ दिनों में ही काले दागों से छुटकारा मिल जाएगा।

मुख रोग:-
· मुंह में छाले पड़े हों, मसूढ़ों से खून आता हो, दांत हिल रहे हो तो गूलर की छाल या पत्तों का काढ़ा बनाकर उसे मुंह में कुछ समय तक रख कर कुल्ला करके थूक दें, ऐसा दिन में 3-4 बार नियमित रूप से 15 दिनों तक करें। सभी शिकायतें दूर हो जाएंगी।

कान बहना
· 200 मि.ग्रा. सरसों के तेल में 10 ग्राम रतनजोत डालकर पकाएं। जब रतनजोत जलने को हो तो तेल को उमार कर छान लें। इस तेल की 2-2 बूंद सुबह-शाम प्रतिदिन कान मे डालने से कान का बहना बंद हो जाता है।
· लौंग 10 ग्राम, केशर 3 ग्राम, चमेली का तेल 50 ग्राम लेकर आग पर पकाएं। जब धुंआ उठने लगे तो उतारकर छान लें और शीशी में रख लें। इसे 2-3 बूंद कान में डालने से कान के सभी रोग दूर होते हैं।

उच्च रक्तचाप
· रक्तचाप में रात्रि सोने से पहले बादाम के तेल की 5-5 बूंद नाके नथुनों में डाले। उच्च रक्तचाप में बहुत लाभकरी सिद्ध होता है।
· दो चम्मच शहद में एक चम्मच नींबू का रस मिलाकर सुबह-शाम पीने से उच्च रक्तचाप कम होता है।
· उच्चरक्त चाप में नारंगी संतरे का सेवन अत्यंत लाभकारी है, उच्चरक्तचाप का रोगी दो-तीन दिन तक केवल नारंगी के रस का ही सेवन करें और दूसरा कोई अन्य या पेय पदार्थ न ले, तो उच्चरक्तचाप सामान्य हो जाता है।

घरेलु उपचार 3

कमर दर्द
· एरण्ड के बीज की 7 मींगी दूध में पीस कर पिलाने से कमर दर्द से राहत महसूस होती है।
· कमर दर्द से छुटकारा पाने के लिए जायफल को पानी में घिसकर तिल क तेल में मिलाकर अच्छी तरह गर्म करने के बाद ठण्डा होने पर कमर पर मालिश करने से विशेष लाभ होता है।

सिर दर्द
· यदि सिर दर्द हो रहा हो तो तुलसी की 4-5 पत्तियां खालें, सिर दर्द में आराम मिलता है। यदि बहुत तेज सिर दर्द हो तो 3-4 बार तुलसी की पत्तियां खाने से सिर दर्द ठीक हो जाता है।
· 25 ग्राम नारियल की सूखी गिरी और 25 ग्राम मिश्री सूर्य उगने से पहले खाने से सिर दर्द ठीक हो जाता है।

टांसिल
· घेंघा और टांसिल्ज में गाजर का रस प्रतिदिन 200 ग्राम लगातार दोपहर के समय दो-तीन मास पीने से आशातीत सफलता मिलती है।
· गर्म पानी में ग्लिसरीन मिलाकर गरारे करने से टांसिलाइटिस में फायदा होता है।
. टांसिल बढ़ गया हो तो बड़ के पत्तों पर तेल लगाकर सेंक करने से तथा सोंठ डालकर बांधने से टांसिल ठीक हो जाता हैं।
· टांसिल पर फिटकरी के चूर्ण की ग्लिसरीन के साथ रुई की फुरेरी से गले की तकलीफें दूर हो जाती है।
वमन (उल्टी)
· यदि खाने के बाद कलेजे में जलन या फिर पीली-पीली उल्टी हाें तो सुबह एक गिलास तरबूज के जूस में मिश्री मिलाकर पीने से उल्टी आनी बंद हो जाती है और प्यास भी कम लगती है।
· अनार जूस में एक चम्मच शहद के साथ देने से वमन की शिकायत दूर हो जाती है।

लकवा
· आधा लीटर सरसों का तेल में 250 ग्राम लहसुन को पीसकर इन दोनों को दो किलो पानी लोहे की कड़ाही में मिलाकर गर्म करें। जब सारा जल जाये तो उतार कर ठण्डा करें। ठण्डा होने पर छानकर नित्य इस तेल की मालिश करें। इस तरह एक माह प्रयोग करने से लकवा ठीक हो जाता है।
· एक ओर के अंग में लकवा हो गया हो तो 25 ग्राम छिला हुआ लहसुन पीसकर दूध में उबालें। खीर की तरह गाढ़ा होने पर उतार कर ठण्डा होने पर नित्य प्रात: खाली पेट खाने से लकवा ग्रस्त अंग धीरे-धीरे काम करने लगता है।

मुंह में छाले
· यदि मुंह में छाला हो गया हो तो तुलसी के पत्ते चबाने से छाले ठीक हो जाते हैं।
· एक गिलास ताजा पानी में 100 ग्राम टमाटर का जूस में मिलाकर कुल्ला करने से मुंह तथा होंठ व जीभ के छाले ठीक हो जाते हैं। जिन्हें बार-बार छाले होते हैं वे टमाटर का अधिक सेवन करें तो फायदा होता है।

बाल सम्बन्धी बीमारियां
· पानी के साथ मेथी को पीसकर बालों में लगाने से बालों का जड़ना बंद हो जाता है तथा रूसी भी गायब हो जाती हैं।
· मेहंदी की पत्तियों के साथ आंवले को पीसकर बालों की जड़ों में लगाने से बाल काले, मुलायम, घने और लंबे होते हैं।

बेहोशी आने पर
· यदि छोटे बच्चे को बेहोशी का दौरा पड़ गया हो तो हींग और लहसुन को एक साथ कपडे में बाँधकर बच्चे के गले पर रखने से फायदा होता है।
· तुलसी के 21 पत्तों को पीसकर हलका सा नमक मिलाकर, उसका रस नाक में डालने से बेहोशी, मर्ूच्छा में फायदा होता है।

शारीरिक कमजोरी
· शारीरिक दुर्बलता में एक कप पालक तथा एक कप गाजर के जूस में आधा कप चुकन्दर और आधा कप सेब का जूस मिला कर दिन में तीन बार सेवन करने से शारीरिक कमजोरी दूर हो जाती है।
· पानी में 10 बादाम को रात में भिगों दें। सुबह इन्हें छीलकर पीस लें। इसमें एक छटांक मक्खन थोड़ी मिश्री मिलाकर डबलरोटी के साथ खायें। ऊपर से दूध पी लें। छ: माह में ही दुर्बलता दूर हो जाती है और मस्तिष्क भी तेज हो जाता है।

बहरापन
· लहसुन की 7 कलियों को 50 ग्राम तिल्ली के तेल में तलकर उसकी दो बूंदें कान में डालने से कुछ दिनों में कान का बहरापन ठीक हो जाता है।
· यदि किसी को कम सुनाई दे रहा हो तो बीस ग्राम आक के सूखे पत्तों को गौमूत्र के छींटे देकर पीसकर लुगदी बनाकर दो चम्मच कड़वे तेल में भून लें। ठंडा होने पर यह तेल दो-दो बूँद कानों में डालते रहने से धीरे-धीरे बहरापन दूर हो जाता है और सुनाई पड़ने लगता है।
· 10 ग्राम कलमी शोरा, 5 ग्राम फिटकरी तथा तीन ग्राम नौसादर को सौ ग्राम कड़वे तेल में पकाकर शीशी में भर लें। रोज रात को कानों में टपकाते रहें। दिन-ब-दिन बहरापन दूर होता जायेगा।
· प्याज का रस थोड़ा गर्म करके कान में डालने से बहरापन दूर होता है। कान के दर्द में भी प्याज का रस फायदेमंद होता है।