15 जनवरी 2011

शादी का पहला साल...

हनीमून के बाद विवाहित जोड़े धीरे-धीरे अपनी असली जिंदगी में लौटने लगते हैं। जब आप अपने साथी की आदतों को और करीब से जानने और समझने लगते हैं। आप पाते हैं आपका साथी ज्यादा समय तो स्पोर्ट्स चैनल से ही चिपका रहता है। या फिर पड़ोसियों के गॉसिप में ही वक्त बिताता है। ये छोटी-छोटी बातें भी आपके बीच दूरियाँ पैदा कर सकती हैं। ऐसी नौबत भी आ जाती है जब पति-पत्नी एक ही छत के नीचे किसी अनचाहे रूमेट की तरह रहने लगते हैं। जिनके बीच प्यार कम और झगड़े ज्यादा होते हैं।

नए जोड़ों के लिए शुरूआती एक साल काफी मुश्किल भरा होता है । जीवनभर साथ निभाने के उस वादे के बोझ तले उनका रिश्ता घुटने लगता है । ऐसे स्थिति में वो हमेशा गुस्से और परेशानी में नजर आते हैं। उनको लगने लगता है कि उनसे बहुत बड़ी गलती हो गई है। ऐसी स्थिति भी आती है जब दोनों का प्यार धीरे-धीरे खत्म होने लगता है। जिस प्यार और विश्वास की नींव पर रिश्ते का महल खड़ा करते हैं वो भी चटकने लगता है।

ऐसी स्थिति न आएँ उसके लिए आप इन बातों का खास ध्यान रखें-
शादी के दिन अपने साथी से जो वादा करें उसे कभी न भूलें। परिस्थितियाँ कितनी भी विपरीत हों अपने साथी के प्रति प्यार कम नहीं होना चाहिए। आपका वचन विश्वास और सच्चाई पर टिका होना चाहिए। ध्यान रहे, कि आपके वचनों से जोश, आकर्षण और खुशी नदारद न हो।

परेशानी शुरू होने से पहले ही उसे सुलझा लें
जब आप अपनी नई जिंदगी शुरू कर रहे हैं उन सारे मुद्दों पर खुलकर बात करें जो विवाद का कारण बन सकते हैं। अपने जीवन के लक्ष्यों पर स्पष्ट रूप से बात करें। अपने बजट तय कर लें। इससे आप नई शादी-शुदा जिंदगी में उठने वाले 90 प्रतिशत तक विवादों को कम कर सकते हैं।

स्वतंत्रता के साथ करें बजटिंग
*जब आप अपनी नई जिंदगी की शुरूआत कर रहे हैं तो सबसे बड़ी परेशानी का कारण बनता है-बजट। पैसे के खर्चे को लेकर दोनों के बीच तनाव बना रहता है। कौन ज्यादा फिजूलखर्ची है, इसपर बहस होती रहती है। यहाँ सबसे अहम है आपसी समझ और संवाद का होना। यह देखना दोनों की जिम्मेदारी है कि कितना पैसा आ रहा है और उसे कैसे और कहाँ खर्च करना है?बजट बनाने का सबसे अच्छा तरीका है कि आप महीनेभर की उन खास जरूरतों की एक लिस्ट बना लें। उन सामानों को जरूरी और गैरजरूरी हिस्सों में बाँट लें।

फिर से है चाहत की तलाश...
'दूध का जला छाछ को भी फूँक-फूँक कर पीता है' कहावत बहुत पुरानी है पर असरदार भी उतनी ही है। प्रेम में चोट खाने के बाद भी इसको 'फॉलो' करना उतना ही समझदारी भरा है। जी हाँ, एक बार टूटे दिल को बार-बार तोड़ने का मौका थोड़े ही ना देंगे आप! तो उठाइए कुछ समझदारी भरे कदम और दूध व छाछ दोनों का सही लुत्फ लीजिए।

ऐसे भाग्यशाली बहुत कम होते हैं जो कॉलेज लाइफ में कभी न कभी दिल की चोट नहीं खाते। लेकिन यह भी सच है कि ऐसी चोटों से इस उम्र में दिल नहीं टूटा करते। दिल के लिहाज से यह उम्र कच्ची भले होती है, लेकिन इसमें टूट-फूट से उठकर खड़े होने की क्षमता भी खूब होती है। सवाल है कि शीशा-ए-दिल की इस खूबी का कैसे इस्तेमाल किया जाए? आइए हम बताते हैं-

दूध से जले हैं तो...
जी हाँ! किसी की याद में दिल लगाकर बैठे रहना ठीक नहीं तो दूसरे के लिए इतना उतावलापन भी ठीक नहीं। अभी-अभी आपका ब्रेक-अप हुआ है। ...और अभी आप फिर से किसी के लिए बेकरार होने लगे। इसका मतलब है कि आपको फिर धक्का लग सकता है। ऐसे में यह धक्का आपको स्तब्ध करने वाला भी हो सकता है। इसलिए रीबाउंड रिलेशनशिप में जरा धीरे-धीरे आगे बढ़ें। जरूरत से ज्यादा जल्दबाजी न दिखाएँ। इसके लिए बहुत जरूरी है कि कुछ वक्त आप अपने साथ गुजारें। यह आपको मजबूत बनाएगा और किसी भी रिश्ते में आने वाली परेशानियों को आप झेल पाएँगे।

ऐसा पानी न बनें जो हर तरफ बह चले
किसी ने आपसे प्यार के दो बोल बोले नहीं कि आप फिसलने को तैयार। हालाँकि टूटा दिल रोके हुए बाँध की तरह होता है। जहाँ जरा-सी साँस मिली पानी बह चला। इसी तरह टूटे दिल के साथ आप किसी के साथ भी जुड़ जाते हैं। थोड़े से प्यार में ही आप एक लंबे रिश्ते की संभावनाएँ तलाशने लगते हैं, लेकिन यह जल्दबाजी ठीक नहीं। क्योंकि जिस शख्स में आप अचानक जन्म-जन्म का बंधन तलाशने लगते/लगती हैं कई बार तो यह ऐसा इंसान निकलता है, जिसकी तरफ सामान्य हालात में आप देखेंगे भी नहीं।

बरकरार रखें अपनी कसौटी
जिंदगी जीने के हर व्यक्ति के अनेक उसूल होते हैं। इन उसूलों पर कायम रहना जरूरी होता है। क्योंकि हमें खुशी तभी हासिल होती है जब हमें लगता है कि हम इस खुशहाली के लिए कोई समझौता नहीं कर रहे। इसलिए अगर खुश रहना है तो अपने उसूलों की कसौटी को हमेशा बरकरार रखें, लेकिन कई बार खासकर जब हम टूटे हुए होते हैं और ऐसे में हममें कोई जरा-सी दिलचस्पी दिखाने लगता है तो हम अपने सिद्धांतों, अपनी कसौटी की अनदेखी करने लगते हैं। उस समय हम किसी भी ऐसे इंसान के पास जाने को तैयार रहते हैं, जो इसमें दिलचस्पी दिखा रहा होता है। अगर आपके साथ ऐसा हो रहा हो तो समझिए कुछ गड़बड़ है। अपने पैमाने पर कायम रहें। उसे छोटा न होने दें, क्योंकि इस चक्कर में कई लोग ऐसे इंसान के साथ जिंदगी बिता देते हैं, जो उनके काबिल नहीं होता।

मुखौटे से बचें
आप पहले इतना ज्यादा स्मोक या ड्रिंक नहीं करते थे, जितना एक नए दोस्त के साथ करने लगे हैं। अगर ऐसा है तो बात खतरनाक है। दरअसल, आप जो असल में हैं, उसे बहुत देर तक तो छिपा नहीं सकते, लेकिन इस तरह अगर आपके व्यवहार में कुछ बदलाव आया है, तो यह आगे चलकर आपके लिए नुकसानदायक हो सकता है।

फायदा भूलने में ही है
हम नहीं कहते हैं कि यह आसान है, लेकिन बेहतरी उसे भूलने में ही है। क्योंकि आपका रिश्ता टूट चुका है, लेकिन अब भी वो शख्स आपके दिलोदिमाग पर छाया रहता है। आप उसे भूल ही नहीं पा रहे हैं। आप किसी न किसी से उसके बारे में बात करना चाहते हैं। सिर्फ इसलिए आपको किसी का साथ चाहिए? ऐसी बेकरारी से सावधान रहें। ऐसे रिश्ते का कोई फायदा नहीं।

पलायन ठीक नहीं...
दिल टूटने के बाद कुछ लोग गम भुलाने के लिए बहुत बड़े फैसले ले लेते हैं मसलन कॉलेज छोड़कर चले जाते हैं, पढ़ाई छोड़ देते हैं वगैरह...। ऐसे अहम फैसले, जिनसे नुकसान भी हो सकता है, बिना सोचे-समझे कभी न लें। ऐसे जल्दबाजी में लिए गए फैसले काफी खतरनाक होते हैं। ब्रेकअप के कम से कम एक साल तक तो कोई अहम फैसला न लें।

तुम ही दुनिया नहीं
कई बार टूटे दिल आशिक किसी को भी गले से लगा लेते हैं तो कई बार इसके उलटा होता है। ऐसे लोगों के दिल-दिमाग में यह बात घर कर जाती है कि उनसे सुंदर, उनसे अच्छा दुनिया में कोई और है ही नहीं। ये दोनों अतियाँ खतरनाक होती हैं। इससे किसी और का नहीं बल्कि सिर्फ और सिर्फ आपका नुकसान होता है। इसलिए जब किसी से ब्रेकअप हो तो अपने अहं के लिए नहीं बल्कि जिंदगी के लिए यह मानकर चलें कि तुम दुनिया नहीं हो। तुम्हारे बाद भी दुनिया है।

रिश्तों की उम्र को लगी नजर

 
इसे बदलते वक्त का चलन कहिए, 
धैर्य और सामंजस्य में कमी कहिए 
या फिर आधुनिकता का तकाजा अब 
रिश्तों की उम्र कम होने लगी है।

 
मोहब्बत अब तिजारत बन गई है... अपने समय का यह मशहूर गीत आज भी प्यार के परवानों के लिए खास बना हुआ है। मगर जैसे ही दोनों परवाने अग्नि के सात फेरे लेते हैं, उसके कुछ समय बाद इस रिश्ते पर ठंडा पानी पड़ना शुरू हो जाता है। कल तक जिसका कुछ देर का साथ पाने के लिए नौजवान भंवरे की तरह मंडराता नजर आता था, शादी के बाद वही मदहोश आंखें अंगारे बरसाती नजर आती हैं और प्यार की खुमारी झटके से उतरनी शुरू हो जाती है।

शुरुआती दौर में प्यार का खुमार इस कदर सिर चढ़कर बोलने लगता है कि इनसान सब कुछ भूल मोहब्बत को जिंदगी का मकसद बना लेता है। प्यार के इस चढ़ते हुए खुमार में प्रेमिका की एक झलक पाने भर के लिए नौजवान घर से लेकर स्कूल, कॉलेज तथा दफ्तर तक के चक्कर लगाते नजर आते हैं। जिंदगी भर तारों की छाँव में रखकर हर एक आरजू पूरी करने का दावा ठोकते हैं।

मगर मोहब्बत के परवान चढ़ते ही प्यार की पूरी खुमारी ही काफुर होने लगती है। अग्नि के चारों ओर लगने वाले सात फेरे मोहब्बत की सारी आग ठंडी कर देते हैं। इसी के साथ शुरू हो जाती है वो हकीकत जिसमें आटे-दाल का भाव मोहब्बत का पूरा नशा उतार देता है। प्रेम के दौर में जिस प्रेमिका के लिए सब कुछ छोड़कर आस-पास मंडराने वाला नौजवान बिस्तर से उठने तक को तैयार नहीं होता।

मल्टीनेशनल फाइनेंस कंपनी में काम करने वाला आशीष मार्च के पूरे महीने इस कदर व्यस्त रहता था कि आराम करने का समय भी नहीं मिल रहा था। गुड़गाँव के दफ्तर से तिमारपुर के अपने घर तक का सफर भी उसे भारी लगता था। घरवालों के कहने पर तो किसी भी काम के लिए हिलने को तैयार नहीं होता था। इसी बीच प्रेमिका श्वेता ने बताया कि उसे रात में करनाल स्थित अपने घर जाना है। आशीष रात के नौ बजे ही घर से अपनी बाइक उठाकर सरायकाले खाँ बस अड्डे पहुँच गया। श्वेता को बाइक पर बैठा रात में करनाल तक छोड़ने भी चला गया। बिजी शेड्यूल और दिनभर की थकान के बावजूद करनाल तक जाने वाला ऐसा प्रेमी पाकर श्वेता भी निहाल हुए जा रही थी।

एक साल बाद घरवालों को मनाकर दोनों ने शादी कर ली। कुछ ही दिनों में प्यार का पुराना दौर खत्म होना शुरू हो गया। अब आशीष के पास श्वेता के लिए समय नहीं होता था। बेटा हुआ और कुछ साल के बाद स्कूल भी जाने लगा। अब सुबह के समय स्कूल बस आती है। तीसरी मंजिल पर रहने वाला आशीष अब श्वेता के लाख कहने पर भी बच्चे को स्कूल बस में बिठाने के लिए भी नीचे नहीं आता क्योंकि मोहब्बत की तिजारत अब काफुर हो चुकी है।

12 जनवरी 2011

बोझ से वरदान बनती आबादी

वक्त के साथ बदलाव का एक रोचक नमूना देखना हो तो भारत की आबादी पर नजर डाली जा सकती है। बीते कल के चश्मे से देखने पर जो आबादी महज एक बोझ और समस्या नजर आती थी आज उसे भारत के भविष्य की सबसे बड़ी ताकतों में से एक कहा जा रहा है। इसकी वजह है बाजार के नजिरये से इस आबादी में छिपी विशाल संभावनाएं।पिछले सौ साल के दौरान हमारी अर्थव्यवस्था ने तरक्की तो की लेकिन आबादी की तेज रफ्तार तरक्की के फायदे तेजी से हजम भी करती रही। यही वजह थी कि हाथों के लिए काम और खाने के लिए पर्याप्त भोजन की कमी ने आबादी को देश के लिए बोझ बना दिया।भारत के गांवों और शहरों में रहने वाले अरबों लोगों की जरूरतें संभावनाओं का एक महासागर पैदा कर रही हैं जिसका फायदा उठाने के लिए दुनिया की हर बड़ी कंपनी भारत की तरफ दौड़ रही है ।

लेकिन अब ये बोझ हमारी ताकत में बदल रहा है। ऐसा इसलिए क्योंकि भारत के गांवों और शहरों में रहने वाले अरबों लोगों की जरूरतें संभावनाओं का एक महासागर पैदा कर रही हैं जिसका फायदा उठाने के लिए दुनिया की हर बड़ी कंपनी भारत की तरफ दौड़ रही है । इसलिए बाजार के नजरिये से देखा जाए तो भारत का भविष्य उज्ज्वल है।लेकिन लोगों की संख्या ही काफी नहीं। जरूरतों को पूरा करने के लिए उन के हाथ में पैसा भी होना चाहिए। पैसा जितना ज्यादा होगा, जरूरतें उतनी ही अधिक और फलस्वरूप खपत उतनी ही ज्यादा। निराशावादी लोग कह सकते हैं कि जिस देश में अभी भी करोड़ों लोग गरीबी की रेखा से नीचे जिंदगी बिता रहे हों वहां भविष्य के उज्ज्वल होने की बात कहना जल्दबाजी होगा। लेकिन ये सच है कि गरीबी के बावजूद आबादी बढ़ी है और अभावों के बावजूद लोगों ने जिंदगी में आगे बढ़ना सीखा है। इसके अलावा आबादी के हर वर्ग की अपनी जरूरतें हैं और यही वजह है कि बाजार के पास भी विकल्पों की कमी नहीं । बड़े ब्रांड्स के लिए भी कंज्यूमर्स हैं और छोटे ब्रांड्स के लिए भी। अतीत हमें बताता है कि वक्त के साथ जरूरतों के समाधान निकल आते हैं। लोगों की बुनियादी जरूरतें जब हल हो जाती हैं तो इसके बाद वे बड़ी जरूरतें पैदा कर लेते हैं। इसलिए भारत में हर तरह के ब्रांड के लिए खपत की संभावना मौजूद है।


कहा जा सकता है कि आबादी का ये आंकड़ा वर्तमान और भविष्य के भारत के लिए एक बड़ी ताकत साबित होने जा रहा है। एक ऐसी ताकत जिसके चलते दुनिया की हर बड़ी कंपनी इस तरफ दौड़ेगी। परंपरागत बाजारों की गर्मी अब ठंडी पड़ रही है और इसलिए मार्केटिंग कंपनियों का भविष्य भारत जैसे उभरते बाजार ही तय करेंगे।

मंत्र-जप का चमत्कारी प्रभाव

जिस शब्द में बीजाक्षर है, उसी को `मंत्र´ कहते है। किसी मंत्र का बार-बार उच्चारण करना ही `मंत्र जप´ कहलाता है। लेकिन प्रश्न यह उठता है कि वास्तव में मंत्र जप क्या है? जप से क्या परिणाम निकलता है?

हमारे मन को दो भागों में बांटा जा सकता है- १। व्यक्त चेतना (Conscious Mind) तथा २. अव्यक्त चेतना (Unconscious Mind)। हमारा जो जाग्रत मन है, उसी को व्यक्त चेतना कहते हैं। अव्यक्त चेतना में हमारी अतृप्त इच्छाएँ, गुप्त भावनाएँ इत्यादि विद्यमान हैं। व्यक्त चेतना की अपेक्षा अव्यक्त चेतना अत्यन्त शक्तिशाली हैं। हमारे संस्कार, वासनाएँ - यह सब अव्यक्त चेतना में ही स्थित होते हैं। किसी मंत्र का जब जप होता है, तब अव्यक्त चेतना पर उसका प्रभाव पड़ता है। मंत्र में एक लय होती है, उस मंत्र ध्वनि का प्रभाव अव्यक्त चेतना को स्पन्दित करता है। मंत्र जप से मस्तिष्क की सभी नसों में चैतन्यता का प्रादुर्भाव होने लगता है और मन की चंचलता कम होने लगती है। मंत्र जप के माध्यम से दो तरह के प्रभाव उत्पन्न होते हैं। १. मनोवैज्ञानिक प्रभाव (Psychological Effect) और २. ध्वनि प्रभाव (Sound Effect) - मनोवैज्ञानिक प्रभाव तथा ध्वनि प्रभाव के समन्वय से एकाग्रता बढ़ती है और एकाग्रता बढ़ते से इष्ट सिद्धि का फल मिलता ही है। मंत्र जप का मतलब है इच्छा शक्ति को तीव्र बनाना। इच्छा शक्ति की तीव्रता से क्रिया-शक्ति भी तीव्र बन जाती है, जिसके परिणाम स्वरूप इष्ट का दर्शन या मनोवांछित फल प्राप्त होता ही है। मंत्र अचूक होते हैं तथा शीघ्र फलदायक भी होते है।

मंत्र जप और स्वास्थ्य
लगातार मंत्र जप करने से उच्च रक्तचाप, ग़लत धारणाएँ, गंदे विचार आदि समाप्त हो जाते हैं। मंत्र जप का साइड इफेक्ट यही है। मंत्र में विद्यमान हर एक बीजाक्षर शरीर की नसों को उद्दीप्त करता है, इससे शरीर में रक्त संचार सही ढंग से गतिशील रहता है। `क्लीं´, `ह्रीं´ इत्यादि बीजाक्षरों को एक लयात्मक पद्धति से उच्चारण करने पर हृदय तथा फेफड़ों पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है व उनके विकार नष्ट होते हैं। जप के लिए ब्रहा मुहूर्त को सर्वश्रेष्ठ माना गया है, क्योंकि उस समय परा वातावरण शान्ति पूर्ण होता रहता है, किसी भी प्रकार का कोलाहल या शोर नहीं होता। कुछ विशिष्ठ साधनाओं के लिए रात्रि का समय अत्यन्त प्रशस्त होता है। गुरू के निर्देशानुसार निर्दिष्ट समय में ही साधक को जप करना चाहिए। सही समय पर सही ढंग से किया हुआ जप अवश्य ही फलप्रद होता है।

मंत्र जप करने वाले साधक के चेहरे पर एक अपूर्व तेज छलकने लगता है, चेहरे पर एक अपूर्व आभा आ जाती है। आयुर्वेद की दृष्टि से देखा जाय, तो जब शरीर शुद्ध और स्वस्थ होगा, शरीर स्थित सभी संस्थान सुचारू रूप से कार्य करेंगें, तो इसके परिणाम स्वरूप मुखमण्डल में नवीन कांति का प्रादुर्भाव होगा ही।

10 जनवरी 2011

पुण्यप्रदायिनी माघी पूर्णिमा

माघी पूर्णिमा को स्नान, दान, जप, हवन आदि करने से अनंत फल की प्राप्ति के साथ ही नवग्रह जनित दोष समाप्त हो जाते हैं।
माघ का महीना अन्य महीनों में विशिष्ट स्थान रखता है। मकर के सूर्य में अमृतकण धरती के जल से निकलते हैं। कुंभ के गुरु में मकर से मेष तक का सूर्य पुण्यदायी है, इसीलिए महाकुंभ का पावनकाल हरिद्वार में माना गया है। माघ मास की पूर्णिमा को ही कलियुग का आरंभ हुआ था। ऐसे में माघी पूर्णिमा को स्नान, दान, जप, हवन आदि करने से अनंत फल की प्राप्ति के साथ ही नवग्रह जनित दोष समाप्त हो जाते हैं। माघी पूर्णिमा का स्नान सारे पापों को नष्ट करता है, साथ ही दान अनंत पुण्यदायी होता है। मकर राशि का संबंध राशिपति होने के कारण शनि से तथा उच्च राशि होने के कारण मंगल से है। सूर्य की गर्मी इस माह में कम रहती है, अत: चंद्रमा बलवान होता है।

बुध, गुरु एवं शुक्र भी माघ मास में क्रमश
युवा विद्यार्थी, बौद्धिक कार्य करने वाले पुरुष एवं महिला वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं। राहु-केतु भी माघी पूर्णिमा से धरती पर उत्पन्न होने वाली ऋत अग्नि एवं ऋत सोम का संचालन करते हैं। कह सकते हैं कि सारे नवग्रहों का संबंध माघ मास एवं माघी पूर्णिमा से बना रहता है। माघी पूर्णिमा का अनंत फल प्राप्त करने के लिए अरुणोदयकाल में सूर्योदय से डेढ़ घंटा पहले स्नान करना सवरेत्तम माना जाता है। तारों की छांव में स्नान करने पर अनंत फल, तारे छिपने पर मध्यम फल तथा सूर्योदय होने पर स्नान सामान्य फलदायी होता है। पद्मपुराण के अनुसार माघी पूर्णिमा या त्रयोदशी से पूर्णिमा तक तीन दिन भी लगातार स्नान, दान, जप, हवन-पूजन, कीर्तन किया जाता है तो पूरे मास जितना फल प्राप्त होता है।

सूर्य यदि हीन बली हो तो हृदयरोग, चंद्रमा निर्बल हो तो मनोरोग, मंगल क्षीण स्थिति में हो तो रक्तचाप, बुध कमजोर हो तो उदर व्याधि एवं आयरन की कमी, गुरु क्षीण बली होने पर लीवर से जुड़े विकार एवं मधुमेह, शुक्र तेज की कमी, शनि वातरोग, चर्मरोग, कमरदर्द, राहु जोड़ों में दर्द तथा केतु अस्थि विकार आदि करवाते हैं। माघी पूर्णिमा को प्रात: स्नान करके यदि सूर्य को अघ्र्य दें तथा सात अनाजों का दान करें तो सूर्य का दोष समाप्त हो जाता है। चंद्रमा के निमित्त मिश्री, शक्कर एवं चावल का दान करें। मंगल के निमित्त चने की दाल एवं गुड़ का। बुध के निमित्त केला, आंवला एवं आंवले के तेल का।

गुरु के निमित्त सरसों के तेल, सिकी मक्का, एक रत्ती सोना आदि का। शुक्र के लिए घी, मक्खन, सफेद तिल, गजक आदि। शनि के लिए काले तिल, तिल्ली का तेल, लोहपात्र, काला वस्त्र आदि। राहु के लिए जूते-चप्पल, भोजन अधोवस्त्र आदि तथा केतु के निमित्त स्कार्फ, टोपी, पगड़ी, विकलांग लोगों की सहायता, कंबल आदि का दान इन सभी ग्रहों के कारण होने वाले विकारों को दूर करते हैं। माघी पूर्णिमा के दिन पितरों को तर्पण करने का विशेष महत्व होता है। इस बार माघी शुक्ल पूर्णिमा शनिवार को है तथा पुष्य नक्षत्र का संयोग है, जो एक अद्भुत योग बना रहा है। इसी दिन होलिकारोपण भी है जो पापों पर पुण्य की विजय का प्रत्यक्ष संकेत देता है। माघी पूर्णिमा पर चंद्रमा अपनी अमृतमयी रश्मियों से पृथ्वी के जल में एक विशिष्ट तत्व का संचार करता है, जो आमजन का कष्ट निवारक बन जाता है।