22 मार्च 2010

Hindi Novel - ELove Ch-51 अस्पताल

मोबाईलसे बंदूककी आवाज सुननेके बाद अंजली चक्कर आकर निचे गिर गई. कंपनीके हॉलका खुशीका माहौल एकदमसे श्मशानवत सन्नाटेमें बदल गया. इन्स्पेक्टरने तुरंत एक दो लोगोंकी सहायता लेकर अंजलीको उठाया. किसीने झटसे फोन कर ऍम्बूलन्स बुलाई.


अंजली बेडपर पडी हुई थी. उसके पास डॉक्टर खडे थे और उसका बीपी चेक कर रहे थे. इन्स्पेक्टर, भाटीयाजी, शरवरी और, और दो चार लोग उसके आसपास खडे थे.

'' डॉक्टर कैसी है उसकी तबियत ?'' शरवरीने पुछा.

'' इनके उपर अचानक बहुत बडा आघात हुवा है जो की वे सह नही पाई ... ऐसे वक्त थोडा वक्त बितने देना बहुत जरुरी होता है ... फिलहाल मैने इनको निंदका इन्जेक्शन दिया है ... तबतक आप लोग बाहर बैठीएगा ... लेकिन उन्हे होश आए बराबर उनके पास कोई होना बहुत जरुरी है ... इनके करीबी कौन है ?'' डॉक्टरने पुछा.

'' मै '' शरवरीने जवाब दिया.

'' आप कौन ... इनकी बहन ?''

'' नही मै इनकी दोस्त हूं '' शरवरीने कहा.

'' दुसरा कोई नही है? ... जैसे मां बाप भाई बहन.''

शरवरीने उलझनमें इधर उधर देखा तो इन्स्पेक्टरने कहा, '' डॉक्टर उनका नजदिकी ऐसा कोई नही है ''

'' अच्छा ठिक है ... ऐसा करो आप इनके पास रुको '' डॉक्टरने शरवरीसे कहा.

वैसेभी शरवरीका वहांसे हिलनेके लिए मन नही कर रहा था. बाकी सब लोग कमरेसे बाहर चले गए और शरवरी वही उसके सिरहाने बैठी रही. वह भलेही उसकी बॉस रही हो लेकिन उसने उसे कभी बॉसकी तरह ट्रीट नही किया था. और असलमें अंजलीने उसे एक दोस्तके हैसियतसेही वह पीए का जॉब जॉइन करनेके लिए कहा था. शरवरी उसके सिरहाने बैठकर उसे होश आनेका इंतजार करने लगी.


अंजलीको इंजक्शन देकर लगभग दोन-तिन घंटे हो गए होंगे. उसके रुमके बाहर अबभी इन्स्पेक्टर, भाटीयाजी और बाकी काफी लोग उसे होश आनेकी राह देख रहे थे. होशमें आनेके बाद उसकी दिमागी हालत कैसी रहती है इसपर काफी चिजे निर्भर करती थी. असलमें उसे मां बाप ऐसे एकदम करीबी कोई ना होनेसे उसने विवेकपर अपनी पुरी जिंदगी निछावर की थी. और उसका उसे ऐसे बिचमें छोडकर चला जाना उसके लिए बहुत बडा आघात था. तभी एक नर्स जल्दी जल्दी बाहर आ गई.

'' इन्स्पेक्टर उन्हे होश आ गया है '' नर्सने कहा और वह फिरसे अंदर चली गई.

सारे लोग अंदर जानेके लिए हरकतमें आ गए.

अंदर अंजली शरवरीके कंधेपर सर रखकर जोर जोरसे रो रही थी. और शरवरी उसके पिठपर थपथपाकर और सरपर हाथ फेरते हूए उसे जितना हो सके उतना धीरज बंधानेकी कोशीश कर रही थी. दरअसल पहले वह बुरी खबर सुननेके बाद उसे अपनी भावनाए व्यक्त करनेके लिए मौका नही मिला था क्योंकी वह अपनी भावनाओंको व्यक्त करनेके पहलेही बेहोश हो गई थी. कमरेंमे वह हृदयविदारक दृष्य देखकर इन्स्पेक्टर उसे धीरज बंधानेके लिए आगे बढने लगे, तब बगलमें खडे डॉक्टरने उन्हे इशारेसेही मना कर दिया. डॉक्टरकाभी सही था क्योंकी उसका सारा दर्द बाहर आना बहुत जरुरी था. सब लोग, भलेही उन्हे बहुत दुख हो रहा था फिरभी चुप्पी साधकर वह दृष्य देखते रहे.

तभी कमरेके बाहर, काफी दुरसे, शायद अस्पतालके प्रमुख द्वारसे आवाज आया, '' अंजली...''