विद्यानंदस्वामी विजयपुर पधारे। उस दिन की शाम को वे नगर की प्रजा से मिलनेवाले थे और प्रवचन देनेवाले थे। बहुत सुंदर रूप से सजाये गये मंच की दायीं ओर एक विशेष आसन का प्रबंध किया गया। ज़मींदार जगपति राय ने विद्यानंद स्वामी को अपने गृह में आतिथ्य ही नहीं दिया, बल्कि उनके उपदेश के लिए आवश्यक धन भी दान में दिया। उन्हीं के लिए इस विशेष आसन का प्रबंध किया गया। पर, जगपति राय उस आसन पर आसीन नहीं हुए। वे जनता के साथ बैठे।
विद्यानंद स्वामी ने इस पर ध्यान दिया और बहुत ही खुश होकर कहा, ‘‘मानव में जो गुण होने चाहिये, उनमें विनय प्रधान है। अगर यह गुण हो तो सहनशक्ति, दैवभक्ति जैसे सद्गुण आप ही आप जुड़ जाते हैं। बड़े लोगों का कहना है कि मानवों को जो संपदा, भवन, पत्नी और संतान उपलब्ध होते हैं, वे सबके सब पूर्व जन्म के पुण्यों के फल हैं। किन्तु उन्हीं पर विश्वास करके हाथ पर हाथ धरे बैठना विवेक नहीं कहलाता। इहलोक और परलोक के सुखों की प्राप्ति के लिए निरंतर प्रयत्न चाहिये। इन सबसे बढ़कर चाहिये, भगवान की कृपा। तभी जीवन का लक्ष्य साधा जा सकता है और सद्गति प्राप्त हो सकती है। तब तक सहनशक्ति का पालन करना आवश्यक है। इन दोनों का आधार है, विनय। चाहे हम किसी भी स्थिति में क्यों न हों, उतार-चढ़ाव का सामना हमें क्यों न करना पड़े, इस विनय का अवश्य पालन होना चाहिये, इसकी आदत डालनी चाहिये। घमंड से दूर रहना चाहिये। उदाहरणस्वरूप एक गोल पत्थर की कहानी सुनाऊँगा। ध्यान से सुनिये।'' फिर वे यों कहने लगे:
गोदावरी नदी तट के सुंदर प्रदेशों में आम, कटहल, नारियल व केले जैसे तरह-तरह के फल के वृक्ष हैं। एक बार गोदावरी में बाढ़ आयी। उस बाढ़ में कीचड़ के साथ ऊपर के पहाड़ों से कुछ पत्थर लुढ़कते हुए नीचे आये। लुढ़कते हुए पत्थरों में से एक गोल पत्थर बहता हुआ आया और नदी तट के बगल के नारियल के पेड़ों के बीच में आकर अटक गया। और वहाँ से आगे नहीं जा पाया। क्रमशः बाढ़ का प्रवाह कम होता गया। नारियल सूर्य की कांति के कारण चमकते हुए पत्थर को देखकर चकित रह गये।
एक पके नारियल ने पत्थर से कहा, ‘‘ऐ, तुम कौन हो? कहाँ से आये? यहीं क्यों रह गये?'' गरजते हुए उसने पूछा।
पत्थर मौन रहा। तब एक और पेड़ पर के नारियल ने उसकी हँसी उड़ाते हुए कहा, ‘‘इसकी कहानी मैं खूब जानता हूँ। इसका जन्म पहाड़ों में होता है और प्रवाहित होता हुआ नीचे आता है। प्रवाह के वेग में ये पत्थर छोटे-छोटे टुकड़ों में बदल जाते हैं। यह भी उन टुकड़ों में से एक है। लुढ़कता हुआ यहाँ आया, चोटें सहीं और गोल पत्थर के आकार में दिख रहा है। बेचारा बाढ़ की वजह से हमारे बीच में आकर अटक गया, नहीं तो और चोटें सहते हुए रेत का कण बन जाता और समुद्र में डूब जाता।''
‘‘बेचारे गोल पत्थर, सहनशक्ति की भी एक सीमा होनी चाहिये। हमें देखो, आत्माभिमान से भरे हम, आकाश को छूते हुए कितने आनंद और गर्व के साथ जी रहे हैं।'' एक और नारियल ने कहा। नारियल की इन बातों को सुनकर गोल पत्थर कुछ कहे बिना चुप रहा। यों कुछ समय बीत गया।
नदी के समीप के एक गाँव में एक शिवालय था। पुजारी एक थाली में नारियल, पुष्प और अगरबत्तियाँ भगवान के सम्मुख रखकर पूजा कर रहा था। नारियल ने अपनी तीनों आँखें खोलीं और भगवान को देखता रहा। काला गोल पत्थर ऊपर चमक रहा था। वह ऊँचे स्थान पर रखा हुआ था।
नारियल को पेड़ों के बीच में अटके गोल पत्थर की याद आयी। वह उसी पत्थर को लेकर सोच ही रहा था कि इतने में गोल पत्थर ने नारियल से कहा, ‘‘ऐ मित्र, उस समय की उन्नत स्थिति व स्वाभिमान कहाँ गये? तुम तो कह रह थे कि सहनशक्ति की भी सीमा होनी चाहिये। मेरी हँसी उड़ाते हुए बता रहे थे कि मैं ऐसी सीमाओं से अनभिज्ञ हूँ, मुझमें स्वाभिमान नहीं हैं, अपमान सहना ही मेरे भाग्य में लिखा है आदि आदि। मुझ पर दया दिखा रहे थे और अपने को अमर, अटल मान रहे थे। पर अब क्या हुआ?''
इतने में पुजारी ने नारियल को अपने हाथ में लिया और पत्थर पर पटककर उसके दो टुकड़े किये। पश्चाताप से भरे नारियल ने कहा, ‘‘मित्र, मुझे क्षमा करना। मैं उस दिन पेड़ पर था, इसलिए अपने को ऊँचा समझ रहा था और तुम्हें गालियाँ देता जा रहा था। लेकिन तुम चुप रहे । अब मेरी बुरी हालत है। यों मैं अपने को समर्पित कर रहा हूँ। हमसे भी ऊँचे पर्वतों में तुमने जन्म लिया, पवित्र गोदावरी में रहे, और पूजा के योग्य बने। तुमने साबित कर दिया कि सहनशक्ति से बढ़कर कोई और गुण नहीं है।'' यों नारियल ने गोल पत्थर से माफी माँगी। उसके बाद शिव को समर्पित किया गया नारियल भी पवित्र हुआ और वह भक्तों में प्रसाद के रूप में बाँटा गया।
विद्यानंद स्वामी ने आगे कहा, ‘‘नदी के प्रवाह में अटके गोल पत्थर की ही तरह मनुष्यों को भी जीवन में उतार-चढ़ाव का सामना करना पड़ता है। सब कुछ सहते हुए जो मानव सन्मार्ग पर चलता है, वह किसी न किसी दिन उन्नत स्थिति पाता है और धन्य कहलाता है।''
30 मार्च 2010
गोल पत्थर की कहानी
Posted by Udit bhargava at 3/30/2010 05:48:00 pm
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