22 मार्च 2010

कौन कहता है बदल नहीं सकती तकदीर ( Who can not change destiny )


"जन्म से दृष्टहीन 47 वर्षीय माधुरी देसाई ने अपने संकल्प के बल पर ज्योतिष के क्षेत्र में ऐसा मुकाम बनाया है कि आज गुजरात और उसके आस-पास उनके कई ग्राहक हैं।"
लाँकि ऊपरवाले ने उनके भाग्य में दृष्टहीनता लिख दी थी, लेकिन आज वह ऐसे मुकाम पर हैं, जहाँ दूसरों का भाग्य बताती हैं। वह दृष्टहीन पैदा हुइ थीं, लेकिन यह कमी भी उन्हें अपने भविष्य के बारे में अलग दृष्टी विकसित करने से नहीं रोक सकी। उनमें लोगों का भविष्य बताने के प्रति जूनून था और इसी वजह से उन्होंने ज्योतिष में डिग्री हासिल की।


वह लोगों की हथेलियों पर अपनी उंगालियां फिराकर उनका भविष्य बताती हैं। इस काम के लिये काफी एकाग्रता कि जरुरत होती है। इसके अलावा उन्होंने एक तयशुदा पैटर्न पर कुंडली का अध्ययन कर दूसरों का भविष्य पढते हुए कई ग्राहक बनाये हैं। अपने द्वारा खोजे गये इस पैटर्न के आधार पर उनके लिये भविष्यफल बताना आसान होता है। हालांकि कई लोग शुरुआत में इस विज्ञानं पर उनके ज्ञान की परीक्षा लेने आये, लेकिन धीरे-धीरे लोगों का विशवास उन पर जम गया। पिछले 30 साल में उन्होंने गुजरात और उसके आस-पास के इलाके में कई ग्राहक बनाए हैं। माउथ पब्लिसिटी के जरिये ही उन्होंने इस क्षेत्र में यह सफलता हासिल की है।

वैसे उनके लिये यहाँ तक का सफ़र आसान नहीं रहा। जन्म से दृष्टहीन 47 वर्षीय माधुरी देसाई अपने चार भाई-बहनों के साथ आम स्कूल में ही गयी। अपने भाई-बहनों की मदद से उन्होंने स्कूली शिक्षा पूरी की। स्नातक स्तर पर उन्होंने ज्योतिष के रूप में एक अलग क्षेत्र को चुना। उस वक्त इस विषय के प्राध्यापकों को भी यकीन नहीं था कि माधुरी यह कोर्स पूरा कर पाएंगी।

इस कारण उन्हें कक्षा में पीछे वाली बेंच पर बैठाया जाता और तकरीबन 100 छात्र संख्या वाली उस कक्षा में प्रोफ़ेसर व सहपाठी उन पर ज्यादा ध्यान नहीं देते। जिस तरह कक्षा हफ्ते-दर-हफ्ते आगे बढती गई, विघ्यार्थियों का भी रुझान इसमें घटने लगा और उनकी संख्या भी घटने लगी, इसी समय माधुरी द्वारा अपने शिक्षकों से पूछे जाने वाले दिलचस्प सवालों ने उन्हें पीछे की बेंच से धीरे-धीरे आगे की और खिसकना शुरू कर दिया और आख़िरकार अंतिम वर्ष तक आते-आते वह कक्षा में सबसे आगे की बेंच तक पहुँच गई। उस समय तक इस विषय को लेकर गंभीर छात्रों की संख्या भी सिमटकर दस रह गयी थी। अब माधुरी इस प्राचीन विद्या की विरासत अगली पीढ़ी को सौंपना चाहती हैं और ऐसी किताबें लिखने के लिये जमकर मेहनत कर रही हैं, जिससे दृष्टहीन लोग भी इस पेशे को अपना सकें।

फ़ंडा यह है कि.... आप इश्वर की लिखी तकदीर को शायद न बदल पाएं, लेकिन अपने जीने के तौर-तरीके बदलते हुए अपने साथ-साथ दूसरों का भी जीवन बेहतर बना सकते हैं।