एक दिन ब्रह्म देव अपनी सृष्टि को देखने के लिए भूमि पर घूमने लगे। उन्होंने यहां पर सभी जीव-जन्तु को यहां मौन, उदास और निष्क्रिय देखा। यह दशा देखकर ब्रह्माजी बहुत चिंतित हुए और वे सोचने लगे कि क्या उपाय किया जाएं कि सभी प्राणी एवं वनस्पति आनंद और प्रसन्न होकर झुमने लगे। मन में ऐसा विचार कर उन्होंने कमल पुष्पों पर जल छिड़का उनमें से देवी सरस्वती प्रकट हुई। जो सफेद वस्त्र धारण किए हुए, गले में कमलों की माला सहित अपने हाथों में वीणा, पुस्तक धारण किए हुए थी। भगवान ब्रह्मा ने देवी से कहा, तुम सभी प्राणियों के कंठ में निवास कर इनको वाणी प्रदान करो। सभी को चैतन्य एवं प्रसन्न करना तुम्हारा काम होगा और विश्व में भगवती सरस्वती के नाम से विख्यात होगी। चुंकि तुम इस लोक का कल्याण करोगी, इसलिए विद्वत समाज तुम्हारा आदर कर पूजा करेगा।
16 फ़रवरी 2011
15 फ़रवरी 2011
शनिदेव इंगित प्रतिकूलता शमन के उपाय
शनिदेव इंगित प्रतिकूलता शमन के उपाय बताने से पहले मैं यह स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि श्री शनिदेव न तो किसी के अनुकूल होते हैं और न प्रतिकूल। वे तो कर्मफलदाता की भूमिका निभाते हैं और किसी का पक्षपात नहीं करते हैं। शनि अनुकूलन के उपाय का तात्पर्य वैसे शास्त्रोंक्त अनुष्ठानों व शुभ कर्मों से है जिससे पूर्वकृत कर्मों का प्रायश्चित हो जाता है।
- घर में नीले रंग के वस्त्र, नीले रंग के पर्दे, नीले रंग की चादरें व दीवारों पर भी नीला रंग करें।
- लगातार 27 शनिवारों को 7 बादाम और 7 उड़द के दाने किसी धर्म स्थान पर रख के आ जायें।
- मांस-मदिरा से दूर रहें।
- किसी भी शनिवार को शुरू करके 43 दिनों तक सूर्योदय के समय शनि पर तेल चढ़ाएं।
- पीपल के वृक्ष को गुरुवार या शनिवार को जल दें।
- चांदी का चौकोर टुकड़ा सदा अपने पास रखें।
- स्नान करते समय पानी में कच्चा दूध डाल कर लकड़ी के पट्टे पर बैठकर नहायें।
- यदि चन्द्रमा ठीक न हो तो 500 उड़द में सरसों का तेल लगाकर पानी में प्रवाहित करें।
- चन्द्रमा प्रतिकूल हो तो 500 ग्राम दूध सोमवार के दिन बहते पानी में प्रवाहित करें और शनिवार के दिन उड़द प्रवाहित करें।
- शनिवार का व्रत रखें और तेल से शनि का अभिषेक करें।
- किसी गरीब लड़की के विवाह में जलावन के लिए कोयले या ईंधन खरीदकर दें।
- झूठ न बोलें। शराब व मांसाहार से दूर रहें।
- रोटी के टुकड़ों पर सरसों का तेल चुपड़कर कौओं या कुत्तो को खिलायें।
- शनिवार के दिन पत्थर के कोयले लंगर पकाने के लिए किसी धाार्मिक स्थान में दान दें।
- गौ माता की सेवा करें।
- केसर का तिलक नियमित करें।
- लोहे की वस्तुएं यानी तवा, चिमटा, अंगीठी आदि का दान किसी संत या सज्जन पुरुष को करें।
- यदि कारोबार में घाटा हो रहा हो तो लगातार 43 दिनों तक कौओं या कुत्तों के लिए रोटी डालें।
- लोहे की बासुरी में खांड भरकर किसी वीरान स्थान में दबा दें।
Posted by Udit bhargava at 2/15/2011 08:12:00 pm 0 comments
टोने-टोटके - कुछ उपाय - 8 (Tonae Totke - Some Tips-8)
छोटे-छोटे उपाय हर घर में लोग जानते हैं. पर उनकी विधिवत जानकारी के अभाव में वे उनके लाभ से वंचित रह जाते हैं। इस लोकप्रिय स्तम्भ में उपयोगी टोटकों की विधिवत जानकारी दी जा रही है।
पांवों को जगाने का टोटका :
- बहुधा देखा गया है कि प्राणी कहीं देर तक बैठा हो तो हाथ-पैर सुन्न हो जाते हैं। जो अंग सुन्न हो गया हो, उस पर उंगली से 27 का अंक लिख दीजिये, अंग ठीक हो जाएगा।
मृत्यु की आशंका से बचने के उपाय :
- काले तिल और जौ का आटा तेल में गूंथकर एक मोटी रोटी बनाएं और उसे अच्छी तरह सेंकें। गुड को तेल में मिश्रित करके जिस व्यक्ति की मरने की आशंका हो, उसके सिर पर से 7 बार उतार कर मंगलवार या शनिवार को भैंस को खिला दें।
- गुड के गुलगुले सवाएं लेकर 7 बार उतार कर मंगलवार या शनिवार व इतवार को चील-कौए को डाल दें, रोगी को तुरंत राहत मिलेगी।
- महामृत्युंजय मंत्र का जप करें। द्रोव, शहद और तिल मिश्रित कर शिवजी को अर्पित करें। 'ॐ नमः शिवाय' षडाक्षर मंत्र का जप भी करें, लाभ होगा।
लक्ष्मी प्राप्ति के टोटके :
- श्रावण के महीने में 108 बिल्व पत्रों पर चन्दन से नमः शिवाय लिखकर इसी मंत्र का जप करते हुए शिवजी को अर्पित करें। 31 दिन तक यह प्रयोग करें, घर में सुख-शांति एवं सम्रद्धि आएगी, रोग, बाधा, मुकदमा आदि में लाभ एवं व्यापार में प्रगति होगी व नया रोजगार मिलेगा। यह एक अचूक प्रयोग है।
- भगवान् को भोग लगाई हुई थाली अंतिम आदमी के भोजन करने तक ठाकुरजी के सामने रखी रहे तो रसोई बीच में ख़त्म नहीं होती है।
बालक की दीर्घायु के लिये :
- बालक को जन्म के नाम से मत पुकारें।
- पांच वर्ष तक बालक को कपडे मांगकर ही पहनाएं।
- 3 या 5 वर्ष तक सिर के बाल न कटाएं।
- उसके जन्मदिन पर बालकों को दूध पिलाएं।
- बच्चे को किसी की गोद में दे दें और यह कहकर प्रचार करें कि यह अमुक व्यक्ति का लड़का है।
घर में सुख-शांति के लिये :
- मंगलवार को चना और गुड बंदरों को खिलाएं।
- आठ वर्ष तक के बच्चों को मीठी गोलियां बाँटें।
- शनिवार को गरीब व भिखारियों को चना और गुड दें अथवा भोजन कराएं।
- मंगलवार व शनिवार को घर में सुन्दरकाण्ड का पाठ करें या कराएं।
ग्रहों के देवता :
- सूर्य के देवता विष्णु, चन्द्र के देवता शिव, बुध की देवी दुर्गा, ब्रहस्पति के देवता ब्रह्मा, शुक्र की देवी लक्ष्मी, शनि के देवता शिव, राहु के देवता सर्प और केतु के देवता गणेश। जब भी इन ग्रहों का प्रकोप हो तो इन देवताओं की उपासना करनी चाहिए।
Labels: टोने-टोटके
Posted by Udit bhargava at 2/15/2011 07:30:00 pm 1 comments
14 फ़रवरी 2011
अंगूठे का महत्व
अंगूठे का महत्व
हस्तरेखा के अध्य्यन में अंगूठे की भूमिका अहम होती है. अंगूठा इच्छाशक्ति, विवेक, प्रेम संवेदना का सूचक है. अंगूठे को व्यक्ति के व्यक्तित्व का दर्पण भी कहा जाता है. हस्त परीक्षण में अंगूठे को आधार मानते हैं. तिब्बत, बर्मा तथा मध्यपूर्वी देशों में अंगूठे की बनावट को व्यक्तित्व विश्लेक्षण में विशेष स्थान दिया गया है. चीनी लोगों ने अंगूठे के प्रथम पर्व की कोशिकाओं के आधार पर विस्तृत पद्वति तैयार की है. यूनान के चर्चों में पादरीगन सदैव अंगूठे से आशीर्वाद दे देते हैं. भारतीय सन्दर्भ में द्रोणाचार्य द्वारा गुरूदक्षिणा के रूप में एकलव्य से अंगूठे का माँगा जाना अंगूठे की महत्ता को उजागर करता है.
फ्रांस के प्रसिद्द हस्त रेखा विज्ञानी डी. आपे टाइनी (डाँ. अर्पेंटीजनी) ने भी प्रतिपादित किया है कि अंगूठा व्यक्ति का प्रतिरूप होता है. सर चार्ल्स बेल ही खोज में यह वर्णन है कि चिम्पांजी जिसके शरीर की बनावट मनुष्य के शरीर की बनावट से मिलती है, का अंगूठा तर्जनी के पहले आधार तक नहीं पहुँच पाता है, जबकि मनुष्य का अंगूठा पहली अंगुली के आधार से ऊपर तक पहुंचता है. अभिप्राय यह है कि जिस व्यक्ति का अंगूठा जितना सुविकसित, दृढ व सुगठित होता है, उस व्यक्ति में बौद्धिक और मानसिक विशेषताएं उतनी ही अधिक होती हैं. इसके विपरीत अंगूठे का छोटा, कमजोर, पतला व अविकसित होना व्यक्ति में बौद्धिक क्षमता व नेतृत्व बल की कमी का सूचक होता है.
मनुष्य का अंगूठा प्रकृति ने इस तरह बनाया है कि वह अन्य अँगुलियों के विपरीत दिशा में कार्य करने में भी सक्षम होता है. यही वह शक्ति है, जो आत्मिक या मौलिक बल का संकेत देती है.
नवजात बच्चों की इच्छाशक्ति नहीं होती, वह पूरी तरह अपनी माँ या पालनहार पर निर्भर रहता है. इस दौरान उसका अंगूठा बंद मुट्ठे में अँगुलियों से ढका रहता है. जैसे-जैसे बच्चे की इच्छाशक्ति व बुद्धि विकसित होने लगती है, अंगूठा अँगुलियों की पकड़ से आजाद होता जाता है.
ऐसा पाया गया है कि जिस नवजात शिशु का अंगूठा मुट्ठी में बंद रहता है वह अल्पबुद्धि और जिसका अंगूठा बाहर रहता है वह बुद्धिमान होता है. मंद बुद्धि और कमजोर दिमाग वाले बच्चे सदैव अंगूठे को मुट्ठी में दबाए रहते हैं.
मिर्गी व मूर्छा रोग से ग्रस्त किसी व्यक्ति का अंगूठा मूर्छा के समय उसके हाथ में पहले ही मुड जाता है. अंगूठे का इस तरह मुड़ना मिर्गी या मूर्छा का पूर्वाभास दे देता है.
अंगूठे की यह क्रिया प्राय उन लोगों में देखी गई है, जो उच्च ज्वर से पीड़ित या मरणासन्न अवस्था में होते हैं. इस अवस्था में मनुष्य तर्क व इच्छा शक्ति के बल पर इसका विरोध करता है. इस विरोध करने की दिशा में अंगूठा सीधा रहता है, किन्तु मृत्यु के निकट आते ही हथेली में बंद हो जाता है.
चिकित्सा शास्त्र के अनुसार भी अंगूठा मस्तिष्क का मुख्य बिंदु है. प्राचीन काल भारत में नस और नाडी चिकित्सा करने वाले वैधगण अंगूठे के विश्लेक्षण से व्यक्ति के रोग और निदान के बारे में निर्णय लिया करते थे. अंगूठा अनेक बीमारियों की पूर्व सूचना समय से बहुत पहले दे देता है.
अंगूठे की लम्बाई के संबंध में माना जाता है कि यह साधारणतय ब्रहस्पति की अंगुली (तर्जनी) के तीसरे पर्व के मध्य तक पहुँचती है. इससे ऊपर बढ़ने पर अधिक लंबा व तर्जनी के तीसरे पर्व के मध्य से नीचे होने पर छोटा माना जाता है. सामान्य रूप से अंगूठे की दोनों पोरों में दो-तीन का अनुपात होता है. इस प्रकार की लम्बाई वाला अंगूठा बुद्धि और भावना का संतुलन बनाए रखने में बहुत हद तक सक्षम होता है.
अंगूठे को प्रथम अंगुली से खींचने पर जो कोण बनता है, वह जातक के बौद्धिक गुण व उसके व्यक्तित्व का सूचक होता है.
जिस जातक का अंगूठा अँगुलियों से नजदीकी से जुडा हुआ, छोटा या भद्दा हो, वह मंदबुद्धि, मूढ़ व लालची होता है.
अगर प्रथम अंगुली से अंगूठा अधिक दूरी पर हो, तो व्यक्ति तीव्र बुद्धि व दूरदर्शी होता है. ऐसे अंगूठे वाले कुछ व्यक्तियों में धन अधिक खर्च करने की प्रवृत्ति पाई जाती है.
जिसका अंगूठा अत्यधिक लंबा हो, वह भावुक नहीं होता, बल्कि उसमें हाथ की प्रवृत्ति अधिक होती है. किन्तु यदि मष्तिष्क रेखा अच्छी हो, तो वह कुशल शासक होता है. लम्बे अंगूठे वाले लोगों के विचारों और कर्म में समानता पाई जाती है. ऐसे लोग अपनी मर्जी के मालिक होते हैं. और किसी से जल्दी प्रभावित नहीं होते. वे अच्छे आलोचक होते हैं. वे मनोबल व बुद्धि को अधिक महत्व देते हैं. इसके विपरीत छोटे अंगूठे वाले जातक प्रायः भावनाओं से नियंत्रित होते हैं.
अधिकाँश हस्ताशास्त्रियों के अनुसार अंगूठे के दो पर्व होते हैं. पहला पर्व इच्छा, मनोबल व भावना का और दूसरा विवेक, बुद्धि, ज्ञान व तर्क का सूचक है. कुछ हस्त्शास्त्री शुक्र पर्वत को अंगूठे का तीसरा पर्व मानते हैं, जो प्रेम और संवेदना का सूचक है.
छोटे अंगूठे वाले लोगों की तुलना में लम्बे अंगूठे वाले लोगों का व्यक्तित्व अच्छा होता है, क्योंकि वे अपनी भावनाओं पर सरलता से नियंत्रण प्राप्त कर लेते हैं. अंगूठे का पहला पोर यदि अधिक लंबा हो, तो व्यक्ति तानाशाह प्रवृत्ति का होता है और उसका स्वयं पर नियंत्रण नहीं होता. यदि पहला पोर लंबा हो, तो व्यक्ति की इच्छाशक्ति दृढ होती है और वह अच्छे स्वास्थ्य का स्वामी होता है. किन्तु यदि छोटा हो, तो व्यक्ति में आत्मनियंत्रण का अभाव होता है. यदि यह अधिक छोटा हो, तो व्यक्ति असभ्य, लापरवाह, जिद्दी व जल्दी घबरा जाने वाला होता है.
अंगूठे का दूसरा पोर यदि अत्यधिक लंबा हो, तो व्यक्ति चरित्र संदिग्ध होता है. वह किसी की बातों पर विश्वास नहीं करता. वह तर्क शक्ति को महत्व देता है और उसमें विवेक की प्रधानता पाई जाती है. अंगूठे के दूसरे पोर का छोटा या अधिक छोटा होना कमजोर तर्क शक्ति व विवेक शून्यता का सूचक होता है. ऐसे अंगूठे वाले लोग किसी कार्य को करने से पहले कुछ सोचना समझना नहीं चाहते.
अंगूठे का पहला पोर अत्यधिक छोटा हो तो व्यक्ति में आत्मविश्वास की कमी होती है. वह लापरवाह और असभ्य होता है और उसके दिल और दिमाग में सामंजस्य का अभाव होता है.
अंगूठा मोटा हो, तो व्यक्ति हठी, कामुक व असभ्य होता है. अंगूठे का चपटा होना व्यक्ति के संवेदनशील व नीच स्वभाव का घोतक होता है. अंगूठे का छोटा होना मानसिक अस्थिरता का सूचक होता है.
चौड़े अंगूठे वाले जातक स्वभाव से हठी होते हैं. अगर अंगूठा लंबा व चौड़ा हो, तो व्यक्ति में शासन करने की प्रवृत्ति होती है. वह स्वतंत्र विचार वाला होता है और किसी के अधीन नहीं रहना चाहता. यदि अंगूठा चौड़ा व छोटा हो, तो व्यक्ति हिंसक प्रवृत्ति का होता है.
अंगूठे के अग्र भाग का नुकीला होना संवेदनशीलता का सूचक है. ऐसा जातक कला व सौंदर्य प्रेमी होता है, किन्तु उसकी इच्छाशक्ति दुर्बल होती है. वह दूसरों से बहुत जल्द प्रभावित हो जाता है. यदि नुकीले अंगूठे का प्रथम पर्व लंबा हो तो जातक अत्यधिक भावुक होता है. अंगूठे का लचीला होना शुभ नहीं होता और जिसका अंगूठा लचीला होता है और उसका जीवन अनिश्चितता से भरा होता है. अधिकाँश पागल लोगों का अंगूठा इसी प्रकार का देखने में आया है.
जिसके अंगूठे का सिरा वर्गाकार होता है, वह व्यवहारकुशल होता है. यदि अंगूठे के दोनों पर्व सामान्य हों, तो व्यक्ति गुणवान होता है.
अगर अंगूठे का अग्र भाग चमसाकार हो तो सामान्य इच्छाशक्ति वाले जातक को मौलिकता, कार्यकुशलता व सक्रियता प्राप्त होती है. यदि प्रथम लंबा हो, तो व्यक्ति प्रवीण, सक्रीय व उत्साही होता है. मूठदार अंगूठे वाले जातक अच्छे नहीं माने जाते हैं. ऐसा अंगूठा हथेली में विधमान अच्छे गुणों को भी दूषित कर देता है. अंगूठे का पहला पोर चौड़ा होने के साथ साथ कांच की गोली के समान गोल हो, तो व्यक्ति जल्द उत्तेजित होने वाला व क्रोधी होता है. कुछ हस्तरेखा शास्त्री इसे वंशानुगत मानते हैं.
अंगूठे का पीछे की ओर अत्यधिक झुकाव व्यक्ति के फिजूल खर्ची व मुक्त हृदय होने का घोतक होता है. ऐसे लोग परिस्थिति के अनुरूप अपने को ढाल लेते हैं. अंगूठे के दोनों पोरों को अलग करने वाली रेखा में जौ का निशान हो तो व्यक्ति को खाने-पीने की कभी कमी नहीं होती.
हस्तरेखा के अध्य्यन में अंगूठे की भूमिका अहम होती है. अंगूठा इच्छाशक्ति, विवेक, प्रेम संवेदना का सूचक है. अंगूठे को व्यक्ति के व्यक्तित्व का दर्पण भी कहा जाता है. हस्त परीक्षण में अंगूठे को आधार मानते हैं. तिब्बत, बर्मा तथा मध्यपूर्वी देशों में अंगूठे की बनावट को व्यक्तित्व विश्लेक्षण में विशेष स्थान दिया गया है. चीनी लोगों ने अंगूठे के प्रथम पर्व की कोशिकाओं के आधार पर विस्तृत पद्वति तैयार की है. यूनान के चर्चों में पादरीगन सदैव अंगूठे से आशीर्वाद दे देते हैं. भारतीय सन्दर्भ में द्रोणाचार्य द्वारा गुरूदक्षिणा के रूप में एकलव्य से अंगूठे का माँगा जाना अंगूठे की महत्ता को उजागर करता है.
फ्रांस के प्रसिद्द हस्त रेखा विज्ञानी डी. आपे टाइनी (डाँ. अर्पेंटीजनी) ने भी प्रतिपादित किया है कि अंगूठा व्यक्ति का प्रतिरूप होता है. सर चार्ल्स बेल ही खोज में यह वर्णन है कि चिम्पांजी जिसके शरीर की बनावट मनुष्य के शरीर की बनावट से मिलती है, का अंगूठा तर्जनी के पहले आधार तक नहीं पहुँच पाता है, जबकि मनुष्य का अंगूठा पहली अंगुली के आधार से ऊपर तक पहुंचता है. अभिप्राय यह है कि जिस व्यक्ति का अंगूठा जितना सुविकसित, दृढ व सुगठित होता है, उस व्यक्ति में बौद्धिक और मानसिक विशेषताएं उतनी ही अधिक होती हैं. इसके विपरीत अंगूठे का छोटा, कमजोर, पतला व अविकसित होना व्यक्ति में बौद्धिक क्षमता व नेतृत्व बल की कमी का सूचक होता है.
मनुष्य का अंगूठा प्रकृति ने इस तरह बनाया है कि वह अन्य अँगुलियों के विपरीत दिशा में कार्य करने में भी सक्षम होता है. यही वह शक्ति है, जो आत्मिक या मौलिक बल का संकेत देती है.
नवजात बच्चों की इच्छाशक्ति नहीं होती, वह पूरी तरह अपनी माँ या पालनहार पर निर्भर रहता है. इस दौरान उसका अंगूठा बंद मुट्ठे में अँगुलियों से ढका रहता है. जैसे-जैसे बच्चे की इच्छाशक्ति व बुद्धि विकसित होने लगती है, अंगूठा अँगुलियों की पकड़ से आजाद होता जाता है.
ऐसा पाया गया है कि जिस नवजात शिशु का अंगूठा मुट्ठी में बंद रहता है वह अल्पबुद्धि और जिसका अंगूठा बाहर रहता है वह बुद्धिमान होता है. मंद बुद्धि और कमजोर दिमाग वाले बच्चे सदैव अंगूठे को मुट्ठी में दबाए रहते हैं.
मिर्गी व मूर्छा रोग से ग्रस्त किसी व्यक्ति का अंगूठा मूर्छा के समय उसके हाथ में पहले ही मुड जाता है. अंगूठे का इस तरह मुड़ना मिर्गी या मूर्छा का पूर्वाभास दे देता है.
अंगूठे की यह क्रिया प्राय उन लोगों में देखी गई है, जो उच्च ज्वर से पीड़ित या मरणासन्न अवस्था में होते हैं. इस अवस्था में मनुष्य तर्क व इच्छा शक्ति के बल पर इसका विरोध करता है. इस विरोध करने की दिशा में अंगूठा सीधा रहता है, किन्तु मृत्यु के निकट आते ही हथेली में बंद हो जाता है.
चिकित्सा शास्त्र के अनुसार भी अंगूठा मस्तिष्क का मुख्य बिंदु है. प्राचीन काल भारत में नस और नाडी चिकित्सा करने वाले वैधगण अंगूठे के विश्लेक्षण से व्यक्ति के रोग और निदान के बारे में निर्णय लिया करते थे. अंगूठा अनेक बीमारियों की पूर्व सूचना समय से बहुत पहले दे देता है.
अंगूठे की लम्बाई के संबंध में माना जाता है कि यह साधारणतय ब्रहस्पति की अंगुली (तर्जनी) के तीसरे पर्व के मध्य तक पहुँचती है. इससे ऊपर बढ़ने पर अधिक लंबा व तर्जनी के तीसरे पर्व के मध्य से नीचे होने पर छोटा माना जाता है. सामान्य रूप से अंगूठे की दोनों पोरों में दो-तीन का अनुपात होता है. इस प्रकार की लम्बाई वाला अंगूठा बुद्धि और भावना का संतुलन बनाए रखने में बहुत हद तक सक्षम होता है.
अंगूठे को प्रथम अंगुली से खींचने पर जो कोण बनता है, वह जातक के बौद्धिक गुण व उसके व्यक्तित्व का सूचक होता है.
जिस जातक का अंगूठा अँगुलियों से नजदीकी से जुडा हुआ, छोटा या भद्दा हो, वह मंदबुद्धि, मूढ़ व लालची होता है.
अगर प्रथम अंगुली से अंगूठा अधिक दूरी पर हो, तो व्यक्ति तीव्र बुद्धि व दूरदर्शी होता है. ऐसे अंगूठे वाले कुछ व्यक्तियों में धन अधिक खर्च करने की प्रवृत्ति पाई जाती है.
जिसका अंगूठा अत्यधिक लंबा हो, वह भावुक नहीं होता, बल्कि उसमें हाथ की प्रवृत्ति अधिक होती है. किन्तु यदि मष्तिष्क रेखा अच्छी हो, तो वह कुशल शासक होता है. लम्बे अंगूठे वाले लोगों के विचारों और कर्म में समानता पाई जाती है. ऐसे लोग अपनी मर्जी के मालिक होते हैं. और किसी से जल्दी प्रभावित नहीं होते. वे अच्छे आलोचक होते हैं. वे मनोबल व बुद्धि को अधिक महत्व देते हैं. इसके विपरीत छोटे अंगूठे वाले जातक प्रायः भावनाओं से नियंत्रित होते हैं.
अधिकाँश हस्ताशास्त्रियों के अनुसार अंगूठे के दो पर्व होते हैं. पहला पर्व इच्छा, मनोबल व भावना का और दूसरा विवेक, बुद्धि, ज्ञान व तर्क का सूचक है. कुछ हस्त्शास्त्री शुक्र पर्वत को अंगूठे का तीसरा पर्व मानते हैं, जो प्रेम और संवेदना का सूचक है.
छोटे अंगूठे वाले लोगों की तुलना में लम्बे अंगूठे वाले लोगों का व्यक्तित्व अच्छा होता है, क्योंकि वे अपनी भावनाओं पर सरलता से नियंत्रण प्राप्त कर लेते हैं. अंगूठे का पहला पोर यदि अधिक लंबा हो, तो व्यक्ति तानाशाह प्रवृत्ति का होता है और उसका स्वयं पर नियंत्रण नहीं होता. यदि पहला पोर लंबा हो, तो व्यक्ति की इच्छाशक्ति दृढ होती है और वह अच्छे स्वास्थ्य का स्वामी होता है. किन्तु यदि छोटा हो, तो व्यक्ति में आत्मनियंत्रण का अभाव होता है. यदि यह अधिक छोटा हो, तो व्यक्ति असभ्य, लापरवाह, जिद्दी व जल्दी घबरा जाने वाला होता है.
अंगूठे का दूसरा पोर यदि अत्यधिक लंबा हो, तो व्यक्ति चरित्र संदिग्ध होता है. वह किसी की बातों पर विश्वास नहीं करता. वह तर्क शक्ति को महत्व देता है और उसमें विवेक की प्रधानता पाई जाती है. अंगूठे के दूसरे पोर का छोटा या अधिक छोटा होना कमजोर तर्क शक्ति व विवेक शून्यता का सूचक होता है. ऐसे अंगूठे वाले लोग किसी कार्य को करने से पहले कुछ सोचना समझना नहीं चाहते.
अंगूठे का पहला पोर अत्यधिक छोटा हो तो व्यक्ति में आत्मविश्वास की कमी होती है. वह लापरवाह और असभ्य होता है और उसके दिल और दिमाग में सामंजस्य का अभाव होता है.
अंगूठा मोटा हो, तो व्यक्ति हठी, कामुक व असभ्य होता है. अंगूठे का चपटा होना व्यक्ति के संवेदनशील व नीच स्वभाव का घोतक होता है. अंगूठे का छोटा होना मानसिक अस्थिरता का सूचक होता है.
चौड़े अंगूठे वाले जातक स्वभाव से हठी होते हैं. अगर अंगूठा लंबा व चौड़ा हो, तो व्यक्ति में शासन करने की प्रवृत्ति होती है. वह स्वतंत्र विचार वाला होता है और किसी के अधीन नहीं रहना चाहता. यदि अंगूठा चौड़ा व छोटा हो, तो व्यक्ति हिंसक प्रवृत्ति का होता है.
अंगूठे के अग्र भाग का नुकीला होना संवेदनशीलता का सूचक है. ऐसा जातक कला व सौंदर्य प्रेमी होता है, किन्तु उसकी इच्छाशक्ति दुर्बल होती है. वह दूसरों से बहुत जल्द प्रभावित हो जाता है. यदि नुकीले अंगूठे का प्रथम पर्व लंबा हो तो जातक अत्यधिक भावुक होता है. अंगूठे का लचीला होना शुभ नहीं होता और जिसका अंगूठा लचीला होता है और उसका जीवन अनिश्चितता से भरा होता है. अधिकाँश पागल लोगों का अंगूठा इसी प्रकार का देखने में आया है.
जिसके अंगूठे का सिरा वर्गाकार होता है, वह व्यवहारकुशल होता है. यदि अंगूठे के दोनों पर्व सामान्य हों, तो व्यक्ति गुणवान होता है.
अगर अंगूठे का अग्र भाग चमसाकार हो तो सामान्य इच्छाशक्ति वाले जातक को मौलिकता, कार्यकुशलता व सक्रियता प्राप्त होती है. यदि प्रथम लंबा हो, तो व्यक्ति प्रवीण, सक्रीय व उत्साही होता है. मूठदार अंगूठे वाले जातक अच्छे नहीं माने जाते हैं. ऐसा अंगूठा हथेली में विधमान अच्छे गुणों को भी दूषित कर देता है. अंगूठे का पहला पोर चौड़ा होने के साथ साथ कांच की गोली के समान गोल हो, तो व्यक्ति जल्द उत्तेजित होने वाला व क्रोधी होता है. कुछ हस्तरेखा शास्त्री इसे वंशानुगत मानते हैं.
अंगूठे का पीछे की ओर अत्यधिक झुकाव व्यक्ति के फिजूल खर्ची व मुक्त हृदय होने का घोतक होता है. ऐसे लोग परिस्थिति के अनुरूप अपने को ढाल लेते हैं. अंगूठे के दोनों पोरों को अलग करने वाली रेखा में जौ का निशान हो तो व्यक्ति को खाने-पीने की कभी कमी नहीं होती.
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