मंजुला सिद्दी ने अपनी साड़ी के सिकुड़न को ठीकठाक किया और अपने बालों में लगे ढेर सारे फूलों को थपथपाया। डहेलिया, गुलाब, चमेली- रंगों की रंगरलियाँ! पहले वह इतनी आकर्षक कभी नहीं लगी थी।
वह तुरन्त अपनी फूलों की रंगोली बनाने में जुट गई। फूलों की टोकरी अपने पास खींच ली जो उसकी बेटी ने अपने बाग से तोड़कर अभी-अभी रख दिया था। यह फूलों की रंगोली प्रतियोगिता सबसे पहली बार उसके गाँव में आयोजित की गई थी। वह उस अनोखे बीज पर्वोत्सव की शाम की वेला थी जिसका आतिथ्य कर्नाटक में पश्चिमी घाट में स्थित उसका नागिन कोप्पा गाँव कर रहा था। और फूलों की रंगोली उस दिन के कार्यक्रम की अन्तिम गतिविधि थी।
मंजुला को फूल उगाना बेहद पसन्द था। उसने तरह-तरह की किस्मों के फूल उगाये। और आज उसकी प्यार से की गई फूलों की देखभाल का सदुपयोग किया जा रहा था। जब उसने रंगोली को फूलों से अच्छी तरह सजा दिया तब उसके पास शहर की हँसमुख महिला बाकुल को धन्यवाद देने के लिए शब्द नहीं थे, जिसने ग्रमीण महिलाओं में पहली बार उत्साह के बीज बोये थे। उसी ने बीज पर्वोत्सव का आयोजन किया था।
यह कैसे आरम्भ हुआ, मंजुला के स्मृति-पटल पर चलचित्र की भाँति वे दृश्य सामने आ गये...
एक दोपहर की बात थी। नागिन कोप्पा की औरतें तपती धूप में धान काट कर सुबह से गईं अभी लौट कर गाँव में आई थीं। मंजुला भी उनमें एक थी। वे विश्राम के लिए एक साथ इकट्ठे बैठी थीं। निकट की गा पेरने की पुरानी मशीन लगाई गई थी। बैल धीरे-धीरे घूम रहे थे। मजदूर गे को मशीन में डालते जा रहे थे और उसका रस बड़े कड़ाहों में जमा हो रहा था।
रस को बाद में उबाल का शीरा बनाया जाता और कनस्तरों में भर कर रखा जाता। बच्चों को यह भूरे रंग का तरल बहुत पसन्द था। जब यह तैयार किया जाता तब वे डम्मर मधुमक्खियों की तरह वहाँ मंडराते रहते। बच्चे पीपल के पत्तों से दोने बना कर पीने के लिए उस तरल पदार्थ को माँगते रहते।
नागिन कोप्पा के ग्रामीण गे की सभी पुरानी किस्में उगाते थे जो मिलों में चीनी बनाने के लायक नहीं होते थे। किन्तु उनसे बने गुड़ का स्वाद निराला होता था। कुछ दिन पहले निकटस्थ शहर से गे की इन किस्मों की खोज में बाकुल नागिन कोप्पा आयी थी। उसने कहा था कि ये गे संकर गों से अच्छे होते हैं जिन्हें अधिक उर्वरक और पानी की आवश्यकता होती है। इसके अतिरिक्त, गुड़ साफ की हुई सफेद चीनी से अधिक स्वास्थ्यवर्द्धक होता है।
जब कुछ औरतें बैठकर गे की किस्मों के बारे में बातें कर रही थीं, बाकुल उनकी ओर बढ़ी। वह गाँव-गाँव जाकर पुरानी देसी किस्मों की फसलें उगाने और उन्हें बचाने के लिए प्रोत्साहित किया करती थी, जिनके स्थान पर अब धीरे-धीरे संकर किस्में आने लगी थीं।
यह उनका नागिन कोप्पा का दूसरा भ्रमण था। अपनी पहली यात्रा में उन्होंने उन्हें उस क्षेत्र के बीजों और फसलों के स्लाइड्स दिखाने का वादा किया था। मंजुला ने देखा था कि उनके साथ में एक पैकेट था। हाँ, वे स्लाइड्स ही थे।
स्लाइड्स के चित्र एक दीवार पर दिखाई पड़े। उन फसलों के चित्र जो पश्चिमी घाट के लोग अपने घर के बागों में लगाते हैं। मंजुला और उसकी सहेलियों ने बड़े उत्साह के साथ देखा। शाक, कन्द, सब्जी, फूल, फल का चकाचौंध कर देने वाला रोचक दृश्य! सभी औरतें उत्तेजित थीं। कुछ के अपने बाग भी वैसे ही थे।
‘‘अइयो, ईश्वर! मैंने तो कभी नहीं सोचा था कि ‘गुब्बी हगलकेई' फिर कभी देखने को मिलेगा! मैंने समझा कि यह किस्म लुप्त हो गई।'' वह करैले की एक किस्म के बारे में बोल रही थी जो धृष्ट और गोरैये के सिर के समान छोटा होता है।
बाकुल ने बताया कि वह सब्जी और उसका बीज अभी भी उपलब्ध है। ‘‘ओह! मुझे उसका कुछ बीज दीजिये!'' गंगाम्मा ने कहा।
बाकुल ने उनसे करैले की सभी किस्मों के नाम पूछे। उत्साहित औरतों के एक छोटे समूह ने आपस में बहुत बक-बक करने के बाद आठ किस्मों के नाम गिनाये।
‘‘आप जो भी उगाते हैं और जो कुछ आप के आस पास होते हैं, उनकी सैकड़ों किस्मों के बारे में सोचिये।'' बाकुल ने कहा था। उन्होंने कहा कि घरेलू बागों को प्रायः लोग घिसा-पिटा मान लेते हैं और कोई यह नहीं समझता कि घर के लिए भोजन की कितनी ही किस्में हमें यह दे सकता है।'' यदि तुम्हारे अपने बाग के बीज हों और तरह तरह के हों तो बीज और भोजन पर खर्च होनेवाले पैसे बच जायेंगे। और कौन जानता है, तुम अतिरिक्त उत्पादनों को बेच कर अतिरिक्त पैसे भी कमा सकते हो।''
शीघ्र ही औरतें उत्तेजित होकर बीज, बाग, भोजन के नुस्खे तथा घरेलू दवाइयों के बारे में बातें करने लगीं। मंजुला को स्लाइड शो से प्रेरणा मिली। अवश्य! हमें प्रकृति की दी हुई सभी किस्मों को सुरक्षित रखना चाहिये, उसने सोचा। बाकुल इनके उत्साह को देखकर बहुत प्रस हुई। उनकी गपशप की आवाज़ से अधिक ऊँचे स्वर में वह बोलीं, ‘‘क्या आप लोग एक अनौपचारिक बीज आदान-प्रदान समूह बनाना चाहेंगी? तब आप के पास बीज की कितनी ही किस्में हो जायेंगी।''
‘‘हाँ, हाँ! हरेक ने चिचियाकर कहा।
तभी मंजुला के मन में एक विचार का झोंका आया। ‘‘अक्का, क्या आप एक बीज पर्वोत्सव आयोजित करने में हमारी मदद करेंगी? पड़्रोसी गाँवों की महिलाएँ अपने बीजों के साथ आ सकती हैं। हमलोग उनसे बीज बदल सकते हैं जिससे अगले मौसम में हमारे बागों में फूलों, फलों और सब्जियों की अधिक विविधता हमें मिल सके। उस अवसर पर हम खाने के स्टॉल, खेल, गीत, नृत्य तथा फूलों की रंगोली प्रतियोगिता भी रख सकते हैं।''
बाकुल की आँखों में चमक आ गई। ‘‘हाँ, हाँ! यह तो आश्चर्यजनक लगता है।'' समूह की सभी महिलाएँ सहमत हो गईं। बूढ़ी गंगाम्मा भी उत्तेजित थी। ‘‘मैं तरह-तरह के सभी बीज लाऊँगी जो भी मैंने अब तक एकत्र किये हैं।'' उसने कहा। ‘‘और तुम सब अपने बच्चों को जरूर लाना। उन्हें बीजों के बारे में और उनकी शक्ति के बारे में जो इन छोटे-छोटे बिन्दुओं में छिपी है, अवश्य जानना चाहिये इनके कुछ दाने एक परिवार के लिए पर्याप्त पैदा कर सकते हैं; मुट्ठी भर बीज सारे समुदाय को खिला सकते हैं।''
...इस तरह बीज पर्वोत्सव का जन्म हुआ। हरेक को आनन्द आया। बूढ़ी औरतों को, जिन्होंने फसल की कुछ किस्मों के बीजों को बहुत वर्षों के बाद देखा था जो उनके गाँव से गायब हो गये थे, यहाँ तक कि अब वे उनको भूल चुकी थीं, यह बीजोत्सव बहुत पसन्द आया। बच्चे प्रकृति के वरदान पर चकित थे। उन्हें खाने और खेल-तमाशों में बड़ा मजा आया।
मंजुला ने अपनी रंगोली पर एक आखिरी निगाह डाली। सभी प्रतियोगियों ने अपनी-अपनी रंगोली पूरी कर ली थी। तब गंगाम्मा और बाकुल उठे। वे निर्णायक थे। वे रंगोलियों की पंक्तियों से होकर चलते गये। मंजुला सांस रोककर देख रही थी। वे हर रंगोली के पास रुक कर सोचते थे।
अन्त में परिणाम की घोषणा की गई। ‘‘प्रतियोगिता की विजेता हैं...मंजुला सिद्दी!'' बाकुल ने मुस्कुराती हुई घोषणा की। खुशी से पागल हुई मंजुला पुरस्कार पाने के लिए अपनी सहेलियों की भीड़ से निकलकर आगे बढ़ी, जो गर्व और खुशी के साथ इसे बधाई देने के लिए घेरे हुए थीं।
बाद में, अपना पुरस्कार लेकर बच्चों के साथ घर जाते समय मंजुला ने अनेक रंग-बिरंगे फूलों के अपने छोटे और सुन्दर बाग को मन ही मन धन्यवाद दिया। उसने महसूस किया कि प्रकृति उन्हीं को इनाम देती है जो इसे प्यार करते हैं।
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