लगभग आधी रात हो गई थी. अतूलके कमरेका लाईट बंद था. लेकिन फिरभी कमरेमें चारो तरफ धुंधली रोशनी फैल गई थी- कमरेमें, कोनेमें चल रहे कॉम्प्यूटरके मॉनिटरकी वजहसे. अतूल कॉम्प्यूटरपर कुछ करनेमें बहुत लीन था. उसके आसपास सब तरफ खानेकी, नाश्तेकी प्लेट्स, चायके खाली, आधे भरे हूए कप्स, चिप्स, खाली हो चुके व्हिस्किके ग्लासेस और आधीसे जादा खाली हो चुकी व्हिस्किकी बॉटल दिख रही थी. उसके पिछे कॉटपर हाथपैर फैलाकर अलेक्स सोया हुवा था. उस आधी रातके सन्नाटेमें अतूल तेजीसे कॉम्प्यूटरपर कुछ कर रहा था और उसके किबोर्डके बटन्सका एक अजिब आवाज उस कमरेमें आ रहा था. उधर अतूलके पिछे सो रहे अलेक्सका बेचैनीसे करवटपे करवट बदलना जारी था.
आखिर अपने आपको ना रोक पाकर अलेक्स उठकर बैठते हूए अतूलसे बोला, '' यार तेरा यह क्या चल रहा है? ... 8 दिनसे देख रहा हूं ... दिनभर किचकिच... रातकोभी किचकिच... कभीतो शांतीसे सोने दे... तेरे इस साले किबोर्डके आवाजसे तो मेरा दिमाग पागल होनेकी नौबत आई है ...''
अतूल एकदम शांत और चूप था. कुछभी प्रतिक्रिया ना व्यक्त करते हूए उसका अपना कॉम्प्यूटरपर काम करना जारी था.
''अच्छा तुम क्या कर रहे हो यह तो बताएगा ? ... आठ दिनसे तेरा ऐसा कौनसा काम चल रहा है ?... मेरी तो कुछ समझमें नही आ रहा है ...'' अलेक्स उठकर उसके पास आते हूए बोला.
'' विवेक और अंजलीका पासवर्ड ब्रेक कर रहा हूं .... अंजलीका ब्रेक हो चुका है अब विवेकका ब्रेक करनेकी कोशीश कर रहा हूं '' अतूल उसकी तरफ ना देखते हूए कॉम्प्यूटरपर अपना काम वैसाही शुरु रखते हूए बोला. .
'' उधर तु पासवर्ड ब्रेक कर रहा है और इधर तेरे इस किबोर्डके किचकीचसे मेरा सर ब्रेक होनेकी नौबत आई है उसका क्या ?'' अलेक्स फिरसे बेडपर जाकर सोनेकी कोशीश करते हूए बोला.
किसका पासवर्ड ब्रेक हूवा और किसका ब्रेक होनेका रहा इससे उसे कुछ लेना देना नही था. उसे तो सिर्फ पैसेसे मतलब था. अलेक्सने अपने सरपर चादर ओढ ली, फिरभी आवाज आ ही रहा था, फिर तकिया कानपर रखकर देखा, फिरभी आवाज आ ही रहा था, आखीर उसने तकीया एक कोनेमें फाडा और उसमेंसे थोडी रुई निकालकर अपने दोनो कानोंमे ठूंस दी और फिरसे सोनेकी कोशीश करने लगा.
अब लगभग सुबहके तिन बजे होंगे, फिरभी अतूलका कॉम्प्यूटरपर काम करना जारीही था. उसके पिछे बेडपर पडा हूवा अलेक्स गहरी निंदमें सोया दिख रहा था.
तभी कॉम्प्यूटरपर काम करते करते अतूल खुशीके मारे एकदम उठकर खडा होते हूए चिल्लाया, '' यस... या हू... आय हॅव डन इट''
वह इतनी जोरसे चिल्लाया की बेडवर सोया हूवा अलेक्स डरके मारे जाग गया और चौककर उठते हूए घबराए स्वरमें इधर उधर देखते हूए अतूलसे पुछने लगा, '' क्या हूवा ? क्या हूवा ? ''
'' कम ऑन चियर्स अलेक्स... हमें अब खजानेकी चाबी मिल चुकी है ... देख इधर तो देख ...'' अतूल अलेक्सका हाथ पकडकर उसे कॉम्प्यूटरकी तरफ खिंचकर ले जाते हूए बोला.
अलेक्स जबरदस्तीही उसके साथ आगया. और मॉनिटरपर देखने लगा.
'' यह देखो मैने विवेकका पासवर्डभी ब्रेक किया है और यह देख उसने भेजी हूई मेल '' अतूल अलेक्सका ध्यान मॉनिटरपर विवेकके मेलबॉक्ससे खोले हूए एक मेलकी तरफ आकर्षीत करते हूए बोला.
मॉनिटरपर खोले मेलमें लिखा हूवा था -
'' विवेक ... 25 को सुबह बारा बजे एक मिटींगके सिलसिलेमें मै मुंबई आ रही हूं ... 12.30 बजे हॉटेल ओबेराय पहूचूंगी ... और फिर फ्रेश वगैरे होकर 1.00 बजे मिटींग अटेंड करुंगी ... मिटींग 3-4 बजेतक खत्म हो जाएगी ... तुम मुझे बराबर 5.00 बजे वर्सोवा बिचपर मिलो ... बाय फॉर नॉऊ... टेक केअर''
'' चलो अब हमें अपना बस्ता यहांसे मुंबईको ले जानेकी तैयारी करनी पडेगी. '' अतूलने अलेक्ससे कहा.
अलेक्स अविश्वासके साथ अतूलकी तरफ देख रहा था. अब कहां उसे विवेक आठ दिनसे क्या कर रहा था और किस लिए कर रहा था यह पता चल गया था.
'' यार अतूल ... यू आर जिनियस'' अब अलेक्सके बदनमेंभी जोश दौडने लगा था.
21 मार्च 2010
Hindi Novel - उपन्यास - CH-29 यू आर जिनियस
Posted by Udit bhargava at 3/21/2010 08:12:00 pm
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