14 जुलाई 2010

अठारह की पहेली ( Eighteen of the puzzle )

सन् 1945 में 30 जुलाई को हॉलीवुड में अभी सूर्योदय हुआ ही था कि अचानक एक झाड़ी से दो व्यक्ति निकले और एकान्त सड़क पर जाती हुई एक छोटी वैन को उन्होंने ऐक लिया । एक व्यक्ति लम्बा, दुबला और घबराया हुआ था, दूसरा नाटा, हट्टा-कट्टा और शान्त था । उन्होंने वाहन के दोनों सवारियों को बन्दूक की नोक पर बाहर निकाला, उनकी आँखों और मुख पर पट्टी बॉंधी और पास के एक वृक्ष के साथ उन्हें बॉंध दिया ।

वे कौन थे और क्या करना चाहते थे? उन्होंने वैन से जल्दी-जल्दी सामान उतारा - चॉंदी के सिक्कों की छः बोरियॉं और ताजे डॉलर के नोट्स से भरा गत्ते का एक बक्सा । फिर थोड़ी दूर पर खड़ी एक कार में उन्हें लादा और तेजी से जाते हुए सुबह के कुहासे में खो गये । दिन के उजाले में यह एक दुस्साहस पूर्ण डकैती थी । वैन हॉलीवुड स्टेट बैंक की थी । शीघ्र ही वे दोनों कुछ राहगीरों की मदद से किसी तरह बन्धन से मुक्त हो गये । वे चकित और किंकर्त्तव्यविमूढ़ थे । सब कुछ इतनी जल्दी हो गया कि वे अपनी रक्षा नहीं कर सके । वे बहुत दुखी थे, क्योंकि वे लॉक हीड कम्पनी को अपने कर्मियों को वेतन देने के लिए पैसा सौंपने के अपने कर्तव्य का पालन नहीं कर सके ।

डाकुओं ने गंभीर अपराध किया था । उन पर अपहरण और चोरी का आरोप था । चोरी का माल बरामद करने के लिए मुकदमे को जल्दी से जल्दी सुलझाने की आवश्यकता थी । यह पुलिस और जासूसों के लिए एक भारी चुनौती थी । क्या अपराधियों ने अपने पीछे कोई संकेत छोड़ा था? दर्जनों लोगों से पूछताछ की गई । बैंक के दोनों कर्मचारियों के सवाल किये गये । आँख पर पट्टी बॉंधते समय एक नाटे हट्टे-कट्टे डाकू की कमीज़ पर एक ने बैज देखा था ।

यह लॉकहीड कम्पनी का चिह्न या । स्पष्ट है कि उसने यह दिखाने के लिए पहना था कि वह उस कम्पनी में काम करता है । एक दिन एक पुलिस अधिकारी को एक फेंकी हुई कार मिली । कार के अन्दर फटे कागज का एक टुकड़ा मिला जिस पर एक नाम और पता लिखा था । शीघ्र ही पुलिस को वह पता मिल गया और पुलिस ने उसका दरवाजा खटखटाया । एक औरत ने दरवाजा खोला जो अपने घर पर पुलिस को देख कर हैरान थी ।

‘‘हम लोग कुछ जॉंच-पड़ताल करने आये हैं,’’ उन लोगों ने कहा ।‘‘शौक से करें । आप का स्वागत है’’, अधेड़ उम्र की महिला ने कहा जिसका नाम श्रीमती एबलार्द था । घर की तलाशी के बाद जासूसों ने बाग में देखा जहॉं एबलार्द के बच्चे गेंद खेल रहे थे । अचानक गेंद कम्पाउण्ड के अन्त में एक शेड के दरवाजे के नीचे से लुढ़क कर चली गई । बच्चे पीछे-पीछे दौड़े किन्तु दरवाजे पर ताला लगा था । एक अधिकारी ने पूछा, ‘‘गैरेज में क्या है?’’ ‘‘उसे पिछले कुछ सप्ताहों से दो युवकों को किराये पर दिया गया है ।’’ श्रीमती एबलार्द ने बताया।

‘‘लेकिन वे कई दिनों से लौट कर नहीं आये हैं । उत्सुक अधिकारियों ने शेड का दरवाजा तोड़ कर खोला । बच्चे अपनी गेंद पाकर बड़े खुश हुए। लेकिन जासूसों को और ज्यादा खुशी हुई । क्योंकि उनके सामने जमीन पर एक कमीज़ पड़ी थी जिस पर लौकहीड का बैज, एक स्वचालित राइफल और बैंक के दोनों कर्मचारियों के रिवाल्वर्स पड़े थे । पुलिस अधिकारी बैज को लौकहीड कारखाने में ले गये । लेकिन जॉंच के बाद पता चला कि उस पर अंकित नम्बर जाली है और कर्मचारियों के नाम से मेल नहीं खाता । डाकुओं ने बड़ी चतुराई से असली नम्बर को मिटा दिया था और उस पर खास कलम से जाली नम्बर लिख दिया था । लेकिन वैज्ञानिक प्रयोगशाला में पराबैंगनी प्रकाश के नीचे बैज में कुछ चित्र दिखाई पड़े । वे असली मुद्रित अंकों के अवशेष थे ।


शीघ्र ही पुलिस लॉकहीड कारखाने के कर्मचारियों के रिकाडर्‌स की जॉंच-पड़वाल करने लगे । उन्हें पता चला कि पुराना नम्बर एक लम्बे, पतले, विचलित स्वभाववाले कर्मचारी का था जिसका नाम जॉनसन था । ऐसा लगता था जैसे हार्डी से उसकी अच्छी दोस्ती थी जो नाटा, गठीला और शान्त स्वभाव का था । वह भी कम्पनी का एक कर्मचारी था । आखिरकार भेद खुल गया । अपराधियों का पता चल गया ।

लेकिन चोर-मित्र बहुत पहले कम्पनी छोड़ चुके थे । अब वे कहॉं हो सकते हैं? कारखाने के रेकाडर्‌स के फोटो के साथ एक दिन दोपहर के बाद सड़क के किनारे की एक छोटी सराय में पुलिस ने जॉनसन को धर दबोचा । उसी शाम को उसी होटल के आस पास हार्डी मंडराता पाया गया । दोनों को, अपने को निर्दोष बताने के बावजूद, जेल में डाल दिया गया ।

डकैती के पैसों के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने पहले बताया कि उन्हें कुछ नहीं मालूम है । बाद में उन्होंने कहा कि वे जान दे देंगे लेकिन यह नहीं बतायेंगे कि धन कहॉं छिपाया गया है । लेकिन एक रात को पुलिस को जॉनसन के पलंग के नीचे पानी भरा एक पात्र मिला । इसमें एक पुराना भीगा हुआ डॉलर का नोट तैर रहा था । इस बेढंगे प्रयोग का क्या अर्थ हो सकता है? क्या यह धन के रहस्य का संकेत है? शायद चोरी का माल किसी नम स्थान पर छिपाया गया है । इसलिए अपराधी यह जानना चाहते थे कि नोट को सड़ने में कितने दिन लगेंगे।

दोनों डाकुओं को अलग-अलग सेल में रखा गया । लेकिन वे अक्सर एक गार्ड की सहायता से अपनी कुछ टिप्पणियों का आदान-प्रदान किया करते थे । किसी प्रकार इनके अधिकांश सन्देश जासूसों के हाथ लग गये । इनके कुछ सन्देशों में संख्या ‘18’ और ‘पेपर’ शब्द की चर्चा थी । एक सन्देश में लिखा थाः ‘‘यदि हम लोग अधिक दिनों तक जेल में बन्द रहे तो पेपर सड़ जायेगा । दूसरा सन्देश इस प्रकार थाः ‘‘मेरी छोटी बहन उसे ला सकती है, लेकिन वह कैसे....तक पहुँच पायेगी ।’’
क्या ‘‘पेपर’’ शब्द का अर्थ धन था? यदि हॉं तो धन उस लड़की की पहुँच से परे बहुत नम स्थान में छिपाया गया था । लेकिन अंक ‘18’ का अर्थ क्या हो सकता था? क्या रास्ते की पहचान के लिए यह संख्या दी गई थी? पुलिस तथा जासूस अधिकारी गणों को शीघ्र ही एक ऐसे मार्ग का पता चला जिस पर चिह्न के रूप में एक पत्थर रखा हुआ था और उस पर ‘18’ लिखा हुआ था । वहॉं से एक तंग पगडंडी तार के 10 फुट ऊँचे एक घेरे तक जाती थी जो एक पुराने कब्रगाह के चारों ओर लगा हुआ था ।

एक अधिकारी ने अपना मनोभाव प्रकट किया, ‘‘सचमुच! कब्र के पत्थर को याद रखना एक आसान चिह्न है!’’ ‘‘तुम ठीक कहते हो! एक छोटी लड़की के लिए इतना ऊँचा घेरा पार करना बड़ा कठिन होगा ।’’ दूसरे ने अपना विचार प्रकट किया । पहेली के बिखरे टुकड़े अब एक जगह पर एकत्र होने लगे । अधिकारियों ने समय नष्ट नहीं किया औ कब्र की अनन्त पंक्तियों के बीच कोई संकेत की तलाश करने लगे और शीघ्र ही उनकी नजर एक पर पड़ ही गई । एक सिपाही की कब्र शिला के पीछे, जो 1898 में मरा था, मिट्टी, टहनियों तथा पत्तों का एक ढेर था!

उस स्थान को उन्होंने तुरन्त खुदवाया । काफी गहराई में कब्र शिला के नीचे चोरी का सारा धन गड़ा था - चॉंदी के सिक्कों की छः बोरियॉं तथा डॉलर के ताजे नोटों से भरा गत्ते का एक बक्सा ! जेल में दोनों दोस्तों को इस बड़ी खोज के बारे में बताया गया । पहले तो उन्होंने विश्वास करने से इनकार कर दिया, किन्तु अन्त में उन्होंने न केवल विश्वास कर लिया, बल्कि अपने अपराध को स्वीकार भी कर लिया ।