हिंदू धर्म में सोलह संस्कारों का विधान किया गया है। ये सारे संस्कार विज्ञानसम्मत हैं। हर संस्कार का संपादन उसके उपयुक्त समय और मुहूर्त पर किया जाता है। इस तरह हर संस्कार के मुहूर्त निर्धारित हैं। इन संस्कारों में विवाह एक अति महत्वपूर्ण संस्कार है। इसके भी अपने मुहूर्त हैं। सफल और सुखमय वैवाहिक जीवन के लिए विवाह का उपयुक्त मुहूर्त में होना आवश्यक है। यहां ऐसे कुछ प्रमुख मुहूर्तों का उल्लेख और विवेचन प्रस्तुत है जिनके अपनुरूप विवाह करने से वैवाहिक जीवन की सफलता की संभावना प्रबल होती है।
विवाह मुहूर्त : मूल, अनुराधा, मृगशिरा, रेवती, हस्त, उत्तरा भाद्रपद, स्वाति, मघा और रोहिणी नक्षत्रों तथा ज्येष्ठ, माघ, फाल्गुन, वैशाख, मार्गशीर्ष और आषाढ़ महीनों में विवाह करना शुभ है।
विवाह में कन्या के लिए गुरुबल, वर के लिए सूर्यबल और दोनों के लिए चंद्रबल का विचार करना आवश्यक है।
गुरुबल विचार : बृहस्पति ग्रह कन्या की राशि से नवम, पंचम, एकादश, द्वितीय और सप्तम राशि से शुभ, दशम, तृतीय, षष्ठ और प्रथम राशि में दान देने से शुभ और चतुर्थ, अष्टम द्वादश में दान देने से अशुभ माना गया है।
सूर्यबल विचार : सूर्य ग्रह वर की राशि से तृतीय, षष्ठ, दशम, एकादश, पंचम, सप्तम और नवम राशि में दान देने से शुभ और चतुर्थ, अष्टम तथा द्वादश राशियों में अशुभ माना गया है।
चंद्रबल विचार : चंद्र ग्रह वर और कन्या की राशि से तृतीय, षष्ठ, सप्तम, दशम और एकादश शुभ, प्रथम, द्वितीय, पंचम और नवम दान देने से शुभ तथा चतुर्थ, अष्टम और द्वादश अशुभ होता है।
विवाह में अंधा लग्न : दिन में तुला और वृश्चिक लग्न, रात्रि में तुला लग्न और मकर लग्न बहरे होते हैं। दिन में सिंह, मेष तथा वृष और रात्रि में कन्या, मिथुन तथा कर्क अंधे लग्न होते हैं। दिन में कुंभ और रात्रि में मीन ये दो लग्न पंगु होते हैं। किसी-किसी आचार्य के मत से धनु लग्न तुला और वृश्चिक अपराह्न में वधिर होते हैं। मिथुन, कर्क और कन्या ये लग्न रात्रि में अंधे होते हैं। सिंह, मेष और वृष लग्न दिन में अंधे होते हैं और मकर, कुंभ तथा मीन ये लग्न प्रातः तथा सायंकाल कुबड़े होते हैं।
अंधादि लग्नों का फल : यदि विवाह बहरे लग्न में हो तो वर और वधू दरिद्र होते हैं। दिवांध लग्न में हो तो कन्या विधवा हो जाती है। रात्रांध लग्न में हो तो संतान की मृत्यु और पंगु लग्न में हो तो धन का नाश होता है।
विवाह में शुभ लग्न विचार : तुला, मिथुन, कन्या, वृष एवं धनु शुभ तथा अन्य लग्न मध्यम होते हैं।
विवाह में लग्न-शुद्धि : लग्न से द्वादश शनि, दशम मंगल, तृतीय शुक्र, लग्न में चंद्र और क्रूर ग्रह अच्छे नहीं होते हैं। लग्नेश शुक्र, चंद्र षष्ठ और अष्टम में अशुभ होते हैं। लग्नेश और सौम्य ग्रह अष्टम में अच्छे नहीं होते हैं और सप्तम स्थान में कोई भी ग्रह शुभ नहीं होता है।
जब सूर्य, चंद्र एवं गुरु इन तीनों महत्वपूर्ण ग्रहों की शुभ गोचर स्थिति को ध्यान में रखते हुए शुद्ध विवाह मुहूर्त दिन का विचार कहते हैं तो इसे त्रिबल-शुद्धि विचार कहा जाता है। वर की जन्म रात्रि से सूर्य व चंद्र का बल तथा कन्या की जन्म राशि से गुरु व चंद्र का बल विशेष रूप से देखा जाता है। सूर्य, चंद्र व गुरु के बलाबल के बिना विवाह-कार्य शुभ नहीं माना जाता। मुनि गर्गाचार्य के अनुसार-
स्त्रीणां गुरुबलं श्रेष्ठं पुरुषाणां रवेर्बलम्। तयोः चंद्रबलं श्रेष्ठमिति गर्गेण निश्चितम्॥
वर की जन्म राशि से विवाह मुहूर्त के समय गोचर में सूर्य भाव ३, ६, १० या ११ में हो, तो शुभ और भाव १, २, ५, ७ या ९ में किंचित् अशुभ एवं पूज्य परंतु यदि ४, ८, या १२ में हो, तो अशुभ एवं त्याज्य होता है। कन्या की जन्म राशि से विवाह मुहूर्त के समय गोचर में गुरु यदि भाव २, ५, ७, ९ या ११ में हो, तो शुभ और १, ३, ६ या १० में हो तो सामान्य पूज्य होता है किंतु यदि ४, ८ या १२ में हो, तो अशुभ होता है। परंतु आजकल क्योंकि कन्याओं का विवाह प्रायः प्रौढ़ायु होने पर ही किया जाता है, अतएव आचार्यों के अनुसार कन्या के लिए भाव ४, ८ या १२ स्थित गुरु निंद्य एवं त्याज्य नहीं बल्कि पूज्य होता है।
वर तथा कन्या दोनों की राशियों से विवाह मुहूर्त समय की राशि भाव १, ३, ६, ७, १० या ११ में चंद्र हो, तो शुभ और २, ५, ९ या १२ में हो, तो कुछ अशुभ एवं निंद्य होता है। यदि वर और कन्या की राशि से सूर्य, चंद्रादि गोचर ग्रह नीच या शत्रु राशिस्थ हों अथवा किसी शत्रु या अशुभ ग्रह से दृष्ट हों, तो ऐसा मुहूर्त शास्त्रानुसार ग्राह्य होते हुए भी पूज्य विवाह मुहूर्त माना जाएगा।
उदाहरण हेतु, मिथुन राशि के वर व कन्या का यदि वैशाख मास में मघा नक्षत्र में विवाह करना अभीष्ट हो, तो त्रिबल शुद्धि चक्र के अनुसार मिथुन राशि को वैशाख में सूर्य के भाव ११ में एवं मेष में उच्चराशिस्थ होने से यह महीना अत्यंत शुभ होगा। मघा नक्षत्र कालीन चंद्र के तृतीय स्थान में सिंह राशिस्थ होने से मिथुन राशि के लिए श्रेष्ठ एवं उत्तम मुहूर्त होगा। इसी भांति, कुंभ राशि के वर और कन्या का यदि मार्गशीर्ष (नवंबर) मास में एवं अनुराधा नक्षत्र (वृश्चिक राशि) कालीन विवाह करना अभीष्ट हो, तो मार्गशीर्ष मास में कुंभ जातक के लिए त्रिबल-शुद्धि के अनुसार, सूर्य के दशम होने से तथा वृश्चिक के चंद्र के भी गोचरवश दसवें में होने से विवाह ग्राह्य माना जाएगा। परंतु कुंभ राशि का स्वामी ग्रह शनि तथा सूर्य और चंद्र की राशि वृश्चिक के स्वामी ग्रह मंगल के शत्रु ग्रह होने से प्राप्त विवाह-मुहूर्त सामान्य एवं मध्यम कोटि का होगा। इसमें मंगल ग्रह की विशेष पूजा व उससे संबंधित ग्रह का दान आदि करना शुभ होगा।
विवाह में ग्राह्य शुभ लग्न : मुहूर्त ग्रंथों के अनुसार विवाह लग्न काल में भाव ३, ६, ८ या ११ में सूर्य तथा इन्हीं स्थानों में राहु, केतु और शनि शुभ होते हैं। भाव ३, ६ या ११ में मंगल, २, ३ या ११ में चंद्र तथा ३, ६, ७ और ८वें स्थानों को छोड़कर अन्य किसी भी भाव में स्थित शुक्र शुभ होता है। ११वें भाव में सूर्य तथ केंद्र त्रिकोण में गुरु लग्नगत अनेक दोषों का परिहार करते हैं।
लग्ने वर्गोत्तमे वेन्दौ घूनाथे लाभगेऽथवा।
केंद्र कोणे गुरौ दोषा नश्यन्ति सकलाऽपि॥
- मुहूर्त्तगणपति' के अनुसार विवाहादि शुभ कार्य के लग्न में, केंद्र त्रिकोण में गुरु, शुक्र एवं बुध तथा ११वें भाव में चंद्र या सूर्य अथवा सप्तमेश हो, तो अनेक दोषों का नाश हो जाता है।
क्रूर ग्रह युति, वेध, मृत्युबाण आदि दोषों की शुद्धि के उपरांत यदि वांछित मुहूर्त में शुद्ध विवाह-लग्न न निकलता हो, तो मुहूर्त ग्रंथाचार्यों ने गोधूलि का लग्न ग्रहण करने का निर्देश दिया है।
गोधूलि काल : जब सूर्यास्त होने वाला हो और गाय आदि चौपाये अपने-अपने घरों को लौटते हुए अपने खुरों से पथ की धूलि को आकाश में उड़ाकर जाने लगें, तो उस काल को गोधूलि की संज्ञा दी गई है। इसे विवाहादि सब मांगलिक कार्यों में प्रशस्त माना गया है। यह लग्न, मुहूर्त, अष्टम, जामित्रादि दोषों को प्रायः नष्टकर देता है।
नो वा योगो न मृतिभवनं नैव जामित्र दोषो।
गोधूलिः सा मुनिभिरुदिता सर्व कार्येषु शस्ता॥
पति और पत्नी का संबंध बहुत नाजुक एवं संवेदनशील होता है। भारतीय समाज में अब भी जाति, गोत्र, समाज, आदि के आधार पर संबंध स्थिर किए जाते हैं। पति और पत्नी के संबंध को सात जन्मों का संबंध माना जाता है। इसलिए विवाह पूरी तरह सोच-विचार कर करना चाहिए। ऊपर वर्णित तथ्यों पर यदि गंभीरतापूर्वक विचार किया जाए और सही मुहूर्त में विवाह संपन्न हो तो दाम्पत्य सुखमय हो सकता है।
23 अक्तूबर 2010
विवाह में मुहूर्त का महत्व
Posted by Udit bhargava at 10/23/2010 09:14:00 am 0 comments
बिना तोड़-फोड़ के वास्तु दोष दूर करने के उपाय
एक सुंदर एवं दोषमुक्त घर हर व्यक्ति की कामना होती है। किंतु वास्तु विज्ञान के पर्याप्त ज्ञान के अभाव में भवन निर्माण में कुछ अशुभ तत्वों तथा वास्तु दोषों का समावेश हो जाता है। फलतः गृहस्वामी को विभिन्न आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक कष्टों का सामना करना पड़ता है। घर के निर्माण के बाद फिर से उसे तोड़कर दोषों को दूर करना कठिन होता है। ऐसे में हमारे ऋषि-मुनियों ने बिना तोड़-फोड़ किए इन दोषों को दूर करने के कुछ उपाय बताए हैं। उन्होंने प्रकृति की अनमोल देन सूर्य की किरणों, हवा और पृथ्वी की चुंबकीय शक्ति आदि के उचित उपयोग की सलाह दी है। यहां वास्तु दोषों के निवारण के निमित्त कुछ उपाय प्रस्तुत हैं जिन्हें अपना कर विभिन्न दिशाओं से जुड़े दोषों को दूर किया जा सकता है।
ईशान दिशा
यदि ईशान क्षेत्र की उत्तरी या पूर्वी दीवार कटी हो, तो उस कटे हुए भाग पर एक बड़ा शीशा लगाएं। इससे भवन का ईशान क्षेत्र प्रतीकात्मक रूप से बढ़ जाता है।
यदि ईशान कटा हो अथवा किसी अन्य कोण की दिशा बढ़ी हो, तो किसी साधु पुरुष अथवा अपने गुरु या बृहस्पति ग्रह या फिर ब्रह्मा जी का कोई चित्र अथवा मूर्ति या कोई अन्य प्रतीक चिह्न ईशान में रखें। गुरु की सेवा करना सर्वोत्तम उपाय है। बृहस्पति ईशान के स्वामी और देवताओं के गुरु हैं। कटे ईशान के दुष्प्रभाव को कम करने के लिए साधु पुरुषों को बेसन की बनी बर्फी या लड्डुओं का प्रसाद बांटना चाहिए।
यह क्षेत्र जलकुंड, कुआं अथवा पेयजल के किसी अन्य स्रोत हेतु सर्वोत्तम स्थान है। यदि यहां जल हो, तो चीनी मिट्टी के एक पात्र में जल और तुलसीदल या फिर गुलदस्ता अथवा एक पात्र में फूलों की पंखुड़ियां और जल रखें। शुभ फल की प्राप्ति के लिए इस जल और फूलों को नित्य प्रति बदलते रहें।
अपने शयन कक्ष की ईशान दिशा की दीवार पर भोजन की तलाश में उड़ते शुभ पक्षियों का एक सुंदर चित्र लगाएं। कमाने हेतु बाहर निकलने से हिचकने वाले लोगों पर इसका चमत्कारी प्रभाव होता है। यह अकर्मण्य लोगों में नवीन उत्साह और ऊर्जा का संचार करता है।
बर्फ से ढके कैलाश पर्वत पर ध्यानस्थ योगी की मुद्रा में बैठे महादेव शिव का ऐसा फोटो, चित्र अथवा मूर्ति स्थापित करें, जिसमें उनके भाल पर चंद्रमा हो और लंबी जटाओं से गंगा जी निकल रही हों।
ईशान में विधिपूर्वक बृहस्पति यंत्र की स्थापना करें।
पूर्व दिशा
यदि पूर्व की दिशा कटी हो, तो पूर्वी दीवार पर एक बड़ा शीशा लगाएं। इससे भवन के पूर्वी क्षेत्र में प्रतीकात्मक वृद्धि होती है।
पूर्व की दिशा के कटे होने की स्थिति में वहां सात घोड़ों के रथ पर सवार भगवान सूर्य देव की एक तस्वीर, मूर्ति अथवा चिह्न रखें।
सूर्योदय के समय सूर्य भगवान को जल का अर्य दें। अर्य देते समय गायत्री मंत्र का सात बार जप करें। पुरूष अपने पिता और स्त्री अपने स्वामी की सेवा करें।
प्रत्येक कक्ष के पूर्व में प्रातःकालीन सूर्य की प्रथम किरणों के प्रवेश हेतु एक खिड़की होनी चाहिए। यदि ऐसा संभव नहीं हो, तो उस भाग में सुनहरी या पीली रोशनी देने वाला बल्ब जलाएं।
पूर्व में लाल, सुनहरे और पीले रंग का प्रयोग करें। पूर्वी क्षेत्र में मिट्टी खोदकर जलकुंड बनाएं और उसमें लाल कमल उगाएं अथवा पूर्वी बगीचे में लाल गुलाब रोपें।
अपने शयन कक्ष की पूर्वी दीवार पर उदय होते हुए सूर्य की ओर पंक्तिबद्ध उड़ते हुए हंस, तोता, मोर आदि अथवा भोजन की तलाश में अपना घोंसला छोड़ने को तैयार शुभ पक्षियों का चित्र लगाएं। अकर्मण्य और कमाने हेतु बाहर जाने से हिचकने वाले व्यक्तियों के लिए यह जादुई छड़ी के समान काम करता है।
बंदरों को गुड़ और भुने चने खिलाएं।
पूर्व में सूर्य यंत्र की स्थापना विधि विधान पूर्वक करें।
आग्नेय दिशा
यदि आग्नेय कोण पूर्व दिशा में बढ़ा हो, तो इसे काटकर वर्गाकार या आयताकार बनाएं।
शुद्ध बालू और मिट्टी से आग्नेय क्षेत्र के सभी गड्ढे इस प्रकार भर दें कि यह क्षेत्र ईशान और वायव्य से ऊंचा लेकिन नैर्ऋत्य से नीचा रहे।
यदि आग्नेय किसी भी प्रकार से कटा हो अथवा पर्याप्त रूप से खुला न हो, तो इस दिशा में लाल रंग का एक दीपक या बल्ब अग्नि देवता के सम्मान में कार्य करते समय कम से कम एक प्रहर (तीन घंटे) तक जलाए रखें।
यदि आग्नेय कटा हो, तो इस दिशा में अग्नि देव की एक तस्वीर, मूर्ति या संकेत चिह्न रखें। गणेश जी की तस्वीर या मूर्ति रखने से भी उक्त दोष दूर होता है। अग्नि देव की स्तुति में ऋग्वेद में उल्लिखित पवित्र मंत्रों का उच्चारण करें।
आग्नेय कोण में दोष होने पर वहां भोजन में प्रयोग होने वाले फल, सब्जियां (सूर्यमुखी, पालक, तुलसी, गाजर आदि) और अदरक मिर्च, मेथी, हल्दी, पुदीना, कढ़+ी पत्ता आदि उगाएं अथवा मनीप्लांट लगाएं।
आग्नेय दिशा से आने वाली सूर्य किरणों को रोकने वाले सभी पेड़ों को हटाएं। इस दिशा में ऊंचे पेड़ न लगाएं
आग्नेय का स्वामी ग्रह शुक्र दाम्पत्य संबंधों का कारक है। अतः इस दिशा के दोषों को दूर करने के लिए अपने जीवनसाथी के प्रति प्रेम और आदर भाव रखें।
घर की स्त्रियों को नए रेश्मी परिधान, सौंदर्य प्रसाधन, सामग्री, सजावट के सामान और गहने आदि देकर हमेशा खुश रखें। यह सर्वोत्तम उपाय है।
प्रत्येक शुक्रवार को गाय को गेहूं का आटा, चीनी और दही से बने पेड़े खिलाएं। प्रतिदिन रसोई में बनने वाली पहली रोटी गाय को खिलाएं। दोषयुक्त आग्नेय में गाय-बछड़े की सफेद संगमरमर से बनी मूर्ति या तस्वीर इतनी ऊंचाई पर लगाएं कि वह आसानी से दिखाई दे।
आग्नेय में शुक्र यंत्र की स्थापना विधिपूर्वक करें।
दक्षिण दिशा
यदि दक्षिणी क्षेत्र बढ़ा हो, तो उसे काटकर शेष क्षेत्र को वर्गाकार या आयताकार बनाएं। कटे भाग का विभिन्न प्रकार से उपयोग किया जा सकता है।
यदि दक्षिण में भवन की ऊंचाई के बराबर या उससे अधिक खुला क्षेत्र हो, तो ऊंचे पेड़ या घनी झाड़ियां उगाएं।
इस दिशा में कंक्रीट के बड़े और भारी गमलों में घर में रखने योग्य भारी प्रकृति के पौधे लगाएं।
यमराज अथवा मंगल ग्रह के मंत्रों का पाठ करें।
इस दिशा के स्वामी मंगल को प्रसन्न करने के लिए घर के बाहर लाल रंग का प्रयोग करें। दक्षिण दिशा के दोष अग्नि के सावधानीपूर्वक उपयोग और अग्नि तत्व प्रधान लोगों के प्रति उचित आदर भाव से दूर किए जा सकते हैंं।
इस क्षेत्र की दक्षिणी दीवार पर हनुमान जी का लाल रंग का चित्र लगाएं।
दक्षिण दिशा में विधिपूर्वक मंगल यंत्र की स्थापना करें।
नैर्ऋत्य दिशा
नैर्ऋत्य दिशा के बढ़े होने से असहनीय परेशानियां पैदा होती हैं। यदि यह क्षेत्र किसी भी प्रकार से बढ़ा हो, तो इसे वर्गाकार या आयताकार बनाएं।
रॉक गार्डन बनाने अथवा भारी मूर्तियां रखने हेतु नैर्ऋत्य सर्वोत्तम है। यदि यह क्षेत्र नैसर्गिक रूप से ऊंचा या टीलेनुमा हो या इस दिशा में ऊंचे भवन अथवा पर्वत हों, तो इस ऊंची उठी जगह को ज्यों का त्यों छोड़ दें।
यदि नैर्ऋत्य दिशा में भवन की ऊंचाई के बराबर अथवा अधिक खुला क्षेत्र हो, तो यहां ऊंचे पेड़ या घनी झाड़ियां लगाएं। इसके अतिरिक्त घर के भीतर कंक्रीट के गमलों में भारी पेड़ पौधे लगाएं।
इस दिशा में भूतल पर अथवा ऊंचाई पर पानी का फव्वारा बनाएं।
राहु के मंत्रों का जप स्वयं करें अथवा किसी योग्य ब्राह्मण से कराएं।
श्राद्धकर्म का विधिपूर्वक संपादन कर अपने पूर्वजों की आत्माओं को तुष्ट करें। इस क्षेत्र की दक्षिणी दीवार पर मृत सदस्यों की एक तस्वीर लगाएं जिस पर पुष्पदम टंगी हों।
मिथ्याचारी, अनैतिक, क्रोधी अथवा समाज विरोधी लोगों से मित्रता न करें। वाणी पर नियंत्रण रखें
तांबे, चांदी, सोने अथवा स्टील से निर्मित सिक्के या नाग-नागिन के जोड़े की प्रार्थना कर उसे नैर्ऋत्य दिशा में दबा दें।
नैर्ऋत्य दिशा में राहु यंत्र की स्थापना विधिपूर्वक करें।
पश्चिम दिशा
यदि पश्चिम दिशा बढ़ी हुई हो, तो उसे काटकर वर्गाकार या आयताकार बनाएं।
यदि इस दिशा में भवन की ऊंचाई के बराबर या अधिक दूरी तक का क्षेत्र खुला हो, तो वहां ऊंचे वृक्ष या घनी झाड़ियां लगाएं। इसके अतिरिक्त इस दिशा में घर के पास बगीचे में लगाए जाने वाले सजावटी पेड़-पौधे जैसे इंडोर पाम, रबड़ प्लांट या अंबे्रला ट्री कंक्रीट के बड़े व भारी गमलों में लगा सकते हैं।
भूतल पर बहते पानी का स्रोत अथवा पानी का फव्वारा भी लगा सकते हैं।
पद्म पुराण में उल्लिखित नील शनि स्तोत्र अथवा शनि के किसी अन्य मंत्र का जप और दिशाधिपति वरुण की प्रार्थना करें।
सूर्यास्त के समय प्रार्थना के अलावा कोई भी अन्य शुभ कार्य न करें।
पश्चिम दिशा में शनि यंत्र की स्थापना विधिपूर्वक करें।
वायव्य दिशा
यदि वायव्य दिशा का भाग बढ़ा हुआ हो, तो उसे वर्गाकार या आयताकार बनाएं अथवा ईशान को बढ़ाएं।
यदि यह भाग घटा हो तो वहां मारुतिदेव की एक तस्वीर, मूर्ति या संकेत चिह्न लगाएं। हनुमान जी की तस्वीर या मूर्ति भी लगाई जा सकती है। इसके अतिरिक्त पूर्णिमा के चंद्र की एक तस्वीर या चित्र भी लगाएं, दोषों से रक्षा होगी।
वायुदेव अथवा चंद्र के मंत्रों का जप तथा हनुमान चालीसा का पाठ श्रद्धापूर्वक करें।
पूर्णिमा की रात खाने की चीजों पर पहले चांद की किरणों को पड़ने दें और फिर उनका सवेन करें।
निर्मित भवन से बाहर खुला स्थान हो, तो वहां ऐसे वृक्ष लगाएं, जिनके मोटे चमचमाते पत्ते वायु में नृत्य करते हों।
वायव्य दिशा में बने कमरे में ताजे फूलों का गुलदस्ता रखें।
इस दिशा में एक छोटा फव्वारा या एक्वेरियम (मछलीघर) स्थापित करें।
अपनी मां का यथासंभव आदर करें, सुबह उठकर उनके चरण छूकर उनका आशीर्वाद लें और शुभ अवसरों पर उन्हें खीर खिलाएं।
प्रतिदिन सुबह, खासकर सोमवार को, गंगाजल में कच्चा दूध मिलाकर शिवलिंग पर चढ़ाएं और शिव चालीसा का पाठ श्रद्धापूर्वक करें।
वायव्य दिशा में प्राण-प्रतिष्ठित मारुति यंत्र एवं चंद्र यंत्र की स्थापना करें।
उत्तर दिशा
यदि उत्तर दिशा का भाग कटा हो, तो उत्तरी दीवार पर एक बड़ा आदमकद शीशा लगाएं।
यदि उत्तर का भाग घटा हो, तो इस दिशा में देवी लक्ष्मी अथवा चंद्र का फोटो, मूर्ति अथवा कोई संकेत चिह्न लगाएं। लक्ष्मी देवी चित्र में कमलासन पर
विराजमान हों और स्वर्ण मुद्राएं गिरा रही हों।
विद्यार्थियों और संन्यासियों को उनके उपयुक्त अध्ययन सामग्री का दान देकर सहायता करें। उत्तर दिशा के स्वामी बुध से अध्ययन सामग्री का विचार किया जाता है।
दिशा में हल्के हरे रंग का पेंट करवाएं।
उत्तर क्षेत्र की उत्तरी दीवार पर तोतों का चित्र लगाएं। यह पढ़ाई में कमजोर बच्चों के लिए जादू का काम करता है।
इस दिशा में बुध यंत्र की स्थापना विधिपूर्वक करें। इसके अतिरिक्त कुबेर यंत्र अथवा लक्ष्मी यंत्र की प्राण-प्रतिष्ठा कर स्थापित करें।
इस तरह ऊपर वर्णित ये सारे उपाय सहज व सरल हैं जिन्हें अपनाकर जीवन को सुखमय किया जा सकता है।
Posted by Udit bhargava at 10/23/2010 09:00:00 am 1 comments
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