प्राचीन यूनान और रोम के लोग अनेक देवी-देवताओं की पूजा करते थे, जिन्हें वे अब बहुत पहले भूल चुके हैं । इनमें एक देवी थी हेरा, जो विवाहों और स्त्री जाति भर की अधिष्ठात्री आराध्या थी । रोम की पौराणिक कथाओं में इन्हें जूनो के नाम से जाना जाता था।
हेरा देवी का मन्दिर एक पहाड़ी पर था । विशेष शुभ अवसरों पर सैकड़ों स्त्रियाँ दर्शनार्थ वहाँ जाती थीं । वे देखतीं कि कैसे प्रधान पुजारिन उत्सव के वातावरण में देवी को अनुष्ठानपूर्वक नैवेद्य अर्पित करती है । ऐसे अवसरों पर देवी को, श्रद्धा अर्पित करना स्त्रियों के लिए, विशेषकर अविवाहित कन्याओं के लिए शुभ माना जाता था ।
एक बार प्रधान पुजारिन अपने दोनों बेटों के साथ मन्दिर से दूर गाँव में अपने पुराने घर पर गई थी । उन्हें मन्दिर के वार्षिक उत्सव से पहले लौटना था । किन्तु पुजारिन गाँव में बीमार पड़ गई । उत्सव में जब एक दिन बाकी रह गया तब उसने अस्वस्थ रहते हुए भी मन्दिर जाने का निश्चय कर लिया । उतनी दूरी वह पैदल नहीं तय कर सकती थी । उसके बेटों ने पड़ोसी गाँवों में बैलगाड़ी या घोड़ागाड़ी का पता लगाया । एक घोड़ागाड़ी मिली लेकिन घोड़े नहीं मिले । बैलों से भी काम चल जाता था, लेकिन बैल भी नहीं मिले ।
पुजारिन अधीर हो रही थी । दिन ढल गया और संध्या फैलने लगी । उसे प्रातःकाल तक मन्दिर पहुँच जाना चाहिये । नहीं तो देवी नाराज हो जायेंगी । और सैकड़ों भक्तों को भी निराश होना पड़ेगा, क्योंकि उसकी सहायकों को अनुष्ठान करने का अधिकार प्राप्त नहीं था ।
पुजारिन के दोनों बेटों बिटन और क्लेओबिस ने घोड़ों अथवा बैलों के अभाव में अपनी माँ को मन्दिर तक पहुँचाने का काम नये ढंग से करने का निश्चय किया । वे माँ के कमरे में गये और उसे गाड़ी में बैठ जाने के लिए कहा ।
उसका चेहरा खिल गया । ‘‘मुझे पक्का विश्वास था कि तुम दोनों मुझे ले जाने के लिए पशुओं का प्रबन्ध अवश्य कर लोगे ।’’ यह कहते हुए कह तुरन्त गाड़ी में आकर बैठ गई । अन्धेरा हो चुका था । वह पशुओं को देख न सकी जो उसकी गाड़ी को खींचनेवाले थे । उसने बेटों को गाड़ी में बैठ जाने के लिए कहा । लेकिन उन्होंने कहा कि वे पैदल चलेंगे । माँ ने विरोध नहीं किया क्योंकि वे हट्टे-कट्टे थे और सम्भवतः उन्होंने यह सोचा हो कि केवल एक सवारी के साथ गाड़ी अधिक वेग से जायेगी ।
गाड़ी निश्यय ही काफी तेज़ी से बढ़ी । पुजारिन की आँख लग गई । जब नीन्द खुली तब भोर हो चुका था । उसने अपने पीछे सड़क पर नज़र दौड़ाई कि उसके बेटे पीछे-पीछे आ रहे होंगे । लेकिन वहाँ कोई नहीं था । तब उसने आगे देखा । उसके बेटे बिटन और क्लेओबिस गाड़ी को खींच रहे थे! वे रात भर बिना थके गाड़ी को खींचते रहे । लेकिन वे अपने गौरवपूर्ण मिशन को पूरा करने में कामयाब हो गये । क्षितिज पर सूर्योदय की आभा जैसे ही छिटकने लगी कि गाड़ी पहाड़ी के मन्दिर के सामने खड़ी हो गई ।
प्रधान पुजारिन स्नान कर अनुष्ठान के लिए तैयार हो गई । उसके बेटे भी मन्दिर में आ गये । उत्सव समाप्त होने पर पुजारिन ने देवी से प्रार्थना की, ‘‘हे सर्वशक्तिमती देवी, मेरे बेटों के समान कर्तव्यनिष्ठ पुत्र दुनिया में शायद ही किसी माँ के होंगे! वे अपने करतब के लिए उत्कृष्ट इनाम पाने के सर्वथा योग्य हैं । ये बेचारे बच्चे बहुत थक गये होंगे । आप उन्हें ऐसा सर्वोत्तम वरदान दीजिये जिसके प्रभाव से वे फिर कभी नहीं थकें और किसी भी भय या चिन्ता से हमेशा मुक्त रहें । सचमुच, हे पूज्या देवी, मैं उनके लिए यथासम्भव सबसे श्रेष्ठ वरदान के लिए प्रार्थना करती हूँ !’’
‘‘तथा अस्तु!’’ उसने एक आवाज़ सुनी जिसे कोई अन्य नहीं सुन सका । दूसरे क्षण उसने अपने बच्चों को वहीं लेटते हुए देखा, जहॉं पर वे खड़े थे । उन्हें नीन्द आ गई, ऐसी नीन्द जो कभी नहीं टूटी । बहुत वर्षों के बाद नीन्द में ही उनकी मृत्यु हो गई ।
इसमें सन्देह नहीं कि वे भय या चिन्ता या ऐसे हर कारण से मुक्त रहे जिससे थकावट हो ।
30 मार्च 2010
सर्वोत्तम वरदान
Posted by Udit bhargava at 3/30/2010 09:00:00 pm
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