30 मार्च 2010

न्याय निर्णय

शांतिपुर नामक गांव में राम और भीम नामक दो किसान रहा करते थे। दोनों के खेत अगल-बग़ल में थे। राम ग़रीब था पर, गांव के लोग उसे बहुत अच्छा व भला आदमी कहते थे। भीम धनिक था। अव्वल दर्जे का खुदगर्ज़ था। किसी को पनपते हुए देखकर वह ईर्ष्या से जल उठता था।

एक दिन राम अपने खेत में हल चलाते हुए सोचने लगा, ‘‘पता नहीं, कब तक मुझे कष्ट झेलने होंगे। कोई भगवान मुझपर दया करें तो अच्छा होगा।’’ इतने में हल की लकड़ी से कोई पत्थर टकरा गया। वह वहीं रुक गया। राम ने कुदाल से उस पत्थर को हटाया। उस पत्थर के नीचे लोहे की एक पेटी थी। पेटी खोलकर देखी तो उसमें सोने के प्राचीन आभूषण थे। राम ने भगवान को धन्यवाद किया।

उसी व़क्त, बगल के ही खेत का मालिक भीम वहॉं आया। उसने भी गहनों की उस पेटी को देखा। वह सोचने लगा कि कैसे इन गहनों को हड़पूँ? फिर वह राम के पास आकर बोला, ‘‘राम, गहने देना, जरा देखूँ तो सही।’’ उन्हें हाथ में लेकर एक-एक करके देखने लगा और कहता गया, ‘‘अरे, ये सब मेरी मॉं के गहने हैं। बहुत पहले खो गये थे। कई जगहों पर ढूँढ़ा नहीं मिले। अच्छा हुआ, अब यहॉं मिल गये।’’कहता हुआ वह उन्हें अपने साथ लेता जाने लगा।

राम ने तुरंत उससे वे कहने छीन लिये और कहा, ‘‘ये तुम्हारी मॉं के गहने नहीं हैं। तुम झूठ बोल रहे हो। ये मुझे खेत में मिले। भगवान ने दिया है मुझे।’’
भीम ने नाराजगी का नाटक करते हुए कहा, ‘‘सौ फी सदी ये मेरी मॉं के ही गहने हैं। चलो, ग्रामाधिकारी के पास चलते हैं। फैसला हो जायेगा कि ये किसके गहने हैं।’’

ग्रामाधिकारी ने दोनों का बाद-विवाद सुना, पर इस समस्या के परिष्कार का मार्ग उसकी समझ में नहीं आया। ग्रामाधिकारी को भली-भांति मालूम था कि भीम एकदम स्वार्थी है। उसे यह भी मालूम था कि राम ईमानदार है। एक निर्णय पर आ चुकने के बाद उसने उन दोनों से कल आने को कहा।

दूसरे दिन, ग्रामाधिकारी का फ़ैसला सुनने दोनों आये। ग्रामाधिकारी का फैसला सुनने गॉंव के लोग भी बड़ी संख्या में आये। ग्रामाधिकारी ने पेटी को खोलकर ध्यान से देखते हुए कहा, ‘‘आप दोनों के बयानों को सुनने के बाद इस निर्णय पर आया हूँ कि ये गहने किसके हैं । वह और कुछ कहने ही जा रहा था कि इतने में दो घुड़सवार वहॉं आये। वे सिपाहियों की वर्दी पहने हुए थे। ग्रामाधिकारी के पास आकर उन्होंने कहा, ‘‘महाराज शिकार करने आये हैं। पास ही के जंगल में हैं। आपको साथ ले आने का आदेश दिया है।’’

उन सिपाहियों की दृष्टि अचानक उन गहनों पर पड़ी। चकित होकर उन्होंने गहने हाथ में लिये और ध्यान से देखते हुए कहा, ‘‘ये तो महारानी जी के आभूषण हैं। कुछ समय पहले इनकी चोरी हो गयी थी। आपको ये कहॉं से मिले?’’

ग्रामाधिकारी ने पूरा किस्सा सुनाया। ‘‘इसका यह मतलब हुआ कि ये दोनों मिले-जुले चोर हैं। चलिये महाराज के पास।’’ गरजते हुए सिपाहियों ने कहा।

भीम थर-थर कांपता हुआ ग्रामाधिकारी के पैरों पर गिर पड़ा। कहने लगा, ‘‘महाशय, इन गहनों से मेरा कोई संबंध नहीं है। ये राम को उसके खेत में मिले। मुझमें दुर्बुद्धि जगी और मैंने इन्हें हड़प लेना चाहा। मुझे माफ कर दीजिये।’’

‘‘भीम, तुम्हारी दुर्बुद्धि को तुम्हारे ही मुंह से कहलाने के लिए मैंने यह चाल चली। ये सिपाही नहीं हैं। मेरे ही आदमी हैं। तुमने मान लिया कि ये तुम्हारे गहने नहीं हैं, इसलिए राम को ये गहने सौंप रहा हूँ। तुमने राम को धोखा दिया, अच्छा होने का नाटक किया, इसलिए तुम्हें सौ अशर्फियें का जुरमाना भरना होगा। आगे से ही सही, ऐसी ग़लती मत करना।’’ ग्रामाधिकारी ने गंभीर स्वर में अपना फैसला सुनाया।

लोगों ने ग्रामाधिकारी के फैसले की वाहवाही की।