30 मार्च 2010

ऊँचे घर का दामाद


मनोहर देखने में बहुत सुंदर था। थोड़ी-बहुत शिक्षा भी पायी। उसके माता-पिता ने माधवी से उसका विवाह करना चाहा। मनोहर, माधवी को बचपन से जानता था, इसलिए वह भी उससे शादी करने के पक्ष में था। उसने यह बात माधवी से कई बार बतायी भी।

एक दिन एक ज्योतिषी ने उसके हाथ की रेखाएँ देखकर कहा, ‘‘शीघ्र ही तुम एक ऊँचे घर का दामाद बनोगे''। मनोहर में धनवान बनने की तीव्र इच्छा थी। ज्योतिषी की भविष्यवाणी ने उसपर बहुत प्रभाव डाला। माधवी के पिता धनी नहीं थे। इस वजह से मनोहर पशोपेश में पड़ गया कि माधवी से शादी करूँ या नहीं। तब उसके माता-पिता ने उसे समझाया, ‘‘ऊँचे घर का दामाद बनने की इतनी इच्छा है तो तुम्हें पहले बड़ा बनना होगा। माधवी से शादी करोगे तो तुम सुखी रह सकते हो। ज्योतिषी की अंटसंट बातों में आकर जीवन बरबाद मत करो।''

इसके दूसरे ही दिन उस गाँव का भूस्वामी रत्नाकर उनके घर आया। गाँव भर में वही सबसे बड़ा धनवान था। उसने प्रस्ताव रखा कि मनोहर की शादी उसकी बेटी कल्पना से की जाए तो तीन एकड़ भेंट में दूँगा। मनोहर को ज्योतिषी की बातों पर विश्वास हुआ और उसने कल्पना से विवाह करने का निश्चय किया।

माधवी को यह बात जानकर बहुत दुख हुआ। उस दिन उसने ग्रामदेवी के मंदिर के पास मनोहर को देखा तब उससे कहा, ‘‘बचपन से तुम मुझे चाहते हो, पर अब शादी से इनकार कर रहे हो, क्योंकि कहीं और शादी करने से तुम्हें दहेज मिलेगा। पर क्या यह उचित है?''

‘‘बचपन से क्या मैंने तुम्हें चाहा? तुम्हारी आँखें बिल्ली की आँखें जैसी हैं। कल्पना की सुन्दरता मुझे बहुत अच्छी लगी। इसीलिए मैं उससे शादी करने जा रहा हूँ'', मनोहर ने कहा।

माधवी में रोष भर आया। उसने क्रोध-भरे स्वर में कहा, ‘‘कल्पना के पिता ने दहेज में तीन एकड़ देने का क्या प्रस्ताव रखा, मेरी आँखें बिल्ली जैसी हो गयीं। अगले जन्म में तुम बिल्ली बनकर जन्म लोगे।'' कहकर वह तेज़ी से चली गयी।

मनोहर ने, जो हुआ, माता-पिता से बताया। जब उसके माता-पिता को मालूम हुआ कि माधवी खुद मनोहर के जीवन से हट गयी तो उन्होंने पुरोहित को बुलवाकर मुहूर्त निश्चित किया।

इसके दूसरे ही दिन उनके दूर का रिश्तेदार माधव परिवार सहित उनके घर आया। वह लंबे अर्से से राजधानी में राजा के आस्थान में काम कर रहा था। उसे और उसकी पत्नी को मनोहर बहुत पसंद आया। उन्होंने अपनी बेटी वंदना की शादी उससे करना चाहा और यह बात उसके माता-पिता से कही।

मनोहर के पिता ने जब उनसे कहा कि कल ही उसकी मंगनी है तो माधव ने कहा, ‘‘हमें सब कुछ मालूम है । मनोहर की शादी माधवी से होनेवाली थी। जब उसी से शादी नहीं हुई है, तब कल्पना के बारे में सोचने की क्या ज़रूरत है, जिसके साथ मंगनी भी नहीं हुई। रत्नाकर ने तुम्हें तीन एकड़ देने का वचन दिया है न? खेत में काम करना और फ़सल उगाना कोई आसान काम नहीं है। उसके लिए समय पर वर्षा होनी चाहिए, बाढ़ आनी नहीं चाहिये। मैं मनोहर को राजा के आस्थान में नौकरी दिलवाऊँगा। चाहे बारिश हो या बाढ़, उसका वेतन तो हर महीने बराबर मिलता रहेगा। मेहनत ज़्यादा करनी नहीं होगी। इसके अलावा इसकी, बड़े-बड़े लोगों से दोस्ती होगी। खुद सोचिये।''

मनोहर के माता-पिता निश्चय कर नहीं पाये कि क्या किया जाए। किन्तु ज्योतिषी की बातों पर अटल विश्वास रखनेवाले मनोहर ने वंदना से शादी करने का निर्णय किया। जब कल्पना को यह बात मालूम हुई तब वह मनोहर के घर आकर वंदना से मिली और कहा, ‘‘बचपन में ही यह तय हुआ था कि मनोहर की शादी माधवी से होगी, पर मनोहर ने मुझे चाहा। नौकरी का लालच दिखाकर हमें अलग करना सही नहीं।''

वंदना ने मनोहर से पूछा, ‘‘क्या नौकरी पाने के लिए ही तुम मुझसे शादी करनेवाले हो?''

‘‘ऐसी कोई बात नहीं। कल्पना देखने में सुंदर है पर तुमने सुन लिया न कितनी घमंडी है। घायल कुत्ते की तरह भौंकती रहती है। तुम मुझे बहुत अच्छी लगी इसीलिए मैं तुमसे शादी करना चाहता हूँ।'' मनोहर ने कहा।

उस समय कल्पना भी वहाँ मौजूद थी। वह भड़क गयी और बोली, ‘‘वंदना के पिता ने राजा के आस्थान में नौकरी दिलवाने का क्या वादा किया, मेरी बातें कुत्ते के भौंकने के समान हो गयीं। तुमने मेरा घोर अपमान किया। याद रखो, अगले जन्म में तुम कुत्ता होकर जन्म लोगे।'' यों कहकर वह चली गयी।

जो हुआ, मनोहर की माँ को मालूम हो गया। उसने बेटे को सावधान करते हुए कहा, ‘‘तुम जिससे शादी करना चाहते हो, करो, पर कन्याओं के शापों का शिकार बन रहे हो। यह सही नहीं है ।''

मनोहर ने इसपर हँसते हुए कहा, ‘‘वहाँ राजा जैसा जीवन मेरी प्रतीक्षा में है तो इनके शापों की परवाह क्यों करूँ । उन्हें बकने दो, भूँकने दो, मुझे जो करना है, करके रहूँगा।''

इसके बाद माधव ने प्रस्ताव रखा कि मंगनी की तारीख निश्चित की जाए। परंतु, मनोहर के माता-पिता ने कहा, ‘‘मंगनी की कोई ज़रूरत नहीं है। बेटे को राजा के आस्थान में नौकरी मिलते ही सीधे शादी करा देंगे।'' माधव ‘हाँ' कहकर मनोहर को साथ ले गया।

राजा के आस्थान में माधव छोटा कर्मचारी ही था, पर बड़े-बड़े लोगों से उसका परिचय थाजिनमें से एक था, प्रमुख व्यापारी सतीश सक्सेना। माधव मनोहर को लेकर उसके पास गया और पूरा विषय बताकर कहा, ‘‘आप राजा को इसकी सिफारिश करके आस्थान में नौकरी दिलवाइयेगा। मेरी बेटी की शादी हो जाए तो मैं सदा आपका कृतज्ञ बना रहूँगा।''

मनोहर को देखकर सक्सेना को लगा कि क्यों न मनोहर को अपना दामाद बना लूँ। उसकी बेटी जलजा भी मनोहर की सुंदरता पर रीझ गयी।

सक्सेना ने जब मनोहर से शादी की बात की तब उसे लगा कि ज्योतिषी की भविष्यवाणी अचूक है। इसलिए मनोहर, जलजा से शादी करने को तैयार हो गया।


इस विषय को जानकर वंदना जलजा के पास गयी और उससे कहा, ‘‘बचपन के दोस्त माधवी को इसने ठुकराया, कल्पना से शादी करने से इनकार कर दिया और मुझसे शादी करने के लिए तैयार हो गया। अब वह तुमसे शादी करने पर आमादा है । ऐश्वर्य का लोभ दिखाकर हम दोनों को अलग करने पर तुल गयी हो तुम।''

जलजा ने तुरंत मनोहर को बुलवाया और उससे पूछा, ‘‘तुमने पहले ही दो कन्याओं से शादी करने की सहमति दी। फिर इस वंदना पर लट्टू होकर शादी करने का निश्चय किया। क्या मेरे वैभव को देखकर ही मुझसे शादी करना चाहते हो?''

‘‘नहीं, नहीं, मुझे संगीत से बड़ा प्रेम है। वंदना का गाना गधे का स्वर-सा लगता है। तुम बहुत अच्छा गाती हो, इसलिए तुमसे शादी करना चाहता हूँ'', मनोहर ने कहा।

वंदना एकदम क्रोधित हो उठी। ‘‘जलजा का ऐश्वर्य देखते ही मेरा स्वर तुम्हें क्या गधे का स्वर हो गया? तुम अगले जन्म में गधा होकर जन्म लोगे'', कहती हुई वन्दना क्रोधित होकर वहाँ से चली गयी।

इसके बाद अच्छे मुहूर्त पर जलजा और मनोहर की शादी वैभवपूर्वक संपन्न हुई। शादी के बाद रत्नाकर के एक साथी व्यापारी ने पूछा, ‘‘तुमने अपनी बेटी की शादी ऐसे कंगाल से क्यों कर दी?'' रत्नाकर ने इसपर हँसते हुए कहा, ‘‘मेरी बेटी बात-बात पर नाराज़ होती रहती है। उसका स्वभाव ही ऐसा है। कंगाल से शादी हो जाए तो बिल्ली की तरह पड़ा रहेगा। मेरे पास अपार संपदा है। कंगाल से शादी हो जाने पर कुत्ते की तरह भौंकते और घर की रखवाली करेगा। मेरे घर में ज़्यादा काम करना पड़ता है। कंगाल हो तो गधे की तरह काम करेगा। यही है रहस्य। अब जान गये मनोहर से मैंने बेटी की शादी क्यों की?''

उनकी बातों को मनोहर ने भी सुन लिया। वह जान गया कि इस घर में उसका क्या स्थान है। तीन कन्याओं के तीन तरह के शाप सच निकले। अब वह पछताने लगा। पर अब पछताने से क्या लाभ!