04 मई 2012

चंदन एक फायदे अनेक

चंदन एक फायदे अनेक

कीलमुंहासों के ठीक होने के बाद चेहरे पर किसी प्रकार के दागधब्बों को भी चंदन के लेप से साफ़ किया जा सकता है। 
  चंदन का लेप केवल कीलमुंहासों को, ठीक नहीं करता बल्कि त्वचा को साफ़ कर नमी भी प्रदान करता है। 1 चम्मच चंदन पाउडर में आधा चम्मच पाउडर मिला कर पेस्ट बना कर चेहरे पर 20 मिनट लगाए रखने से केवल कीलमुंहासे कम नहीं हो, आप का चेहरा भी खिलाखिला प्रतीत होता है। बराबर मात्रा में चंदन पाउडर हलदी पाउडर मिला कर थोड़े दूध के साथ पेस्ट बनाएं, इस में चुटकी भर कपूर भी मिलाएं। इस लेप की चेहरे पर मालिश कर रात भर लगा रहने दें। इस से आप को ठंडक के एहसास के साथसाथ चेहरे के दागधब्बे दूर होने का फायदा भी मिलेगा।
   समान मात्रा में चंदन पाउडर, हल्दी और नीबू का रस मिला कर चेहरे पर लगाएं। आधे घंटे बाद ठंडे पानी से धो लें। इस से आप की त्वचा नरम और दागरहित होगी।
  चंदन पाउडर और रोज वाटर का पेस्ट नियमित लगाने से अगर आप की त्वचा तैलीय है तो मुंहासे होने का डर नहीं रहेगा। इस के अलावा चंदन पाउडर में काले चने का पाउडर सामान मात्रा में मिला कर दूध गुलाबजल के साथ मिला कर चेहरे पर लगा कर रात भर रखने से आप कीलमुंहासों को हमेशा के लिए बायबाय कह सकेंगे।

साइड इफैक्ट नहीं 
चंदन  का प्रयोग प्राचीन काल से चला आ रहा है। खासकर आयुर्वेद में चंदन का प्रयोग खूब किया गया है। किसी प्रकार का घाव, फोड़ेफुंसी, कटनाछिलना आदिसभी पर चंदन के लेप से आराम मिलता है। यह एक कीमती पेड़ है, जो दक्षिण भारत में ज्यादातर पाया जाता है। चंदन का उबटन शादी से पहले नववधू लगाती है ताकि उस के चेहरे और काया की चमक बनी रहे। यह एक प्राकृतिक पदार्थ है, इसलिए इस के नियमित प्रयोग से किसी प्रकार का साइड इफेक्ट नहीं होता। 

इस की खूबियाँ 
- चंदन में कीटाणुनाशक विशेषता होने की वजह से यह हर्बल एंटीसेप्टिक है, इसलिए किसी भी प्रकार के छोटे घाव और खरोंच को ठीक करता है। यह जलने से हुए घाव को भी ठीक कर सकता है।
- शरीर के किसी भाग पर खुजली होने पर चंदन पाउडर में हल्दी और एक चम्मच नीबू का रस मिला कर लगाने से खुजली तो दूर होगी ही, साथ में त्वचा की लालिमा भी कम होगी।
- चंदन का तेल सूखी त्वचा के लिए गुणकारी होता है। यह सूखी त्वचा को नमी प्रदान करता है।
- अगर खटमल या मच्छर ने काटा है तो खुजली और सूजन को चंदन का लेप लगा कर कम किया जा सकता है।
- शरीर के किसी भाग का रंग अगर काला पड़ गया हो तो 5 चम्मच नारियल तेल के साथ 2 चम्मच नारियल तेल के साथ 2 चम्मच बादाम तेल और 4 चम्मच चंदन पाउडर मिला कर उस खुले भाग पर लगाएं। इस से कालापन तो  जाएगा ही, फिर से त्वचा काली नहीं होगी।
- शादी से पहले नववधू उबटन लगाए तो हल्दी में चंदन मिला कर लगाने से त्वचा में निखार आएगा।
- अगर किसी को अधिक पसीना आता है तो चंदन पाउडर में पानी मिला कर बदन पर लाने से पसीना कम होगा।
  इतना ही नहीं, चंदन का किसी भी रूप में प्रयोग गुणकारी होता है, चाहे वो साबुन, तेल या पाउडर किसी भी रूप में हो। चंदन शरीर की प्रक्रिया प्रक्रिया का संतुलन बनाता है, पाचन क्रिया को ठीक करता है, साथ ही श्वास प्रक्रिया और स्नायुतंत्र को मजबूत बनाता है।



मुगालते अपने अपने


रूठे चेहरे अब हँसते नजर आते हैं,
बंजर वीरानियाँ भी खिलते गुलज़ार नजर आते हैं।

कोई कसर न छोडी जिन्होंने दुश्मनी निभाने में,
शुक्र है, अब उन्हीं से दोस्ती के आसार नजर आते हैं।

ताउम्र हम जिन की याद में तड़पते रहे, 
शाम ए सहर क्या बात है, वे भी आज बेकरार नजर आते हैं।

गमे मुफलिसी में जिंदगी गुजारी हम ने,
आज सपने खुशियों के बेशुमार नजर आते हैं।

उन से नजरें जो मिलीं, खिल उठा नसीबा अपना,
महफिलें ऐसी सजीं कईं त्योहार नजर आते हैं।

अपने मतलब के लिए हर किसी ने रिश्ते बनाए हम से,
शायद इस जहां में हम ही उन्हें बेकार नजर आते हैं।
                                                                 
       - एस. अहमद 




03 मई 2012

वास्तु शास्त्र और समृद्धि टिप्स

वर्तमान समय में सुविधा जुटाना आसान है। परंतु शांति इतनी सहजता से नहीं प्राप्त होती। हमारे घर में सभी सुख-सुविधा का सामान है, परंतु शांति पाने के लिए हम तरस जाते हैं। वास्तु शास्त्र द्वारा घर में कुछ मामूली बदलाव कर आप घर एवं बाहर शांति का अनुभव कर सकते हैं।

- घर में कोई रोगी हो तो एक कटोरी में केसर घोलकर उसके कमरे में रखे दें। वह जल्दी स्वस्थ हो जाएगा।
- घर में ऐसी व्यवस्था करें कि वातावरण सुगंधित रहे। सुगंधित वातावरण से मन प्रसन्न रहता है।
- घर में जाले न लगने दें, इससे मानसिक तनाव कम होता है।
- दिन में एक बार चांदी के ग्लास का पानी पिये। इससे क्रोध पर नियंत्रण होता है।
- अपने घर में चटकीले रंग नहीं कराये।
- किचन का पत्थर काला नहीं रखें।
- कंटीले पौधे घर में नहीं लगाएं।
- भोजन रसोईघर में बैठकर ही करें।
- शयन कक्ष में मदिरापान नहीं करें। अन्यथा रोगी होने तथा डरावने सपनों का भय होता है।
इन छोटे-छोटे उपायों से आप शांति का अनुभव करेंगे।

कौन सी वस्तु कहां रखें:
- सोते समय सिर दक्षिण में पैर उत्तर दिशा में रखें। या सिर पश्चिम में पैर पूर्व दिशा में रखना चाहिए।
- अलमारी या तिजोरी को कभी भी दक्षिणमुखी नहीं रखें।
- पूजा घर ईशान कोण में रखें।
- रसोई घर मेन स्वीच, इलेक्ट्रीक बोर्ड, टीवी इन सब को आग्नेय कोण में रखें।
- रसोई के स्टेंड का पत्थर काला नहीं रखें।दक्षिणमुखी होकर रसोई नहीं पकाए।
- शौचालय सदा नैर्ऋत्य कोण में रखने का प्रयास करें।
- फर्श या दिवारों का रंग पूर्ण सफेद नहीं रखें।
- फर्श काला नहीं रखें।
- मुख्य द्वार की दांयी और शाम को रोजाना एक दीपक लगाएं।

घर का बाहरी रंग कैसा हो-
- घर के आगे की दिवारों के रंग से भी वास्तु दोष दूर किया जा सकता है। यदि आपका घर
- पूर्वमुखी हो तो फ्रंट में लाल, मेहरून रंग करें।
- पश्चिममुखी हो तो लाल, नारंगी, सिंदूरी रंग करें।
- उत्तरामुखी हो तो पीला, नारंगी करें।
- दक्षिणमुखी हो तो गहरा नीला रंग करें।
- किचन में लाल रंग।बेडरूम में हल्का नीला, आसमानी।
- ड्राइंग रूम में क्रीम कलर।
- पूजा घर में नारंगी रंग।
- शौचालय में गहरा नीला।
- फर्श पूर्ण सफेद न हो क्रीम रंग का होना चाहिए।

कमरो का निर्माण कैसा हो?
कमरों का निर्माण में नाप महत्वपूर्ण होते हैं। उनमें आमने-सामने की दिवारें बिल्कुल एक नाप की हो, उनमें विषमता न हो। कमरों का निर्माण भी सम ही करें। 20-10, 16-10, 10-10, 20-16 आदि विषमता में ना करें जैसे 19-16, 18-11 आदि।बेडरूम में शयन की क्या स्थिति।बेडरूम में सोने की व्यवस्था कुछ इस तरह हो कि सिर दक्षिण मे एवं पांव उत्तर में हो।यदि यह संभव न हो तो सिराहना पश्चिम में और पैर पूर्व दिशा में हो तो बेहतर होता है। रोशनी व्यवस्था ऐसी होनी चाहिए कि आंखों पर जोर न पड़े। बेड रूम के दरवाजे के पास पलंग स्थापित न करें। इससे कार्य में विफलता पैदा होती है। कम-कम से समान बेड रूम के भीतर रखे।

वास्तु शास्त्र और साज-सज्जा
घर की साज सज्जा बाहरी हो या अंदर की वह हमारी बुद्धि मन और शरीर को जरूर प्रभावित करती है। घर में यदि वस्तुएं वास्तु अनुसार सुसज्जित न हो तो वास्तु और ग्रह रश्मियों की विषमता के कारण घर में क्लेश, अशांति का जन्म होता है। घर के बाहर की साज-सज्जा बाहरी लोगों को एवं आंतरिक शृंगार हमारे अंत: करण को सौंदर्य प्रदान करता है। जिससे सुख-शांति, सौम्यता प्राप्त होती है।
भवन निर्माण के समय ध्यान रखें। भवन के अंदर के कमरों का ढलान उत्तर दिशा की तरफ न हो। ऐसा हो जाने से भवन स्वामी हमेशा ऋणी रहता है। ईशान कोण की तरफ नाली न रखें। इससे खर्च बढ़ता है।
शौचालय: शौचालय का निर्माण पूर्वोत्तर ईशान कोण में न करें। इससे सदा दरिद्रता बनी रहती है। शौचालय का निर्माण वायव्य दिशा में हो तो बेहतर होता है।
कमरों में ज्यादा छिद्रों का ना होना आपको स्वस्थ और शांतिपूर्वक रखेगा।


कौन से रंग का हो स्टडी रूम?
रंग का भी अध्ययन कक्ष में बड़ा प्रभाव पड़ता है। आइए जानते हैं कौन-कौन से रंग आपके अध्ययन को बेहतर बनाते हैं। तथा कौन से रंग का स्टडी रूम में त्याग करना चाहिए।अध्ययन कक्ष में हल्का पीला रंग, हल्का लाल रंग, हल्का हरा रंग आपकी बुद्धि को ऊर्जा प्रदान करता है। तथा पढ़ी हुयी बाते याद रहती है। पढ़ते समय आलस्य नही आता, स्फुर्ती बनी रहती है। हरा और लाल रंग सर्वथा अध्ययन के लिए उपयोगी है। लाल रंग से मन भटकता नहीं हैं, तथा हरा रंग हमें सकारात्मक उर्जा प्रदान करता है।नीले, काले, जामुनी जैसे रंगो का स्टडी रूम में त्याग करना चाहिए, यह रंग नकारात्मक उर्जा के कारक है। ऐसे कमरो में बैठकर कि गयी पढ़ाई निरर्थक हो जाती है।

29 अप्रैल 2012

किनारा

मैं धड़कते दिल से डाकिये का इंतज़ार कर रही थी। मैं ही क्यों? माँ और पिताजी भले ही ऊपर से शांत दिखाई पद रहे थे, लेकिन मैं जानती हूँ कि वे अन्दर से कितने बेचैन थे।
  बात यह थी कि पिछले हफ्ते सुशांत मुझे देखने आए थे और आज उन का जवाब आने की उम्मीद थी। वैसे अपनी शादी के बारे में मैं कुछ निराश और तटस्थ सी हो गयी हूँ। लेकिन मेरे कारण पिताजी को जो चिंता थी, उस से मेरा मन ज्यादा ही व्यथित होता था। मेरे कारण माँ भी कहीं बाहर ज्यादा उठाने बैठने नहीं जाती थीं।
  अडोसपड़ोस की स्त्रियाँ अकसर मुझ से कहतीं, "अरे, शादी क्यों नहीं करती, कुसुम? तेरे छोटे भाई और दोनों छोटी बहनों की शादी हो गयी और तू किस राजकुमार का इंतज़ार कर रही है?"
  "कुसमम, तेरे जैसी सुन्दर और गुणवती लडकी की 30 साल की उम्र तक शादी नहीं हुई? कुछ अटपटा सा लगता है। सचसच बता, क्या बात है?"
   उन्हें मैं कैसे समझाऊँ कि मैं खुद इस बात से परेशान हूँ। मांबाप की मैं लाडली पहली सन्तान थी। रंगरूप सुन्दर, खानदान अच्छा, पढीलिखी। जब मेरी शादी की उम्र हुई, पिताजी कौतुक से कहते, "कुसुम के लिए मैं राजकुमार ही खोजूंगा।"
  "यह लड़का आई.ए.एस. है तो क्या हुआ, रंग तो काला है..." "यह डाक्टर लड़का होशियार है, लेकिन ठिगना है..." "इस लड़के का खानदान अपने बराबरी का नहीं है," कह कर कितने ही लड़के उन्होंने किसी न किसी वजह से नापसंद कर दी। 
 मेरी उम्र बढ़ती चली गयी। हमारी शर्तें भी कम हो गयी। लेकिन हमारी इच्छापूर्ति न हुई। इस दरम्यान भाई और दो बहनों की शादी हो गई। उन का सुखी संसार बसा। लेकिन मैं जहाँ की तहां रही। बड़ी उम्र की कारण अब लड़के मुझे नकारने लगे। समय काटने के लिए मैं ने चित्रकला और शास्त्रीय संगीत का अभ्यास शुरू कर दिया।
  गेट खुलने की आवाज आते ही पिताजी बाहर गए। मैं ने अपने कमरे से देखा, सचमुच डाकिया था। पिताजी के हाथ में उस ने लिफाफा दिया। सांस रोक कर मैं कमारे में ही खादी रही, "अरे कुसुम, तू ने बाजी मार ली," कह कर खुस हो कर पिताजी के हंसने का मैं इन्त्ताजार कर रही थी। पर ऐसा कुछ भी नहीं हुआ तो मैं समझ गई कि इनकार है। मन को ठेस पहुँची, थोड़ी देर बाद मन स्थिर किया और ऊपरी उत्साह से हाल में गई।
  माँ और पिताजी उदास बैठे थे।
  "माँ, मैं ने कल जो चित्र बनाया था, उस को दिखाना भूल गई। अभी ले आती हूँ।"
  मैं चित्र लाई। माँ और पिताजी ने उस की तारीफ़ की, तब मैं ने कहा, "माँ, आप को कमलाजी ने मदद के लिए जल्दी बुलाया है। आप दोनों जाइए न?"
  "कमलाजी का और हमारा निकट का सम्बन्ध अहि। उन की इकलौती बेटी मंजू का ब्याह है। जितनी मदद हम से होगी, उतने तो करेंगे ही, "पिताजी बोले, "लेकिन आज कुछ सुस्ती लग रही है।"
  "नहीं पिताजी, आप का जाना जरूरी है। आप दोनों जाइए। शादी के वक्त मैं आउंगी। शाम को 6 बजे शादी है न।"
  "हाँ बेटी," पिताजी ने कहा।
  "कुसुम, तुम को भी वहीं दोपहर का खाना खाना है," माँ ने कहा।
  "माँ, मैं घर पर ही कुछ बना लूंगी और शाम को वहां आउन्गीए।"
  माँ सब समझ गई थीं। कुछ ज्यादा बोलीं नहीं। थोड़ी देर बाद माँ और पिताजी दोनों कमलाजी के यहाँ चले गए।
  उन के जाने के बाद मेरा मन घोर निराशा से भर गया, "उफ़, मेरे साथ ऐसा क्यों हो रहा है?" असहाय सी मैं बिस्तर पर पड़े चुपचाप आंसू बहा रहे थी। पहला आवेग थमने के बाद मेरा मन कहने लगा, "अगले पगली, उठ, शादी ही जीवन का सर्वस्व नहीं है। उस तरफ का मार्ग बंद है तो दुखी होने की, घबराने की क्या जरूरत है? सुखी जीवन के अनेक मार्ग है। उन में से एकाध चुन ले। मुझ को गायन तथा चित्रकला का शौक है उसी से अपना दिल लगा ले। उठउठ, अपने जीवन के प्रवाह को चट्टान से टकराने से क्या लाभ? दूसरा सुगम मार्ग अपना ले। अब उठ और अपना जीवन नए मोड़ पर उत्साह से ले चल।"
  आश्चर्य, इस बोध से मैं चकित हुई। मेरे मन का बोझ हल्का हुआ। सच तो है कि तीव्र निराशा के बाद जीवन की आशाकिरण किखती है।
  मैं स्फूर्ति से उठी, शैम्पू से बाल धोए। नहाने से मन प्रफुल्लित हुआ। हेयर ड्रायर से बाल सुखाए। मेकप कर के हलकी गुलाबी रंग की शिफोर की सादी पहनी। आईने में अपना चेहरा देख कर मैं खुश हुई। गाना गुनगुनाते हुए हाल में गई। मेरी बनाई हुए कलाकृति वहीँ मेज पर रखी थी। उसको बड़े स्नेह से देखा मैं ने।
  इतने में दरवाजे की घंटी बजी।
दरवाजा खोला तो देखा कमलाजी का लड़का समीर और एक युवक खडा था।
  "कुसुम दीदी, यह हैं मेरे भाई अभय। आप से मिलाने आए हैं," समीर ने कहा।
  नमस्कार का आदानप्रदान हुआ।
  "आइये, बैठिये।"
  "दीदी, घर में काम है, मैं जाता हूँ। अभय भैया बैठेंगे। बाद में आप कार से उन्हें ले आइये। और हाँ, माँ ने कहा है कि आज आप को हमारे यहाँ ही खाना है। जरूर आइयेगा।" कह कर समीर चला गया।
  "मुझे पहचाना?" अभय हंस कर पूछ रहा था। मैं उसे देख रही थी। उसे पहचानने की कोशिश कर रही थी, लेकिन कुछ याद नहीं आया।
  "नहीं पहचाना न? मैं अभय हूँ। 20 साल पहले आप के पिताजी और मेरे पिताजी जबलपुर में साथ थे। दोनों के बंगले एकदूसरे से लगे हुए थे। आप करीब 9-10 साल की थीं और मैं 12 साल का था। मेरी छोटी बहन सुधा के साथ खेलने आप आती थीं। अब कुछ याद आया?"
  मुझे कुछ धुंधली याद आई, "अरे, तू हम को फल तोड़ के देता था न?"
  "चलो, कुछ थोडाबहुत तो पहचाना।" कह कर अभय हंस पडा, उस का गोराचिट्टा रंग, ऊंचापूरा गँठीला बदन, प्रसन्न व्यक्तित्व देख कर मैं बहुत प्रभावित हुई। उस के साथ बचपन की बातें कर के बहुत अच्छा लग रहा था।
  "अभय, पहले बता, तुझे कैसे पता चला कि मैं यहाँ हूँ और तू ने मुझे कैसे पहचाना?"
  "बहुत सरल तरीके से। कमलाजी मेरी सगी मौसी हैं। इसलिए मंजू की शादी में माँ और पिताजी के साथ मैं भी आया।
कमलाजी के यहाँ तुम्हारे पिताजी से भेंट हुई। बातचीत के दौरान मैं ने तुम्हारे बारे में पूछा, तब सब पता चला और तुम से मिलाने आ गया।"
 "इतने साल बाद मेरा नाम कैसे याद आया?"
  "कोइ अचरज की बात नहीं। बचपन में कुसुम नाम की गुडिया सी लडकी ने मेरे मन पर चाप छोटी थी। वह काल प्रवाह में धूमिल अवश्य हुई थी, पर आज तुम्हारी माँ और पिताजी से मिलाने के बाद एकदम साफ़ हुई। वह छोटी गुडिया अब कैसी दिखती होगी, यह जानने के लिए मैं बड़ा उत्सुक था और एकाएक यहाँ आ गया।"
  "अब आप कहाँ रहते हैं? क्या करते हैं? सब बताइए न।" बचपन की बातें चली थीं, तब 'तुम' संबोधन सहज रूप से बोला गया। लेकिन संभाषण का रूख जब वर्त्तमान पर आया, तब अभय को युवक के रूप में देख कर 'तुम' की जगह 'आप' संबोधन आदतन आ गया।
  अभय हंस पडा, "अरे, उम्र में बड़ा हुआ तो क्या हुआ, मैं तो पुराना ही 'तुम' वाला अभय हूँ। 'आप' सम्भोधन की औपचारिकता की जरूरत नहीं।"
  मेरे चेहरे पर भी मुस्कराहट आ गई। किंचित लजाते हुए मैं ने कहा, "अच्छा बाबा, 'तुम' कहूंगी। अब सब बताओ।"
  "मेरे पिताजी की बदली जबलपुर से इंदौर हो गई। वहीं पर मैं ने एम.बी.बी.एस. और एम.दी. की डिगरी हासिल की। स्वर्ण पदक भी मिला। फिर छात्र के रूप में वीजा से लेकर 25 साल की उम्र में अमरीका गया। मुझे शोध में रुचि है। अमरीका में शोध ही कर रहा हूँ। अपने अमरीकी प्राध्यापकों की मदद से बहुत संघर्ष के बाद पिचले साल मुझे ग्रीन कार्ड मिल गया। शोध की सुविधाएं अमरीका में बहुत ज्यादा हैं, इसलिए वहीँ रहना चाहता हूँ। इस साल 1 महीने के लिए भारत आया हूँ," फिर रूक कर बोला, "इतना जीवन परिचय काफी है न?"
  मेरे मन में जिज्ञासा हुई कि इस की शादी कब हुई। पत्नी कैसी है? यह सब जानने के इच्छा थी, लेकिन न मालूम क्यों मैं यह सीधा सवाल नहीं पूछ सकी। इधरउधर की कुछ बातें होने लगीं। फिर मुझ से रहा न गया।
  "पत्नी भी साथ आई है न?"
  "अरे, पत्नी हो तो साथ आएगी। हम तो अभी कोरा कागज़ ही हैं।"
  फिर कुछ गंभीर ह कर स्थिर दृष्टि से मुझे देख कर वह बोला, "पत्नी की खोज के लिए ही यहाँ आया हूँ।"
  मैं एकदम सकुचाई। मेरा दिल जोर से धड़कने लगा। अभय का 'यहाँ' का क्या मतलब-हिन्दुस्तान में या मेरे यहाँ? इस विचार सेमिन स्तब्ध हो गई। मेरे मन में आशा की किरणें चमकने लगीं। अभय का जादू मुझ पर हावी होने लगा था। उस की स्निग्ध और गंभीर नजर मुझ पर टिकी थी। अपनी आँखों का भाव छिपा कर मैं ने पलकें झुका लीं। दोनों की स्तब्धता और आँखों के भाव बहुत कुछ कह गए।
  थोड़ी देर में संयत हो कर मैं ने सहज ढंग से कहा, "अभय, मैं आजकल चित्रकला में रुचि ले रही हूँ। मेरे बनाए चित्र देखोगे?" कह कर मैं हाल में रखी कलाकृति के पास गई। मेरे पीचेपीचे अभय भी आया।
  उस की निकटता मुझे उत्तेजित करने लगी। मेरे मुंह से शब्द नहीं निकल रहे थे। मैं मुग्ध सी खडी रही। डर लग रहा था कि मेरे मन में उभरने वाली प्रणयभावना का अंदाजा कहीं अभय को न लगे। तभी पीछे से अभय ने कहा, "कुसुम, तुम से कुछ पूछना है। उस का मृदु आतुर स्वर सुन कर मेरा मन खुशी से नाचने लगा। लचीली आँखों से मैं ने उस की तरफ देखा।
  "कुसुम, तुम मेरी पत्नी बनोगी।"
  मुझे लगा जैसे कोइ दोनों हाथों से मुह पर खुशियाँ बिखेर रहा है। मेरी पलकें झुक गईं। शब्दों की स्वीकृति की जरूरत ही नहीं थी। मंद मधुर, मुसकराते हुए उस ने मेरे कंधे पर हाथ रखा, "अपने प्रश्न का उत्तर 'हाँ' समझूं?"
  मैं ने कब 'हाँ' कहा, कैसे और कब उस के बाहुपाश में बंध गई, मुझे पता न चला।  

                                                                                                                                                                              - कमल भालेराव 

टोने टोटके - कुछ उपाय - 15 (Tonae Totake - Some Tips - 15)

पढाई में मन लगाने के लिए : 
जो बच्चे गूंगे हैं अथवा हकलाते हैं, बार-बार परिक्षा में फेल हो जाते हैं और जिनका मन पढाई में नहीं लगता है। उन बच्चों को रविवार के दिन इस मंत्र से 21 बार अभिमंत्रित कर जल पिलायें। जो बच्चे जप कर सकते हैं वे प्रतिदिन एक माला जप करें। मंत्र: ॐ वान्याई ऐं वाण्यै स्वाहा 11 इसी से पढ कर जल भी पिलायें। चमत्कारिक लाभ होगा।

ऊपरी बाधा को छुडाने के लिए :
हजार दाना नमक एक छोटा सा एकदम लहसन के आकार में, यह मंद होता है तथा दुर्लभ वनस्पति है। इसकी एक कली को तोडने पर सैकडों की तादाद से अत्यंत सूक्ष्म सफ़ेद बीज निकलते हैं। यह पौधा तालाब में कहीं कहीं पाया जाता है। इसका कंद या कली जो भी उपलब्ध हो लाकर किसी भी शुभ मुहूर्त में ताबीज में डालकर गले या भुजा में धारण करें। किसी तांत्रिक द्वारा अभिचार किये जाने पर एक बार में इसका मात्र एक दाना चटक जाता है और लोग सुरक्षित बच जाते हैं। जब कि एक कली में सैकडों की संख्या में बीज पाये जाते हैं।

मजबूरी दूर करने के लिए :
कई बार इच्छा न होते हुए भी मजबूरी में काम करना पड़ता है। इसे दूर करने के लिए। उपाय - 2 लौंग और एक कपूर का टुकड़ा लें। इनको 3 बार गायत्री मंत्र पढ़कर अभिमंत्रित करें। इसके बाद इन्हें जला दें। जलते समय आपका मुख पूर्व की तरफ हो तथा गायत्री मंत्र का पाठ भी करते रहें। फिर भस्म को दिन में दो तीन बार जीभ पर लगाएं धीरे-धीरे आपकी मजबूरी में काम करने की आदत छूट जाएगी।    

परदेश गए व्यक्ति या दिए गए धन की वापसी हेतु उपाय :
प्रातःकाल स्नान करने के बाद परदेश गए व्यक्ति का नाम कागज़ पर लिख कर रख लें। एक और दीपक बनाएं। उसमें सरसों का तेल डालें फिर उसे जला दें। पहले धरती पर नमक रखें उस पर दिया रख कर गए व्यक्ति का ध्यान कर 43  दिन तक प्रतिदिन लगातार 11 बार हनुमान चालीसा का पाठ करें।
गया व्यक्ति वापस आ जाएगा तथा पैसा भी मिल जाएगा।

दूध लाने का उपाय :
अनार का दाना दूध में पीसकर देने से जिन माताओं को दूध नहीं है उनके दूध आने लग जाएगा।

श्वास व दमा रोगों के लिए  :
अपामार्ग के बीजों को लाकर साफ़ कर लें व लाल कपडे से ढक दें। कार्तिक पूर्णिमा के दिन उन्हें धोकर गाय के दूध की खीर बना लें फिर रात्री में उनको छलनी या किसी जाली ढक दें। पूरी चांदनी रात में जो ओस पड़ेगी उस खीर को प्रातः काल में खा लें। यह दमा रोग की पक्की औषधि है। करें व लाभ उठायें।

लाल रंग का रिवन घर के मुख्य द्वार पर बांधें। इससे घर में सुख सम्रद्धि आती है और कैसा भी वास्तु दोष हो वह दूर हो जाता है लेकिन किसी शुभ मुहूर्त में रिबन बांधें। 

कोई भीगा स्पर्श

कच्ची बूंदों की
फुहारों में सिहर कर
 जब किसी फूल का अंतर
झील सा काँप कर
गुनगुनाने लगता है,
अथवा किसी पक्षी की
रोमिल बरौनियों की छाँव में
कोई एकांत प्रतीक्षा तीव्रतर हो
सुगबुगाने लगती है,
तब लगता है कि आकाश ने
जरूर किसी मेघखंड की
काव्य ऋचा लिखी है।

वक्त का थोड़ा सा बदलाव
कितने एहसासों को
जन्म दे देता है,
कितने अनगूंजे, अनकहे स्वर
पुरवाई के आसपास
मंडराने लगते हैं।

ऐसे में यदि बादल का
कोई भीगा स्पर्श
सुबह का आँचल थाम
उठाता है और द्वार पर,
मौसम फुर्सत से आवाज
लगा कर पुकारता है,
तब जैसे दिन के पूरे पृष्ट का
शीर्षक ही बदल जाता है।
शायद ऐसे ही क्षण
बस सार्थक होते हैं,
हमारे निजी होते हैं।

                          - सावित्री परमार