30 मार्च 2010

माँ की ममता


विशाल देश के शंखवर और पंखवर ऐसे तो पड़ोसी नगर थे, परंतु नागरिकों की व्यवहार शैलियों में, खाने-पीने की आदतों में आकाश - पाताल का अंतर था। शंखवर के नागरिक तीखे आहार ज्यादा खाते हैं तो पंखवर के नागरिक मीठे और स्वादहीन आहार । शंखवर की पद्मा का विवाह पंखवर के चंद्र से हुआ। पति, सास-ससुर ऐसे तो अच्छे लोग हैं, पर ससुराल में कोई भी तीखा नहीं खाता। उससे स्वादहीन खाना खाया नहीं जाता। पद्मा जब भी अपने माँ-बाप से मिली, इसकी शिकायत करती रही। इसलिए मौका मिलते ही, उसकी माँ उसे अचार और चटनियॉं भेज दिया करती।

मयूरपुरी, शंखवर से बहुत दूर है। एक बार चंद्र को राजप्रतिनिधि के साथ वहाँ जाना पड़ा। वह अपने साथ अपनी पत्नी को भी ले गया। उसे कुछ समय तक वहीं रहना भी पड़ा। शंखवर लौटने में चार साल लग गये। उन चार सालों तक पद्मा के माँ-बाप अपनी बेटी से मिल नहीं पाये। तब तक पद्मा ने एक बेटी को जन्म दिया जो अब तीन साल की है।

जैसे ही पद्मा के माँ-बाप को मालूम हुआ कि बेटी और दामाद पंखवर लौट आये हैं तो वे उन्हें देखने वहॉं आये। वे अपने साथ तीखे अचार भी ले आये, क्योंकि पद्मा को वे बहुत पसंद थे। जब पद्मा ने उन तीखे अचारों को देखा तो उसने अपने माँ-बाप से कहा, ‘‘मेरी बेटी तीखा खाती नहीं । उसके लिए मैंने भी सात्विक आहार खाने की आदत डाल ली। आप दोनों इन तीखे अचारों को खाते रहेंगे तो तबीयत ज़रूर ख़राब हो जायेगी। इस उम्र में तीखे पदार्थों को छूना तक नहीं चाहिये।’’

‘‘इन अचारों और चटनियों में तीखा मिर्च नहीं, माँ की ममता है। जैसे तुमने अपनी बेटी के लिए किया, उसी प्रकार से तुम्हारी माँ ने अपनी बेटी के लिए इन्हें बनाया,’’ पद्मा के पिता ने कहा।