क्षित होना हर नागरिक का मूलभूत अधिकार है। इसी शिक्षा के बल पर बच्चा आगे चल कर खुद का विकास कर सकता है तथा यही शिक्षा उस की रोजी-रोटी कमाने में सहायक होती है। ज्ञान को हासिल करने के साथ-साथ उस ज्ञान को याद रखना भी जरूरी है। यही याद करने की सहक्ति परिक्षा में अच्छे अंक दिलाने में मददगार होती है और कैरियर निर्माण भी इसी पर निर्भर करता है।
आज का दौर जबरदस्त प्रतियोगिता का है। छात्रों से हर कोई अच्छे अंक पाने की उम्मीद करता है। ऐसे में छात्रों पर दबाव कुछ अधिक ही होता है। इस कारण वह एक तरह से तनाव में जीते हैं और नतीजतन, कई बार उन्हें लगता है की उन की याद करने की शक्ति कमजोर होती जा रही है। वे याद करते हैं फिर भूल जाते हैं। इस से उन के परीक्षाफल पर बुरा असर पड़ता है।
अध्यापक वर्ग भी बच्चों के साथ पूरी मेहनत करता है, फिर भी कहीं न कहीं कुछ छात्रों के साथ तालमेल में कोई कमी रह जाती है। इसी कमी को पूरा करने के लिए आजकल कुछ स्मृतिप्रशिक्षक यानी 'मैमोरी ट्रेनर' बच्चों के लिए वरदान साबित हो रहे हैं।
ये 'मैमोरी ट्रेनर' अध्यापक और विद्यार्थी के बीच पुल का काम करते हैं और एक तरह से यह 'मनोवैज्ञानिक प्रशिक्षक' होते हैं। छात्र का मनोविज्ञान जान कर ये उस की समस्या का समाधान करते हैं।
यह क्या फंडा होता है? इस सवाल को जानने के लिए स्मृति प्रशिक्षक अंबादत्त भट्ट से बातचीत की। 12 घंटे की इन की ट्रेनिंग के बाद छात्रों के अध्ययन करने का तरीका एकदम बदल जाता है। इन के द्वारा अनेक छात्र लाभ उठा चुके हैं।
अंबादत्त क कहना है, "मेरा बस चले तो हर छात्र को अध्ययन करने के वे गुर बताऊँ जो पूरी जिन्दगी उस के काम आएं।"
अपनी बात को सार्थक करने के लिए उन्होंने कई महत्वपूर्ण टिप्स बताए जो निम्न प्रकार हैं :
1. मष्तिस्क के 2 हिस्से होते हैं। एक दायाँ और दूसरा बायाँ। दायाँ हिस्सा रचनात्मक कार्य करता है। अतः रचनात्मक कार्यों के समय दाएं हिस्से का इस्तेमाल कर के उसे जगाया जाता है। बायाँ हिस्सा सिर्फ सोचता है। हम अक्सर दाईं भाग का इस्तेमाल कम करते हैं।
2. समय बहुत कीमती है। एक बार हाथ से निकल जाने पर यह वापस नहीं आता। छात्रों को समय की कीमत जाननी चाहिए।
3. अध्यापकों और अभिभावकों को हमेशा बच्चे को पढाई की तरफ उत्साहित करते रहना चाहिए। 'तुम्हें कुछ नहीं आता, 'ऐसे नहीं कहना चाहिए।
4. छात्रों को चाहिय की वे हार्डवर्क की जगह
स्मार्टवर्क करें। इन में इतना अंतर है, जितना एक मजदूर और एक इंजीनियर के काम करने के तरीके में होता है।
5. पहले पाठ को एक नजर देखें, यानी उस का प्रीव्यू लें फिर खुद प्रश्न बनाएं यानी प्रश्नपत्र तैयार करें तत्पश्चात पढ़ें। फिर संक्षिप्त रूप में सोचें 'समराइज' करें. फिर 'टेस्ट' लें, यानी स्वयं सोचें की क्या पढ़ा है। उस के बाद उस का 'प्रयोगात्मक इस्तेमाल' करें, यानी यूज दैम प्रैक्टिकली। आखिर में उसे मन ही मन चित्रित करें। इस तरीके को कहते अहिं-'पी-पी-फार्मूला। ' पी.क्यू.आर.एस.टी.यू.वी. इस से पाठ पूरी तरह से समझ में आता है व जल्द याद हो जाता है।
सूत्र इस तरह हैं :
'प्रीव्यू - क्वेश्चनेयर - रीड - समरैज - टेस्ट - यूजदैम प्रेक्टिकली - विजुअलाइज'
नोट्स तैयार करते समय 'माइंड मैप' बनाएं यानी एक पाठ के नोट्स सीधी लाइनों में न लिख कर विविध रंगों के स्कैच पैन ले कर गोल, त्रिभुज, चतुर्भुज जैसे चिन्नों द्वारा डाइग्राम बनाएं। इस से आसाने से यह याद रहता है की फलां रंग से फलां प्वाइंट लिखा था। रंग एवं चित्रों का बहुत महत्व होता है पर अक्सर हम इसे नजरअंदाज कर देते हैं।
रात को सोने से पहले दिन में जो कुछ पढ़ा है उसे एक बार मन में जरूर दोहराएं। छुट्टी वाले दिन सिर्फ दोहराएं। अक्सर छात्र शनिवार का गृहकार्य रविवार पर टाल देते हैं और पूरा दिन बर्बाद करते हैं। उन्हें शनिवार का गृहकार्य शनिवार को ही समाप्त करना चाहिए और रविवार को 'साप्ताहिक दोहराव' का कार्य करना चाहिए।
कक्षा में अध्यापक के आने से पहले पिछले दिन स्कूल में करवाया गया काम मन में दोहराएं तथा उन के कक्षा छोड़ने के बाद उस दिन कराया गया काम दोहराएं। इस में मुशिकल से 1 मिनट का समय लगता है और फ़ायदा अधिक होता है।
पढाई एक सिटिंग में न करें बल्कि हर 45 मिनट के बाद 10 मिनट का ब्रेक लें। ब्रेक के दौरान चाय, पानी, दूध लें और टहलें। जितने ज्यादा ब्रेक उतना ज्यादा याद रहता है क्योंकि हर ब्रेक से आने के बाद मन स्वतः छोड़े गए काम को दोहराता है। इस से याद करने की शक्ति बढ़ती है।
कुछ शब्दों के कोड बनाने की कला सीखें, यदी जो याद नहीं होते उन के शाब्दिक रूप बना कर उसे याद करना आसान हो जाता है।
पाठ को एक बार पढ़ कर अक्सर छात्र आगे बढ़ जाते हैं। उन्हें एक बार पढ़ कर फिर नीचे से ऊपर होते हुए पढ़ना चाहिए तथा फिर ऊपर से नीचे एक नजर डालनी चाहिए। इस तरह कम समय में 3 बार पाठ पढ़ा जाता है।
पहेलियाँ, क्विज आदि की किताबें, विषयपरक शब्दकोष, वर्गपहेली आदि की पुस्तकें बेहद उपयोगी होती हैं। इन से ज्ञानभंडार विस्तृत होता है।
हमेशा सकारात्मक दिशा में सोचना चाहिए। यह सोचना चाहिए की 'मेरी याद करने की शक्ति बहुत अच्छी है। 'खुद पर विश्वास रखना चाहिए।
इंसान का दिमाग पुस्ताकालय के तरह काम करता है। इस में याद रखी बातें कभी नष्ट नहीं होतीं, दब जरूर जाती हैं। अतः हर बात को 'क्रम वाले बाक्स' में डाल कर परिस्थितियों के साथ जोड़ कर याद रखना चाहिए।
उपयुर्क्त उपायों को आप जरूर आजमा कर देखें।
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