11 फ़रवरी 2011

आनंद कहाँ ?

आनंद क्या है? अर्थात आनंद को किस तरह परिभाषित किया जा सकता है? क्या आनंद भी श्री कृष्ण के विराट रूप की तरह है? मूल प्रश्न है कि आनंद क्या है. क्या सुख की चरमावस्था ही आनंद कहलाती है? लेकिन वह सुख क्या है? क्या दुःख का अभाव ही सुख है? जिस तरह आनंद को विभिन्न स्तरों पर अनुभव किया जा सकता है, दुःख को भी उसी तरह विभिन्न स्तरों पर अनुभव किया जा सकता है. पर दुःख क्या है?

क्या मन के अनुकूल कोई बात न हो तो वह दुःख है? क्या प्रतिकूल अनुभव ही सुख का जनक है? दुःख? बुद्ध के चार आर्य सत्यों का मूल. बुद्ध दुःख से मुक्ति का उपाय भी बताते हैं. उनके अनुसार अष्टांग मार्ग पर चलकर दुःख से मुक्ति पाई जा सकती है. अष्टांग मार्ग अर्थात माध्यम मार्ग. मध्यम मार्ग अर्थात अति से दूर, बीच का रास्ता सम्यक द्रष्टि. तो क्या दुःख की निवृत्ति कर आनंदित रहा जा सकता है? पंचम जगद गुरू कृपालु महाराज की घोषणा है- ईश्वर ही आनंद है या आनंद ही ईश्वर है. उनके अनुसार श्रीकृष्ण की अहेतुक उपासना कर यह आनंद प्राप्त किया जा सकता है. आहेतुक उपासना अर्थात कामना रहित उपासना. सम्पूर्ण, बिना किसी प्रतिदान की लालसा के.

इसे ही परमानंद कहा जाता है. जगद गुरू कृपालु महाराज कहते हैं, जीव जन्म जन्मांतर से इसी आनंद को पाने के लिये व्यग्र है. लेकिन जीव हर जन्म से कुछ न कुछ आनंद पाता ही है - अपने-अपने ढंग से. आध्यात्मिक जगत में इसी आनंद को लेकर गहन चिंतन किया गया है. आनंद के दो वर्ग बनाए गए हैं. - मायाजन्य आनंद और ईश्वर का रूप. ब्रह्मानंद कहें या ईश्वरानं दोनों, एक ही है. शंकराचार्य ब्रह्म को सत्य और जगत को मिथ्या मानते हैं, पर जगत क्या सचमुच मिथ्या है? पक्ष-विपक्ष में बुद्धि को भ्रमित कर देने वाले तर्कों और मत-मतांतरों का यह एक ऐसा चक्रव्यूह है जिसमें अभिमन्यु की तरह प्रवेश तो सहज है. पर निकलना असंभव या दुष्कर.

फिर वही जिज्ञासा कि आनंद क्या है? एक सोच उभरती है - आनंद परिभाषा का नहीं, अनुभव का क्षेत्र है. गूंगे के गुड की तरह. गूंगा गुड के स्वाद का अनुभव तो कर सकता है, पर उस अनुभव को व्यक्त नहीं कर सकता. हम सब अपने जीवन में शायद प्रतिदिन किसी न किसी क्षण आनंद का अनुभव करते हैं - सुख तो पाते ही हैं, अपनी-अपनी रूची, अपनी अपनी हैसियत और अपने-अपने संस्कारों के अनुसार.

ऐसा लगता है कि जिस तरह कस्तूरी मृग की नाभि में होती है, उसी तरह शान्ति और आनंद हमारी नाभि में है. इस स्तर पर हम सब कस्तूरी मृग ही हैं. आनंद का सृजन भी हम ही करते हैं, अनुभव भी हम ही करते हैं. इस तरह आनंद के जनक और उसके उपभोक्ता दोनों हम स्वयं हैं.

दरअसल आनंद एक मन स्थिति का नाम है. दुःख और सुख दोनों हमारी मन स्थिति के रूप हैं. लेकिन विंड बना यह है कि हमारी मनस्थिति के स्वामी हम स्वयं नहीं हैं, उस पर हमारे आसपास के वातावरण का, मिलने-जुलने वाले लोगों का भी अच्छा-खासा असर पड़ता है.

हमारे आपास के वातावरण के कुप्रभावों से बचाव और आनंद की प्राप्ति का एक रास्ता है, और वह है सहज रहना, पर जीवन में सहजता लाना किसी तपस्या से कम नहीं.

यदि हम अपने में सहज जीवन जीने की आदत डाल लें, तो आनंद की प्राप्ति सहज हो जाएगी. सहजता एक कुंजी है, सनान्तन आनद ही.

टोने-टोटके - कुछ उपाय - 7 (Tonae-Totke - Some Tips - 7 )

छोटे-छोटे उपाय हर घर में लोग जानते हैं। पर उनकी विधिवत जानकारी के अभाव में वे उनके लाभ से वंचित रह जाते हैं। इस लोकप्रिय स्तंभ में उपयोगी टोटकों की विधिवत जानकारी दी जा रही है।


मनोकामना की पूर्ती हेतु
  • होली के दिन से शुरू करके प्रतिदिन हनुमान जी को पांच पुष्प चढाएं, मनोकामना शीघ्र पूर्ण होगी।
  • होली की प्रातः बेलपत्र पर सफ़ेद चन्दन की बिंदी लगाकर अपनी मनोकामना बोलते हुए शिवलिंग पर सच्चे मन से अर्पित करें। बाद में सोमवार को किसी मन्दिर में भोलेनाथ को पंचमेवा की खीर अवश्य चढाएं, मनोकामना पूरी होगी।

रोजगार प्राप्ति हेतु
  • होली की रात्री बारह बजे से पूर्व एक दाग रहित बड़ा नीबू लेकर चौराहे पर जाएं और उसकी चार फांक चारों कोनों में फेंक दें। फिर वापिस घर जाएं किन्तु ध्यान रहे, वापिस जाते समय पीछे मुड़कर न देखें। उपाय श्रद्धापूर्वक करें, शीघ्र ही बुरे दिन दूर होंगे व रोजगार प्राप्त होगा।

स्वास्थ्य लाभ हेतु 
  • मृत्यु तुल्य कष्ट से ग्रस्त रोगी को छुटकारा दिलाने के लिये जौ के आटे में तिल एवं सरसों का तेल मिला कर मोटी रोटी बनाएं और उसे रोगी के ऊपर से सात बार उतारकर भैंस को खिला दें। यह क्रिया करते समय ईश्वर से रोगी को शीघ्र स्वस्थ करने की प्रार्थना करते रहें।

व्यापार लाभ के लिये 
  • होली के दिन गुलाल के एक खुले पैकेट में एक मोती शंख और चांदी का एक सिक्का रखकर उसे नए लाल कपडे में लाल मौली से बांधकर तिजोरी में रखें, व्यवसाय में लाभ होगा
  • होली के अवसर पर एक एकाक्षी नारियल की पूजा करके लाल कपडे में लपेट कर दुकान में या व्यापार पर स्थापित करें। साथ ही स्फटिक का शुद्ध श्रीयंत्र रखें. उपाय निष्ठापूर्वक करें, लाभ में दिन दूनी रात चौगुनी वृद्धि होगी।

धनहानी से बचाव के लिये 
  • होली के दिन मुख्य द्वार पर गुलाल छिडकें और उस पर द्विमुखी दीपक जलाएं। दीपक जलाते समय धनहानि से बचाव की कामना करें जब दीपक बुझ जाए तो उसे होली की अग्नि में डाल दें यह क्रिया श्रद्धापूर्वक करें, धन हानि से बचाव होगा

दुर्घटना से बचाव के लिये
  • होलिका दहन से पूर्व पांच काली गुंजा लेकर होली की पांच परिक्रमा लगाकर अंत में होलिका की ओर पीठ करके पाँचों गुन्जाओं को सिर के ऊपर से पांच बार उतारकर सिर के ऊपर से होली में फेंक दें
  • होली के दिन प्रातः उठते ही किसी ऐसे व्यक्ति से कोई वास्तु न लें, जिससे आप द्वेष रखते हों सिर ढक कर रखें किसी को भी अपना पहना वस्त्र या रूमाल नहीं दें इसके अतिरिक्त इस दिन शत्रु या विरोधी से पान, इलायची, लौंग आदि न लें ये सारे उपाय सावधानी पूर्वक करें, दुर्घटना से बचाव होगा

आत्मरक्षा हेतु 
  • किसी को कष्ट न पहुंचाएं, किसी का बुरा न करें और न सोचें। आपकी रक्षा होगी।
  • घर के प्रत्येक सदस्य को होलिका दहन में घी में भिगोई हुई दो लौंग, एक बताशा और एक पान का पत्ता अवश्य चढ़ाना चाहिए। होली की ग्यारह परिक्रमा करते हुए होली में सूखे नारियल की आहुति देनी चाहिए।. इससे सुख-सम्रद्धि बढ़ती है, कष्ट दूर होते हैं।

अनबन दूर करने के लिये 
  • होली के दिन 5-5 रत्ती के 5 मोतियों का ब्रेसलेट पहनें। इसके अतिरिक्त हर पूर्णिमा को चांदी के पात्र में कच्चा दूध डालकर चन्द्रमा को अर्ध्य दें, पति-पत्नी की आपसी संबंधों में मधुरता आयेगी।

मतभेद दूर करने के लिये 
  • पुत्र की पिता से न बनती हो तो अमावस्या, चतुर्दर्शीय या ग्रहण के दिन पुत्र पिता के जूतों से पुराने मोज़े निकाल कर उनमें नए मोज़े रख दे, दोनों के बीच चल रहा वैमनस्य दूर हो जाएगा।

रिश्तों की बीमारियाँ रिश्तों के टानिक



"आज जहाँ एक ओर दुनिया सिमट रही है, वहीं दूसरी ओर रिश्ते और परिवार टूट रहे हैं. एक-दूसरे के प्रति हमारी संवेदनाएं कम होती जा रही हैं. हमारी व्यवस्तएं, हमारे अवसादों की छाया हमारे रिश्तों पर दिखने लगी है. नतीजतन रिश्ते अपना औचित्य, अपनी गरिमा खोते जा रहे हैं. इन सबके बीच हम यह भू जाते हैं कि स्वास्थ्य रिश्ते एक परिपक्व समाज की दरकार हैं, इसलिए सबसे जरूरी यह है कि हम यह जाने कि हमारे रिश्ते किन बीमारियों से जूझ रहे हैं यानी वे कौन-सी भावनात्मक बीमारियाँ हैं, जो रिश्तों को खोखला कर रही हैं. साथ ही रिश्तों से जुड़े उन पहलुओं के बारे में भी जानें, जो रिश्तों की इन बीमारियों को दूर करने में टानिक का काम करती हैं."


रिश्तों की बीमारियाँ
शक और अविश्वास - जी हाँ, रिश्ते की सबसे बड़ी व भयंकर बीमारी है शक, किसी भी रिश्ते में खासकर पति-पत्नी के रिश्ते में अगर शक पनपने लगे, तो समझ लीजिये कि आपके रिश्ते को आई.सी.यू. की जरूरत है. शक या संशय के साथ किसी भी रिश्ते को ज्यादा दिनों तक नहीं निभाया जा सकता. आप जिस व्यक्ति या रिश्ते पर शक कर रहे हैं, उससे आप कभी प्रेम या जुड़ाव नहीं कर पायेंगे.

यदि आप किसी रिश्ते से बंधे हैं, तो आपको चाहिए कि उसे पूरे दिल से स्वीकार करें. यदि आपको किसी पर अविश्वास है, तो इसका मतलब है कि आपके रिश्ते में खटास है और उस रिश्ते को आपने पूरी तरह से स्वीकार नहीं किया है. अविश्वास किसी भी रिश्ते के लिये घातक है. फिर चाहे बात माँ बेटी की हो, सास-बहू की या फिर ननद-भाभी की.

द्वेष या जलन- किसी से द्वेष या जलन की भावना जहाँ एक ओर आपको आपके प्रियजनों से दूर करती है, वहीं दूसरी ओर आपके व्यक्तित्व को भी खराब करती है. किसी से द्वेष या जलन की भावना बीमारी होने से ज्यादा बुरी है. यह आदत आपके किसी एक रिश्ते को नहीं, बल्कि सारे रिशों को बीमार कर सकती है. आप किसी एक से जलना शुरू करेंगे और फिर धीरे-धीरे आप हर किसी से जलने लगेंगे.

बेवफाई- किसी भी रिश्ते में बेवफाई या बेईमानी उस रिश्ते की जड़ों को ही खोखला कर देती है. किसी के विश्वास और प्रेम को ठेस पहुंचाकर कोई रिश्ता नहीं निभाया जा सकता.

क्रोध- क्रोध रिश्तों की उम्र को कम करता है. क्रोध से रिश्तों में दूरियां आती हैं. क्रोधित व्यक्ति अक्सर गुस्से में रिश्तों की मान-मर्यादाओं को भूल जाता है.

अभिमान या ईगो- हमेशा याद रखें कि आत्मसम्मान और ईगो दो अलग-अलग चीजें हैं, इसलिए रिश्ते निभाने में किसी भी जिम्मेदारी को ईगो या झूठी प्रतिष्ठा से न जोड़ें, जैसे- "हमेशा मैं ही क्यों फोन करूं, वह क्यों नहीं फोन करता या करती."
"हमेशा मैं ही क्यों माफी मांगू." आदि.

उपेक्षाएं- रिश्तों में उपेक्षाओं का होना स्वाभाविक है और रिश्ते को ज़िंदा रखने के लिये कुछ हद तक ये जरूरी भी है. लेकिन उपेक्षाएं जब हद से ज्यादा बढ़ जाएं तो यह किसी बीमारी से कम नहीं. उपेक्षाओं का बोझ बढ़ने से रिश्ते दम तोड़ देते हैं.

रिश्तों के टानिक
प्रेम-जिस रिश्ते में निस्वार्थ व निश्चल प्रेम है, उस रिश्ते को किसी और टंकी की जरूरत ही नहीं. जिस रिश्ते में प्रेम है, उस रिश्ते की उम्र अपने आप बढ़ जाती है. प्रेम हर रिश्ते को खुशनुमा व तरोताजा बनाए रखता है.

समय- रिश्तों को समय देना बहुत जरोर्री है. आप अपने रिश्तों को कितना समय देते हैं, उससे यह तय होता है कि वह रिश्ता आपके लिये कितना मायने रखता है. एक-दूसरे के साथ, परिवार के साथ समय बिताने से रिश्तों में प्रेम व विश्वास बढ़ता है.

विश्वास- एक समृद्ध रिश्ते के लिये आपसी विश्वास होना बेहद जरूरी है. विश्वास दोनों तरफ से होना चाहिए. रिश्तों में विश्वास होने का मातब है कि आपका कोई भी रिश्ता फल-फू रहा है.

संयम- रिश्तों को कभी-कभी विषम परिस्थितियों से भी गुजरना पड़ता है, ऐसे में संयम बरतें. यदि कोई एक अपना विवेक खोता भी है, तो दूसरा अपना संयम बनाए रखे, ताकि आपके रिश्ते में दरार न पड़े.

समझदारी- किसी भी रिश्ते को निभाने के लिये परिपक्व विचारों की आवश्यकता होती है. एक-दूसरे की भावनाओं और परिस्थितियों को समझने की कोशिश करें. हर साझेदारी को पूरी समझदारी से निभाएं. इस तरह रिश्ते की हर छोटी-मोटी समस्या को आप समझदारी से सुलझा सकते हैं.

स्पेस- कुछ समय पहले तक शायद इस टानिक की जरूरत रिश्तों को नहीं थी, पर आज के बदलते परिवेश में इसकी जरूरत हर रिश्ते में हैं. हर रिश्ते में एक-दूसरे के स्पेस का हमें आदर करना चाहिए. एक-दूसरे के मामलों में ज्यादा हस्तक्षेप न करें. आज हर किसी को खुद के लिये कुछ स्पेस की जरूरत है और इसमें कुछ गलत नहीं है. आप अपने रिश्ते को जितनी स्पेस देंगे, उतनी ही उनमें घुटन कम होगी.

इन सबसे ज्यादा जरूरी है कि आप में किसी रिश्ते को निभाने की दृढ इच्छाशक्ति होनी चाहिए, ताकि आप उन रिश्तों को पूरी ईमानदारी से निभाने का प्रत्यन कर सकें. आप जिनके साथ रिश्ता बाँट रहे हैं, उनका आदर, उनकी भावनाओं का आदर, उनके व्यक्तित्व का आदर करें. किसी भी रिश्ते को टूटने न दें, क्योंकि हर रिश्ता अनमोल है.

06 फ़रवरी 2011

आंकड़ों की सच्चाई जानिये

Corporate World में Statistics का उपयोग अत्याधिक है. Smart Manager अपने सुन्दर  Laptop के साथ मीटिंगों में आते हैं और उनकी Screen पर Statistical Charts के माध्यम से अपने डिपार्टमेंट के रिजल्ट्स समझाते हैं.

इसी तरह के प्रत्येक सरकार भी Statistical आंकड़ों के मकडजाल के माध्यम से अपनी Performance जनता के सामने पेश करती है.

हमें बहुत सावधानीपूर्वक इन आकड़ों को स्वीकार करना चाहिए. यदि आप कुछ Simple Tips का इस्तेमाल करें, तो आंकड़ों के पीछे छिपी सच्चाई एकदम से उजागर हो जायेगी. उदहारण के लिये एक कंपनी के मार्केटिंग मैनेजर ने अपने मैनेजिंग डायरेक्टर को सूचित किया कि वर्तमान वर्ष में उनकी कंपनी के उत्पादों की बिक्री पिछले वर्ष के मुकाबले 20 प्रतिशत से बढी है. यह सब कुछ उसका एवं उसकी टीम के कठिन श्रम का नतीजा है. लिहाजा कंपनी को इस परिणाम को लेकर Celebrate करना चाहिए.

यदि आप Corporate World के सधे हुए खिलाड़ी हैं, तो उपरोक्त आंकड़ों को ध्यान से Analyse करें. अपने मैनेजर को शाबाशी देने से पहले यह पूछे कि सम्पूर्ण Industry की Growth क्या है. यानी के अपनी कंपनी और बाजार में मौजूद इसी तरह के उत्पाद बनने वाली कम्पनीयों की बिक्री को जोड़ लिया जाए. तो पिछले वर्ष के मुकाबले इस सम्पूर्ण Industry की Sales में कितनी वृद्धी हुई है. यदि यह वृद्धी 75 प्रतिशत है, तो आपकी कंपनी के लिये यह चिंता का विषय है कि आपकी कंपनी की प्रतिशत वृद्धी मात्रा 20 प्रतिशत क्यों है. इसका दूसरा सीधा सा मतलब यह भी निकलता है कि आपकी प्रतिद्वंदी कंपनी की बिक्री आपके मुकाबले अधिक तेजी से बढी है. जिसके परिणामस्वरूप आपकी कंपनी का मार्केट शेयर काफी कम हो गया है.

ऐसी स्थिति में तो आपकी कंपनी को Celebrate न करके, मैनेजर को Punish करना चाहिए.

इसी तरह से यदि आपको सूचना मिले कि पिछले वर्ष के मुकाबले आपकी कंपनी की Sales कम हो गई है, तो आपको फ़ौरन यह देखना चाहिए कि सम्पूर्ण Industry की Sales कितनी कम हुई है. यदि Industry की Sales अधिक गति या प्रतिशत से कम हुई है, तो आपको मैनेजर को शाबासी देनी चाहिए कि उसके प्रयासों से कंपनी की बिक्री में कम गिरावट आई है.

याद रहे......                                                                                                                        
जब सबको फायदा हो रहा है, तो मेरा फायदा सबसे अधिक होना चाहिए. और यदि सबको नुकसान हो रहा है, तो मेरा नुकसान सबसे कम होना चाहिए.