30 मार्च 2010

बबूल तालाब की पिशाचिनी


कमला के ससुराल आये एक हफ़्ता भी पूरा नहीं हुआ, पर वह जान गयी कि उसका पति रमेश अव्वल दर्जे का सुस्त है। खेती बाड़ी का काम साठ साल के ससुर माधव ही संभालते हैं।

रमेश देरी से जागता है, खाना खा लेता है और गाँव में इधर-उधर मटरगस्ती करने के बाद अंधेरा हो जाने पर खाना खाकर सो जाता हैं।

रमेश की यह दिनचर्या कमला से सही नहीं गयी तो उसने एक दिन पति से कहा, ‘‘ससुरजी बूढ़े हो गये हैं। तुम क्यों न खेती-बाडी का काम संभालो और उन्हें आराम करने दो।''

उसकी इस सलाह पर रमेश ठठाकर हँस पड़ा और कहा, ‘‘तुम्हारे आने के बाद रसोई का काम उन्हें करना नहीं पड़ रहा है। अब वे आराम ही आराम कर रहे हैं।''

कमला को लगा कि पति से कहने से कोई फ़ायदा नहीं होगा तो उसने सबेरे-सबेरे खेत जाने निकले ससुर से कहा, ‘‘अपने बेटे को भी अपने साथ ले जाइये। कब तक आप अकेले ही काम करते रहेंगे?''

माधव ने हँसते हुए कहा, ‘‘उसके बचपन में ही उसकी माँ मर गयी, तब से मैंने उसे बड़े लाड़-प्यार से पाला-पोसा। उससे खेती का काम कराना मुझे अच्छा नहीं लगता। उसे आराम से सोने दो।'' कह कर वह खेत चला गया।

उसी दिन शाम को साँप काटने से माधव की मृत्यु हो गई। इसके एक हफ़्ते के बाद भी रमेश की दिनचर्या में कोई परिवर्तन नहीं हुआ।

एक दिन खाना परोसती हुई कमला ने रमेश से कहा, ‘‘अब भी खेती-बाडी का काम तुम नहीं संभालोगे तो कैसे काम चलेगा? बीज बोने का काम भी शुरू हो चुका है।''

‘‘देखो, आगे से खेती के कामों के बारे में कुछ मत बताना।'' चिढ़ते हुए रमेश ने कहा।

‘‘तो कैसे घर चलेगा? तुम्हें अवश्य ही बदलना होगा,'' कमला ने कहा।
‘‘मै बदलनेवाला नहीं हूँ। वे सारे काम खुद संभालो।'' यों कहकर खाना खा लेने के बाद वह गाँव में घूमने चला गया।

कमला भौचक्की रह गयी। खूब सोचती रही, पर उसकी समझ में नहीं आया कि पति में परिवर्तन कैसे लाया जाए। इस सोच में रात का खाना पकाना भी भूल गयी। अंधेरा हो जाने के बाद घर में क़दम रखते ही रमेश कहने लगा, ‘‘पेट में चूहे दौड़ रहे हैं। तुरंत खाना लगाना।''

कमला ने क्रोध-भरे स्वर में कहा, ‘‘तुम खेती-बाडी के काम संभालने से साफ़ इनकार कर रहे हो। मैंने रसोई नहीं पकायी। खेती-बाडी के काम करोगे, तभी खाने को मिलेगा।''

रमेश गुस्से से उसे देखता रहा और थोडी देर बाद घर से चला गया। उसे मालूम ही नहीं हो रहा था कि अंधेरे में वह कहाँ और किस तरफ़ चला जा रहा है।

आखिर वह जंगल से सटे बबूल तालाब के पास आया। तालाब के बाँध पर बबूल के पेड़ बहुत बड़ी संख्या में थे, इसलिए उसका नाम बबूल तालाब पड़ा। बाँध पर कहीं-कहीं जटाओंवाले बरगद के भी वृक्ष थे।

‘‘थोड़ी-बहुत मेरा भी उपजाऊ खेत है। फिर भी रात को कुछ खाये बिना गाँव के बाहर घूमना पड़ रहा है। यह भी कोई ज़िन्दगी है,'' यों अपने आप को धिक्कारते हुए वह आगे बढ़ता जाने लगा। अचानक उस अंधेरे में वह एक पेड़ से टकरा कर तालाब में जा गिरा।

पर, दूसरे ही क्षण बरगद की एक जटा उसके हाथ लगी। उसकी मदद लेकर वह बाँध पर पहुँच गया। इतने में एक पिशाचिनी ने उससे पूछा,‘‘क्यों मरने पर तुले हुए हो? अगर मैं जटा का सहारा तुम तक नहीं पहुँचाती तो अब तक मर चुके होते।''

पिशाचिनी को देखकर पहले रमेश डर गया पर उसकी बातों ने उसमें धैर्य भर दिया। वह सोचने लगा कि क्या जवाब दूँ, कि इतने में पिशाचिनी ने कहा, ‘‘मैं यहाँ बैठी-बैठी भगवान से प्रार्थना कर रही हूँ कि कोई अच्छा काम करके पुण्य कमाऊँ और परलोक सिधारूँ। तुम्हारे कारण मेरी प्रार्थना में रुकावट पैदा हो गयी।''

पिशाचिनी की बातों को सुनकर रमेश को लगा कि यह कोई धार्मिक पिशाचिनी है। उसने जान-बूझकर दुख-भरे स्वर में कहा, ‘‘मुझे बचाकर तुमने बड़ा पुण्य किया। मेरे पास एक कौड़ी भी नहीं है। भला मैं अपनी पत्नी का पालन-पोषण कैसे कर पाऊँगा।'' फिर उसने नाटक किया, मानों आत्महत्या करने के लिए वह फिर से तालाब में गिरनेवाला हो।

‘‘ऐसा मत करो। ठहरो'' कहती हुई पिशाचिनी पेड़ पर उड़ी और एक गठरी लाकर रमेश को दी।

‘‘इस धन से आराम से ज़िन्दगी काटूँगा। हम सब लोग तुम्हारे लिए प्रार्थना करते रहेंगे।'' यों कहकर खुशी से रमेश घर की ओर निकला।

घर पहुँचते ही रमेश ने धन राशि की गठरी कमला के सामने फेंक दी और कहा, ‘‘चाहूँ तो क्षण भर में धन कमा सकता हूँ। यह कोई चोरी का माल नहीं है। समझ गयी?'' उसने कहा।

कमला बेहद खुश हुई। पर दूसरे ही दिन रमेश थोड़ी रक़म ले गया और जुए में हार गया।

जब वह घर लौटा तो कमला ने कड़े स्वर में पूछा, ‘‘यों खर्च करते रहोगे तो कैसे घर चलेगा? खेती करने का मन नहीं है तो कोई छोटा-सा व्यापार शुरू कर दो।'' कमला ने सलाह दी।

‘‘कोई सलाह देने लगे तो मैं बहुत नाराज़ हो जाता हूँ। आगे से ऐसा न करना,'' रमेश ने कमला को सावधान करते हुए कहा।

एक महीना पूरा भी नहीं हुआ, पिशाचिनी की दी रक़म खर्च कर दी। रमेश फिर से उस रात को बबूल तालाब गया और तालाब में कूद पड़ने का नाटक करके पिशाचिनी की दी रक़म लेकर घर लौटा। धन सहित लौटे पति को देखकर कमला स्तंभित रह गयी।

रमेश की आदतें दिन व दिन बढ़ती ही गयीं। इस बार बीस दिनों में ही पूरी रक़म खर्च कर दी। यह सोच कर कि पति को डाँटने से कुछ नहीं होगा, उसने धीमे स्वर में शिकायत की, ‘‘घर में फूटी कौड़ी भी नहीं है। क्या करें?''

उस रात को फिर से वह बबूल तालाब जाने निकला। कमला ने निश्चय कर लिया कि इस बार उसके पीछे-पीछे जाकर पता लगाऊँगी कि वह धन कहाँ से लाता है। वह एक पेड़ के पीछे छिप कर देखती रही कि रमेश ने पिशाचिनी से कैसे धन प्राप्त किया।


रमेश जैसे ही बाँध पर से उतरा, कमला ने भी तालाब में कूद पड़ने का नाटक किया। पिशाचिनी ने उसे तुरंत रोकते हुए कहा, ‘‘ठहरो, तुम पर ऐसी क्या विपत्ति आन पड़ी, जिसके कारण तुम मर जाना चाहती हो?''

‘‘मेरी विपत्ति की जड़ तुम हो।'' कमला ने कहा। ‘‘मैं तुम्हारी विपत्ति की जड़ हूँ? आख़िर मैंने ऐसा क्या दिया?''

पिशाचिनी ने आश्चर्य प्रकट करते हुए पूछा। ‘‘तुम्हारी वजह से मेरा पति एकदम सुस्त बन गया। व्यसन जो हैं, वे तो हैं ही, साथ ही नये व्यसनों का भी आदी हो गया। अयोग्यों को सहायता पहुँचाने से बढ़कर कोई पाप नहीं होता। क्या तुम इतना भी नहीं जानती हो?'' कमला ने तीव्र स्वर में कहा।

‘‘मैं तो समझ रही थी कि इस बेचारे की सहायता करती हुई पुण्य कमा रही हूँ। पर अब जान गयी कि मुझसे पाप हुआ है। तुम्हीं बताओ अपने इस पाप का प्रायश्चित्त कैसे करूँ?'' पिशाचिनी ने दीन स्वर में पूछा।

तब कमला ने पिशाचिनी को समझाया कि उसका पति तालाब में कूद कर मरने का नाटक कर रहा था। यह भी समझाया कि इस बार वह फिर से आये तो उसे क्या करना चाहिये।

इस बार रमेश ने पंद्रह दिनों के अंदर ही पिशाचिनी की दी रक़म खर्च कर डाली और उस रात को फिर से बबूल तालाब में कूदकर मरने का नाटक यथावत् किया।

पिशाचिनी किकियाती हुई हँस पड़ी और बोली, ‘‘तुम अव्वल दर्जे के सुस्त हो। पत्नी की मेहनत पर जीनेवाले महापापी हो। पानी में डूबकर मरने का नाटक करनेवाले तुम जैसे की रक्षा मैं नहीं, यह पेड़ ही करेगा। तुम भी पिशाच बनकर इसी पेड़ में निवास करोगे।'' कहती हुई वह अंधकार में विलीन हो गयी।

पिशाचिनी की बातें सुन कर रमेश भय से काँप उठा। दूसरे दिन सबेरे-सबेरे अपने पति को खेती के काम पर जाते हुए देख कर कमला बहुत प्रसन्न हुई और बबूल तालाब की पिशाचिनी के प्रति उसने मन ही मन कृतज्ञता प्रकट की।