स्वामी ज्ञानानंद जी महाराज का जन्म भाद्रपद कृष्ण अष्ट्मी संवत 1902 को अर्धरात्रि में वृष लग्न में उत्तर प्रदेश के मेरठ नामक नगर में हुआ था। इनके पिता श्री मधुसूदन मुखर्जी हुगली जिले से आकर मेरठ में बसे थे। व्यवसाय का संचालन करते थे, किन्तु रहन- सहन राजसी था। स्वामी जी महाराज अपने माता- पिता की आठवी संतान थे, जिनका शरीर हष्ट- पुष्ट गौर्वती, महोहर और मोहक होने पर भी अत्यंत कोमल और सुकुमार था, आठ वर्ष की अवस्था में ही इनका यज्ञोपवीत संस्कार हुआ, इच्छा न होने पर भी माता के विशेष आग्रह पर गृहस्थ जीवन स्वीकार किया और पर्याप्त समय तक इसका निर्वाह भी किया।
ये सरल चित, दयालु, क्रियाविधिग्य, संगीत काव्य, बागवानी के भी प्रेमी थे। इन्होने प्रारंभिक अवस्था में ही संस्कृत, हिंदी, बांगला तथा अंग्रेगी लिखने -पढने का अच्छा अभ्यास कर लिया था।
श्री ज्ञानानंद जी बचपन एवं गृहस्थ जीवन का नाम श्री यज्ञेश्वर मुखर्जी था और अपने बंगले में ही आश्रम बनाकर साधना और तत्त्व चिंतन किया करते थे, किन्तु संन्यास ग्रहण करने के लिये इन्होने परमहंस परिव्राजकाचार्य श्री 108 स्वामी केशवानंद जी महाराज से दीक्षा ग्रहण की जो तांत्रिक सदना तथा क्रिया सिद्वांश में पूर्ण पारंगत थे। दीक्षा ग्रहण के बाद आपने आबू पर्वत पर जाकर तपस्या की, वहां वशिष्ठ आश्रम में तपस्या कर लौटने के बाद किशनगढ में प्रथम यज्ञ, मथुरापुरी में सनातन धर्म के उद्दार और विस्तार में निगमागम मंडली की स्थापना की।
देश के धार्मिक संगठनों को परस्पर संगठित करने के उद्येश्य से स्वामी जी मथुरा में ही चैत्र कृष्ण 4 शुक्रवार संवत 1958 ता. 28 मार्च 1902 को श्री भारत धर्म महामंडल के नाम से एक संस्था को स्थापना की और दरभंगा नारेह्स इसके अध्यक्ष बनाए गए। अपनी स्थापना काल से अब तक के सौ वर्षों में श्री भारत धर्म महामंडल ने लगभग पचास वर्षों तक स्वामी जी के निर्देशन में ही कार्य किया।
स्वामी जी महाराज ने अपने जीवन काल में सनातन धर्म के उत्थान के लिये देश के अनेक धार्मिक संगठनों को संगठित किया, धर्म के कल्पद्रुम, धर्म विज्ञानं, मीमांसा शास्त्र, गुरुगीता, संयासगीता आदि पुस्तकों तथा अनेक पत्र-पत्रिकाओं का समय-समय पर सम्पादन एवं प्रकाश किया। संस्कृत, अंग्रेजी, बंगला आदि भाषाओं में लगभग 200 ग्रंथों का प्रणयन किया। देश के विभिन्न भागों में सम्मलेन आयोजित किया। शंकराचार्य द्वारा स्थापित बदरीक आश्रम, ज्योतिश्माथ तथा चित्तौरगढ का पुनरुत्थान, धर्मालय संस्थान, धर्म प्रचारक निर्माण, गौवंश की रक्षा, महिला शिक्षा में स्वामी कि के कार्य सदैव स्मरण किये जायेंगे।
मथुरा से महामंडल कार्यालय स्वामी जी काशी लाये और यहाँ से ही अपना कार्य सञ्चालन किया। काशी हिन्दू विश्विद्यालय, काशी जीवदय विस्तारणी गौशाला, आर्य महिला महाविद्यालय गायत्री मन्दिर कि स्थापना में इनका योगदान था। स्वामी जी के शिष्यों में खैरोगढ कि महारानी सुरथ कुमारी और श्रीमती विवा देवी का नाम मुख्या रूप से आता है। श्री स्वामी दयानंद प्रमुख शिष्य तथा फलेह सिंह (उदैपुर) , महाराज रामेषर सिंह इनके सुभ्चिन्तकों में थे। विरोधियों ने समय-समय पर अपप्रचार भी क्या किन्तु शक्ति साधक स्वामी द्वारा स्त्रियों को भी दीक्षा देना साधना के अनुरूप ही था। 105 वर्ष कि अवस्था में काशी में ही माघ कृष्ण चतुर्थी संवत 2007 विक्रमी को इस महापुरुष के परमधाम गमन से सनातन धर्म की अपारक्षति हुई। स्वामी जी में श्रीकृष्ण की कर्मठता, और शंकराचार्य की विद्वता तथा महर्षि व्यास की सम्पादन क्षमता का अद्भुद समन्वय था। इन्होने दक्षिणा, साहित्य प्रचार से जो कुछ भी पाया, सब धर्म में ही व्यय किया। महामाया ट्रस्ट, विश्वेश्वर ट्रस्ट इनकी इसी निसप्रहता के परिणाम हैं। कबीर की तरह इन्होने 'ज्यों की त्यों घर दीन्ह चदरिया' को आजीवन सार्थक किया।
20 फ़रवरी 2010
युग पुरुष स्वामी ज्ञानानंद
Labels: संत महापुरुष
Posted by Udit bhargava at 2/20/2010 06:12:00 pm 0 comments
Hindi Novel - Elove -ch-30 डोन्ट वरी... वुई हॅव अ सोल्यूशन
वर्सोवा बिचपर अंजली विवेककी राह देख रही थी और उधर बडे बडे पत्थरोंके पिछे छुपकर अतूल और अलेक्स अपने अपने कॅमेरे उसपर केंद्रीत कर विवकके आनेकी राह देखने लगे। थोडी देरमें विवेकभी आ गया, विवेक और अंजलीमें कुछ संवाद हुवा, जो उन्हे सुनाई नही दे रहा था लेकिन उनके कॅमेरे अब उनके एक के पिछे एक फोटो खिचने लगे। थोडीही देरमें विवेक और अंजली एकदुसरेके हाथमें हाथ डालकर बिचपर चलने लगे। इधर अतूल और अलेक्सभी पत्थरोके पिछेसे आगे आगे खिसकते हूए उनके फोटो ले रहे थे।
अंधेरा छाने लगा था और एक लमहेमें उनमें क्या संवाद हुवा क्या पता?, विवेकने अंजलीको कसकर अपने बाहोंमें खिंच लिया। इधर अतूल और अलेक्सकी फोटो निकालनेकी रफ्तार तेज हो गई थी। फिरभी वे संतुष्ट नही थे। क्योंकी उन्हे जो चाहिए था वह अबभी नही मिला था।
अंजलीकी कार जब ओबेराय हॉटेलके सामने आकर रुकी। उसके कारका पिछा कर रही अतूल और अलेक्सकी टॅक्सीभी एक सुरक्षीत अंतर रखकर रुक गई। अंजली गाडीसे उतरकर हॉटेलमें जाने लगी और उसके पिछे विवेकभी जा रहा था, तब अतूलने अलेक्सकी तरफ एक अर्थपुर्ण नजरसे देखा और वे दोनोभी उनके खयालमें नही आए इसका ध्यान रखते हूए उनका पिछा करने लगे।
अब अंजली और विवेक हॉटेलके रुममें पहूंच गए थे और रुमका दरवाजा बंद हो गया था। उनका पिछा कर रहे अतूल और अलेक्स अब जल्दी करते हूए उनके रुमके दरवाजेके पास आगए। अलेक्सने दरवाजा धकेलकर देखा। वह अंदरसे बंद था।
'' अब क्या हम यहां उनकी पहरेदारी करनेवाले है ?'' अलेक्सने चिढकर लेकिन धीमे स्वरमें कहा।
'' डोन्ट वरी... वुई हॅव अ सोल्यूशन '' अतूलने उसका हौसला बढाते हूए कहा।
अलेक्स दरवाजेके कीहोलसे अंदर हॉटेलके रुममें देख रहा था ...
अंदर फोन उठाते हूए अंजलीके हाथका हल्कासा स्पर्ष विवेकको हुवा। बादमें फोनका नंबर डायल करनेके लिए उसने दुसरा हाथ सामने किया. इसबार उस हाथकाभी विवेकको स्पर्ष हुवा. इसबार विवेक अपने आपको रोक नही सका. उसने अंजलीका फोन डायल करनेके लिए सामने किया हाथ हल्केसे अपने हाथमें लिया. अंजली उसकी तरफ देखकर शर्माकर मुस्कुराई. उसने अब वह हाथ कसकर पकडकर खिंचकर उसे अपने आगोशमें लिया था. सबकुछ कैसे तेजीसे हो रहा था. उसके होंठ अब थरथराने लगे थे. विवेकने अपने गरम और अधीर हूए होंठ उसके थरथराते होंठपर रख दिए और उसे झटसे अपने मजबुत आगोशमें लेकर, उठाकर, बाजुमें रखे बेडपर लिटा दिया ....
अलेक्स अंदर कीहोलसे इतनी देरसे अंदर क्या देख रहा है? ... और वहभी कुछ शिकायत ना करते हूए। अतूलको आशंका हूई. उसने अलेक्सका सर कीहोल से बाजू हटाया. और वह अब खुद अंदर देखने लगा ...
अंदर अंजलीके शरीर पर विवेक झुक गया था और वह उसके गलेको चुम रहा था मानो उसके कानमें कुछ कह रहा हो। धीरे धीरे उसका मजबुत मर्दानी हाथ उसके नाजूक अंगोसे खेलने लगा. और प्रतिक्रियाके रुपमें वहभी किसी लताकी तरह उसे चिपककर सहला रही थी. हकसे अब वह उसके शरीरसे एक एक कर कपडे निकालने लगा और वहभी उसके शरीरसे कपडे निकालने लगी....
अलेक्सने अतूलकी उसका सर कीहोलसे बाजू होगा इसकी थोडी देर राह देखी। लेकिन वह वहांसे हटनेके लिए तैयार नही था. तब अलेक्सने जबरदस्ती उसका सर कीहोलसे बाजु हटाया और वह उसे बोला, '' मेर भाई यह देखनेसे अपना पेट भरनेवाला नही है ... थोडा अपने पेट पानीका भी सोचो ''
अंदरका दृष्य देखनेमें लिन हूवा अतूल अब कहा होशमें आ गया।
'' लेकिन अब उनके फोटो तूम कैसे निकालनेवाले हो ?'' अलेक्सने कामका सवाल पुछ लिया।
'' डोन्ट वरी वुई आर इक्वीपड विथ टेक्नॉलॉजी।'' अलेक्सने उसे दिलासा दिया और उसने अपने जेबसे एक वायरजैसी चिज निकालकर उसका एक सिरा अपने कॅमेरेसे जोडा और दुसरा सिरा दरवाजेके कीहोलसे अंदर डाला।
'' यह क्या है ... पता है ?'' अलेक्सने पुछा।
'' दिस इज स्पेशल कॅमेरा माय डियर'' अतूलने कहा और वह उस स्पेशल कॅमेरेसे हॉटेलके रुमके अंदरके सारे फोटो निकालने लगा।
Posted by Udit bhargava at 2/20/2010 05:04:00 pm 0 comments
Hindi katha - ENovel - CH-29 यू आर जिनियस
लगभग आधी रात हो गई थी। अतूलके कमरेका लाईट बंद था। लेकिन फिरभी कमरेमें चारो तरफ धुंधली रोशनी फैल गई थी- कमरेमें, कोनेमें चल रहे कॉम्प्यूटरके मॉनिटरकी वजहसे। अतूल कॉम्प्यूटरपर कुछ करनेमें बहुत लीन था। उसके आसपास सब तरफ खानेकी, नाश्तेकी प्लेट्स, चायके खाली, आधे भरे हूए कप्स, चिप्स, खाली हो चुके व्हिस्किके ग्लासेस और आधीसे जादा खाली हो चुकी व्हिस्किकी बॉटल दिख रही थी। उसके पिछे कॉटपर हाथपैर फैलाकर अलेक्स सोया हुवा था। उस आधी रातके सन्नाटेमें अतूल तेजीसे कॉम्प्यूटरपर कुछ कर रहा था और उसके किबोर्डके बटन्सका एक अजिब आवाज उस कमरेमें आ रहा था। उधर अतूलके पिछे सो रहे अलेक्सका बेचैनीसे करवटपे करवट बदलना जारी था।
आखिर अपने आपको ना रोक पाकर अलेक्स उठकर बैठते हूए अतूलसे बोला, '' यार तेरा यह क्या चल रहा है? ... 8 दिनसे देख रहा हूं ... दिनभर किचकिच... रातकोभी किचकिच... कभीतो शांतीसे सोने दे... तेरे इस साले किबोर्डके आवाजसे तो मेरा दिमाग पागल होनेकी नौबत आई है ...''
अतूल एकदम शांत और चूप था। कुछभी प्रतिक्रिया ना व्यक्त करते हूए उसका अपना कॉम्प्यूटरपर काम करना जारी था।
''अच्छा तुम क्या कर रहे हो यह तो बताएगा ? ... आठ दिनसे तेरा ऐसा कौनसा काम चल रहा है ?... मेरी तो कुछ समझमें नही आ रहा है ...'' अलेक्स उठकर उसके पास आते हूए बोला।
'' विवेक और अंजलीका पासवर्ड ब्रेक कर रहा हूं .... अंजलीका ब्रेक हो चुका है अब विवेकका ब्रेक करनेकी कोशीश कर रहा हूं '' अतूल उसकी तरफ ना देखते हूए कॉम्प्यूटरपर अपना काम वैसाही शुरु रखते हूए बोला....
'' उधर तु पासवर्ड ब्रेक कर रहा है और इधर तेरे इस किबोर्डके किचकीचसे मेरा सर ब्रेक होनेकी नौबत आई है उसका क्या ?'' अलेक्स फिरसे बेडपर जाकर सोनेकी कोशीश करते हूए बोला।
किसका पासवर्ड ब्रेक हूवा और किसका ब्रेक होनेका रहा इससे उसे कुछ लेना देना नही था। उसे तो सिर्फ पैसेसे मतलब था। अलेक्सने अपने सरपर चादर ओढ ली, फिरभी आवाज आ ही रहा था, फिर तकिया कानपर रखकर देखा, फिरभी आवाज आ ही रहा था, आखीर उसने तकीया एक कोनेमें फाडा और उसमेंसे थोडी रुई निकालकर अपने दोनो कानोंमे ठूंस दी और फिरसे सोनेकी कोशीश करने लगा।
अब लगभग सुबहके तिन बजे होंगे, फिरभी अतूलका कॉम्प्यूटरपर काम करना जारीही था। उसके पिछे बेडपर पडा हूवा अलेक्स गहरी निंदमें सोया दिख रहा था।
तभी कॉम्प्यूटरपर काम करते करते अतूल खुशीके मारे एकदम उठकर खडा होते हूए चिल्लाया, '' यस... या हू... आय हॅव डन इट''
वह इतनी जोरसे चिल्लाया की बेडवर सोया हूवा अलेक्स डरके मारे जाग गया और चौककर उठते हूए घबराए स्वरमें इधर उधर देखते हूए अतूलसे पुछने लगा, '' क्या हूवा ? क्या हूवा ? ''
'' कम ऑन चियर्स अलेक्स... हमें अब खजानेकी चाबी मिल चुकी है ... देख इधर तो देख ...'' अतूल अलेक्सका हाथ पकडकर उसे कॉम्प्यूटरकी तरफ खिंचकर ले जाते हूए बोला।
अलेक्स जबरदस्तीही उसके साथ आगया। और मॉनिटरपर देखने लगा।
'' यह देखो मैने विवेकका पासवर्डभी ब्रेक किया है और यह देख उसने भेजी हूई मेल '' अतूल अलेक्सका ध्यान मॉनिटरपर विवेकके मेलबॉक्ससे खोले हूए एक मेलकी तरफ आकर्षीत करते हूए बोला।
मॉनिटरपर खोले मेलमें लिखा हूवा था -
'' विवेक ... 25 को सुबह बारा बजे एक मिटींगके सिलसिलेमें मै मुंबई आ रही हूं ... 12।30 बजे हॉटेल ओबेराय पहूचूंगी ... और फिर फ्रेश वगैरे होकर 1.00 बजे मिटींग अटेंड करुंगी ... मिटींग 3-4 बजेतक खत्म हो जाएगी ... तुम मुझे बराबर 5.00 बजे वर्सोवा बिचपर मिलो ... बाय फॉर नॉऊ... टेक केअर''
'' चलो अब हमें अपना बस्ता यहांसे मुंबईको ले जानेकी तैयारी करनी पडेगी। '' अतूलने अलेक्ससे कहा।
अलेक्स अविश्वासके साथ अतूलकी तरफ देख रहा था। अब कहां उसे विवेक आठ दिनसे क्या कर रहा था और किस लिए कर रहा था यह पता चल गया था।
'' यार अतूल ... यू आर जिनियस'' अब अलेक्सके बदनमेंभी जोश दौडने लगा था।
Posted by Udit bhargava at 2/20/2010 04:34:00 pm 0 comments
Hindi books - Novel - ELove - CH-28 रुम पार्टनर्स
एक रुममें अतूल और अलेक्स रहते थे। रुमके स्थितीसे यह जान पडता था की उन्होने रुम किराएसे ली होगी। कमरे में एक कोने में बैठकर अतूल अपने कॉम्प्यूटरपर बैठकर चॅटींग कर रहा था और कमरेके बिचोबिच अलेक्स डीप्स मारता हूवा एक्सरसाईज कर रहा था। अतूल अपने कॉम्प्यूटरपर दिख रहे चॅटींग विंडोमें धीरे धीरे उपर खिसक रहे चॅटींग मेसेजेस एक एक करके पढ रहा था। शायद वह चाटींगके लिए कोई अच्छा साथीदार ढूंढ रहा होगा। जबसे उसे चॅटींगका अविश्कार हूवा तब से ही उसे यह बहुत पसंद आया था। पहले खाली वक्तमें वक्त बितानेका गप्पे मारना इससे कारगर कोई तरीका नही होगा ऐसी उसकी सोच थी। लेकिन अब जबसे उसे चॅटींगका अविश्कार हुवा उसकी सोच पुरी तरह बदल गई थी। चॅटींगकी वजहसे आदमीको मिले बिना गप्पे मारना अब संभव होगया था। कुछ जान पहचानवाले तो कुछ अजनबी लोगोंसे चॅट करने में उसे बडा मजा आने लगा था। अजनबी लोगोंसे आमने सामने मिलने के बाद कैसे उन्हे पहले अपने कंफर्टेबल झोन में लाना पडता है और उसके बाद ही बातचित आगे बढ सकती है। और उसके लिए सामनेवाला कैसा है इसपर सब निर्भर करता है और उसको कंफर्टेबल झोन में लाने के लिए कभी एक घंटा तो कभी कई सारे दिनभी लग सकते है। चॅटींगपर वैसा नही होता है। कोई पहचान का हो या अजनबी बिनदास्त मेसेज भेज दो। सामनेवाले ने एंटरटेन किया तो ठीक नही तो दुसरा कोई साथी ढूंढो। अपने पास सारे विकल्प होते है। कुछ न समझनेवाले तो कुछ गाली गलोच वाले कुछ संवाद उसे चॅटींग विंडोमें उपर उपर खिसकते हूए दिखाई दे रहे थे।
तभी उसे बाकी मेसेजसे कुछ अलग मेसेज दिखा ,
'' अच्छा तुम क्या करती हो? ... मेरा मतलब पढाई या जॉब?''
किसी विवेक का मेसेज था।
वह उसका असली नामभी हो सकता था या नकली ...
मैने बी। ई. कॉम्प्यूटर किया हूवा है ... और जी. एच. इन्फॉरमॅटीक्स इस खुदके कंपनीकी मै फिलहाल मॅनेजींग डायरेक्टर हूं '' विवेकके मेसेजके रिस्पॉन्सके तौरपर यह मेसेज अवतरीत हूवा था.
भेजनेवाले का नाम अंजली था।
अचानक मेसेज पढते हूए अतूलके दिमागमें एक विचार कौंधा।
इस मेसेजसे क्या मै कुछ फायदा ले सकता हूं ?...
वह मनही मन सोचकर सारी संभावनाए टटोल रहा था। सोचते हूए अचानक उसके दिमागमें एक आयडीया आ गया।
वह झटसे अलेक्सकी तरफ मुडते हूए बोला, '' अलेक्स जल्दीसे इधर आ जाओ ''
उसका चेहरा एक तरहकी चमकसे दमक रहा था।
अलेक्स एक्सरसाईज करते हूए रुक गया और कुछ इंटरेस्ट ना दिखाते हूए धीमे धीमे उसके पास आकर बोला, '' क्या है ?... अब मुझे ठिकसे एक्सरसाईज भी नही करने देगा ?''
'' अरे इधर मॉनिटरपर तो देखो ... एक सोनेका अंडा देनेवाली मुर्गी हमें मिल सकती है ॥'' अतूल फिरसे उसका इंटरेस्ट जागृत करनेका प्रयास करते हूए बोला।
अब कहा अलेक्स थोडा इंटरेस्ट लेकर मॉनिटरकी तरफ देखने लगा।
तभी चॅटींग विंडोमें अवतरीत हूवा और उपर खिसक रहा विवेकका और एक मेसेज उन्हे दिखाई दिया,
"" अरे बापरे!॥ '' तुम्हे तुम्हारे उम्रके बारेमें पुछा तो गुस्सा तो नही आएगा ?... नही ... मतलब मैने कही पढा है की लडकियोंको उनके उम्रके बारेमें पुछना अच्छा नही लगता है। ... ''
उसके बाद तुरंत अंजलीने भेजा हूवा रिस्पॉन्सभी अवतरीत हूवा -
'' 23 साल''
'' देख तो यह हंस और हंसिनी का जोडा... यह हंसीनी एक सॉफ्टवेअर कंपनीकी मालिक है ... मतलब मल्टी मिलीयन डॉलर्स...'' अतूल अपने चेहरेपर आए लालचभरे भाव छूपानेका प्रयास करते हूए बोला।
तेभी फिरसे चॅटींग विंडोमें विवेकका मेसेज अवतररीत हूवा,
'' अरे यह तो मुझे पताही था... मैने तुम्हारे मेल आयडीसे मालूम किया था.... सच कहूं ? तूमने जब बताया की तूम मॅनेजींग डायरेक्टर हो ... तो मेरे सामने एक 45-50 सालके वयस्क औरतकी तस्वीर आ गई थी... ''
अलेक्सने उन दोनोंके उस विंडोमें दिख रहे सारे मेसेजेस पढ लिए और पुछा, '' लेकिन हमें क्या करना पडेगा ?''
'' क्या करना है यह सब तुम मुझपर छोड दो ... सिर्फ मुझे तुम्हारा साथ चाहिए '' अतूल अपना हाथ आगे बढाते हूवा बोला।
'' कितने पैसे मिलेगे ?'' अलेक्सने असली बातपर आते हूए सवाल पुछा।
'' अरे लाखो करोडो में खेल सकते है हम '' अतूल अलेक्सका लालच जागृत करनेका प्रयास करते हूए बोला।
'' लाखो करोडो?'' अलेक्स अतूलका हाथ अपने हाथमे लेते हूए बोला, '' तो फिर मै तो अपनी जानभी देनेके लिए तैयार हूं ''
तभी फिरसे चॅटींग विंडोमें अंजलीका मेसेज अवतरीत हूवा , '' तूमने तुम्हारी उम्र नही बताई ?...''
उसके पिछेही विवेकका जवाब चॅटींग विंडोमें अवतरीत हूवा, '' मैने मेरे मेल ऍड्रेसकी जानकारीमें ... मेरी असली उम्र डाली हूई है ...''
'' 23 साल... बहूत नाजुक उम्र होती है ... मछली प्यारके जालमें फसकर कुछभी कर सकती है '' अतूल अजिब तरहसे मुस्कुराते हूए बोला।
Posted by Udit bhargava at 2/20/2010 04:28:00 pm 0 comments
Hindi books - Upanyas - ELove - CH-27 कहानी
कॉन्स्टेबल जब अतुल को वहां से ले गया और अतुल सब लोगों के नजरों से ओझल हुआ तब कहां इतनी देर से हक्का बक्का रहे लोगों मे खुसुर फुसुर शुरु हो गई। कुछ लोग अब भी डरे, सहमे और सदमे मे थे, तो कुछ लोगों को यह सब क्या हो रहा है कुछ समझ नही आ रहा था। प्रथम पुरस्कार जिसे मिला उस लडके को अचानक अंजली ने मारा और इन्स्पेक्टर ने डायस पर आकर उसे गिरफ्तार किया। सब कुछ कैसे लोगों के समझ के बाहर था। लोगों में चल रही खुसुर फुसुर देखकर इन्स्पेक्टर ने ताड लिया की लोगों को पूरा केस और उसकी गंभिरता समझाना जरुरी है, नही तो लोग और गडबडी मचा सकते है। क्योंकी अतुल जो कुछ पल पहले ही सब लोगों का हीरो था उसे अंजली ने अगले ही पल उसे व्हिलन करार दिया था। लोगों को वह सच्चा या अंजली सच्ची यह जानने की उत्कंठा होना भी लाजमी था।
'' शांत हो जाईए ... शांत हो जाईए प्लीज...'' इन्स्पेक्टर हाथ उपर कर, जो कुछ लोग उठ खडे हूए थे उन्हे बिठाते हूए बोले, '' कोई डरने की या घबराने की कोई जरुरत नही...This is a case of Blackmailing and Cyber crime... मैने खुद इस केस पर काम किया है ... और इस केस का गुनाहगार के तौर पर अभी अभी आपके सामने अतुल सरकार को पकडा गया है ...''
फिर भी लोग शांत होने के लिए तैयार नही थे, तब ऍन्कर ने फिर से माईक का कब्जा लिया, '' दोस्तो शांत हो जाईए ॥ प्लीज शांत हो जाईए .. हमारी प्रतिस्पर्धा भी इथीकल हॅकींग ... यानी की हॅकिंग के बारे मे ही थी... और इन्स्पेक्टर ने अभी आप लोगों के सामने हॅन्डल की केस भी हॅकींग और क्रॅकींग के बारे में ही थी .. इसलिए इन्स्पेक्टर साहेब को मेरी बिनती है की वे इस केस के बारे में... उन्होने यह केस कैसे हॅन्डल की... यह केस हॅन्डल करते वक्त किन किन चुनौतीयों का सामना उन्हे करना पडा... और आखिर वह गुनाहगार तक कैसे पहुंचे ... यह सब यहां इकठ्ठा हूए लोगों को विस्तार से बतायें ...''
अब कहा लोग फिर से शांत हो चुके थे। यह केस क्या है? ... और इन्स्पेक्टर ने उसे कैसे हॅन्डल किया॥ यह जानने की लोगों में उत्सुकता दिखने लगी। एन्कर ने एक बार फिर से इन्स्पेक्टर की तरफ देखा और उन्हे आगे आकर पूरी कहानी बयां करने की बिनती की। इन्स्पेक्टर ने अंजली की तरफ देखा। अंजली ने आखों से ही इजाजत दे दी। इन्स्पेक्टर सामने आये और उन्होने माईक ऍन्कर से अपने पास ले लिया।
इन्स्पेक्टर कहानी कथन करने लगे -
'' सायबर क्राईम यह अब भारत में नया नही रहा है ... आजकल पूरे देश में लगभग रोज कुछ ना कुछ सायबर क्राईम की घटनाएं घटीत होती रहती है .... लेकिन तहकिकात करते वक्त मुझे हमेशा इस बात का अहसास होता है की लोगों की सायबर क्राइम के बारें मे बहुत गलतफहमीयां है ... जितनी उनकी सायबर क्राईम के बारे में गलतफहमीयां है उतना ही उनका अपने देश के पुलिस डिपार्टमेंट पर भरोसा उडा हुआ दिखाई देता है ... उन्हे हमेशा आशंका लगी रहती है की यह टोपी और डंडे लेकर घुमने वाले पुलिस यह इतना ऍडव्हान्स... यह इतना टेक्नीकल क्राईम कैसे हॅन्डल कर सकते है? ... उन्हे सायबर क्राईम के बारे में अपना पुलिस डिपार्टमेंट कितना सक्षम है इसके बारे में आशंकाए लगी रहती है। ... लेकिन अब अभी अभी मैने हॅन्डल किए केस के जरीए मै लोगों को यकिन दिलाना चाहता हूं की ... सायबर क्राईम के बारे में अपना पोलीस डीपार्टमेंट सिर्फ सक्षम ही नही पूरी तरह से तैयार है ... इस तरह का या और किसी तरह का गुनाह होने के बाद जिस कार्य क्षमता से हम दुसरे गुनाहगारों को तुरंत पकड सकते है उसी कार्यक्षमता से हम सायबर क्रिमीनल्स को भी पकड सकते है.... लेकिन फिर भी कुछ चिजों के बारें मे हम गुनाह हॅन्डल करते वक्त कम पडते है ... खासकर जब उस गुनाह को दूसरे किसी देश के जमीन से अंजाम दिया जाता है तब... उस केस में वह गुनाहगार किसी दूसरे देश के कानून के कार्य क्षेत्र में आता है ... और फिर वह देश हमें उस गुनाह के बारे में उस गुनाहगार को पकडने के लिए कितना सहकार्य करते है इस पर सब निर्भर करता है.... सायबर गुनाह के बारे में और एक महत्वपूर्ण बात... इसमें इंटरनेट इस्तेमाल करने वाले लोगों को कुछ चिजों मे बहुत ही जागरुक होना आवश्यक होता है ॥ जैसे किसी को, उस सामने के पार्टी की पूरी जानकारी रहे बिना खुदकी जानकारी ... ... पासवर्ड ॥ फोन ... मोबाईल देना बहुत ही खतरनाक होता है ... वैसे अनसेफ, अनप्रोटेक्टेड, अनसेक्यूअर कनेक्शनपर फायनांसीयल ट्रान्झेक्शन करना ... अपने खुद के प्रायव्हेट फोटो इंटरनेट पर भेजना ... इत्यादी... यह भी खतरे से खाली नही है... अब मै यह जो केस विस्तारपूर्वक बताने वाला हूं ... इससे आपको किस तरह जागरुक रहना पडेगा इसका अंदाजा आ जाएगा ...''
इतनी प्रस्तावना देकर इन्स्पेक्टर अतुल के केस के बारें मे बताने लगे ...
Posted by Udit bhargava at 2/20/2010 03:43:00 pm 0 comments
Hindi Novel - Fiction - ELove - CH 26 प्रथम पुरस्कार
अनघा जैसे ही स्टेज से नीचे उतरकर अपने जगह पर वापस आ गयी ऍन्कर ने फिर से माईक पर कब्जा कर लिया था ,
'' अब आखिर में हम जिस पल का इतनी बेसब्री से राह देख रहे है वह पल एकदम नजदिक आ पहुंचा है ... पहला पुरस्कार ऐलान करने का पल ... इन फॅक्ट मै अपने आपको बडा भाग्यशाली समझता हूं की पहला पुरस्कार किसको जानेवाला है यह ऐलान करने का सौभाग्य मुझे मिल रहा है ... क्योंकी वह प्रतिस्पर्धी सारे भारत में एक अव्वल प्रतिस्पर्धी रहनेवाला है ... तो पहले देखते है की वह प्रथम पुरस्कार क्या है ... प्रथम पुरस्कार है 3 लाख रुपए कॅश, मोमेंटो ऍन्ड अ जॉब ऑफर इन नेट सेक्यूरा... ''
सब लोग शांत होकर सुन रहे थे। मानो उस पलके लिए उन्होने अपनी सांसे रोककर रखी थी। बहुत लोग अपनी गर्दन उंची कर सामने देखने की कोशीश कर रहे थे। हॉलमें सब तरफ पिनड्रॉप सायलेन्स था ....
'' फर्स्ट प्राईज गोज टू ... द वन ऍन्ड ओन्ली वन... मि. अतुल बिश्वास फ्रॉम चेन्नई ...''
दूसरी कतार विचलित हूई दिखी, क्योंकी दूसरी कतार से कोई उठा था। सब लोगों के सर उस दिशामें मुड गए। इस बार हॉल में सबसे बडा और सबसे दिर्घ तालियों का आवाज हुआ। सचमुच उसका यश उसके नामके अनुरुप 'अतुल' यानी की अतुलनीय था। वह उठकर लगभग दौडते हूए ही स्टेजपर चला गया, इससे उसका अपूर्व उत्साह और आत्मविश्वास दिख रहा था। गोरा, उंचा, स्मार्ट, कसा हुआ शरीर ऐसा वह सशक्त युवक था। अंजली ने अपनी दिशा में आते उस पहले पुरस्कार के हकदार की तरफ देखा। उसके चेहरे पर एक तेज चमक रहा था। आंखे निली और चमकीली थी। उसकी आखों में देखकर पलभर के लिए अंजली कि विवेक की याद आ गई। लेकिन अपने विचारों को दिमाग से झटककर वह आगे गई। वह अंजली के सामने आकर खडा हो गया और उसने लोगों की तरफ मुडकर उनको अभिवादन किया। पहले की तालियों की आवाज जो अब भी बरकरार थी वह और बढ गयी। लोगों को अभिवादन कर उसने अंजली की तरफ देखा और उसकी नजर अंजली पर से हटने का नाम नही ले रही थी, मानो वह उसके मदहोश करने वाली आंखो में अटक सा गया था। तालियों की गुंज अब भी चल रही थी। लेकिन अचानक एक अजिब घटना घटी, अंजली ने जितने जोर से हो सकता है उतनी जोर से उसके गाल पर एक चाटा जड दिया था। तब कहा वो होश में आ गया। हॉल में चल रहा तालियों का आवाज एकदम से बंद हो गया , मानो किसी ne स्विच ऑफ किया हो। उसने और वहां उपस्थित किसी ने भी सोचा नही होगा वैसी अजिब वह घटना थी। हां अंजली ने उसके गाल पर एक जोर का चाटा जमा दिया था। उसका ही क्यों सारे उपस्थित लोगों को इस बातपर यकिन नही हो रहा था। हॉल में एकदम श्मशानवत चुप्पी फैल गई॥ एकदम पिनड्रॉप सायलेन्स।
'' yes I slapped him... And he deserve it... क्योंकी वह एक क्रॅकर है ... सिर्फ क्रोकर ही नही तो he is also a blacemailer...'' हॉल में चुप्पी का भंग हुआ वह अंजली के इन शब्दो ने ।
अंजली लगातार बोल रही थी। उसकी आँखों में आग थी। गुस्से से अंजली का पूरा शरीर कांप रहा था। तभी इन्स्पेक्टर कंवलजीत, जो पहले से ही तैयार थे, वे डायसपर दो कॉन्स्टेबल के साथ आ गए। उन्होने प्रथम अतुल कि कॉलर पकडकर दो तिन तमाचे उसके कान के नीचे जड दिए।
'' इन्स्पेक्टर '' अतूल गुर्राया।
उसके मासूम, स्मार्ट चेहरे ने अब उग्र रुप धारण किया था। उसे जडाए हुए तमाचों की वजह से लाल हुआ उसका चेहरा और भी भयानक लग रहा था। इन्स्पेक्टरने ने ज्यादा वक्त ना दौडाते हुए उसे हथकडीयां पहनाकर अरेस्ट किया और वे गुस्से से चिल्लाए, '' take this basterd away...''
कॉन्स्टेबल उसे लेकर, लगभग खिंचते हुए ही वहां से चले गए। उसका मद और नशा अब भी उतरा हुआ नही दिखाई दे रहा था। वह वहां से जाते हूए कभी गुस्से से इन्स्पेक्टर की तरफ तो कभी अंजली की तरफ देख रहा था।
याद रखो मुझे अरेस्ट करना तुम्हे बहुत महंगा पडने वाला है '' जाते जाते वह चिल्लाया।
Posted by Udit bhargava at 2/20/2010 03:18:00 pm 0 comments
घरेलु नुस्खे कड़ी सं- 1
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Posted by Udit bhargava at 2/20/2010 08:58:00 am 0 comments
नए कारोबार की शुरुआत के लिए
नए कारोबार की शुरुआत के लिए
नया कारोबार, नई दुकान या कोई भी नया कार्य करने से पूर्व मिट्टी के पांच पात्र लें जिसमें सवाकिलो सामान आ जाएं। प्रत्येक पात्र में सवा किलो सफेद तिल, सवा किलो पीली सरसों, सवा किलो उड़द, सवा किलो जौ, सवा किलो साबुत मूंग भर दें। मिट्टी के ढक्कन से ढंक कर सभी पात्र को लाल कपड़े से मुंह बांध दें और अपने व्यावसायकि स्थल पर इन पांचों कलश को रख दें। वर्ष भर यह कलश अपनी दुकान में रखें। ग्राहकों का आगमन बड़ी सरलता से बढ़ेगा और कारोबारी समस्या का निवारण भी होगा। एक वर्ष के बाद इन संपूर्ण पात्रों को अपने ऊपर से 11 बार उसार कर बहते पानी में प्रवाह कर दें। और नये पात्र भरकर रख दें।
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Posted by Udit bhargava at 2/20/2010 08:53:00 am 0 comments
व्यवसायिक समस्याओं के निवारण हेतु
व्यवसायिक समस्याओं के निवारण हेतु
यदि व्यवसाय में अप्रत्याशित समस्याओं का सामना करना पड़ रहा हो, कारोबार में घाटा हो रहा हो या किसी साझेदार की वजह से परेशानी आ रही हो तो किसी भी महीने के शुक्ल पक्ष के प्रथम गुरुवार के दिन यह उपाय प्रारंभ करें। प्रात:काल नित्यकर्म से निवृत होकर स्नानोपरांत अपने पूजा स्थान में संपूर्ण श्रीयंत्र, कुबेर यंत्र की स्थापना करें। श्रद्धापूर्वक पंचोपचार पूजन करने के उपरांत एक स्वच्छ पीले वस्त्र में नागकेसर, 11 दाने साबुत हल्दी, 11 साबुत सुपारी, 11 गोमती चक्र, 11 छेद वाले तांबे के सिक्के और 11 मुट्ठी हल्दी से रंगे हुए पीले अक्षत रखकर पोटली बना लें। पोटली को अपने पूजा स्थान में यंत्र के सामने रख दें। कुंकुम, केसर और हल्दी घोलकर 21 बिंदी लगाएं। तत्पश्चात घी का दीपक जलाएं और मां महालक्ष्मी के बीज मंत्र का 108 बार जाप करें। हर रोज बिंदी लगाकर 108 बार जाप करें। ऐसा 40 दिन नियमित रूप से करें। पूजा समाप्ति के बाद चांदी का सिक्का अपनी तिजोरी में रख दें बाकी समस्त सामग्री बहते पानी में प्रवाह कर दें। कारोबारी समस्त समस्याओं का निवारण होगा।
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Posted by Udit bhargava at 2/20/2010 08:52:00 am 0 comments
बरकत हेतु
बरकत हेतु
परिश्रम के उपरांत भी धन का संचय नहीं हो पा रहा हो तो अमावस्या के दिन यह उपाय प्रारंभ करें। नित्यकर्म से निवृत होकर स्नानोपरांत अपने तिजोरी में लाल वस्त्र बिछाये और उसमें पांच गुलाब के फूल रखें। ऐसा हर रोज करें। पहले वाले फूल का बहते पानी में प्रवाह कर दें। और नये फूल रख दें वही कपडे पर रखें। पुन: अमावस्या पर कपड़ा सहित फूल का प्रवाह कर दें और नया कपड़ा बिछा दें। और पूजन जारी रखें। ऐसा नियमित क रने से धन की प्राप्ति होगी। धन में बरकत होगी।
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Posted by Udit bhargava at 2/20/2010 08:51:00 am 0 comments
कारोबारी समस्याओं के निवारण हेतु
किसी भी महीने के शुक्ल पक्ष के प्रथम गुरुवार को कारोबारी समस्याओं के निवारण के लिए इस उपाय को करके देखें। यह उपाय नियमित 43 दिनों तक क रें। उत्तर दिशा में एक सुंदर चौकी बिछा दें। 11 मुट्ठी चने की दाल की ढेरी बनाएं और ढेरी के ऊपर श्रद्धापूर्वक श्रीयंत्र स्थापित करें। धूप, दीप, नेवैद्य, पुष्प और अक्षत अर्पित करें। तत्पश्चात स्वच्छ और पवित्र पलेट में तीन अलग-अगल केसर से स्वास्तिक बनाएं। प्रत्येक स्वास्तिक पर चौमुखा घी का दीपक रखें। और इस मंत्र की पांच माला नियमित जाप करें। इस प्रयोग से धन आगमन होने लगेगा।
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Posted by Udit bhargava at 2/20/2010 08:49:00 am 0 comments
धनागमन हेतु कुछ उपाय
धनागमन हेतु
किसी भी महीने के शुक्ल पक्ष के प्रथम गुरुवार को कारोबारी समस्याओं के निवारण के लिए इस उपाय को करके देखें। यह उपाय नियमित 43 दिनों तक क रें। उत्तर दिशा में एक सुंदर चौकी बिछा दें। 11 मुट्ठी चने की दाल की ढेरी बनाएं और ढेरी के ऊपर श्रद्धापूर्वक श्रीयंत्र स्थापित करें। धूप, दीप, नेवैद्य, पुष्प और अक्षत अर्पित करें। तत्पश्चात स्वच्छ और पवित्र पलेट में तीन अलग-अलग केसर से स्वस्तिक बनाएं। प्रत्येक स्वस्तिक पर चौमुखा घी का दीपक रखें। और इस मंत्र की पांच माला नियमित जाप करें। इस प्रयोग से धन आगमन होने लगेगा।
Labels: तंत्र-मंत्र-यंत्र
Posted by Udit bhargava at 2/20/2010 08:47:00 am 0 comments
श्रेष्ठ मित्र जीवन का वरदान
व्यक्ति को तीन चीजें- अच्छी पत्नी, आज्ञाकारी पुत्र व सच्चा मित्र- तकदीर से मिला करती हैं। पत्नी का चयन तो परिवार वाले करते हैं, पुत्र भाग्य से मिलता है, पर मित्र का चयन व्यक्ति स्वयं करता है। पत्नी गलत निकल गई तो केवल आपको दुःखी करेगी, पर मित्र गलत निकल गया तो सात पीढि़यों को बर्बाद कर देगा।
प्रेरक विचार संत ललितप्रभ-सागरजी ने धर्मसभा में व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि व्यक्ति को भूलकर भी गलत आदतों वाले व्यक्ति को मित्र नहीं बनाना चाहिए, जो दुःख में भी साथ निभाए और सही राह दिखाए ऐसे मित्र को कभी नहीं छो़ड़ना चाहिए। व्यक्ति सबका कहना टाल सकता है, पर मित्र का नहीं।
मित्र हो तो जिंदगी सरस बन जाती है नहीं तो नीरस। सच्चा मित्र वही होता है, जो जीवन की हर विपत्ति में हमारे साथ खड़ा रहता है। ढाल की तरह सुख में पीठ पीछे व दुःख में बचाने के लिए आगे आ जाता है, वही सच्चा मित्र होता है।
Labels: प्रवचन
Posted by Udit bhargava at 2/20/2010 06:30:00 am 0 comments
19 फ़रवरी 2010
स्पर्श से भगाएँ रोग...
ब्रह्मांड शक्ति से चिकित्सा की अनोखी रीति
क्या किसी व्यक्ति का स्पर्श आपकी लाइलाज बीमारी को ठीक कर सकता है। क्या ईश्वर से ऊपर कोई शक्ति है ...आप मानें या न मानें लेकिन केरल में रहने वाले एक व्यक्ति का यही दावा है। जी हाँ, आस्था और अंधविश्वास की इस कड़ी में हम आपकी मुलाकात करवा रहे हैं केरल के आचार्य एमडी रवि मास्टर से। एमडी मास्टर खुद को ‘ब्रह्मगुरु’ कहते हैं। इनका दावा है कि वे सिर्फ स्पर्श के माध्यम से व्यक्ति को स्वस्थ कर सकते हैं। उसके नकारात्मक विचारों को सकारात्मक विचारों में बदल सकते हैं। इसके साथ ही वे अपने अनुयायियों को नकारात्मक ऊर्जा से दूर रखने के लिए पवित्र जल भी देते हैं।
यह स्थान केरल राज्य के कोट्टयम जिले के चँगनास्सेरी नामक स्थान पर है, जो त्रिवेंद्रम से 135 और कोच्चि से करीब 87 किलोमीटर दूर स्थित है। इस जगह को ‘ब्रह्म धर्मालय’ के नाम से जाना जाता है। जब हम वहाँ पहुँचे तो वहाँ लगी भीड़ को देखकर चौंक गए। बातचीत में पता चला कि ये सभी लोग ‘ब्रह्मगुरु’ के नाम से पहचाने जाने वाले आचार्य एमडी रवि मास्टर से इलाज करवाने आए थे। हमने देखा कि एक तेजस्वी व्यक्ति अनोखे ढंग से उनके अंदर की नकारात्मक ऊर्जा बाहर निकाल रहे थे और सकारात्मक ऊर्जा से उनकी बीमारी दूर कर रहे थे। ये ही आचार्य एमडी रवि मास्टर थे।
रवि मास्टर का यह भी दावा है कि वे अपनी प्रार्थना के वक्त किसी भी देवी-देवता से बात कर सकते हैं, पर दूसरी ओर वे यह भी मानते हैं कि वे कोई जीवित ईश्वर नहीं हैं। वे इस कार्य को अपनी किस्मत मानते हैं, जिसका उद्देश्य लोगों की सेवा करना है।
नशे की लत के अलावा उनके धर्मालय में उनसे उपचार करवाने के लिए कई तरह के मानसिक और शारीरिक रोगों से ग्रसित लोग आते हैं, जिन्हें वे ठीक करने का दावा करते हैं। आश्चर्य की बात यह भी है कि वे सोराइसिस नामक घातक चर्मरोग का भी उपचार कर सकते हैं, जिसकी अभी तक कोई दवा नहीं बनी है। उनके इस आश्रम में किसी भी देवी-देवता की कोई मूर्ति नहीं है, जिसकी पूजा-अर्चना की जाती हो। उनका मानना है कि एक सर्वव्यापी शक्ति है, जो ईश्वर, अल्लाह या जीजस सबसे ऊपर है या मानें तो इन ईश्वरीय शक्तियों की जन्मदाता है।
जनवरी 1993 में एक बार जब वे पूजा के लिए दीया जला रहे थे, तो एक चमत्कारिक शक्ति कहीं बाहर से आकर उनके शरीर में से गुजरी। उन्हें यह देखकर आश्चर्य हुआ कि उनके सामने रखा हुआ दीपक स्वयं उनके ही प्रकाश से जगमगा रहा था। उन्हें कुछ भी नहीं समझ आ रहा था कि उनके कानों में एक मधुर आवाज आई कि घबराने की कोई आवश्यकता नहीं है।
Labels: आस्था या अन्धविश्वास
Posted by Udit bhargava at 2/19/2010 06:17:00 pm 2 comments
खुशमिजाज प्रबंधक की बढती मांग ( Swingers manager demand growth )
मेरे मन में एक विचार आया कि हम ड्राइव पर जाएँ और जहाँ जैसे हालात नजर आयें, उसी के मुताबिक़ अपनी दिशा तय करें। यदि किसी कारणवश हालत बिगड़ने लगें तो हुम दौरे को बीच में ही छोड़ते हुए एक जगह बैठ जाए और वहीँ आनंद मनाएं। लोग इस बात को सुनकर खुश हो गए। हर कोई इस नई योजना पर अमल करने के लिये तैयार था। उनके चेहरे पर दुबारा मुस्कराहट लौट आई। उस समय मुझे ब्रिटेन की एक कंपनी 'हैप्पी लिमिटेड' के चीफ एक्सिक्यूटिव हेनरी स्टेवार्ट की बात याद आई। उन्होंने कहा था, 'आप मुझे अपने स्टाफ एंगेजमेंट सर्वे में ९४ परसेंट स्कोर लाकर दिन तो में आपको भरोसा दिलाता हूँ कि आपके कारोबार की बिक्री और मुनाफे में कई गुना वृद्धि नज़र आएगी। सोचिये आपका संस्थान कैसा होगा, यदि प्रबंधकों को उनके जन-कौशल के आधार पर चुना जाए जहाँ कर्मचारियों को फील गुड महसूस कराने पर मुख्य फोकस हो?'
'हैप्पी लिमिटेड' कर्मचारियों को अपने प्रबंधक चुनने की आजादी देती है। वह अपनी तकनिकी क्षमताओं के आधार पर प्रमोशन पाने वाले और जन कौशल के आधार पर प्रमोशन पाने वाले लोगों की अलग-अलग पहचान करती है। प्रत्येक संस्थान को इस भरोसे के साथ चलना चाहिए कइ हर कर्मचारी उसके साथ इसलिए जुडा है, ताकि वह अपना सर्वश्रेष्ठ परफार्मेंस दे सके। जैसे ही यह भरोसा जाहिर किया जाता है, लोग संस्थान के लिये अपना सर्वश्रेष्ठ देने में लग जाते हैं। ऐसा अनेक मैनेजमेंट गुरुओं का मानना है। किसी भी संस्थान को सफलतापूर्वक चलाने के लिये दो अलग-अलग तरह के कौशल की जरुरत होती है। एक तो है कंपनी बुनियादी तकनीकी कौशल और दूसरा है उन लोगों का ख़याल रखना, यही कारण है कि वे शीर्ष प्रबंधक बन जाते हैं।
Labels: मैनेजमेंट मंत्र
Posted by Udit bhargava at 2/19/2010 05:17:00 am 0 comments
18 फ़रवरी 2010
रामचरितमानस के चमत्कारिक मंत्र
जन सामान्य की पीड़ा निवारण में रामचरित मानस और हनुमान चालीसा की चौपाइयां और दोहे जातक की कुंडली में व्याप्त ग्रह दोष और पीड़ा निवारण में सहायक हो सकते हैं। इन्हें सुगमता से समझा जा सकता है और श्रद्धापूर्वक पारायण करने से लाभ मिल जाता है। मानस की चौपाइयों में मंत्र तुल्य शक्तियां विद्यमान हैं। इनका पठन,मनन और जप करके लाभ लिया जा सकता है।
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प्रेम प्राप्ति
भुवन चारिदस भरा उछाहु।
जनक सुता रघुबीर बिआहू।।
गरल सुधा रिपु करहिं मिताई।
गोपद सिंधु अनल सितलाई।।
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रोजगार के लिए
बिस्व भरन पोषन कर जोई।
ताकर नाम भरत अस होई।।
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क्लेश निवारण
हरन कठिन कलि कलुष कलेसू।
महामोह निसि दलन दिनेसू।।
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विध्न्न -बाधा निवारण
प्रणवों पवनकुमार खल बन पावक ग्यान घन।
जासु ह्वदय आगार बसहि राम सर चाप धर॥
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मनोरथ पूर्ति के लिए
भव भेषज रघुनाथ जसु, सुनाही
जे नर अरू नारी।
तिन्ह कर सकल मनोरथ
सिद्ध करहि त्रिसिरारी॥
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एकल चंद्र (केमेन्द्रुम दोष) निवारण
बिन सतसंग बिबेक न होई।
राम कृपा बिनु सुलभ न सोई ॥
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कालसर्प दोष निवारण
रावण जुद्ध अजान कियो तब,
नाग कि फांस सबै सिर डारो।
श्री रघुनाथ समेत सबै दल,
मोह भयो यह संकट भारो।।
आनि खगेश तबै हनुमान जु,
बंधन काटि सुत्रास निवारो।
को नहि जानत है जग में कपि संकट मोचन नाम तिहारो।।
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स्थान/ नगर में प्रवेश करते समय
प्रबिस नगर कीजे सब काजा।
ह्वदय राखि कोसलपुर राजा।।
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राहु प्रभाव से कलंक मुक्ति के लिए
मंत्र महामनि विषय ब्याल के ।
मेटत कठिन कुअंक भाल के ॥
हरन मोह तम दिनकर कर से ।
सालि पाल जलधर के॥
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निराशा यानी शनि प्रभाव से मुक्ति
गौतम नारि श्राप बस उपल देह धरि धीर।
चरन कमल रज चाहति कृपा करहु रघुबीर॥
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आलस्य से मुक्ति
हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रणाम।
राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहां विश्राम॥
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विजय प्राप्ति के लिए
विजय रथ का पाठ लंकाकाण्ड ( दोहा 79-80 मध्य) का नियमित पाठ विजय प्राप्त कराता है।
परिकल्पना-प्रोजेक्ट पूर्णता के लिये भागीरथ के गंगा अवतरण प्रयास का नियमित पाठ व्यक्ति की कल्पना को साकार करता है।
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बंधन मुक्ति
सौ बार हनुमान चालीसा पाठ सभी बंधनों से मुक्त करता है।
श्रद्धापूर्वक मनन,पठन, जप और श्रवण करने से सभी समस्याओं का समाधान हो जाता है। पे्रम और दृढ़ विश्वास फल प्राप्ति के लिए जरूरी है। गुरू मार्गदर्शन लेकर सभी मनोरथ पूरे कर सकते हैं।
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Posted by Udit bhargava at 2/18/2010 06:45:00 am 1 comments
फेंगशुई: डबल ड्रैगन
दो ड्रैगन का जोड़ा समृद्धि का प्रतीक है। इनके पैर के पंजों में जादा मोती सबसे ज्यादा उर्जा संजोये है। फेंगशुई में ड्रैगन को चार दिव्य प्राणियों में गिना जाता है। ड्रैगन येंग यानी पुरुषत्व, हिम्मत और बहादुरी का प्रतीक है, इसमें अपार शक्ति होती है।
दौबले ड्रैगन को यूँ तो किसी भी दिशा में रखा जा सकता है लेकिन पूर्व दिशा में रखना सबसे ज्यादा कारगर माना गया है। चीनी संस्कृति और फेंगशुई में ड्रैगन को बहूत सामान दिया जाता है और इसे शुद्ध मानते हैं। कई पीढ़ियों से ड्रैगन शक्ति, अच्छे भाग्य और सम्मान का प्रतीक मन जा रहा है। ड्रैगन एक कीमती कास्मिक 'ची' बनाता है जिसे 'शेंग ची' भी कहते हैं, जिससे घर और कार्यस्थल पर भाग्य साथ देता है। यह ड्रैगन लकड़ी, सेरेमिक व धातु में उपलब्ध है। लकड़ी के ड्रैगन को दक्षिण- पूर्व या पूर्व में, सेरेमिक, क्रिस्टल के ड्रैगन को दक्षिण- पूर्व, उत्तर-पूर्व या उत्तर पश्चिम में रखा जाना चाहिय।
छात्र इसे अपनी पढ़ाई की टेबल पर रखें। घर की उत्तर-पश्चिम दिशा में इसे रखने से अच्छे सलाहकार, दोस्त व बढ़िया नेतृत्व करने वाले साथी मिलेंगे। यह ध्यान रखें कि यह जिस उंचाई पर रखा हो वह आँख के स्तर से अधिक न हो। एक्वेरियम या क्रित्रम फाउन्टेन के पास रखने से भाग्य साथ देता है।
Posted by Udit bhargava at 2/18/2010 05:54:00 am 0 comments
17 फ़रवरी 2010
दिल की कमजोरी का घरेलू इलाज
जब दिल हो कमजोर तो
जरा सा भी परिश्रम करने पर साँस फूलने लगे, पसीना आ जाए, सीढ़ियाँ चढ़ते समय दम भर जाए तो समझो दिल कमजोर है।
दिल की कमजोरी दूर करने हेतु घरेलू उपचार इस प्रकार हैं-
* लौकी उबालकर उसमें धनिया, जीरा व हल्दी का चूर्ण तथा हरा धनिया डालकर कुछ देर और पकाएँ। कमजोर दिल के रोगी को इसका नियमित सेवन करने से लाभ होता है और दिल को शक्ति मिलती है।
* अच्छा पका हुआ कुम्हड़ा लेकर उसे धो लें और छिलके सहित उसके छोटे-छोटे टुकड़ काट लें। इसे अच्छी तरह सुखाकर मिट्टी के बरतन में भरकर, ढक्कन लगाकर, कपड़ा बाँधकर मिट्टी लेप दें। 20 मिनट हल्की आँच पर पकाएँ व उतारकर ठंडा होने दें, कुम्हड़े के जले टुकड़ों का चूर्ण बनाकर शीशी में बंद कर दें। दो ग्राम चूर्ण में एक ग्राम सोंठ का चूर्ण मिलाकर गर्म पानी से सेवन करें। इससे दिल की दुर्बलता व सीने का दर्द दूर होता है।
* अनार के 10 मिलीलीटर रस में 10 ग्राम पिसी मिश्री मिलाकर प्रतिदिन सुबह-शाम पीने से भी बहुत लाभ होता है।
* वंशलोचन, इलायची दाना, जहर मोहरा, खताई पिष्टी, रहरवा शमई, सतगिलोय और वर्क चाँदी, सभी समान मात्रा में लेकर चूर्ण बना लें व फिर सभी को गुलाब के अके में घोटकर रख लें।
1 से 4 रत्ती मिश्री या आँवले के मुरब्बे के साथ दिन में तीन बार सेवन करें। यह दिल की कमजोरी, धड़कन का असामान्य होना तथा दिल के रोग में अत्यंत लाभकारी है। इसके सेवन से पित्त ज्वर उल्टी, दाह आदि में आराम मिलता है।
Posted by Udit bhargava at 2/17/2010 06:16:00 am 0 comments
16 फ़रवरी 2010
ग़ज़ल- इकबाल
अजब बाइज़ की दींदारी है या रब
अदावत है इसे सारे जहाँ से
कोई अब तब न ये समझा कि इन्साँ
कहाँ जाता है, आता है कहाँ से
वहीं से रात को जुल्मत मिली है
चमक तारों ने पाई है जहाँ से
हम अपनी दर्द मन्दी का फ़साना
सुना करते हैं अपने राज़दाँ से
बड़ी बारीक हैं वाइज़ की चालें
लरज़ जाता है आवाज़े अज़ा, से !
Labels: कविता / शायरी
Posted by Udit bhargava at 2/16/2010 07:44:00 am 1 comments
धनिया के घरेलू नुस्खे
बवासीर - धनिया के दाने और मिश्री 10-10 ग्राम एक गिलास पानी में डालकर उबालें। इसे ठंडा करके छान कर पीने से बवासीर रोग में गिरने वाला खून बंद होता है। हरे धनिये (कोथमीर) को पीसकर गरम करें और कपड़े की पोटली में बाँध कर मस्सों को हल्के-हल्के सेंक करें। इससे मस्से की सूजन कम होती है और पीड़ा शांत होती है।
नकसीर - नाक से खून आने को नकसीर कहते हैं। हरा कोथमीर 20 ग्राम व राई बराबर कपूर मिलाकर पीस लें और रस निचोड़ लें। इस रस की 1-2 बूँद नाक में दोनों तरफ टपकाने और रस को माथे पर लगाकर मसलने से खून गिरना बंद होता है।
Posted by Udit bhargava at 2/16/2010 07:13:00 am 0 comments
सद्भाव से समाज निर्माण संभव
भावनाओं का अनुभव तो सभी करते हैं किंतु हममें से अधिकांश उनकी ठीक समझ नहीं रखते। भावनाओं को ठीक से समझना एक महत्वपूर्ण कला है। जो व्यक्ति इन्हें समझकर सबके प्रति करुणा का भाव रखता है, उससे श्रेष्ठ जीवन ढूँढना मुश्किल है।
इसे स्पष्ट करने के लिए बहुत उपयुक्त है एक कथा- आनंद धर्मयात्रा पर थे। एक गाँव में कुएँ पर उन्होंने पकति नाम की एक युवती से जल माँगा। वह युवती मतंग (एक अस्पृश्य समझी जाने वाली) जाति की थी इसलिए उसने अपनी जाति बताकर जल देने में असमर्थता बताई।
आनंद बोले- मैंने तुमसे जल माँगा है, जाति नहीं पूछी, मुझे जल दो। प्यास लगी है। आनंद के व्यवहार से युवती का मन भर आया। भाव-विह्वल होकर युवती ने उन्हें जल पिलाया और वह उनके पीछे-पीछे महात्मा बुद्ध के दर्शन की अभिलाषा से चलने लगी। तथागत के पास पहुँचकर युवती ने आनंद के प्रति अपने प्रेम की बात बताकर उसकी सेवा में रहने की अनुमति माँगी।
महात्मा बुद्ध ने उसके भाव को समझा और बोले- पकति, तुम्हारा यह प्रेम आनंद के प्रति नहीं है बल्कि उसके सद्भाव के प्रति है। इसलिए तुम उसके आचरण को अपनाओ जिससे तुम्हें परम सुख की प्राप्ति होगी। बुद्ध आगे बोले- राजा की दासों के प्रति सहृदयता अच्छी बात है, परंतु उससे भी महान सहृदयता उस दास की है, जो अपने दमनकर्ता के अपराधों को क्षमा कर दया और मैत्री का भाव फैलाता है। पकति धन्य है। मतंग जाति में जन्म लेने पर भी तुम आर्य नर-नारियों का आदर्श बनोगी। ब्राह्मण तुमसे उपदेश लेंगे।
मनुष्य और समाज के मनोवैज्ञानिक अध्ययन पर आधारित बुद्ध का यह संदेश उस मानव समाज के निर्माण का आधार है, जो भारतीय संस्कृति का आदर्श है। वास्तव में सद्भाव से ही समाज निर्माण संभव है। जिससे एक व्यक्ति से दूसरे को अधिकाधिक हस्तांतरित होने पर श्रेष्ठ समाज की कल्पना को साकार किया जा सकता है।
Posted by Udit bhargava at 2/16/2010 06:38:00 am 0 comments
15 फ़रवरी 2010
श्रीमद्भागवत सत्य से परिचय कराता है
राजा परीक्षित और कलयुग आगमन
श्रीमद्भागवत कल्पवृक्ष की ही तरह है, यह हमें सत्य से परिचय कराता है। उन्होंने कहा कि कलयुग में तो श्रीमद् भागवत कथा की अत्यंत आवश्यकता है, क्योंकि मृत्यु जैसे सत्य से हमें यही अवगत कराता है।
माधवानंदजी महाराज ने राजा परीक्षित के सर्पदंश और कलयुग के आगमन की कथा सुनाई। उन्होंने बताया कि राजा परीक्षित बहुत ही धर्मात्मा राजा थे। उनके राज्य में कभी भी प्रजा को किसी भी चीज की कमी नहीं थी।
एक बार राजा परीक्षित आखेट के लिए गए, वहाँ उन्हें कलयुग मिल गया। कलयुग ने उनसे राज्य में आश्रय माँगा, लेकिन उन्होंने देने से इनकार कर दिया। बहुत आग्रह करने पर राजा ने कलयुग को तीन स्थानों पर रहने की छूट दी। इसमें से पहला वह स्थान है जहाँ जुआ खेला जाता हो, दूसरा वह स्थान है जहाँ पराई स्त्रियों पर नजर डाली जाती हो और तीसरा वह स्थान है जहाँ झूठ बोला जाता हो। लेकिन राजा परीक्षित के राज्य में ये तीनों स्थान कहीं भी नहीं थे।
तब कलयुग ने राजा से सोने में रहने के लिए जगह माँगी। जैसे ही राजा ने सोने में रहने की अनुमति दी, वे राजा के स्वर्णमुकुट में जाकर बैठ गए। राजा के सोने के मुकुट में जैसे ही कलयुग ने स्थान ग्रहण किया, वैसे ही उनकी मति भ्रष्ट हो गई। कलयुग के प्रवेश करते ही धर्म केवल एक ही पैर पर चलने लगा। लोगों ने सत्य बोलना बंद कर दिया, तपस्या और दया करना छोड़ दिया। अब धर्म केवल दान रूपी पैर पर टिका हुआ है।
यही कारण है कि आखेट से लौटते समय राजा परीक्षित श्रृंगी ऋषि के आश्रम पहुँच कर पानी की माँग करते हैं। उस समय श्रृंगी ऋषि ध्यान में लीन थे। उन्होंने राजा की बात नहीं सुनी, इतने में राजा को गुस्सा आ गया और उन्होंने ऋषि के गले में मरा हुआ सर्प डाल दिया। जैसे ही उनका ध्यान समाप्त हुआ, उन्होंने राजा परीक्षित को सर्पदंश से मृत्यु का श्राप दे दिया।
माधवानंदजी महराज ने कहा कि हम सब कलयुग के राजा परीक्षित हैं, हम सभी को कालरूपी सर्प एक दिन डस लेगा, राजा परीक्षित श्राप मिलते ही मरने की तैयारी करने लगते हैं। इस बीच उन्हें व्यासजी मिलते हैं और उनकी मुक्ति के लिए श्रीमद्भागवत् कथा सुनाते हैं। व्यास जी उन्हें बताते हैं कि मृत्यु ही इस संसार का एकमात्र सत्य है। श्रीमद् भागवत की कथा हमें इसी सत्य से अवगत कराया जाता है।
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Posted by Udit bhargava at 2/15/2010 10:27:00 pm 1 comments
रामायण – उत्तरकाण्ड - कुत्ते का न्याय
श्रीराम के शासन में न तो किसी को शारीरिक रोग होता था, न किसी की अकाल मृत्यु होती थी, न कोई स्त्री विधवा होती थे और न माता पिताओं को सन्तान का शोक सहना पड़ता था। सारा राज्य सब प्रकार से सुख-सम्पन्न था। इसलिये कोई व्यक्ति किसी प्रकार का विवाद लेकर राजदरबार में उपस्थित भी नहीं होता था। किन्तु एक दिन एक कुत्ता राजद्वार पर आकर बार-बार भौंकने लगा। उसे अभियोगी समझ राजदरबार में उपस्थित किया गया। पूछने पर कुत्ते ने बताय, "प्रभो! आपके राज्य में सर्वार्थसिद्ध नामक एक भिक्षुक है। उसने आज अकारण मुझ पर प्रहार करके मेरा मस्तक फाड़ दिया है। इसलिये मैँ इसका न्याय चाहता हूँ।"
कुत्ते की बात सुनकर उस भिक्षुक ब्राह्मण को बुलवाया गया। ब्राह्मण के आने पर राजा रामचन्द्र ने पूछा, "विप्रवर! क्या आपने इस कुत्ते के सिर पर घातक प्रहार किया था? यदि किया था तो इसका क्या कारण है? वैसे ब्राह्मण को अकारण क्रोध आना तो नहीं चाहिये।"
महाराज की बात सुनकर सर्वार्थसिद्ध बोले, "प्रभो! यह सही है कि मैंने इस कुत्ते को डंडे से मारा था। उस समय मेरा मन क्रोध से भर गया था। बात यह थी कि मेरे भिक्षाटन का समय बीत चुका था, तो भी भूख के कारण मैं भिक्षा के लिये द्वार-द्वार पर भटक रहा था। उस समय यह कुत्ता बीच में आ खड़ा हुआ। मैं भूखा तो था ही, अतएव मुझे क्रोध आ गया और मैंने इसके सिर पर डंडा मार दिया। मैँ अपराधी हूँ, मुझे दण्ड दीजिये। आपसे दण्ड पाकर मुझे नरक यातना नहीं भोगनी पड़ेगी।"
जब राजा राम ने सभसदों से उसे दण्ड देने के विषय में परामर्श किया तो उन्होंने कहा, "राजन्! ब्राह्मण दण्ड द्वारा अवध्य है। इसे शारीरिक दण्ड नहीं दिया जा सकता और यह इतना निर्धन है कि आर्थिक दण्ड का भार भी नहीं उठा सकेगा।" यह सुनकर कुत्ते ने कहा, "महाराज! यदि आप आज्ञा दें तो मैं इसके दण्ड के बारे में एक सुझाव दूँ। मेरे विचार से इसे महन्त बना दिया जाय। यदि आप इसे कालंजर के किसी मठ का मठाधीश बना दें तो यह दण्ड इसके लिये सबसे उचित होगा।" कुत्ते का सुझाव मानकर श्रीराम ने उसे मठाधीश बना दिया और वह हाथी पर बैठकर वहाँ से प्रसन्नतापूर्वक चला गया।
उसके जाने के पश्चात् एक मन्त्री ने कहा, "प्रभो! यह तो उसके लिये उपहार हुआ, दण्ड नहीं।"
मन्त्री की बात सुनकर श्रीराम ने कहा, "मन्त्रिवर! यह उपहार नहीं, दण्ड ही है। इसका रहस्य तुम नहीं समझ सके हो।" फिर कुत्ते से बोले, "श्वानराज! तुम इन्हें इस दण्ड का रहस्य बताओ।" राघव की बात सुनकर कुत्ता बोला, "रघुनन्दन! पिछले जन्म में मैं कालंजर के एक मठ का अधिपति था। वहाँ मैं सदैव शुभ कर्म किया करता था। फिर भी मुझे कुत्ते की योनि मिली। यह तो अत्यन्त क्रोधी है। इसका अन्त मुझसे भी अधिक खराब होगा। मठाधीश ब्राह्मणों और देवताओं के निमित्त दिये गये द्रव्य का उपभोग करता है, इसलिये वह पाप का भागी बनता है।" यह रहस्य बताकर कुत्ता वहाँ से चला गया।
Posted by Udit bhargava at 2/15/2010 07:40:00 am 1 comments
महाभारत - कर्ण और अर्जुन
द्रोणाचार्य ने पाण्डव तथा कौरव राजकुमारों के शस्त्रास्त्र विद्या की परीक्षा लेने का विचार किया। इसके लिये एक विशाल मण्डप बनाया गया। वहाँ पर राज परिवार के लोग तथा अन्य प्रतिष्ठित व्यक्ति उपस्थित हुये। सबसे पहले भीम एवं दुर्योधन में गदा युद्ध हुआ। दोनों ही पराक्रमी थे। एक लम्बे अन्तराल तक दोनों के मध्य गदा युद्ध होता रहा किन्तु हार-जीत का फैसला न हो पाया। अन्त में गुरु द्रोण का संकेत पाकर अश्वत्थामा ने दोनों को अलग कर दिया।
गदा युद्ध के पश्चात् अर्जुन अपनी धनुर्विद्या का प्रदर्शन करने के लिये आये। उन्होंने सबसे पहले आग्नेयास्त्र चला कर भयंकर अग्नि उत्पन्न किया फिर वरुणास्त्र चला कर जल की वर्षा की जिससे प्रज्वलित अग्नि का शमन हो गया। इसके पश्चात् उन्होंने वायु-अस्त्र चला कर आँधी उत्पन्न किया तथा पार्जन्यास्त्र से बादल उत्पन्न कर के दिखाया। यही नहीं अन्तर्ध्यान-अस्त्र चलाया और वहाँ पर उपस्थित लोगों की दृष्टि से अदृश्य हो कर सभी को आश्चर्य में डाल दिया। वहाँ पर उपस्थित समस्त जन उनकी धनुर्विद्या की प्रशंसा करने लगे।
अचानक उसी समय एक सूर्य के समान प्रकाशवान योद्धा हाथ में धनुष लिये रंगभूमि में उपस्थित हुये। वे कर्ण थे। कर्ण ने भी उन सभी कौशलों का प्रदर्शन किया जिसका कि प्रदर्शन अर्जुन पहले ही कर चुके थे। अपने कौशलों का प्रदर्शन कर चुकने के पश्चात् कर्ण ने अर्जुन से कहा कि यदि तुम्हें अपनी धनुर्विद्या पर इतना ही गर्व है तो मुझसे युद्ध करो। अर्जुन को कर्ण का इस प्रकार ललकारना अपना अपमान लगा। अर्जुन ने कहा, "बिना बुलाये मेहमान की जो दशा होती है, आज मैं तुम्हारी भी वही दशा कर दूँगा।" इस पर कर्ण बोले, "रंग मण्डप सबके लिये खुला होता है, यदि तुममें शक्ति है तो धनुष उठाओ।"
उनके इस विवाद को सुन कर नीति मर्मज्ञ कृपाचार्य बोल उठे, "कर्ण! अर्जुन कुन्ती के पुत्र हैं। वे अवश्य तुम्हारे साथ युद्ध के लिये प्रस्तुत होंगे। किन्तु युद्ध के पूर्व तुम्हें भी अपने वंश का परिचय देना होगा क्योंकि राजवंश के लोग कभी नीच वंश के लोगों के साथ युद्ध नहीं करते।" कृपाचार्य के वचन सुन कर कर्ण का मुख श्रीहीन हो गया और वे लज्जा का अनुभव करने लगे। कर्ण की ऐसी हालत देख कर उनके मित्र दुर्योधन बोल उठे, "हे गुरुजनों एवं उपस्थित सज्जनों! मैं तत्काल अपने परम मित्र कर्ण को अंग देश का राजपद प्रदान करता हूँ। कर्ण इसी क्षण से अंग देश का राजा है। अब एक देश का राजा होने के नाते उन्हें अर्जुन से युद्ध का अधिकार प्राप्त हो गया है।" दुर्योधन की बात सुन कर भीम कर्ण से बोले, "भले ही तुम अब राजा हो गये हो, किन्तु हो तो तुम सूतपुत्र ही। तुम तो अर्जुन के हाथों मरने के भी योग्य नहीं हो। तुम्हारी भलाई इसी में है कि शीघ्र जाकर अपना घोड़े तथा रथ की देखभाल करो।"
वाद-विवाद बढ़ता गया और वातावरण में कटुता आने लगी। यह विचार कर के कि बात अधिक बढ़ने न पाये, द्रोणाचार्य एवं कृपाचार्य ने उस सभा को विसर्जित कर दिया।
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Posted by Udit bhargava at 2/15/2010 07:40:00 am 0 comments
पसीने की दुर्गन्ध से बचाव
जड़ी-बूटी द्वारा संभव है उपचार
इन बातों का विशेष ध्यान रखें -
एक बार पहने हुए वस्त्रों को बिना धोए अलमारी में न रखें।
बिना धुले वस्त्रों को अलमारी में रखने पर दुर्गन्ध पैदा करने वाले बैक्टीरिया सक्रिय होकर वस्त्रों में दुर्गन्ध पैदा कर देते हैं।
शरीर की साफ-सफाई का विशेष ख्याल रखना चाहिए।
नीम युक्त साबुन का नहाते वक्त इस्तेमाल करें तो बेहतर रहेगा।
जहाँ तक हो सके कड़ी धूप से बचें।
वस्त्र ऐसे पहनें जो शरीर से चिपके हुए न हों क्योंकि तंग वस्त्रों में ज्यादा पसीना आता है और वाष्पीकरण सही ढंग से नहीं हो पाता है जिससे कपड़ों से दुर्गन्ध आने लगती है।
सिन्थेटिक वस्त्र न पहनकर सूती वस्त्र पहने तो ज्यादा ठीक रहेगा।
तली-भुनी व मसालायुक्त चीजें न खाएँ।
मौसमी फलों का सेवन करें।
जड़ी-बूटी द्वारा उपचार
बबूल के पत्ते और बाल हरड़ को बराबर-बराबर मिलाकर महीन पीस लें। इस चूर्ण की सारे शरीर पर मालिश करें और कुछ समय रूक-रूक कर स्नान कर लें। नियमित रूप से यह प्रयोग कुछ दिनों तक करते रहने से पसीना आना बंद हो जायेगा।
पसीने की दुर्गन्ध दूर करने के लिये बेलपत्र के रस का लेप शरीर पर करना चाहिए।
अडूसा के पत्रों के रस में थोड़ा शंख चूर्ण मिलाकर शरीर पर लगाने से शरीर से पसीने की दुर्गन्ध दूर हो जाती है।
Posted by Udit bhargava at 2/15/2010 07:06:00 am 0 comments
14 फ़रवरी 2010
कहीं एक मासूम नाजुक सी लड़की...
यह प्यारा सा गीत अपने पाठकों के लिये वलेंटाइन दिवस पर
उपहार स्वरुप भेंट कर रहा हूँ ।
Labels: प्रेम गुरु
Posted by Udit bhargava at 2/14/2010 10:52:00 am 0 comments
एक पत्र प्रेम की खातिर
प्रिय निखिल,
हमारी शादी को नौ बरस बीत गए हैं। हमारे पास सब कुछ है- बच्चे, गाड़ी, बंगला और अच्छी आमदनी। फिर भी मैं खुश नहीं हूँ। कुछ है जो हमारे रिश्तों के बीच से गायब है, वह क्या है?
तुम खुद ही समझ जाओ, इस इंतजार में मैंने सालों गुजार दिए हैं, लेकिन अब मैं समझती हूँ कि और प्रतीक्षा करना बेकार रहेगा। इसलिए मैं खुद ही तुम्हें बताती हूँ कि आखिर एक विवाहित महिला क्या चाहती है? यह बात मैं तुमसे जबानी भी कह सकती थी, लेकिन मैं समझती हूँ कि लिखित बात अधिक प्रभावी होती है और इसे तुम तसल्ली से पढ़कर मेरी ख्वाहिश के प्रति सकारात्मक रुख अपना सकते हो।
तुम्हें याद होगा कि कोई तीन माह पहले मैंने तुमसे सवाल किया था कि क्या तुम्हें मुझसे प्यार है? इस पर तुम्हारा जवाब था, तुमसे शादी करने का अर्थ ही यह है कि मैं तुमसे प्यार करता हूँ। वैसे भी यह बात मैंने तुम्हें शादी के बाद ही बता दी थी। तुम्हारे इस जवाब से ही जाहिर है कि तुम अभी तक यह नहीं समझ पाए हो कि एक औरत आखिर चाहती क्या है? तो इसलिए सुनो- हम विवाहित महिलाएँ चाहती हैं कि हमारे पति निरंतर अपने इश्क का इजहार करते रही। हमें किसी पुष्टि की भी जरूरत नहीं है। इसके लिए हम सिर्फ यह अहसास करना चाहती हैं कि अगर मौका पड़ा तो हमारे पति फिर से भी हमीं से शादी करना चाहेंगे।
तुमने जो जवाब दिया था उस पर मैं यह कहना चाहती हूँ कि जिस तरह एक विधायक या सांसद फिर से चुने जाने के लिए अपने मतदाताओं का निरंतर ख्याल रखता है उसी तरह से एक पति को भी अपनी पत्नी का ख्याल रखना चाहिए। इसका अर्थ यह नहीं है कि तुम दिन निकलते ही या साँझ ढले आई लव यू कहो या फिर वेलेन्टाइन-डे पर चॉकलेट से भरा डिब्बा मुझे पेश करो।
तुम्हारा यह सवाल स्वाभाविक होगा कि यह नहीं तो फिर वूइंग (प्रणय निवेदन करना) के तौर पर महिलाएँ क्या चाहती हैं? हर औरत चाहती है रोमांटिक सरप्राइज। काश! कभी ऐसा हो कि मैं अपने जन्मदिन पर सो रही हूँ और तुम मुझे बिना बताए किचन में व्यस्त रहो। मैं जब आँखें खोलूँ तो तुम अपने द्वारा बनाए गए केक को मेरे सामने रखकर कहो- हैप्पी बर्थ डे। या फिर हमारी शादी की सालगिरह हो, तुम मुझे एक सुंदर सा गुलदान देते हुए कहो- यह वह गुलदान है जिसे मैं तुम्हारे लिए शादी की हर सालगिरह पर फूलों से भरा करूँगा। या कभी तुम मुझे एक रोमांटिक इंडोर पिकनिक से सरप्राइज कर दो, जो कंबल और मोमबत्तियों से पूर्ण हो और तुम खाने में मेरी पसंदीदा कढ़ाई-प्लेट डिश को ऑर्डर करना न भूले हो।
मैं जानती हूँ कि शादी के बाद पत्नी को रिझाना या पटाना थोड़ा-सा मुश्किल जान पड़ता है। शादी से पहले डेटिंग के दौरान हम सभी क्लोज-अप की मुस्कान और दफ्तर के एक्जिक्यूटिव के से तौर-तरीके लिए होते हैं। साथ ही योजनाओं में बाधा डालने के लिए बच्चे भी नहीं होते। पानी और बिजली के बिल और कार लोन की किस्तें भी दरमियान में नहीं होंती। लेकिन इन हालात के बावजूद जब पति अपनी पत्नी को वू करता है तो वह इस जानकारी के साथ करता है कि बिना मेकअप के सुबह दाँत साफ करती हुई उसकी पत्नी कैसी दिखाई देती है। जाहिर है कोई सुंदर दृश्य नहीं होता। इसलिए शादी के बाद की वूइंग हम महिलाओं के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।
मेरी एक सहेली है, वह जब दफ्तर के लिए निकलती है तो उसका पति दरवाजे पर छाता पकड़ाना नहीं भूलता ताकि वह अपने आपको धूप से बचा सके। यह कोई बड़ी बात नहीं है, लेकिन इससे पता चलता है कि उसका पति उसकी जरूरतों का कितना ख्याल रखता है। निखिल, क्या मेरी हसरतें एक टूटा हुआ सा ख्वाब ही बनकर रह जाएँगी? अगर नहीं तो कुछ नए अंदाज से मुझे कभी वू करो ताकि मुझे अहसास हो जाए कि तुम मेरी परवाह करते हो और हमारा रोमांस हमारे वैवाहिक जीवन में भी जारी रहे। इस उम्मीद के साथ कि तुम मेरी इन बातों पर गौर करोगे, तुम्हें हमेशा प्यार करने वाली, तुम्हारी रेखा।
Labels: प्रेम गुरु
Posted by Udit bhargava at 2/14/2010 09:14:00 am 0 comments
ये इश्क नहीं आसाँ...
'मुझे तो अब भी यकीन नहीं हो रहा यार कि राजेश ने सोनम के अलावा किसी और से शादी कर ली। आदमी इतना बदल कैसे जाता है?' सचिन के मुँह से यह वाक्य सुनकर अब तक चुपचाप बैठे मनीष ने कहा, 'हाँ यार, राजेश और सोनम को हम लोग दो जिस्म एक जान समझा करते थे। कॉलेज के दिनों में कैसे दोनों के चेहरे हमेशा फूल की तरह खिले रहते थे।
कॉलेज के लड़के-लड़कियाँ उनके प्रेम को अपना आदर्श मानते थे। मैंने तो सपने में भी नहीं सोचा था कि राजेश सोनम के अलावा किसी और से शादी करने के बारे में सोच तक सकता है। 'सोनम और राजेश की यह कहानी अकेले उनकी ही नहीं है। कॉलेज जाने वाला हर लड़का और लड़की प्रेम के इस दरिया में डुबकियाँ लगाना चाहते हैं। यह बात अलग है कि ज्यादातर की परिणति वही होती है, जो राजेश और सोनम के प्यार की हुई। कॉलेज के संबंध बेवफाई की एक अंतहीन दास्ताँ है। यह कोई नया ट्रेंड भी नहीं है। हमेशा से ऐसा होता रहा है।
यह बात अलग है कि कॉलेज जाने वाला हर लड़का और लड़की प्रेम करना चाहते हैं, लेकिन कुछ ही किस्मत वाले होते हैं जो तमाम बाधाओं के बावजूद कॉलेज के दिनों के कस्मे-वादों को उम्र भर हमसफर बनकर निभाते हैं। एक शायर ने भी कहा है- 'ये इश्क नहीं आसाँ इतना तो समझ लीजै, एक आग का दरिया है और डूब के जाना है।' ये दो पंक्तियाँ प्यार की कठिन डगर को बयान करने के लिए काफी हैं। फिर भी सब कुछ जानते हुए भी लड़के-लड़कियाँ इस दरिया में कूद ही जाते हैं।
समाज में लैला-मजनू के किस्से बेशक ध्यान से सुने जाते हों, लेकिन समाज को यह कतई मंजूर नहीं कि इस तरह की प्रेम कहानी उसका हिस्सा भी बने। फिर भी गली-मोहल्लों से लेकर कॉलेजों तक प्यार में दिल लूटने-लुटाने वालों की कमी नहीं रहती। हर लड़के-लड़की का ख्वाब होता है कि उसके सपनों का हमसफर उसे कहीं जिंदगी की राहों पर टकरा जाए। इसी कामना के वशीभूत वे एक-दूसरे में अपने प्यार का प्रतिबिंब तलाशते हैं। जहाँ भी इस प्रतिंिंबब की झलक दिखाई देती है, वहीं नजदीकियाँ बढ़ने लगती हैं। ये नजदीकियाँ प्यार में बदलती हैं, जिसकी परिणति अक्सर बेवफाई के रूप में सामने आती है।
वास्तव में देखा जाए तो प्यार की अग्निपरीक्षा शादी ही है। पर देखा गया है कि प्रेम की गाड़ी में सवार होकर चलने वाले इस अग्निपरीक्षा में अक्सर असफल हो जाते हैं। कॉलेज के प्रेम संबंधों का अक्सर दुखांत होता है। ऐसा आखिर क्यों है? यह सवाल प्रेम संबंधों के समाजशास्त्र में एक फाँस की तरह अटका हुआ है? कॉलेज में जो लड़का-लड़की एक पल भी एक-दूसरे के बगैर चैन से नहीं रह पाते, कॉलेज छोड़ते ही अक्सर एक-दूसरे को यूँ भूल जाते हैं जैसे ट्रेन में सफर के यात्री अपने स्टेशन के प्लेटफार्म पर उतरते ही अजनबी हो जाते हैं। अगर किसी का प्यार किसी तरह से शादी की मंजिल तक पहुँचता भी है, तो देखने में आता है कि वह अक्सर टूट जाता है। आखिर ऐसा क्यों होता है?
वास्तव में इसकी प्रमुख वजह यही है कि ये रिश्ते केवल दिल की भावनाओं पर टिके होते हैं। भावनाएँ भी ऐसी, जो एक हल्की सी ठोकर में ही चकनाचूर हो जाएँ। अक्सर कहा जाता है कि भावनात्मक आदमी अपने जीवन में कभी खुश नहीं रह सकता। यह बात सोलह आने सच है। भावनाएँ सपनों की आधारशिला पर टिकी होती हैं।
दूसरी तरफ सपनों का वास्तविकता से कोई लेना-देना नहीं होता। जब एक लड़का और एक लड़की प्रेम के मोहपाश में बँधते हैं, तो उनकी दुनिया सिर्फ और सिर्फ अपने तक ही सीमित होकर रह जाती है। वे सुबह सोकर उठने से लेकर रात को सोने तक केवल एक-दूसरे के बारे में ही सोचते हैं। इतना ही नहीं, सोने से पूर्व भगवान से यह प्रार्थना करना नहीं भूलते कि रात को सपने में उसका प्रिय दिखाई दे। प्यार को अगर नशा कहा गया है तो यह सही ही कहा गया है। जिस तरीके से नशेड़ी को दुनियादारी से कोई लेना-देना नहीं होता ठीक उसी तरह प्रेमी युगल का समाज के बंधनों अथवा रीति-रिवाजों से कोई सरोकार नहीं होता। यह प्यार सिर्फ 'टाइमपास' के लिए होता है। कॉलेज के दिनों में प्रेमी-प्रेमिकोमिकाओं की मुहब्बत मंजिल नहीं पाती अगर कोई जोड़ा शादी कर भी लेता है, तो ज्यादातर की शादी टूट जाती है क्योंकि शादी के बाद वे एक-दूसरे का वास्तविक स्वरूप देखते हैं, जो अक्सर कल्पनाओं से भिन्न होता है।
यही वह चीज होती है जो दोनों को अलगाव की नींव तक ले जाती है। जो लोग वास्तविकता से समझौता कर लेते हैं, वे तो सफल हो जाते हैं। जो सिर्फ अपनी कल्पनाओं को ही साकार देखना चाहते हैं, उनके बीच दूरियाँ बढ़ने लगती हैं। यही दूरी आखिर में दोनों को अलगाव की दहलीज तक खींचकर ले जाती है। यह अलगाव कई बार सामान्य अलगाव से अलग और उलझन भरा होता है। कहते हैं कि प्यार जब नफरत में बदल जाए तो वह ज्यादा खतरनाक होता है। यही वजह है कि जब दो प्रेमियों के बीच शादी के बाद अलगाव होता है तो उसकी प्रक्रिया काफी कष्टदायी होती है।
इस तरह के सैकड़ों उदाहरण हमारे सामने हैं। ये उदाहरण इस बात की पुष्टि करते हैं कि सपनों का टूटना आदमी को पागलपन की हद तक पहुँचा देता है। कॉलेज के ऐसे प्रेम-संबंध जो शादी की परिणति तक पहुँचते हैं, उनमे से नब्बे फीसदी अलगाव की भेंट चढ़ जाते हैं। यह सारा खेल सपनों के बनने एवं उनके टूटने पर टिका है। सच कहा जाए तो प्यार की दुनिया स्वप्निल दुनिया है। जब तक जमीनी सच्चाई से इसका मेल-मिलाप नहीं होता, तब तक इस दुनिया पर खतरे के बादल मँडराते रहते हैं।
शादी से पूर्व लड़की ख्वाब देखती है कि मेरा प्रेमी मुझे राजकुमारी की तरह रखेगा। लड़का सोचता है कि प्रेमिका मेरे सारे दुःखों को एक ही झटके में समाप्त कर देगी। लेकिन शादी के बाद ठीक इसके विपरीत होता है। इस विपरीत परिस्थिति से वे सामंजस्य नहीं बिठा पाते और गंभीर परिणाम भुगतते हैं। अतः कितना अच्छा हो कि यदि कल्पनाओं पर आधारित प्रेम को हकीकत की तराजू पर पहले ही तौलकर देख लिया जाए।
Labels: प्रेम गुरु
Posted by Udit bhargava at 2/14/2010 09:03:00 am 1 comments
'ये मेरा जीवन तेरे लिए है'
'मेरे पति एक पत्रकार हैं। मैं उनसे बहुत प्यार करती हूँ। जब भी मैं उनकी बाँहों में होती हूँ तब मुझे एक अजीब सी अनुभूति होती है। आज हमारी शादी के तीन साल हो गए हैं लेकिन मैं देख रही हूँ कि अब हमारे बीच में वह प्यार नहीं रहा जो पहले था। आजकल आलोक मुझसे ज्यादा अपने काम पर ध्यान देने लगे हैं। कभी-कभी लगता है वह मुझे बिल्कुल ही भूल गए हैं।
मेरे से बात करने के बजाय उन्हें अकेले में बातें करना ज्यादा अच्छा लगता है। बैठे-बैठे कुछ भी सोचा ही करेंगे, भले ही मैं उनके पास बैठकर उन्हें निहारा करूँ, उनका ध्यान इस ओर नहीं जाता। आखिर मैं थक गई हूँ।
अब मुझे तलाक चाहिए। यह बात जब मैंने उनको बताई तो वह मेरे सामने देखते ही रह गए। उन्होंने पूछा तुम क्यों मुझसे अलग होना चाहती हो। मैंने सिर्फ इतना कहा 'दुनिया में कुछ चीजें ऎसी भी होती हैं जिनका कोई कारण नहीं होता।'
उस दिन वह पूरी रात सोए नहीं। बस हर बार सिगरेट जलाकर कुछ ना कुछ सोचते रहे। मैंने सोचा कि शायद वह सुबह मुझसे कहेंगे कि 'मुझे माफ कर दो। अब मैं तुम्हें कभी कोई शिकायत का मौका नहीं दूँगा' लेकिन ऎसा कुछ भी नहीं हुआ। वह वैसी ही मुद्रा में थे जैसे वह रोज दिखते थे।
फिर भी उन्होंने मेरा दिल रखने के लिए कहा कि 'आखिर मैं क्या करूँ तुम्हारे लिए? मैं उनके जवाब से संतुष्ट नहीं थी फिर भी मैंने कहा क्या आप मेरे लिए वह कर सकते हैं जो मैं चाहती हूँ।क्या?
'मान लो कि हम दोनों एक ऊँची पहाड़ी पर हैं। वहाँ पर एक बहुत बड़ा लाल गुलाब का फूल है। जो मुझे बहुत पसंद है लेकिन वहाँ पर सिर्फ वही शख्स पहुँच सकता है जो मौत को गले लगाना चाहता है तो क्या तुम मेरे लिए वह फूल लाकर दे सकते हो?
'मेरी प्रिया'
मुझे माफ कर देना क्योंकि मैं तुम्हारे लिए वह पहाड़ी गुलाब नहीं ला सकता। तुम उसे मेरी कमजोरी कहो या और कुछ लेकिन उस पहाड़ी पर पहुँचने पर या तो मेरी मृत्यु हो सकती है या मेरे शरीर का कोई अंग मुझसे अलग हो सकता है जिसकी मुझे बहुत बहुत जरूरत है।
इतना पढ़कर मेरे दिल के टुकड़े-टुकड़े हो गए फिर भी हिम्मत जोड़कर आगे पढ़ने लगी। तुम उसे मेरी कमजोरी समझ सकती हो लेकिन यह बात सही है कि मैं मेरे शरीर के हर एक हिस्से से बहुत प्यार करता हूँ क्योंकि मेरा हर एक अंग तुम्हारे लिए काम करता है। उसके बिना तुम भी बिल्कुल अधूरी हो।
प्रिया, तुम जब भी कम्प्यूटर का उपयोग करती हो तब तुम्हें समय का ख्याल नहीं रहता और फिर तुम्हारा सिर दुखने लगता है। मैं अपनी अँगुलियों को बचाना चाहता हूँ ताकि उस वक्त मैं तुम्हारा सिर और तुम्हारी थकी हुई अँगुलियों को दबाकर तुम्हें कुछ आराम दे सकूँ।
तुम कई बार ऑफिस जाते वक्त अपना लंच ले जाना भूल जाती हो या लंच में देर हो जाती है तो उसे तुम्हारे ऑफिस तक पहुँचाने की जिम्मेदारी मेरी होती है। इसलिए मैं अपने इन पैरों को भी बचाना चाहता हूँ ताकि में दौड़कर तुम्हारे लिए लंच सही समय पर पहुँचा सकूँ।
कभी-कभी चलते-चलते तुम रास्ते के पत्थरों को लात मार देती हो जिससे कई बार तुम्हारे पैरों में चोट लगी है। इसलिए मैं अपनी आँखों को सलामत रखना चाहता हूँ ताकि जब भी तुम चलो मेरी आँखें हमेशा तुम्हें रास्ता दिखाएँ।
तुम हमेशा कम्प्यूटर के नजदीक रहती हो जो आँखो के लिए अच्छी बात नहीं है। मैं अपनी आँखें भी इसलिए सलामत रखना चाहता हूँ कि मेरी इन्हीं आँखों की मदद से तुम्हारे बड़े-बड़े नाखून काट सकूँ जो मुझे बिल्कुल भी पसंद नहीं और तुम्हारे सफेद बालों को छाँट सकूँ। तुम्हारा हाथ पकड़कर तुम्हें मंदिर ले जा सकूँ।
तुम हमेशा घर में रहना पसंद करती हो और कभी-कभी तनावग्रस्त हो जाती हो इसलिए मैं अपने मुँह और जुबान को बचाना चाहता हूँ ताकि जब भी तुम तनावग्रस्त हो तब मैं मिमिक्री कर और चुटकुले सुनाकर तुम्हारा मन बहला सकूँ।
तुम्हें गुलाब बहुत पसंद है लेकिन बाग में गुलाब के फूल तोड़ते समय कभी-कभी तुम्हारे हाथों में काँटा चुभ जाता है और खून निकल आता है मैं अपने हाथों को इसलिए बचाना चाहता हूँ कि जब भी तुम्हें फूल की जरूरत हो मैं खुद अपने हाथों से गुलाब तोड़कर तुम्हारे बालों में लगा सकूँ।
इसलिए मेरी प्रिया, मैं वह पहाड़ वाला गुलाब तोड़ने की भूल कभी नहीं करूँगा। क्योंकि मैं जीना चाहता हूँ सिर्फ और सिर्फ तुम्हारे लिए जीना चाहता हूँ। 'आई लव यू व्हेरी मच।' यह पढ़कर मेरी आँखें भर आईं। आगे लिखा था अगर तुमने पत्र का मजमून पढ़ लिया हो तो दरवाजा खोलना मत भूलना।
तुम्हारा आलोक
मैंने दरवाजा खोला। सामने देखा तो वह अपने दोनों हाथों में दूध की बोतल और ब्रेड के पैकेट लिए खड़े थे। उन्हें मालूम था कि अब तक न तो मैंने कुछ खाया होगा और ना ही कुछ बनाया होगा। अब मुझे पूरा यकीन हो गया था कि वह मुझे बहुत-बहुत प्यार करते हैं और मुझे जिस तरह के हसबैंड की जरूरत थी, उससे कहीं अधिक अच्छे हैं।
Labels: प्रेम गुरु
Posted by Udit bhargava at 2/14/2010 08:32:00 am 0 comments
आ तुझे चूम लूँ मैं...
"रुखसार पर है रंगे हया का फरोग
बोसे का नाम मैंने लिया वो निखर गए"
प्यार का इजहार, इकरार और फिर रोजाना की मुलाकातें, एक-दूसरे को जानने-समझने की कोशिश, कभी रूठना, कभी मनाना और भी न जाने क्या-क्या...! लेकिन इसी राह में कुछ अनकही बातें ऐसी भी होती हैं, जो बार-बार दिल में कसक पैदा करती हैं। दिल कहता है बस उनके साथ, उनके हाथों में हाथ लेकर, उनकी आँखों में आँखें डालकर देखते रहें और समझते रहें अनकहे शब्दों की जुबाँ।
सिर्फ उनके पास बैठने और निगाहों की जुबाँ समझने तक ही आपका दिल नहीं रुकता। जैसे-जैसे प्यार परवान चढ़ने लगता है आपकी अपेक्षाएँ बढ़ने लगती हैं। अब आप सिर्फ निगाहों में ही बातें नहीं करते आपके दिल में उठ रही लहर आपको इससे आगे बढ़ने के लिए उत्तेजित करती है। अब आप उन्हें अपनी बाँहों में भर लेना चाहते हैं, उन्हें चूमना चाहते हैं। लेकिन ये क्या? थोड़ा ठहरिए। क्या आप ठीक से चुंबन लेना जानते हैं?
हुंह... इसमें कौनसी बड़ी बात है?' यही सोच रहे हैं न आप। लेकिन जनाब आपको बता दूँ कि चुंबन लेना भी एक कला है और यदि आप इस कला में माहिर हैं तो इससे न सिर्फ आप संतुष्ट होंगे बल्कि आपके पार्टनर को भी अच्छा लगेगा।
अच्छा तो अब जरा आपको बता दें कि ये कला कैसे सीखी जाए लेकिन इसे सीखने के पहले एक बात का जरूर ध्यान रखें कि किसी भी प्रकार की जबर्दस्ती आपके प्यार में दरार डाल सकती है। अपनी उत्तेजना को काबू में रखें और प्रेम की मर्यादा बनाए रखें अन्यथा बाद में पछताने के सिवा कुछ नहीं रह जाएगा।
लीजिए सबसे पहली टिप्स। जब आप उनके साथ किसी रोमांटिक सी जगह पर बैठे हैं और आपका दिल बार-बार उन्हें चूमने के लिए कह रहा है लेकिन आप शायद इसलिए हिचक महसूस कर रहे हैं कि कहीं वो आपको गलत न समझ लें।
ना-ना इसमें इतना हिचकने वाली बात नहीं है। हो सकता है शायद उनके मन में भी यही हो बस इसे कम्प्लीट रूप देने की जरूरत है। क्या करें इसके लिए? उन्हें अपने करीब लाएँ और उनके कंधे या कमर में हाथ डालकर बैठे रहें। कुछ देर इस स्थिति में बैठे रहने के बाद उनका चेहरा अपने हाथों में लेकर उन्हें लगातार देखते रहें। एक्शन का रिएक्शन होगा। यानी उनकी भावनाएँ भी उभरकर सामने आने लगेंगी। अब फिर होना क्या है? वैसे भी जब आप इतने रोमांटिक तरीके से बैठे हैं तो चुंबन तो स्वाभाविक है।
जब आप उन्हें चूम रहे हैं तो आपके होंठों की क्या स्थिति हो, अब जरा इस पर बात कर ली जाए। उनके होंठों पर चुंबन लेते समय आप दोनों के होंठ कुछ इस तरह से हों कि दोनों कम्फर्टेबल हों तो आप इसे अच्छे से अंजाम दे पाएँगे। यानी आपका ऊपरी होंठ उनके ऊपरी होंठ के ऊपर हो और निचला उनके निचले होंठ के अंदर। हाँ थोड़ा इस बात का भी ध्यान रखें कि आपके सिर विपरीत दिशाओं में थोड़े झुके हों और आपकी नाक एक-दूसरे से नहीं टकराए।
अपने होंठों को बिलकुल वैसी ही गति दें जैसे आप किसी च्यूइंगम को चबा रहे हों या फिर किसी गोली को चूस रहे हों। अं.... वैसे ये कोई बताने वाली बात नहीं है क्योंकि ये अपने आप ही हो जाएगा।
कुछ और रोमांटिक बनाने के लिए उन्हें अपने से थोड़ा दूर करें और फिर करीब खींचकर चूमें। अपनी जीभ उनके होंठों पर फिराएँ। उनके गालों पर, ठोढ़ी पर और गर्दन पर चुंबन लें। ये कुछ ऐसे करें कि आपकी भावनाएँ स्पष्ट रूप से नजर आएँ। और हाँ इस बात का ध्यान जरूर रखें कि आपकी भावनाएँ पवित्र हों, किसी प्रकार का गलत विचार आपके मन में न हो। यदि ऐसा हुआ तो यह आपके चेहरे पर साफ तौर से झलकेगा और ये बात आपका साथी जरूर समझ जाएगा।
Labels: प्रेम गुरु
Posted by Udit bhargava at 2/14/2010 08:30:00 am 0 comments
रामायण – उत्तरकाण्ड - च्यवन ऋषि का आगमन
एक दिन जब श्रीराम अपने दरबार में बैठे थे तो यमुना तट निवासी कुछ ऋषि-महर्षि च्यवन जी के साथ दरबार में पधारे। कुशल क्षेम के पश्चात् उन्होंने बताया, "महाराज! इस समय हम बड़े दुःखी हैं। लवण नामक एक भयंकर राक्षस ने यमुना तट पर भयंकर उत्पात मचा रखा है। उसके अत्याचारों से त्राण पाने के लिये हम बड़े-बड़े राजाओं के पास गये परन्तु कोई भी हमारी रक्षा न कर सका। आपकी यशोगाथा सुनकर अब हम आपकी शरण आये हैं। हमें आशा है आप निश्चय ही हमारा भय दूर करेंगे।"
ऋषियों के यह वचन सुनकर सत्यप्रतिज्ञ श्री राम बोले, "हे महर्षियों! यह समस्त राज्य और मेरे प्राण भी आपके लिये ही हैं। मैं आपको वचन देता हूँ कि मैं उस दुष्ट के वध का उपाय शीघ्र ही करूँगा। आप मुझे उसके विषय में विस्तार से बतायें।" च्यवन ऋषि बोले, "हे राजन्! सतयुग में लीला नामक दैत्य का पुत्र मधु बड़ा शक्तिशाली और बुद्धिमान राक्षस था। उसने भगवान शंकर की तपस्या करके उनसे अपने तथा अपने वंश के लिये एक ऐसा शूल प्राप्त किये था जो शत्रु का विनाश करके वापस उसके पास आ जाता था। उन्होंने यह भी वर दिया कि जिसके हाथ में जब तक यह शूल रहेगा, तब तक वह अवध्य रहेगा। उसी मधु का पुत्र लवण है जो अत्यन्त दुष्टात्मा है और उस शूल के बल पर निरन्तर हमें कष्ट देता है। वह प्रायः किसी न किसी ऋषि, मुनि, तपस्वी को अपने आहार बनाता है। वन के प्राणियों, मनुष्यादि किसी को भी वह नहीं छोड़ता।"
यह सुनकर राम ने सब भाइयों को बुलाकर पूछा, "इस राक्षस को मारने का भार कौन अपने ऊपर लेना चाहता है?" यह सुनकर शत्रुघ्न बोले, "प्रभो! लक्ष्मण ने आपके साथ रहते हुये बहुत से राक्षसों का संहार किया है। भैया भरत ने भी आपकी अनुपस्थिति में नन्दीग्राम में रहते हुये अनेक दैत्यों को मौत के घाट उतारा है। इसलिये लवणासुर से निपटने का कार्य मुझे सौंपने की कृपा करें।"
श्री राम बोले, "ठीक है, तुम ही लवणासुर का संहार करो और उसे मारके मधुपुर में अपना राज्य सथापित करो। मैं तुम्हें वहाँ का राजसिंहासन सौंपता हूँ।" फिर उन्होंने शत्रुघ्न को एक अद्भुत अमोघ बाण देकर कहा, "इस अद्भुत बाण से ही मधु और कैटभ नामक राक्षसों का विष्णु ने वध किया था। इससे लवणासुर अवश्य मारा जायेगा। एक बात का ध्यान रखना कि वह अपने शूल को महल के अन्दर एक प्रकोष्ठ में रखकर नित्य उसका पूजन करता है। जब वह तुम्हें अपने महल के बाहर दिखाई दे तभि तुम उसे युद्ध के लिये ललकारना। अभिमान के कारण वह तुमसे युद्ध करने लगेगा और शूल के लिये महल के अन्दर जाना भूल जायेगा। इस प्रकार वह रणभूमि में तुम्हारे हाथ से मारा जायेगा।"
बड़े भअई की आज्ञा पाकर शत्रुघ्न ने विशाल सेना लेकर श्रीराम द्वारा दिय गये निर्देशों के अनुसार लवणासुर को मारने की योजना बराई। उन्होंने सेना को ऋषियों के साथ आगे भेज दिया। एक माह पश्चात् उन्होंने अपनी माताओं, गुरुओं और भाइयों की परिक्रमा एवं प्रणाम कर अकेले ही प्रस्थान किया।
Posted by Udit bhargava at 2/14/2010 08:20:00 am 0 comments
कैसे बनाएँ रोबोटिक्स में करियर?
मैं रोबोटिक्स के क्षेत्र में करियर बनाना चाहता हूँ। कृपया मार्गदर्शन दें।
- रोबोटिक्स कम्प्यूटर विज्ञान की वह शाखा है जिसमें यह सीखा जाता है कि कम्प्यूटर में आदमी जैसी बुद्धि कैसे आए। रोबोटिक्स का उद्देश्य ऐसे रोबोट्स बनाना है, जो समस्याओं को हल कर सके। रोबोट तकनीक के अध्ययन के लिए इंजीनियरी डिग्री आवश्यक है। यदि आप रोबोटिक्स में डिजाइनिंग तथा कंट्रोल में विशेषज्ञता प्राप्त करना चाहते हैं तो आपको मैकेनिकल इंजीनियरिंग में डिग्री हासिल करना होगी।
कंट्रोल तथा हार्डवेयर में डिजाइनिंग के लिए इलेक्ट्रिकल या इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग की बी-टेक डिग्री जरूरी है। रोबोटिक्स में दिलचस्पी रखने वाले छात्र गणित में अच्छे होने चाहिए। उनमें सृजनात्मक योग्यता की भी आवश्यकता होती है। रोबोटिक्स से संबंधित पाठ्यक्रम इन संस्थानों में उपलब्ध हैं- इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस, बंगलुरु/ इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, दिल्ली/ कानपुर/मुंबई/ चेन्नई/ खड़गपुर/ गुवाहाटी तथा रुड़की। यूनिवर्सिटी ऑफ हैदराबाद/ बिड़ला इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी एंड साइंस, पिलानी।
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Posted by Udit bhargava at 2/14/2010 07:46:00 am 0 comments
पेट दर्द के घरेलू नुस्खे
1। अजवायन को तवे पर सेंक कर फाँकने से पेट दर्द में फायदा होता है।
2। अजवायन के चूर्ण में पिसा काला नमक मिला कर गर्म पानी के साथ लेने से पेट की तकलीफ दूर होती है।
3। सूखा अदरक चूसने से भी पेट दर्द में आराम होता है।
4। जीरा भूनकर चबाने से भी पेट दर्द में आराम मिलता है।
5। हींग को आधी कटोरी पानी में गला कर यह पानी पेट पर लगाने से आराम मिलता है।
6। बिना दूध की चाय पीने से पेट दर्द ठीक होता है।
Posted by Udit bhargava at 2/14/2010 07:03:00 am 0 comments
थाईलैंड की 'अतिथि देवो भवः' परंपरा
थाईलैंड में धार्मिक आस्था ज्यादा नजर आती है। वहाँ पर घरों और दुकानों के सामने छोटे-छोटे मंदिर दिखते हैं। भारत में जैसे घरों में तुलसी-चौरा होते हैं, वैसे ही वहाँ बुद्ध की प्रतिमा वाले छोटे-छोटे मंदिर होते हैं। वहाँ की पूजा परंपरा भारतीय परंपरा से मिलती-जुलती है। लोग कपड़े, फल, अगरबत्ती आदि चढ़ावे के साथ मंदिर जाते हैं। वहाँ करीब पैंतीस हजार बौद्ध मंदिर हैं।
फूकेट में पर्वत पर भगवान बुद्ध की विशाल प्रतिमा है, जहाँ पहुँचने के लिए ऊँची पहाड़ी चढ़नी पड़ती है। फूकेट में ही बुद्ध की तीन मंजिला मंदिर है। वहाँ पर आस्था व्यक्त करने के लिए श्रद्धालु पटाखा चलाते हैं। पटाखा चलाने के लिए एक गुम्बद बना हुआ है। अतिथि सत्कार भी वहाँ सैलानियों को आकर्षित करता है। 'अतिथि देवो भवः' की परंपरा वहाँ भी है।
भगवान बुद्ध के अनुयायी वाले देश में हिन्दू मंदिर भी काफी हैं। वहीं गणेश जी, शंकर-पार्वती और गरूड़ की प्रतिमाएँ घरों और होटलों में दिखती हैं। बैंकाक में एक विशाल मॉल के सामने गणेश जी की प्रतिमा के सामने हिन्दुओं के साथ-साथ बौद्ध भी शीश नवाते दिखे। वहाँ भगवान की प्रतिमा के सामने दीये की जगह मोमबत्ती जलाने का चलन है।
भारत की तरह वहाँ भी भगवान की प्रतिमा पर फूल-माला चढ़ाने की परंपरा है। गेंदे के फूल की माला, सेवंती और गुलाब फूल चढ़ाए जाते हैं। अतिथि सत्कार की भी वहाँ विशेष परंपरा दिखी। एक रंग-बिरंगे फूल से अतिथियों का स्वागत किया जाता है। इस फूल की बेल नारियल के वृक्ष पर परजीवी होती है।
बैंकाक में बुद्ध की विशाल प्रतिमा भी लोगों को आकर्षित करती है। यह प्रतिमा पूरी तरह सोने की बनी है। थाईलैंड में सोने की पॉलिश वाली कई बौद्ध प्रतिमाएँ भी हैं। थाईलैंड गए साहित्यकारों व पत्रकारों का दल बैंकाक के जिस होटल में ठहरा था, वहाँ शंकर जी और पार्वती की प्रतिमा स्थापित थी। बैंकाक के सिलोम इलाके में कई हिन्दू मंदिर भी हैं, जहाँ शंख और घंटे की आवाज पूजा के दौरान गूंजती है। कुछ जगहों पर चर्च और मस्जिद भी दिखे। वहाँ सबसे उल्लेखनीय बात यह दिखी कि सड़क किनारे कोई भी मंदिर नहीं दिखा। मंदिरों में पार्किंग और शेड की व्यवस्था भी दिखी।
धर्म के प्रति आस्था के चलते यहाँ दोनों हाथ जोड़कर नमस्कार करने की परंपरा है। दुकानों में सामान की खरीदी के बाद दुकानदार ग्राहक को दोनों हाथ जोड़कर प्रणाम करता है। थाई में सुबह-सुबह अभिनंदन के लिए महिलाएँ सबातीखा और पुरुष सबातीक्राप शब्द का इस्तेमाल करते हैं। थाईलैंड में हाथी का विशेष महत्व है। घरों की दीवारों पर हाथी की आकृतियाँ देखने को मिलती हैं। पेंटिंग और वस्त्रों पर भी हाथी का चित्रांकन दिखता है। पटाया से करीब 20 किमी दूर नूनचुंग विलेज में हाथियों की प्रतियोगिता रोजाना आयोजित होती है।
वे पर्यटकों को विशेष मेहमान मानते हैं। यह प्रतियोगिता पर्यटकों को काफी आकर्षित करती है। पर्यटकों के मनोरंजन के लिए पटाया में टिफनी शो का आयोजन होता है। यह शो थाई, भारतीय और यूरोपीय देशों का मिलाजुला सांस्कृतिक समागम होता है। इसमें कलाकार तरह-तरह के रूप धारण कर नृत्य करते हैं। पटाया में पर्यटकों के मनोरंजन के लिए और भी कई तरह के कार्यक्रम आयोजित होते हैं। इन कार्यक्रमों के लिए टिकट के रूप में 500 से 1500 बाथ तक देना होता है।
Posted by Udit bhargava at 2/14/2010 06:23:00 am 0 comments
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