योग आपको हर पल शरीर और मन से युवा बनाए रखने की ताकत रखता है। बशर्ते कि आप इसे नियमित करते हैं। कुछ आसनों का चयन किया जा सकता है उनके लाभ को देखते हुए। आसनों के अलावा योग के अन्य उपाय करना भी युवा बने रहने के लिए आवश्यक है। यहाँ प्रस्तुत हैं यौन जीवन को स्वस्थ बनाए रखकर यौवन को बरकरार रखने के कुछ टिप्स।
सेक्स से पहले योग :
सेक्स से पहले योग करने से भरपूर ऊर्जा शक्ति का संचार होता है। यह ऊर्जा सेक्स के दौरान काफी लाभदायक सिद्ध हो सकती है। स्वस्थ और आनंददायक सेक्स के लिए सेक्स से पूर्व योग आपके दिमाग और माँसपेशियों को तरोताजा कर देता है। योगासन करने के बाद योग स्नान शरीर को ताजगी से भर देता है जो आपके आनंद को स्वस्थ और सुगंधित बनाए रखने के लिए जरूरी है।
रेचक का झंझावात :
तेज, गहरी तथा अराजकपूर्ण भस्रिका से भी अधिक तीव्रता से श्वास लें। इसमें श्वास लेने से ज्यादा जोर छोड़ने पर। श्वास का झंझावात खड़ा कर दें जो आपके तन-मन को झकझोर दे ऐसा। चीखें, चिल्लाएँ, नाचें, गाएँ, रोएँ, कूदें, हँसें या फिर शरीर को इस कदर हिलाएँ-डुलाएँ कि जैसे कोई भूत आ गया हो। पूरी तरह से पागल हो जाएँ। सिर्फ 10 मिनट के लिए और फिर 10 मिनट का ध्यान करें। लेकिन यह सब योग चिकित्सक की देखरेख में ही करें।
बारह आसनों का जादू :
बारह आसनों को आप नियमित करें। इन्हें आपके जीवन का हिस्सा बना लें। इनके करने से किसी भी प्रकार का यौन रोग नहीं होगा। इससे आपका यौवन बरकरार रहेगा। यह बारह आसन निम्न हैं- पद्मासन, अर्धमत्स्येंद्रासन, सर्वांगासन, हलासन, धनुरासन, पश्चिमोत्तनासन, मयुरासन, भद्रासन, मुद्रासन, भुजंगासन, चंद्रासन और शीर्षासन।
योगा मसाज :
आप स्वयं चेहरे पर हलका-सा क्रीम या तेल लगाकर धीरे-धीरे उसकी मालिश करें। इसी तरह हाथों और पैरों की अँगुलियाँ, सिर, पैर, कंधे, कान, पिंडलियाँ, जंघाएँ, पीठ और पेट की मालिश करें। अच्छे से शरीर के सभी अंगों को हलके-हलके दबाएँ जिससे रुकी हुई ऊर्जा मुक्त होकर उन अंगों के स्नायु में पहुँचे तथा रक्त का पुन: संचार हो।
योगा स्नान :
सुगंध, स्पर्श, प्रकाश और तेल का औषधीय मेल सभी शारीरिक व मानसिक विकारों को दूर करता है। इसे आयुर्वेदिक या स्पा स्नान भी कहते हैं। इस स्नान के कई चरण होते हैं। इन चरणों में अभ्यंगम, शिरोधारा, नास्यम, स्वेदम और लेपन आदि अनेक तरीके अपनाए जाते हैं। इसके पूर्व आप चाहें तो पंचकर्म को भी अपना सकते हैं। पंचकर्म अर्थात पाँच तरह के कार्य से शरीर की शुद्धि करना। ये पाँच कार्य हैं- वमन, विरेचन, बस्ति-अनुवासन, बस्ति-आस्थापन और नस्य।
यौगिक आहार :
यह बहुत आवश्यक है। यदि आप कुछ तो भी खाते रहते हैं तो फिर शरीर भी कुछ तो भी आकार लेने लगेगा। यह रोगग्रस्त भी हो सकता है और इससे वात, पित्त और कफ का संतुलन बिगड़ जाता है, इसीलिए जरूरी है यौगिक आहार।
प्रतिबंध :
जितना भोजन लेने की क्षमता रखते हैं उससे कुछ कम ही लें। भोजन मसालेदार, माँसाहार और मिर्च वाला न हो। कड़वा, खट्टा, तीखा, नमकीन, गरम, खट्टी भाजी, तेल, तिल, सरसों, मद्य, मछली, बकरे आदि का माँस, दही, छाछ, बेर, खल्ली, हींग, लहसुन और बासी भोजन का त्याग करें।
ये अपनाएँ :
भोजन में घी, रस और रेशों की मात्रा ज्यादा हो। चावल, ज्वार, जौ, दूध, घी, खाण्ड, मक्खन, मिश्री, मधु, हरी सब्जी, मूँग, हरा चना और फल का सेवन करें। भोजन पुष्टिकारक, सुमधुर, सुपाच्य हो।
अंतत:
यह कहने में कोई हर्ज नहीं कि यदि उपरोक्त उल्लेखित बातों का आप अनुसरण करते रहते हैं तो जीवनभर स्वस्थ और युवा बने रहेंगे।
21 मार्च 2010
योग से यौवन का आनंद
Posted by Udit bhargava at 3/21/2010 03:21:00 pm
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
एक टिप्पणी भेजें