शारदा, भूषण और पार्वती की इकलौती पुत्री थी। वे गंगापुर के निवासी थे। वे बड़े किसान परिवार के थे। उन्हें किसी भी चीज़ की कमी नहीं थी। पूरा परिवार हमेशा यथा शक्ति दूसरों की सहायता करता रहता था।
बालिग़ शारदा बड़ी ही अ़क्लमंद और होशियार थी। गॉंव के किसी आदमी को अगर किसी समस्या का सामना करना पड़ता तो वह पल भर में उसका समाधान कर देती। उसके माता-पिता उससे बेहद खुश थे।
शारदा के विवाह के प्रयत्न शुरू हो गये। भूषण ने पुरोहित को बुलवाया और उससे विषय बताया। पुरोहित ने फ़ौरन थैली में से दो छायाचित्र निकाले और उनमें से प्रथम छायाचित्र को दिखाते हुए कहा, ‘‘इस लड़के का नाम चंद्र है। यह रामापुर का है। यह अपने माँ-बाप का इकलौता पुत्र है। नाम के अनुरूप ही यह स्वच्छ है। चाँद की तरह इसमें कोई दाग़ नहीं है। अब रही संपत्ति की बात, आराम से जीवन बिताने के लिए जितनी पर्याप्त चाहिये, उतनी है। इनका घर सदा ज़रूरतमंद लोगों से भरा हुआ रहता है।'' पुरोहित ने कहा।
इसके बाद द्वितीय छायाचित्र दिखाते हुए पुरोहित ने कहा, ‘‘इसका नाम भास्कर है। यह शंखवर गाँव का है। आकाश भले ही मेघों से आच्छादित क्यों न हो, पर यह उस मध्याह्न सूर्य की तरह है, जो सबको दिखता है। सूर्यास्त पश्चिम में होता है, पर यह वह सूर्य है, जिसका कभी अस्त नहीं होता। उसकी अपार संपत्ति है। चंद्र से चार गुना अधिक। वह उस परिवार का एकमात्र वारिस है।''
शारदा के माता-पिता ने अपना निर्णय चार दिनों के बाद सुनाने का आश्वासन देकर उसे भेज दिया। फिर, उसी रात को उन्होंने शारदा से उसकी राय पूछी। शारदा ने बिना सकपकाये निस्संकोच कह दिया, ‘‘मैं चंद्र से विवाह करूँगी।''
‘‘क्या कह रही हो बेटी, संपत्ति में भास्कर, चंद्र से चार गुना बड़ा है। हम तो समझ रहे थे कि भास्कर से शादी करोगी तो तुम सुखी रहोगी।'' माँ पार्वती ने कहा। भूषण ने पत्नी का समर्थन किया।
‘‘लगता है, आपकी दृष्टि केवल संपत्ति पर ही है। आपने पुरोहित की बातों का अंतरार्थ नहीं समझा।'' शारदा ने कहा।
‘‘पुरोहित ने कहा था कि भास्कर सूर्य के समान है, जिसका कभी अस्त नहीं होता। इसका यह मतलब हुआ कि वह बहुत ही क्रोधी है। सबों पर अपनी धाक जमाता रहता है, उनपर अपना अधिकार चलाने की कोशिश करता है। बादल छा भी जाएँ तो वह चमकनेवाला है, अपना प्रकाश विकीर्ण करने की तीव्र आकांक्षा रखता है, जिसका यह अर्थ हुआ कि वह किसी की बात सुनने या मानने को तैयार नहीं। ऐसे व्यक्ति के साथ रह कर मैं कैसे परिवार चला सकूँगी।'' शारदा ने कहा।
‘‘तो चंद्र के बारे में तुम्हारा क्या कहना है?'' माँ ने पूछा।
‘‘चंद्र का अपना प्रकाश नहीं है। वह सूर्य की कांति को स्वीकार करता है और शीतल चांदनी को बिखेरता है। इसका यह मतलब हुआ कि चंद्र अपने माता-पिता व बड़ों की सलाहें लेता है, खुद सोचता है और फिर आगे बढ़ता है। अगर मैं उससे शादी करूँगी तो वह मुझसे भी सलाह लेगा। इससे आपस में या परिवार में कोई गड़बड़ी नहीं होगी, भेद-भाव नहीं होंगे। इसीलिए पुरोहित ने चंद्र को स्वच्छ और निर्मल कहा। उस घर के लोग सबसे हिल-मिलकर रहते हैं, इसीलिए वह घर सदा लोगों से भरा हुआ होता है। जायदाद चाहे कितनी ही कम क्यों न हो, हमें बस, पेट भर खाना है। हमारे घर में जिस तरह का वातावरण है, उसी तरह का वातावरण चंद्र के घर में भी है। मानवीय लक्षणों से सुसज्जित चंद्र ही मेरा पति होने के सर्वथा योग्य है। वहाँ जो भी मिले, उसी से मैं संतृप्त रहूँगी।'' शारदा ने दृढ़ स्वर में कहा।
भूषण और पार्वती को बेटी की बातें, विचार और तर्क बिलकुल सही लगे। अपनी बेटी की अ़क्लमंदी पर पार्वती फूली न समायी। शारदा की इच्छा के अनुसार ही चंद्र से शारदा का विवाह संपन्न हुआ।
30 मार्च 2010
शारदा का निर्णय
Posted by Udit bhargava at 3/30/2010 06:06:00 pm
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
एक टिप्पणी भेजें