30 मार्च 2010

कांत का महाभाग्य


केशवपुर का निवासी कांत अनाथ था। उसका अपना कोई नहीं था। वह बड़ा ही मेहनती था। हर काम को जी-जान से करता था। उसके इस गुण की सब प्रशंसा करते थे। उसके इस गुण से प्रभावित होकर एक भूस्वामी ने उससे कहा, ‘‘मेरा दामाद कामेश शहर में रहता है। उसे तुम जैसे मेहनती की ज़रूरत है। वेतन भी यहाँ से ज़्यादा मिलेगा। वहाँ क्यों नहीं चले जाते?’’

कांत ने भूस्वामी की बात मान ली और शहर जाने निकल पड़ा। वहाँ पहुँचने के लिए एक छोटे-से जंगल से जाना पड़ता था। उसने उस जंगल में उदास बैठे एक युवती और एक युवक को देखा। उस युवक का नाम माधव था और उसकी बहन का नाम था, वंदना। वे दोनों भी शहर ही जा रहे थे । वंदना चलते-चलते थक गयी थी और एक क़दम भी आगे बढ़ा नहीं पा रही थी।

रात के समय जंगल में रहने से ख़तरा ही ख़तरा था। उनकी परेशानी को ताड़ गया कांत। अपने बारे में विवरण देते हुए उसने उन्हें धैर्य दिया। उसकी सहायता से माधव और वंदना अंधेरा छा जाने के पहले ही शहर पहुँच गये।

जब उनसे बिदा लेकर कांत जाने वाला था, तब माधव ने उसे दस अशर्फियाँ देते हुए कहा, ‘‘यह रक़म स्वीकार करोगे तो मुझे बड़ी खुशी होगी।’’ परंतु, कांत ने यह कहते हुए उस रक़म को लेने से इनकार कर दिया कि वंदना मेरी बहन जैसी है।

माधव ने कहा, ‘‘मैं ज्योतिषी हूँ। तुम्हारा चेहरा देख कर मैं जान गया हूँ कि कुछ सालों तक हम दोस्त बने नहीं रह सकते। पर तुमने जो सहायता की, उसके लिए तुम्हें थोड़ी रक़म ही सही, लेनी पड़ेगी।’’

कांत ने, माधव से एक अशर्फी मात्र ली और कहा, ‘‘अगर सचमुच ही तुम ज्योतिषी हो तो मुझसे यह अशर्फी लो और बताओ कि शहर में मेरी क्या स्थिति होगी।’’ यों कहते हुए उसने वह अशर्फ़ी उसके हाथ में थमा दी।

माधव ने, कांत की हस्तरेखाओं को ग़ौर से देखा और कहा, ‘‘तुम महाभाग्यशाली बनोगे। परंतु यह तभी संभव होगा, जब शादी होगी और तुम और तुम्हारी पत्नी दोनों एक-दूसरे को एक ही नाम से संबोधित करेंगे। अगर यह मुमकिन नहीं हो पाया तो इसका एक विकल्प भी है। तुम्हारी संतान में से कोई इसी पद्धति को अपनायेंगे तो तुम्हारा भाग्य चमकेगा। तब तक तुम्हारे भाग्यशाली होने की कोई गुंजाइश नहीं है। तुम्हें यह राज़ किसी दूसरे को बतलाना नहीं चाहिये। अगर राज़ खोल दोगे तो भाग्यशाली नहीं बनोगे।’’

बंदना ने कहा, ‘‘मेरे भैय्या का ज्योतिष अचूक है। तुम्हारे भाग्यशाली बनने में मैं भी अपनी तरफ़ से भरसक सहायता पहुँचाऊँगी।’’ इस घटना के बाद कांत, कामेश के यहाँ पहुँचा। कामेश बड़ा ही सज्जन था। थोड़े ही समय में कांत, कामेश के घर के सभी काम-काज संभालने लगा। उसके स्वभाव से प्रभावित होकर कामेश ने उसकी शादी भी कर दी। वधू का नाम चूँकि कांता था, इसलिए वह इस शादी के लिए तुरंत तैयार हो गया। कामेश तरह-तरह के व्यापार करता था। उसने किराने की दुकान की जिम्मेदारी उसे सौंप दी। अब कान्त पत्नी के साथ अलग घर में रहने लगा। पहले ही दिन उसने पत्नी से कहा,‘‘हम दोनों के नाम एक समान हैं। दोनों प्यार से एक-दूसरे को कांत कहकर बुलाते रहेंगे।’’

इस पर कांता ने कहा, ‘‘मेरी मॉं कहा करती थी कि पति को उसके नाम से बुलाना नहीं चाहिये। इससे बड़ा अनर्थ होगा।’’

यों कांत का महाभाग्य कुछ समय तक स्थगित हो गया। क्रमशः उनकी तीन संतान हुईं। बड़ी पुत्री का नाम रखा गया पद्मावती । उसके बाद जन्मे पुत्र का नाम रखा गयाकृष्ण। तीसरी संतान पुत्री के नामकरण के पहले ही मृत्यु-शय्या पर पड़ी उस बालिका को देखकर भूत वैद्य ने घोषित कर दिया कि इसका जीवित रहना संभव नहीं लगता। उसने कहा, ‘‘देवता भास्कर और वरुण तुमसे रूठे हुए हैं, इसी कारण तुम्हारा महाभाग्य टल गया है। पर एक उपाय है, जिससे यह बला टल सकती है। उन देवताओं के नामों के प्रथम अक्षरों को लेकर इस बच्ची का नाम रखोगे तो तुम्हारा शुभ होगा। उसके आधार पर इस बच्ची का नाम होगा भाव।’’

कांत ने भूत वैद्य की सलाह मान ली। देखते-देखते वह बच्ची स्वस्थ हो गयी। जब पद्मावती बालिग़ हो गयी, कांत ने पद्मनाथ नामक एक युवक से उसकी शादी कर दी। ससुराल भेजने के पहले कांत ने बेटी से कहा, ‘‘अपने पति को प्यार से पद्म कहकर बुलाना। वह भी तुम्हें पद्म कहकर संबोधित करेगा। इससे तुम्हारा दांपत्य जीवन सुखी होगा।’’

परंतु, ऐसा नहीं हो पाया, क्योंकि पद्मावती के ससुराल में अपने पति को उसके नाम से बुलाना मना था। इसलिए पद्मनाथ अपनी पत्नी को अरी, ऐ कहकर बुलाता रहता था । कांत का महाभाग्य पुनः एक बार स्थगित हो गया।

अब रही पुत्री भाव, जिसको लेकर कांत को कोई उम्मीद नहीं थी। इसलिए कांत ने ठान लिया कि उसके भाग्यशाली होने की कोई गुंजाइश नहीं है। उसके हृदय में निराशा ने घर कर लिया।

उधर, कांत से अलग हो जाने के बाद माधव और वंदना थोड़े अर्से तक शहर में रहे और फिर विदेश चले गये। वहाँ वंदना की शादी श्याम नामक व्यापारी से और माधव की शादी रमा नामक एक व्यापारी की पुत्री से हो गयी। विविध व्यापार करते हुए उन्होंने अपार धन कमाया।

बीस सालों तक वहाँ रहने के बाद, अपने इकलौते बेटे भाव को लेकर बंदना स्वदेश पहुँची और उसी शहर में रहने लगी। वंदना का पति श्याम और माधव भी अपने परिवार के साथ जल्दी ही यहाँ आनेवाले थे।

इतने में, वंदना ने कांत के बारे में जानकारी पायी और उससे मिलने गयी। दोनों ने एक-दूसरे को पहचाना। वंदना ने कांत से कहा, ‘‘उस दिन तुमने बहन मानकर मेरी सहायता की। अब समय आ गया है जब हमारा परिचय रिश्तेदारी में बदल सकता है। लड़का और लड़की मान जाएँ तो तुम्हारी बेटी को अपनी बहू बनाना चाहती हूँ।’’

कांत ने सहर्ष इस प्रस्ताव को स्वीकार किया। दूसरे ही दिन वधू और वर ने एक दूसरे को देख लिया। दोनों ने इस विवाह के लिए अपनी सहमति दे दी। तब वंदना ने भाव से कहा, ‘‘मैं तुम्हारी फूफी हूँ। तुम मेरे बेटे को अपने ही नाम से पुकारो।’’ उसने अपने बेटे से भी यही बताया। दोनों को इस बात पर आश्चर्य और हर्ष भी हुआ कि दोनों के नाम एक ही हैं।


कांत खुशी से फूल उठा। उसने गदगदाते स्वर में कहा, ‘‘वंदना, तुमने उस दिन वचन दिया था कि तुम मेरे महाभाग्यशाली होने में भरसक सहायता करोगी। और तुमने अपना वचन निभाया। अब मेरी बेटी और मेरा होनेवाला दामाद एक ही नाम से एक-दूसरे को संबोधित करेंगे। इससे अधिक मुझे और क्या चाहिये।’’

विवाह धूमधाम से संपन्न हुआ। दूसरे ही दिन कांत को कामेश से बुलावा आया। उसने कांत से कहा, ‘‘लंबे अर्से तक तुमने मेरा व्यापार संभाला। अब स्वयं अपना व्यापार शुरू कर दो। पर यह सब होगा, मेरी निगरानी में। इसके लिए जो भी मदद तुम्हें चाहिये, तुम्हें दूँगा।’’

यह सुनकर कांत एकदम ठंडा पड़ गया। उसे लगा कि माधव की भविष्यवाणी ग़लत निकली और यह रिश्ता रास नहीं आया।

वंदना को जब यह विषय मालूम हुआ तो ढ़ाढ़स बंधाते हुए उसने कांत से कहा, ‘‘किसी के यहॉं काम करने से कोई महाभाग्यशाली नहीं बन सकता। नौकर हमेशा नौकर रहता है, चाहे पद कितना बड़ा क्यों न हो। अब तुम्हारे मालिक बनने का समय आ गया है। इस मौके को हाथ से न जाने दो। मैं और मेरे भाई हर तरह से तुम्हारी मदद करेंगे। स्वतंत्र रूप से जीने का मौक़ा अब तुम्हें मिल गया है। भाग्य उनका ही साथ देता है, जो स्वतंत्र होते हैं। अब वह महाभाग्य तुम्हें वरने वाला है। निश्चिंत होकर व्यापार में लग जाओ।’’

कांत अपनी भूल समझ गया। उसने कहा, ‘‘जान गया हूँ कि ज्योतिष भविष्य का सूचक मात्र है। मनुष्य अपना भविष्य स्वयं बनाता है। अब से अपना जीवन अपने हाथों बनाऊँगा और इस अवसर का पूरा लाभ उठाऊँगा।’’

इसके बाद उसने अपना व्यापार शुरू कर दिया और एक साल ही के अंदर शहर के प्रमुख व्यापारियों में से एक गिना जाने लगा।