सुनीता की शादी हाल ही में हुई। उसे ससुराल भेजते हुए उसकी माँ ने कहा, ‘‘आगे से तुम्हारी सास ही तुम्हारी माँ है। भगवान से भी अधिक उसका आदर करना।’’
सुनीता ने ससुराल में माँ की बातों का अक्षरशः पालन किया। बहू के व्यवहार से सास पद्मावती बेहद खुश हुई।
पद्मावती घर को बड़े ही सुंदर ढंग से सजाती थी। रसोई अच्छी बनाती थी। अच्छा गाती भी थी। सुनीता ने अपनी सास से बहुत कुछ सीखा। उसने एक दिन पद्मावती से कहा, ‘‘सासजी, देखने में आप महालक्ष्मी लगती हैं, पर सरस्वती की तरह कितनी ही विद्याएँ आप जानती हैं। मेरी माँ को इतना ज्ञान नहीं है। आपकी बहू बनकर नहीं आती तो कुएँ का मेंढक रह जाती।’’
पद्मावती ने खुश होकर कहा, ‘‘मैं यह तो नहीं जानती कि तुम्हारी माँ को क्या मालूम है और क्या नहीं मालूम, पर उसने तुम्हें सद्गुणों से भर दिया। वह हज़ार विद्याओं के समान है।’’
सुनीता के ससुराल आये महीना भी नहीं हुआ, उसके पति को राज दरबार में नौकरी मिल गयी। उसे अच्छा वेतन मिलेगा, अच्छा ओहदा भी। इसलिए पद्मावती सबसे कहा करती कि बहू के घर में क़दम रखते ही चमत्कार हो गया।
पति के साथ राजधानी जाते हुए सुनीता ने सास से कहा, ‘‘सासजी, आप महालक्ष्मी सी दिखती हैं। अगर हर रोज़ आप को नहीं देखूँगी तो इससे बढ़कर कमी और क्या हो सकती है।’’
चार साल बीत गये। सुनीता ने राजधानी में परिवार बसाने के पहले ही साल एक पुत्री को जन्म दिया। ज़िम्मेदारियों के कारण राघव अपने छोटे भाई गणपति की शादी पर भी घर नहीं आ सका।
गणपति की पत्नी तपति तीखे स्वभाव की थी। पद्मावती हमेशा अपनी बड़ी बहू की प्रशंसा करती थी। सुन-सुनकर तपति ऊब गयी और एक दिन कह डाला, ‘‘सासजी, दूर के पहाड़ चिकने लगते हैं। हमेशा यही कहा करती हैं कि वह मुझे महालक्ष्मी और सरस्वती कहती थी। पर क्या पता, अब आपके बारे में क्या कहती होगी।’’
छोटी बहू की बातों से पद्मावती को धक्का पहुँचा । वह पति से ज़िद करने लगी कि हम सब तुरंत राजधानी जायेंगे। एक शुभ मुहूर्त पर वे राजधानी जाने निकले। राघव राजधानी के बाहर उनसे मिला और सहर्ष अपने घर ले गया।
तब राघव की बेटी निर्मला छे साल की थी। उस बालिका ने स्वयं हर एक का परिचय प्राप्त किया और जब उसे मालूम हुआ कि पद्मावती उसकी दादी हैं तो आश्चर्य करते हुए उसने कहा, ‘‘वाह, आप मेरी दादी हैं? माँ आपके बारे में जो सबसे कहा करती है, उसके आधार पर मुझे लगा कि आप काली, मोटी और विकृत होंगी। पर आप तो गोरी हैं, पतली हैं और देवी लगती हैं।’’
पद्मावती का चेहरा फीका पड़ गया। तपति ने अपने हाव-भावों के द्वारा इशारा किया कि देखा, मैंने कितना ठीक कहा था।
बेटी की बातों पर सुनीता क्षण भर के लिए अवाक् रह गयी। पर वह तुरंत हँस पड़ी। राघव भी हँस पड़ा। वहाँ उपस्थित लोगों में से किसी की भी समझ में यह नहीं आया कि दोनों क्यों हँस रहे हैं । इतने में मिसरानी ने रसोई-घर से बाहर आते हुए कहा, ‘‘मालकिन, रसोई हो गयी।’’
यह मिसरानी बहुत ही काली, मोटी और विकृत थी। ‘‘सोचा नहीं था कि रसोई का काम इतनी जल्दी पूरा होगा। तुममें अन्नपूर्णा के अंश भरे पड़े हैं, महालक्ष्मी।’’ कहते हुए सुनीता ने उसकी प्रशंसा की।
इन बातों से पद्मावती और दूसरों को भी मालूम हो गया कि छे साल की बालिका निर्मला की बातों का क्या अंतरार्थ है। बस, सबके सब हँस पड़े। पद्मावती ने, ‘‘कितनी होशियार हो तुम,’’ कहते हुए निर्मला को प्यार से चूम लिया।
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