अष्टांग योग धर्म, अध्यात्म, मानवता एवं विज्ञान की प्रत्येक कसौटी पर खरा उतरता है। इस दुनिया के खूनी संघर्ष को यदि किसी उपाय से रोका जा सकता है तो वह 'अष्टांग योग' ही है। अष्टांग योग में जीवन के सामान्य व्यवहार से लेकर ध्यान एवं समाधि सहित अध्यात्म की उच्चतम अवस्थाओं का अनुपम समावेश है।
संसार के सभी व्यक्ति सुख व शांति चाहते हैं। विश्व के सम्पूर्ण राष्ट्र भी इस बात पर सहमत हैं कि विश्व में शांति स्थापित होनी चाहिए। प्रतिवर्ष इसी उद्देश्य से ही एक व्यक्ति को जो शांति स्थापित करने के लिए समर्पित होता है, नोबेल पुरस्कार प्रदान किया जाता है।
वैसे, शांति कैसे स्थापित हो, इस बात को लेकर सभी असमंजस की स्थिति में हैं। सभी लोग अपने-अपने विवेक के अनुसार इसके लिए कुछ चिंतन करते हैं, परंतु एक सर्वसम्मत मार्ग नहीं निकल पाता। कोई कहता है जिस दिन इस धरती पर केवल अमुक धर्म होगा उस दिन सभी सुख हो जाएँगे। कोई कहता है यदि सब किसी भगवान की शरण में आ जाएँ तो सर्वत्रा सुख और शांति हो जाएगी।
भारत में तो कई सम्प्रदायों, मत-पंथों एवं गुरुओं की भरमार है और सभी यह दावा करते हैं कि उनके द्वारा निर्दिष्ट पथ पर चलकर ही विश्व में सुख और शांति संभव है। इन सब मत-पंथों एवं संप्रदायों में वह उदात्तता, व्यापकता व समग्रता नहीं है जिससे कि मानव मात्रा उनको अपना सके। इन सबकी अपनी-अपनी सीमाएँ हैं।
दुनिया में तथाकथित धर्मों की एकछत्र स्थापना हेतु खूनी संघर्ष भी हुए परन्तु परिणाम कुछ भी नहीं निकला। अशांति बढ़ती ही जा रही है। इसका अर्थ है दुनिया के लोग जिन उपायों पर विचार कर रहे हैं, उनमें सार्थकता तो है परंतु परिपूर्णता, समग्रता व व्यापकता नहीं।
इन प्रचलित मत-पंथों, संप्रदायों एवं तथाकथित धर्मों को अपनाने से जहाँ व्यक्ति को एक ओर थोड़ी शांति मिलती है, वहीं इन संप्रदायों के पचड़े में पड़कर व्यक्ति कुछ ऐसे झूठे अंधविश्वासों, कुरीतियों एवं मिथ्या आग्रहों में फँस जाता है, जिनसे निकलना मुश्किल हो जाता है।
क्या ऐसे कुछ नियम-मान्यताएँ व मर्यादाएँ हो सकती हैं, जिन पर पूरी दुनिया के सभी व्यक्ति चल सकें? जिससे किसी भी व्यक्ति व राष्ट्र की एकता व अखंडता खंडित नहीं होती हो और न ही किसी का व्यक्तिगत स्वार्थ सिद्ध होता हो, जिसको प्रत्येक व्यक्ति अपना सकता हो और जीवन में पूर्ण सुख, शांति व आनंद प्राप्त कर सकता हो?
एक ऐसा पथ जिस पर निर्भय होकर पूर्ण स्वतंत्रता के साथ दुनिया का प्रत्येक इंसान चल सकता है और जीवन में पूर्ण सुख, शांति व आनंद को प्राप्त कर सकता है। यह है महर्षि पतंजलि प्रतिपादित अष्टांग योग का पथ। यह कोई मत-पंथ या संप्रदाय नहीं अपितु जीवन जीने की संपूर्ण पद्धति है। यदि संसार के लोग वास्तव में इस बात को लेकर गंभीर है कि विश्व में शांति स्थापित होनी ही चाहिए तो इसका एकमात्र समाधन है अष्टांग योग का पालन। अष्टांग योग के द्वारा ही वैयक्तिक व सामाजिक समरसता, शारीरिक स्वास्थ्य, मानसिक शांति एवं आत्मिक आनंद की अनुभूति हो सकती है।
अष्टांग योग धर्म, अध्यात्म, मानवता एवं विज्ञान की प्रत्येक कसौटी पर खरा उतरता है। इस दुनिया के खूनी संघर्ष को यदि किसी उपाय से रोका जा सकता है तो वह 'अष्टांग योग' ही है। अष्टांग योग में जीवन के सामान्य व्यवहार से लेकर ध्यान एवं समाधि सहित अध्यात्म की उच्चतम अवस्थाओं का अनुपम समावेश है।
योग का अर्थ है अपनी चेतना (अस्तित्व) का बोध। अपने अंदर निहित शक्तियों को विकसित करके परम चैतन्य आत्मा का साक्षात्कार एवं पूर्ण आनन्द की प्राप्ति। इस यौगिक प्रक्रिया में विविध प्रकार की क्रियाओं का विधन हमारे ऋषि-मुनियों ने किया है। योग क्रियाओं से हमारी सुप्त चेतना शक्ति का विकास होता है।
सुप्त (डैड) तंतुओं का पुनर्जागरण होता है एवं नए तंतुओं कोशिकाओं (सेल्स) का निर्माण होता है। योग की सूक्ष्म क्रियाओं द्वारा हमारे सूक्ष्म स्नायुतंत्रा को चुस्त किया जाता है जिससे उनमें ठीक प्रकार से रक्त परिभ्रमण होता है और नई और नई शक्ति का विकास होने लगता है। योग से रक्त परिभ्रमण पूर्णरूपेण सम्यक रीति से होने लगता है और शरीर विज्ञान का यह सिद्धांत है कि शरीर के संकोचन व विमोचन होने से उनकी शक्ति का
विकास होता है तथा रोगों की निवृत्ति होती है। योगासनों से यह प्रक्रिया सहज ही हो जाती है। आसन एवं प्राणायामों के द्वारा शरीर की ग्रन्थियों व माँसपेशियों में कर्षण-विकर्षण आकुंचन-प्रसारण तथा शिथिलीकरण की क्रियाओं द्वारा उनका आरोग्य बढ़ता है।
आसन एवं अन्य यौगिक क्रियाओं से पेंक्रियाज एक्टिव होकर इंसुलिन ठीक मात्रा में बनने लगती है, जिससे डायबिटीज आदि रोग दूर होते हैं। पाचनतंत्रा के स्वास्थ्य पर पूरे शरीर का स्वास्थ्य निर्भर करता है। सभी बीमारियों का मूल कारण पाचनतंत्रा की अस्वस्थता है। यहाँ तक कि हृदय रोग जैसे भयंकर बीमारी का कारण भी पाचनतंत्रात का अस्वस्थ होना पाया गया है।
योग से पाचनतंत्रा पूर्ण रूप से स्वस्थ हो जाता है जिससे संपूर्ण शरीर स्वस्थ, हल्का एवं स्पफूर्तिदायक बन जाता है। योग से हृदय रोग जैसी भयंकर बीमारी से भी छुटकारा पाया जा सकता है। इतना ही नहीं, इस स्थूल शरीर के साथ-साथ योग सूक्ष्म शरीर एवं मन के लिए भी अनिवार्य है।
योग से इंद्रियों एवं मन का निग्रह होता है, यम-नियमादि, अष्टांग योग के अभ्यास से साधक असत अविद्या के तमस् से हटकर अपने दिव्य स्वरूप ज्योतिर्मय, शांतिमय, परम चैतन्य आत्मा एवं परमात्मा तक पहुँचने में समर्थ हो जाता है।
हम योग पथ का अवलम्बन लेकर शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक एवं आध्यात्मिक उन्नति को प्राप्त करते हुए अपने लक्ष्य ईश्वर के साक्षात्कार और पूर्णानंद की अनुभूति कर लेते हैं। भारतीय दर्शन में योग एक अति महत्वपूर्ण शब्द है। आत्मदर्शन व समाधि से लेकर कर्मक्षेत्रा तक योग का व्यापक व्यवहार हमारे शास्त्रों में हुआ है।
योग दर्शन के उपदेष्टा महर्षि पतंजलि योग शब्द का अर्थ वृत्तिनिरोध करते हैं। प्रमाण, विपर्यय, विकल्प, निद्रा एवं स्मृति ये पंचविध वृत्तियाँ जब अभ्यास एवं वैराग्यादि साधनों से मन में लय को प्राप्त हो जाती हैं और मन द्रष्टा (आत्मा) के स्वरूप में अवस्थित हो जाता है, तब योग होता है।
गीता में योगेश्वर श्री कृष्ण योग को विभिन्न अर्थों में प्रयुक्त करते हैं। अनुकूलता-प्रतिकूलता, सिद्धि-असिद्धि,सफलता-विफलता, जय-पराजय इन समस्त भावों में आत्मस्थ रहते हुए सम रहने को योग कहते हैं। जैनाचार्यों के अनुसार जिन साध्नों से आत्मा की सिद्धि और मोक्ष की प्राप्ति होती है, वह योग है।
योग से आरोग्य का नारा देकर रोगमुक्त एवं स्वस्थ समाज के गुर सिखाने से कोहराम मच गया। मलेशिया में योग के विरुद्ध फतवा जारी कर दिया गया तो यूनिवर्सिटी ऑफ ब्रिटिश कोलम्बिया में किए गए कुछ शोधें का हवाला देकर साबित करने का प्रयास किया गया है कि योग से सेक्स शक्ति को बढ़ावा मिलता है।
भारतीय योग शरीर को स्वस्थ, संयमी एवं संस्कारवान बनाकर व्याधि से समाधि की ओर ले जाता है। ऐसा मैं मानता हूँ। हाल ही में यूनिवर्सिटी ऑफ ब्रिटिश कोलम्बिया के ऑथर लौरी ब्रोट्टो, साउर्थन कैलिपफोर्निया सेंटर ऑफ सेक्सुअल हेल्थ एंड सर्वाइवरशिप मेडिसिन के माइकल क्रीचमने और द हियलिंग सेन्चुरी इन टस्टिन की पामेला जेकोबसन के कथित शोधें का हवाला देते हुए यह प्रचारित किया जा रहा है कि पूरब का योग सेक्स की शक्ति को बढ़ावा देता है। इससे महिलाओं में एरोसल का लेवल बढ़ता है, वहीं पुरुषों में भी कामेच्छा बढ़ने के साथ सेक्स पावर बढ़ती है।
इस विषय में मेरा कहना है कि भारतीय योग एक ऐसी क्रिया है जो ध्यान के साथ श्वासों को शारीरिक अवयवों तक पहुँचाकर शरीर के भीतर प्राणवायु का संतुलित संचार करती है। इससे भीतरी और बाह्य शरीर सुंदर, सुडौल और शक्तिशाली बनता है। साथ ही ध्यान से मानव का मन और मस्तिष्क संयमित और विवेकशील बनता है। पश्चिम में एक्सरसाइज को योग की संज्ञा दी जा रही है।
एक्सरसाइज से केवल शरीर की शक्ति बढ़ती है। उसे नियंत्रित करने के लिए जिस आध्यात्मिक शक्ति के संग्रहण की आवश्यकता शरीर को होती है, वह नहीं मिलती। नतीजा शारीरिक शक्ति की दिशा नकारात्मक हो सकती है। वासनाएँ, और वर्जनाएँ जागकर इंसान की शक्ति को विध्वंस की ओर ले जा सकती हैं, जबकि भारतीय योग का आधर ही यौगिक विधियों से अलौकिक शक्तियों का विकास करना है।
योग से चित्त की चंचल वृत्तियाँ नियंत्रित होती हैं और एकाग्रता आती है, जिससे सकारात्मकता का भाव बढ़ता है और व्यक्ति सही दिशा में कार्य करके अपनी श्रेष्ठ उत्पादकता से राष्ट्र और समाज के लिए अच्छे और सकारात्मक कार्य करता है। भारतीय योग, विश्व समुदाय को विध्वंस के मार्ग पर जाने से रोकने का काम कर रहा है। धर्म या सम्प्रदाय से ऊपर उठकर समस्त मानव जाति को शारीरिक एवं मानसिक रूप से स्वस्थ बनाना मेरा उद्देश्य है ताकि पूरी दुनिया सर्वे भवन्तु सुखिनः के भारतीय सूत्र में बंध सके।
21 मार्च 2010
योग से शांति संभव
Posted by Udit bhargava at 3/21/2010 03:34:00 pm
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