फारस (वर्तमान ईरान) में तीन हज़ार वर्ष पहले भी एक समृद्ध सभ्यता थी। एक समय वहाँ के समृद्ध राज्य पर स्मरडिस नाम का एक धूर्त राजा राज्य करता था। वास्तव में उसने राज्य को धोखे से हड़प लिया था। उसके शासन में प्रजा सुखी नहीं थी। देश की आम जनता के साथ-साथ कुलीन लोग भी उसे पसन्द नहीं करते थे। स्मरडिस ने अपनी प्रजा की भलाई के लिए कुछ नहीं किया, पर अपनी सुरक्षा के लिए उसने बहुत अच्छा इन्तजाम किया था। उसके पास उसकी रक्षा के लिए विश्वासपात्र अंगरक्षकों का एक दल था और वह प्रशासन के प्रत्येक विभाग में अपने गुप्तचर रखता था जो उसके विरुद्ध आलोचना करनेवालों की सूचना दिया करते थे। तब वह बड़बड़ करनेवालों की जुबान को क्रूरतापूर्वक बन्द कर दिया करता था।
इसके अधिकतर मंत्री और दरबारी इतने भीरु थे कि राजा के खिलाफ कुछ नहीं कर सकते थे, लेकिन छः ऐसे दरबारी थे जिन्होंने गुप्तरूप से राजा के विरुद्ध एक षड्यन्त्र आयोजित किया। जब उन्हें विश्वास हो गया कि उनकी योजना सफल हो जायेगी तब वे भविष्य के बारे में विचार-विमर्श करने बैठे। सभी छः महत्वाकांक्षी थे और समान रूप से भले थे। उन सब की मैत्री इतनी गहरी थी कि इनाम के लिए आपस में लड़ने का प्रश्न नहीं उठता था।
‘‘देखो भाई'', उनमें से एक ने कहा, ‘‘हम छः के छः सिंहासन पर नहीं बैठ सकते। केवल एक ही राजा बन सकता है। किन्तु शेष पाँच राजा के सलाहकार और मित्र बनकर क्यों नहीं रह सकते? अब, सिंहासन का चुनाव मनमाने ढंग से ही करना होगा तबक्यों नहीं इसे कुछ नये ढंग से करें।''
‘‘यह नया ढंग क्या है?'' अन्य मित्रों ने पूछा।
‘‘क्यों नहीं आप सब अपना-अपना कुछ विचार देते?'' पहले वक्ता ने सलाह दी।
सभी छः व्यक्ति शान्त होकर चिन्तन करने लगे। तब एक ने सलाह दी। ‘‘चुनाव क्योंकि मनमाने ढंग से होगा, इसे इस प्रकार करें कल प्रातःकाल के शान्त वातावरण में हम सब छः के छः झील के किनारे हरे मैदान में घोड़े पर सवार होकर जायेंगे। जिसका घोड़ा पहले हिनहिनायेगा, वही जीतेगा! क्या यह मंजूर है?'' ‘‘ठीक है, ऐसा ही होगा,'' सभी मित्र राजी हो गये।
पौ फटते ही सभी मित्र घोड़ों पर सवार हो हरे मैदान की ओर चल पड़े। झील के पास पहुँचते ही एक कमसीन दरबारी डेरियस का घोड़ा हिनहिनाया। उसके सभी दोस्तों ने उसे तुरन्त बधाई दी। सिर्फ ये ही छः, जानते थे कि भविष्य में कौन राजा होनेवाला है।
शीघ्र ही स्मर्डिस सिंहासन से हटा दिया गया। बिना किसी बाधा के डेरियस राजा बन गया।
किसी को नहीं मालूम था कि उसके घोड़े के पहले हिनहिनाने का रहस्य क्या है। अनजान था। निस्सन्देह कालक्रम में सत्य प्रकाश में आ गया। यह इस प्रकार थाः जब सभी छः मित्र विचार विमर्श कर रहे थे तब डेरियस के सेवक ने उनकी बातचीत सुन ली थी। उस दिन शाम को वह डेरियस के घोड़े को झील के निकट ले गया और उसे भर पेट खाने दिया। दूसरे दिन प्रातःकाल जैसे ही घोड़ा उस स्थान पर आया, वह विगत संध्या के भोज की याद में हिनहिना पड़ा।
इसीलिए एक कहावत भी बन गईः घोड़ा साम्राज्य जीत लेता है- अ हॉर्स विन्स अ किंग्डम। लेकिन ऐसा कहना अधिक सच होगा कि सेवक ने स्वामी के लिए साम्राज्य जीता- अ सर्वेन्ट वन अ किंग्डम फॉर हिज मास्टर।
डेरियस, जो फारस की गद्दी पर 521 बी.सी.में बैठा, इतिहास में अनेक कार्यों के लिए प्रसिद्ध है। उसने प्राचीन फारस की राजधानी परसेपोलिस नगर की स्थापना की। उसने शिलालेखों के माध्यम से घोषणा की, ‘‘भगवान नहीं चाहते कि संसार में अशान्ति रहे। वे चाहते हैं कि उनके बच्चों के लिए शान्ति, समृद्धि और सुशासन बना रहे।''
30 मार्च 2010
घोड़ा हिनहिनाये और साम्राज्य मिल जाये
Posted by Udit bhargava at 3/30/2010 08:17:00 pm
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