कॉलेज में रिफ्रेश योगा का मजा
कॉलेज से आने के बाद तो कॉलोनी के दोस्तों या घर के कार्यों में ही वक्त चला जाता है, तो क्यों नहीं कॉलेज समय का ही उपयोग किया जाए। आप कहेंगे कि गुरु क्लास रूप में पढ़ने, गर्ल या बाय फ्रेंड के साथ चैट करने में ही वक्त चला जाता है तो योग कैसे करेंगे?
दोस्त! चैट करना भी तो योग ही है, क्या आपको पता नहीं है? अभी आप क्या कर रहे हो...यह ऑर्टिकल पढ़ रहे हो ना। यह भी तो योग है। अरे...आपको पता नहीं है क्या? हद हो गई। आप समझ रहे होंगे की मैं मजाक कर रहा हूँ। नहीं जनाब 'मजाक' करना भी योग है। छोटी-छोटे उपाय जिनसे खुशी और सेहत बढ़ती है वे सभी रिफ्रेश योगा के अंतर्गत ही तो आते हैं।
जुड़ो कॉलेज से पूर्णत:
जुड़ो मॉस्टर कहते हैं कि किसी ताकतवर दुश्मन से बचकर उसे परास्त करना हो तो उसके शरीर से जुड़ जाओ। दूर रहोगे तो वह आपके साथ कुछ भी कर सकता है। वैसे भी किसी से दूर रहने से आप कभी भी उसे जान नहीं सकते। योग कहता है कि यह जुड़ना और जानना अभ्यास से आता है। अभ्यास योग का एक अंग है।
जब दोस्तों या टीचर से वार्तालाप करते हैं तो दूसरे से जुड़ते हैं और जब हम पढ़ते हैं तो खुद से जुड़ते हैं और अप्रत्यक्ष रूप से दूसरों से भी जुड़ते हैं, लेकिन दूसरों से जुड़ना निर्भर करता है कि आप क्या पढ़ रहे हैं। जैसे अभी यह आलेख पढ़ रहे हैं तो आप खुद से भी जुड़े हुए हैं और मुझसे भी और क्या आपको नहीं मालूम की योग का अर्थ जोड़ना होता है। जुड़ने की कला तो योग से ही आ सकती है। आप कॉलेज में रहकर राजनीति से जुड़ना चाहते हैं या कि सच में ही कॉलेज से यह तो हम नहीं जानते, लेकिन आप किसी से भी जुड़ें जमके जुड़ें।
खुलकर चैट करें :
गपशप या कोई बातचीत कुछ भी करें उस करने में संवाद (Dialogue) नहीं है तो व्यर्थ की बकवास या बहस बनकर ही रह जाएगी। हम दिनभर में हजारों तरह की बात सोचते और सैंकड़ों तरह की बात बोलते हैं। अब आप सोचे की आप क्या बोलते और क्या सोचते हैं। कितना कचरा और कितना हेल्दी या यौगिक।
फ्री माइंड से पढ़ें :
सवाल यह उठता है कि माइंड फ्री कैसे रहेगा। सिम्पल...हँसी, मजाक और गपशप को ही महत्व दें। फिर पढ़ाई का क्या होगा? सिम्पल...यदि दिनभर में 100 बातें करते हैं तो 15 बातें वह करें जो टीचर ने पढ़ाई है वह भी मजा लेकर की जा सकती है। अब आप पूछेंगे कि जब बात ही करना है तो फिर फ्री माइंड से पढ़ने की बात क्यों करते हैं। सिम्पल....जो बातचीत की है उसको कंफर्म करने के लिए किताब खोलकर देखने में क्या बुराई है? टेंशन लेकर पढ़ोंगे तो मेरे जैसे लेखक ही बन पाओगे...इससे ज्यादा कुछ नहीं। पड़ाकू ही श्रेष्ठ लड़ाकू होता है किसी भी मोर्चे का।
ज्यादातर छात्र 'प्यार' के सपने देखते हैं, कल्पनाओं का पहाड़ बना लेते हैं। उनमें से कुछ भावुक हो जाते हैं, कुछ फ्रस्टेड, कुछ देह शोषण करके अलग हट जाते हैं और कुछ तो शादी करके शेटल हो जाते हैं। आप क्या करते हैं हमें नहीं मालूम। किसी लड़के या लड़की के दिल को छेड़ना आजकल तो पहले से कहीं ज्यादा भयानक हो चला है, इसीलिए हम कहते हैं कि यौगिक प्रेम से नाता जोड़ें और मुक्ति पाएँ।
*इतना सब कैसे होगा और इसमें योग की बातें तो आपने कही ही नहीं?
1.ध्यान करें : पढ़ते या सुनते वक्त आपका ध्यान तो अक्सर कहीं ओर ही होता है। कोई बात नहीं, ध्यान को एकाग्र करने की जरूरत भी नहीं है। एकाग्रता का अर्थ ध्यान होता भी नहीं। चित्त को एकाग्र करना ध्यान है भी नहीं। मेडीटेशन या कांसट्रेशन ध्यान नहीं होता। ध्यान तो जागरण (wakening) है। वर्तमान में जीना ध्यान है। हमारा मन या तो अतीत या भविष्य के बारे में सोचता है, वर्तमान की कौन चिंता करता है। वर्तमान को कौन इंजाय करता है।
हम आपको एक योगा टिप्स देते हैं। क्लास रूप, कैम्पस या केंटिग में गौर से छात्र और छात्राओं को देंखे। ध्यान दें की कौन-कौन ध्यान से जी रहा है और कौन बेहोशी में मर रहा है। एक सप्ताह बाद आपको सभी रोबेट नजर आएँगे। क्या आप भी रोबेट हैं?
हमें पता ही नहीं चलता कि शरीर है और वह भी धरती पर है। दुनिया से इतना घबरा गए है या परेशान हो गए हैं कि खुद को भी भुल गए। याद करना है...सिम्पल...ध्यान दें कि कितना अतीत और भविष्य में गमन करता है आपका मन या दिमाग। अभी आपको वर्तमान में होशो-हवाश में रहने की ताकत नहीं मालूम है ना दोस्त, इसीलिए व्यर्थ के सवाल खड़े होते हैं। हाँ, प्राणायाम से भी ध्यान घटित होने लगता है। विपश्यना ध्यान का नाम तो आपने सुना ही होगा। ध्यान की तो 150 से 200 विधियाँ होती है, लेकिन विधि को ध्यान मत समझ लेना। अरे यार दिमाग का ऑपरेशन करने की 'विधि' कोई 'दिमाग' होती है क्या? विधि अलग और दिमाग अलग।
2. अंग-संचालन : अंग-संचालन का नाम नहीं सुना। सूक्ष्म व्यायाम का नाम सुना है? नहीं, अरे यार फिर क्या एरोबिक्स का नाम सुना है। यह सब कुछ अंग संचालन ही तो है। अंग संचालन की सारी स्टेप बताने के लिए तो एक अलग आलेख लिखना होगा तो क्यों नहीं आप झटपट समझ लेते हैं कि गर्दन को दाएँ-बाएँ, ऊपर-नीचे और गोलगोल घुमाना ही तो अंग संचालन का हिस्सा है। बस इसी तरह हाथ, पैर, आँखों की पुतलियाँ, पलकें, अँगुलियाँ, मुँह, कमर और पेट को गपशप करते हुए लय में घुमाते रहें। हाँ, दाँत, कान, नाक और बालों को भी घुमाया जा सकता है, लेकिन किसी योग टीचर से सीखकर।
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