17 दिसंबर 2009

संकष्ट चतुर्थी

संकष्ट चतुर्थी मनोकामना पूर्ण करने वाली, चतुरार्थ - धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष प्रदान करने वाली तिथि के रूप में विख्यात है। भगवान श्री गणोश को प्रिय संकष्ट चतुर्थी का व्रत न केवल विघ्नों एवं बन्धनों से मुक्ति प्रदान करता है अपितु समस्त कार्यो को सिद्ध करता है।
मनुष्य को धन-धान्य, सन्तान, सुख, वैभव एवं समृद्धि की प्राप्ति कराता है। देवी गिरिजा द्वारा साक्षात् परब्रrा परमेश्वर की पुत्र रूप में प्राप्ति की कामना से बारह वर्षो तक की गई कठोर तपस्या, व्रत एवं साधना तथा ú गं गणपतये नम: महामंत्र के सतत एवं अनवरत जप के फलस्वरूप चतुर्थी के दिन मध्यान्ह में स्वर्ण कांति से युक्त गणोशजी का प्रादुर्भाव हुआ था। इसी कारण ब्रrा ने भी चतुर्थी व्रत को अतिश्रेष्ठ व्रत निरूपित किया है।

विभिन्न पुराणों में उल्लेखित कथाओं के आधार पर वरदमूर्ति भगवान श्री गणोश की आराधना से ही सृष्टि पिता ब्रrाजी के शरीर से चतुभरुज एवं चतुर्पाद युक्त सुंदर एवं तेजस्वी चतुर्थी का जन्म हुआ जिसका वाम भाग कृष्ण तथा दक्षिण भाग शुक्ल होने से दोनों पक्षों की रचना हुई।

चतुर्थी माता के शरीर के विभिन्न भागों से प्रतिपदा से पूर्णिमा एवं अमावस्या आदि तिथियों की उत्पत्ति हुई। अत: चतुर्थी को तिथियों की माता भी कहा गया है। चतुर्थी सहित समस्त तिथियों ने भगवान गणपति की आराधना की। इस कारण चतुर्थी ने वरद मूर्ति में वासस्थान प्राप्त कर वरदा (वैनायकी) को मध्याह्न् में एवं संकष्टी चतुर्थी को रात्रि में गणपति उपासना करने पर धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष की प्राप्ति के साथ वरदमूर्ति की भक्ति प्राप्ति का वरदान दिया।

व्रत करने वालों के लिए वरदा चतुर्थी में मध्याह्न् पूर्व से एवं संकष्टी चतुर्थी में सांयकाल में स्नानादि से निवृत्त होकर शुचिता धारण कर गणोशजी का पूजन करने का विधान है। फिर वैदिक व पौराणिक मंत्रों से पूजा करनी चाहिए। इसमें पुष्प, अक्षत से आह्वान एवं आसन, जल से पाद्य-जल अघ्र्य, आचमन, शुद्ध जल, पंचामृत, गंधोदक तथा पुन: शुद्ध जल एवं गंगा जल से स्नान कराना चाहिए।

यज्ञोपवीत एवं वस्त्र, गंध एवं चंदन से तिलक, अक्षत, रक्त पुष्प एवं पुष्पमाला, दूर्वा, सिंदूर, अबीर-गुलाल, हरिद्रादि, सौभाग्य द्रव्य, सुगंधित द्रव्य, धूप, दीप एवं मोदक का नैवेद्य, आचमन, ऋतुफल, पान एवं दक्षिणा अर्पण करके, आरती तथा पुष्पाञ्जलि, प्रदक्षिणा एवं प्रार्थना के विधान से पूजा करनी चाहिए।

चतुर्थी को चंद्रोदय होने पर भगवान चंद्र का भी जल अघ्र्य एवं धूप, दीप, नैवेद्य आदि से पूजन कर चंद्रदर्शन करना चाहिए। ú गं गणपतये नम: के महामंत्र का जप करना चाहिए। उक्त चतुर्थी को निराहार व्रत रखकर दूसरे दिन अथवा चंद्रोदय के पश्चात पारणा करने का विधान है। चतुर्थी व्रत एवं भगवान श्री गणोश की आराधना से भक्ति, धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष के अतिरिक्त, धन, सम्पत्ति, वैभव, संतान, स्वास्थ्य व दीर्घायु प्राप्ति के अतिरिक्त बंधनों एवं संकटों से मुक्ति प्राप्त होती है।

शनि की साढ़े साती से जुड़े भ्रम

ज्योतिष विज्ञान. ज्योतिष शास्त्र में शनि की साढ़े साती को लेकर बहुत कुछ लिखा गया है। हर मनुष्य के जीवनकाल में कुछ समय तनाव आ सकता है पर आम ज्योतिषी हर छोटी-बड़ी समस्या को शनि और शनि की साढ़े साती से जोड़ देते हैं, जो बिलकुल गलत है। ज्योतिष एक संपूर्ण विज्ञान है। पूरी धरती 360 कोणों में विभाजित है। कुंडली की 12 राशियां होने से हर राशि 30 कोण की होती है। 9 ग्रहों में से शनि सबसे मंदगति का ग्रह है। यह एक राशि में ढाई साल रहता है। दूसरे शब्दों में शनि को 30 अंश चलने के लिए 30 माह लगते हैं यानी एक माह में एक अंश। इस हिसाब से शनि की औसत गति दो मिनट प्रतिदिन होती है।

तारामंडल की गति के अनुसार शनि वक्री और मार्गी होता रहता है, जिसके कारण कभी-कभी ये गति बढ़कर 4-5 या 6 मिनट की हो जाती है। घर के हिसाब से लगभग ढाई वर्ष या 30 माह में शनि एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करता है। इसी कारण शनि का ढैया बोला जाता है।

चंद्र सबसे तेज गति का ग्रह है। शनि अगर ढाई वर्ष में राशि परिवर्तन करता है तो चंद्र ढाई दिन में। शनि का 12 राशि का एक चक्र 30 साल में पूरा होता है तो चंद्र का तीस दिन में। पृथ्वी का सबसे सशक्त ग्रह सूर्य है। 24 घंटे के दिन और रात होने में लगभग 6 से 8 घंटे हमें सूर्य का प्रकाश नहीं मिलता। यदि हम पूरे भूमंडल के इन आठ घंटों को प्रकाशमान करने के लिए खर्च का विश्लेषण करें तो यह अरबों-खरबों रुपए होता है। क्या कोई व्यक्ति सूर्य के प्रकाश के बिना इस धरती की कल्पना कर सकता है। करोड़ों किमी दूर होने पर भी सूर्य का प्रकाश लगभग साढ़े सात मिनट में धरती पर पहुंच जाता है।

वैज्ञानिक गणना के अनुसार प्रकाश की गति सबसे ज्यादा है। ज्योतिषीय गणना और तारामंडल के गणित के अनुसार सूर्य के प्रभाव क्षेत्र में जो भी ग्रह आता है वह अस्त हो जाता है। यह प्रभाव क्षेत्र सूर्य के 15 अंश पर होता है। इसका विश्लेषण इस तरह करें कि यदि सूर्य 20 अंश का है तो उस राशि में जो भी ग्रह 5 अंश से ज्यादा का होगा वह अस्त होगा और उसकी अगली राशि में भी 5 अंश तक चलेगा। यानी 15 अंश पहले व 15 अंश बाद। इस तरह शनि तो सूर्य से कहीं कम प्रभावक्षेत्र वाला ग्रह है।

हालांकि शनि को सूर्यपुत्र माना गया है। ऐसा मान ले कि चंद्र कुंडली के पहले भाव में 20 अंश का है। इस हिसाब से यदि शनि 12 वें घर में प्रवेश करता है तो उसे 30 अंश चलना होगा और पहले घर में 20 अंश चलने के पश्चात उसका संपर्क चंद्र से होगा। 12 घर के 30 अंश व पहले घर के 20 अंश जोड़ने पर ये 50 अंश हो जाते हैं। इस तरह शनि चंद्रमा से 50 अंश दूर है। ज्योतिषी जैसे ही शनि 12वें घर में आया शनि की साढ़े साती के पहले ढैये का बखान शुरू कर देते हैं। इस प्रकार यह पूर्णत: मिथ्या व भ्रामक है कि चंद्र स्थापित होने वाले घर से एक घर पहले शनि आने पर साढ़े साती का ढैया लागू हो जाता है और यह स्थिति चंद्र के बाद वाले घर पर भी लागू होता है।

वास्तविकता यह है कि चंद्र और शनि जब साथ आते हैं तो ये ज्योतिष में विष योग कहलाता है। इसमें मानसिक तनाव और कुछ काम बिगड़ते हैं, तो हर किस्म की रुकावट आती है। यह स्थिति ज्यादा से ज्यादा 30 माह तक रह सकती है। इस तरह हर समस्या को साढ़े साती से जोड़ देना अनावश्यक है। इसका कोई वैज्ञानिक आधार भी नहीं है। यदि कोई व्यक्ति अपने चरित्र को ठीक रखता है, मांस, शराब, तंबाकू आदि का सेवन नहीं करता है। गरीब और गिरे-पड़े लोगों को उठाता है, आंखों की दवाई बांटता है तो निश्चित ही उसे कभी भी किसी भी रूप में बुरे फल नहीं मिलते हैं।

कुंडली में जब भी चंद्र पर शनि की दृष्टि हो या गोचर या जन्म स्थान पर चंद्र शनि इकट्ठे हों यानी चंद्र शनि से या शनि चंद्र से 15 अंश से कम दूर हो तो ये योग विष योग के साथ नीच केतु का फल देगा। कुंडली का विश्लेषण करते समय यह देखें कि इसमें ज्यादा बुरे फल कौन सा ग्रह दे रहा है। जो ज्यादा बुरे फल दे रहा हो उसे कुंडली के उस घर से हटा दें या कमजोर कर दें तो चंद्र शनि की युति होते हुए भी विष योग के फल नहीं मिलेंगे।

जैसे कि एक चांदी की कटोरी में पानी भरकर किसी लोहे की अलमारी या संदूक में रख दें और पानी को कम नहीं होने दे। जितना पानी सूखे उतना और भर दें। यह तब तक करें जब तक चंद्र शनि की युति है। यदि ये जन्मस्थ युति है तो इसे (चांदी की कटोरी में पानी) हमेशा रखा रहने दें। जितना तनाव होगा उतना पानी ज्यादा सूखेगा। यदि तनाव नहीं होगा तो पानी नहीं सूखेगा। तनाव कम होगा तो पानी कम सूखेगा। मगर पानी कम नहीं होने दें। जितना सूखे उतना भरते जाएं तो आप समस्या को जीत लेंगे और यदि पानी सूख जाए तो समस्या आपको जीत लेगी।

परम अलौकिक श्रीकृष्ण की लीला

भगवान विष्णु के आठवें अवतार

भगवान विष्णु के आठवें अवतार के रूप में श्रीकृष्ण ने भादों मास के कृष्ण पक्ष में अष्टमी तिथि को रोहिणी नक्षत्र के अंतर्गत वृष लग्न में अवतार लिया। श्रीकृष्ण की उपासना को समर्पित भादों मास विशेष फलदायी कहा गया है। भाद अर्थात कल्याण देने वाला। कृष्ण पक्ष स्वयं श्रीकृष्ण से संबंधित है। अष्टमी तिथि पखवाडे़ के बीच संधि स्थल पर आती है। रात्रि योगीजनों को प्रिय है और उसी समय श्रीकृष्ण धरा पर अवतरित हुए। श्रीमद् भागवत में उल्लेख आया है कि श्रीकृष्ण के जन्म का अर्थ है अज्ञान के घोर अंधकार में दिव्य प्रकाश।

भागवत पुराण में वर्णन है
भागवत पुराण में वर्णन है कि जीव को संसार का आकर्षण खींचता है, उसे उस आकर्षण से हटाकर अपनी ओर आकषिर्त करने के लिए जो तत्व साकार रूप में प्रकट हुआ, उस तत्व का नाम श्रीकृष्ण है। जिन्होंने अत्यंत गूढ़ और सूक्ष्म तत्व अपनी अठखेलियों, अपने प्रेम और उत्साह से आकषिर्त कर लिया, ऐसे तत्वज्ञान के प्रचारक, समता के प्रतीक भगवान श्रीकृष्ण के संदेश, उनकी लीला और उनके अवतार लेने का समय सब कुछ अलौकिक है।

मुस्कराते हुए अवतरण
जन्म-मृत्यु के चक्र से छुड़ाने वाले जनार्दन के अवतार का समय था निशीथ काल। चारों ओर अंधेरा पसरा हुआ था। ऐसी विषम परिस्थितियों में कृष्ण का जन्म हुआ कि मां-बाप हथकडि़यों में जकड़े हैं, चारों तरफ कठिनाइयों के बादल मंडरा रहे हैं। इन परेशानियों के बीच मुस्कराते हुए अवतरित हुए। श्रीकृष्ण ने अपने भगवान होने का संकेत जन्म के समय ही दे दिया। कारागार के ताले खुल गए, पहरेदार सो गए और आकाशवाणी हुई कि इस बालक को गोकुल में नंद गोप के घर छोड़ आओ। भीषण बारिश और उफनती यमुना को पार कर शिशु कृष्ण को गोकुल पहुंचाना मामूली काम नहीं था। वसुदेव जैसे ही यमुना में पैर रखा, पानी और ऊपर चढ़ने लगा। श्रीकृष्ण ने अपना पैर नीचे की तरफ बढ़ाकर यमुना को छुआ दिया, जिसके तुरंत बाद जलस्तर कम हो गया। शेषनाग ने उनके ऊपर छाया कर दी ताकि वे भीगे नहीं।

पूतना का वध
कृष्ण जन्म का समाचार मिलते ही कंस बौखला गया। उसने अपने सेनापतियों को आदेश दिया कि पूरे राज्य में दस दिन के अंदर पैदा हुए सभी बच्चों का वध कर दिया जाए। इधर नंद बाबा के घर कृष्ण जन्म के उपलक्ष्य में लगातार उत्सव मनाया जा रहा था। अभी कृष्ण केवल छह दिन के ही हुए थे कि कंस ने पूतना नाम की राक्षसी को भेजा। पूतना अपने स्तनों में जहर लगाकर बालक कृष्ण को पिलाने के लिए मनोहारी स्त्री का रूप धारण कर आई। अंतर्यामी कृष्ण क्रोध से उसके प्राण सहित दूध पीने लगे और तब तक नहीं छोड़ा, जब तक कि पूतना के प्राणपखेरू उड़ नहीं गए।

ब्रह्मांड के दर्शन
बाल लीला के अंतर्गत कृष्ण ने एक बार मिट्टी खा ली। बलदाऊ ने मां यशोदा से इसकी शिकायत की तो मां ने डांटा और मुंह खोलने के लिए कहा। पहले तो उन्होंने मुंह खोलने से मना कर दिया, जिससे यह पुष्टि हो गई कि वास्तव में कृष्ण ने मिट्टी खाई है। बाद में मां की जिद के आगे अपना मुंह खोल दिया। कृष्ण ने अपने मुंह में यशोदा को संपूर्ण ब्रह्मांड के दर्शन करा दिए। बचपन में गोकुल में रहने के दौरान उन्हें मारने के लिए आततायी कंस ने शकटासुर, बकासुर और तृणावर्त जैसे कई राक्षस भेजे, जिनका संहार कृष्ण ने खेल-खेल में कर दिया।

माखनचोर कन्हैया
माखनचोरी की लीला से कृष्ण ने सामाजिक न्याय की नींव डाली। उनका मानना था कि गायों के दूध पर सबसे पहला अधिकार बछड़ों का है। वह उन्हीं के घर से मक्खन चुराते थे, जो खानपान में कंजूसी दिखाते और बेचने के लिए मक्खन घरों में इकट्ठा करते थे। वैसे माखन चोरी करने की बात कृष्ण ने कभी मानी नहीं। उनका कहना था कि गोपीकाएं स्वयं अपने घर बुलाकर मक्खन खिलाती हैं। एक बार गोपिकाओं की उलाहना से तंग आकर यशोदा उन्हें रस्सी से बांधने लगीं। लेकिन वे कितनी भी लंबी रस्सी लातीं, छोटी पड़ जाती। जब यशोदा बहुत परेशान हो गईं तो कन्हैया मां के हाथों से बंध ही गए। इस लीला से उनका नाम दामोदर (दाम यानी रस्सी और उदर यानी पेट) पड़ा।

स्नान की मर्यादा
यमुना किनारे काली नाग का बड़ा आतंक था। उसके घाट में पानी इतना जहरीला था कि मनुष्य या पशु-पक्षी पानी पीते ही मर जाते थे। कृष्ण ने नाग को नाथ कर वहां उसे भविष्य में न आने की हिदायत दी। कृष्ण जब गाय चराने जाते, तो उनके सभी सखा साथ रहते थे। सब कृष्ण के कहे अनुसार चलते थे। ब्रह्मा जी को ईर्ष्या हुई और एक दिन सभी गायों को वे अपने लोक भगा ले गए। जब गाएं नहीं दिखीं तो गोकुलवासियों ने कृष्ण पर गायों चुराने का आरोप लगा दिया। कृष्ण ने योगमाया के बल पर सभी ग्वालों के घर उतनी ही गाएं पहुंचा दीं। ब्रह्मा ने जब यह बात सुनी तो बहुत लज्जित हुए। इंद्र पूजा का विरोध करते हुए सात वर्ष की आयु में सात दिन और सात रात गोवर्धन पर्वत को अपनी उंगली में उठाकर कृष्ण ने इंद्र के प्रकोप से गोकुल वासियों की रक्षा की। बाल लीला में ही कृष्ण ने एक बार नदी में निर्वस्त्र स्नान कर रहीं गोपिकाओं के वस्त्र चुराकर पेड़ में टांग दिए। स्नान के बाद जब गोपीकाओं को पता चला तो वे कृष्ण से मिन्नतें करने लगीं। कृष्ण ने आगाह करते हुए कहा कि नग्न स्नान से मर्यादा भंग होती है और वरुण देवता का अपमान होता है, वस्त्र लौटा दिए।

रासलीला का आयोजन
श्रीकृष्ण ने दिव्य व अलौकिक रासलीला ब्रजभूमि में की थी। जब सभी रस समाप्त होते हैं, वहीं से रासलीला शुरू होती है। रास लीला में प्रेम की अनवरत धारा प्रवाहित होती है। श्रीकृष्ण अपनी संगीत एवं नृत्य की कला से गोपिकाओं को रिझाते थे। इस रास में हिस्सा लेने वाली सभी गोपिकाओं के साथ कृष्ण नाचते थे। जितनी गोपी उतने ही कृष्ण। रसाधार श्रीकृष्ण का महारास जीव का ब्रह्मा से सम्मिलन का परिचायक और प्रेम का एक महापर्व है।

जीवन में राधा
मथुरा जाने पर सबसे पहले कृष्ण ने कुब्जा को सुंदर नारी के रूप में परिवर्तित किया। इसके बाद कंस का वध किया, नाना उग्रसेन को गद्दी पर बैठाया, देवकी के मृत पुत्रों को लेकर आए और माता-पिता को कारागार से मुक्ति दिलाई। कन्हैया के मित्र तो गोकुल के सभी बालक थे, लेकिन सुदामा उनके कृपापात्र रहे। अकिंचन मित्र सुदामा को वैभवशाली बनाने में दामोदर ने कोई कसर बाकी नहीं रखी। श्रीकृष्ण के जीवन में राधा प्रेम की मूर्ती बनकर आईं। जिस प्रेम को कोई नाप नहीं सका, उसकी आधारशिला राधा ने ही रखी थी।

गीता का उपदेश
जब कृष्ण किशोर वय के हो गए तो महाभारत युद्ध की आहट आने लगी थी। युधिष्ठिर अपनी पत्नी को जुए में हार गए। भरी सभा में दुर्योधन और दु:शासन जब द्रौपदी का चीर हरण करने लगे तो जनार्दन ने असहाय हो चुकी इस अबला की रक्षा की। आगे चलकर सुभद्रा का हरण किया। महाभारत युद्ध के मैदान में अर्जुन को गीता का उपदेश दिया। उपदेश देने के लिए शांत जगह चाहिए, लेकिन कृष्ण वहां ज्ञान दे रहे हैं जहां अट्ठारह अक्षौहिणी सेना के कोलाहल से किसी को कुछ सुनाई नहीं पड़ रहा है। कृष्ण ने अपना विराट रूप दिखाकर अर्जुन का मोहभंग किया। जैसे उद्धव में ज्ञान था, लेकिन भक्ति नहीं थी, उसी प्रकार अर्जुन में भक्ति तो थी, लेकिन ज्ञान नहीं था। गीता में उपदेश देकर उन्होंने मोहग्रस्त अर्जुन को युद्ध के लिए तैयार किया। भगवान ने कहा कि जो मुझे जिस तरह याद करता है, मैं भी उसी प्रकार उस भक्त का भजन करता हूं। जरासंध से युद्ध कर श्रीकृष्ण ने सोलह हजार कन्याओं को उसके चंगुल से छुड़ाया।

विपत्तियों से जूझे
विपत्तियों से घिरे जीवन में भी कृष्ण कभी व्यथित नहीं हुए। जिसकी आंखें कारागार में खुलीं, माता-पिता के लालन-पालन से वंचित रहे, गौएं चराकर बचपन बिताया, कंस ने जान लेने में कोई कसर नहीं छोड़ी, जन्मस्थान व गोकुल छोड़कर द्वारका में शरण लेनी पड़ी, युद्ध से भागकर रणछोड़ कहलाए, सत्यभामा के घर में स्यमंतक मणि की चोरी का आरोप लगा, युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में पत्तल और जूते उठाने का दायित्व संभाला, अर्जुन के सारथी बने, अपनी चार अक्षौहिणी नारायणी सेना दुर्योधन को देकर खुद निहत्थे युद्ध में गए, गांधारी के श्राप को हंसते-हंसते स्वीकार किया और अपने कुल को अपने सामने नष्ट होते देखा, ऐसे परमवीर की मृत्यु जंगली जीव की तरह व्याध के हाथों हुई।

धनतेरस की कहानी

भारत त्यौहारों का देश है। विभिन्न त्यौहारों पर अलग-अलग पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। इसी प्रकार धनतेरस पर भी यमराज की एक कथा बहुत प्रचलित है। कथा कुछ इस प्रकार है।

पुराने जमाने में एक राजा हुए थे राजा हिम। उनके यहां एक पुत्र हुआ, तो उसकी जन्म-कुंडली बनाई गई। ज्योतिषियों ने कहा कि राजकुमार अपनी शादी के चौथे दिन सांप के काटने से मर जाएगा। इस पर राजा चिंतित रहने लगे। जब राजकुमार की उम्र 16 साल की हुई, तो उसकी शादी एक सुंदर, सुशील और समझदार राजकुमारी से कर दी गई। राजकुमारी मां लक्ष्मी की बड़ी भक्त थीं। राजकुमारी को भी अपने पति पर आने वाली विपत्ति के विषय में पता चल गया।

राजकुमारी काफी दृढ़ इच्छाशक्ति वाली थीं। उसने चौथे दिन का इंतजार पूरी तैयारी के साथ किया। जिस रास्ते से सांप के आने की आशंका थी, वहां सोने-चांदी के सिक्के और हीरे-जवाहरात आदि बिछा दिए गए। पूरे घर को रोशनी से जगमगा दिया गया। कोई भी कोना खाली नहीं छोड़ा गया यानी सांप के आने के लिए कमरे में कोई रास्ता अंधेरा नहीं छोड़ा गया। इतना ही नहीं, राजकुमारी ने अपने पति को जगाए रखने के लिए उसे पहले कहानी सुनाई और फिर गीत गाने लगी।

इसी दौरान जब मृत्यु के देवता यमराज ने सांप का रूप धारण करके कमरे में प्रवेश करने की कोशिश की, तो रोशनी की वजह से उनकी आंखें चुंधिया गईं। इस कारण सांप दूसरा रास्ता खोजने लगा और रेंगते हुए उस जगह पहुंच गया, जहां सोने तथा चांदी के सिक्के रखे हुए थे। डसने का मौका न मिलता देख, विषधर भी वहीं कुंडली लगाकर बैठ गया और राजकुमारी के गाने सुनने लगा। इसी बीच सूर्य देव ने दस्तक दी, यानी सुबह हो गई। यम देवता वापस जा चुके थे। इस तरह राजकुमारी ने अपनी पति को मौत के पंजे में पहुंचने से पहले ही छुड़ा लिया। यह घटना जिस दिन घटी थी, वह धनतेरस का दिन था, इसलिए इस दिन को ‘यमदीपदान’ भी कहते हैं। भक्तजन इसी कारण धनतेरस की पूरी रात रोशनी करते हैं।

जीवन का रहस्य

यह घटना उस समय की है जब मानव का जन्म नहीं हुआ था। विधाता जब सूनी पृथ्वी को देखता तो उसे कुछ न कुछ कमी नजर आती और वह इस कमी की पूर्ति के लिए दिन-रात सोच में पड़ा रहता। आखिर विधाता ने चंद्रमा की मुस्कान, गुलाब की सुगंध, अमृत की माधुरी, जल की शीतलता, अग्नि की तपिश, पृथ्वी की कठोरता से मिट्टी का एक पुतला बनाकर उसमें प्राण फूंक दिए।

मिट्टी के पुतले में प्राण का संचार होते ही सब ओर चहचहाट व रौनक हो गई और घरौंदे महकने लगे। देवदूतों ने विधाता की इस अद्भुत रचना को देखा तो आश्चर्यचकित रह गए और विधाता से बोले, ‘यह क्या है?’ विधाता ने कहा, ‘यह जीवन की सर्वश्रेष्ठ कृति मानव है। अब इसी से जीवन चलेगा और वक्त आगे बढ़ेगा।’ विधाता की बात पूरी भी न हो पाई थी कि एक देवदूत बीच में ही बोल पड़ा, ‘क्षमा कीजिए प्रभु। लेकिन यह बात हमारी समझ से परे है कि आपने इतनी मेहनत कर एक मिट्टी को आकार दे दिया। उसमें प्राण फूंक दिए। मिट्टी तो तुच्छ से तुच्छ है, जड़ से भी जड़ है। मिट्टी की बजाय अगर आप सोने अथवा चांदी के आकार में यह सब करते तो ज्यादा अच्छा रहता।’

देवदूत की बात पर विधाता मुस्करा कर बोले, ‘यही तो जीवन का रहस्य है। मिट्टी के शरीर में मैंने संसार का सारा सुख-सौंदर्य, सारा वैभव उड़ेल दिया है। जड़ में आनंद का चैतन्य फूंक दिया है। इसका जैसे चाहे उपयोग करो। जो मानव मिट्टी के इस शरीर को महत्व देगा वह मिट्टी की जड़ता भोगेगा; जो इससे ऊपर उठेगा, उसे आनंद के परत-दर-परत मिलेंगे। लेकिन ये सब मिट्टी के घरौंदे की तरह क्षणिक हैं। इसलिए जीवन का प्रत्येक क्षण मूल्यवान है। तुम मिट्टी के अवगुणों को देखते हो उसके गुणों को नहीं। मिट्टी में ही अंकुर फूटते हैं और मेहनत से फसल लहलहाती है। सोने अथवा चांदी में कभी भी अंकुर नहीं फूट सकते। इसलिए मैंने मिट्टी के शरीर को कर्मक्षेत्र बनाया है।’


अंक ज्योतिष


















अंक और भारत

क्या आपको पता है :


  • "सिफर" या शून्य शब्द, अरबी भाषा से है, जिसका अर्थ है खाली या कुछ नही।
  • -498 ईसा पूर्व भारतीय ज्योतिषी आर्यभट्ट का कथन था, "स्थानम स्थानम दस गुणम" अर्थात, यदि अंकों को 10 से गुणा किया जाए, तो वे 10 गुने अधिक हो जाते हैं। इसे ही दशमलव पर आधारित आधुनिक अंक प्रणाली की उत्पत्ति कही जा सकती है
  • अंक प्रणाली और ज्योतिष में इसके उपयोग का उल्लेख अथर्व वेद में भी मिलता है

















अंक ज्योतिष है क्या?

अंकों पर आधारित ज्योतिष या अंक ज्योतिष, अंकों के गुप्त रूझान और प्रवृत्ति के साथ ही ब्रम्हांडीय आकार योजना का अध्ययन स्वरूप है. ब्रम्हांडीय कंपन का संबंध प्रत्येक अक्षर के साथ होता है और वही उस संख्या की उपयोगिता कहलाती है. हमारा नाम भी एक अनूठा कंपन लिये हुए होता है और यही कारण है कि नाम का प्रभाव व्यक्तित्व पर पडता है. ये भी संभव है कि इस कंपन को कुछ हद तक कम किया जा सके. ये सभी कंपन अलग अलग लय में होते हैं. अंक ज्योतिष के अंकों के अनुसार हम सभी का संबंध भी एक दूसरे से कुछ इसी तरीके से है















आप और आपका मूलांक

आपकी जन्म तारीक के जोड क़ो ही आपका मूलांक या लाइफ पाथ नम्बर कहा जाता है. इसी अंक से ये तय होता है कि अपने जन्म समय पर आपकी क्या स्थिती थी और आप अपने पूर्वजों की किस विरासत को लेकर येप जन्म व्यतीत करेंगे. जिस अंक की उत्पत्ति आपके नाम से होती है, वो आपका भाग्यांक होता है. इसके साथ ही आपको पुकारा जाने वाला नाम भी महत्वपूर्ण है, यदि ये नाम और आपका मूलांक मेल खा सके, तो सबसे सुखद संयोग माना जाता है और आपके आस पास आनंद व खुशी का वलय सा बन जाता है


















आपका जन्मदिवस और अंकज्योतिष

आपके मूलांक के साथ ही माह में व वर्ष में आने वाले आपके जन्मदिवस का संबंध व अर्थ काफी गहरा होता है. यदि सही तरीके से व्याख्या की जाए, तो आप इसके द्वारा नवीन अवसर पा सकते हैं.


















अंकों द्वारा अन्य सभी से संबंध

ये स्वाभाविक है कि जिस तरीके से अंक ज्योतिष आपको स्वयं के विषय में जानकारी देता है, उसी तरीके से ये यह बता पाने में भी सक्षम होता है कि आपके संबंध अन्य लोगों के साथ कैसे होंगे. समूह के कुछ लोग आपको पसंद हैं और कुछ बिल्कुल भी नही, ऐसा क्यों है ये आसानी से समझ में आ सकता है














आपका जीवन और उसके चरण

अनेकानेक प्रयत्नों के बावजूद आज तक मनुष्य को ये समझ नही आया है कि उसके जीवन में आने वाले सुख व दुख का क्या नियम व तरीका है। अनेक प्रकार की गणनाओं के बावजूद सफलता और असफलता का कोई सूत्र सामने नही आ पाता है. अंक ज्योतिष के पिनैकल्स या शिखर के संबंध में जानकारी लेकर हम कुछ हद तक ये सूत्र जानने में सफल हो सकते है. इन पिनैकल्स की विशेषता होती है कि ये हमें नई दिशा या आशावादी सोच उत्पन्न कर सकते हैं















आपका व शिशुओं का नामकरण

जब आप अंक ज्योतिष को जानने लगते हैं, तब अपने शिशु के सही जीवन पथ को प्रशस्त करने के लिये उसके अनुरूप कंपन के नाम को चुनने की क्षमता होती है. यही वो तरीका है जिसके द्वारा आप अपने नाम के उच्चारण या मूलांक को बदले बिना सही नाम के अवसर पा सकते है



















कम्प्यूटर पर आधारित अंक ज्योतिष

अंक ज्योतिष और कम्प्यूटर दोनों ही अंकों पर आधारित होते हैं. कम्प्यूटर और अंक ज्योतिष (दशमलव) में उपयोग की जानेवाली अंक प्रणाली में समन्वय स्थापित कर आप अपने लिए अचूक परिणाम पा सकते हैं। इस प्रकार, आपको अंकों पर आधारित परिणाम और अंकों पर आधारित समाधान मिल सकते हैं।

14 दिसंबर 2009

अंग्रेजी कहावते - हिन्दी भावार्थ

A journey of a thousand miles begins with one step।
हजारों मील की यात्रा भी एक कदम से शुरू होती है।

A bad penny always turns up।
खोटा सिक्का खोटा ही होता है।

A bean in liberty is better than a comfit in prison।
सम्पन्नतायुक्त गुलामी से विपन्नतायुक्त स्वतंत्रता बेहतर है।

A bellyful is one of meat, drink, or sorrow।
एक पेट मांस-मदिरा से भरा होता है तो एक दुःखों से।

A big tree attracts the woodsman's axe।
एक बड़ा पेड़ सदा लकड़हारे की कुल्हाड़ी को आकर्षित करता है।

An apple a day keeps the doctor away।
प्रतिदिन एक सेब खाना डॉक्टर से दूरी बनाये रहता है।

A bad workman always blames his tools।
खराब कारीगर हमेशा हथियारों के दोष निकालता है।

A banker is someone who lends you an umbrella when the sun is shining, and who asks for it back when it starts to rain।
बैंकर वो होता है जो कि साधारण धूप रहने के वक्त आपको छाता उधार दे और पानी बरसते वक्त वापस माँग ले।

A bird in the hand is worth two in the bush।
झाड़ पर के दो पक्षियों से हाथ आया एक पक्षी कीमती होता है।

A chain is no stronger than its weakest link.
कोई भी जंजीर अपने कमजोर कड़ी से अधिक मजबूत नहीं होती।

A constant guest never welcomes।
हमेशा आने वाला मेहमान अपना सम्मान खो देता है।

A coward dies a thousand times before his death।
कायर आदमी अपनी मौत से पहले हजारों बार मरता है।

A friend in need is a friend indeed
समय पर काम आने वाला ही सच्चा मित्र होता है।

A friend to all is a friend to none
जो सभी का मित्र होता है वह किसी का मित्र नहीं होता।

A good beginning makes a good ending।
एक अच्छी शुरुवात आधी सफलता होती है।

A good man in an evil society seems the greatest villain of all।
खराब समाज में अच्छा आदमी सबसे बड़ा खलनायक होता है।
A guilty conscience needs no accuser।
भले आदमी को किसी पर दोष मढ़ने की आवश्यकता नहीं होती।

A half truth is a whole lie।
आधा सच पूरे झूठ के बराबर होता है।

A jack of all trades is master of none।
सभी धंधों का गुलाम किसी धंधे का मालिक नहीं होता।

A lie can be halfway around the world before the truth gets its boots on।
सत्य से पराजित होने के पूर्व झूठ आधी दुनिया की यात्रा कर लेता है।

A little knowledge is a dangerous thing।
अधूरा ज्ञान खतरनाक होता है। (नीम-हकीम खतरा-ए-जान।)

A loaded wagon makes no noise।
अधजल गगरी छलकत जाये।

A miss by an inch is a miss by a mile।
एक इंच की भूल अंततः एक मील की गलती साबित होती है।

A paragraph should be like a lady's skirt: long enough to cover the essentials but short enough to keep it interesting।
एक पैराग्राफ किसी महिला के स्कर्ट के जैसे होता है, इतना लंबा कि सभी आवश्यक बातें निहित हो जायें और इतना छोटा कि रोचक लगे।

A picture is worth a thousand words।
एक चित्र हजार शब्दों के मूल्य के बराबर होता है।

A pot of milk is ruined by a drop of poison।
एक बूंद विष बर्तन भर दूध को को नष्ट कर देती है।