05 जून 2010

श्री शिव तत्व

शिव वही तत्व है जो समस्त प्राणियों के विश्राम का स्थान है।
मूलत: शिव एवं विष्णु एक ही हैं, फिर भी उनके उपर रूप में सत्व के योग से विष्णु को सात्विक और तम के योग से रूद्र को तामस कहा जाता है। सत्वनियंता विष्णु और तमनियंता रूद्र हैं। तम ही मृत्यु है, काल है। अत: उसके नियंता महामृत्युंजय महाकालेश्वर भगवान रूद्र हैं। तम प्रधान प्रलयावस्था से ही सर्व प्रपंच की सृष्टि होती हैं।
कृष्ण के भक्त तम को बहुत ऊँचा स्थान देते हैं। जब सृष्टिकाल के उपद्रवों से जीव व्याकुल हो जाता है, तब उसको दीर्घ सुषुप्ति में विश्राम के लिए भगवान सर्वसंहार करके प्रलयावस्था व्यक्त करते हैं। यह संसार भी भगवान की कृपा ही है। तम प्रधानावस्था है, उसी से उत्पादनावस्था और पालनावस्था व्यक्त होती है। अन्त में फिर भी सबको प्रलयावस्था में जाना पड़ता है। उत्पादनावस्था के नियामक ब्रह्मा, पालनावस्था के नियामक विष्णु और संहारावस्था एवं कारणावस्था के नियामक शिव हैं। पहले भी कारणावस्था रहती हैं, अंत में भी वही रहती है। प्रथम भी शिव हैं, अंत में भी शिव तत्व ही अवशिष्ट रहता है। तत्वज्ञ लोग उसी में आत्म-भाव करते हैं। शिव ही सर्वविद्याओं एवं भूतों के ईश्वर हैं, वही महेश्वर हैं, वही सर्वप्राणियों के हृदय में रहते हैं। एकादश प्राण रूद्र हैं। निकलने पर वे प्राणियों को रूलाते हैं, इसलिए रूद्र कहे जाते हैं। दस इन्द्रियां और मन ही एकादश रूद्र हैं। ये आध्यात्मिक रूद्र हैं। आधिदैविक एवं सर्वोपाधिविनिर्मुक्त रूद्र इनसे पृथक हैं। जैसे विष्णु पाद के अधिष्ठाता हैं, वैसे ही रूद्र अहंकार के अधिष्ठाता हैं।
शिव की आत्मा विष्णु और विष्णु की आत्मा शिव हैं। तम काला होता है और सत्व शुक्ल परन्तु परस्पर एक- दूसरे की ध्यानजनित तन्मयता से दोनों के ही स्वरूप में परिवर्तन हो गया अर्थात सतोगुणी विष्णु कृष्णवर्ण हो गए और तमोगुणी रूद्र शुक्लवर्ण हो गए।
श्री राधा रूप से श्री शिवरूप का प्राकट्य होता है, तो कृष्णरूप से विष्णु का, काली रूप से विष्णु का तो शंकररूप से शिव का।
कालकूट विष और शेषनाग को गले में धारण करने से भगवान की मृत्युंजयरूपता स्पष्ट है। जटामुकुट में श्रीगंगा को धारण कर विश्व मुक्ति मूल को स्वाधीन कर लिया। अग्निमय तृतीय नेत्र के समीप में ही चन्द्रकला को धारण कर अपने संहारकत्व-पोषकत्व स्वरूप विरूध्द धर्माश्रयत्व को दिखलाया। सर्वलोकाधिपति होकर भी विभूति और व्याघ्रचर्म को ही अपना भूषण- बसन बनाकर संसार में वैराग्य को ही सर्वापेक्षया श्रेष्ठ बतलाया। शिव का वाहन नंदी , तो उमा का वाहन सिंह , गणपति का मूषक, तो कार्तिकेय का वाहन मयूर है। मूर्तिमान त्रिशूल और भैरवादिगण आपकी सेवा में सदा संलग्न हैं। सुर, नर, मुनि, नाग ,गन्धर्व, किन्नर, असुर, दैत्य भूत , पिशाच, वेताल, डाकिनी, शाकिनी, वृश्चिक, सर्प, सिंह सभी उनको पूजते हैं। आक, धतूरा, अक्षत, बेलपत्र, जल से उनकी पूजा की जाती है। शिवजी का कुटुम्ब भी विचित्र ही है। अन्नपूर्णा का भण्डार सदा भरा, पर भोले बाबा सदा के भिखारी। कार्तिकेय सदा युध्द के लिए उध्दत, पर गणपति स्वभाव से ही शांतिप्रिय। कार्तिकेय का वाहन मयूर, गणपति का मूषक, पार्वती का सिंह और शिव का नंदी, उस पर सर्पों का आभूषण। सभी एक दूसरे के शत्रु ,पर गृहपति की छत्रछाया में सभी सुख तथा शांति से रहते हैं। घर में प्राय: विचित्र स्वभाव और रूचि के लोग रहते हैं। घर की शांति के आर्दश की शिक्षा भी शिव से ही मिलती है।
भगवान शिव और अन्नपूर्णा अपने आप परम विरक्त रहकर संसार का सब ऐशवर्य श्री विष्णु और लक्ष्मी को अर्पण कर देते हैं। श्री लक्ष्मी और विष्णु भी संसार के सभी कार्यां को संभालने, सुधारने के लिए अपने आप ही अवर्तीण होते हैं।

शिवलिगों पासना का रहस्य
सत्ता के बिना आनंद नहीं और आनंद के बिना सत्ता नहीं। मूल प्रकृति (योनि) और परमात्मा (लिंग) ही संसार और जगत की उत्पत्ति के कारण हैं। समष्टि ब्रहम का प्रकृति की ओर झुकाव अधिदैविक काम है। राधाकृष्ण, गौरीशंकर , अर्धनारीश्वर का परस्पर प्रेम ,परस्पर आकर्षण है और यह शुध्द प्रेम ही शुध्द काम है। यह कामेश्वर या कृष्ण का स्वरूप ही है। सत रूप गौरी एवं चितरूप शिव दोनों ही जब अर्ध्दनारीश्वर के रूप में मिथुनीभूत होते हैं, तभी पूर्ण सच्चिदानंद का भाव व्यक्त होता है, परन्तु यह भेद केवल औपचारिक ही है, वास्तव में तो वे दोनों एक ही हैं। भगवान अपने स्वरूप को देखकर स्वयं विस्मित हो जाते हैं। बस इसी से प्रेम या काम प्रकट होता है।इसी से शिव शक्ति का संमिलन होता है। यही श्रृंगाररस है। पूर्ण सौन्दर्य अनन्त है। उसी सौन्दर्य के कणमात्र से विष्णु ने मोहिनी रूप से शिव को मोह लिया। वही सगुण रूप में ललिता, कहीं कृष्ण रूप में प्रकट होता है।

निराकर, निर्विकार, व्यापक दृक् या पुरूषतत्व का प्रतीक ही लिङग है और अनन्त ब्रहमाण्डोत्पादिनी महाशक्ति प्रकृति ही योनी, अर्घा या जलहरी है। न केवल पुरूष से सृष्टि हो सकती है , न केवल प्रकृति से। पुरूष निर्विकार, कूटस्थ है, प्रकृति ज्ञानविहीन, जड़ है।
भगवान् कहते हैं- महद्ब्रहम- प्रकृति- मेरी योनि है, उसी में मैं गर्भाधान करता हूँ, उससे महदादिक्रमण समस्त प्रजा उत्पन्न होती हैं। लिड़ग् और योनि व्यापक शब्द हैं। गेहूँ, यव आदि में भी जिस भाग में अंकुर निकलता है उसे योनि माना जाता है, दाने निकलने से पहले जो छत्र होता है वह लिड़ग् है।
उत्पत्ति
का आधारक्षेत्र भग है, बीज लिड़ग् है। शिव सूक्ष्म अतीन्द्रिय लिड़ग् है। शक्ति सूक्ष्म अतीन्द्रिय योनि है। स्थूल लिड़ग् और योनि तो सूक्ष्म लिड़ग् एवं योनि की अभिव्यक्ति के संभावित रूपों में से एक रूप है। प्रतिबिम्ब मात्र है।

04 जून 2010

अगले जनम मोहे बिटिया ही कीजो

नन्ही कली खिलना चाहती है। अगर आपने इसे बढने में मदद की, तो ये फूल बनकर फिजां में खुशबू बिखेरा करेगी। वाकई निराली हैं हमारी बेटियां। एक बेटी ही बहन है, पत्नी है, जननी है और परिवार को जोडकर रखने वाली डोर भी। एक मायने में सृष्टि की सृजनकर्ता हैं बेटियां... ये बेटियां ममता की मूरत हैं। इनकी उपलब्धियां असीम हैं। जीवन को अमृत तुल्य बनाने वाली इन बेटियों को इतना लाड और प्यार दो कि हर लडकी की जुबान पर यही बात हो... अगले जन्म मोहे बिटिया ही कीजो।

जिस घर में लडकियां हैं, पूरे घर में आपको प्यारी-सी महक मिलेगी। एक अनोखी किस्म की नजाकत और नफासत, जिसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता है। बेटियां घर को सजाती है, संवारती है और घर को संबंधों की ऊर्जावान डोर में बांध लेती हैं। बेटियां परिवार के लिए लक्ष्मी हैं। वे चाहे जहां रहें, हमेशा परिवार की चिंता उन्हें सालती रहती है। देश के विकास में अगर बेटियों का योगदान देखें, तो पता लगेगा कि आजादी और आजादी के बाद हर मोर्चे पर बेटियों ने अपना हुनर दिखाया है। लडकियों ने आसमान से लेकर समंदर की गहराइयों तक सफलता का परचम लहराया है। आज भी घर के बडे-बुजुर्ग कहते हैं कि लडकियां जिस घर में पैदा होती है, वहां बरकत आती है।

इन्हें देखकर लगता है कि कुदरत ने सारी ममता बेटियों की झोली में डाल दी है। आज भी समाज में ऎसी कई बेटियां हैं, जिन्होंने समाज और दुनिया के लिए खुद को जोखिम में डाला। सानिया मिर्जा और कल्पना चावला के पिता से बात करके देखिए, बेटियों के कमाल की बदौलत आज इनके परिवार को फख्र है।

कौन लेगा जिम्मेदारी
पंजाब जाकर देखिए, यह राज्य आज बहनों के लिए तरस रहा है। राखी के दिन वहां हजारों लडकों की कलाइयां सूनी रहती हैं। कारण साफ है। पंजाब में लडकियों की तादाद तेजी से घटती जा रही है। कन्या भ्रूण हत्या का ग्राफ बढता जा रहा है। नई रिपोट्र्स पर विश्वास करें, तो देश में कन्या भू्रण हत्या तेजी से बढ रही है। अब वो दिन दूर नहीं, जब आपको नवरात्रों पर जिमाने के लिए कन्या कहीं नजर नहीं आएंगी। बढती कन्या भ्रूण हत्या के लिए अनपढ या पिछडे लोगों की बजाय मॉडर्न और एजुकेटेड लोग ज्यादा जिम्मेदार हैं। उच्च मध्यवर्गीय परिवारों तक में लडकियों को दोयम दर्जा दिया जाता है। अगर यह चलन जारी रहा, तो वो दिन दूर नहीं जब नारी जाति के अस्तित्व पर ही खतरा होगा। इंस्टीट्यूट ऑफ डवलपमेंट एंड कम्युनिकेशन (आईडीसी) के सर्वे से इस बात का खुलासा हुआ है कि कन्या भ्रूण हत्या में पढे-लिखे लोगों की संख्या ज्यादा है। संस्था के मुताबिक 2002 में लिंग निर्धारण टेस्ट करवाने वालों में स्नातक या इससे अधिक पढे-लिखे लोग 45 फीसदी थे, जो 2006 में बढकर 49.6 फीसदी तक पहुंच गए। अध्ययन बताते हैं कि जहां पढे-लिखे लोग भ्रूण हत्या के लिए आधुनिक तरीकों जैसे अल्ट्रासाउंड तकनीक आदि का इस्तेमाल करते हैं, वहीं ग्रामीण लोग कन्या जन्म के बाद ऎसा करतेे हैं।

प्रयास जरूरी
कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए व्यक्तिगत स्तर पर प्रयास किए जाने की जरूरत है। सामाजिक चेतना के लिए कई संस्थाएं सालों से काम कर रही हैं, पर नतीजे सामने हैं। बजाय इन सारी बातों के, हर परिवार को सोचना होगा कि बेटी का क्या मोल है एक बेटी ही बहन है, पत्नी है, जननी है और एक मायने में सृष्टि की संचालक भी। हिमाचल सरकार की योजना काबिले तारीफ है। वहां पिछले दिनों 'बेटी अनमोल है' अभियान चलाया गया, जिसमें जागरूकता जत्थे के लोगों ने घर-घर जाकर बताया कि यदि कन्या शिशु दर गिरती रही, तो आने वाले बरसों में लडकियां ढूंढें नहीं मिलेंगी और समाज का संतुलन ही गडबडा जाएगा। हालांकि हिमाचल प्रदेश का लिंगानुपात अन्य राज्यों की तुलना में ठीक है, लेकिन फिर भी आंकडों के मुताबिक 2019 में इस दर से तीन लडकोंं पर एक लडकी और 2031 में सात लडकों पर एक लडकी रह जाएगी। ऎसी सार्थक पहल को सभी राज्यों में अमल किया जाना चाहिए। सरकार और कानून को सबसे ज्यादा जोर तो इस बात पर देना चाहिए कि किसी तरह से महिलाओं की आबादी बनी रहे, नहीं तो अनर्थ होने में देर नहीं लगेगी।

शर्मसार करते आंकडे
देश में हर 29वीं लडकी जन्म नहीं ले पाती है, वहीं पंजाब में हर पांचवी लडकी का कोख में कत्ल हो जाता है।

देश में हर 1000 पर 14 लडकियां कम हो रही हैं, वहीं पंजाब में हर एक हजार पर 211 लडकियां कम हो रही हैं।

इंस्टीट्यूट ऑफ डवलप मेंट एंड कम्युनिकेशन (आईडीसी) के सर्वे से इस बात का खुलासा हुआ है कि कन्या भ्रूण हत्या में पढे-लिखे लोगों की संख्या ज्यादा है। संस्था के मुताबिक 2002 में लिंग निर्धारण टेस्ट करवाने वालों में मैट्रिक से कम पढे-लिखे लोग 40 फीसदी थे, जबकि 2006 में यह घट कर 31.8 फीसदी रह गई। इसी तरह दसवीं से स्नातक के बीच शिक्षित 39 फीसदी लोगों ने जहां 2002 में लिंग निर्धारण टेस्ट करवाया था, वहीं 2006 में यह गिनती 32.9 फीसदी रह गई। इसके विपरीत 2002 में स्नातक या इससे अधिक पढे-लिखे लोग 45 फीसदी थे, जो 2006 में बढकर 49.6 फीसदी तक पहुंच गए।

2001 की जनगणना के मुताबिक देश में 1000 लडकों पर 927 लडकियां हैं।

आशाएं........आशाएं ( Hopes.... hopes )

जिंदगी उनका साथ देती है, जो हर पल आशा की डोर थामे रहते हैं। सामने चाहे लाख अंधेरा हो, पर अगर आप उजियारे की आस में चलते रहेंगे, तो जल्द ही रोशनी से रूबरू होंगे। अगर आप आशावान हैं, तो पहाड को भी हिला सकते हैं। सकारात्मक चिंतन और वैज्ञानिकों के नए शोध साबित करते हैं कि उम्मीद के साए में रहकर आप जिंदगी में खुशहाली ला सकते हैं।

1952 में एडमंड हिलेरी ने दुनिया के सबसे ऊंचे शिखर माउंट एवरेस्ट पर चढने की कोशिश की, पर वे विफल रहे। कुछ सप्ताह बाद उनसे इंग्लैंड में एक समूह को संबोधित करने को कहा गया। हिलेरी मंच पर आए और माउंट एवरेस्ट की तस्वीर की तरफ मुक्का तानते हुए बोले, 'माउंट एवरेस्ट, तुमने मुझे पहली बार तो हरा दिया, पर अगली बार मैं तुम्हें हरा दूंगा, क्योंकि तुम बढ नहीं सकते पर मैं प्रगति कर सकता हूं।' एक साल बाद 29 मई को एडमंड हिलेरी माउंट एवरेस्ट पर पहुंचने वाले पहले इंसान बन गए। बकौल हिलेरी, 'इंसान को पहाड को नहीं, खुद को जीतना पडता है।'

'दी सीक्रेट' की लेखिका रॉन्डा बर्न अपने जीवन के बारे में कहती हैं, 'मैं पूरी तरह हताश थी। शारीरिक, भावनात्मक और आर्थिक जीवन के तीनों महत्वपूर्ण मोर्चों पर पूरी तरह बिखर चुकी थी। अचानक ही मेरे पिताजी चल बसे। अब मुझे अपनी दुखी मां की चिंता भी सताने लगी। चारों ओर से मानो दुखों का सैलाब सा उमड पडा। मैं दिन-रात रोती थी... रोती थी और सिर्फ रोती थी। पर अचानक मेरे मन में आशा की एक तरंग-सी उठी। अब मैं अच्छी चीजों को अपने जीवन की ओर खींचने लगी थी। अच्छे की उम्मीद करते ही मैं स्वस्थ महसूस करने लगी। चमत्कार होने लगे। मैं स्वस्थ, धनवान और मशहूर होने लगी। यही 'दी सीक्रेट' की शुरूआत थी मेरे लिए। मैं एक बेस्टसेलर किताब की लेखिका बन गई क्योंकि मुझे यकीन था कि ऎसा होगा।'

नए साल पर हम सब मिलकर संकल्प करें कि सदा आशा का दामन थामे रहेंगे, फिर चाहे कोई भी परिस्थिति आ जाए, हम दुखी नहीं होंगे। अगर आप आशावान रहे, तो आपकी किस्मत भी पीछे-पीछे चलेगी। यूनिवर्सिटी ऑफ नॉर्थ कैरोलीना (यूएस) में मनोविज्ञान की प्रोफेसर बारबरा फ्रेड्रिक्सन ने अपने ताजा शोध में पाया है कि सकारात्मक भावनाएं जैसे- खुशी और कृतज्ञता, समस्याओं से निपटने की बेहतर क्षमता उत्पन्न करती है। इतना ही नहीं इनसे एकाग्रता और सीखने की क्षमता में भी इजाफा होता है। फ्रेड्रिक्सन कहती हैं, 'पिछले कुछ सालों में हमने पॉजिटिव सोच और खुशी के संबंध में कई दिलचस्प तथ्यों की जानकारी हासिल की है। इनसे पता चलता है कि सकारात्मक सोच से महत्वपूर्ण बदलाव हासिल किए जा सकते हैं।'

रॉन्डा बर्न कहती हैं, 'आप इस ब्रह्माण्ड के सबसे शक्तिशाली चुंबक हैं। आप जैसा सोचते हैं, वैसा पाते हैं। अच्छे की उम्मीद कीजिए, अच्छे में यकीन कीजिए... सब कुछ अच्छा ही होगा। अगर आप आशावादी हैं और किसी पॉजिटिव बात या विचार पर फोकस करते हैं, तो उस क्षण आप ब्रह्माण्ड से सकारात्मक चीजों को अपनी ओर खींच रहे होते हैं।'
जिंदगी से जोडती है आशा
'आशावादी लोग बीमार पडने पर भी रूटीन जिंदगी से जुडे रहते हैं। अगर आपको कोई बीमारी है और आप दिन-रात इसी पर फोकस करते हैं, लोगों से बार-बार इसी पर विचार-विमर्श करते हैं, तो पक्का मानिए आप ज्यादा बीमार कोशिकाएं पैदा कर रहे होते हैं। दिनभर में अपने आप से सौ बार कहिए, 'मैं स्वस्थ हूं, मैं फिट हूं, मुझे अच्छा महसूस हो रहा है। ऎसा कहकर खुद को ऊर्जा दीजिए और सामान्य जीवन से जुडे रहिए।' यह मानना है रॉन्डा बर्न का।

सेहत का सुरक्षा कवच
ऑप्टीमिज्म पर किए गए हालिया शोध बताते हैं कि आशावादियों का कार्डियोवैसकुलर सिस्टम और शरीर की रोगों से रक्षा करने वाली प्रणाली (इम्यून सिस्टम) निराशावादियों की तुलना में ज्यादा दुरूस्त होते हैं।

चिकित्सकों का भी मानना है कि अच्छे विल पॉवर और सकारात्मक सोच वाले रोगी, डरने वाले और नकारात्मक सोचने वाले रोगियों की तुलना में जल्दी ठीक हो जाते हैं। गर्भवती महिलाओं पर भी अच्छी-बुरी सोच के स्पष्ट प्रभाव देखे जा सकते हैं। तनावरहित और खुश रहने वाली महिलाओं में नॉर्मल डिलीवरी की संभावना अधिक रहती है और उनका बच्चा भी स्वस्थ होता है।

खुशी से हार्मोन प्लाज्मा फाइबारीनोजेन भी घटता है, जो कोरोनरी हार्ट डिजीज का संकेतक है। खुशी से हार्ट रेट भी कम होती है। उच्च हार्ट रेट जीवन को घटाने वाली मानी जाती है।

यूनिवर्सिटी ऑफ नेबारास्का मेडिकल सेंटर (ओमाहा-यूएस) में हैल्थ प्रमोशन के प्रोफेसर मोहम्मद सियापुश कहते हैं, 'पॉजिटिव साइकोलॉजी में हुए ताजा रिसर्च बताते हैं कि सकारात्मक सोच का सेहत पर सुरक्षात्मक प्रभाव पडता है।' सियापुश ने हाल ही ऑस्ट्रेलिया में करीब 10 हजार लोगों पर हुए अध्ययन का विश्लेषण किया और पाया कि एक खास समय खुशी महसूस करने वाले दो साल बाद ज्यादा स्वस्थ पाए गए। जाहिर बात है कि खुशी सिर्फ पॉजिटिव सोच वाले लोगों में ही पाई जा सकती है।

कैसे बनें आशावादी
माना सकारात्मक सोच और खुशी को हासिल करना इतना आसान नहीं, क्योंकि 50 फीसदी लोगों के जीन में पॉजिटिव और खुश रहने की क्षमता होती है। यही वजह है कि कुछ लोग कठिन हालात में भी सहजतापूर्वक खुश रहते हैं और उम्मीद रखते हैं। जबकि कुछ लोग सदा दयनीय, उदास और दीनहीन से ही बने रहते हैं। सदा मुंह लटकाकर रखने वालों को लोग पसंद नहीं करते और उनके हिस्से आती है- असफलता, बीमारी और गरीबी। कुछ बातों का ध्यान रखकर ऎसे लोग भी आशावादी बन सकते हैं-

सबसे पहले तय करें कि आप क्या हासिल करना चाहते हैं। फिर सोचें कि आपके पास ऎसे कौन से संसाधन, संबंध और उपाय हैं, जिन्हें आप उस चीज को हासिल करने में झोंक सकते हैं। यकीन करें, चीजें मिलती जाएंगी, रास्ता भी मिलता जाएगा और मंजिल भी मिल जाएगी।

इस बात को स्वीकार कर लें कि समस्या सामने है और इसका मुकाबला आपको ही करना है। समस्या से दूर भागेंगे, तो समस्या आपका पीछा करेगी। उदास होकर बैठेंगे, तो वह पनपकर विशाल रूप ले लेगी। फायदा इसी में है कि सिर उठाते ही उसे ठिकाने लगा दिया जाए।

सब सोच का कमाल है
'चिकन सूप फॉर द सोल' सीरीज के रचयिता जैक केनफील्ड इस किताब को लिखने से पहले भारी कर्ज में डूबे हुए थे। उम्मीद का दामन थामे रखने की सलाह देने वाले केनफील्ड की यह किताब दुनियाभर में 100 मिलियन कॉपियों की बिक्री के साथ सफलता का परचम लहरा चुकी है। केनफील्ड की सोच भी रॉन्डा से मिलती-जुलती है, 'आप जिन चीजों पर फोकस करते हैं, वो हर चीज आपके जीवन पर असर डालती है। सारा दारोमदार इस बात पर है कि हम कैसा महसूस करते हैं। हमारी फीलिंग्स यूनिवर्स में तरंग भेजती हैं और उसी स्तर पर ब्ा्रह्मांड में व्याप्त अन्य तरंगें जिंदगी की ओर खिंची चली आती हैं। अधिकतर लोग खराब या नकारात्मक बातें ज्यादा सोचते हैं। आप निगेटिव सोचेंगे, तो जिंदगी में नकारात्मकता रहेगी।'

सुदंर बनाए फल

पपीता
एक पपीता सबसे अच्छे क्लिंजर के रूप में काम करता है, क्योंकि ये पैपेन नामक एंजाइम तैयार करता है। पैपेन मृत स्किन को जीवित करने की क्षमता रखता है। अगर त्वचा किसी भी कारण से पोषण नहीं पा रही होती है, वहां भी पैपेन कमाल करते हैं। पपीता का सेवन और पपीता का गूदा (पल्प) स्किन पर रगडने से अतिरिक्त तैलीय रिसाव संतुलित हो जाता है। स्किन के रंग पर भी फर्क पडता है।

पपीता के प्रयोग
- पके हुए पपीता की लुगदी को दलिया, शहद या दही के साथ मिला लें और अपने चेहरे पर 10 मिनट के लिए लगाएं। फिर ठंडे पानी से धो डालें।
- आंखों के नीचे के काले घेरे को कम करने के लिए पपीता और ककडी का गूदा तैयार करें और उसे नियमित आंखों के नीचे लगाएं।

अनार
अनार में भी एस्ट्रिनजेंट होने के गुण मौजूद होते हैं। ये नैचुरल टोनर के हिसाब से काम करते हैं। अनार के रेग्युलर सेवन से रक्त में लाल रक्त कणिका की मात्रा बढती है और स्किन में ऑयल मेंटेन रहता है।

अनार का प्रयोग
- एक अनार के बीजों से फेस स्क्रब करने से चेहरे पर ताजगी आने के साथ-साथ अतिरिक्त ऑयल निकलना भी कंट्रोल में आ जाता है।
- करीब 50 ग्र्राम अनार के ज्यूस को कॉटन से चेहरे पर मसाज करने से ग्लो बढती है। ये इंस्टैंट फेशियल के रूप में आजमाए जा सकते हैं।

सेब
विटामिनों और खनिजों का भंडार है सेब, मगर ये स्किन टोनिंग और कोशिका को जवान रखने में मदद करता है। सेब के रेग्युलर सेवन से ब्लड सर्कुलेशन तेज होता है। सेब में पाया जाने वाला पैक्टिन और टैनिन रक्त कणिका के लिए जरूरी होते हैं। खासतौर से गोरे और संवेदनशील त्वचा वालों को ये सनबर्न से बचाने में मदद करते हैं।

सेब का प्रयोग
- त्वचा किसी वजह से जल गई है, तो सेब के पल्प को एक चम्मच ग्लिसरीन के साथ मिलाकर झुलसे स्थान पर लगाएं। सनबर्न स्किन के लिए भी यह मिश्रण उपयोगी है।
- अधिक देर तक काम करने से चेहरे पर थकान दिखे, तो सेब के दो टुकडे को पपीता के साथ पीस लेना चाहिए, उस मिश्रण में एक-एक चम्मच ताजा क्रीम और चाइना क्ले को मिला लेना चाहिए। इस मिश्रण को चेहरे पर 15-20 तक लगाकर रखने के बाद ठंडे पानी से धो लेना चाहिए। इससे त्वचा हैल्दी दिखने लगेगी।

केला
फलों में सबसे सस्ता और हमेशा उपलब्ध रहता है केला। केला चेहरे के लिए परफैक्ट क्लिंजर मास्क का काम करता है। ये मृत कोशिकाओं को हटाकर नई कोशिकाओं को तैयार करने में मदद करता है। मुंहासों की परेशानी को भी दूर करते हैं केले।

केले का प्रयोग
- दो केले को मैश कर लें, उसमें एक बडा चम्मच हनी मिला लें, मिश्रण को चेहरे पर लगाएं और 10-15 मिनट तक सूखने के लिए छोड दें। फिर पहले ठंडे पानी से धोएं और बाद में गुनगुने पानी से धो डालें, स्किन के छिद्र तुरंत साफ हो जाते हैं।

संतरा
साइट्रस प्लांट फैमिली के इस फल को सबसे बेहतरीन एस्ट्रिनजेंट माना जाता है। संतरे के छिलके और रस दोनों ही बेहद उपयोगी हैं। इनमें स्किन को टोनिंग करने की क्षमता होती है। इसका उपयोग स्किन की डार्कनेस को खत्म करने के लिए किया जाता है।

संतरे का प्रयोग
दो संतरों का रस निकाल कर उसे आइस ट्रे में रख दें, जब ये आइस क्यूब में बदल जाए, तो इसे चेहरे पर रगडें। ये फेशियल का काम करता ही है और चेहरे पर ताजगी भी ले आता है।

आप फिट तो दुनियां हिट

अगर आप आर्थराइटिस या गठिया से पीडित हैं, तो रोजमर्रा की दिनचर्या से कुछ समय निकाल कर ये आसन करें। दर्द से तो मुक्ति पाएं ही और बॉडी भी रहे फिट।

मेरूदंडासन
मेरूदंडासन में दोनों पैर फैलाकर मेरूदंड को सीधा रखते हुए दोनों हाथों का जमीन पर दबाव डालते हुए सीधे बैठें। दीर्घ श्वास लेते हुए मूलबंध लगाते हुए घुटने की टोपी को ऊपर खींचें और श्वास छोडते हुए आगे छोडें। यह क्रिया 10 बार दोहराएं।

मेरूदंडासन
मेरूदंडासन में दोनों पैर फैलाकर मेरूदंड को सीधा रखते हुए दोनों हाथों का जमीन पर दबाव डालते हुए सीधे बैठें। दीर्घ श्वास लेते हुए मूलबंध लगाते हुए घुटने की टोपी को ऊपर खींचें और श्वास छोडते हुए आगे छोडें। यह क्रिया 10 बार दोहराएं।

पवनमुक्तासन
दोनों पैर मिलाकर सीधे लेट जाएं। बाएं पैर को ऊपर उठाते हुए घुटनों को मोडें। हाथों से ग्रिप बनाते हुए घुटनों का दबाव पेट पर डालें। श्वास भरते हुए सिर को ऊपर उठाते हुए नासिका को घुटने से लगाएं। श्वास रोकें (यथाशक्ति)। धीरे-धीरे सांस छोडते हुए सिर को नीचे रखें, पैर को सीधा रखें। दूसरे पैर से इसी क्रिया को दोहराएं। फिर दोनों पैरों से क्रिया को दोहराएं।

आहार
गर्म पानी का सेवन लाभप्रद है।
अंकुरित मूंग-मेथी, सब्जियां और फल शामिल करें।
फ्लेक्सीड और लिंसिड ऑयल प्रतिदिन 1 बडा चम्मच इस्तेमाल करें।
भीगे हुए बादाम, अखरोट और काली द्राक्ष बहुत उपयोगी है।
गाजर, चुकंदर, लौकी जूस या पेठे का जूस लें।
नीबू, आंवला, संतरा उपयोगी है।

ऑस्टियो आर्थराइटिस
संधियों के मध्य स्थित सायनोवियल द्रव कम होने से हडि्डयां घिस जाती हैं, जिससे संधियों को हिलाने पर घर्षण सुनाई देता है।

रूमेटॉयड आर्थराइटिस
यह ज्यादातर महिलाओं को होता है। इसमें पूरे शरीर के जोड प्रभावित होते हैं। पहले उनमें सूजन और दर्द होता है।

गठिया
प्रोटीन के चयापचय में गडबडी के कारण यूरिक एसिड रक्त में बढ जाता है तथा संधियों में जमा होकर गठिया करता है। इसी प्रकार कैल्शियम के चयापचय में गडबडी होने से कैल्शियम ऑक्जलेट बनता है, जो संधियों में जमा होता है।

जुवेनाइल आर्थराइटिस
यह 10 से 15 वर्ष के बच्चों में होता है।

वायु मुद्रा
तर्जनी अंगुली को अंगूठे की जड में लगाकर उसे अंगूठे से दबाने पर यह मुद्रा बनती है।
लाभ: इस मुद्रा से सभी प्रकार के वायु रोग, गठिया, कंपन, रेंगने वाले दर्द में लाभ
होता है।

अपान मुद्रा
मध्यमा और अनामिका को एक साथ मोडकर अंगूठे से स्पर्श करने पर बनती है।
उदर की वायु कम होने से जोडों के दर्द में लाभ होता है।

लिंग मुद्रा
दोनों हाथों की अंगुलियों को फंसाकर बाएं हाथ के अंगूठे को सीधा रखने पर बनती है।
संधियों पर दबाव बनने से इनमें रक्त-संचालन बढता है। इसके साथ ही नजला, जुकाम में भी लाभकारी है।

योगासन से उपचार
मणिबंध और करपृष्ठ शक्ति विकासक क्रियाएं : दोनों पैर मिलाकर खडे रहते हुए दोनों हाथों के अंगूठे मुटि्ठयों के भीतर रखते हुए हाथों को वक्षस्थल के सामने फैला दें। श्वास सामान्य रखते हुए मुटि्ठयों को ऊपर-नीचे करें। कोहनियों को मोडकर भी इस क्रिया को दोहराएं। मुट्ठी और कलाई को दस बार सीधे और दस बार विपरीत दिशा में घुमाएं। अंगुलियों को फैलाकर टाइपिंग की क्रिया जैसे करें। पैरों की संधियां घुमाने वाले आसन- पंजों की अंगुलियों को खोलना-बंद करना, टखना ऊपर-नीचे करना, टखने को घुमाना, घुटने को आंतरिक बल से खींचना और छोडना।
जोडों के दर्द के लिए: इसके अतिरिक्त मेरूदंड संचालन के आसन- भुजंगासन, शलभासन, चक्रासन, धनुरासन, गौमुखासन, भस्रिका, अनुलोम-विलोम, सूर्य भेदी प्राणायाम कर सकते हैं।

10 की दुनिया ( 10 of the world )

धर्म के दस लक्षण हैं, तो जीवन की अवस्थाएं भी दस हैं। हमारे यहां दशकर्म या दस संस्कारों का चलन रहा है। हमारे शरीर के दस द्वार हैं। दिशाएं दस हैं, तो दसों दिशाओं की रक्षा करने वाले दस देवता भी हैं। रावण के दशमुख होने के कारण उसे दशानन, दशशिर और दशास्य जैसे नाम दिए गए तो रावण का संहार करने वाले श्रीराम को दशास्यजित, दशकंठारि, दशकंठजित आदि कहा गया। चांद्रमास के दोनों पक्ष की दसवीं तिथि दशमी कहलाती है। दशमी से कई पर्व जुडे हैं, जैसे विजय दशमी, सुगंध दशमी, गंगा दशहरा। जन्म कुंडली के दशम भाव से जीवन में मिलने वाले सम्मान, पद, व्यापार, कर्म, पिता और आज्ञा आदि का विचार किया जाता है।

दिशा, द्रव्य और अवस्था
पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण, अग्नि, नैऋत्य, वायु, ईशान, अध: और उध्र्व दस दिशाएं हैं। पूर्व दिशा के देवता इंद्र, अग्निकोण के अग्नि, दक्षिण दिशा के यम, नैऋत्य कोण के नैऋत्य, पश्चिम दिशा के वरूण, ईशान कोण के ईश, उध्र्व दिशा के ब्ा्रह्मा और अध: दिशा के देवता अनंत हैं। इसी प्रकार वायु कोण के मरूत और उत्तर दिशा के देवता कुबेर हैं। शरीर के दस द्वार हैं- 2 कान, 2 आंख, 2 नासा छिद्र, 1 मुख, गुदा, लिंग और ब्ा्रह्मांड। दस सुगंधों के मेल से बनने वाला धूप, जो पूजा में जलाया जाता है, उसमें दस प्रकार के द्रव्य मिलाए जाते हैं। ये द्रव्य हैं- शिलारस, गुग्गुल, चंदन, जटामासी, लोबान, राल, खस, नख, भीमसैनी कपूर और कस्तूरी। मनुष्य का जीवन दस अवस्थाओं में बंटा है। ये अवस्थाएं हैं- गर्भवास, जन्म, बाल्य, कौमार, पोगंड यानी पांच से सोलह वर्ष तक की वय का बालक, यौवन, स्थाविर्य, जरा, प्राणरोध और नाश।

देवता और धर्म
जीवन और साहित्य से आगे धर्म की ओर जाएं, तो अनेक देवी-देवता दस के वर्ग में मिल जाएंगे। भगवान विष्णु के मुख्य अवतार दशावतार जाने जाते हैं। ये हैं- मत्स्य, कूर्म, वराह, नृसिंह, वामन, परशुराम, राम, बलराम, बुद्ध और कल्की। वे दस देव मूर्तियां जिनकी शाक्त लोग उपासना करते हैं, दशमहाविद्या कहलाती हैं। दशमहाविद्या ये हैं- काली, तारा, षोडसी, भुवनेश्वरी, भैरवी, छिन्न मस्ता, धूमावती, बगला, मातंगी और कमला। भगवान बुद्ध को दस बल प्राप्त थे, इसलिए वे दशबल कहलाए। ये बल हैं- दान, शील, क्षमा, वीर्य, ध्यान, प्रज्ञा बल, उपाय, प्रणिधि और ज्ञान। धृति, क्षमा, दम, अस्तेय, शौच, इंद्रिय निग्रह, घी, विद्या, सत्य और अक्रोध धर्म के दस लक्षण हैं।

संस्कार, वृक्ष और व्यसन
गर्भाधान संस्कार से लेकर विवाह तक दस संस्कारों का प्रचलन रहा है। इन संस्कारों को दशकर्म भी कहते हैं। दशकर्म हैं- गर्भाधान, पुंसवन, सीमंतोन्नयन, जातकरण, निष्क्रामण, नामकरण, अन्नप्राशन, चूडाकरण, उपनयन और विवाह। इसी तरह शास्त्रों में दस प्रकार के व्यसन बताए गए हैं। ये दशकाम-व्यसन कहलाते हैं। ये हैं- मृगया, द्यूत, दिवानिद्रा, परनिंदा, प्रमाद शक्ति, नृत्य, गीत, क्रीडा, वृक्ष भ्रमण और मद्यपान। तंत्र के अनुसार दस वृक्षों का कुल दशकुल वृक्ष कहलाता है। ये वृक्ष हैं- लिसोडा, करंज, बेल, पीपल, नीम, कदंब, गूलर, बरगद, इमली और आंवला।

औषधियां
दस औषधियां काढे के काम आती हैं- अडूसा, गुर्च, पितपापडा, चिरायता, नीम की छाल, जल भंग, हरड, बहेडा, आंवला और कुलथी। वैद्यक में दस वनस्पतियों की जडें दशमूल भी उपयोगी हैं। दशमूल हैं- सरिवन, पिठवन, छोटी कटाई, बडी कटाई, गोखरू, बेल, पाठा, गंभारी, ननियारी और सोना पाठा।

02 जून 2010

चाय के बारे में वह सब जो आप नहीं जानते

चाय कितनी तरह की होती है ?

मोटे तौर पर चाय दो तरह की होती है : प्रोसेस्ड या सीटीसी (कट, टीयर ऐंड कर्ल) और ग्रीन टी (नैचरल टी)।

सीटीसी टी (आम चाय) : यह विभिन्न ब्रैंड्स के तहत बिकने वाली दानेदार चाय होती है, जो आमतौर पर घर, रेस्तरां और होटेल आदि में इस्तेमाल की जाती है। इसमें पत्तों को तोड़कर कर्ल किया जाता है। फिर सुखाकर दानों का रूप दिया जाता है। इस प्रक्रिया में कुछ बदलाव आते हैं। इससे चाय में टेस्ट और महक बढ़ जाती है। लेकिन यह ग्रीन टी जितनी नैचरल नहीं बचती और न ही उतनी फायदेमंद।

ग्रीन टी: इसे प्रोसेस्ड नहीं किया जाता। यह चाय के पौधे के ऊपर के कच्चे पत्ते से बनती है। सीधे पत्तों को तोड़कर भी चाय बना सकते हैं। इसमें एंटी-ऑक्सिडेंट सबसे ज्यादा होते हैं। ग्रीन टी काफी फायदेमंद होती है, खासकर अगर बिना दूध और चीनी पी जाए। इसमें कैलरी भी नहीं होतीं। इसी ग्रीन टी से हर्बल व ऑर्गेनिक आदि चाय तैयार की जाती है। ऑर्गेनिक इंडिया, ट्विनिंग्स इंडिया, लिप्टन कुछ जाने-माने नाम हैं, जो ग्रीन टी मुहैया कराते हैं।

हर्बल टी: ग्रीन टी में कुछ जड़ी-बूटियां मसलन तुलसी, अश्वगंधा, इलायची, दालचीनी आदि मिला देते हैं तो हर्बल टी तैयार होती है। इसमें कोई एक या तीन-चार हर्ब मिलाकर भी डाल सकते हैं। यह मार्किट में तैयार पैकेट्स में भी मिलती है। यह सर्दी-खांसी में काफी फायदेमंद होती है, इसलिए लोग दवा की तरह भी इसका यूज करते हैं।

ऑर्गेनिक टी: जिस चाय के पौधों में पेस्टिसाइड और केमिकल फर्टिलाइजर आदि नहीं डाले जाते, उसे ऑर्गेनिक टी कहा जाता है। यह सेहत के लिए ज्यादा फायदेमंद है।

वाइट टी: यह सबसे कम प्रोसेस्ड टी है। कुछ दिनों की कोमल पत्तियों से इसे तैयार किया जाता है। इसका हल्का मीठा स्वाद काफी अच्छा होता है। इसमें कैफीन सबसे कम और एंटी-ऑक्सिडेंट सबसे ज्यादा होते हैं। इसके एक कप में सिर्फ 15 मिग्रा कैफीन होता है, जबकि ब्लैक टी के एक कप में 40 और ग्रीन टी में 20 मिग्रा कैफीन होता है।

ब्लैक टी: कोई भी चाय दूध व चीनी मिलाए बिना पी जाए तो उसे ब्लैक टी कहते हैं। ग्रीन टी या हर्बल टी को तो आमतौर पर दूध मिलाए बिना ही पिया जाता है। लेकिन किसी भी तरह की चाय को ब्लैक टी के रूप में पीना ही सबसे सेहतमंद है। तभी चाय का असली फायदा मिलता है।

इंस्टेंट टी: इस कैटिगरी में टी बैग्स आदि आते हैं, यानी पानी में डालो और तुरंत चाय तैयार। टी बैग्स में टैनिक एसिड होता है, जो नैचरल एस्ट्रिंजेंट होता है। इसमें एंटी-वायरल और एंटी-बैक्टीरियल गुण होते हैं। इन्हीं गुणों की वजह से टी-बैग्स को कॉस्मेटिक्स आदि में भी यूज किया जाता है।

लेमन टी: नीबू की चाय सेहत के लिए अच्छी होती है, क्योंकि चाय के जिन एंटी-ऑक्सिडेंट्स को बॉडी एब्जॉर्ब नहीं कर पाती, नीबू डालने से वे भी एब्जॉर्ब हो जाते हैं।

मशीन वाली चाय: रेस्तरां, दफ्तरों, रेलवे स्टेशनों, एयरपोर्ट आदि पर आमतौर पर मशीन वाली चाय मिलती है। इस चाय का कोई फायदा नहीं होता क्योंकि इसमें कुछ भी नैचरल फॉर्म में नहीं होता।

अन्य चाय: आजकल स्ट्रेस रीलिविंग, रिजूविनेटिंग, स्लिमिंग टी व आइस टी भी खूब चलन में हैं। इनमें कई तरह की जड़ी-बूटी आदि मिलाई जाती हैं। मसलन, भ्रमी रिलेक्स करता है तो दालचीनी ताजगी प्रदान करती है और तुलसी इमून सिस्टम को मजबूत करती है। इसी तरह स्लिमिंग टी में भी ऐसे तत्व होते हैं, जो वजन कम करने में मदद करते हैं। इनसे मेटाबॉलिक रेट थोड़ा बढ़ जाता है, लेकिन यह सपोर्टिव भर है। सिर्फ इसके सहारे वजन कम नहीं हो सकता। आइस टी में चीनी काफी होती है, इसलिए इसे पीने का कोई फायदा नहीं है।

चाय के फायदे

- चाय में कैफीन और टैनिन होते हैं, जो स्टीमुलेटर होते हैं। इनसे शरीर में फुर्ती का अहसास होता है।

- चाय में मौजूद एल-थियेनाइन नामक अमीनो-एसिड दिमाग को ज्यादा अलर्ट लेकिन शांत रखता है।

- चाय में एंटीजन होते हैं, जो इसे एंटी-बैक्टीरियल क्षमता प्रदान करते हैं।

- इसमें मौजूद एंटी-ऑक्सिडेंट तत्व शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाते हैं और कई बीमारियों से बचाव करते हैं।

- एंटी-एजिंग गुणों की वजह से चाय बुढ़ापे की रफ्तार को कम करती है और शरीर को उम्र के साथ होनेवाले नुकसान को कम करती है।

- चाय में फ्लोराइड होता है, जो हड्डियों को मजबूत करता है और दांतों में कीड़ा लगने से रोकता है।

चाय की मेडिसनल वैल्यू

चाय को कैंसर, हाई कॉलेस्ट्रॉल, एलर्जी, लिवर और दिल की बीमारियों में फायदेमंद माना जाता है। कई रिसर्च कहती हैं कि चाय कैंसर व ऑर्थराइटस की रोकथाम में भूमिका निभाती है और बैड कॉलेस्ट्रॉल (एलडीएल) को कंट्रोल करती है। साथ ही, हार्ट और लिवर संबंधी समस्याओं को भी कम करती है।

चाय के नुकसान

- दिन भर में तीन कप से ज्यादा पीने से एसिडिटी हो सकती है।

- आयरन एब्जॉर्ब करने की शरीर की क्षमता को कम कर देती है।

- कैफीन होने के कारण चाय पीने की लत लग सकती है।

- ज्यादा पीने से खुश्की आ सकती है।

- पाचन में दिक्कत हो सकती है।

- दांतों पर दाग आ सकते हैं लेकिन कॉफी से ज्यादा दाग आते हैं।

- देर रात पीने से नींद न आने की समस्या हो सकती है।

दूध से खत्म होते हैं चाय के गुण

दूध और चीनी मिलाने से चाय के गुण कम हो जाते हैं। दूध मिलाने से एंटी-ऑक्सिडेंट तत्वों की ऐक्टिविटी भी कम हो जाती है। चीनी डालने से कैल्शियम घट जाता है और वजन बढ़ता है। इससे एसिडिटी (जलन) की आशंका बढ़ जाती है। दरअसल, चाय में फाइब्रीन व एल्ब्यूमिन होते हैं, जबकि चाय में टैनिन। ये आपस में मिलकर ड्रिंक को गंदला कर देते हैं। दूध में मौजूद प्रोटीन चाय के फायदों को खत्म करता है।

चाय बनाने का सही तरीका

ताजा पानी लें। उसे एक उबाल आने तक उबालें। पानी को आधे मिनट से ज्यादा नहीं उबालें। एक सूखे बर्तन में चाय पत्ती डालें। इसके बाद बर्तन में पानी उड़ेल दें। पांच-सात मिनट के लिए बर्तन को ढक दें। इसके बाद कप में छान लें। स्वाद के मुताबिक दूध और चीनी मिलाएं। एक कप चाय बनाने के लिए आधा चम्मच चाय पत्ती काफी होती है। चाय पत्ती, दूध और चीनी को एक साथ उबालकर चाय बनाने का तरीका सही नहीं है। इससे चाय के सारे फायदे खत्म हो जाते हैं। इससे चाय काफी स्ट्रॉन्ग भी हो जाती है और उसमें कड़वापन आ जाता है।

कब पिएं

यूं तो चाय कभी भी पी सकते हैं लेकिन बेड-टी और सोने से ठीक पहले चाय पीने से बचना चाहिए। दरअसल, रात को सोने और आराम करने से इंटेस्टाइन (आंत) फ्रेश होती है। ऐसे में सुबह उठकर सबसे पहले चाय पीना सही नहीं है। देर रात में चाय पीने से नींद आने में दिक्कत हो सकती है।

साथ में क्या खाएं

- जिन लोगों को एसिडिटी की दिक्कत है, उन्हें खाली चाय नहीं पीनी चाहिए। साथ में एक-दो बिस्कुट ले लें।

- ग्रीन टी हर्बल ड्रिंक है, इसलिए इसे खाली ही पीना बेहतर है। साथ में कुछ न खाएं तो इसका गुणकारी असर ज्यादा होता है।

कितने कप पिएं

बिना दूध और चीनी की हर्बल चाय तो कितनी बार भी पी सकते हैं। लेकिन दूध-चीनी डालकर और सभी चीजें एक साथ उबालकर बनाई गई चाय तीन कप से ज्यादा नहीं पीनी चाहिए।

कितनी गर्म पिएं

चाय को कप में डालने के 2-3 मिनट बाद पीना ठीक रहता है। वैसे जीभ खुद एक सेंस ऑर्गन है। चाय के ज्यादा गर्म होने पर उसमें जलन हो जाती है और हमें पता चल जाता है कि चाय ज्यादा गर्म है।

रखी हुई चाय न पिएं

चाय ताजा बनाकर ही पीनी चाहिए। आधे घंटे से ज्यादा रखी हुई चाय को ठंडा या दोबारा गर्म करके नहीं पीना चाहिए। इसी तरह एक ही पत्ती को बार-बार उबालकर पीना और भी नुकसानदेह है। अक्सर ढाबों और गली-मुहल्ले की चाय की दुकानों पर चाय बनानेवाले बर्तन में पुरानी ही पत्ती में और पत्ती डालकर चाय बनाई जाती है। इससे चाय में नुकसानदायक तत्व बनने लगते हैं।

यह भी जानें

- चाय पीने का पहला आधिकारिक उल्लेख चीन में चौथी शताब्दी ई.पू. मिलता है, लेकिन किसी लिखित दस्तावेज में जिक्र 350 ई. में मिलता है।

- भारत में चाय की पैदाइश और बिक्री ईस्ट इंडिया कंपनी के आने के बाद ही शुरू हुई। आज भारत दुनियाभर में सबसे ज्यादा चाय का उत्पादन करता है। इसमें से 70 फीसदी की खपत देश में ही हो जाती है।

- 5-6 कप चाय पीने से मैग्नीजियम की रोजाना की जरूरत 45 फीसदी जरूरत पूरी हो जाती है। शरीर को रोजाना 2-5 मिग्रा मैग्नीजियम की जरूरत होती है।

- किसी भी गर्भवती महिला को एक दिन में 200 मिली ग्राम कैफीन यानी पांच कप से ज्यादा चाय नहीं पीनी चाहिए।

- चाय को लकड़ी के डिब्बे में स्टोर करना चाहिए। इससे उसकी महक बनी रहती है।

- नॉन-वेज खाने के बाद दो-तीन कप चाय पीना फायदेमंद होता है। इससे नॉन-वेज में जो कैंसर पैदा करने करनेवाले केमिकल होते हैं, उनका असर कम करने में मदद मिलती है।

- चाय को बिना चीनी या शहद के पिएं।

- चाय में नीबू मिला लेना अच्छा होता है।

गुण और भी हैं

- चाय की पत्तियों के पानी को गुलाब के पौधे की जड़ों में डालना चाहिए।

- चाय की पत्तियों को पानी में उबाल कर बाल धोने से चमक आ जाती है।

- एक लीटर उबले पानी में पांच टी बैग्स डालें और पांच मिनट के लिए छोड़ दें। इसमें थोड़ी देर के लिए पैर डालकर बैठे रहें। पैरों को काफी राहत मिलती है।

- दो टी बैग्स को ठंडे पानी में डुबोकर निचोड़ लें। फिर दोनों आंखों को बंद कर लें और उनके ऊपर टी बैग्स रखकर कुछ देर के लिए शांति से लेट जाएं। इससे आंखों की सूजन और थकान उतर जाएगी।

- शरीर के किसी भाग में सूजन हो जाए तो उस पर गर्म पानी में भिगोकर टी बैग रखें। इससे दर्द कम होगा और ब्लड सर्कुलेशन सामान्य हो जाएगा।

- गर्म पानी में भीगे हुए टी बैग को रखने से दांत के दर्द में फौरी आराम मिलता है।

चाय के मुख्य आउटलेट्स

चा बार, ऑक्सफर्ड बुक स्टोर, बाराखम्बा रोड, कनॉट प्लेस : अफ्रीका, जापान से लेकर श्रीलंका तक की खास चाय उपलब्ध है इस हैपनिंग बार में। साथ ही, सेहत के लिहाज से भी फायदेमंद तमाम तरह की चाय यहां पी सकते हैं।

आपकी पसंद, (गोलचा के सामने), दरियागंज : 1955 में शुरू हुई इस दुकान की खासियत है इसका तजुर्बा और टी-टेस्टर्स की पसंद। कई नामी टी-टेस्टर्स की पसंद यहां लाजवाब स्वाद मुहैया कराती है। यहां से चाय के पैकिट स्टेट गिफ्ट के तौर पर भी विदेशी राजनयिकों आदि को दिए जाते हैं।

पैशन माइ कप ऑफ टी, पिरामिड शॉप, साकेत और वसंत विहार : मटकों में रखी मसाला चाय और शैंपेन टी नाम से आकर्षित करती दार्जिलिंग की स्पेशल चाय यहां की खासियत हैं।

इंटर कॉन्टिनेंटल इरोज, नेहरू प्लेस : फाइव स्टार लग्जरी के साथ चाय की चुस्की लेना चाहते हैं तो यह जगह सबसे मुफीद है।

आर्थराइटिस से पीड़ित हैं, केयर कीजिए

यदि आपकी हड्डियां कह रही हैं कि यह सर्दी मुश्किल भरी है , तो आपको थोड़ा सतर्क हो जाना चाहिए। कुछ सावधानियों के साथ आप अपनी जिंदगी को आसान बना सकते हैं :

सर्दियों और आर्थराइटि का चोली दामन का साथ है। यूं तो इससे पीड़ित लोग पूरे साल तकलीफ में रहते हैं , लेकिन जाड़े और बरसात में यह समस्या गंभीर रूप ले लेती है। हालांकि अगर कुछ बातों का ध्यान रखा जाए , तो इस दौरान होने वाली इस परेशानी से बचा जा सकता है। अपोलो हॉस्पिटल के सीनियर कन्सलटेंट और जॉइंट रिप्लेसमेंट सर्जन डॉ . आर . के . शर्मा का कहना है कि आर्थराइटि भले ही परेशान करने वाली बीमारी लगती हो , लेकिन ठंड से खुद को बचा कर , नियमित व्यायाम और हेल्दी डाइट लेकर आर्थराइटि से पीड़ित लोग ठंड को भी इंजॉय कर सकते हैं।

आर्थराइटि से पीड़ित 70 से 85 प्रतिशत लोगों के लिए मौसम के लिए संवेदनशील होते हैं। रियूजमेटाइड़ आर्थराइटि जैसी बीमारी सर्दियों में ज्यादा परेशान करती है। इसकी वजह सर्दियों में लोगों का कम चुस्त होना भी हो सकता है। इसलिए सर्दियों में यह जरूरी है कि रोज एक्सरसाइज की जाए। साथ ही इन बातों का भी खयाल रखें :

- जोड़ों का दर्द सर्दियों में और बदतर हो जाता है , इसलिए इसकी अपना खास खयाल रखें।

- जल्दी सुबह और देर शाम की सैर को नजर अंदाज करें , यानी सूर्योदय का इंतजार करें , सूर्यास्त का नहीं।

- अपने पालतू कुत्ते को अपने साथ सैर पर ले जाएं। आप उसके साथ व्यायाम का आनंद ले पाएंगे और भावनात्मक रूप से खुद को संतुष्ट महसूस करेंगे।

- बाहर जाना हो , तो ऐसे कपड़े पहनें , जो आपको गरमाहट प्रदान करें। अगर आप बाहर जाना चाहते हैं , तो जरूरी है कि आपके शरीर पर पर्याप्त कपड़े हों।

- यदि कहीं टूर पर जा रहे हैं , तो अपनी दवाइयों को समय पर लें।

- खुद को अत्यधिक ठंडे तापमान से बचाएं। ज्यादा मेहनत वाली ऐक्टिविटीज को नजरअंदाज करें। बाहर कम तापमान होने की स्थिति में घर के अंदर रहना ही उचित है।

- ऐसा भोजन करें , जिसमें वसा व कैलरी की मात्रा कम हो। अगर वेट ज्यादा न हो , तो अखरोट और ड्राई फ्रूट्स नियमित रूप से लें। ज्यादा फैट , ऑयली और नॉन वेज भोजन अवॉइड करें। सर्दियों के दौरान स्वस्थ और संतुलित आहार लेना जरूरी है। जितना हो सके , ताजे फल व सब्जियां खाएं।

- फिसलन भरी जगहों पर सावधान रहें और चोट लगने से बचें।

- हेल्थ क्लब या जिम जाएं। डांसिंग या वॉटर एरोबिक्स में हिस्सा लें। डॉक्टर के कहने पर आप ट्रेडमिल्स या एक्सरसाइज बाइक्स जैसी मशीनों का प्रयोग कर सकते हैं।

01 जून 2010

महाभारत - द्रौपदी का अपमान

नीच दुर्योधन के वचन सुन कर विदुर तिलमिला कर बोले, "दुष्ट! धर्मराज युधिष्ठिर की पत्नी दासी बने, ऐसा कभी सम्भव नहीं हो सकता। ऐसा प्रतीत होता है कि तेरा काल निकट है इसीलिये तेरे मुख से ऐसे वचन निकल रहे हैं।" परन्तु दुष्ट दुर्योधन ने विदुर की बातों की ओर कुछ भी ध्यान नहीं दिया और द्रौपदी को सभा में लाने के लिये अपने एक सेवक को भेजा। वह सेवक द्रौपदी के महल में जाकर बोला, "महारानी! धर्मराज युधिष्ठिर कौरवों से जुआ खेलते हुये सब कुछ हार गये हैं। वे अपने भाइयों को भी आपके सहित हार चुके हैं, इस कारण दुर्योधन ने तत्काल आपको सभा भवन में बुलवाया है।" द्रौपदी ने कहा, "सेवक! तुम जाकर सभा भवन में उपस्थित गुरुजनों से पूछो कि ऐसी स्थिति में मुझे क्या करना चाहिये?" सेवक ने लौट कर सभा में द्रौपदी के प्रश्न को रख दिया। उस प्रश्न को सुन कर भीष्म, द्रोण आदि वृद्ध एवं गुरुजन सिर झुकाये मौन बैठे रहे।

यह देख कर दुर्योधन ने दुःशासन को आज्ञा दी, "दुःशासन! तुम जाकर द्रौपदी को यहाँ ले आओ।" दुर्योधन की आज्ञा पाकर दुःशासन द्रौपदी के पास पहुँचा और बोला, "द्रौपदी! तुम्हें हमारे महाराज दुर्योधन ने जुए में जीत लिया है। मैं उनकी आज्ञा से तुम्हें बुलाने आया हूँ।" यह सुन कर द्रौपदी ने धीरे से कहा, "दुःशासन! मैं रजस्वला हूँ, सभा में जाने योग्य नहीं हूँ क्योंकि इस समय मेरे शरीर पर एक ही वस्त्र है।" दुःशासन बोला, "तुम रजस्वला हो या वस्त्रहीन, मुझे इससे कोई प्रयोजन नहीं है। तुम्हें महाराज दुर्योधन की आज्ञा का पालन करना ही होगा।" उसके वचनों को सुन कर द्रौपदी स्वयं को वचाने के लिये गांधारी के महल की ओर भागने लगी, किन्तु दुःशासन ने झपट कर उसके घुँघराले केशों को पकड़ लिया और सभा भवन की ओर घसीटने लगा। सभा भवन तक पहुँचते-पहुँचते द्रौपदी के सारे केश बिखर गये और उसके आधे शरीर से वस्त्र भी हट गये। अपनी यह दुर्दशा देख कर द्रौपदी ने क्रोध में भर कर उच्च स्वरों में कहा, "रे दुष्ट! सभा में बैठे हुये इन प्रतिष्ठित गुरुजनों की लज्जा तो कर। एक अबला नारी के ऊपर यह अत्याचार करते हुये तुझे तनिक भी लज्जा नहीं आती? धिक्कार है तुझ पर और तेरे भरतवंश पर!"

यह सब सुन कर भी दुर्योधन ने द्रौपदी को दासी कह कर सम्बोधित किया। द्रौपदी पुनः बोली, "क्या वयोवृद्ध भीष्म, द्रोण, धृतराष्ट्र, विदुर इस अत्याचार को देख नहीं रहे हैं? कहाँ हैं मेरे बलवान पति? उनके समक्ष एक गीदड़ मुझे अपमानित कर रहा है।" द्रौपदी के वचनों से पाण्डवों को अत्यन्त क्लेश हुआ किन्तु वे मौन भाव से सिर नीचा किये हुये बैठे रहे। द्रौपदी फिर बोली, "सभासदों! मैं आपसे पूछना चाहती हूँ कि धर्मराज को मुझे दाँव पर लगाने का क्या अधिकार था?" द्रौपदी की बात सुन कर विकर्ण उठ कर कहने लगा, "देवी द्रौपदी का कथन सत्य है।" युधिष्ठिर को अपने भाई और स्वयं के हार जाने के पश्चात् द्रौपदी को दाँव पर लगाने का कोई अधिकार नहीं था क्योंकि वह पाँचों भाई की पत्नी है अकेले युधिष्ठिर की नहीं। और फिर युधिष्ठिर ने शकुनि के उकसाने पर द्रौपदी को दाँव पर लगाया था, स्वेच्छा से नहीं। अतएव कौरवों को द्रौपदी को दासी कहने का कोई अधिकार नहीं है।"

विकर्ण के नीतियुक्त वचनों को सुनकर दुर्योधन के परम मित्र कर्ण ने कहा, "विकर्ण! तुम अभी कल के बालक हो। यहाँ उपस्थित भीष्म, द्रोण, विदुर, धृतराष्ट्र जैसे गुरुजन भी कुछ नहीं कह पाये, क्योंकि उन्हें ज्ञात है कि द्रौपदी को हमने दाँव में जीता है। क्या तुम इन सब से भी अधिक ज्ञानी हो? स्मरण रखो कि गुरुजनों के समक्ष तुम्हें कुछ भी कहने का अधिकार नहीं है।" कर्ण की बातों से उत्साहित होकर दुर्योधन ने दुःशासन से कहा, "दुःशासन! तुम द्रौपदी के वस्त्र उतार कर उसे निर्वसना करो।" इतना सुनते ही दुःशासन ने द्रौपदी की साड़ी को खींचना आरम्भ कर दिया। द्रौपदी अपनी पूरी शक्ति से अपनी साड़ी को खिंचने से बचाती हुई वहाँ पर उपस्थित जनों से विनती करने लगी, "आप लोगों के समक्ष मुझे निर्वसन किया जा रहा है किन्तु मुझे इस संकट से उबारने वाला कोई नहीं है। धिक्कार है आप लोगों के कुल और आत्मबल को। मेरे पति जो मेरी इस दुर्दशा को देख कर भी चुप हैं उन्हें भी धिक्कार है।"

द्रौपदी की दुर्दशा देख कर विदुर से रहा न गया, वे बोल उठे, "दादा भीष्म! एक निरीह अबला पर इस तरह अत्याचार हो रहा है और आप उसे देख कर भी चुप हैं। क्या हुआ आपके तपोबल को? इस समय दुरात्मा धृतराष्ट्र भी चुप है। वह जानता नहीं कि इस अबला पर होने वाला अत्याचार उसके कुल का नाश कर देगा। एक सीता के अपमान से रावण का समस्त कुल नष्ट हो गया था।"विदुर ने जब देखा कि उनके नीतियुक्त वचनों का किसी पर भी कोई प्रभाव नहीं पड़ रहा है तो वे सबको धिक्कारते हुये वहाँ से उठ कर चले गये।

30 मई 2010

अगर सताता है पैरों का दर्द... ( If the persecuting of foot pain ... )

पैरों का दर्द एक कॉमन प्रॉब्लम है। पहले बुजुर्ग व्यक्ति ही इससे परेशान रहते थे, लेकिन अब तो यह युवाओं को भी अपने अपने घेरे में लेती जा रही है। आइए, जानते हैं कि कैसे इस प्रॉब्लम को कंट्रोल किया जा सकता है:

पैरों में दर्द का रोना आप कितनी बार रोते हैं? कभी-कभार या फिर रोज ही। दरअसल, यह एक कॉमन प्रॉब्लम है। यह दर्द कई बार थकान की वजह से रहता है, लेकिन अक्सर इसके दूसरे कारण भी हो सकते हैं। वैसे, वजहें चाहे जो भी हों, लेकिन इस दर्द को इग्नोर नहीं किया जाना चाहिए।

कारण

पैरों के दर्द की कई वजहें हो सकती हैं, मसलन मांसपेशियों में सिकुड़न, मसल्स की थकान, ज्यादा वॉक करना, एक्सरसाइज, स्ट्रेस, ब्लड क्लॉटिंग की वजह से बनी गांठ, घुटनों, हिप्स व पैरों में सही ब्लड सर्कुलेशन न होना। पानी की कमी, सही डाइट ना लेना, खाने में कैल्शियम व पोटेशियम जैसे मिनरल्स और विटामिंस की कमी वगैरह से भी पैरों में दर्द की शिकायत हो जाती है। बच्चों में यह सब हड्डियों की डेवलेपमेंट व ग्रोथ के लिए और वयस्कों में यह हड्डियों के सही तरीके से काम करने के लिए जरूरी होता है। टिश्यूज की असामान्य ग्रोथ, स्ट्रेस, नर्व्स का डैमेज होना, स्ट्रेंथ और फिजिकल एनजीर् में कमी के अलावा बहुत ज्यादा काम करने से भी पैरों में दर्द होता है। केमिकल बेस्ड दवाइयां ज्यादा मात्रा में लेना, चोट, कॉलेस्ट्रॉल लेवल कम होना, शरीर व मांसपेशियों का कमजोर पड़ जाना, आर्थराइटिस, डायबिटीज, कमजोरी, मोटापा, हॉमोर्नल प्रॉब्लम्स, नसों में दर्द, स्किन व हड्डियों से संबंधित इंफेक्शन और ट्यूमर से भी पैरों में दर्द की शिकायत रहती है।

लक्षण

इस दर्द में मसल्स में सिकुड़न होती है और घुटनों, जांघों व पैर में दर्द रहने लगता है। कभी-कभी दर्द की वजह से एक्सरसाइज में भी दिक्कत होती है।

डाइट

- पानी पीना बहुत जरूरी है। यह मसल्स की सिकुड़न और पैरों के दर्द को कम करता है। जिम या वॉक पर जाने या किसी भी तरह की फिजिकल एक्सरसाइज करने से पहले सही मात्रा में पानी पीएं। यह बॉडी को पूरी तरह हाइड्रेट रखता है।

- जितना हो सके, उतना फ्रूट जूस पीएं। बैलेंस्ड न्यूट्रिशियस डाइट लें। इसमें हरी सब्जियां, गाजर, केले, नट्स, अंकुरित मूंग, सेब, खट्टे फल, संतरा और अंगूर जैसे फलों को शामिल करें।

- दूध से बने प्रॉडक्ट्स ज्यादा लें। चीज, दूध, सोयाबीन, सलाद वगैरह से आपको पूरी मात्रा में विटामिंस मिलेंगे। अपने खाने में ऐसी चीजों की मात्रा बढ़ा दें जिनमें कैल्शियम और पोटैशियम ज्यादा हो।

- रेग्युलर एक्सरसाइज और योग आपको दिमागी व फिजिकल तौर पर फिट रखता है। यह आपको पैरों में दर्द और सांस की समस्या से भी दूर रखता है।

- कुछ खास तरह की लेग स्ट्रेचिंग एक्सरसाइज भी फायदेमंद साबित होती है। दरअसल, इससे ब्लड सर्कुलेशन और मस्कुलर कॉन्ट्रेक्शन सही होता है।

- यह बहुत महत्वपूर्ण है कि आप अपने वजन को कंट्रोल में रखें। फिटनेस और सही डाइट को अच्छी तरह फॉलो करें।

अगर थकान करती है परेशान...

बिजी शेडयूल फॉलो करने वाले लोग अक्सर नींद की कमी और थकान की शिकायत करते हैं। आइए, जानते हैं कि एनर्जी क्राइसिस की क्या वजह है और इसे हम कैसे दूर कर सकते हैं ।

क्या आपको सुबह बेड से उठने में परेशानी होती है या फिर दिन में लंच के बाद थोड़ी देर डेस्क पर सिर रखकर झपकी लेने का मन करता है? अगर आपके साथ भी ऐसा हो रहा है, तो इस परेशानी से जूझने वाले आप अकेले नहीं है। दरअसल, हममें से तमाम लोग एनर्जी लॉस का शिकार हो रहे हैं।

क्या वजह है?
आजकल की बिजी लाइफ में हम लोग अच्छी और पूरी नींद नहीं ले पाते। बिजी शेड्यूल और नींद की कमी वजह से थकान हो जाती है। इसके अलावा, सही डाइट न लेना भी थकान की एक वजह है। अगर आप कुकीज या फिर एक कप कॉफी लेते हैं, तो उस वक्त तो आपको अच्छा महसूस होगा, लेकिन बाद में इससे आपकी एनर्जी बढ़ने की बजाय कम ही होगी। जो लोग हमेशा थके रहते हैं, वे इसी तरह की परेशानी का शिकार होते हैं। डिहाइड्रेशन से पहले भी इंसान को थकान होने लगती है।

क्या महिलाएं अलग हैं?
महिलाओं की सबसे बड़ी परेशानी यह होती है कि वे किसी चीज के लिए इंकार नहीं कर पातीं। वैसे, उन्हें यह सीखना चाहिए, क्योंकि अगर वे कहीं अपनी लिमिट से ज्यादा काम करती हैं, तो उन्हें एनर्जी लॉस होनी शुरू हो जाएगी। उन्हें किसी पर दया दिखाने और उसके बदले में एनर्जी वेस्ट करने में फर्क समझना चाहिए। वैसे, महिलाएं पुरुषों के मुकाबले शुगर भी ज्यादा लेती हैं और इस वजह से भी वे ज्यादा थकती हैं।

इसके अलावा, महिलाओं की जंक फूड खाने की क्षमता भी पुरुषों के मुकाबले कम होती है और इन चीजों को खाने से पुरुषों को इतना नुकसान नहीं पहुंचता। महिलाओं की कमजोरी का आइडिया इसी बात से लगाया जा सकता है कि मासिक धर्म के दौरान 20 से 80 पर्सेंट तक महिलाओं में आयरन की कमी हो जाती है। भले ही उनमें खून की कमी ना हो, लेकिन वे थकी-थकी रहती हैं, ज्यादा सोच नहीं पातीं, उन्हें सही तरह नींद नहीं आती और उन्हें सर्दी जुकाम भी जल्दी हो जाता है। यही नहीं, महिलाओं को थायराइड की परेशानी भी ज्यादा होती है। फिर महिलाएं छोटी-छोटी बातों पर चिंता करने लगती हैं, जबकि पुरुष बहुत ज्यादा परेशानी नहीं होने तक तमाम लक्षणों को इग्नोर करते रहते हैं।

कैसे पाएं एनर्जी
अगर स्प्रिचुअल पॉइंट ऑफ व्यू से सोचें, तो हम जिस चीज के बारे में ज्यादा सोचते हैं, वैसा ही महसूस करते हैं। जिस चीज के बारे में हम नहीं सोचते, वैसा महसूस भी नहीं करते। इसलिए हमें अपनी सीमाओं में रहकर ही सोचना चाहिए और सही शेड्यूल फॉलो करना चाहिए। सबसे पहले आपको ब्रेकफास्ट जरूर करना चाहिए, फिर चाहे आपको भूख हो या न हो। अपना खाना हमेशा अपने साथ रखें और उसमें प्रोटीन व विटामिन की जरूरी मात्रा जरूर शामिल करें। दिन शुरू होने के बाद पानी पीने में ज्यादा देर न करें। कोशिश करें कि दिन में आपको आयरन की सही मात्रा मिले।

अगर आप मीठा खाने के शौकीन हैं, तो मिठाई की जगह फल वगैरह खाकर काम चलाएं। अपने खाने में फाइबर की मात्रा बढ़ाकर फैट की मात्रा कम करें। बिस्तर पर जाने से तीन घंटे पहले खाना खा लें। दिन में एक कॉफी पीने के बाद और कॉफी न लें, क्योंकि इससे नींद पर असर पड़ता है व थकान होती है। अगर किसी दिन आप सही तरीके से खाना नहीं खा पा रहे हैं, तो कोशिश करें कि उस दिन सॉलिड मल्टी विटामिन व मिनरल सप्लिमेंट लें। रोजाना एक्सर्साइज जरूरी है, फिर चाहे वह वॉक ही क्यों ना हो और तनाव से बचना भी जरूरी है। बावजूद इसके, सबसे ज्यादा जरूरी चीज यह है कि आपको यह पता होना चाहिए कि आपकी बॉडी किस वक्त किस चीज की डिमांड कर रही है और आपसे क्या कहना चाह रही है।

एनर्जी लॉस महसूस होने पर क्या करें
उठकर कहीं बाहर घूमने जाएं। सूरज की रोशनी में बैठकर अपनी एनर्जी को दोबारा इकट्ठा करें। इसके अलावा, म्यूजिक भी एनर्जी को वापस पाने का एक अच्छा ऑप्शन हो सकता है। एनर्जी पाने का एक तरीका यह भी है कि करीब 10 मिनट तक हॉट स्टीम लें और उसके बाद टब को ठंडे पानी से भरकर उसमें बैठ जाएं। इस पूरे प्रोसेस में 15 मिनट लगेंगे और आप काफी समय के लिए रीचार्ज हो जाएंगे।

अच्छा रखें वॉशरूम में बिहेवियर

वॉशरूम यूज करना आपकी पर्सनैलिटी के बारे में काफी कुछ कहता है। कई लोग सोचते हैं कि भला वॉशरूम में भी कोई मैनर्स होते हैं, लेकिन ऐसा नहीं है। दरअसल, यहां दिखाए गए तौर-तरीके काफी हद तक आपके रहन-सहन को दिखाते हैं:

- लू का इस्तेमाल करने के बाद फ्लश कर दें। अगर आप यह नहीं करेंगे, तो आपके बाद जो व्यक्ति उसका इस्तेमाल करने आएगा उसको लू गंदा मिलेगा। इससे उसका मन तो खराब होगा ही और वह भी यह कहने ने भी नहीं चूकेगा कि सामने वाले को तो मैनर्स नहीं हैं।

- अगर वॉशरूम वेस्टर्न है, तो सीट गीली न करें। अगर हो गई है, तो नैपकिन से पोंछ कर ही बाहर जाएं।

- गर्ल्स सैनिटरी नैपकिन को टॉयलेट में फ्लश ना करें। इसे लपेटकर डस्टबिन में डाल दें, वरना पानी का बहाव रुक जाएगा, जो पूरे वॉशरूम को गंदा कर देगा।

- अगर एग्जॉस्ट फैन न चल रहा हो, तो उसे चला दें। इससे वॉशरूम की स्मेल बाहर चली जाए।

- बाथरूम में बहुत ज्यादा समय न लगाएं।

- वॉशरूम में इधर-उधर न थूकें।

- लू को इस्तेमाल करने के बाद टॉयलेट सीट को ऊपर कर दें।

- टॉयलेट पेपर को कमोड में न डालें। उसके लिए अलग ढके हुए वेस्टबिन (जो क्लीन हो) का इस्तेमाल करें।

- पब्लिक वॉशरूम में जब भी हाथ व मुंह धोएं, तो पानी को इधर-उधर न फैलाएं।

- वॉशरूम दोस्त बनाने की जगह नहीं है, इसलिए इस जगह को बातचीत का अड्डा न बनाएं।

- नल को खोलते समय अपने साफ हाथ का इस्तेमाल करें।

- अगर कोई वॉशरूम में बहुत समय लगा रहा है, तो दरवाजा न खटखटाएं। उसके बाहर निकलने का इंतजार करें।

आत्मविश्वास शक्ति का मार्ग

आत्मविश्वास क्या है? सामान्यता हम जीवन में बहुत तथ्यों के बारे में बातें करते हैं। यघपि उनके बारे में हमको बहुत स्पस्ट पता होता है। अधिकतर व्यक्ति आत्मविश्वास को एक तथ्य ही मानते हैं। वास्तव में यह उससे भिन्न है। यह एक स्थिति को सकारत्मक मष्तिष्क में संभालने की आदत है।

क्या आप आत्मविश्वासी हैं?
यदि आपको लगता है कि आप आत्मविश्वासी हैं। तो आप में आत्मविश्वास होना चाहिए। यह निश्चिंतता की भावना है, जिसमें आप इस से सोचते और काम करते हैं कि निर्णयों को बार-बार बदलते नहीं। अनिश्चित मष्तिष्क का एक अच्छा उदहारण मोहम्मद तुगलक है। दिल्ली का बादशाह होते हुए उसने सोचा कि दिल्ली ठीक राजधानी नहीं है। उसने दौलताबाद को राजधानी बना दिया और लाव-लश्कर के साथ चला गया। वहां जाकर उसे लगा कि उसने ठीक निर्णय नहीं लिया है। तो राजधानी को वापस दिल्ली ले आया। आत्मविश्वास के लिये दो आवश्यक हैं- दृढ़ता और विशवास। यह महात्मा गाँधी की दृढ़ता और उनका अपने में विशवास था कि उन्होंने तय किया कि अंग्रेजों को भारत छोड़ना होगा। इन दोनों गुणों के कारण भारतीय जनता का उनमें अंधविश्वास हो गया। जो उन्होंने कह दिया, लोगों ने बिना सवाल किये मान लिया। गांधी जी में इतना अधिक आत्मविश्वास था कि वे कभी किसी दूसरे उपया पर सोचते ही नहीं थे। यह नहीं कि उन्होंने कोई गलती नहीं की। परन्तु जब गलती की, उसको स्वीकार किया और उससे सीखा।

आत्मविश्वास वह शक्ति है, जो असंभव को सम्भव बना सकती है। इसकी विशेषता है कि यह प्रत्येक व्यक्ति में विधमान होती है। साधारण व्यक्ति हो या देश का प्रधानमन्त्री। इसका सबसे अच्छा उदहारण अमेरिका की एक अश्वेत महिला रोजा पार्क्स है। 1955 अलाबामा राज्य के मांटगुमरी  शहर की एक बस में जा रही थी। राज्य नियम के अनुसार काले नागरिकों को बस में पिछले भाग में बैठना था। परन्तु उसने मना कर दिया। वह बस से उतर सड़क पर बैठ गयी। पूरे अमेरिका में अश्वेतों ने बसों का बहिष्कार शुरू कर दिया। अमेरिका में न केवल इस नियम को समाप्त किया गया बल्कि मार्टिन लूथर किंग एक प्रभावशाली जूनियर नेता के रूप में उभरे।

आप भी रोजा पार्क्स के समान दृढ विश्वासी हो सकते हैं। आवश्यकता है चार सूत्रों को समझने की।

पहला सूत्र  : यह पता होना चाहिए कि आप अपने निर्णय को किस प्रकार कार्यान्वित करेंगे। यदि आपको यह पता नहीं है, तो आप अनिश्चित रहेंगे और अपने निर्णय को बार-बार बदलते रहेंगे।

दूसरा सूत्र : व्यवहारिक निर्णय लीजिये। जिनको अमल में लाया जा सके। सैद्वान्तिक निर्णय कभी ठीक नहीं रहते।

तीसरा सूत्र : अधिक से अधिक निर्णय लीजिये और सफलता से सीखिए।

चौथा सूत्र : सूचना शक्ति है। आपके पास जितनी अधिक जानकारी होगी, उतना ही प्रभावी निर्णय आप ले पायेंगे। आपको लीच वालेसा में विशवास रखना चाहिए। उनका कहना है : यदि आप दीवार के पार जाना चाहते हैं, तो कई तरीके हैं। उस पर चढ़ सकते है। उसके नीचे से सुरंग बना सकते हैं या इसमें द्वार ढूंढ सकते हैं। 

नटराज और वैदिक यज्ञ

नटराज- यज्ञ रूप है। सनातन यज्ञ के बिम्ब हैं। नटराज सूर्य हैं। उनकी किरणें सनातन नृत्य करते रहती हैं। अग्नि यानि अंजार यानि आग की लपटें यानि प्रकाश यानि सूर्य। सोम यानि जल यानि बर्फ यानि- बीज रूप यानि चन्द्र। अग्नि- सोम के मध्य में अत्रि प्राण है। इसकी खोज अत्रि ऋषि ने की थी। उनकी पत्नी अनुसूया थी। अंगार से अंगीरा शब्द बना है। अंगारा से अंगीरा शब्द बना है। अंगीरा और भृगु ऋषि हैं। भृगु सोम के एक रूप हैं।

राम, कृष्ण, विष्णु, शिव की उपासना शुध्द ब्रहम ही की उपासना है। किसी भी वस्तु में चित्त को एकागत करने से मूल परमात्मपद की ही प्राप्ति होती है। एक शुध्द ब्रहमतत्व ही माया के सम्बन्ध से अव्यक्त ब्रहम और सूक्ष्म प्रपंच उपाधि से उपधित होने पर हिरण्यगर्म एवं स्थूल प्रपंच से उपहित होकर वही विराद् कहलाता है। स्थूल का चिन्तन करते करते सूक्ष्म का और फिर उसका चिन्तन करते करते कारण का, फिर कार्य्यकारणातीत शुध्द ब्रहम का बोध (साक्षात्कार) होता है। मानस जप में मन को ही मानस मन्त्र बनना पड़ता है। इस मानस जप और ध्यान से मन की शुध्दि, एकाग्रत, भगवान के वास्तविक स्वरूप की प्राप्ति बड़ी ही सुविधा के साथ हो जाती है । परमात्मा के संकल्प से ही अन्नतकोटि ब्रहमाण्ड बनकर तैयार होता है। किसी भी कार्य के मूल में संकल्प का होना आवश्यक है। संसार की सभी गति अथवा उन्नति का मूल संकल्प ही है। परमात्मा किसी भी सामग्री की अपेक्षा न करके मात्र अपने संकल्प मात्र से विश्व का उत्पादन, पालन और संहार करता है। वही इसके उत्पादन हैं, वही निमित्त भी हैं। भगवान की सभी शक्तियां जीवात्मा में होती हैं। माया की शक्तियां मन में रहती हैं। अत: जीवात्मा अपने संकल्पों-विचारों से बहुत कुछ कर सकता है। अत्याचार, अनाचार, पापाचार, व्यभिचार आदि से संकल्प की शक्तियां दृढ़ हो जाती हैं। परमेश्वर की आराधना से जीवात्मा में स्वाभाविक परमात्मासंबंधी ऐश्वर्य प्रकट होते हैं, अन्यथा छिपे रहते हैं। सिध्द लोग अपने संकल्प से ही घट को पट और पट को घट बना सकते हैं। विश्वामित्र के संकल्प से मेनका अप्सरा को पहाड़ी बनना पड़ा । अगस्त्य के वचन से नहुष को अजगर बनना पड़ा । वचन के साथ भी संकल्प रहता है। वचन के प्रभाव के साथ संकल्प का प्रभाव रहता है। स्थूल जगत सूक्ष्म जगत के नियंत्रण में रहता है। विचार भी संकल्प रूप है। पुरूष जैसा संकल्प करता है वैसा ही कर्म करने लगता है, जैसा कर्म करता है वैसा ही बन जाता है । बुरे कर्मों को त्यागने के पहले बुरे विचारों को त्यागना पड़ता है । भग्विद्वान से, मन्त्र-जप से , श्रवण से सत्संग से बुरे विचारों की धारा को तोड़ देनी चाहिए। एकाएक मन का संकल्प - विकल्प से रहित होना असंभव है परंतु सात्विक वृत्तियों से तामस वृत्तियों को शनै: शनै: काट कर मन को एकाग्र करना संभव है।