एक गाँव में वीरदास नामक एक किसान था। उसकी पत्नी का नाम जमुना बाई था। उनके किशनदास नाम का एक पुत्र था जो देखने में अपने पिता जैसा था।
खेत में रोपाई चल रही थी। एक दिन सवेरे ही वीरदास अंधेरे में खेत की ओर चल पड़ा। थोड़ी ही देर बाद चार आदमी वीरदास की लाश को उसके घर उठा लाये। अंधेरे में सॉंप ने उसे डँस लिया था। पड़ोसियों की मदद से किशनदास ने पिता का दाह-संस्कार कर दिया ।
वीरदास की पत्नी रो-रोकर बेहोश हो गई। उसने अलसाई नींद में एक सपना देखा। उसका पति भूत बनकर विकृत रूप से हँसते, उल्लू की तरह चीखते, श्मशान के पास के बरगद पर उड़ता जा रहा है।
यह सपना देख वह डर के मारे चिल्ला उठी। अड़ोस-पड़ोस की औरतों ने जो उसको सांत्वना देने आई थीं, पूछा, ‘‘बहन, तुम ने कोई डरावना सपना तो नहीं देखा?’’
‘‘मेरा पति भूत बन गया है!’’ इन शब्दों के साथ जमुना बाई ने अपने सपने का सारा वृत्तांत कह सुनाया।
वीरदास की मृत्यु के तीसरे दिन श्मशान के पास बरगद के नीचे बेहोश पड़े एक बनिये को गॉंववाले उठा लाये। सेवा-शुश्रूषा करने पर वह होश में आया। तब उसने पिछली रात का समाचार सुनाया।
वह बनिया समीप के गॉंव का निवासी था। वह अपनी दूकान के लिए आवश्यक सारी चीज़ें उसी गॉंव से सदा ख़रीदकर ले जाता था। उस दिन भी बहुत ही तड़के उठकर माल लाने वह उस गॉंव के लिए चल पड़ा। उस रास्ते से वह भली भांति परिचित था। अक्सर वह व़क्त-बे - व़क्त उस गॉंव में आता-जाता था। उस दिन श्मशान के पास पहुँचते ही उसे सियारों तथा उल्लुओं की भयंकर आवाज़ें सुनाई दीं।
बरगद के पत्तों की खड़खड़ की ध्वनि आई। बरगद की जटा पकड़कर कोई सफ़ेद धोती व कुर्ता पहने झूलता-सा दिखाई दिया। पहले से ही बनिया भूतों से डरता था। तिस पर वह भूत गरज उठा, ‘‘अरे बनिये! तुम अपना सारा धन देते जाओ! मेरी पत्नी व लड़के का भी तो पेट भरना है! जानते हो, मैं कौन हूँ? मेरा नाम वीरदास है!’’
बनिये की बातों पर गाँववालों का विश्वास जम गया। गाँववालों ने जमुना बाई के घर की तलाशी ली। मगर उन्हें एक कौड़ी भी न मिली।
जमुना बाई अपमानित हो फूट-फूट कर रो पड़ी। इस बात की व्यथा उसे सताने लगी कि साधु प्रकृति का उसका पति न केवल भूत बन बैठा, बल्कि मुसाफ़िरों को भी लूट रहा है!
उस दिन से जमुना बाई के प्रति गाँववालों के व्यवहार में परिवर्तन हो गया। सब ने उसके साथ बोलना-चालना तक बंद कर दिया । वे उसे देखते ही अपना मुँह मोड़ लेते थे। यह बात जुमना बाई के लिए और भी पीड़ादायक थी।
दूसरे दिन रात बीते कोई औरत पड़ोसी गाँव से आ रही थी। भूत ने उसके सारे गहने लूटकर कहा, ‘‘ये गहने मेरी पत्नी धारण करेगी तो और सुंदर दिखाई देगी।’’
दूसरे दिन फिर गाँववालों ने जमुना बाई के घर की तलाशी ली, पर कोई चीज़ न पाकर धमकी देने लगे, ‘‘तुम्हारा पति इस गाँव के लिए एक अभिशाप बना हुआ है, उसको यहॉं से भगा दो, वरना तुम्हारी ख़ैर नहीं।’’
जमुना बाई की समझ में कुछ न आया। लोग अब भी समझते हैं कि उसका उसके पति के साथ संबंध है। उस भूत को कैसे कहे कि वह इस गॉंव को छोड़कर चला जाये !
इसके बाद तीन और लोगों को भूत दिखाई दिया। अंधेरा होते ही गाँव का कोई भी आदमी श्मशान की ओर जाता- आता न था।
गाँववालों ने आपस में सलाह-मशविरा करके जमुना बाई को चेतावनी दी, ‘‘तुम और तुम्हारा बेटा इस गाँव को छोड़कर न जाये तो भूत का यह पिंड छूटेगा नहीं। कल संध्या तक तुम दोनों गाँव छोड़कर न जाओगे तो हम लोग तुम को यहाँ से भगा देंगे।’’
घर-द्वार छोड़कर जाये तो कहाँ जाये! इसलिए जमुना बाई ने अपने पति से बिनती करने की हिम्मत की और श्मशान की ओर चल पड़ी। उसे सियारों की चिल्लाहट सुनाई दे रही थी। जब वह बरगद के निकट पहुँची तब पेड़ की डालों में से ये शब्द सुनाई पड़े, ‘‘अरी, ठहर जाओ! मेरी पत्नी और पुत्र का पेट कैसे भरे! तुम्हारे पास जो कुछ है, उसे वहाँ पर रख दो। जानती हो, मैं कौन हूँ। मैं वीरदास हूँ।’’
जमुना बाई अवाक् रह गई। वह आवाज़ वीरदास की न थी। वह लौटकर घर चली आई। उसने सारा समाचार अपने पुत्र किशनदास को सुनाया और कहा, ‘‘बेटा! कोई कमबख़्त तुम्हारे पिता को बदनाम कर रहा है। उसको पकड़वा देना चाहिये।’’ इस पर किशनदास ने एक उपाय सोचा और अपनी मॉं को बताया। जमुनाबाई ने अपनी सहमति दे दी।
दूसरे दिन जमुना बाई ने गाँव वालों से बताया, ‘‘हमलोग कल इस गाँव को छोड़कर चले जाएँगे।’’
उस रात को माँ-बेटे ने खाना खाया। किशनदास ने अपने बालों में सफ़ेदी पोत ली, वह देखने में वीरदास जैसा था। दोनों श्मशान में पहुँचे। किशन सफ़ेद धोती व सफ़ेद कुर्ता पहने बरगद के खोखले में छिप गया। जमुना बाई समीप की एक झाड़ी में छिप गई।
थोड़ी देर बाद गाँव की ओर से एक आदमी सफ़ेद धोती व कुर्ता पहने वहाँ पहुँचा। वह बरगद पर चढ़कर डालों के बीच बैठ गया। तब वह उल्लू की तरह बोला और लोमड़ियों की भाँति चिल्लाया।
जमुना बाई इसी उद्विग्नता के साथ खोखले की ओर ताक रही थी कि किशन कब बाहर निकलेगा। इतने में वह बाहर आया। पेड़ पर बैठे हुए व्यक्ति से बोला, ‘‘अरे बदमाश! तुम मुझे बदनाम करते हो? देखो, अभी मैं क्या करता हूँ? जानते हो, मैं कौन हूँ? मैं वीरदास हूँ।’’
ये बातें सुन पेड़ पर बैठा हुआ व्यक्ति काँपकर नीचे आ गिरा। वह छटपटाते हुए बोला, ‘‘वीरदास! मुझ से ग़लती हो गई। मुझको माफ़ करो। मेरी हानि न करो! तुम्हारे पैरों पड़ता हूँ।’’
‘‘मैं तुम्हारी कोई हानि नहीं करूँगा! मगर यह बताओ, आज तक तुमने लोगों को डराकर जो धन लूटा, उसे कहाँ छिपा रखा है?’’ वीरदास की ये बातें सुन वह व्यक्ति थर-थर काँपते पेड़ की जड़ के निकट खोदने लगा।
अपनी चाल के सफल होते देख जमुना बाई फूली न समाई और, गाँव में जाकर बोली, ‘‘मेरे पति को बदनाम करनेवाला धूर्त पकड़ा गया है। आओ, तुम सब ख़ुद अपनी आँखों से देख लो।’’ वह गाँव के कई लोगों को श्मशान तक बुला ले आई। नकली भूतवाला आदमी मशाल लेकर आनेवाले गाँव के मनुष्यों को देख घबरा गया। उसने तब तक लूटा हुआ सारा माल बाहर निकाल दिया था। ‘‘अबे चोर के बच्चे! यह तुमने क्या किया?’’ इन शब्दों के साथ गाँव वालों ने उसको मार-पीट कर अधमरा कर दिया।
उस व़क्त पेड़ के खोखले में से किशनदास ने झाँककर देखा और कहा, ‘‘यह सब क्या हो रहा है! मैं थोड़ा ऊँघ गया था!’’
जमुना बाई अचरज में आ गई। यह सारा नाटक किशनदास ने ही रचा था। इसके बाद जमुना बाई ने सारा समाचार लोगों को सुनाया। तब जाकर लोगों की समझ में आया कि वीरदास के भूत ने ही नकली भूत को पकड़वा दिया है। जो माल खो गया था, सब को वापस मिल गया।
गाँव वालों ने जमुना बाई से माफ़ी माँगकर गाँव न छोड़ने की मिन्नत की। भूत का नाटक रचने वाला व्यक्ति सवेरा होने के पहले ही गाँव छोड़कर भाग गया। इसके बाद किसी ने भी वीरदास के भूत को नहीं देखा।
30 मार्च 2010
वीरदास का भूत
Posted by Udit bhargava at 3/30/2010 10:05:00 pm
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