हालाकि, अपने यहाँ अतिरिक्त पड़े किसी सामान को किराए पर देकर आय कमाना कदाचित ही श्रेष्ठ अवधारणा मानी जाए, लेकिन नीदरलैंड्स ने किराए जैसे शब्द को पुनर्परिभाषित करने की दिशा में एक बड़ा कदम उठाया है। इसके आधिकारिक तौर पर बेल्जियम जैसे देश को अपनी कौल्कोथारिया किराए पर देने का फैसला किया है, जो अपने यहाँ अपराधियों को कैद में रखें के लिए जगह की कमी से जूझ रहा है। अपने यहाँ बड़ी मात्रा में अतिरिक्त कालकोठरियों को देखते हुए नीदरलैंड्स ने दक्षिणी इलाके में स्थित डच सिटी आँफ टिलबर्ग की जेल में 500 बेल्जियम कैदियों को रखने पर सहमती जताई है। इसके बदले में बेल्जियम उसे तीन साल के अनुबंध के तहत सालाना 30 मिलियम यूरो की राशि देगा।
हम इससे क्या सीख ले सकते हैं? यदि हम कुछ सीखें नहीं, तो भी कम से कम इस विचार को कांपी कर ही सकते हैं। देश में ऐसे सैकड़ों गाँव और छोटे कसबे हैं जहाँ बड़ी मात्रा में खाली जमीन है। बिल्डर लंबी सिर्फ बड़े-बड़े आकार की कालोनियां बनाती है। आखिर अंतरराष्ट्रीय स्टार के जेल बनाकर इन्हें मुंबई, दिल्ली, चेन्नई और कोलकाता की जेल अथांरिटीज को किराए पर क्यों नहीं दिया जा सकता? देखा जाए तो सम्बंधित राज्य सरकारें अपने यहाँ अंदरूनी इलाकों में इस तरह के बड़ी जेलें बना सकती हैं और विभिन्न केन्द्रीय कारागारों की और से कब्जे में राखी गयी जमीनों को इन्फ्रास्ट्रक्चर के विकास के लिए मुक्त किया जा सकता है। इसके लिए गाँवों में व्यापक भूमि आधार चाहिए, जो हमारे देश में कोई समस्या नहीं है। एक सुदृढ़ दीर्घकालीन बिजनेस प्लान और राजनीतिक इच्छाशक्ति के जरिये ऐसा हो सकता है। फिलहाल जेल की कम से कम नब्बे प्रतिशत जगह ऐसे लोगों से भरी रहती है, जिनके बारे में तमाम कोर्ट फैसला सुना चुके हैं और जो सिर्फ अपनी सजा काट रहे हैं। सिर्फ दस प्रतिशत विचारधीन कैदियों की सुनवाई बड़े शहरों की अदालतों में होती है। यदि इन नब्बे प्रतिशत कैदियों को कोर्ट के आदेश के बाद स्थानांतरित कर दिया जाए तो इन भीडभाड भरे शहरों में काफी जगह निकल सकती है और इससे ग्रामें जनता के लिए भी बड़ी मात्रा में रोजगार के अवसर पैदा होंगे।
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