सुरभि ने जब मेरठ छोड़ा तो उसे दिल्ली जैसे बड़े शहर में कोई दिक्कत नहीं हुई। अपने शहर में उसने पढाई पूरी की और दिल्ली आते ही काम करना शुरू कर दिया। उसने कुछ अच्छे दोस्त भी बना लिये। सुरभि का माना है कि आपकी सुरक्षा आपके हाथ में है। इसके लिये जरूरी है कि आप हाँस्टल या घर से निकलते ही मोबाइल आन रखें। हमेशा सतर्क रहें। किसी भी बस में अकेले सफर न करें। ऑटो लें तो उसका नंबर नोट कर लें। जरूरत पड़ने पर पुलिस को काँल कर सकती हैं। पार्क में या सुनसान जगह साथी के साथ भी न बैठें। अनजान जगह अकेले जाने से बचें।
25 मई 2011
शहरों में अपनी सुरक्षा खुद करती हैं युवतियां
सुरभि ने जब मेरठ छोड़ा तो उसे दिल्ली जैसे बड़े शहर में कोई दिक्कत नहीं हुई। अपने शहर में उसने पढाई पूरी की और दिल्ली आते ही काम करना शुरू कर दिया। उसने कुछ अच्छे दोस्त भी बना लिये। सुरभि का माना है कि आपकी सुरक्षा आपके हाथ में है। इसके लिये जरूरी है कि आप हाँस्टल या घर से निकलते ही मोबाइल आन रखें। हमेशा सतर्क रहें। किसी भी बस में अकेले सफर न करें। ऑटो लें तो उसका नंबर नोट कर लें। जरूरत पड़ने पर पुलिस को काँल कर सकती हैं। पार्क में या सुनसान जगह साथी के साथ भी न बैठें। अनजान जगह अकेले जाने से बचें।
Posted by Udit bhargava at 5/25/2011 08:46:00 pm 0 comments
क्यों जरूरी है तीर्थ यात्रा?
यह सच है कि तीर्थ का संबंध आध्यात्मिक एवं पावन स्थल से है फिर वह किसी मन्दिर, नदी, घाट आदि किसी भी रूप में क्यों न हो, किसी भी धर्म, जाती एवं देश का क्यों न हो। लोग उन स्थानों पर जाकर स्वयं को धन्य करते हैं, स्नान करते हैं या अपने इष्ट के स्थल के दर्शन करते हैं। ऐसे स्थालों पर लोग दान-पुण्य भी करते हैं। इन सब के पीछे उनकी एक ही धारणा होती है और वह है पापों से मुक्ति, जन्मों के बंधन से छुटकारा या फिर अपने इस जीवन को धन्य बनाना। परन्तु इन कारणों के अलावा भी अनेक कारण हैं जिसके लिये तीर्थ यात्रा जरूरी ही नहीं हितकारी भी है।
ऊर्जा का केंद्र
अक्सर मन में यह सवाल उठता है कि भगवान तो सब में सब जगह व्याप्त है शरीर में भी, घर में भी और मन्दिर में भी। फिर तीर्थ क्यों जाएं? जिस तरह घर के हर कमरे का अपना अलग महत्वा है उसी तरह धरती पर हर स्थल का भी अपना महत्व है। क्या आपने कभी सोचा है कि हम रसोई में क्यों नहीं नहाते? या स्नानघर में खाना क्यों नहीं खाते? और जब भगवान् सब जगह सब में व्याप्त है तो फिर मन्दिर में क्यों जाते हैं? क्योंकि जहाँ हम अपना नित्य कर्म करते हैं वहां उसी तरह के भाव, सुगंध, तरंग एवं ऊर्जा आदि प्रवाहित होने लगती है। जो हमने रूपांतरित करने में हमारी मदद करती है। इसीलिये जो ऊर्जा तीर्थ स्थलों पर बहती है वह अन्य स्थानों से अधिक प्रभावशाली एवं पवित्र होती है। यही कारण है कि ऐसे स्थलों पर हजार भक्तों एवं श्रद्धालुओं के मन स्वतः ही मंत्र मुग्ध हो जाते हैं। वहां का नजारा, भजन-कीर्तन में डूबे लोग शहरी दुनिया से दूर मन में अध्यात्मिक शक्ति का संचार करते हैं जिससे मन हल्का एवं तनाव मुक्त होने लगता है।
स्वास्थ्यवर्धक
तीर्थ यात्रा स्वास्थ्य की दृष्टि से भेए हितकारी होती है क्योंकि जहाँ पर भी तीर्थ है वहां का वातावरण एकदम स्वच्छ एवं सुरमय होता है। वहां की वनस्पति आँखों को राहत एवं ठंडक देती है। लगातार चलते एवं सीढियां चढ़ने-उतरने से तथा भजन-कीर्तन में तालियों के साथ गाने से हथेली एवं तलवों पर दवाव पड़ता है जिसे एक्यूप्रेशर कहा jaaटा है जिससे कई रोग दूर होते हैं. saatvik भोजन evm fala
Posted by Udit bhargava at 5/25/2011 06:00:00 pm 0 comments
24 मई 2011
अहम को न बनाएं अहम
निरूद्ध और दीक्षा एक ही आँफिस में काम करते हैं। दोनों की शादी को साल भर भी नहीं हुआ कि आए दिन दोनों के बीच छोटी-छोटी बातों को लेकर लड़ाई होती रहती है, फिर चाहे वे आँफिस हो या घर पर। एक दिन तो हद ही हो गई जब दीक्षा ने अनिरूद्ध को अपने इंकरीमेंट के बारे में बताया तो अनिरूद्ध खुश होने के बजाए नाराज होने लगा। गुस्से में उसने दीक्षा से कहा, 'हाँ-हाँ तुम्हारी तो सैलरी बढनी ही थी, तुम सबकी चहेती जो हो। हर कोई तुम्हें इतना प्यार जो करता है, मैं तो कुछ भी नहीं हूँ तुम्हारे आगे।'
अनिरूद्ध की बात सुनकर दीक्षा सकते में आ गई। उसने कहा, 'अनिरूद्ध तुम्हें क्या हो गया है? मैं और आप अलग तो नहीं हैं न, अरे आपको तो खुश होना चाहिए और आप....।'
'बस, अपनी फालतू की बातों से मेरा दिमाग मत खाऊ। तुम्हें क्या लगता है कि मैं अंधा हूँ, मुझे दिखाई नहीं देता कि तुम आँफिस में कैसे रहती हो। हर किसी से जब हंसकर बात करोगी तो सब तो तुम्हें पूछेंगे ही। अनिरूद्ध ने फिर गुस्से में कहा। 'अनिरूद्ध मुझे नहीं समझ में आता कि आपको मुझसे अब क्या परेशानी हो गई। पहले तो ऐसा कुछ नहीं था, तब तो मेरी सारी खुशियाँ आपकी थी, पर अब...। दीक्षा की बात को बीच में काटते हुए अनिरूद्ध बोला, पहले क्या था वे भूल जाओ, अब क्या है वो देखो। तुम चाहती हो कि मैं हमेशा तुमसे नीचे रहूँ, तभी तो आँफिस में भी रौब दिखाती हो, अब तो और ज्यादा दिखाओगी, क्योंकि अब प्रमोशन के साथ सैलरी भी बढी है।' बस अनिरूद्ध बहुत हो गया, अब शांत हो जाओ। मैं कुछ नहीं बोल रही हूँ और तुम हो कि अनापशनाप बोलते चले जा रही हो।' दीक्षा ने गुस्से में कहा। 'हाँ अब तो मेरी बात तुम्हें बेकार लगेगी ही।' अनिरूद्ध बोला। 'प्लीज शांत हो जाओ अनिरूद्ध, मैं बात को बढ़ाना नहीं चाहती। प्लीज चुप रहो।' दीक्षा ने कहा। 'दीक्षा एक बात कान खोलकर सुन लो, अगर तुम्हें रहना है तो मेरे हिसाब से रहो नहीं तो अभे और इसी वक्त घर छोड़कर चली जाओ।' अनिरूद्ध की यह बात सुनकर दीक्षा के पैरो तले जमीन सरक गई, उसने रोते हुए अनिरूद्ध से कहा, 'अनिरूद्ध ये आप क्या कह रहे हो, इतनी सी बात को इतना बड़ा क्यों बना रहे हो। मैं कहीं नहीं जाऊंगी। दीक्षा का इतना बोलना था कि अनिरूद्ध ने एक थप्पड़ दीक्षा के गाल पर मारा और बोला, 'ये मेरा घर है, सो प्लीज यू कैन गो।' इतना कहकर अनिरूद्ध दूसरे कमरे में चला गया और दीक्षा रोते-रोते बेडरूम में चली गई।
शादी के बाद हर पति-पत्नी के बीच छोटी-मोती नोंक-झोंक होती रहती है और यह जरूरी भी होता है क्योंकि प्यार में जब तक तकरार नहीं होती तो प्यार कैसे बढेगा। पर जब पति-पत्नी के बीच प्यार में इगो यानी अहम् आ जाता है तो हल्की-फुलकी लड़ाई भी बड़ा रूप ले लेती है। क्योंकि यह एक ऐसी भावना है, जो अपनी संतुष्टि के लिये दूसरों को नीचा दिखाने से नहीं चूकती। काउंसलर प्रांजलि मल्होत्रा कहती है, 'तेजी से बदलते समय के साथ जीवन के हर क्षेत्र में स्थापित मूल्यों के अर्थ बदल रहे हैं। कल तक महिलाओं के लिये घर की चारदीवारी से बाहर निकलना मुश्किल था, पर आज की स्त्रियाँ पुरूषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं। यही उच्चता या श्रेष्ठता की भावना स्त्रियों में इगो उत्पन्न कर देती है, जिसको पुरूष प्रधान समाज स्वीकार नहीं कर पाता। वहीं मैरिज काउंसलर रिंकू कहती है, 'आज फेमिनिज्म का ज़माना है। महिलाएं पुरुषों के वर्चस्व को चुनौती दे रही हैं, जिसका असर वैवाहिक जीवन में पड़ रहा है। आज के जमाने में भी घर के सारे कार्यों के लिये पत्नी को जवाबदेह माना जाता है और यदि कोई गलती होती है तो पत्नी को ही दोषी माना जाता है। पर यदि दोनों स्वरूपों के यथार्थ को समझा जाए तो पति-पत्नी के बीच अहम् का अवसर ही नहीं आएगा। आजकल स्थिति बहुत प्रतिकूल हो चली है। पति-पत्नी आज समझौते के लिये पहल करने से पहले इगो को पहले रखते हैं, जिसका परिणाम यह हो रहा है कि रिश्ता मजबूत बनने से पहले ही टूट जाता है।'
* अगर आप दोनों के परिवार के किसी अन्य सदस्य को अक्षमता व कमजोरी का ज्ञान आप दोनों को है तो उसका जिक्र बाहर वालों के सामने न करें और न ही उसका मजाक उडाएं।
* पति-पत्नी दोनों एक-दूसरे के पूरक होते हैं, इसलिए एक-दूसरे की सफलता को अलग दृष्टि से नहीं देखना चाहिए।
* अगर दोनों के बीच लड़ाई हो गई है तो पहल करने की कोशिश करें। ये बात दिल से निकाल फेंकें कि हम क्यों पहले पहल करें।
* भूल से अगर कोई गलती हो गई है तो उस गलती को स्वीकारें न की गुस्सा होकर गलती को छुपाने की कोशिश करें।
* किसी भी बात को लंबा खींचना के लिये बहस न करें, बल्कि कोशिश करें कि बहस से बचें।
* एक दूसरे पर आरोप लगाने से पहले परेशानियों को समझें, उसके बाद ही कोई बात कहें।
* यदि किसी बात पर आपसी मतभेद हो गया है और दोनों में कोई भी बदलने को तैयार नहीं है तो इसे अपनी प्रतिष्ठा का मुद्दा न बनाएं।
* अपनी सफलता का श्रेय अपनी पत्नी को देना कभी न भूलें, क्योंकि वह आपकी जीवन संगिनी है।
* कितनी भी नाराजगी क्यों न हो कभी भी बातचीत बंद न करें, बल्कि इस सिलसिले को बनाए रखें।
* हमेशा ध्यान रखें कि इगो प्यार का दुश्मन है, इससे मसले सुलझते नहीं और भी उलझ जाते हैं। अतः जीवन में मधुरता व सहनशीलता के गुण अपनाएं।
Posted by Udit bhargava at 5/24/2011 05:25:00 pm 2 comments
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