30 मार्च 2010

माँ


अशोक का पिता उसके पाँचवें साल की उम्र में ही मर गया। माँ पार्वती ने उसे पढ़ा-लिखाकर बड़ा किया। ज़मींदार के दिवान में नौकरी मिलते ही उसने वनजा नामक लड़की से उसकी शादी करवायी। अशोक ने हर महीने अपने वेतन में से थोड़ी-सी रक़म बचा कर एक सुंदर घर बनवाया। उसने निर्णय किया कि उस घर का नामक होगा ‘‘पार्वती''। उसने अपना निर्णय पत्नी को सुनाया। परंतु इस निर्णय का विरोध करते हुए उसने कहा कि उस घर का नाम हो ‘‘वनजा''.

अशोक निर्णय नहीं कर पाया कि घर का नाम उसकी माँ के नाम पर हो अथवा उसकी पत्नी के नाम पर। माँ ने उसे प्यार दिया। तकलीफ़ें झेलकर उसे पढ़ाया-लिखाया और योग्य बनाया। और वनजा! वह भी उसे बहुत चाहती है, उसकी हर इच्छा की पूर्ति करती है और दिन-रात उसके स्वास्थ्य का ख्याल रखती है। उसने इस समस्या के बारे में अपने दोस्त राघव से सलाह माँगी।

‘‘इस छोटी-सी बात पर इतना परेशान क्यों होते हो? मैं भली-भांति जानता हूँ कि तुम्हारी माँ तुम्हें कितना चाहती है। अपने घर की दीवार पर माँ के नाम के बदले ‘माँ' मात्र लिखवा दो। वह तुम्हें तुम्हारी माँ की याद दिलायेगा। तुम्हारे बच्चे जब उसे देखेंगे तो वे समझेंगे कि यह उनकी मॉं का घर है। ऐसा करने से तुम्हारी पत्नी को भी कोई शिकायत नहीं होगी।'' राघव ने सलाह दी।

‘‘राघव, तुमने बड़ी अच्छी सलाह दी। ‘माँ' से बड़ा कुछ नहीं होता।'' अशोक ने कहा। अब उसके नये घर का नाम है ‘माँ'। उस नाम को पढ़कर सिर्फ अशोक के घरवाले ही नहीं बल्कि उस गली के सब लोग प्रसन्न होते हैं।